जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी

भाइयों-बहनों में से जो लोग हमेशा अपनी नकारात्मकता का गुबार निकालते रहते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं और वे कलीसिया को परेशान करते हैं। ऐसे लोगों को अवश्य ही एक दिन निकाल और हटा दिया जाना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास रखते हुए अगर लोगों के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल न हो, परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाला दिल न हो, तो ऐसे लोग न सिर्फ परमेश्वर के लिए कोई कार्य कर पाने में असमर्थ होंगे, बल्कि वे परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने वाले और उसकी उपेक्षा करने वाले लोग बन जाएंगे। परमेश्वर में विश्वास करना किन्तु उसके प्रति समर्पण न करना या उसका भय न मानना और उसका प्रतिरोध करना, किसी भी विश्वासी के लिए सबसे बड़ा कलंक है। यदि विश्वासी अपनी वाणी और आचरण में हमेशा ठीक उसी तरह लापरवाह और असंयमित हों जैसे अविश्वासी होते हैं, तो ऐसे लोग अविश्वासी से भी अधिक दुष्ट होते हैं; ये मूल रूप से राक्षस हैं। जो लोग कलीसिया के भीतर विषैली, दुर्भावनापूर्ण बातों का गुबार निकालते हैं, भाई-बहनों के बीच अफवाहें व अशांति फैलाते हैं और गुटबाजी करते हैं, तो ऐसे सभी लोगों को कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए था। अब चूँकि यह परमेश्वर के कार्य का एक भिन्न युग है, इसलिए ऐसे लोग नियंत्रित हैं, क्योंकि उन्हें निश्चित रूप से बाहर निकाला जाना है। शैतान द्वारा भ्रष्ट ऐसे सभी लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं। कुछ के स्वभाव पूरी तरह से भ्रष्ट हैं, जबकि अन्य लोग इनसे भिन्न हैं : न केवल उनके स्वभाव शैतानी हैं, बल्कि उनकी प्रकृति भी बेहद विद्वेषपूर्ण है। उनके शब्द और कृत्य न केवल उनके भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव को प्रकट करते हैं, बल्कि ये लोग असली दानव और शैतान हैं। उनके आचरण से परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी और विघ्न पैदा होता है; इससे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में विघ्न पड़ता है और कलीसिया के सामान्य कार्यकलापों को क्षति पहुंचती है। आज नहीं तो कल, भेड़ की खाल में छिपे इन भेड़ियों का सफाया किया जाना चाहिए, और शैतान के इन अनुचरों के प्रति एक सख्त और अस्वीकृति का रवैया अपनाया जाना चाहिए। केवल ऐसा करना ही परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना है; और जो ऐसा करने में विफल हैं वे शैतान के साथ कीचड़ में लोट रहे हैं। जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, परमेश्वर उनके हृदय में बसता है और उनके भीतर हमेशा परमेश्वर का भय मानने और उसे प्रेम करने वाला हृदय होता है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें सावधानी और समझदारी से कार्य करना चाहिए, और वे जो कुछ भी करें वह परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप होना चाहिये, उसके हृदय को संतुष्ट करने में सक्षम होना चाहिए। उन्हें मनमाने ढंग से कुछ भी करते हुए दुराग्रही नहीं होना चाहिए; ऐसा करना संतों की शिष्टता के अनुकूल नहीं होता। छल-प्रपंच में लिप्त चारों तरफ अपनी अकड़ में चलते हुए, सभी जगह परमेश्वर का ध्वज लहराते हुए लोग उन्मत्त होकर हिंसा पर उतारू न हों; यह बहुत ही विद्रोही प्रकार का आचरण है। परिवारों के अपने नियम होते हैं और राष्ट्रों के अपने कानून; क्या परमेश्वर के घर में यह बात और भी अधिक लागू नहीं होती? क्या इसके मानक और भी अधिक सख़्त नहीं हैं? क्या इसके पास प्रशासनिक आदेश और भी ज्यादा नहीं हैं? लोग जो चाहें वह करने के लिए स्वतंत्र हैं, परन्तु परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों को इच्छानुसार नहीं बदला जा सकता। परमेश्वर आखिर परमेश्वर है जो मानव के अपराध को सहन नहीं करता; वह परमेश्वर है जो लोगों को मौत की सजा देता है। क्या लोग यह सब पहले से ही नहीं जानते?

