739 परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोग सभी चीज़ों में उसका गुणगान करते हैं
Ⅰ
अय्यूब ने ईश्वर को न देखा था,
न उसके वचन सुने थे,
फिर भी उसके दिल में ईश्वर था।
"यहोवा-नाम धन्य है" ईश्वर के प्रति ऐसा भाव था।
ईश्वर-नाम को धन्य कहने में
उसकी न कोई शर्त थी,
न प्रसंग था, न वो किसी तर्क से बंधा था।
अय्यूब ने ईश्वर को अपना दिल दिया था,
वो ईश्वर के नियंत्रण को समर्पित था;
उसके दिल का हर विचार, योजना, फैसला
ईश्वर के लिए खुला था, बंद न था।
उसका दिल ईश्वर के ख़िलाफ न था,
उसने ईश्वर से कभी कुछ न माँगा था,
ईश्वर-आराधना से पाने की उसकी
कोई फ़िज़ूल ख़्वाहिश न थी।
अय्यूब ने सौदेबाज़ी न की,
अनुरोध न किया, माँग न रखी।
हर चीज़ पर ईश्वर का
महान शासन देख उसने,
ईश-नाम की स्तुति की;
अय्यूब की स्तुति आशीष
या आपदा पर निर्भर न थी।
Ⅱ
अय्यूब मानता था,
ईश्वर चाहे इंसान को आशीष दे
या उस पर आपदा लाए,
ईश्वर का सामर्थ्य और अधिकार न बदलेगा;
हालात से बेपरवाह होकर,
ईश-नाम जपना चाहिए।
इंसान पर ईश्वर का आशीष है,
क्योंकि ईश्वर का प्रभुत्व है,
इंसान पर आपदा भी आती है
ईश्वर के प्रभुत्व के कारण।
इंसान की हर चीज़ पर है
ईश्वर के सामर्थ्य और अधिकार का शासन;
ईश्वर दिखाए ये इंसान के
सदा बदलने वाले भाग्य में।
इंसान का नज़रिया कुछ भी हो,
ईश-नाम जपना चाहिए।
अय्यूब ने इसी का अनुभव किया
और अपने जीवन में जाना।
अय्यूब के विचार और काम पहुँचे
ईश्वर के आँख-कान तक,
ईश्वर ने समझी उनकी अहमियत।
ईश्वर ने संजोया उसके इस ज्ञान को,
ऐसा दिल होने पर उसकी कद्र की।
अय्यूब के दिल ने सदा
इंतज़ार किया ईश-आज्ञा का।
किसी भी समय, किसी भी जगह,
जो भी मिला, उसने उसका स्वागत किया।
उसने ईश्वर से कुछ नहीं माँगा।
वो बस ईश्वर की व्यवस्थाओं का
इंतज़ार करना, उन्हें स्वीकारना,
उनका सामना और पालन करना चाहता था।
अय्यूब ने इसे अपना फर्ज़ माना,
यही ईश्वर चाहता था।
अय्यूब ने सौदेबाज़ी न की,
अनुरोध न किया, माँग न रखी।
हर चीज़ पर ईश्वर का
महान शासन देख उसने,
ईश-नाम की स्तुति की;
अय्यूब की स्तुति आशीष
या आपदा पर निर्भर न थी।
'वचन देह में प्रकट होता है' से रूपांतरित