212 सत्य को स्वीकारने वाले ही परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं

1

जहाँ परमेश्वर का प्रकटन है,

वहाँ सत्य की अभिव्यक्ति है, परमेश्वर की वाणी है।

वही सुन सकते हैं परमेश्वर की वाणी,

वही देख सकते हैं प्रकटन परमेश्वर का, सत्य को जो करते हैं स्वीकार।

नामुमकिन जैसे विचार कर दो दरकिनार।

नामुमकिन जैसे विचारों का मुमकिन होना सम्भव है।

स्वर्ग से ऊँची है परमेश्वर की बुद्धि की उड़ान।

उसके ख़्याल और काम बहुत परे हैं, इंसान के सारे ख़्यालों से।

कोई चीज़ होती है नामुमकिन जितनी,

होता उतना ही ज़्यादा सत्य वहाँ खोज के लिये।

होता जितना परे इंसान की संकल्पना से,

होता है उतना ही समावेश परमेश्वर के सत्य का उसमें।

प्रकट कहीं भी हो वो, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है।

कहाँ हुआ वो प्रकट, उसका सार नहीं बदलता इससे।

दरकिनार करो अपनी धारणाएँ,

ख़ामोश करो दिल को अपने, और पढ़ो इन वचनों को।

गर सत्य की तड़प होगी तुम में, तो ज़ाहिर कर देगा

परमेश्वर अपनी इच्छा और वचन तुम पर,

इच्छा और वचन तुम पर, इच्छा और वचन तुम पर।


2

वही रहता है स्वभाव परमेश्वर का।

जहाँ भी हैं कदम उसके, वहीं है वो मानवता का परमेश्वर।

यीशु परमेश्वर है इस्राएलियों का, एशिया का, यूरोप का, सारे जहाँ का।

परमेश्वर की इच्छा खोजो उसके कथन से,

ढूँढो उसका प्रकटन, अनुसरण करो उसके पदचिन्हों का।

सत्य है, मार्ग है, जीवन है परमेश्वर।

उसके वचन और प्रकटन उसका, रहते हैं साथ-साथ।

स्वभाव और पदचिन्ह उसका, कर दिए जाते हैं इंसानों पर ज़ाहिर सदा।

भाइयो-बहनो, उम्मीद है देख सकते हो,

तुम इन वचनों में प्रकटन परमेश्वर का।

करो अनुसरण उसका एक नए युग में,

नए स्वर्ग में, नई धरती की ओर, किया गया तैयार जिसे,

उन सब की ख़ातिर, परमेश्वर का इंतज़ार है जिनको, इंतज़ार है जिनको।

दरकिनार करो अपनी धारणाएँ,

ख़ामोश करो दिल को अपने, और पढ़ो इन वचनों को।

गर सत्य की तड़प होगी तुम में, तो ज़ाहिर कर देगा

परमेश्वर अपनी इच्छा और वचन तुम पर,

इच्छा और वचन तुम पर, इच्छा और वचन तुम पर।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है से रूपांतरित

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