प्रश्न 7: कई भाई-बहनों को यह लगता है कि प्रभु यीशु में हमारे विश्वास के कारण हमारे पापों को पहले ही क्षमा कर दिया गया है, और यह कि हम प्रभु की बहुत अधिक कृपा का आनंद ले चुके हैं और सभी ने प्रभु की करुणा और दया का अनुभव किया है। प्रभु यीशु पहले से ही हमें पापियों के रूप में नहीं देखते, इसलिए हमें सीधे स्वर्ग के राज्य में लाया जाना चाहिए। तो फिर ऐसा क्‍यों कि प्रभु को अभी भी अंत के दिनों के अपना न्याय कार्य करने की आवश्‍यकता है? क्‍यों वे जब आए थे तभी हमें स्वर्ग के राज्य में नहीं ले गए? परमेश्‍वर के अंत के दिनों के न्याय के कार्य मानव जाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए हैं या दंडित और नष्ट करने के लिए? बहुत से लोग इसे समझ पाने में असमर्थ हैं। इस विषय पर कृपया खास तौर से हमारे साथ सहभागिता करें।

उत्तर: आपने जो प्रश्न अभी पूछा वह बहुत व्यावहारिक है। हालांकि हमारे पापों को प्रभु में विश्वास करने के कारण क्षमा कर दिया गया है, और हमें बचाए गए लोगों के रूप में गिना जाता है, परमेश्‍वर की दृष्टि में, हम अभी भी गंदे और भ्रष्ट ही हैं और शुद्धिकरण के लिए पाप से बच नहीं पाए हैं। पापों को क्षमा कर दिये जाने का मतलब सिर्फ यह है कि हम कानून द्वारा दंडित नहीं होंगे। यही "अनुग्रह से बचाए जाने" का अर्थ है। परमेश्‍वर ने भले ही हमारे पापों को क्षमा कर हमें कई आशीष दिया हो, हमें हमारे पापों की क्षमा की शांति और खुशी का आनंद लेने का मौक़ा दिया हो, और हमें परमेश्‍वर से प्रार्थना करने और परमेश्‍वर के साथ बातचीत और संवाद करने का अधिकार दिया हो, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि हम अभी भी अक्सर पाप करते और परमेश्‍वर का विरोध करते हैं, और धार्मिकता तक नहीं पंहुच पा रहे हैं। हमें अभी भी परमेश्‍वर की वापसी की आवश्यकता है ताकि वे मानव जाति को पूरी तरह से शुद्ध करने और बचाने के अपने कार्य को पूरा कर सकें। दूसरे शब्‍दों में कहें तो, प्रभु यीशु का उद्धार कार्य केवल अंत के दिनों के परमेश्‍वर के न्याय के कार्य का मार्ग प्रशस्त करने के लिए है। मानव जाति को बचाने का परमेश्‍वर का कार्य वहीं समाप्‍त नहीं होता है। हमें इस बात को जानना चाहिए। तो जैसा कि आप सभी ने बताया है, कि ऐसा क्‍यों कि प्रभु में विश्वास करने पर हमारे पापों को क्षमा कर दिये जाने के बाद भी हम अपने पर कोई नियंत्रण नहीं रख पाते और अक्सर पाप करते हैं, और पाप में रहने से खुद को निकाल नहीं पाते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि शैतान द्वारा हमारा भ्रष्टाचार बहुत गहरा हो गया है, इस हद तक कि हम सभी में शैतानी प्रवृत्ति है और हम शैतानी स्वभाव से भरे हुए हैं। यही कारण है अक्सर पाप करने पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रह पाता। अगर इस शैतानी प्रवृत्ति का हल नहीं निकाला गया, तो हम अभी भी पाप और परमेश्‍वर का विरोध कर सकते हैं, भले ही हमारे पाप क्षमा हो चुके हों। इस तरह, हम कभी भी परमेश्‍वर के साथ अनुकूलता प्राप्त करने में सक्षम नहीं होंगे। यही कारण है कि प्रभु यीशु ने कहा था कि उन्‍हें वापस आना होगा। ऐसा इसलिए है कि वे मानव जाति को शुद्ध करने और बचाने के लिए अंत के दिनों के अपने न्याय कार्य को पूरा करेंगे। जैसे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मनुष्य को छुटकारा दिये जाने से पहले, शैतान के बहुत से ज़हर उसमें पहले से ही गाड़ दिए गए थे। हज़ारों वर्षों तक शैतान द्वारा भ्रष्ट किये जाने के बाद, मनुष्य के भीतर पहले ही ऐसा स्वभाव है जो परमेश्वर का विरोध करता