प्रश्न 4: हम सभी ने कई वर्षों तक प्रभु में विश्वास किया है, और प्रभु के लिए अपने कार्य में हमेशा पौलुस के उदाहरण का पालन किया है। हम प्रभु के नाम और उनके मार्ग के प्रति निष्ठावान रहे हैं, और धार्मिकता का ताज निश्चय ही हमारी प्रतीक्षा कर रहा है। आज, हमें केवल प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करने और उनकी वापसी की ओर देखने की आवश्यकता है। केवल इस प्रकार से ही हमें स्वर्ग का राज्य में ले जाया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाइबल में ऐसा कहा गया है कि "मेरी बाट जोहनेवाले कभी लज्जित न होंगे" (यशायाह 49:23)। हमें प्रभु के वादे में विश्वास है: वे अपने लौटने पर हमें स्वर्ग का राज्य में ले जाएँगे। क्या इस ढंग से कार्य-अभ्यास करने में वास्तव में कुछ गलत हो सकता है?

उत्तर: प्रभु के आगमन के लिए प्रतीक्षा करने में, ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि सीधे स्वर्ग का राज्य में ले जाए जाने के लिए उन्हें केवल प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करने और प्रभु के आगमन पर पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करने की जरूरत है। इस तरह से कार्य-अभ्यास करना उन्हें सही लगता है, और इससे कोई भी असहमत नहीं है। तब भी परमेश्वर में विश्वास करने वाले हम लोगों को हर चीज में सत्य की तलाश करनी चाहिए। हालांकि इस तरह से कार्य-अभ्यास करना लोगों की अवधारणाओं के अनुरूप है, किंतु क्या यह परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप भी है? मुझे लगता है हमें जानना चाहिए कि: परमेश्वर के वचन हमारे कार्यों के सिद्धान्त हैं, ये वे आदर्श हैं जिनसे सभी लोगों, वस्तुओं और विषयों को मापा जाता है। यदि हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य करेंगे तो निश्चित रूप से हमें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त होगी। यदि हम परमेश्वर के वचनों के खिलाफ जाएंगे, और अपनी स्वयं की अवधारणाओं और कल्पनाओं के अनुसार कार्य करेंगे, तो निश्चित रूप से परमेश्वर हमसे घृणा करेंगे और हमें अस्वीकृत कर देंगे। क्या प्रभु की बाट जोहने और प्रतीक्षा करने और उनके लिए कठिन परिश्रम करने से हमें वास्तव में सीधे स्वर्ग का राज्य में ले जाया जा सकता है? आइए हम देखें कि मत्ती 7:21-23 में प्रभु यीशु ने क्या कहा है। "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा: परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की? और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला?' और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना: हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)। प्रभु यीशु के वचनों में हम पाते हैं कि प्रभु यीशु ने केवल यह कहा कि उन्होंने यह नहीं कहा कि जो लोग प्रभु यीशु के नाम के प्रति निष्ठावान हैं और प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, वे सब पुरस्कृत होंगे और स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करेंगे। क्या यह सच नहीं है? यदि, हमारी अवधारणाओं के अनुसार, वे सब जो प्रभु का नाम लेते हैं और उनके लिए कठिन परिश्रम करते हैं, स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करेंगे, तो फिर ऐसे कुछ लोगों को प्रभु द्वारा 'कुकर्मी' के रूप में निन्दित क्यों किया गया जिन्होंने प्रभु यीशु के नाम पर उपदेश दिया और शैतान को बहिष्कृत किया था? इससे यह पता चलता है कि प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करना अनिवार्य रूप से वही बात नहीं है जो कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करना है। बहुत से लोग प्रभु के लिए कठिन परिश्रम करते हैं ताकि उनका आशीर्वाद मिल सके, न कि सचमुच परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए। उनका शैतानी स्वभाव अभी भी बना हुआ है। परमेश्वर के बारे में अभी भी उनकी धारणाएँ हैं, और वे अभी भी उनकी अवज्ञा, उनका विरोध, और उनकी निंदा करते हैं। कुछ लोग तो फरीसियों की तरह सत्य से घृणा भी करते हैं। वे प्रभु के लिए चाहे कितना भी कठिन परिश्रम क्यों न कर लें, किंतु ऐसे लोग परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य कैसे कर सकते हैं? स्वाभाविक रूप से, ऐसे लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं। केवल प्रभु के नाम पर कठिन परिश्रम करके स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करना, स्वर्ग के लिए असहनीय है! क्या आप सभी इससे सहमत नहीं?