हर कलीसिया में ऐसे लोग होते हैं जो कलीसिया के लिए विघ्न पैदा करते हैं या परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करते हैं। ये सभी लोग शैतान के छ्द्म वेष में परमेश्वर के परिवार में घुस आए हैं। ऐसे लोग अभिनय कला में निपुण होते हैं : मेरे समक्ष विनीत भाव से आकर, नमन करते हुए, नत-मस्तक होते हैं, खुजली वाले कुत्ते की तरह व्यवहार करते हैं, अपने मकसद को पूरा करने के लिये अपना “सर्वस्व” न्योछावर करते हैं, लेकिन भाई-बहनों के सामने उनका बदसूरत चेहरा प्रकट हो जाता है। जब वे सत्य पर चलने वाले लोगों को देखते हैं तो उन पर आक्रमण कर देते हैं और उन्हें दर-किनार कर देते हैं; और जब वे ऐसे लोगों को देखते हैं जो उनसे भी अधिक भयंकर हैं, तो फिर वे उनकी चाटुकारिता करने लगते हैं, उनके आगे गिड़गिड़ाने लगते हैं। कलीसिया के भीतर वे आततायियों की तरह व्यवहार करते हैं। कह सकते हैं कि ऐसे “स्थानीय गुण्डे” और ऐसे “पालतू कुत्ते” ज्यादातर कलीसियाओं में मौजूद हैं। ऐसे लोग मिलकर दुष्ट हरकतें करते हैं, आँखे झपका कर, गुप्त संकेतों और इशारों से आपस में बात करते हैं, और इनमें से कोई भी सत्य का अभ्यास नहीं करता। जो सबसे ज्यादा जहरीला होता है, वही “प्रधान राक्षस” होता है, और जो सबसे अधिक प्रतिष्ठित होता है, वह इनकी अगुवाई करता है और इनका परचम बुलंद रखता है। ऐसे लोग कलीसिया में उपद्रव मचाते हैं, नकारात्मकता फैलाते हुए मौत का तांडव करते हैं, मनमर्जी करते हैं, जो चाहे बकते हैं; किसी में इन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती है, ये शैतानी स्वभाव से भरे होते हैं। जैसे ही ये लोग व्यवधान पैदा करते हैं, कलीसिया में मुर्दनी छा जाती है। कलीसिया के भीतर सत्य का अभ्यास करने वाले लोगों का तिरस्कार किया जाता है और वे अपना सर्वस्व अर्पित करने में असमर्थ हो जाते हैं, जबकि कलीसिया में परेशानियाँ खड़ी करने वाले, मौत का वातावरण निर्मित करने वाले लोग यहां उपद्रव मचाते फिरते हैं, और इतना ही नहीं, अधिकतर लोग उनका अनुसरण करते हैं। साफ बात है, ऐसी कलीसियाएँ शैतान के कब्ज़े में होती है; हैवान इनका सरदार होता है। यदि समागम के सदस्य विद्रोह नहीं करेंगे और उन प्रधान राक्षसों को खारिज नहीं करेंगे, तो देर-सवेर वे भी बर्बाद हो जाएँगे। अब ऐसी कलीसियाओं के ख़िलाफ कदम उठाए जाने चाहिए। जो लोग थोड़ा भी सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं यदि वे खोज नहीं करते हैं, तो उस कलीसिया को मिटा दिया जाएगा। यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही दे सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे “मृत्यु दफ़्न करना” कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को ठुकराना। यदि किसी कलीसिया में कई स्थानीय गुण्डे हैं, और कुछ “छोटी-मोटी मक्खियों” द्वारा उनका अनुसरण किया जाता है जिनमें विवेक का पूर्णतः अभाव है, और यदि समागम के सदस्य, सच्चाई जान लेने के बाद भी, इन गुण्डों की जकड़न और तिकड़म को नकार नहीं पाते, तो उन सभी मूर्खों को अंत में बाहर निकाल दिया जायेगा। भले ही इन छोटी-छोटी मक्खियों ने कुछ खौफनाक न किया हो, लेकिन ये और भी