है। इसलिए, जब मनुष्य को छुटकारा दिया गया है, तो यह छुटकारे से बढ़कर और कुछ नहीं है, जहाँ मनुष्य को एक ऊँची कीमत पर खरीदा गया है, परन्तु भीतर का विषैला स्वभाव नहीं हटाया गया है। मनुष्य जो इतना अशुद्ध है उसे परमेश्वर की सेवा करने के योग्य होने से पहले एक परिवर्तन से होकर अवश्य गुज़रना चाहिए। न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से, मनुष्य अपने भीतर के गन्दे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। वह सब कार्य जिसे आज किया गया है वह इसलिए है ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; न्याय और ताड़ना के वचन के द्वारा और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से, मनुष्य अपनी भ्रष्टता को दूर फेंक सकता है और उसे शुद्ध किया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाए, यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्ध करने का कार्य है। सच में, यह चरण विजय का और साथ ही उद्धार के कार्य का दूसरा चरण है। मनुष्य को वचन द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से परमेश्वर के द्वारा प्राप्त किया जाता है; शुद्ध करने, न्याय करने और खुलासा करने के लिए वचन के उपयोग के माध्यम से मनुष्य के हृदय के भीतर की सभी अशुद्धताओं, अवधारणाओं, प्रयोजनों, और व्यक्तिगत आशाओं को पूरी तरह से प्रकट किया जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))। "पाप बलि के माध्यम से मनुष्य के पापों को क्षमा किया जा सकता है, परन्तु मनुष्य इस मसले को हल करने में पूरी तरह असमर्थ रहा है कि वह कैसे आगे और पाप नहीं कर सकता है और कैसे उसके पापी स्वभाव को पूरी तरह से दूर किया जा सकता है और उसे रूपान्तरित किया जा सकता है। परमेश्वर के सलीब पर चढ़ने के कार्य की वजह से मनुष्य के पापों को क्षमा किया गया था, परन्तु मनुष्य पुराने, भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीवन बिताता रहा। ऐसा होने के कारण, मनुष्य को भ्रष्ट शैतानी स्वभाव से पूरी तरह से बचाया जाना चाहिए ताकि मनुष्य का पापी स्वभाव पूरी तरह से दूर किया जाए और वो फिर कभी विकसित न हो, जो मनुष्य के स्वभाव को बदलने में सक्षम बनाये। इसके लिए मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह जीवन में उन्नति के पथ को, जीवन के मार्ग को, और अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के मार्ग को समझे। साथ ही इसके लिए मनुष्य को इस मार्ग के अनुरूप कार्य करने की आवश्यकता है ताकि मनुष्य के स्वभाव को धीरे-धीरे बदला जा सके और वह प्रकाश की चमक में जीवन जी सके, और वो जो कुछ भी करे वह परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हो, ताकि वो अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभाव को दूर कर सके, और शैतान के अंधकार के प्रभाव को तोड़कर आज़ाद हो सके, और उसके परिणामस्वरूप पाप से पूरी तरह से ऊपर उठ सके। केवल तभी मनुष्य पूर्ण उद्धार प्राप्त करेगा। ... इसलिए, उस चरण के कार्य के पूरा हो जाने के पश्चात्, अभी भी न्याय और ताड़ना का काम बाकी है। यह चरण वचन के माध्यम से मनुष्य को शुद्ध बनाने के लिए है ताकि मनुष्य को अनुसरण करने का एक मार्ग प्रदान किया जाए। ... यह चरण पिछले चरण की अपेक्षा अधिक अर्थपूर्ण और साथ ही अधिक लाभदायक भी है, क्योंकि अब वचन ही है जो सीधे तौर पर मनुष्य के जीवन की आपूर्ति करता है और मनुष्य के स्वभाव को पूरी तरह से नया बनाए जाने में सक्षम बनाता है; यह कार्य का ऐसा चरण है जो अधिक विस्तृत है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन