अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (9)

यह तय करने के लिए दो कसौटियाँ कि क्या अगुआ और कार्यकर्ता मानक-स्तर के हैं

अब हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों में से कुल आठ जिम्मेदारियों पर संगति कर चुके हैं, और इन आठ जिम्मेदारियों के संबंध में हमने झूठे अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण किया है। इस तरह से उनका गहन-विश्लेषण करके, क्या अब तुम लोगों को झूठे अगुआओं की कुछ पहचान हो गई है? अगर तुम एक अगुआ हो तो क्या तुम झूठे अगुआओं के इन अभ्यासों में शामिल होने से बच सकते हो? क्या तुम सतर्कता से कार्य का निर्वहन कर सकते हो और उन जिम्मेदारियों के आधार पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकते हो जिन पर हमने संगति की है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों पर संगति के जरिए अब तुम लोगों को अपने दिल में पता होना चाहिए कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपना कार्य कैसे करना चाहिए, इस कार्य के निर्वहन में क्या विवरण शामिल हैं, उन्हें कार्य कैसे कार्यान्वित करना चाहिए, और उन्हें मानक-स्तर के अगुआ और कार्यकर्ता होने का अभ्यास कैसे करना चाहिए। अगर किसी व्यक्ति की काबिलियत पर्याप्त है, अगर उसमें एक निश्चित मात्रा में कार्य क्षमता है, और वह दायित्व भी उठाता है तो उसे झूठे अगुआओं की ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करने से बचना चाहिए। लेकिन, अगर किसी व्यक्ति में काबिलियत है और उसमें एक निश्चित मात्रा में कार्य क्षमता है, लेकिन वह दायित्व नहीं उठाता है तो फिर क्या वह मानक-स्तर का अगुआ होने और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम है? (नहीं।) उसके लिए ऐसा करना थोड़ा कठिन है। मान लो कि कोई अगुआ दायित्व उठाता है और उसकी मानवता खराब नहीं है, लेकिन उसे पता ही नहीं है कि अपने कार्य का निर्वहन कैसे करना है। चाहे उसके साथ कैसे भी संगति क्यों ना की जाए, वह अब भी यह नहीं जानता है कि विशिष्ट कार्य कैसे कार्यान्वित करना है और उसमें भाग कैसे लेना है, और वह सिद्धांत या दिशा नहीं ढूँढ पाता है। वह यह भी नहीं जानता है कि विशिष्ट व्यवसायों या विशिष्ट कार्य के लिए मार्गदर्शन कैसे प्रदान करना है। जब समस्याएँ उत्पन्न होती हैं तो वह उन समस्याओं का सार नहीं ढूँढ पाता है, और उसे यह नहीं पता होता है कि उन्हें कैसे सुलझाना है। परिणामस्वरूप, वह जो भी कार्य करता है या जो भी मुद्दा संभालता है उसमें हमेशा बहुत निष्क्रिय और धीमा होता है। क्या ऐसा व्यक्ति अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर सकता है? (नहीं।) यह किस तरह की समस्या है? वैसे तो इस किस्म का व्यक्ति बहुत उत्साही होता है, दायित्व उठाता है, और अपने कार्य का निर्वहन करना चाहता है, लेकिन उसकी काबिलियत बहुत ही खराब होती है, उसमें कार्य क्षमता नहीं होती है और वह कार्य स्वीकार नहीं कर पाता है, या विशिष्ट कार्य का निर्वहन नहीं कर पाता है या विशिष्ट मुद्दे नहीं सुलझा पाता है; किसी भी कार्य में भाग लेते समय वह बस औपचारिकता निभाता है, और वह बहुत मंदबुद्धि, जड़ और निष्क्रिय होता है। इसका यह परिणाम होता है कि कई मुद्दे उठते हैं, फिर भी वह उन पर कार्य करना शुरू करने में अक्षम होता है, उसे नहीं पता होता है कि उनके क्या कारण हैं, और यह तो बिल्कुल नहीं पता होता है कि उन पर कैसे संगति करनी है और उन्हें कैसे सुलझाना है, और वह ऊपरवाले को मुद्दों की सूचना देने और उससे समाधान माँगने में भी समर्थ नहीं होता है। इसलिए, ऐसे लोग अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करने में सक्षम नहीं होते हैं, और अगर उन्हें अगुआ बनने के लिए चुन भी लिया जाए तो भी वे अच्छे अगुआ नहीं होते हैं—वे झूठे अगुआ होते हैं।

अब जबकि हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आठ जिम्मेदारियों पर संगति कर ली है, क्या तुम लोग किसी झूठे अगुआ की मूलभूत परिभाषा सुझाने में समर्थ हो? यह फैसला कैसे किया जाना चाहिए कि क्या कोई अगुआ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहा है, या वह एक झूठा अगुआ है? सबसे बुनियादी स्तर पर, यह देखना चाहिए कि वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम हैं या नहीं, कि उनमें यह काबिलियत है या नहीं। फिर, यह देखना चाहिए कि क्या वे इस काम को अच्छे तरीके से करने का भार उठाते हैं या नहीं। इसकी अनदेखी करो कि वे जो बातें बोलते हैं वे कितनी अच्छी लगती हैं और वे धर्म-सिद्धांतों की कितनी समझ रखने वाले लगते हैं, इस पर भी ध्यान मत दो कि बाहरी मामलों से निपटने में वे कितने प्रतिभाशाली और गुणी हैं—ये बातें महत्वपूर्ण नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे कलीसिया के काम की सबसे बुनियादी मदों का काम ठीक तरीके से करने की योग्यता रखते हैं या नहीं, वे सत्य का उपयोग कर समस्याओं को हल कर सकते हैं या नहीं और कि वे लोगों को सत्य वास्तविकता में ले जा सकते हैं या नहीं। यह सबसे मूलभूत और आवश्यक कार्य है। यदि वे वास्तविक कार्य की इन मदों पर काम करने में अक्षम हैं, तो फिर चाहे उनमें कितनी भी काबिलियत हो, वे कितने भी प्रतिभावान हों, या कितनी भी कठिनाइयाँ सह सकते हों और कीमत चुका सकते हों, वे नकली अगुआ ही रहेंगे। कुछ लोग कहते हैं, “भूल जाओ कि वे अभी कोई वास्तविक काम नहीं करते हैं। उनकी क्षमता अच्छी है और वे काबिल हैं। अगर वे कुछ समय तक प्रशिक्षण लें, तो वे अवश्य ही वास्तविक कार्य करने के काबिल बन जाएँगे। इसके अलावा उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं किया है और उन्होंने कोई कुकर्म नहीं किया है और विघ्न-बाधाएँ नहीं डाली हैं—तुम कैसे कह सकते हो कि वे नकली अगुआ हैं?” हम इसकी व्याख्या कैसे कर सकते हैं? कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने प्रतिभाशाली हो, तुम्हारे पास किस स्तर की काबिलियत और शिक्षा है, तुम कितने नारे लगा सकते हो, या कितने शब्द और धर्म-सिद्धांतों पर तुम्हारी पकड़ है; इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितने व्यस्त हो, या दिन भर में कितने थके हो, या तुमने कितनी दूर की यात्रा की है, कितनी कलीसियाओं में जाते हो, या तुम कितने जोखिम उठाते हो और कितना कष्ट सहते हो—इनमें से कोई भी बात मायने नहीं रखती। जो बात मायने रखती है वह यह है कि क्या तुम अपना काम दी गई कार्य व्यवस्थाओं के आधार पर कर रहे हो, क्या तुम उन व्यवस्थाओं को सही ढंग से लागू कर रहे हो; क्या तुम अपनी अगुआई के दौरान हर उस विशिष्ट कार्य में भाग ले रहे हो जिसके लिए तुम जिम्मेदार हो, और तुमने वास्तव में कितने वास्तविक मुद्दों का समाधान किया है; तुम्हारी अगुआई और मार्गदर्शन के कारण कितने लोग सत्य सिद्धांतों को समझ पाए हैं, और कलीसिया का काम कितना आगे बढ़ा और विकसित हुआ है—जो मायने रखता है वह यह है कि तुमने ये परिणाम हासिल किए हैं या नहीं। तुम जिस भी विशिष्ट कार्य में लगे हो, उसके बावजूद जो मायने रखता है वह यह है कि क्या तुम उच्चपदस्थ और शक्तिशाली बन कर आदेश जारी करने के बजाय लगातार कार्य का अनुसरण और निर्देशन कर रहे हो या नहीं। इसके अलावा यह भी मायने रखता है कि तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए जीवन प्रवेश करते हो या नहीं, क्या तुम सिद्धांतों के अनुसार मामलों से निपट सकते हो, क्या तुम्हारे पास सत्य को अभ्यास में लाने की गवाही है, और क्या तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामने आने वाले वास्तविक मुद्दों को सँभाल सकते हो और उनका समाधान कर सकते हो। ये और इसी तरह की दूसरी चीजें यह आकलन करने की कसौटियाँ हैं कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं। क्या तुम लोग कहोगे कि ये कसौटियाँ व्यावहारिक हैं? और लोगों के प्रति निष्पक्ष हैं? (हाँ।) वे सभी के लिए निष्पक्ष हैं। तुम्हारी शिक्षा का स्तर जो भी हो, तुम युवा हो या बूढ़े, तुमने कितने ही वर्षों तक परमेश्वर पर विश्वास किया हो, तुम्हारी वरिष्ठता जो भी हो, या तुमने परमेश्वर के वचनों को कितना भी पढ़ा हो, इनमें से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। जो महत्व रखता है वह यह है कि अगुआ के रूप में चुने जाने के बाद तुम कलीसिया का काम कितनी अच्छी तरह से करते हो, तुम अपने कार्य में कितने प्रभावी और कुशल हो, और क्या काम की हर एक मद सुसंगठित और प्रभावी तरीके से आगे बढ़ रही है, और उसमें देरी तो नहीं हो रही है। ये मुख्य चीजें हैं जिनका मूल्यांकन तब किया जाता है जब यह मापा जाता है कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है या नहीं।

अभी-अभी हम जिस संगति में शामिल हुए, उसके जरिए अब तुम्हारे पास अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की कुछ हद तक स्पष्ट समझ और ज्ञान है, साथ ही झूठे अगुआ की परिभाषा और सार के बारे में एक सटीक कथन भी है। यह तय करने के लिए कि क्या कोई व्यक्ति झूठा अगुआ है, सबसे मूलभूत कसौटी यह देखना है कि क्या वह वास्तविक कार्य करने में सक्षम है, और फिर यह देखना है कि क्या वह वास्तव में वास्तविक कार्य करता है। ये दो मुख्य कसौटियाँ हैं : एक यह प्रश्न है कि वह सक्षम है या नहीं, और दूसरा यह प्रश्न है कि वह इच्छुक है या नहीं। क्या तुम लोग ये चीजें याद रख सकते हो? कुछ लोग कहते हैं, “मैं अगुआ नहीं हूँ, तो मुझे ये चीजें क्यों याद रखनी चाहिए?” क्या यह टिप्पणी सही है? (नहीं।) यह गलत क्यों है? ये सत्य समझकर, लोग एक लिहाज से खुद को जानना शुरू कर सकते हैं, और दूसरे लिहाज से, वे दूसरे लोगों को पहचानना शुरू कर सकते हैं—ये वे सत्य हैं जिन्हें लोगों को समझना चाहिए और जो उनके पास होने चाहिए, और उन्हें नहीं समझना अनुचित होगा। सबसे पहले, तुम्हें यह मापना चाहिए कि क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के अनुसार तुममें अगुआ बनने की काबिलियत और क्षमता है। अगर तुम्हारे पास ये चीजें नहीं हैं, तो अगुआ बनने की इच्छा मत करते रहो। अगर तुममें अगुआ बनने की काबिलियत नहीं है, लेकिन फिर भी तुम अगुआ बनना चाहते हो, तो यह महत्वाकांक्षा है; जैसे ही तुम अगुआ बनोगे, तुम वास्तविक कार्य का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होगे, और तुम अनिवार्य रूप से एक झूठे अगुआ बन जाओगे। कुछ लोग कहते हैं, “मेरे पास अच्छी काबिलियत है; सभी के बीच मैं उत्कृष्ट हूँ। मैं अक्सर कुछ अच्छे विचार, और कुछ चतुर और अच्छे सुझाव प्रस्तुत करता हूँ। मैं जो कुछ भी करता हूँ उसके लिए मेरे पास कौशल है, और मेरे पास अपेक्षाकृत समृद्ध ज्ञान, अंतर्दृष्टियाँ और अनुभव है। क्या इसका यह अथ नहीं है कि मैं अगुआ बन सकता हूँ?” फिर उन्हें यह देखने के लिए भी खुद को मापना चाहिए कि क्या उनमें जिम्मेदारी की भावना है और क्या वे दायित्व उठा सकते हैं। अगर उनके पास चीजों पर सिर्फ राय हैं, और वे चीजें सिर्फ करना चाहते हैं, और हमेशा बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएं रखते हैं लेकिन उन्हें पूरा नहीं कर पाते हैं, और वे नहीं जानते हैं कि कैसे प्रयास करना है और कीमत चुकानी है, और वे कोई भी कीमत चुकाने के इच्छुक नहीं हैं—अगर वे हमेशा चाहते हैं कि उनका दिल और दिमाग शांत अवस्था में रहे, अगर वे निठल्ले और निरंकुश रहना, आरामदायक जीवन जीना चाहते हैं, और चिंता करना या व्यस्त रहना पसंद नहीं करते हैं, और थकान और कष्ट से डरते हैं—तो वे अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं और वे एक अगुआ का कार्य स्वीकार करने या उसका निर्वहन करने में असमर्थ होंगे।