धूर्त, ज़्यादा मक्कार और कपटी होती हैं, इस तरह के सभी लोगों को हटा दिया जाएगा। एक भी नहीं बचेगा! जो शैतान से जुड़े हैं, उन्हें शैतान के पास भेज दिया जाएगा, जबकि जो परमेश्वर से संबंधित हैं, वे निश्चित रूप से सत्य की खोज में चले जाएँगे; यह उनकी प्रकृति के अनुसार तय होता है। उन सभी को नष्ट हो जाने दो जो शैतान का अनुसरण करते हैं! इन लोगों के प्रति कोई दया-भाव नहीं दिखाया जायेगा। जो सत्य के खोजी हैं उनका भरण-पोषण होने दो और वे अपने हृदय के तृप्त होने तक परमेश्वर के वचनों में आनंद प्राप्त करें। परमेश्वर धार्मिक है; वह किसी से पक्षपात नहीं करता। यदि तुम शैतान हो, तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते; और यदि तुम सत्य की खोज करने वाले हो, तो यह निश्चित है कि तुम शैतान के बंदी नहीं बनोगे—इसमें कोई संदेह नहीं है।

जो प्रगति के लिए प्रयास नहीं करते हैं, वे हमेशा चाहते हैं कि दूसरे भी उन्हीं की तरह नकारात्मक और अकर्मण्य बनें। जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, वे सत्य का अभ्यास करने वालों के प्रति ईर्ष्या-भाव रखते हैं, और हमेशा ऐसे लोगों को गुमराह करना चाहते हैं जो भ्रमित हैं और जिनमें विवेक की कमी है। जिन बातों को ये उगलते हैं, वे तेरे पतन का, गर्त में गिरने का, तुझमें असामान्य परिस्थिति पैदा होने का और तुझमें अंधकार भरने का कारण बनती हैं; वे तुझे परमेश्वर से दूर रहने, देह में आनंद लेने और तेरा अपने आप में आसक्त होने का कारण बनती हैं। जो सत्य से प्रेम नहीं करते हैं, जो परमेश्वर के प्रति सदैव लापरवाह रवैया अपनाते हैं, उनमें आत्म-जागरूकता नहीं होती; ऐसे लोगों का स्वभाव लोगों को पाप करने और परमेश्वर की अवहेलना के लिये बहकाता है। वे सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं और न ही दूसरों को इसका अभ्यास करने देते हैं। उन्हें पाप अच्छे लगते हैं और उनमें स्वयं के प्रति कोई नफ़रत नहीं होती है। वे स्वयं को नहीं जानते हैं, और दूसरों को भी स्वयं को जानने से रोकते हैं; वे दूसरों को सत्य की लालसा करने से रोकते हैं। जिन लोगों को वे गुमराह करते हैं वे प्रकाश को नहीं देख सकते। वे अंधेरे में पड़ जाते हैं, स्वयं को नहीं जानते, और सत्य के बारे में अस्पष्ट रहते हैं, तथा परमेश्वर से उनकी दूरी बढ़ती चली जाती है। वे सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं और दूसरों को भी सत्य का अभ्यास करने नहीं देते हैं, और उन सभी मूर्खों को अपने सामने लाते हैं। बजाय यह कहने के कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि वे अपने पूर्वजों में विश्वास करते हैं, या कि वे जिसमें विश्वास करते हैं वे उनके दिल में बसी प्रतिमाएँ हैं। उन लोगों के लिए, जो परमेश्वर का अनुसरण करने का दावा करते हैं, अपनी आँखें खोलना और इस बात को ध्यान से देखना सर्वोत्तम रहेगा कि दरअसल वे किसमें विश्वास करते हैं : क्या यह वास्तव में परमेश्वर है जिस पर तू विश्वास करता है, या शैतान है? यदि तू जानता कि जिस पर तू विश्वास करता है वह परमेश्वर नहीं है, बल्कि तेरी स्वयं की प्रतिमाएँ हैं, तो फिर यही सबसे अच्छा होता यदि तू विश्वासी होने