बहुत स्पष्ट हैं: अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने केवल अपना छुटकारे का कार्य पूरा किया था। प्रभु में विश्वास करने के लिए मानव जाति के पापों को क्षमा कर दिया गया, लेकिन उनकी पापी प्रवृत्ति का समाधान नहीं हो सका। मनुष्य की पापी प्रवृत्ति शैतानी प्रवृत्ति है। यह पहले से ही मनुष्य के अंदर गहराई से जड़ें जमाकर मनुष्‍य के जीवन में समा चुकी है। यही कारण है कि मनुष्य अभी भी पाप और परमेश्‍वर का विरोध करने पर नियंत्रण नहीं कर पाता। मनुष्य का शैतानी स्वभाव से पूर्ण होना परमेश्‍वर के प्रति उसके प्रतिरोध का मूल कारण है। मनुष्य के पापों को क्षमा किया जा सकता है, लेकिन क्या परमेश्‍वर उसकी शैतानी प्रवृत्ति को क्षमा कर सकते हैं? शैतान की प्रवृत्ति सीधे-सीधे परमेश्‍वर और सत्‍य का विरोध करती है। परमेश्‍वर इसे कभी क्षमा नहीं करेंगे। इसलिए, परमेश्‍वर को मानव जाति को शैतान की प्रवृत्ति के बंधन और नियंत्रण से पूरी तरह बचाना होगा, और मानव जाति को न्याय और ताड़ना देने होंगे। अंत के दिनों में परमेश्‍वर का न्याय और उनकी ताड़ना वह कार्य है जो हमारे भीतर की शैतानी प्रवृत्ति और स्वभाव को ख़त्म करने के लिए है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, क्या हमारी शैतानी प्रवृत्ति का समाधान केवल न्याय और ताड़ना से किया जा सकता है? क्या हम पीड़ित होने का मूल्‍य चुकाकर, अपने शरीर को वश में करके, और स्‍वयं को संकल्प के साथ रोककर, अपनी शैतानी प्रवृत्ति का समाधान नहीं कर सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं। आइए, पूरे इतिहास में कई संतों पर एक नज़र डालें, जिन लोगों ने पीड़ा झेलकर मूल्‍य चुकाया और अपने शरीर को वश में किया, जो सभी पाप के बंधन और नियंत्रण से बचना और देह के परे जाना चाहते थे। लेकिन उनमें से कौन शैतान को परास्त कर ऐसा बनने में सफल रहा जो वास्तव में परमेश्‍वर का आज्ञापालन करता है? कोई भी नहीं। अगर वे ऐसे थे भी, तो वे ऐसे लोग थे जिन्हें परमेश्‍वर ने विशेष रूप से पूर्ण किया था। लेकिन ऐसे कितने लोग थे? ऐसा इसलिए था क्योंकि परमेश्‍वर का न्याय और ताड़ना नहीं थी, इसलिए मनुष्य के शैतानी स्वभाव को शुद्ध नहीं किया जा सकता था। इसलिए मनुष्य का जीवन स्वभाव बदलने में असमर्थ था। यह तथ्य इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि मानव जाति की शैतानी प्रवृत्ति का समाधान करने में मानवीय साधन असमर्थ है। सत्य और जीवन हासिल करने के लिए, अनन्त जीवन का मार्ग प्राप्त करने के लिए, मनुष्य को परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना, काट-छांट और निपटारे, परीक्षण और शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरना होगा। केवल तभी मनुष्य की शैतानी प्रवृत्ति का पूरी तरह समाधान हो सकता है। यही कारण है कि, प्रभु यीशु के उद्धार कार्य की नींव पर, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर, मानव जाति को शैतानी प्रकृति के बंधन और नियंत्रण से पूरी तरह से बचाने के लिए, अंत के दिनों में न्याय और ताड़ना का कार्य करते हैं, ताकि मानव जाति को परमेश्‍वर का उद्धार प्राप्त करने और परमेश्‍वर द्वारा उसे प्राप्‍त किए जाने के लिए शुद्ध किया जा सके। इस से हम यह देख सकते हैं कि यह अंत के दिनों में परमेश्‍वर का न्याय और ताड़ना ही है जो मानव जाति को पूरी तरह से शुद्ध करता और बचाता है। यह सच है।