अभी-अभी हमने यह तय करने के लिए दो कसौटियों को संक्षेप में प्रस्तुत किया कि क्या कोई अगुआ मानक-स्तर का है : क्या वह वास्तविक कार्य करने में सक्षम है और क्या वह वास्तविक कार्य करता है। अगर लोग ये दो कसौटियाँ समझते हैं तो उन्हें इस बात पर पूरी तरह से स्पष्ट होना चाहिए कि क्या वे अगुआ बनने के लिए सक्षम हैं, साथ ही, क्या वे कलीसियाई कार्य अच्छी तरह से करने, अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी तरह से पूरी करने, और अगुआ बनने के बाद मानक-स्तर का अगुआ बनने में सक्षम हैं। फिलहाल अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा कर रहे लोगों से मैं पूछता हूँ, क्या अब तुम्हारे पास यह मापने के लिए कुछ मार्ग और कुछ सिद्धांत हैं कि तुमने कुछ वास्तविक कार्य किया है या नहीं और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इन आठ जिम्मेदारियों पर संगति के जरिए, तुम लोगों को यह अनुमान लगाने में समर्थ होना चाहिए कि झूठे अगुआ क्या अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं और संक्षेप में यह प्रस्तुत करने में समर्थ होना चाहिए कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने कार्य का निर्वहन वास्तव में कैसे करना चाहिए, साथ ही तुम्हारे कार्य में कहाँ कमी रह रही है, तुम कहाँ अपर्याप्त हो, या पर्याप्त रूप से विशिष्ट नहीं हो, और अब से तुम्हें कैसे कार्य करना चाहिए—तुममें कम-से-कम ये अंतर्दृष्टियाँ तो होनी ही चाहिए। अगर तुम लोगों के पास इस बारे में कोई निष्कर्ष या अंतर्दृष्टि नहीं है कि अगुआ या कार्यकर्ता कैसे बनना है या अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ कैसे पूरी करनी हैं, तो फिर इसका अर्थ है कि कार्य के लिए तुम्हारी काबिलियत मानक-स्तर की नहीं है। इसके अलावा, अगर तुम इस बारे में पूरी तरह से भ्रमित हो कि झूठे अगुआओं को कैसे पहचानना है, तो यह और भी ज्यादा दर्शाता है कि तुम लोगों की काबिलियत खराब है। यहाँ एक विशेष परिस्थिति भी है : यहाँ कुछ ऐसे लोग हैं, जिनमें ये संगतियाँ सुनने के बावजूद, सत्य के लिए प्रयास करने या अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ पूरी करने का कोई संकल्प नहीं है, जो इस मामले को गंभीरता से लेते ही नहीं हैं या उस पर ध्यान ही नहीं देते हैं। वे सोचते हैं, “मुझे इसकी परवाह नहीं है कि कौन झूठा अगुआ है। जो भी हो, अगर मैं अगुआ बन गया तो मैं सिर्फ वही करूँगा जो ऊपरवाले ने मुझसे करने के लिए कहा होगा। मुझे इतना ज्यादा प्रयास करने या इतना ज्यादा सोच-विचार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” धर्मोपदेश सुनते समय वे बस औपचारिकताएँ निभाते हैं और समय बिताते हैं, और उन्हें मोटे तौर पर पता होता है कि धर्मोपदेश विशिष्ट रूप से किस बारे में है, लेकिन वे इतने आलसी हैं कि संक्षेप में यह प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं कि किन सत्यों और मनुष्य से परमेश्वर की किन अपेक्षाओं पर संगति की जा रही है, और वे इन चीजों पर ध्यान देने के इच्छुक नहीं हैं। वे सोचते हैं, “इन मामलों को पहचानने में बहुत ज्यादा झंझट है। जो भी हो, मुझे खुद से सिर्फ एक चीज की अपेक्षा है, और वह है कुकर्म नहीं करना, विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न नहीं करना, और भीड़ से अलग नहीं दिखना, और बस इतना ही काफी है। यह बहुत ही सरल है! यह जीने का एक शानदार तरीका है; मैं खुद से बड़ी-बड़ी माँगें नहीं करता।” चाहे वे धर्मोपदेश कैसे भी सुनें, यही उनका एकमात्र परिप्रेक्ष्य है, और उन्हें कोई भी बदल नहीं सकता है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम सत्य पर कैसे संगति करते हो, तुम संगति करने के लिए किस विधि का उपयोग करते हो, या तुम किस विषय पर संगति करते हो, तुम उनका दिल नहीं छू सकते; उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि वे इन वचनों को सुनते हैं या नहीं, उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस प्रकार का व्यक्ति अनमने ढंग से जीता है, और वह कोई भी चीज गंभीरता से नहीं लेता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आठ जिम्मेदारियों पर संगति करने की तो बात ही रहने दो—अगर हम उन सभी पर संगति करते हैं, तो भी वह नहीं समझ पाएगा और किसी भी सिद्धांत या मार्ग को संक्षेप में प्रस्तुत नहीं कर पाएगा। इस किस्म के लोग सकारात्मक चीजें पसंद नहीं करते हैं, उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं होती है और सत्य या किसी सकारात्मक चीज की बात आने पर वे बिल्कुल ऊर्जा नहीं जुटा पाते हैं, बल्कि खाने-पीने और सुख की तलाश करने में उन्हें विशेष दिलचस्पी रहती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की आठ जिम्मेदारियों पर संगति करके, एक लिहाज से, हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की कुछ जिम्मेदारियाँ, और साथ ही कार्य का निर्वहन कैसे करना है और अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ कैसे पूरी करनी हैं, इसे संक्षेप में प्रस्तुत कर दिया है; दूसरे लिहाज से, हमने झूठे अगुआओं द्वारा प्रदर्शित कुछ विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ संक्षेप में प्रस्तुत कर दी हैं। अभी-अभी हमने झूठे अगुआओं को पहचानने के लिए दो मूलभूत सिद्धांतों, दो कसौटियों का निष्कर्ष निकाला : एक यह है कि क्या कोई व्यक्ति वास्तविक कार्य का निर्वहन करने में सक्षम है, और दूसरी यह है कि क्या एक बार सत्य सिद्धांत समझ लेने के बाद वह वास्तव में वास्तविक कार्य करता है। इन दो कसौटियों का उपयोग करना आज तक यह अनुमान लगाने का सबसे सरल और सबसे उपयुक्त तरीका रहा है कि कोई व्यक्ति झूठा अगुआ है या नहीं।

मद नौ : मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण, आग्रह और निरीक्षण करते हुए, परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करो, और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करो (भाग एक)

