56 वापसी
1
तेरे अवतरण से पहले, मैं, अकेली, अंधेरे में और पीड़ा में रोती थी।
तेरे अवतरण से पहले, अभिमानी मैं गोबर की कीचड़ में संघर्ष करती थी।
तेरे अवतरण से पहले, दूषित मैं, राक्षसों और दरिंदों के बीच भीख माँगती थी।
तेरे अवतरण से पहले, मैंने अपना दिल शैतानों के सरगना को बेच दिया था और उसके द्वारा कुचली गयी थी।
मैं मायूस थी, बेसब्री से मसीहा, प्रभु यीशु की वापसी की उम्मीद कर रही थी।
चमकती बिजली पूरब से आई, मैंने देखा कि तेरे वचन सच्चे प्रकाश का प्रकटन हैं।
मैंने तेरी वाणी सुनी और नया जीवन पाकर तेरे सिंहासन के समक्ष लौट आई हूँ।
2
तेरे वचन पैनी तलवार-से हैं, जो मेरी शैतानी प्रकृति का न्याय करते हैं और उसे उजागर करते हैं।
तेरा सार पवित्र है, मेरी उस मलिनता को प्रकट करता है जो मैं बयाँ नहीं कर सकती, और अब मैं उतनी आत्माभिमानी नहीं हूँ।
तेरा स्वभाव धार्मिक है, मेरी सारी अधार्मिकता को भस्म कर देता है, इसलिये अब मैं विरोध नहीं करती।
तेरा न्याय प्रेम है, मेरे भ्रष्ट स्वभाव को पूरी तरह से शुद्ध करता है।
हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, तू ही हमें प्रकाश में रहने के लिए अंधकार से बचा रहा है।
तू मसीह, उद्धारक है; तेरे वचन सत्य, मार्ग और जीवन हैं।
तू ही इंसान को बचाने के लिए काम कर रहा है, हमें शाश्वत जीवन का मार्ग प्रदान कर रहा है।
तेरे वचन मेरी भ्रष्टता को दूर करते हैं, मुझे जीवन में प्रकाश के मार्ग पर लाते हैं।
हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, तेरी पवित्रता और धार्मिकता इंसान की शाश्वत स्तुति की हकदार हैं।
तुझ में हमारी आस्था है, हम तेरा अनुसरण करते हैं, तेरी गवाही देते हैं, यह हमारा आवश्यक कर्तव्य है।
हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, तेरे अंदर कितनी मनोहरता है, हम सदा तुझे प्रेम करेंगे और तेरी स्तुति करेंगे।