हम सब लोग अब जानते हैं कि परमेश्‍वर का न्याय और ताड़ना हमारी भ्रष्ट मानवता के लिए सबसे बड़ा उद्धार है। अगर हम परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव नहीं करते हैं, तो हमारे शैतानी स्वभाव का समाधान नहीं किया जा सकता है, और हम वास्तव में परमेश्‍वर की ओर मुड़ने और परमेश्‍वर द्वारा जीत लिए जाने में सक्षम नहीं होंगे, और हम परमेश्‍वर के वादे का आनंद लेने और एक सुंदर मंज़िल प्राप्त करने के लिए अयोग्य रहेंगे। यह एक तथ्य है जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता है। लेकिन बहुत से लोग समझ नहीं पा रहे हैं - परमेश्‍वर द्वारा मनुष्य का न्याय करने और ताड़ना देने का मतलब क्या है? क्या परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना मानव जाति को दंडित कर रहे हैं या उसे बचा रहे हैं? इसके लिए हमें परमेश्‍वर के कार्य को जानने और मानव जाति को बचाने के परमेश्‍वर के इरादों को समझने की आवश्यकता है। आइये हम सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन के कुछ अंश पढ़ते हैं।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "परमेश्वर के द्वारा मनुष्य की सिद्धता किसके द्वारा पूरी होती है? उसके धर्मी स्वभाव के द्वारा। परमेश्वर के स्वभाव में मुख्यतः धार्मिकता, क्रोध, भव्यता, न्याय और शाप शामिल है, और उसके द्वारा मनुष्य की सिद्धता प्राथमिक रूप से न्याय के द्वारा होती है। कुछ लोग नहीं समझते, और पूछते हैं कि क्यों परमेश्वर केवल न्याय और शाप के द्वारा ही मनुष्य को सिद्ध बना सकता है। वे कहते हैं, 'यदि परमेश्वर मनुष्य को शाप दे, तो क्या वह मर नहीं जाएगा? यदि परमेश्वर मनुष्य का न्याय करे, तो क्या वह दोषी नहीं ठहरेगा? तब वह कैसे सिद्ध बनाया जा सकता है?' ऐसे शब्द उन लोगों के होते हैं जो परमेश्वर के कार्य को नहीं जानते। परमेश्वर मनुष्य की अवज्ञाकारिता को शापित करता है, और वह मनुष्य के पापों को न्याय देता है। यद्यपि वह बिना किसी संवेदना के कठोरता से बोलता है, फिर भी वह उन सबको प्रकट करता है जो मनुष्य के भीतर होता है, और इन कठोर वचनों के द्वारा वह उन सब बातों को प्रकट करता है जो मूलभूत रूप से मनुष्य के भीतर होती हैं, फिर भी ऐसे न्याय के द्वारा वह मनुष्य को शरीर के सार का गहरा ज्ञान प्रदान करता है, और इस प्रकार मनुष्य परमेश्वर के समक्ष आज्ञाकारिता के प्रति समर्पित होता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)

"तुम सब पाप और व्यभिचार की धरती पर रहते हो; और तुम सब व्यभिचारी और पापी हो। आज तुम न केवल परमेश्वर को देख सकते हो, बल्कि उससे भी महत्वपूर्ण रूप से, तुम लोगों ने ताड़ना और न्याय प्राप्त किया है, तुमने वास्तव में गहन उद्धार प्राप्त किया है, दूसरे शब्दों में, तुमने परमेश्वर का महानतम प्रेम प्राप्त किया है। वह जो कुछ करता है, उस सबमें वह तुम्हारे प्रति वास्तव में प्रेमपूर्ण है। वह कोई बुरी मंशा नहीं रखता। यह तुम लोगों के पापों के कारण है कि वह तुम लोगों का न्याय करता है, ताकि तुम आत्म-परीक्षण करो और यह ज़बरदस्त उद्धार प्राप्त करो। यह सब मनुष्य को संपूर्ण बनाने के लिए किया जाता है। प्रारंभ से लेकर अंत तक, परमेश्वर मनुष्य को बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रहा है, और वह अपने ही हाथों से बनाए हुए मनुष्य को पूर्णतया नष्ट करने का इच्छुक नहीं है। आज वह कार्य करने के लिए तुम लोगों के मध्य आया है, और क्या ऐसा उद्धार और भी बड़ा नहीं है? अगर वह तुम लोगों से नफ़रत करता, तो क्या फिर भी वह व्यक्तिगत रूप से तुम लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए इतने बड़े परिमाण का कार्य करता? वह इस प्रकार कष्ट क्यों उठाए? परमेश्वर तुम लोगों से घृणा नहीं करता, न ही तुम्हारे प्रति कोई बुरी मंशा रखता है। तुम लोगों को जानना चाहिए कि परमेश्वर का प्रेम सबसे सच्चा प्रेम है। यह केवल लोगों की अवज्ञा के कारण है कि उसे न्याय के माध्यम से उन्हें बचाना पड़ता है; यदि वह ऐसा न करे, तो उन्हें बचाया जाना असंभव होगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (4))

