371 कौन परमेश्वर की इच्छा की परवाह कर सकता है?
1
कभी जाना था मेरा स्नेह इंसान ने, कभी की थी मेरी सेवा निष्ठा से,
था वो आज्ञाकारी, करता सबकुछ मेरे लिए।
पर अब न कर सके वो ऐसा; अपनी आत्मा में वो रोता।
मुझे मदद के लिए पुकारता; अपने हाल से न बच सकता।
पहले लोग देते थे वचन, खाते थे स्वर्ग-धरा की कसम,
कि चुकाएंगे कर्ज़ मेरी दया का पूरे दिलोजान से।
वो रोते थे दु:ख में; सहा न जाता था उनका रुदन।
मैं करता था मदद इंसान की क्योंकि उसमें था संकल्प।
जब लोग होते उदास, उन्हें आराम देता मैं;
जब होते वे कमज़ोर, उनकी मदद करता मैं।
जब खो जाते वो, उन्हें रास्ता देता मैं;
जब रोते वो, उनके आँसू पोंछता मैं।
लेकिन जब मैं हूँ उदास, कौन आराम दे मुझे?
जब मैं हूँ बड़ा परेशान, कौन मेरी परवाह करे?
2
कई बार मेरी आज्ञा मानी इंसान ने, उसका प्यारापन भुलाए न भूले।
उसकी निष्ठा थी मेरे प्रेम में, तारीफ़ के काबिल थे जज़्बात उसके।
कई बार प्रेम जताया उसने मुझसे अपनी ज़िंदगी कुर्बान की मेरे लिए।
ऐसी थी ईमानदारी कि उसके प्यार ने मेरी मंजूरी पायी।
कई बार खुद को उसने अर्पित किया, मौत को गले लगाया मेरे लिए।
उसके चेहरे से चिंता की लकीरों को पोंछ, ध्यान से देखा उसका चेहरा मैंने।
कई बार प्यार जताया उससे, मानो वो हो मेरा खज़ाना।
कई बार नफ़रत की मैंने उससे, मानो वो हो दुश्मन मेरा।
फिर भी इंसान जान न पाये मेरे मन की बातें।
जब लोग होते उदास, उन्हें आराम देता मैं;
जब होते वे कमज़ोर, उनकी मदद करता मैं।
जब खो जाते वो, उन्हें रास्ता देता मैं;
जब रोते वो, उनके आँसू पोंछता मैं।
लेकिन जब मैं हूँ उदास, कौन आराम दे मुझे?
जब मैं हूँ बड़ा परेशान, कौन मेरी परवाह करे?
3
जब मैं हूँ उदास, कौन मेरे दिल के घाव भरे?
जब मुझे हो ज़रूरत कौन मेरा साथ दे?
क्या मेरे प्रति इंसान का रवैया बदल गया है हमेशा के लिए?
क्यों इसका कतरा भी उनकी यादों में बाकी नहीं?
दुश्मनों के हाथों भ्रष्ट होकर भूल गए हैं लोग ये बातें।
जब लोग होते उदास, उन्हें आराम देता मैं;
जब होते वे कमज़ोर, उनकी मदद करता मैं।
जब खो जाते वो, उन्हें रास्ता देता मैं;
जब रोते वो, उनके आँसू पोंछता मैं।
लेकिन जब मैं हूँ उदास, कौन आराम दे मुझे?
जब मैं हूँ बड़ा परेशान, कौन मेरी परवाह करे?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 27 से रूपांतरित