का दावा नहीं करता। यदि तुझे वास्तव में नहीं पता कि तू किसमें विश्वास करता है, तो, फिर से, यही सबसे अच्छा होता यदि तू विश्वासी होने का दावा नहीं करता। वैसा कहना कि तू विश्वासी था ईश-निंदा होगी! तुझसे कोई ज़बर्दस्ती नहीं कर रहा कि तू परमेश्वर में विश्वास कर। मत कहो कि तुम लोग मुझमें विश्वास करते हो, मैं ऐसी बहुत सी बातें बहुत पहले खूब सुन चुका हूँ और उन्हें दुबारा सुनने की इच्छा नहीं है, क्योंकि तुम जिनमें विश्वास करते हो वे तुम लोगों के मन की प्रतिमाएँ और तुम लोगों के बीच के स्थानीय गुण्डे हैं। जो लोग सत्य को सुनकर अपनी गर्दन ना में हिलाते हैं, जो मौत की बातें सुनकर अत्यधिक मुस्कराते हैं, वे शैतान की संतान हैं; और उन्हें बाहर निकाल दिया जाएगा। ऐसे कई लोग कलीसिया में मौजूद हैं, जिनमें कोई विवेक नहीं है। और जब कुछ गुमराह करने वाला घटित होता है, तो वे अप्रत्याशित रूप से शैतान के पक्ष में जा खड़े होते हैं। जब उन्हें शैतान का अनुचर कहा जाता है तो उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। यद्यपि लोग कह सकते हैं कि उनमें विवेक नहीं है, वे हमेशा उस पक्ष में खड़े होते हैं जहाँ सत्य नहीं होता है, वे संकटपूर्ण समय में कभी भी सत्य के पक्ष में खड़े नहीं होते हैं, वे कभी भी सत्य के पक्ष में खड़े होकर दलील पेश नहीं करते हैं। क्या उनमें सच में विवेक का अभाव है? वे अनपेक्षित ढंग से शैतान का पक्ष क्यों लेते हैं? वे कभी भी एक भी शब्द ऐसा क्यों नहीं बोलते हैं जो निष्पक्ष हो या सत्य के समर्थन में तार्किक हो? क्या ऐसी स्थिति वाकई उनके क्षणिक भ्रम के परिणामस्वरूप पैदा हुई है? लोगों में विवेक की जितनी कमी होगी, वे सत्य के पक्ष में उतना ही कम खड़ा हो पाएँगे। इससे क्या ज़ाहिर होता है? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि विवेकशून्य लोग पाप से प्रेम करते हैं? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि वे शैतान की निष्ठावान संतान हैं? ऐसा क्यों है कि वे हमेशा शैतान के पक्ष में खड़े होकर उसी की भाषा बोलते हैं? उनका हर शब्द और कर्म, और उनके चेहरे के हाव-भाव, यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वे सत्य के किसी भी प्रकार के प्रेमी नहीं हैं; बल्कि, वे ऐसे लोग हैं जो सत्य से घृणा करते हैं। शैतान के साथ उनका खड़ा होना यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि शैतान इन तुच्छ इब्लीसों को वाकई में प्रेम करता है जो शैतान की खातिर लड़ते हुए अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं। क्या ये सभी तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं? यदि तू वाकई ऐसा व्यक्ति है जो सत्य से प्रेम करता है, तो फिर तेरे मन में ऐसे लोगों के लिए सम्मान क्यों नहीं हो सकता है जो सत्य का अभ्यास करते हैं, तो फिर तू तुरंत उनके मात्र एक इशारे पर ऐसे लोगों का अनुसरण क्यों करता है जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं? यह किस प्रकार की समस्या है? मुझे परवाह नहीं कि तुझमें विवेक है या नहीं। मुझे परवाह नहीं कि तूने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है। मुझे परवाह