कार्य-व्यवस्थाओं की परिभाषा और विशिष्ट मद

आज, हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नौवीं जिम्मेदारी पर संगति करेंगे : “मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण, आग्रह और निरीक्षण करते हुए, परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करो, और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण और अनुवर्ती कार्रवाई करो।” इस जिम्मेदारी को समग्र रूप से देखा जाए, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं से क्या कार्यान्वित करने की अपेक्षा की जाती है? (परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ।) इस जिम्मेदारी का केंद्र बिंदु यह है कि परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ कैसे कार्यान्वित की जाएँ—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। चाहे कोई किसी भी स्तर का अगुआ या कार्यकर्ता क्यों ना हो, अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में, हमेशा उसके सामने कार्य-व्यवस्थाओं के साथ-साथ कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करने का विशिष्ट कार्य भी आएगा। विभिन्न कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करना हर अगुआ और कार्यकर्ता के कार्य के लिए प्रासंगिक है, और यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण, बहुत ही विशिष्ट और बहुत ही मौलिक कार्य है। इस बिंदु को ध्यान में रखा जाए तो, क्या पहले विशिष्ट रूप से इस बात पर संगति करना जरूरी नहीं है कि कार्य-व्यवस्थाएँ क्या हैं? (हाँ।) तो, फिर कार्य-व्यवस्थाएँ क्या हैं? कार्य-व्यवस्थाओं का दायरा और परिभाषा क्या है? कुछ लोग कहते हैं, “क्या कार्य-व्यवस्थाओं के दायरे में सिर्फ कलीसियाई कार्य से संबंधित कुछ कार्य और सामग्री शामिल नहीं हैं? और क्या कार्य-व्यवस्थाएँ सिर्फ इन कार्यों और सामग्री को व्यवस्थित और जारी करना नहीं हैं?” तुम इस स्पष्टीकरण के बारे में क्या सोचते हो? क्या यह सब शब्द और धर्म-सिद्धांत नहीं हैं? (हाँ, हैं।) और “शब्दों और धर्म-सिद्धांतों” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि, यद्यपि इस स्पष्टीकरण का कोई भी शब्द सुनने में गलत नहीं लगता है लेकिन इसे सुनने के बाद भी तुम इसे नहीं समझ पाते हो; यह बिल्कुल वैसा ही रहता है जैसे कि इसे बिल्कुल भी समझाया नहीं गया हो। आओ सबसे पहले लिखित विवरण के लिहाज से कार्य-व्यवस्थाओं की परिभाषा दें, ताकि लोगों के पास यह समझने और जानने के लिए इसकी एक मूलभूत अवधारणा हो सके कि वास्तव में कार्य-व्यवस्थाएँ क्या हैं। कार्य-व्यवस्थाएँ परमेश्वर के घर द्वारा कार्य की किसी विशिष्ट मद के लिए बनाई गई विशिष्ट योजनाएँ और अपेक्षाएँ हैं; उन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा संप्रेषित और कार्यान्वित करने की जरूरत होती है और वे कार्य की किसी विशिष्ट मद के लिए कलीसिया के सभी सदस्यों को जारी की गई अपेक्षाएँ, कार्य और विधियाँ भी हैं—यही कार्य-व्यवस्थाओं की परिभाषा है। और, कार्य-व्यवस्थाओं में कौन-सी मदें शामिल की जाती हैं? “मद” यह संज्ञा हर किसी को मालूम है, लेकिन क्या ऐसी कुछ विशिष्ट सामग्री नहीं होनी चाहिए जिसे इन मदों के दायरे में शामिल किया जाता है? (हाँ।) तुम लोगों को किस सामग्री के बारे में मालूम है? (सुसमाचार कार्य और फिल्म निर्माण कार्य।) ये दो मदें हुईं। (कलीसियाई जीवन और कलीसिया के प्रशासनिक संगठनों की स्थापना से संबंधित भी कुछ अपेक्षाएँ हैं।) और कौन-सा कार्य है? (कलीसिया को स्वच्छ करने का कार्य है, साथ ही कलीसिया की प्रबंधन प्रणालियों से संबंधित भी कुछ कार्य है।) कार्य-व्यवस्थाओं की विशिष्ट सामग्री इस प्रकार है : मद एक, कलीसिया का प्रशासनिक कार्य। यह कार्य की सबसे बड़ी मद है और अगर प्रशासनिक कार्य अच्छी तरह से नहीं किया गया तो कोई कलीसियाई कार्य नहीं होगा। मद दो, कार्मिक कार्य। यह कार्य की एक बड़ी मद है। मद तीन, सुसमाचार कार्य। यह भी कार्य की एक बड़ी मद है। मद चार, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य। इस कार्य का दायरा कुछ हद तक बड़ा है और इसमें फिल्म निर्माण, पाठआधारित कार्य, अनुवाद, संगीत, वीडियो उत्पादन, कला, वगैरह शामिल हैं। मद पाँच, कलीसियाई जीवन। मद छह, संपत्ति प्रबंधन का कार्य। मद सात, स्वच्छता कार्य। मद आठ, बाहरी मामले। मद नौ, कलीसियाई कल्याण। मिसाल के तौर पर, कलीसिया भाई-बहनों के घरों में उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों को कैसे हल करती है, और कलीसिया उनके बारे में क्या करती है, साथ ही जेल में कैद भाई-बहनों से मिलना और उनके परिवारों की देखभाल कैसे करनी है, वगैरह—ये सबकुछ कलीसियाई कल्याण के अंतर्गत आता है। मद दस, आपातकालीन योजनाएँ। कभी-कभी, कलीसिया कुछ आपातकालीन उपाय जारी करेगी। मिसाल के तौर पर, जब महामारी फैली थी तो कलीसिया ने उसी के अनुरूप आइसोलेशन की प्रणाली अपनाई थी। इस तरह की सभी योजनाएँ आपातकालीन कार्य के अंतर्गत आती हैं। कार्य-व्यवस्थाओं में मूल रूप से ये दस मदें शामिल हैं। कोई भी दूसरी छोटी मद या विशेष परिस्थिति को इन्हीं दस मदों में शामिल किया जाता है—मूल रूप से, कलीसियाई कार्य में ये दस प्रमुख मदें शामिल हैं। मूल रूप से, ये परमेश्वर के घर द्वारा जारी की गई विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं का दायरा हैं, है ना? (सही कहा।) अब जबकि इन मदों की पुष्टि हो चुकी है, तो अब तुम सभी को परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ थोड़ी-सी समझ आनी चाहिए और यह पता होना चाहिए कि ये परमेश्वर के घर में कार्य की प्रमुख मदें हैं। यह उन अपेक्षाओं का दायरा है जो परमेश्वर के घर में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के बारे में हैं। इसका आशय यह है कि एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हारे कार्य के दायरे और जो जिम्मेदारियाँ तुम्हें पूरी करनी चाहिए उन्हें इन मदों में शामिल कार्य-व्यवस्थाओं से अलग नहीं किया जा सकता है—ये सभी मदें जरूरी हैं। कार्य की इन मदों के अलावा जो चीजें तुम करने के इच्छुक हो उनमें से जो कुछ भी तुम अच्छी तरह से कर सकते हो उसे थोड़ा सा करो और परमेश्वर के घर में तुम्हारे कर्तव्य के निर्वहन के लिए कोई अतिरिक्त अपेक्षाएँ नहीं हैं। इसलिए अपने कार्य के निर्वहन के दौरान तुम्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि कार्य की इन मदों को कैसे पूरा करना है, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा क्या अपेक्षित है, तुम्हें कौन-सा विशिष्ट कार्य करना चाहिए, इसे कैसे कार्यान्वित करना है, क्या इसे अच्छी तरह से कार्यान्वित किया जा रहा है, वर्तमान प्रगति क्या है, क्या तुम लोगों ने कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई की है, क्या कार्य की कोई ऐसी मद है जिसे अच्छी तरह से नहीं किया गया है या जिसमें विचलन और खामियाँ मौजूद हैं, और क्या कार्य की उस मद में भाग लेने वाला हर व्यक्ति वास्तव में कार्य कर रहा है—तुम्हें इन बातों पर हमेशा विचार करना चाहिए। अब जब तुमने कार्य-व्यवस्थाओं में शामिल कार्य की विशिष्ट मदें समझ ली हैं तो क्या मेरे लिए इनमें से हर मद का एक सरल विवरण देना जरूरी है? या शायद तुम लोग सोच रहे हो : “हम कई वर्षों से कार्य की इन मदों के संपर्क में हैं और हम इन सभी को समझते हैं; इन्हें फिर से समझाने की कोई जरूरत नहीं है—इसके बजाय किसी महत्वपूर्ण चीज पर संगति करो। यह विषय इतना महत्वपूर्ण नहीं है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हमें इसके बारे में पता है या नहीं और हम इसके बारे में नहीं सुनना चाहते हैं।” क्या इस विषय को और ज्यादा स्पष्ट करना जरूरी है? (हाँ, है।) चूँकि यह जरूरी है तो चलो हम इसके बारे में सरल शब्दों में बात करें। मैं कुछ ऐसी मदें चुनूँगा जिनसे तुम अपेक्षाकृत अपरिचित हो, जो ज्यादा विशिष्ट नहीं हैं, जो थोड़ी अमूर्त हैं, और उन पर संगति करूँगा।

I. प्रशासनिक कार्य

आओ, शुरुआत पहली मद, प्रशासनिक कार्य, पर संगति से करते हैं। प्रशासनिक कार्य अपेक्षाकृत अमूर्त है और पर्याप्त रूप से ठोस नहीं है, और बहुत से लोग इसे नहीं समझते हैं। विशेष रूप से, जिन लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए सिर्फ कुछ ही समय हुआ है वे कलीसिया के गठन और उसके प्रशासनिक कार्य के बारे में वाकई नहीं जानते हैं और उन्हें नहीं पता है कि प्रशासन क्या है। यह प्रशासन परमेश्वर द्वारा जारी किए गए प्रशासनिक आदेशों के समान नहीं है। इस प्रशासनिक कार्य में मुख्य रूप से कलीसियाओं की स्थापना के कार्य को लेकर परमेश्वर के घर की विशिष्ट शर्तें शामिल हैं। और इन विशिष्ट शर्तों की सामग्री क्या है? उनमें यह शामिल है कि कलीसियाओं को कैसे विभाजित किया जाए, हर कलीसिया में कितने लोग हों, कलीसियाओं को नाम कैसे दिए जाएँ, वगैरह। कार्य व्यवस्थाओं में यह तय किया गया है कि कलीसियाओं को उनके प्राकृतिक भौगोलिक वातावरण के अनुसार विभाजित किया जाए, जिसमें पास-पास रहने वाले 30 से 50 लोगों को एक कलीसिया के रूप में वर्गीकृत किया जाए। मिसाल के तौर पर, मान लो कि क्षेत्र “क” में तीन या चार गाँव शामिल हैं; अगर इन गाँवों में 50 विश्वासी हैं, तो उन्हें कलीसिया के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। उनके पास सभाएँ आयोजित करने के लिए अपने समय और जगहें होंगी, उनके पास कलीसियाई अगुआ और उपयाजक होंगे, साथ ही करने के लिए विशिष्ट कलीसियाई कार्य भी होंगे, और वे सभी इस कलीसिया द्वारा इकट्ठे प्रबंधित किए जाएँगे। यह कलीसियाओं के विभाजन और कलीसिया में सदस्यों की संख्या के बारे में शर्त है। साथ ही, यह कलीसिया एक निश्चित जिले की जिम्मेदारी के अंतर्गत आएगी, जो इस बात पर निर्भर करता है कि यह किस जिले में मौजूद है और वह जिला उस कलीसिया में कार्यों के विभिन्न अंशों के लिए जिम्मेदार होगा, जैसे कि वहाँ का कलीसियाई जीवन, क्या अगुआ और उपयाजक उपयुक्त हैं, परमेश्वर के वचनों की किताबें वितरित करना, विभिन्न कार्य व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करना और ऊपरवाले की अपेक्षाएँ संप्रेषित करना, वगैरह। परमेश्वर के घर में इन चीजों के लिए विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ हैं, जैसे कि एक जिला बनाने वाली कलीसियाओं की संख्या, और एक प्रदेश बनाने वाले जिलों की संख्या, साथ ही यह कि प्रदेश जिलों के लिए जिम्मेदार हैं, और जिले कलीसियाओं के लिए जिम्मेदार हैं, जो कि प्रशासनिक इकाइयाँ हैं। सरल शब्दों में, इसे प्रशासनिक कार्य कहते हैं और यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आता है। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कौन-सी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए? उन्हें कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कलीसियाओं को उनके प्राकृतिक भौगोलिक वातावरण और जगह के आधार पर विभाजित करना चाहिए। अगर समय के साथ किसी कलीसिया में लोगों की संख्या बढ़ती रहती है तो कलीसिया को लोगों की संख्या और भौगोलिक वातावरण के आधार पर फिर से विभाजित करना चाहिए। मिसाल के तौर पर, अगर किसी कलीसिया में लोगों की संख्या 50 से बढ़कर 80 हो जाती है तो इसे दो कलीसियाओं में विभाजित कर देना चाहिए; अगर इन दो कलीसियाओं में लोगों की संख्या 80 से बढ़कर कुल मिलाकर 150 हो जाती है तो उन्हें तीन कलीसियाओं में विभाजित कर देना चाहिए। अगर किसी कलीसिया में लोगों की संख्या बढ़कर 70, 80 या 100 हो जाती है और उसे अभी तक दो कलीसियाओं में विभाजित नहीं किया गया है तो फिर क्या यह नहीं दर्शाता है कि इस कलीसिया के अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर का प्रशासनिक कार्य नहीं समझते हैं? (हाँ, यह दर्शाता है।) ऐसे समय में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस विषय से संबंधित कार्य-व्यवस्थाएँ पढ़नी चाहिए—कार्य-व्यवस्थाओं पर कलीसिया की पुस्तिका में विशिष्ट नियम दिए गए हैं। अगर किसी कलीसिया को दो नई कलीसियाओं में विभाजित किया जाता है तो हर कलीसिया को जरूरी अगुआ और कार्यकर्ता चुनने चाहिए, जैसे कि कलीसियाई अगुआ, उपयाजक, वगैरह। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को क्या करना चाहिए? उन्हें कलीसिया में लोगों की संख्या और कलीसिया की स्थापना की स्थिति के बारे में जानना चाहिए और उसकी समझ हासिल करनी चाहिए। यह कलीसिया का प्रशासनिक कार्य है और यह कार्य की सबसे बड़ी मद है। परमेश्वर के चुने हुए लोग जहाँ भी हों वहीं एक कलीसिया होनी चाहिए और एक बार कलीसिया की स्थापना हो जाने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उस कलीसिया के हर पहलू की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, जैसे कि परमेश्वर के वचनों की किताबें वितरित करना, कलीसियाई सदस्यों को प्रबंधित करना, कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करना ताकि उन्हें पता हो कि कार्य-व्यवस्थाओं की सामग्री क्या है। प्रशासनिक कार्य में मुख्य रूप से कलीसियाओं की स्थापना करना, साथ ही कलीसियाओं के प्रशासनिक संगठनों और कर्मियों की स्थापना करना शामिल है—ये सारी चीजें प्रशासनिक कार्य में विशिष्ट कार्य हैं। आम तौर पर, किन लोगों के सामने कार्य की यह मद ज्यादा आती है? नए विश्वासी कलीसियाएँ, सुसमाचार टीमें, साथ ही प्रादेशिक अगुआ, जिला अगुआ और उन क्षेत्रों के कलीसियाई अगुआ जिनमें सुसमाचार फैलाया जा रहा है, यह कार्य इन सभी के सामने ज्यादा आता है। इसके अलावा, प्रशासनिक कार्य में एक विशेष कार्य भी शामिल है जो कि कलीसियाओं को पूर्णकालिक कर्तव्य कलीसियाओं, अंशकालिक कर्तव्य कलीसियाओं, साधारण कलीसियाओं और बी समूहों में विभाजित करना है, और यह एक और कार्य है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस बात की समझ होनी चाहिए कि कलीसियाओं को कैसे अलग करना है, और कलीसियाओं को अलग करने का सिद्धांत है लोगों को उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों में अंतर के आधार पर अलग-अलग कलीसियाओं में विभाजित करना, कर्तव्य करने वाले लोगों को कर्तव्य नहीं करने वाले लोगों से अलग करना, और पूर्णकालिक कर्तव्य करने वाले लोगों को अंशकालिक कर्तव्य करने वाले लोगों से अलग करना—यह एक और विशेष और विशिष्ट प्रशासनिक कार्य है।