तो परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप कार्य करने वालों को असल में क्या कहते हैं? जो लोग परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप कार्य करते हैं, वही सही मायनों में परमेश्वर का आज्ञापालन करते हैं। परमेश्वर का आज्ञापालन परमेश्वर का गुणगान करने, परमेश्वर का सम्मान करने, परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित होने से पता चलता है, यह परमेश्वर के वचन का अभ्यास और अनुभव करने, और इस प्रकार परमेश्वर के बारे में ज्ञान प्राप्त करने, उनके लिए सच्चा प्रेम रखने और उनके लिए गवाही देने में सक्षम होने से भी पता चलता है। इसे किसी भी समय, किसी भी परिस्थिति में, परमेश्वर का विरोध नहीं करने और उनको धोखा नहीं देने में भी देखा जाता है। इस लक्ष्य को हासिल करने वाले ही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप कार्य करने वाले हैं। हमने देखा कि कैसे, वे प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करते हैं और बड़े-बड़े त्याग करते हैं, फिर भी प्रभु में विश्वास करने वाले बहुत से लोग पुरस्कृत किए जाने, और स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करने और भरपूर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ऐसा करते हैं। यह परमेश्वर से प्रेम करना और उनकी आज्ञा का पालन करना नहीं है। परमेश्वर के प्रति ऐसी आस्था उनके साथ सौदा करने से ज्यादा और कुछ नहीं। परमेश्वर के लिए कड़ी मेहनत करने के बावजूद, बहुत से लोगों ने सत्य को कभी अपने आचरण में नहीं उतारा है और न ही वे परमेश्वर की प्रशंसा करते या उनकी गवाही देते हैं। इसके बजाय, अक्सर वे अपनी स्वयं की एक प्रतिमा बना लेते हैं और दूसरों से अपनी उपासना और अपना अनुसरण कराते हैं। वे जो कुछ भी करते हैं, अपनी स्वयं की प्रतिष्ठा और आय को बनाए रखने के लिए करते हैं। क्या वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों को आचरण में उतारते और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं? क्या वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं? ऐसे लोग परमेश्वर की सेवा करते हैं, लेकिन वे उनका विरोध भी करते हैं, वे पाखंडी फरीसी हैं। कहा जा सकता है कि ऐसे लोग बुरे कर्म करने वाले हैं। ऐसे लोग स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करने के योग्य कैसे हो सकते हैं? इससे हम यह समझते हैं कि जो लोग प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करते हुए प्रतीत होते हैं, लेकिन फिर भी जिन्होंने सत्य को आचरण में कभी नहीं उतारा है, वे परमेश्वर से प्यार करने और उनकी इच्छा का पालन करने के लिए उनकी प्रशंसा नहीं कर रहे हैं या उनकी गवाही नहीं दे रहे हैं। ऐसे लोग परमेश्वर की इच्छा का पालन नहीं करते हैं! वे प्रभु के लिए इसलिए कठिन परिश्रम करते हैं जिससे कि वे उनका आशीर्वाद पा सकें और स्वर्ग का राज्य में प्रवेश कर सकें। फिर भी उनके जीवन स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता है, वे तब भी परमेश्वर का विरोध ही करते हैं। फरीसियों की तरह, वे केवल अच्छा होने का दिखावा ही कर रहे होते हैं, और अंत में उन्हें परमेश्वर द्वारा श्रापित किया जाएगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "मैं प्रत्येक व्यक्ति की मंज़िल, उसकी आयु, वरिष्ठता, पीड़ा की मात्रा के आधार पर तय नहीं करता और जिस सीमा तक वे दया के पात्र होते हैं, उसके आधार पर तो बिल्कल भी तय नहीं करता बल्कि इस बात के अनुसार तय करता हूँ कि उनके पास सत्य है या नहीं। इसके अतिरक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है। तुम्हें यह अवश्य समझना चाहिए कि वे सब जो परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण नहीं करते हैं, दण्डित किए जाएँगे। यह एक अडिग तथ्य है। इसलिए, वे सब जो दण्ड पाते हैं, वे परमेश्वर की धार्मिकता के कारण और अपने अनगिनत बुरे कार्यों के प्रतिफल के रूप में इस तरह के दण्ड पाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के वचन इसे बिल्कुल स्पष्ट कर देते हैं। हम अंततः स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करेंगे या नहीं, यह इस बात पर आधारित नहीं है कि हम कितना काम करते हैं या हमने कितना कष्ट झेला है। यह इस बात पर आधारित है कि हम परमेश्वर के वचनों को आचरण में उतारते हैं या नहीं, हम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं या नहीं और हम परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं या नहीं। स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करने के ऐसे मानदंड और सिद्धान्त हैं। और फिर भी, कुछ ऐसे लोग हैं जो आँखों पर पट्टी बाँध कर पौलुस के शब्दों से चिपके रहते हैं। "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्‍वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है...।" (2 तीमुथियुस 4:7-8) वे पौलुस के भ्रामक विचारों को स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करने के सैद्धान्तिक आधार के रूप में लेते हैं। इसलिए इस बात की परवाह किए बिना कि वे कितनी पीड़ा झेलते हैं, या वे कौन से त्याग करते हैं, ये लोग फिर भी परमेश्वर की स्वीकृति पाने में असमर्थ होते हैं, स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करने की बात तो दूर है!

