670 मुश्किलों और परीक्षणों के ज़रिए ही तुम ईश्वर को सचमुच प्रेम कर सकते हो
1
आज तुम ईश्वर को कितना चाहते हो?
तुम पर जो किया उसने, कितना जानते हो? इन चीज़ों को जानो।
ईश्वर ने धरती पर आकर,
इंसान पर जो कुछ किया, उसे जो कुछ दिखाया,
इसलिए कि इंसान उसे प्रेम करे, उसे सचमुच जाने।
ईश्वर के प्यार की वजह से, उसके उद्धार की वजह से ही,
इंसान उसके लिए दुख उठा पाया, यहाँ तक आ पाया।
इंसान पर ईश्वर के न्याय और
ताड़ना के काम की वजह से भी, इंसान ऐसा कर पाया।
अगर तुम उसके न्याय, परीक्षण, ताड़ना से रहित हो,
अगर उसने कष्टों से नहीं गुज़ारा तुम्हें, तो सच में नहीं चाहते तुम ईश्वर को।
इंसान के कष्ट और उसमें ईश-कार्य जितने अधिक होंगे,
तो तुम ईश-कार्य की सार्थकता उतनी ही ज़्यादा जानोगे,
इंसान ईश्वर से उतना ही ज़्यादा प्रेम करेगा।
बिना शुद्धिकरण और परीक्षणों के ईश्वर से प्रेम करना कैसे सीखोगे?
अगर ईश्वर दे इंसान को अनुग्रह, दया, प्रेम,
तो क्या तुम ईश्वर को सच्चा प्रेम कर पाओगे?
2
एक तरफ ईश्वर के परीक्षणों से, इंसान अपनी कमियों को जाने;
जाने कि वो कितना घृणित है, तुच्छ और नीच है,
उसके पास कुछ नहीं, और वो कुछ नहीं है।
दूसरी तरफ, जब ईश्वर ये इम्तहान लाए,
वो इंसान के लिए परिवेश बनाए
ताकि इंसान उसकी मनोहरता का अनुभव कर पाए।
भयंकर पीड़ा आए, कभी बर्दाश्त से बाहर हो जाए,
इस हद तक कि इंसान को तोड़ दे,
तो जाने इंसान उस पर कितना सुंदर ईश-कार्य हुआ है।
इसी बुनियाद पर ईश्वर के लिए इंसान में सच्चा प्रेम जागे।
अगर तुम उसके न्याय, परीक्षण, ताड़ना से रहित हो,
अगर उसने कष्टों से नहीं गुज़ारा तुम्हें, तो सच में नहीं चाहते तुम ईश्वर को।
इंसान के कष्ट और उसमें ईश-कार्य जितने अधिक होंगे,
तो तुम ईश-कार्य की सार्थकता उतनी ही ज़्यादा जानोगे,
इंसान ईश्वर से उतना ही ज़्यादा प्रेम करेगा।
बिना शुद्धिकरण और परीक्षणों के ईश्वर से प्रेम करना कैसे सीखोगे?
अगर ईश्वर दे इंसान को अनुग्रह, दया, प्रेम,
तो क्या तुम ईश्वर को सच्चा प्रेम कर पाओगे?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो' से रूपांतरित