II. कार्मिक कार्य

मद दो, कार्मिक कार्य। यह मद सभी स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के चुनाव, नियुक्ति और बर्खास्तगी से संबंधित है। कार्य-व्यवस्थाएँ चुनाव प्रणालियों के लिए और इसके लिए विशिष्ट नियम प्रदान करती हैं कि किस किस्म के लोगों को अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में चुनना चाहिए, और चुनावों के लिए विधियाँ और विशिष्ट अपेक्षाएँ क्या हैं। यहाँ कुछ विशेष परिस्थितियाँ भी हैं, मिसाल के तौर पर, अगर भाई-बहन अभी-अभी एक-दूसरे से मिले हैं और वे एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह से नहीं जानते हैं, और चुनाव के जरिए उपयुक्त अगुआ और कार्यकर्ता नहीं चुन सकते हैं, तो क्या करना चाहिए? ऐसे में, लोगों को पदोन्नत और निर्वाचित किया जा सकता है ताकि यह जाँचा जा सके कि कौन अगुआ बनने के लिए अपेक्षाकृत उपयुक्त है, और फिर उनके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त की जा सकती है, संगति की जा सकती है, और सरल जाँचें की जा सकती हैं, जिसके बाद उन्हें नियुक्त किया जा सकता है। इसके अलावा, जब ऊपरवाला किसी बड़ी परियोजना की व्यवस्था करता है या कई लोगों को पर्यवेक्षक के रूप में नियुक्त करता है तो यह एक विशेष कार्य व्यवस्था है। यहाँ एक और विशेष परिस्थिति है, और वह यह है कि जब कोई व्यक्ति ऊपरवाले को यह बताते हुए रिपोर्ट लिखता है कि कैसे फलां अगुआ वास्तविक कार्य का निर्वहन नहीं करता है और मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलता है, और ऊपरवाला इसकी जाँच करने के बाद जिस अगुआ की रिपोर्ट की गई थी उसे उसके पद से बर्खास्त करने के लिए कार्य-व्यवस्था जारी करता है। यह कार्मिक कार्य से संबंधित एक और कार्य-व्यवस्था है। संक्षेप में, कर्मियों से संबंधित कार्य में कलीसिया में सभी स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का चुनाव, नियुक्ति और बर्खास्तगी शामिल है। कार्य की यह मद अपेक्षाकृत सरल है और इसे समझना आसान है।

III. सुसमाचार कार्य

मद तीन, सुसमाचार कार्य। सुसमाचार कार्य परमेश्वर के घर में प्रशासनिक कार्य और कार्मिक कार्य के बाद विशिष्ट पेशेवर कार्य की पहली बड़ी मद है। परमेश्वर के घर ने कार्य की इस मद के लिए एक के बाद एक कई कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं, जिसके अंतर्गत संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं, सुसमाचार का उपदेश देने के लिए भौगोलिक दायरे और सुसमाचार का उपदेश देने के तरीकों और साधनों के संबंध में विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं। साथ ही, परमेश्वर के घर में सुसमाचार का उपदेश देने के लिए जरूरी परमेश्वर के वचनों की सभी अलग-अलग किताबों, फिल्मों और वीडियो, और विविध कार्यक्रमों के संबंध में कार्य-व्यवस्थाओं में भी विशिष्ट कथन हैं, और यहाँ तक कि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं की विभिन्न प्रकार की आम धारणाओं और अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के संबंध में भी विशिष्ट कथन हैं। कुछ कथन विशिष्ट रूप से लिखित रूप में प्रस्तुत नहीं भी हो सकते हैं, लेकिन उनमें से कई कथन शाब्दिक और मौखिक संगति में मौजूद हैं। सुसमाचार कार्य हमेशा प्रगति कर रहा है और जारी है, और इस कार्य के प्रगति करने के दौरान, परमेश्वर के घर ने लगातार उठने वाले और लगातार सामने आने वाले मुद्दों के संबंध में विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ और नियम बनाए हैं, और इसने सुसमाचार कार्यकर्ताओं, सुसमाचार उपयाजकों और सुसमाचार कार्य पर्यवेक्षकों को कुछ विशिष्ट अपेक्षाएँ और कार्य भी जारी किए हैं। वैसे तो इस बाद के चरण में परमेश्वर का घर सुसमाचार कार्य की व्यवस्थाओं के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहता है, लेकिन कलीसिया में सत्य के इस पहलू पर बहुत बार संगति की जाती है। विशेष रूप से, जब विदेशों में सुसमाचार फैलना शुरू हुआ, उसके बाद परमेश्वर के घर ने अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद कार्य के लिए विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ कीं। विभिन्न विदेशी भाषाओं से परिचित अनुवादक और सुसमाचार कार्यकर्ता इस तरह के कार्य में सहयोग करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं, और परमेश्वर के घर ने सुसमाचार कार्य में सहयोग करने के लिए इस तरह के कई मानव संसाधनों का निवेश किया है, और यह परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुरूप है। संक्षेप में, ऊपरवाला सुसमाचार फैलाने के कार्य का हमेशा व्यक्तिगत रूप से मार्गदर्शन, पूछताछ, अनुवर्ती कार्रवाई और पर्यवेक्षण करता रहता है। तो, कार्य की इस मद की बात आने पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कौन-सी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए? सुसमाचार कार्य के लिए पर्यवेक्षक होने का अर्थ यह नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते, कार्य पर कोई ध्यान नहीं दे सकते, इसके बारे में पूछताछ नहीं कर सकते, और वे इसे बस अनदेखा कर सकते हैं, यह सोच सकते हैं कि “कार्य अपने आप जैसे भी बढ़ सकता है उसे बढ़ने दो। वैसे भी, इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। मैं कलीसियाई जीवन और विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के लिए जिम्मेदार हूँ। अगर सुसमाचार कार्य में कोई समस्या है तो यह मेरा मामला नहीं है।” क्या यह ठीक है? (नहीं।) यह तुम्हारा अपने कर्तव्य में लापरवाह होना है। परमेश्वर के घर के समस्त कार्य में से कार्य की जिस सबसे महत्वपूर्ण मद पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ध्यान केंद्रित करना चाहिए, वह सुसमाचार कार्य है। हो सकता है कि तुम्हें कार्य की इस मद के लिए सीधे जिम्मेदार नहीं बनाया गया हो, लेकिन तुम्हें इस बारे में पूछताछ करनी चाहिए कि यह कितना विकसित हो रहा है और इसकी प्रगति की स्थिति क्या है—तुम्हें इन चीजों पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए, इनके बारे में जानना चाहिए और इन्हें समझना चाहिए। विशेष रूप से कुछ महत्वपूर्ण कर्मियों जैसे कि सुसमाचार टीमों में सुसमाचार प्रचारक और सिंचनकर्ता, साथ ही सुसमाचार कार्य के पर्यवेक्षक वगैरह के संबंध में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को हमेशा अपनी परिस्थितियों से ठीक समय पर निपटना चाहिए और अगर इन कर्मियों के साथ कोई समस्या आती है तो उन्हें उसका तुरंत समाधान करना चाहिए—यह कार्य सौंपे जाने के बाद उन्हें जिम्मेदारी लेने से इन्कार नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन सभी सुसमाचार प्रचारकों का नियमित रूप से निरीक्षण और निर्देशन करना चाहिए जो सुसमाचार फैलाने के कार्य से जुड़े हैं, जिसमें कलीसियाओं में मौजूद सुसमाचार प्रचारकों और प्रथम पंक्ति के ऑनलाइन सुसमाचार प्रचारकों के साथ-साथ हर टीम में सिंचनकर्ता भी शामिल हैं। लंबे समय से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा यह अपेक्षित रहा है कि सभी सुसमाचार प्रचारकों और सिंचनकर्ताओं को विशेष प्रशिक्षण से गुजरना चाहिए। विशेष प्रशिक्षण का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सुसमाचार प्रचारकों और सिंचनकर्ताओं को दर्शनों के सत्यों की स्पष्ट समझ हो और कि वे इन बातों को स्पष्ट रूप से समझा सकें। अगर दर्शनों के सत्य का कोई ऐसा पहलू है जिसके बारे में वे पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं तो उस पर बहुत बार संगति दी जानी चाहिए और सुसमाचार प्रचारकों और सिंचनकर्ताओं की समझ जितनी ज्यादा विस्तृत होगी, उतना ही बेहतर होगा। परमेश्वर के घर में इसके लिए कार्य-व्यवस्थाएँ हैं, है ना? (हाँ, हैं।) सुसमाचार फैलाने का कार्य, कार्य की एक विशिष्ट और जटिल मद है, जिसमें कई अलग-अलग कार्य शामिल हैं। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर कार्य अच्छी तरह से किया जाए और उस पर बारीकी से अनुवर्ती कार्रवाई की जाए; यह परमेश्वर का आदेश है। हर कार्य अच्छी तरह से किया जाना चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हर कार्य के परिणामों में लगातार सुधार होता रहे—सिर्फ यही परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। दूसरे सभी प्रकार के पेशेवर कार्य, जैसे कि फिल्म निर्माण, पाठ-आधारित कार्य, संगीत, कला और अनुवाद, सुसमाचार कार्य को सहारा देने और उसका सहयोग करने के लिए मौजूद हैं, और सुसमाचार कार्य पूरे कार्य का अग्रिम पंक्ति का कार्य है। इसलिए, जो लोग विभिन्न कर्तव्य करते हैं, उन्हें अपना कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए और परमेश्वर द्वारा अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने चाहिए। इस तरह, सुसमाचार फैलाने के कार्य में उनका हिस्सा होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये दूसरे प्रकार के सभी पेशेवर कार्य सुसमाचार फैलाने की सेवा में मौजूद हैं, और ये सारा कार्य सुसमाचार फैलाने के कार्य पर केंद्रित होने चाहिए और उसके लिए कभी न खत्म होने वाली आपूर्ति प्रदान करनी चाहिए। आज, सुसमाचार का उपदेश देने के लिए जरूरी समस्त सामग्री, फिल्में और विभिन्न वीडियो पर्दे के पीछे परमेश्वर के कई चुने हुए लोगों के प्रयासों से बनाए जाते हैं। ये लोग पर्दे के पीछे जो कुछ भी करते हैं, वह सुसमाचार फैलाने के कार्य को मजबूत सहारा प्रदान करता है। पहले, परमेश्वर के घर में अलग-अलग तरह के फिल्म कार्य नहीं होते थे, इनमें बहुत गाने नहीं होते थे, और ना ही इनमें बहुत सारे अनुभवजन्य गवाही वाले वीडियो होते थे। यह सिर्फ लगातार संगति प्रदान करने वाले सुसमाचार कार्यकर्ताओं पर निर्भर था। सुसमाचार कार्यकर्ता तब तक बोलते रहते थे जब तक उनका मुँह सूख नहीं जाता था और जरूरी नहीं था कि उन्हें कोई महत्वपूर्ण परिणाम दिखाई दे, और एक व्यक्ति प्राप्त करना भी कठिन होता था। कलीसिया द्वारा सभी प्रकार के वीडियो बनाए जाने के बाद, सुसमाचार टीमों का कार्य अपेक्षाकृत हल्का हो गया, और पहले की तुलना में काफी आसान हो गया, और कार्य कुशलता में वृद्धि हुई। कुछ लोगों की सोच जिद्दी और रूढ़िवादी होती है, और जब तुम उन्हें सुसमाचार का उपदेश देते हो, तो तुम सत्य पर चाहे कैसे भी संगति क्यों ना करो, यह कारगर नहीं होता है, और वे अपनी धारणाएँ बनाए रखते हैं और इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं—तब तुम क्या करते हो? तुम उन्हें सुसमाचार गवाही पर एक या दो फिल्में दिखाते हो, और उनकी धारणाओं में परिवर्तन आता है, और वे सच्चे मार्ग के बारे में अच्छा महसूस करना शुरू कर देते हैं। जब वे फिर से तलाश करने आते हैं तब उनके दिलों में कोई बड़ी बाधा या रुकावट नहीं रहती है, और जब तुम उनके साथ फिर से सत्य पर संगति करते हो तो वे इसे आसानी से स्वीकार कर पाते हैं। यही कारण है कि जब तुम संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं को परमेश्वर के घर द्वारा बनाई गई फिल्में दिखाते हो या उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाते हो या उन्हें अनुभवजन्य गवाही वीडियो दिखाते हो तो परिणाम वाकई स्पष्ट होते हैं—ऐसा करना तुम्हारे द्वारा उनसे बहुत से शब्द कहने से ज्यादा प्रभावी होता है। चाहे कोई भी व्यक्ति सच्चे मार्ग की तलाश और जाँच कर रहा हो, पहले उसे कुछ फिल्में देखने के लिए कहो और फिर उसे परमेश्वर के और ज्यादा वचन पढ़ने के लिए कहो, जिससे उसके लिए मार्ग तैयार हो जाए। इसके बाद उसकी धारणाएँ हल करने के लिए उसके साथ सत्य पर संगति करो। इससे चीजें और ज्यादा सुचारू रूप से चलती हैं। आजकल जो लोग सच्चे मार्ग की जाँच कर रहे हैं, वे पहले से ही इंटरनेट पर परमेश्वर के घर द्वारा बनाई कई फिल्में और गवाही वीडियो देख चुके होते हैं और विशेष रूप से वे परमेश्वर के कई वचन पढ़ चुके होते हैं; तलाश और जाँच करने के लिए आने से पहले उनमें सच्चे मार्ग के बारे में पहले से ही एक अच्छा एहसास होता है और वे मूल रूप से पहले से ही पहचान चुके होते हैं कि यही सच्चा मार्ग है। क्या तुम लोगों को इसमें एक चीज का पता लगा है? ये फिल्में, परमेश्वर के वचनों के पाठ के ये वीडियो, ये अनुभवजन्य गवाही वीडियो, भजन वीडियो, वगैरह जो परमेश्वर के घर द्वारा बनाए जाते हैं, परमेश्वर की गवाही देने में बहुत ही प्रभावी होते हैं! संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं के साथ संगति और वाद-विवाद करने में बहुत सारा समय बर्बाद करने की कोई जरूरत नहीं है; एक बार जब वे ये वीडियो देख लेते हैं तो वे सच्चा मार्ग स्वीकार करने में समर्थ हो जाते हैं। इससे सुसमाचार का उपदेश देने वाले लोगों का बहुत समय बच जाता है और यह दर्शाता है कि सुसमाचार का उपदेश देने के लिए सारा अतिरिक्त सहयोग बहुत ही शक्तिशाली है! सुसमाचार का उपदेश देने के लिए विभिन्न प्रकार के संसाधनों की भरमार है! कई संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता जब परमेश्वर के कार्य की जाँच करने के लिए ऑनलाइन जाते हैं तो वे हैरान रह जाते हैं, क्योंकि परमेश्वर के घर की वेबसाइट पर बहुत कुछ मौजूद है और सामग्री की भरमार है! परमेश्वर के वचन भरपूर हैं, सभी शैली की फिल्मों और वीडियो की भरमार है, और जब अनुभवजन्य गवाहियों की बात आती है तो तुम्हें जो भी चीजें चाहिए उनकी भरमार है और सब कुछ मौजूद है। यह सही मायने में पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन का परिणाम है! यह सब कुछ वाकई परमेश्वर के कार्य से निकला है। चाहे बड़ा लाल अजगर और धार्मिक दुनिया कितनी भी अफवाहें फैलाएँ और इसे बदनाम करें, इससे कुछ हासिल नहीं होगा। जो भी हो, परमेश्वर के घर के कार्य की सभी मदों द्वारा प्राप्त परिणाम और प्राप्त फायदे सभी के देखने के लिए स्पष्ट हैं और वे परमेश्वर के वचनों द्वारा प्राप्त तथ्य हैं।