हमने अभी-अभी संगति में ये बात जानी कि लोग परमपिता परमेश्वर की इच्छा पूरी करके ही स्वर्ग का राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। तो प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा करने और देखने के लिए परमेश्वर की क्या आवश्यकताएं हैं? बहुत से लोग मानते हैं कि उन्हें प्रभु के लिए केवल कड़ी मेहनत करनी है, और सलीब धारण करके दुःख सहना है, और प्रभु के नाम के प्रति वफ़ादार रहना है। वे मानते हैं कि ऐसा करके वे देख रहे हैं और इंतजार कर रहे हैं, और जब प्रभु आएंगे तो निश्चित रूप से वे उनका त्याग नहीं करेंगे। वास्तव में, प्रभु यीशु ने देखने और प्रतीक्षा करने के बारे में बहुत साफ़-साफ़ कहा है। "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो" (मत्ती 25:6)। प्रकाशित वाक्य 16:15 भी है, "देख, मैं चोर के समान आता हूँI धन्य वह है जो जागता रहता है, और अपने वस्त्र की चौकसी करता है कि नंगा न फिरे, और लोग उसका नंगापन न देखें" (प्रकाशितवाक्य 16:15)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ: यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर, उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में बहुत से उल्लेख हैं कि, "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" इन भविष्यवाणियों में हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि जब प्रभु यीशु अंत के दिनों में वापस आयेंगे, तो वे कलीसियाओं से बात करेंगे। इस तरह परमेश्वर ने हमें चतुर कुंवारियां बनने, और उनकी आवाज़ सुनने में अपने ध्यान लगाने को कहा है। हमें प्रभु की आवाज़ सुनकर बाहर आना है और उनका स्वागत करना है। तभी हम वे लोग होंगे जो प्रभु की वापसी को देखते हैं और उसकी प्रतीक्षा करते हैं और वे जो मेमने के विवाह भोज में जाते हैं और परमेश्वर के सिंहासन के सामने ले जाए जाते हैं प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में जिस मेमने के विवाह भोज की भविष्यवाणी की गई है, वह अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करने, और परमेश्वर के सिंहासन से बहती जीवन की नदी के पानी का आनंद प्राप्त करने के संदर्भ में है, अर्थात, अंत के दिनों के मसीह द्वारा व्यक्त सभी सत्यों को स्वीकार करना, और अंत में परमेश्वर द्वारा शुद्ध होकर एक विजेता बनना। केवल ये विजेता ही स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करेंगे। आज, अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मनुष्यों के उद्धार और शुद्धि के लिए सभी सच्चाइयों को व्यक्त किया है। दुनिया भर के देशों और इलाकों में लोगों द्वारा ख़ोज और जांच-पड़ताल के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को ऑनलाइन प्रकाशित किया गया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों और कार्यों की ख़ोज और जांच-पड़ताल करके, उन चतुर कुंवारियों ने परमेश्वर की आवाज को पहचाना है, और वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट आए हैं। केवल इस तरह के लोग ही मेमने के विवाह भोज में भाग ले रहे हैं, और यही लोग वे विजेता हैं, जिन्हें परमेश्वर आपदा से पहले (विजेता) बना देंगे। यह कहा जा सकता है कि केवल ये लोग ही हैं जो स्वर्ग का राज्य में प्रवेश करेंगे। लेकिन बहुत से लोग मानते हैं कि प्रभु के आगमन को देखने और उसकी प्रतीक्षा करने में केवल प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करना शामिल है। वे प्रभु के आगमन के बड़े मुद्दे में सच्चाई की ख़ोज नहीं करते। वे आँख बंद करके अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं से चिपके रहते हैं, और परमेश्वर की आवाज़ सुनने से इनकार करते हैं, और प्रभु के प्रकटन को कभी ध्यान से नहीं देखते। इस तरह से देखना और प्रतीक्षा करना, न तो वास्तविक है और ना ही सार्थक है। वास्तव में, देखने और प्रतीक्षा करने का हमारे कर्मों के साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि हम प्रभु की आवाज सुन सकते हैं या नहीं, और यह कि हम प्रभु की वापसी का स्वागत करते हैं या नहीं। महत्वपूर्ण यह है कि हम यह प्रभाव प्राप्त कर सकते हैं या नहीं। आइए हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ते हैं। "यीशु की वापसी उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है, जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, पर उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं, यह दंडाज्ञा का संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के ख़िलाफ़ निंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए, जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का पालन करता हो और सत्य की खोज के लिए लालायित हो; सिर्फ़ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष पर पहुँचने की जल्दी में न रहो; और परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और विचारहीन न बनो। तुम लोगों को जानना चाहिए कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें विनम्र और श्रद्धावान होना चाहिए। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक-भौं सिकोड़ते हैं, वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या उसकी निंदा करते हैं, ऐसे लोग अभिमान से घिरे हैं। जो भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को शाप देने या निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को ऐसा व्यक्ति होना चाहिए, जो समझदार है और सत्य स्वीकार करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)

