86 सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है


1

सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है और अपने सिंहासन के सामने मुझे लाता है।

मैं उसके वचनों का आनंद लेता हूँ, मेमने के विवाह-भोज में शामिल होता हूँ।

परमेश्वर के सुन्दर मुख को देख, मैं प्रसन्न होता हूँ;

उद्धारक के लौटने का स्वागत करना, कितने आनंद की बात है।

ओह! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कितना प्यारा है! उसका न्याय मुझे शुद्ध करता है।

अब मैं नहीं भ्रमित, न हूँ उलझन में, सत्य समझता हूँ, मुक्त किया गया हूँ मैं।

ओह! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कितना प्यारा है! परमेश्वर के वचनों ने मुझे जीत लिया है।

उसके वचन सत्य हैं; उन्हें मुझे खोजना और पाना चाहिए।

सत्य की वास्तविकता को जीना उसे प्रसन्न करता है।


2

सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है; उसके वचन मुझे शुद्ध करते और बदलते हैं।

उसके न्याय और प्रकाशन के हर वचन का सत्य मेरे अंतरतम हृदय से बात करता है।

मैं उसके वचन के न्याय को स्वीकार करता हूँ और देखता हूँ कि मैं कितनी गहराई तक भ्रष्ट हूँ।

मैं सच में पश्चाताप करूँगा, ईमानदार इंसान बनूँगा और उसे पूरी तरह प्रेम करूँगा।

ओह! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कितना प्यारा है! उसका न्याय मुझे शुद्ध करता है।

मुझे मिले आशीष या पड़ूँ आपदा में, परमेश्वर को व्यवस्थाओं को समर्पित हूँ मैं, कुछ और नहीं चुनता मैं।

ओह! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कितना प्यारा है! उसके प्रेम ने मेरा दिल ले लिया है।

संपूर्ण निष्ठा के साथ, मैं अपना हृदय परमेश्वर को सौंपता हूँ, और उसकी संप्रभुता और व्यवस्था के प्रति समर्पण करता हूँ।

सत्य की वास्तविकता को जीना उसे प्रसन्न करता है।


3

सर्वशक्तिमान परमेश्वर मुझसे प्रेम करता है; उसके वचन मेरा मार्गदर्शन करते हैं।

परमेश्वर का वचन ही सत्य है, यह मेरा जीवन बन गया है।

परमेश्वर मेरी अगुआई करता है चाहे मार्ग कितना भी दुष्कर हो जाए,

अब मैं कभी न पीछे हटूँगा, नकारात्मक नहीं होऊँगा। परमेश्वर का अनुसरण करने को संकल्पित हूँ मैं।

ओह! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कितना प्यारा है! परमेश्वर का न्याय मुझे शुद्ध करता है।

मैं अपना कर्तव्य पूरा करने को समर्पित हूँ ताकि परमेश्वर का हृदय संतुष्ट हो सके।

ओह! मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूँ; मैं परमेश्वर से प्रेम करना चाहता हूँ! मैं आजीवन परमेश्वर से प्रेम करने के प्रयास करूँगा।

परमेश्वर की इच्छा अनुसार कार्य करना, उसके कार्य की गवाही देना, इस जीवन में हमारा कर्तव्य है।

सत्य की वास्तविकता को जीना उसे प्रसन्न करता है।

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