नहीं कि तेरी शक्तियाँ कितनी बड़ी हैं और न ही मुझे इस बात की परवाह है कि तू एक स्थानीय गुण्डा है या कोई ध्वज-धारी अगुआ। यदि तेरी शक्तियाँ अधिक हैं, तो वह शैतान की ताक़त की मदद से है। यदि तेरी प्रतिष्ठा अधिक है, तो वह केवल इसलिए है क्योंकि तेरे आस-पास बहुत से ऐसे लोग हैं जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं; यदि तू निष्कासित नहीं किया गया है, तो इसलिए कि अभी निष्कासन-कार्य का समय नहीं है; बल्कि यह समय बाहर निकालने के कार्य का है। तुझे निष्कासित करने की अभी कोई जल्दी नहीं है। मैं तो बस उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, जब हटा दिए जाने के बाद, मैं तुझे दंडित करूंगा। जो कोई भी सत्य का अभ्यास नहीं करता है, उसे हटा दिया जायेगा!

जो लोग सचमुच में परमेश्वर में विश्वास करते हैं, ये वे लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाने को तैयार रहते हैं, और सत्य को अभ्यास में लाने को तैयार हैं। जो लोग सचमुच में परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं ये वे लोग हैं जो उसके वचनों को अभ्यास में लाने को तैयार हैं, और जो सचमुच सत्य के पक्ष में खड़े हो सकते हैं। जो लोग चालबाज़ियों और अन्याय का सहारा लेते हैं, उनमें सत्य का अभाव होता है, वे सभी परमेश्वर को लज्जित करते हैं। जो लोग कलीसिया में कलह में संलग्न रहते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं, और शैतान के मूर्तरूप हैं। इस प्रकार का व्यक्ति बहुत द्वेषपूर्ण होता है। जिन लोगों में विवेक नहीं होता और सत्य के पक्ष में खड़े होने का सामर्थ्य नहीं होता वे सभी दुष्ट इरादों को आश्रय देते हैं और सत्य को मलिन करते हैं। ये लोग शैतान के सर्वोत्कृष्‍ट प्रतिनिधि हैं; ये छुटकारे से परे हैं, और वास्तव में, हटा दिए जाने वाली वस्तुएँ हैं। परमेश्वर का परिवार उन लोगों को बने रहने की अनुमति नहीं देता है जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, और न ही यह उन लोगों को बने रहने की अनुमति देता है जो जानबूझकर कलीसियाओं को ध्वस्त करते हैं। हालाँकि, अभी निष्कासन के कार्य को करने का समय नहीं है; ऐसे लोगों को सिर्फ उजागर किया जाएगा और अंत में हटा दिया जाएगा। इन लोगों पर व्यर्थ का कार्य और नहीं किया जाना है; जिनका सम्बंध शैतान से है, वे सत्य के पक्ष में खड़े नहीं रह सकते हैं, जबकि जो सत्य की खोज करते हैं, वे सत्य के पक्ष में खड़े रह सकते हैं। जो लोग सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, वे सत्य के वचन को सुनने के अयोग्य हैं और सत्य के लिये गवाही देने के अयोग्य हैं। सत्य बस उनके कानों के लिए नहीं है; बल्कि, यह उन पर निर्देशित है जो इसका अभ्यास करते हैं। इससे पहले कि हर व्यक्ति का अंत प्रकट किया जाए, जो लोग कलीसिया को परेशान करते हैं और परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करते हैं, अभी के लिए उन्हें सबसे पहले एक ओर छोड़ दिया जाएगा, और उनसे बाद में निपटा जाएगा। एक बार जब कार्य पूरा हो जाएगा, तो इन लोगों को एक के बाद एक करके उजागर किया जाएगा, और फिर हटा दिया जाएगा। फिलहाल, जबकि सत्य प्रदान किया