392 लोगों को परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय के साथ उस पर विश्वास करना चाहिए
1 परमेश्वर में अपने विश्वास में, अगर लोगों के अंदर परमेश्वर के प्रति श्रद्धा-भाव से भरा दिल नहीं है, अगर ऐसा दिल नहीं है जो परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी है, तो ऐसे लोग न सिर्फ परमेश्वर के लिये कोई कार्य कर पाने में असमर्थ होंगे, बल्कि इसके विपरीत वे ऐसे लोग बन जाएँगे जो परमेश्वर के कार्य में बाधा उपस्थित करते हैं और उसकी उपेक्षा करते हैं। जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, परमेश्वर उनके हृदय में बसता है और उनके भीतर हमेशा परमेश्वर का आदर करने वाला हृदय, परमेश्वर को प्रेम करने वाला हृदय रहता है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें सावधानी और समझदारी कार्यों को करना चाहिए, और वे जो कुछ भी करें वह परमेश्वर की अपेक्षा के अनुसार होना चाहिये और उसके हृदय को संतुष्ट करने में सक्षम होना चाहिए। उन्हें मनमाने ढंग से कुछ भी करते हुए दुराग्रही नहीं होना चाहिए; जो कि संतों की शिष्टता के अनुकूल नहीं है।
2 परमेश्वर में विश्वास करना किन्तु उसकी आज्ञा का पालन नहीं करना या उसका आदर नहीं करना, और उसके बजाय उसका प्रतिरोध करना, किसी भी विश्वासी के लिए सबसे बड़ा कलंक है यदि विश्वासी वाणी और आचरण में हमेशा ठीक उसी तरह लापरवाह और असंयमित हों जैसे अविश्वासी होते हैं, लोग प्रवंचना और छल करते हुए सभी जगहों पर परमेश्वर का ध्वज लहराते हुए उन्मत्त हो कर नहीं भाग सकते हैं; यह सर्वाधिक विद्रोही प्रकार का आचरण है। परिवारों के अपने नियम होते हैं और राष्ट्रों के अपने कानून होते हैं; क्या परमेश्वर के परिवार के ऐसा और भी अधिक नहीं है? क्या मानक और भी अधिक सख़्त नहीं है? क्या और भी अधिक प्रशासनिक आदेश नहीं हैं? लोग जो चाहें वह करने के लिए स्वतंत्र हैं, परन्तु परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों को इच्छानुसार नहीं बदला जा सकता है। परमेश्वर आखिर परमेश्वर है जो मानवों से अपमान को सहन नहीं करता है; वह ऐसा परमेश्वर है जो लोगों को मौत दे देता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "जो सत्य का अभ्यास में नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी" से रूपांतरित