आज, सर्वशक्तिमान परमेश्वर देहधारी होकर अंत के दिनों का न्याय करते हैं। सच्चाई व्यक्त करके, सर्वशक्तिमान परमेश्वर हर तरह के व्यक्ति को प्रकट करते हैं। और परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज़ सुनेंगीं। जो लोग सच्चे मार्ग की खोज करते हैं, जांच-पड़ताल करते हैं, और सत्य को स्वीकार करते हैं, उनकी परमेश्वर द्वारा रक्षा की जाती है। साथ ही साथ, परमेश्वर उन दुष्ट लोगों को प्रकट करते हैं जो हठी हैं और सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं, और वे जो मसीह विरोधी हैं, जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और तिरस्कार करते हैं। परमेश्वर के द्वारा इन सभी लोगों को दंडित और अलग कर दिया जाता है। आज, परमेश्वर का देहधारण करने का कार्य करीब-करीब अपने अंतिम चरण पर पहुँच चुका है। यानी, परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य मूल रूप से पूर्ण हो गया है। तो, कलीसिया के स्वर्गारोहण का कार्य बहुत जल्द समाप्त हो जायेगा। चतुर कुंवारियों को अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जांच करने और उसे स्वीकार करने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उद्धार के द्वार बंद हो जाएंगे। यदि आप लोग परमेश्वर के बादल की सवारी करते हुए सार्वजानिक रूप से प्रकट होने तक प्रतीक्षा करते हैं, तो हो सकता है कि आप लोग परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचें, "तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्‍वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया" (यूहन्ना 20:29)। मुझे नहीं पता कि इन शब्दों का मतलब परमेश्वर की मंजूरी प्राप्त करना है या परमेश्वर द्वारा दंडित किया जाना।

"प्रतीक्षारत" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 2: सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में अपने न्याय का कार्य कैसे करते हैं? वे अपने वचनों से इंसान का न्याय कैसे करते हैं, उसे शुद्ध कैसे करते हैं और उसे पूर्ण कैसे करते हैं? ये जानने के लिए हम बेताब हैं। अगर हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य समझते हैं, तो हम लोग सचमुच परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं और हमें परमेश्वर के सिंहासन के सामने उन्नत किया जा सकता है। हमें ज़रा और विस्तार से बताइये!

अगला: प्रश्न 6: हम सब-कुछ त्याग दें, प्रभु के सुसमाचार का प्रचार करें और कलीसिया की देखभाल करें। इस तरह के कामों से हम स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा कर पाएंगे। इस तरह से अभ्यास करना क्या कोई गलत है?

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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