773 क्या तुम अपने दिल का प्रेम दोगे परमेश्वर को?
1 यदि कोई परमेश्वर पर विश्वास करता है लेकिन खोज का कोई उद्देश्य नहीं है, तो उसका जीवन शून्य हो आता है, और जब उसकी मृत्यु का समय आता है, तो उसके पास देखने के लिए केवल नीला आकाश और धूल भरी पृथ्वी होती है। क्या यह एक सार्थक जीवन है? यदि तुम जीवित रहते हुए परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने में सक्षम हो, तो क्या यह एक सुंदर बात नहीं है? तुम हमेशा मुसीबत क्यों ढूँढते रहते हो, उन वादों के अंदर जो मैने परमेश्वर से किए हैं, मैं बस उसे अपना हृदय देता हूँ और अपने वचनों से उसे बेवकूफ़ नहीं बनाता हूँ। मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा—मैं परमेश्वर को केवल इतनी दिलासा देने की इच्छा रखता हूँ कि मैं उसे हृदय से प्रेम करता हूँ, ताकि स्वर्ग में उसके आत्मा को ढांढ़स मिल सके। हृदय मूल्यवान हो सकता है लेकिन प्यार अधिक बहुमूल्य है। मैं परमेश्वर को अपने हृदय का सबसे अनमोल प्रेम देने के लिए तैयार हूँ ताकि वह जिस चीज से सबसे अधिक आनंदित हो वह मेरी सबसे सुंदर चीज हो, ताकि वह उस प्रेम से भरापूरा हो जो मैं उसे अर्पित करता हूँ।
2 क्या तुम परमेश्वर के आनंद के लिए अपना प्यार अर्पित करने को तैयार हो? क्या तुम जीवित रहने के लिए इसे अपना सिद्धान्त बनाने को तैयार हो? मैं अपने अनुभव से देखता हूँ कि मैं जितना अधिक प्यार परमेश्वर को देता हूँ, उतना ही अधिक मैं आनंदित महसूस कर रहा हूँ, और मुझमें असीम ताकत है, मैं अपने पूरे तन और मन का त्याग करने के लिए तैयार हूँ और हमेशा महसूस करता हूँ कि संभवतः मैं परमेश्वर को पर्याप्त रूप से प्यार नहीं कर पा रहा हूँ। यदि तुम वास्तव में परमेश्वर से प्यार करना चाहते हो, तो उसे वापस देने के लिए तुम्हारे पास हमेशा अधिक प्यार होगा। यदि ऐसा है, तो कौन सा व्यक्ति और कौन सी चीज परमेश्वर के लिए तुम्हारे प्यार के आड़े आ सकती है? परमेश्वर समस्त मानवजाति के प्यार को बहुमूल्य समझता है; वह उन सभी पर तो आशीर्वाद की वर्षा ही कर देता है जो उससे प्यार करते हैं। इसका कारण यह है कि मनुष्य का प्यार पाना बहुत मुश्किल होता है, यह बहुत ही अल्पमात्रा में होता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "मार्ग... (3)" से रूपांतरित