"युग का समापन करने के अपने अंतिम कार्य में, परमेश्वर का स्वभाव ताड़ना और न्याय का है, जिसमें वह वो सब प्रकट करता है जो अधार्मिक है, ताकि वह सार्वजनिक रूप से सभी लोगों का न्याय कर सके और उन लोगों को पूर्ण बना सके, जो सच्चे दिल से उसे प्यार करते हैं। केवल इस तरह का स्वभाव ही युग का समापन कर सकता है। अंत के दिन पहले ही आ चुके हैं। सृष्टि की सभी चीज़ें उनके प्रकार के अनुसार अलग की जाएँगी और उनकी प्रकृति के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित की जाएँगी। यही वह क्षण है, जब परमेश्वर लोगों के परिणाम और उनकी मंज़िल प्रकट करता है। यदि लोग ताड़ना और न्याय से नहीं गुज़रते, तो उनकी अवज्ञा और अधार्मिकता को उजागर करने का कोई तरीका नहीं होगा। केवल ताड़ना और न्याय के माध्यम से ही सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जा सकता है। मनुष्य केवल तभी अपने वास्तविक रंग दिखाता है, जब उसे ताड़ना दी जाती है और उसका न्याय किया जाता है। बुरे को बुरे के साथ रखा जाएगा, भले को भले के साथ, और समस्त मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार अलग किया जाएगा। ताड़ना और न्याय के माध्यम से सभी सृजित प्राणियों का परिणाम प्रकट किया जाएगा, ताकि बुरे को दंडित किया जा सके और अच्छे को पुरस्कृत किया जा सके, और सभी लोग परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन हो जाएँ। यह समस्त कार्य धार्मिक ताड़ना और न्याय के माध्यम से पूरा करना होगा। चूँकि मनुष्य की भ्रष्टता अपने चरम पर पहुँच गई है और उसकी अवज्ञा अत्यंत गंभीर हो गई है, इसलिए केवल परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव ही, जो मुख्यत: ताड़ना और न्याय से संयुक्त है और अंत के दिनों में प्रकट होता है, मनुष्य को रूपांतरित कर सकता है और उसे पूर्ण बना सकता है। केवल यह स्वभाव ही बुराई को उजागर कर सकता है और इस तरह सभी अधार्मिकों को गंभीर रूप से दंडित कर सकता है। … अंत के दिनों के दौरान, केवल धार्मिक न्याय ही मनुष्यों को उनके प्रकार के अनुसार पृथक् कर सकता है और उन्हें एक नए राज्य में ला सकता है। इस तरह, परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के धार्मिक स्वभाव के माध्यम से समस्त युग का अंत किया जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने के बाद, हम सब परमेश्‍वर के वचन का एक सत्‍य देख सकते हैं: अगर हम परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना की प्रक्रिया से नहीं गुजरते हैं तो हमारी भ्रष्‍ट मानव जाति सत्य और जीवन प्राप्त नहीं कर सकती है, और इस प्रकार उद्धार पाने के लिए अपनी पापी प्रकृति से छुटकारा पाने में असमर्थ रहेगी, साथ ही परमेश्‍वर के धर्मी स्वभाव और परमेश्‍वर के अस्तित्व के बारे में जान पाने में असमर्थ रहेगी। हज़ारों सालों से मानव जाति शैतान द्वारा भ्रष्ट की गई है और सभी में शैतानी प्रकृति है। वे सभी अभिमानी, धोखेबाज़ और लापरवाह हैं। हालांकि उनमें से कुछ परमेश्‍वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वे अक्सर अभी भी पाप करने और परमेश्‍वर का विरोध करने से स्‍वयं को रोक नहीं पाते। इससे पता चलता है कि मनुष्य को सच्चा ज्ञान और