518 सत्य को समझना आसान बात नहीं है
1 एक बार जब लोग सत्य को सचमुच में समझ लेते हैं, तो वे अपने अस्तित्व की अवस्थाओं को समझ सकते हैं, जटिल मामलों की तह तक जा सकते हैं और अभ्यास करने का उचित तरीका जान सकते हैं। अगर तुम सत्य को नहीं समझते, तो तुम अपने अस्तित्व की अवस्था को नहीं समझ पाओगे। तुम खुद के खिलाफ विद्रोह करना चाहोगे, लेकिन तुम्हें यह मालूम नहीं होगा कि विद्रोह कैसे करें और तुम किसके खिलाफ विद्रोह कर रहे हो। तुम अपने हठ को त्यागना चाहोगे, लेकिन अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारा हठ सत्य के अनुरूप है, तो फिर तुम उसे कैसे त्याग सकते हो? इस प्रकार, जब लोग सत्य को धारण नहीं करते, तो उनका यह सोचना काफी मुमकिन है कि जो कुछ उनकी मनमानी, उनकी मानवीय अशुद्धियों, नेक इरादों, उनके इंसानी उलझन-भरे प्रेम, और मानवीय अभ्यास से उपजता है, वो सही है, और सत्य के अनुरूप है। तो फिर तुम इन चीज़ों के खिलाफ विद्रोह कैसे कर सकते हो?
2 अगर तुम सत्य को नहीं समझते या नहीं जानते कि सत्य पर अमल करने का अर्थ क्या होता है, अगर तुम्हारी आँखेँ धुँधलाई हुई हैं और तुम्हें नहीं मालूम कि किस तरफ मुड़ना है, इसलिए तुम उसी आधार पर काम करते हो जो तुम्हें सही लगता है, तो तुम कुछ ऐसे कार्य करोगे, जो सही दिशा में नहीं होंगे और ग़लत होंगे। इनमें से कुछ कार्य नियमों के अनुरूप होंगे, कुछ उत्साह से उपजे हुए होंगे, कुछ शैतान से निकले हुए होंगे और वे गड़बड़ी पैदा करेंगे। जो लोग सत्य धारण नहीं करते, वे इस तरह से कार्य करते हैं : थोड़ा बायीं ओर, फिर थोड़ा दायीं तरफ; एक पल सही, दूसरे पल भटके हुए; बिल्कुल भी कोई सत्यता नहीं। जो लोग सत्य धारण नहीं करते, वे सभी चीज़ों में एक बेतुका नज़रिया अपनाते हैं। ऐसे में, वे मामलों को सही ढंग से कैसे संभाल सकते हैं? वे किसी समस्या को कैसे सुलझा सकते हैं?
3 सत्य को समझना कोई आसान काम नहीं है। परमेश्वर के वचन समझने योग्य होना सत्य की समझ पर निर्भर है, और लोग जो सत्य समझ सकते हैं उसकी सीमा होती है। लोग अपनी पूरी ज़िंदगी परमेश्वर में विश्वास रखेँ, तब भी परमेश्वर के वचनों की उनकी समझ सीमित ही होगी। जो लोग अपेक्षाकृत थोड़े अनुभवी हैं वे भी ज़्यादा-से-ज़्यादा उस स्थिति तक पहुँच सकते हैं जहां वे ऐसे काम बंद कर सकें जिनसे स्पष्ट रूप से परमेश्वर का प्रतिरोध होता है, ऐसे काम बंद कर सकें जो स्पष्ट रूप से बुरे हों और जो किसी भी व्यक्ति को लाभ नहीं पहुंचाते। उनके लिए उस अवस्था में पहुँचना मुमकिन नहीं है, जहां उनके हठ का कोई अंश शामिल न हो। ऐसा इसलिए क्योंकि लोग सामान्य बातें सोचते हैं, और उनकी थोड़ी सोच परमेश्वर के वचनों के अनुरूप होती है, और समझ-बूझ के एक ऐसे पहलू से संबंधित होती है जिसे हठ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। फिर भी, मुख्य बात हठ के उन अंशों को समझना है जो परमेश्वर के वचनों के विरुद्ध हैं, सत्य के विरुद्ध हैं, और पवित्र आत्मा के प्रबोधन के विरुद्ध हैं। इसलिए तुम्हें परमेश्वर के वचनों को जानने का प्रयास करना चाहिए, सत्य को समझ कर ही तुम विवेक पा सकते हो।
— "मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है' से रूपांतरित