989 मनुष्य को प्रतिफल देते समय परमेश्वर के रवैये को क्या तुम समझ सकते हो?
1 मेरा कार्य तुम्हारे लिये बहुत मददगार रहा है; मैं तुम लोगों से केवल एक ईमानदार और सकारात्मक हृदय की आशा करता हूं, लेकिन मेरे हाथ अभी भी खाली हैं। इस विषय में सोचो: जब किसी दिन मेरे अंदर इसी प्रकार की बेपनाह कटुता भरी होगी, तो तुम्हारे प्रति मेरा रवैया क्या होगा? क्या मेरा व्यवहार मैत्रीपूर्ण होगा? क्या मेरा हृदय शांत होगा? क्या तुम लोग उस व्यक्ति की भावना समझ सकते हो जिसने बड़े कष्टों से खेती की हो और उसे फसल कटाई में अन्न का एक दाना भी नसीब न हुआ हो? क्या तुम सब उस व्यक्ति के गंभीर घावों का अहसास कर सकते हो जिस पर प्रहार हुए हों? क्या तुम आशान्वित व्यक्ति की कड़ुवाहट का अनुमान कर सकते हो जिसे किसी से बुरी परिस्थिति में अलग होना पड़ा हो? क्या तुम लोगों ने उस व्यक्ति का क्रोध देखा है जिसे उत्तेजित किया गया हो? क्या तुम सब उस व्यक्ति के प्रतिशोध के लिये तड़पती भावनाओं को जान सकते हो जिसके साथ विद्वेष और कपटपूर्ण व्यवहार किया गया हो?
2 यदि तुम इन लोगों की मानसिकता समझ सकते हो, तो तुम्हारे लिये यह समझना कठिन नहीं होना चाहिये कि दंड के समय परमेश्वर का रवैया क्या होगा! अंत में, मुझे उम्मीद है कि तुम लोग अपने गंतव्य के लिये गंभीर प्रयास करोगे; उसके बावजूद, तुम अपने प्रयासों के लिये कपटपूर्ण साधन न अपनाओ, अन्यथा मेरा मन तुम्हारे प्रति मायूसी से भर जायेगा। इस मायूसी का नतीजा क्या होगा? क्या तुम लोग स्वयं को ही बेवकूफ नहीं बना रहे हो? जो अपने गंतव्य के विषय में सोचते हैं, मगर फिर भी उसे बर्बाद कर देते हैं, उन्हें बचा पाना बेहद कठिन होगा। यदि ऐसे लोग उत्तेजित भी हो जायें तो उनके साथ कौन हमदर्दी दिखायेगा? कुल मिलाकर, मैं अभी भी इच्छुक हूं और चाहता हूं कि सभी को उपयुक्त और अच्छा गंतव्य मिले। बल्कि मैं तो चाहता हूं कि तुम लोगों में से कोई भी विपत्ति में न फंसे।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "गंतव्य पर" से रूपांतरित