परमेश्‍वर का डर नहीं है। यह एक तथ्य है। आप लोगों के विचार से, एक शैतानी स्वभाव से भरे व्यक्ति के लिए, सचमुच परमेश्‍वर का आज्ञाकारी होने और परमेश्‍वर द्वारा पूरी तरह से आश्वस्त होने के लिए, कौन सा तरीका इस्तेमाल किया जाना चाहिए? उसे परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करना चाहिए, जिससे वह परमेश्‍वर के धर्मी, तेजस्वी और क्रोधी स्वभाव को, और मानव जाति का न्याय करने और उसे शुद्ध करने के लिए परमेश्‍वर द्वारा व्यक्त सभी सत्यों को देख सके। उसके बाद ही उसे जीता जा सकता है, वह परमेश्‍वर के सामने पूरी तरह से गिर कर, वास्तव में पश्चाताप करता है, और सत्‍य को समझना, सत्‍य का अभ्यास करना शुरू करता है, और धीरे-धीरे स्वभाव में बदलाव और परमेश्‍वर के साथ सहभागिताता प्राप्‍त कर सकता है। तो फिर क्यों नहीं अनुग्रह के युग से प्रभु के विश्वासी वास्तव में आत्‍म-साक्षात्‍कार कर पाते हैं? वे परमेश्‍वर से क्यों नहीं डरते थे और अक्सर पाप में रहते थे, परमेश्‍वर की अवज्ञा और परमेश्‍वर का विरोध करते थे, और इसे कोई महत्‍व भी नहीं देते थे? ऐसा इसलिए था क्योंकि परमेश्‍वर ने अंत के दिनों का अपना न्याय कार्य पूरा नहीं किया था। परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव प्राप्त किए बिना, मनुष्य अपनी शैतानी प्रकृति को नहीं जान सकता, उसका अभिमानी स्वभाव कभी भी बदलने में सक्षम नहीं होगा, और उसके लिए परमेश्‍वर की सच्‍ची आज्ञाकारिता और उनका भय प्राप्त करना संभव नहीं होगा। कुछ लोग कह सकते हैं, हम अगर प्रभु की आज्ञा न मानें तो किस प्रकार क्रूस धारण कर उनका अनुसरण कर सकते हैं? अनुग्रह के युग में, हमने प्रभु के लिए कार्य करने और उनके लिए मूल्‍य चुकाने के लिए सब कुछ दे दिया था। लेकिन इसका लक्ष्‍य सभी थे ताकि हम मुकुट प्राप्त कर, पुरस्कृत होकर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें। क्या हमने वास्तव में प्रभु से प्रेम किया और उनकी आज्ञा मानी? क्या हम वे लोग थे जिनके जीवन और स्वभाव वास्तव में बदल गये? क्या हमने सचमुच प्रभु के साथ सहभागिता प्राप्त की? तब क्यों, प्रभु के लिए खर्च करते हुए, हम अभी भी उनके साथ सौदेबाजी भी कर सकते हैं, और उनका लाभ उठाकर उन्‍हें धोखा दे सकते हैं? परमेश्‍वर मनुष्य के दिल की गहराई में देखते हैं। मनुष्य बाहर की ओर देखता है, परमेश्‍वर अंदर की ओर देखते हैं। चा‍हे हम बाहर से कितने भी अच्छे क्‍यों न हों, इसका मतलब यह नहीं है कि हम परमेश्‍वर के दिल के करीब हैं। इसलिए, अंत के दिनों में परमेश्‍वर के लोगों से शुरू होने वाला परमेश्‍वर का न्याय कार्य, मनुष्य को पूर्ण रूप से शुद्ध करने और बचाने के लिए मनुष्य की शैतानी प्रकृति पर लक्षित कार्य है। केवल परमेश्‍वर के अंत के दिनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के बाद ही हम साफ़ तरीके से शैतान द्वारा हमें भ्रष्ट किये जाने की प्रकृति और सार को और हमारी वास्तविक स्थिति को देख सकते हैं, और यह कि हमारे जीवन, मानवता रहित और दुष्‍ट शैतान की छवि मात्र हैं। हम सब काफ़ी शर्मिंदा महसूस करते हैं, परमेश्‍वर के सामने गिर जाते हैं, परमेश्‍वर से पश्चाताप करते हैं, और बेहद ग्‍लानि महसूस करते हैं, और फिर कभी यह अनुभव नहीं करते कि हम किसी से अधिक सशक्‍त या बेहतर हैं। हम खुद से घृणा करने लगते हैं, खुद को श्राप देते हैं, और हमारे भ्रष्ट स्वभाव में रहने के लिए तैयार नहीं हो पाते। हम अचेतन रूप से विनम्र होकर, और अधिक उग्र नहीं रह पाते। साथ ही, हम यह भी देखते हैं कि परमेश्‍वर का स्वभाव बहुत धर्मी है, बहुत