299 परमेश्वर के शुभ समाचार की प्रतीक्षा में

1

तड़पती आँखों से व्यग्रता से पुकारते हो तुम,

क्रूर इंसानियत का सामना करते हुए, दिल खोल देते हो अपना तुम।

एकमात्र इच्छा की खातिर सहते हो अन्याय तुम,

उड़ेल देते हो उम्मीद और लहू अपने दिल का तुम।

देते हो अपना सर्वस्व, ज्यादा उम्मीद कभी करते नहीं,

दर्द और यातनाओं से, अनजान नहीं हो तुम।

हे परमेश्वर कौन तुम्हारे सौंदर्य से तुलना करे?

सदा सम्मानित होगा महान कार्य तुम्हारा।


2

पाप में गिरा हूँ मगर रौशनी में उठता हूँ मैं, रौशनी में उठता हूँ मैं।

बहुत आभारी हूँ, उन्नत करते हो तुम मुझे।

देहधारी परमेश्वर सहता है यातना, और कितना चाहिये सहना मुझे?

गर अंधेरों में मैं जा गिरा, तो कैसे देखूँगा परमेश्वर को?

तुम्हारे वचनों का ख़्याल

तुम्हारी अभिलाषा जगाते हैं, जगाते हैं।

तुम्हारे चेहरे को देख,

अपनी ग्लानि में, तुम्हे नमन करता हूँ।

कैसे त्यागूँ तुम्हें मैं तथाकथित आज़ादी पाने के लिये?

बल्कि तुम्हारे दुखी दिल का समाधान करने, यातना सह लूँगा मैं।

कैसे त्यागूँ तुम्हें मैं तथाकथित आज़ादी पाने के लिये?

जब फिर से फूल खिलेंगे, तुम्हारा शुभ समाचार सुनूंगा।

पिछला: 298 कौन समझता है परमेश्वर की व्यथा?

अगला: 301 मैं रखूँगा दिल में तुझे, हमेशा के लिए

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

610 प्रभु यीशु का अनुकरण करो

1पूरा किया परमेश्वर के आदेश को यीशु ने, हर इंसान के छुटकारे के काम को,क्योंकि उसने परमेश्वर की इच्छा की परवाह की,इसमें न उसका स्वार्थ था, न...

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें