339 तुम किसके प्रति वफ़ादार हो?
1
अगर ईश्वर रखता धन तुम्हारे आगे,
कहता, ले लो जो तुम्हारा दिल चाहे,
वो न करेगा निंदा तुम्हारी इसके लिए,
तो ज़्यादा लोग चुनते धन, सत्य त्यागते।
उनसे बेहतर हैं जो, धन त्यागते
अनिच्छा से चुनते सत्य को।
कुछ बीच में होते जो सत्य और धन दोनों ही लेते।
तो क्या तुम्हारे असली रंग सामने न आते?
जब चुनना हो सत्य और उस चीज़ के बीच
तुम वफादार हो जिसके लिए,
तो तुम्हारा रवैया एक-सा होगा।
क्या सही और गलत के बीच बहुत-से लोग नहीं उलझे?
भले-बुरे, काले-सफ़ेद के बीच जंग में
तुम जानते हो तुमने क्या चुना है
परिवार और बच्चों को या ईश्वर को; शांति या परेशानी;
अमीरी या गरीबी, समर्थन या इंकार,
महान होना या आम बनना।
फिर से चुनने को कहा जाए,
तो अब तुम क्या चुनोगे?
क्या वही जो पहले चुना था?
क्या अब भी ईश्वर को दोगे दर्द और निराशा?
क्या अब तुम्हारे दिल में होगी थोड़ी गर्मजोशी?
या अब भी नहीं जानोगे कि कैसे ईश्वर को देना दिलासा?
2
फौरन चुना तुमने खुशहाल परिवार, टूटा हुआ नहीं,
कर्तव्य छोड़ चुना तुमने धन,
पीछे मुड़ के भी न देखा कभी,
चुनी अमीरी गरीबी नहीं, चुना परिवार ईश्वर नहीं,
चुनी तुमने धारणाएँ छोड़ दिया सत्य को।
तुम्हारी सारी दुष्ट करतूतें देख के,
ईश्वर को अब विश्वास नहीं रहा तुम पे।
उसे बड़ी हैरत है कि
तुम्हारा दिल नर्म होना ही न चाहे।
इतने साल तक ईश्वर की लगन से,
इतने साल उसके प्रयासों से,
उसे मिला यही कि बस तुमने उस को त्यागा,
ईश्वर को मिली तुमसे बस निराशा।
फिर भी हर दिन तुम्हारे प्रति
उसकी आशाएँ बढ़ती जाएँ,
क्योंकि उसका दिन सबके सामने खुला है,
पर फिर भी तुम खोजते रहते,
अंधेरी, बुरी चीज़ें पकड़े रहते।
क्या सोचा है तुमने कि तुम्हारा अंत क्या होगा?
फिर से चुनने को कहा जाए,
तो अब तुम क्या चुनोगे?
क्या वही जो पहले चुना था?
क्या अब भी ईश्वर को दोगे दर्द और निराशा?
क्या अब तुम्हारे दिल में होगी थोड़ी गर्मजोशी?
या अब भी नहीं जानोगे कि कैसे ईश्वर को देना दिलासा?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो? से रूपांतरित