राज्य का सुसमाचार फैलाने के कार्य में, परमेश्वर के घर के कार्य की सभी मदें एक बहुत ही विधिपूर्वक तरीके से व्यवस्थित की जाती हैं और एक क्रमबद्ध तरीके से आगे बढ़ती हैं। सुसमाचार फैलाने का कार्य, कार्य की एक महत्वपूर्ण, दीर्घकालिक और श्रमसाध्य मद है। इसलिए, जो लोग सुसमाचार का कार्य करते हैं, चाहे वे पर्यवेक्षक हों या आम सुसमाचार कार्यकर्ता, उन्हें अपने दिलों में इस कार्य के महत्व की पुष्टि करनी चाहिए। हालाँकि तुम लोग सुसमाचार की अग्रिम पंक्ति में कार्य कर रहे हो और अपने कर्तव्य कर रहे हो, लेकिन तुम लोगों के पीछे, यानी पर्दे के पीछे, कई भाई-बहन विभिन्न प्रकार के अतिरिक्त सहयोग कार्य कर रहे हैं, और वे ऐसी शक्ति हैं, जो सुसमाचार फैलाने के कार्य को सहारा देती है। इससे मेरा क्या आशय है? परमेश्वर के घर का सारा कार्य सुसमाचार फैलाने पर केंद्रित है, और परमेश्वर के सभी चुने हुए लोगों द्वारा निर्वहन किए जाने वाले कर्तव्य सुसमाचार फैलाने की सेवा में हैं। कर्तव्य करने वाले हर भाई-बहन का सुसमाचार कार्य में एक हिस्सा होता है, और कार्य की हर मद सुसमाचार कार्य से पास से और घनिष्ठता से जुड़ी होती है। संक्षेप में, कार्य की हर मद, जिसमें खुद सुसमाचार कार्य भी शामिल है, एक कर्तव्य है जिसे परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए अच्छी तरह से किया जाना चाहिए, कार्य की हर मद सबसे महत्वपूर्ण कार्य से पास से जुड़ी होती है, जो कि परमेश्वर के बारे में गवाही देना है। यह पूरी तरह से सटीक है। इसलिए, परमेश्वर का घर सुसमाचार फैलाने के कार्य को कार्य की सभी मदों की सूची में सबसे ऊपर रखता है और यह परमेश्वर के घर के कार्य की सभी विभिन्न मदों में सर्वप्रथम है—यह पूरी तरह से उचित है। यह कार्य की एक प्रमुख, श्रमसाध्य और दीर्घकालिक मद है और यह कार्य अच्छी तरह से करने और यह लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार होने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से हर किसी में, परमेश्वर का अनुसरण करने वाले हर व्यक्ति में, आंतरिक बल, धैर्य और पर्याप्त आस्था होनी चाहिए। चाहे तुम 10 वर्ष, 20 वर्ष या 30 वर्ष तक लगातार प्रयास करते रहो, तुम्हें हमेशा परमेश्वर के प्रति वफादार रहना चाहिए, अपना जीवन और अपना जीवनकाल सुसमाचार फैलाने के कार्य को समर्पित कर देना चाहिए और अंत तक परमेश्वर के प्रति वफादार रहना चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है जिसे उठाने के लिए परमेश्वर का अनुसरण करने वाला हर व्यक्ति कर्तव्यबद्ध है, यह हर किसी का कर्तव्य है, और यह वह आदेश भी है जिसे परमेश्वर हर किसी को सौंपता है।