जा रहा है, तो उनकी उपेक्षा की जाएगी। जब मनुष्य जाति के सामने पूर्ण सत्य प्रकट कर दिया जाता है, तो उन लोगों को हटा दिया जाना चाहिए; यही वह समय होगा जब लोगों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। जो लोग विवेकशून्य हैं, वे अपनी तुच्छ चालाकी के कारण बुरे लोगों के हाथों विनाश को प्राप्त होंगे, और ऐसे लोग दुष्ट लोगों के द्वारा पथभ्रष्ट कर दिये जायेंगे तथा लौटकर आने में असमर्थ होंगे। इन लोगों के साथ इसी प्रकार पेश आना चाहिए, क्योंकि इन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, क्योंकि ये सत्य के पक्ष में खड़े होने में अक्षम हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों का अनुसरण करते हैं, ये दुष्ट लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों के साथ साँठ-गाँठ करते हैं और परमेश्वर की अवमानना करते हैं। वे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि वे दुष्ट लोग दुष्टता विकीर्ण करते हैं, मगर वे अपना हृदय कड़ा कर लेते हैं और उनका अनुसरण करने के लिए सत्य के विपरीत चलते हैं। क्या ये लोग जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं लेकिन जो विनाशकारी और घृणास्पद कार्यों को करते हैं, दुष्टता नहीं कर रहे हैं? यद्यपि उनमें से कुछ ऐसे हैं जो अपने आप को सम्राटों की तरह पेश करते हैं और कुछ ऐसे हैं जो उनका अनुसरण करते हैं, किन्तु क्या परमेश्वर की अवहेलना करने की उनकी प्रकृति एक-सी नहीं है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है? क्या यह उनकी अपनी दुष्टता नहीं है जो उनका विनाश कर रही है? क्या यह उनकी खुद की विद्रोहशीलता नहीं है जो उन्हें नरक में नहीं धकेल रही है? जो लोग सत्य का अभ्यास करते हैं, अंत में, उन्हें सत्य की वजह से बचा लिया जाएगा और सिद्ध बना दिया जाएगा। जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, अंत में, वे सत्य की वजह से विनाश को आमंत्रण देंगे। ये वे अंत हैं जो उन लोगों की प्रतीक्षा में हैं जो सत्य का अभ्यास करते हैं और जो नहीं करते हैं। जो सत्य का अभ्यास करने की कोई योजना नहीं बना रहे, ऐसे लोगों को मेरी सलाह है कि वे यथाशीघ्र कलीसिया को छोड़ दें ताकि और अधिक पापों को करने से बचें। जब समय आएगा तो पश्चाताप के लिए भी बहुत देर हो चुकी होगी। विशेष रूप से, जो गुटबंदी करते हैं और पाखंड पैदा करते हैं, और वे स्थानीय गुण्डे तो और भी जल्दी अवश्य छोड़ कर चले जाएँ। जिनकी प्रवृत्ति दुष्ट भेड़ियों की है ऐसे लोग बदलने में असमर्थ हैं। बेहतर होगा वे कलीसिया से तुरंत चले जाएँ और फिर कभी भाई-बहनों के सामान्य जीवन में बाधा न डालें और परिणास्वरूप परमेश्वर के दंड से बचें। तुम लोगों में से जो लोग उनके साथ चले गये हैं, वे आत्म-मंथन के लिए इस अवसर का उपयोग करें। क्या तुम लोग ऐसे दुष्टों के साथ कलीसिया से बाहर जाओगे, या यहीं रहकर आज्ञाकारिता के साथ अनुसरण करोगे? तुम लोगों को इस बात पर सावधानी से विचार अवश्य करना चाहिए। मैं चुनने के लिए तुम लोगों को एक और अवसर देता हूँ; मुझे तुम लोगों के उत्तर की प्रतीक्षा है।

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