298 कौन समझता है परमेश्वर की व्यथा?
1
इंसान को बचाने परमेश्वर देह बन गया है और उसने चरम अपमान सहा है।
वह सत्य व्यक्त करता है और इंसान को जीवन देने के लिए अपना सब कुछ उसे देता है।
उसके न्याय, ताड़ना, परीक्षण और परिष्करण सभी इंसान को शुद्ध करने के लिए हैं।
इंसान का हृदय कुटिल, स्वार्थी और दुष्ट है;
लोग परमेश्वर के प्रति सतर्कता और गलतफमियों से भरे हैं।
लेकिन साल दर साल, दिन-ब-दिन,
परमेश्वर अत्यधिक धैर्य के साथ लोगों के मुड़ने का इंतज़ार करता है।
क्या कोई परमेश्वर का दर्द समझ सकता है?
2
लोग केवल आशीष पाने के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं; वे सत्य की खोज नहीं करते।
वे प्रसिद्धि और लाभ को पूरी ताकत से पीछा करते हैं, फिर भी उसका अनुमोदन पाने की आशा करते हैं।
वे केवल अपनी संभावनाओं और मंज़िलों की सोचते हैं, कभी उसकी इच्छा को ध्यान में नहीं रखते।
परमेश्वर उन लोगों के पश्चात्ताप का इंतज़ार करता है जो उससे सच में प्रेम करते हैं।
उसकी उदासी देखकर, मुझे पछतावा होता है;
मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम इतना गहरा है, तो मैं उससे प्रेम क्यों नहीं करता?
मैं एक इच्छा पूरी करने को संकल्पित हूँ : अपना सच्चा प्रेम देने,
परमेश्वर के प्रेम के लिए उसका प्रतिदान देने और उसे सुकून देने की इच्छा।