931 हर चीज़ के प्रबंधन में परमेश्वर के अद्भुत कर्म
1
सदियों तक, नन्ही धारा पर्वत की तलहटी के आसपास बहती रही,
पर्वत की बनाई राह पर चल के धीरे से, नन्ही धारा वापस अपने घर पहुँची,
पहले नदी में, फिर सागर में मिली।
पर्वत की देखभाल में, वो धारा गुम न हुई, कभी गुम न हुई, गुम न हुई।
नन्ही धारा और विशाल पर्वत, भरोसा करते थे एक-दूजे पे
काबू में एक-दूजे को रखते थे, एक-दूजे पर निर्भर थे।
2
सदियों तक, तेज़ हवाएँ बदलीं नहीं।
पर्वत पर, गरजती रहीं, पर्वत पर आकर, पहले की तरह,
रेत के बवंडर उड़ाती रहीं, पर्वत को इसने डराया,
मगर चीरकर उसे कभी गुज़री नहीं।
वही रिश्ता कायम रहा उनका, जो पहले से था।
तूफ़ानी हवाएँ और विशाल पर्वत, भरोसा करते थे एक-दूजे पे
काबू में एक-दूजे को रखते थे, एक-दूजे पर निर्भर थे।
3
सदियों तक, विशाल लहर कभी रुकी नहीं,
अपने विस्तार को कभी रोका नहीं।
गरजकर आगे बढ़ती, गरजकर आगे बढ़ती रही।
विशाल पर्वत भी कभी एक इंच भी खिसका नहीं।
पर्वत सागर का ख़याल रखता रहा, ताकि जीव फलें-फूलें महासागर में।
विशाल लहर और विशाल पर्वत, भरोसा करते थे एक-दूजे पे
काबू में एक-दूजे को रखते थे, एक-दूजे पर निर्भर थे।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VII से रूपांतरित