मेरी इस संगति के जरिए, क्या तुम सभी के दिलों में उत्साह जगा है, और क्या तुमने सुसमाचार कार्य को महत्वपूर्ण मानना शुरू कर दिया है? इससे पहले कुछ लोगों ने कहा है, “मुझे कोई तकनीकी पेशा समझ नहीं आता है, मुझे अभिनय करना नहीं आता है और मैं अभिनेता नहीं बन सकता, जब शब्दों का उपयोग करने की बात आती है तो मेरे पास ठोस नींव नहीं है, इसलिए मुझे लेख लिखना नहीं आता है, मुझे संगीत समझ नहीं आता है और कला के बारे में तो मेरी जानकारी और भी कम है। क्योंकि मैं किसी भी चीज में अच्छा नहीं हूँ इसलिए मुझे सुसमाचार टीम में नियुक्त किया गया है। क्या सुसमाचार टीमें परमेश्वर के घर में भुला दी गई पिछली दराज के समान नहीं है? और चूँकि मुझे एक भुला दी गई पिछली दराज में भेज दिया गया है तो क्या अब भी मुझे उद्धार पाने की कोई उम्मीद है?” क्या यह ऐसा ही है? अगर तुम इस परिस्थिति को वाकई इस तरीके से समझते हो तो तुमने परमेश्वर को गलत समझा है : सुसमाचार का उपदेश देना हर व्यक्ति की परम जिम्मेदारी है। अगर तुम किसी भी चीज में अच्छे नहीं हो और तुम्हें कोई भी तकनीकी पेशा समझ नहीं आता है और तुम सिर्फ सुसमाचार का उपदेश दे सकते हो तो तुम्हें सुसमाचार टीम में अपना कर्तव्य करने के लिए व्यवस्थित किया जाएगा। यह तुम्हारा आखिरी मौका है और इसे यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि एक सामग्री के रूप में तुम्हारी बर्बादी ना हो और तुम्हारा यथासंभव उपयोग किया जा सके ताकि एक मनुष्य के रूप में तुम अपना कार्य अधिकतम सीमा तक करो। तुम किसी भी चीज में अच्छे नहीं हो और तुम जो कुछ भी करते हो उसमें मंदबुद्धि हो, लेकिन तुम सुसमाचार का उपदेश देने का कर्तव्य अच्छी तरह से करने में समर्थ हो और यहाँ तक कि अगर तुम्हें सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं की खोज करने के लिए भी कहा जाता है तो तुम इसे व्यावहारिक तरीके से कर पाते हो और संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ताओं को सुसमाचार प्रचारकों के पास भेज पाते हो। साथ ही, तुम धीरे-धीरे परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर के कार्य और परमेश्वर के इरादों के बारे में उपदेश देना और लोगों को परमेश्वर के सामने लाना सीख सकते हो। क्या यही तुम्हारा कर्तव्य नहीं है? दूसरे लोग पाठ आधारित कार्य, फिल्म निर्माण कार्य और दूसरी तरह के कार्यों में शामिल होकर कुछ परिणाम उत्पन्न करते हैं लेकिन तुम्हें ये चीजें करनी नहीं आती है और तुममें कोई विशेष प्रतिभा या खूबी नहीं है, फिर भी तुम अपनी शक्ति सुसमाचार कार्य को समर्पित करते हो, तुम अपना सर्वस्व लगा देते हो और अपना कर्तव्य पूरा करते हो, और तुम परमेश्वर द्वारा तुम्हें दिए गए आदेश की जिम्मेदारी उठाते हो, क्या ये अच्छे कर्म नहीं हैं? ये भी अच्छे कर्म हैं और परमेश्वर उन्हें याद रखेगा। यह इन वचनों को पूरा करता है : लोगों द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों में महानता या नीचता का कोई भेद नहीं होता है; सिर्फ यह चीज मायने रखती है कि क्या तुम अपने कर्तव्य में वफादार हो और क्या तुम इसे मानक स्तर के तरीके से करते हो। परमेश्वर सभी के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करता है; चूँकि तुम कुछ नहीं कर पाते हो, इसलिए तुमसे सुसमाचार का उपदेश देने के लिए कहा जाता है—यह इसलिए किया जाता है ताकि तुम अपना अंतिम संभव कार्य उन हालातों में कर सको जिनमें तुम कोई दूसरा कर्तव्य स्वीकार करने में समर्थ नहीं हो। इसके जरिए तुम्हें एक अवसर और उम्मीद की एक किरण दी जा रही है; तुम्हें तुम्हारा कर्तव्य करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा रहा है। परमेश्वर के पास अब भी तुम्हारे लिए एक आदेश है और वह तुम्हारे खिलाफ पक्षपाती नहीं है। इसलिए सुसमाचार टीमों में नियुक्त किए गए लोगों को भुला दी गई पिछली दराज में नहीं भेजा जा रहा है और ना ही उनका त्याग किया जा रहा है बल्कि वे एक अलग जगह अपना कर्तव्य कर रहे हैं। सुसमाचार कार्य के लिए कार्य-व्यवस्थाओं पर संगति करके, क्या अब तुम लोग सुसमाचार कार्य को अच्छी नजर से देखते हो और अब तुम्हें इसके बारे में कोई गलतफहमी नहीं है? (हाँ।) तो क्या तुम इसके बारे में आत्ममुग्ध महसूस करने वाले हो? लोग चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों ना करें, परमेश्वर की उनसे अपेक्षाएँ नहीं बदलती हैं : परमेश्वर उनकी वफादारी और ईमानदारी चाहता है। अगर तुम कहते हो, “मैं लोगों की नजरों से दूर रहता हूँ, मैं आत्ममुग्ध महसूस नहीं करूँगा, मैं बस वही करता हूँ जो परमेश्वर मुझसे करने के लिए कहता है,” लेकिन तुममें कोई वफादारी, कोई ईमानदारी नहीं है तो यह स्वीकार्य नहीं होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम सुसमाचार कार्य को कैसा समझते हो, जो भी हो, अगर तुममें वफादारी और ईमानदारी है तो तुम्हारा अपने कर्तव्य का निर्वहन मानक स्तर का होगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम सुसमाचार का उपदेश देने के कर्तव्य को कितना अच्छा मानते हो या इसके प्रति तुम्हारा रवैया कितना सकारात्मक है, अगर तुम कष्ट नहीं सह सकते हो और तुममें कोई सहनशक्ति और कोई वफादारी नहीं है तो वह भी बिल्कुल स्वीकार्य नहीं होगा। इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तुम्हें कहाँ रखा गया है, तुम किस समय में हो या किस जगह हो, तुम किन लोगों के संपर्क में आते हो और तुम क्या कर्तव्य करते हो। परमेश्वर हमेशा तुम्हें देखेगा और तुम्हारे दिल की गहराइयों की जाँच करेगा। ऐसा मत सोचो कि चूँकि तुम सुसमाचार टीम के सदस्य हो इसलिए परमेश्वर तुम पर ध्यान नहीं देता है या परमेश्वर तुम्हें देख नहीं पाता है, इसलिए तुम जो चाहे कर सकते हो। और ऐसा मत सोचो कि अगर तुम्हें किसी सुसमाचार टीम में नियुक्त किया जाता है तो अब तुम्हारे पास बचाए जाने की कोई उम्मीद नहीं है और फिर इसे नकारात्मक रूप से संभालने मत लगो। सोचने के ये दोनों तरीके ही गलत हैं। तुम्हें चाहे कहीं भी रखा गया हो या कोई भी कर्तव्य करने के लिए व्यवस्थित किया गया हो, तुम्हें यही करना चाहिए और तुम्हें इसे लगन और जिम्मेदारी से करना चाहिए। परमेश्वर की तुमसे अपेक्षाएँ नहीं बदलती हैं और इसलिए परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति तुम्हारा समर्पण भी नहीं बदलना चाहिए। सुसमाचार कार्यकर्ताओं का रुतबा वही है जो दूसरे कर्तव्य करने वाले लोगों का है; किसी व्यक्ति का मूल्य उसके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्य से नहीं मापा जाता है, बल्कि इस बात से मापा जाता है कि क्या वह सत्य का अनुसरण करता है और क्या उसके पास सत्य वास्तविकता है। मैं सुसमाचार कार्य, कार्य की इस बड़ी और विशिष्ट मद के बारे में बस इतनी ही संगति करूँगा।

IV. विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य

मद चार, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य। इसमें फिल्म निर्माण, पाठ आधारित कार्य, संगीत, कला, अनुवाद वगैरह शामिल हैं। कुछ लोग कहते हैं, “हम पोशाकें बनाने वाले भी फिल्म निर्माण कार्य में शामिल हैं। क्या पोशाकें बनाना एक तरह का कार्य माना जाता है?” पोशाकें बनाना फिल्म निर्माण और संगीत के कार्य के प्रकार में शामिल है; यह एक तरह का सहायता कार्य है जो इस प्रकार के कार्य में सहयोग करता है। हर चरण में, परमेश्वर के घर में इस तरह के पेशेवर कार्यों के लिए विशिष्ट अपेक्षाओं से संबंधित विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ होती हैं। कुछ लिखित रूप में संप्रेषित की जाती हैं और कुछ सभाओं में संगति के जरिए मौखिक रूप से संप्रेषित की जाती हैं। उन्हें चाहे कैसे भी संप्रेषित क्यों ना किया जाए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनके लिए जिम्मेदारी उठानी चाहिए, इस कार्य की मद के लिए परमेश्वर के घर द्वारा जारी की गई विशिष्ट अपेक्षाएँ दर्ज करनी चाहिए और ये टिप्पणियाँ सुव्यवस्थित करनी चाहिए, और फिर उन पर ठोस संगति प्रदान करनी चाहिए और उनके विशिष्ट कार्यान्वयन में शामिल होना चाहिए। यह भी कार्य की एक बड़ी मद है और यह सुसमाचार कार्य के बाद आने वाली कार्य की दूसरी विशिष्ट मद है। कार्य की इस विशिष्ट मद के संबंध में परमेश्वर का घर विभिन्न पेशों में शामिल सभी कर्मियों से यह अपेक्षा करता है कि वे अपने कर्तव्यों से संबंधित पेशेवर ज्ञान का निरंतर अध्ययन करते रहें, साथ ही यह पता लगाने के लिए जानकारी की तलाश करते रहें कि परमेश्वर के घर के कार्य के लिए कौन-सी चीजें उपयोगी हैं। साथ ही, परमेश्वर का घर सत्य सिद्धांतों पर लगातार संगति कर रहा है और विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के लिए ठोस योजनाएँ प्रदान कर रहा है। कभी-कभी इस प्रकार के कार्यों के बारे में पर्यवेक्षकों और टीम के सदस्यों के साथ इकट्ठे संगति की जाती है और कभी-कभी उनके बारे में सिर्फ कार्य की संबंधित मद के लिए जिम्मेदार अगुआओं, कार्यकर्ताओं और पर्यवेक्षकों के साथ ही संगति की जाती हैं। उन्हें संप्रेषित और उन पर संगति चाहे लिखित रूप में की जाए या सभाओं के जरिए, किसी भी मामले में इस प्रकार के कार्यों को लगातार सुधारा और मानकीकृत किया जा रहा है और सुसमाचार कार्य की अपेक्षाओं के अनुसार लगातार विशिष्ट व्यवस्थाएँ की जा रही हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि परमेश्वर का घर एक अपेक्षाकृत नए विषय पर फिल्म बनाता है और फिल्म को काफी पेशेवर तरीके से फिल्माया जाता है। फिल्म को ऑनलाइन अपलोड करने के बाद इसे बहुत ऊँची क्लिक दर प्राप्त होती है। ऐसे में, परमेश्वर का घर प्रतिक्रियाओं और सुसमाचार कार्य की अपेक्षाओं के आधार पर इस प्रकार के कार्य के लिए विशिष्ट अपेक्षाएँ बनाता है। संक्षेप में, कार्य की इस मद को लगातार संक्षेप में प्रस्तुत किया और सुधारा जा रहा है और यह लगातार बढ़ भी रही है।

विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के लिए परमेश्वर के घर की व्यवस्थाएँ लोगों से ज्यादा अध्ययन करने की और सीखने के लिए शिक्षकों और विभिन्न प्रकार के संसाधन और शिक्षण सामग्री ढूँढने की अपेक्षा करता है। मिसाल के तौर पर, गाना गाने को ही ले लो; सीखने के लिए एक शिक्षक ढूँढना और उससे गायन का प्रशिक्षण प्रदान करवाना भी एक विशिष्ट कार्य-व्यवस्था है। यह व्यवस्था सुनने के बाद, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऊपरवाले की अपेक्षाओं के अनुसार इस कार्य के लिए एक उपयुक्त शिक्षक ढूँढना चाहिए और उसे हमारे गायकों को पढ़ाने के लिए रखना चाहिए, उसे गायन संगीत के सही ज्ञान का और गाने के सही तरीके का अध्ययन करने में गायकों की मदद करनी चाहिए, और यकीनन सीखने के लिए शास्त्रीय रचनाएँ ढूँढनी चाहिए। संगीत रचना और गायन मंडली के बारे में हमेशा पेशेवर ज्ञान का अध्ययन किया जाना चाहिए और परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं के लिए हमेशा लोगों से अपने कर्तव्यों से संबंधित पेशेवर ज्ञान का लगातार अध्ययन करने और कुछ उन्नत और व्यावहारिक विधियों का उपयोग करना सीखने वगैरह की अपेक्षा की जाती है। ऐसा नहीं है कि ये कार्य-व्यवस्थाएँ और अपेक्षाएँ सिर्फ एक बार जारी की जाती हैं और बात वहीं समाप्त हो जाती है, बल्कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इन कार्य-व्यवस्थाओं पर बार-बार संगति करें, पेशेवर कार्य में शामिल लोगों का मार्गदर्शन करें, उन्हें अध्ययन करना जारी रखने में सक्षम बनाएँ और सभी तरह के पेशेवर कार्य लगातार और प्रभावी तरीके से विकसित और गहन करने का प्रयास करें और रुके नहीं रहें। कुछ लोग सोचते हैं, “आज हमें कार्य-व्यवस्थाएँ जारी कर दी गई हैं, इसलिए हमें बस इस महीने उनका अभ्यास करने की जरूरत है और बात यहीं समाप्त हो जाती है। अगर भविष्य में ऊपरवाला इसके बारे में कुछ नहीं कहता है तो शायद हमें उनका अभ्यास करते रहने की जरूरत नहीं है।” क्या मामला वाकई ऐसा है? (नहीं।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह से बिल्कुल नहीं सोचना चाहिए बल्कि उन्हें समय-समय पर पूछताछ करते रहना चाहिए और पूछना चाहिए, “इस पेशे की तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है? क्या तुम किसी कठिनाई का सामना कर रहे हो? क्या कोई ऐसी चीज है जिसका सिद्धांतों के साथ टकराव है या जो उनके खिलाफ जाती है? किसने अपनी पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है, कौन सबसे निपुण है और किसने इसे सबसे तेजी से सीख लिया है? इन सिद्धांतों का अध्ययन करने के बाद तुमने जो भी चीजें सीखी हैं, उसमें से किन चीजों के बारे में तुम्हें लगता है कि वे परमेश्वर के घर के कार्य के लिए उपयोग किए जाने के लिए उपयुक्त हैं?” इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सुसमाचार टीमों में विदेशी भाषाओं का अध्ययन करने वालों से प्रश्न पूछने चाहिए, जैसे कि, “तुम कितने वर्षों से यह विदेशी भाषा सीख रहे हो? हाल ही में तुम्हारा अध्ययन कैसा चल रहा है? तुम हर रोज कितनी बातचीतों में भाग ले पाते हो? क्या तुम सामान्य आध्यात्मिक शब्दों का अनुवाद कर सकते हो? क्या तुम सुसमाचार का उपदेश देने से संबंधित इन सत्यों को संप्रेषित करने के लिए इस विदेशी भाषा का उपयोग कर सकते हो? तुम फिलहाल बोलने में बेहतर हो या लिखने में? क्या तुम्हें सीखने में मदद पाने के लिए किसी शिक्षक की जरूरत है? क्या कोई और है जो विदेशी भाषाओं का अध्ययन करने के लिए ज्यादा उपयुक्त और निपुण है? क्या इस तरह के कर्मियों की संख्या में वृद्धि हुई है? क्या किसी को लगता है कि कोई भाषा सीखना बहुत ही परेशानी भरा और कठिन है, इसलिए वह इसे और नहीं सीखना चाहता है और बीच में ही छोड़ देना चाहता है और कोई दूसरा कर्तव्य करना चाहता है?” इस तरह के कार्य से संबंधित इन विशिष्ट मामलों के बारे में समय-समय पर पूछताछ करने और इनका पर्यवेक्षण करने की जरूरत है। चूँकि ऊपरवाले ने विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं, इसलिए पर्यवेक्षकों को अंत तक इन विशिष्ट कार्यों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। निष्क्रिय होकर ऊपरवाले द्वारा पूछताछ किए जाने की प्रतीक्षा मत करो; अगर ऊपरवाला छह महीने या एक वर्ष तक कोई पूछताछ नहीं करता है तो भी तुम्हें अपनी पूरी क्षमता के अनुसार सारा कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए और हर समय ऊपरवाले का निरीक्षण और निर्देशन स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए—यही सही मानसिकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कार्य-व्यवस्थाएँ जारी और संप्रेषित कर दी गई हैं और तुम कार्य के पर्यवेक्षक के रूप में इस पर अनुवर्ती कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार हो और इसलिए तुम्हें अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए। लेकिन अगर तुम अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करने में समर्थ नहीं हो तो तुम निकम्मे हो और तुम्हें बर्खास्त कर देना चाहिए और हटा देना चाहिए। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऊपरवाले से प्राप्त इन विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाओं या संगतियों पर विचार और संगति करनी चाहिए और फिर उन्हें कार्यान्वित करना चाहिए और परिस्थिति के अनुसार कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि हाल ही में उन्होंने किस प्रकार के कार्यों को नजरअंदाज किया है और किस कार्य की लंबे समय से जाँच नहीं की है और किन कार्यों में वे व्यक्तिगत रूप से बहुत अच्छे नहीं हैं और किन कार्यों के बारे में हाल ही में उन्होंने नहीं पूछा है और परिणामस्वरूप वे उनकी हाल की स्थिति के बारे में बेखबर हैं, और फिर जाकर उन्हें देखना चाहिए। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों के संबंध में परमेश्वर के घर में एक और विशिष्ट व्यवस्था है : यह अपेक्षा करती है कि प्रासंगिक प्रतिभाशाली व्यक्तियों का लगातार पता लगाना चाहिए, उन्हें विकसित किया जाना चाहिए और उन्हें पदोन्नत किया जाना चाहिए। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य-व्यवस्था प्राप्त होने पर उन्हें क्या करना चाहिए? उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या इस तरह का कार्य करने के लिए कोई उपयुक्त व्यक्ति है। अगर कुछ लोग इस तरह का कार्य करने के लिए उपयुक्त हैं लेकिन उन्हें तकनीकी पेशे की ज्यादा समझ नहीं है तो उन्हें जल्दी से विकसित किया जाना चाहिए और इसका अध्ययन करने और इसमें प्रशिक्षित होने के लिए व्यवस्थित किया जाना चाहिए। संक्षेप में, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य भी कार्य की एक महत्वपूर्ण मद हैं। इस कार्य में बहुत सारी मदें शामिल हैं और इसका दायरा भी बहुत ही बड़ा है और परमेश्वर के घर ने इसके लिए कई विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ की हैं। कार्य की इस मद के लिए जो अपेक्षित है, वह है लगातार अध्ययन करना, संक्षेप में प्रस्तुत करना और बढ़ाना, और लगातार मानकीकरण करने के लिए उपयुक्त सिद्धांत भी ढूँढे जाने चाहिए। इसके अलावा, ये कर्तव्य करने के लिए उपयुक्त प्रतिभाशाली व्यक्तियों को लगातार विकसित किया जाना चाहिए। विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों की इस बड़ी मद के लिए यह कार्य-व्यवस्था है और इसे समझना भी आसान है।

V. कलीसियाई जीवन

मद पाँच, कलीसियाई जीवन। परमेश्वर के घर ने कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री, कलीसियाई जीवन के प्रारूप और कलीसियाई जीवन जीने वाले लोगों की संख्या के संबंध में विशिष्ट व्यवस्थाएँ और अनुबंध बनाए हैं। विशेष हालातों और स्थितियों के अंतर्गत सभाओं के प्रारूप और कलीसियाई जीवन की सामग्री के संबंध में परमेश्वर के घर में अनुरूप कार्य-व्यवस्थाएँ भी हैं। इस प्रकार की कार्य-व्यवस्थाएँ प्रधान रूप से लिखित रूप में जारी की जाती हैं। विभिन्न देशों में, नए आए लोगों के कलीसियाई जीवन के लिए कार्य व्यवस्थाएँ—उनकी सभाओं का प्रारूप और वे कितनी बार होती हैं, और सभाओं के दौरान वे जो सामग्री खाते-पीते हैं वगैरह—कुछ विशेष हालातों को छोड़कर, मूल रूप से जातीय चीनी लोगों के कलीसियाई जीवन के लिए कार्य-व्यवस्थाओं से मिलती-जुलती हैं। मैंने अभी-अभी आपको कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य-व्यवस्थाओं के दायरे का एक संक्षिप्त विवरण दिया है—इसमें परमेश्वर के वचनों की सामग्री शामिल है जिन्हें खाया-पीया जाता है, और हाल के दिनों में सभाओं में सत्य पर संगति करने के लिए सामग्री, और सभाओं में संगति का प्रारूप शामिल है। मिसाल के तौर पर, सभाओं में संगति में किसी एक व्यक्ति को हावी होने की अनुमति नहीं देना, हर व्यक्ति को संगति करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कितना समय दिया जाता है, उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है और उन्हें कैसे संभालना है जो उबाऊ तरीके से बोलते हैं और अपनी बात अस्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं वगैरह—कार्य व्यवस्थाओं में कलीसियाई जीवन और सभाओं से संबंधित इन सभी विशिष्ट चीजों पर विशिष्ट कथन हैं। एक लिहाज से अगुआ और कार्यकर्ता इन कार्य-व्यवस्थाओं को जारी और संप्रेषित करने के लिए जिम्मेदार हैं, और दूसरे लिहाज से वे भाई-बहनों के साथ उन पर स्पष्ट रूप से संगति करने के लिए जिम्मेदार हैं जिससे कलीसिया के सभी सदस्य उन्हें समझ पाते हैं और उन्हें स्वीकार कर पाते हैं, जिसके बाद उन्हें कार्य-व्यवस्थाओं को सिर्फ सख्ती से क्रियान्वित करने और उनका पालन करने की जरूरत होती है। विशेष रूप से जो लोग अक्सर विषय से भटक जाते हैं, बाधाएँ उत्पन्न करते हैं, शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और सभाओं में बोलते समय नारे लगाते हैं, उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और कार्य-व्यवस्थाओं में इस तरह के विशेष हालातों के बारे में विशिष्ट अनुबंध हैं। कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य-व्यवस्थाएँ मुख्य रूप से सभाओं से जुड़ी सभी विभिन्न चीजों से संबंधित हैं, वे जटिल नहीं हैं, वे बहुत ही सरल हैं और व्यक्ति चाहे कोई भी कर्तव्य क्यों ना करे, उसे बस इन कार्य-व्यवस्थाओं में निहित सिद्धांतों का पालन करने की जरूरत है। मिसाल के तौर पर, सभाओं में सुसमाचार टीमों को सिर्फ कलीसियाई जीवन से संबंधित कार्य-व्यवस्थाओं के सिद्धांतों का पालन करने की जरूरत है—इनमें कुछ भी विशेष नहीं है। दूसरी टीमें दूसरे लोगों से सिर्फ अलग कार्य करती हैं, जब सभाओं, सत्य पर संगति करने, परमेश्वर के वचनों का प्रार्थना-पाठ करने और व्यक्तिगत अनुभवों पर संगति करने जैसी चीजों की बात आती है तो सब कुछ एक जैसा ही है—यह दायरा पार नहीं किया जाता है। उन्हें बस कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री, संगति जो रूप लेती है, और सभाओं के प्रारूप के संबंध में परमेश्वर के घर के मौजूदा अनुबंधों के अनुसार अभ्यास करने की जरूरत है। अगर परिस्थितियाँ अनुमति दें तो लोग व्यक्तिगत रूप से इकट्ठा हो सकते हैं, नहीं तो वे ऑनलाइन सभाएँ कर सकते हैं। यह एक बहुत ही सरल, स्पष्ट रूप से वर्णित मामला होना चाहिए। कुछ कलीसियाई सदस्य विभिन्न महाद्वीपों और देशों में फैले हुए हैं, जिनमें से कुछ यूरोप में हैं और कुछ मध्य पूर्व मे; इस तरह की स्थिति में ऑनलाइन सभाएँ जरूरी हैं। यह तय करना स्थानीय कलीसियाओं पर है कि वे किस समय और कितनी बार सभाएँ करते हैं; परमेश्वर का घर इस मामले में कोई विशेष अनुबंध नहीं बनाता है, और ना ही वह इसमें दखल देता है। परमेश्वर का घर इस मामले में दखल क्यों नहीं देता है? कलीसिया में कुछ लोग अपने कर्तव्य पूर्णकालिक रूप से नहीं करते हैं; उनके पास नौकरियाँ और परिवार हैं, उनके व्यक्तिगत हालात अलग-अलग हैं, साथ ही विभिन्न देशों में समय क्षेत्र भी अलग-अलग हैं, इसलिए उन्हें यह खुद तय करने की अनुमति दी जानी चाहिए कि वे सप्ताह में कितनी बार इकट्ठा होते हैं और हर सभा किस समय होती है। परमेश्वर का घर इस बारे में कोई विशेष नियम नहीं बनाता है, बल्कि सिर्फ एक सिद्धांत प्रदान करता है। परमेश्वर के घर ने इसके लिए दायरा निर्दिष्ट किया है कि नए विश्वासी हर सप्ताह कितनी बार इकट्ठा होते हैं और इसके बीच एक अंतर है कि अपना कर्तव्य करने वाले और अपना कर्तव्य नहीं करने वाले लोग सप्ताह में कितनी बार इकट्ठा होते हैं। क्या कोई ऐसी कार्य-व्यवस्था है जो यह अपेक्षा करती है कि नए विश्वासी सप्ताह में सात बार इकट्ठा हों? (नहीं।) तो, यह किस चीज पर आधारित है कि नए विश्वासियों को हर सप्ताह कितनी बार इकट्ठा होना चाहिए? (यह इस पर आधारित है कि नए विश्वासियों के पास कितना समय है।) सप्ताह में ज्यादा से ज्यादा दो या तीन बार और कम से कम एक बार इकट्ठा होना पूरी तरह से उचित है। कुछ लोग कहते हैं, “हमारे इलाके के लोग खेती में मंदी के मौसम में बहुत निठल्ले रहते हैं इसलिए हर कोई हर रोज इकट्ठा होना चाहता है—यहाँ तक कि हमें दिन में दो बार इकट्ठा होना भी ठीक लगेगा। हम वाकई इकट्ठा होना चाहते हैं।” नए विश्वासियों के दिल उत्साह से भरे होते हैं और वे हमेशा ज्यादा सत्य समझना चाहते हैं। अगर उनके पारिवारिक हालात अनुमति देते हैं तो अगर वे ज्यादा सभाओं में शामिल होने की बात करते हैं तो यह अच्छी चीज है जब तक कि यह उनके दैनिक जीवन को प्रभावित नहीं करती है। लोगों को हर सप्ताह कितनी बार इकट्ठा होना चाहिए, इसकी विशिष्ट संख्या हर क्षेत्र में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की पारिवारिक और कार्य-संबंधी स्थितियों के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए—परमेश्वर का घर इस मामले के संबंध में विशिष्ट नियम नहीं बनाता है। परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से जिनके पास ऐसा करने की परिस्थितियाँ हैं, वे ज्यादा इकट्ठा हो सकते हैं और फिर वे ज्यादा सत्य समझेंगे और जीवन विकास तेजी से प्राप्त करेंगे। यह अच्छी बात है। लेकिन, जिनके पास उपयुक्त परिस्थितियाँ नहीं हैं वे इस तरीके से इकट्ठा होने के लिए उपयुक्त नहीं होंगे और उनके लिए हर सप्ताह कम-से-कम एक या दो सभाओं में शामिल होना ठीक है। विभिन्न क्षेत्रों में कलीसियाएँ हर सप्ताह कितनी बार सभाएँ करती हैं, इसकी संख्या तय करना परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर है और किसी को भी इसमें दखल नहीं देना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि सभाएँ इसलिए की जाती हैं ताकि लोग सत्य समझ सकें, ये किसी दूसरे कारण से नहीं की जाती हैं। इसलिए हर कलीसिया कितनी बार सभाएँ करती है इसकी संख्या उसके विशिष्ट हालातों के अनुसार तय की जाती है। अगर परमेश्वर के चुने हुए लोग हर सप्ताह एक अतिरिक्त सभा में शामिल हो सकते हैं तो यह उनके जीवन विकास के लिए ज्यादा फायदेमंद है। अगर ऐसे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और ज्यादा सभाओं में शामिल नहीं होना चाहते हैं तो यह उन पर थोपा नहीं जाना चाहिए। विशेष रूप से, जो वेतनभोगी कर्मचारी थोड़े व्यस्त रहते हैं और जिनके पास ज्यादा सभाओं में शामिल होने का समय नहीं है, उनसे ऐसा करने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोग सभाओं में शामिल होने की स्थिति में हैं या नहीं हैं या वे कितनी बार इकट्ठा होते है, परमेश्वर का घर दखल नहीं देता है या कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अलग-अलग विश्वासियों के हालात और पृष्ठभूमियाँ अलग-अलग होती हैं और इसलिए उन्हें किसी भी दबाव में नहीं डाला जाना चाहिए। कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री के संबंध में, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं में इनके अनुरूप शर्तें हैं और कलीसिया में सभी स्तरों पर अगुआओं और भाई-बहनों में उनकी स्पष्ट समझ होने की अपेक्षा की जाती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझना चाहिए कि ऊपरवाले की कार्य-व्यवस्थाओं द्वारा कौन-से विशिष्ट कार्य और मामले पूरे किए जाने की अपेक्षा की जाती है और भाई-बहनों को यह देखने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पर्यवेक्षण भी करना चाहिए कि क्या वे इस कार्य का निर्वहन ठीक से कर रहे हैं। जब कलीसियाई जीवन के दौरान खाई-पी जाने वाली सामग्री और सभाओं से संबंधित उन कार्य-व्यवस्थाओं की बात आती है जिन्हें समझना चाहिए और जिनका पालन किया जाना चाहिए तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों के साथ एक आम सहमति पर पहुँचना चाहिए—भिन्नताओं की बिल्कुल भी अनुमति नहीं है। कलीसियाई जीवन कार्य से संबंधित कार्य-व्यवस्थाएँ बहुत सरल हैं, लोगों के लिए समझने में आसान हैं और अमूर्त नहीं हैं।