पवित्र है, जिसे कभी ठेस नहीं लगती, और इससे हम परमेश्‍वर के प्रति श्रद्धापूर्ण भाव विकसित करने पर विवश हो जाते हैं। हममें अपनी मनमर्जी से जो चाहें वो करने और कहने की हिम्‍मत नहीं रह जाती, हम देह को त्‍यागना, सत्‍य का अभ्यास करना, और चीजों को देखने का तरीका बदलना शुरू कर देते हैं। हमारा जीवन स्वभाव बदलना शुरू हो जाता है, और हम परमेश्‍वर के आयोजनाओं और व्यवस्थाओं का पालन करने के लिए तैयार होकर, अपने भविष्य, नियति और आशीष पाने की हमारी इच्छाओं के द्वारा नियंत्रित नहीं रहते हैं, बल्कि एक सच्‍चे मनुष्‍य की तरह जीवन जीने लगते हैं। परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के बाद, हम सभी गहराई से सराहना करते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर द्वारा लोगों को न्याय और ताड़ना देने वाले वचनों का व्यक्त किया जाना, उन्हें सज़ा देने या नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि उन्‍हें पूरी तरह शुद्ध और पूर्ण करने के लिए है। यह हमारे प्रति परमेश्‍वर की अपार कृपा और उद्धार है, और हमारे लिए परमेश्‍वर का सबसे सच्चा और वास्तविक प्रेम है। इसके अलावा, हमने यह भी देखा है कि परमेश्‍वर के आवास से शुरू होने वाले न्याय कार्य उन सभी लोगों पर लक्षित है जो अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य को स्वीकार करते हैं। परमेश्‍वर आपदा से पहले विजेताओं का एक समूह बनाने जा रहे हैं। लोगों के इस समूह में वे लोग शामिल हैं जो परमेश्‍वर की प्रतिज्ञा प्राप्त करेंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे। लेकिन वे दुष्ट लोग जो परमेश्‍वर का विरोध करते हैं, परमेश्‍वर उन पर अपने न्याय और ताड़ना के कार्य नहीं करेंगे, और महान आपदाओं के आने पर उनके नष्ट होने की प्रतीक्षा करेंगे। इस तरह, हम सब साफ़ तरीके से देख सकते हैं कि परमेश्‍वर का न्याय और ताड़ना उनके चुने हुए लोगों को शुद्ध करने, बचाने और पूर्ण करने के लिए है। केवल सत्‍य से घृणा और परमेश्‍वर का विरोध करने वाले मसीह-विरोधी, दुष्ट लोगों को दंडित किया जाएगा और उन्‍हें नष्ट कर दिया जाएगा। यह पूर्ण सत्य है।

"विजय गान" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 5: आपने गवाही दी कि परमेश्‍वर मनुष्य के पुत्र के रूप में पुनः देहधारी हुए हैं और परमेश्‍वर के आवास से आरंभ करते हुए अपना न्याय कार्य करते हैं। यह बाइबल की भविष्यवाणी से पूरी तरह मेल खाता है। पर मुझे एक बात समझ नहीं आई: क्या परमेश्‍वर के आवास से शुरू होने वाला न्याय वही है जो प्रकाशितवाक्‍य की पुस्तक में महान श्वेत सिंहासन के न्याय के रूप में बताया गया है? हमें यह लगता है कि महान श्वेत सिंहासन का न्याय उन अविश्वासियों पर लक्षित है जो दुष्ट शैतान से संबंध रखते हैं। जब प्रभु आएंगे, तब विश्वासियों को स्वर्ग को ले जाया जायेगा। और तब वे अविश्वासियों को नष्ट करने के लिए आपदाएं भेजेंगे। यही महान श्वेत सिंहासन के समक्ष का न्याय है। आप अंत के दिनों में परमेश्‍वर के न्याय की शुरूआत की गवाही देते हैं, पर हमने परमेश्‍वर को अविश्वासियों को नष्ट करने के लिए आपदाएं भेजते नहीं देखा है। तो यह महान श्वेत सिंहासन का न्याय कैसे हो सकता है? अंत के दिनों में परमेश्‍वर का न्याय आखिर है क्या? कृपया हमें यह बात और साफ़ तरीके से बताएं।

अगला: प्रश्न 8: मानव जाति को बचाने और शुद्ध करने के लिए परमेश्‍वर अंत के दिनों का अपना न्याय कार्य कैसे करते हैं?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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