VI. संपत्ति प्रबंधन

मद छह, संपत्ति प्रबंधन। वैसे तो संपत्ति प्रबंधन के कार्य में सुसमाचार कार्य या विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्यों की तरह बार-बार कार्य-व्यवस्थाएँ जारी नहीं की जाती हैं, फिर भी परमेश्वर के घर में इसके लिए विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ हैं। संपत्ति प्रबंधन में क्या शामिल है? इसमें शामिल है कि संपत्तियाँ कैसे रखी जाती हैं, वे कहाँ रखी जाती हैं, उन्हें कौन प्रबंधित करता है, और जब खतरा या प्रतिकूल परिवेश, साथ ही इस तरह के दूसरे विशेष हालात उत्पन्न होते हैं तो उन्हें कैसे आवंटित, प्रबंधित और स्थानांतरित किया जाता है। दरअसल कार्य-व्यवस्थाओं में इन सभी चीजों से संबंधित अनुबंध निहित हैं और जब कार्य की इस मद की बात आती है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस प्रतीक्षा में नहीं रहना चाहिए कि ऊपरवाला सीधे आदेश देगा या कार्य-व्यवस्थाएँ जारी करेगा और सिर्फ तभी वे निष्क्रिय रूप से संपत्तियों का प्रबंधन करना शुरू करेंगे। अगर ऐसी कोई तत्काल कार्य-व्यवस्था नहीं है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं से संपत्तियों को एक विशिष्ट तरीके से संभालने की अपेक्षा करती है और विशेष परिस्थितियों में जब उन्हें यह नहीं पता होता है कि संपत्तियों को कैसे संभालना है और वे ऊपरवाले से समय पर प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करने में समर्थ नहीं होते हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए? सुरक्षा पहली प्राथमिकता है और परमेश्वर के घर की संपत्तियों की रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी है। जब परमेश्वर के घर द्वारा मुद्रित परमेश्वर के वचनों की किताबों, साथ ही सभी प्रकार की मशीनों, खाद्य पदार्थों, धन और इसी तरह की दूसरी संपत्तियों की बात आती है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन सभी को परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के अनुसार सुरक्षित जगहों पर रखना चाहिए और इन चीजों में नमी नहीं आने देनी चाहिए, फफूँद नहीं लगने देनी चाहिए या इन्हें कीड़ों द्वारा खाए जाने नहीं देना चाहिए, और उन्हें कुकर्मियों या बड़े लाल अजगर द्वारा जब्त किए जाने की अनुमति तो बिल्कुल नहीं देनी चाहिए। इसके अलावा, परमेश्वर के घर की इन संपत्तियों का अच्छी तरह से प्रबंधन करने के अलावा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सख्त गोपनीयता भी बनाई रखनी चाहिए; जिन लोगों का इन मामलों से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें समान रूप से इनके बारे में जानने नहीं देना चाहिए और जो लोग इनके बारे में जानते हैं, उन्हें बिल्कुल चुप रहना चाहिए और अविवेकपूर्ण तरीके से नहीं बोलना चाहिए। परमेश्वर के घर में कार्य की इस मद के संबंध में विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ हैं और उनमें से कुछ को लिखित रूप में जारी करना या प्रकट करना उचित नहीं है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता संपत्ति प्रबंधन का संचालन करने के लिए बेहतर तरीके और विधियाँ पेश करते है तो यकीनन, परमेश्वर के घर की संपत्तियों को हर नुकसान से बचाने के लिए उनका अच्छी तरह से प्रबंधन करने और उनकी रक्षा करने के सिद्धांत का पालन करने के दौरान, वे दूसरे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ इस मामले पर चर्चा कर सकते हैं और स्वतंत्र रूप से एक फैसला ले सकते हैं। यह कार्य की एक विशेष मद है, और जो लोग चुप नहीं रहते हैं, जिनमें जिम्मेदारी की भावना की कमी है, जिनके उद्देश्य अनुचित हैं, जिन्होंने सिर्फ अभी-अभी विश्वास रखना शुरू किया है और जिनकी आस्था की कोई नींव नहीं है, और जो हमेशा परमेश्वर के घर की संपत्तियों को लालच भरी नजर से देखते हैं, उन्हें एक समान रूप से इसके बारे में जानने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ये चीजें परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं में स्पष्ट रूप से नहीं बताई जा सकती हैं, लेकिन क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं और भरोसेमद संरक्षकों को इसकी जानकारी नहीं होनी चाहिए? (हाँ, होनी चाहिए।) यहाँ एक विशेष हालात है। मान लो कि एक नए चुने गए अगुआ को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए सिफ तीन वर्ष हुए हैं, वह अच्छी काबिलियत वाला है, बहुत उत्साही है और वह ऊपरी तौर पर ठीक व्यक्ति दिखता है, फिर भी यह पता नहीं है कि उसका चरित्र कैसा है, वह संपत्ति को कैसे देखता है या वह लालची है या नहीं है। ये चीजें अज्ञात और अनिश्चित हैं और लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास रखने वाले भाई-बहन इस व्यक्ति को अच्छी तरह से नहीं जानते हैं, वे इस व्यक्ति के हर पहलू को नहीं जानते हैं। ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? जब उसे कार्य सौंपने का समय आता है तो दूसरा सारा कार्य सौंप दिया जाता है—क्या संपत्ति का कार्य उसे सौंप देना चाहिए? (नहीं।) क्यों नहीं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं का मुख्य कार्य सिर्फ संपत्तियों का प्रबंधन करना नहीं है; संपत्तियाँ उनके कार्य का सिर्फ एक भाग हैं। अगर संपत्तियों का प्रबंधन करने के लिए वाकई कोई उपयुक्त व्यक्ति है और यह नया चुना गया अगुआ भरोसेमंद नहीं है, तो फिलहाल उसे यह कार्य नहीं सौंपना ही ठीक है, क्योंकि यह पता नहीं है कि वह लंबे समय तक परमेश्वर में विश्वास रखेगा या नहीं या क्या वह दृढ़ रह पाएगा। पहले, किसी को कलीसियाई अगुआ चुना ही गया था कि अपना पद संभालने के बाद उसने सबसे पहली चीज यह की कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों से उन बैंक खातों की खाता संख्याएँ और पासवर्ड माँग लिए जिनमें चढ़ावा रखा जा रहा था। उसने पूछा कि ये बैंक खाता संख्याएँ और पासवर्ड किसके पास हैं और उसने तुरंत यह कार्य उसे सौंप देने के लिए उस व्यक्ति पर दबाव डाला। इस स्थिति में क्या यह कार्य उसे सौंपा जाना चाहिए था? वह किसी भी दूसरे कार्य के बारे में चिंतित या परेशान नहीं था लेकिन वह इस मामले के बारे में विशेष रूप से गंभीर और चिंतित था—क्या वह एक भरोसेमंद व्यक्ति था? यह मत सोचो कि कोई व्यक्ति भरोसेमंद है क्योंकि वह एक अगुआ या कार्यकर्ता है। दरअसल, सिर्फ वही संरक्षक भरोसेमंद होते हैं जो सही मायने में सिद्धांतों के अनुसार चुने जाते हैं—वे परमेश्वर के घर की संपत्तियों की रक्षा करने के लिए अपना जीवन न्योछावर करने में समर्थ होते हैं। ऐसे लोग सबसे भरोसेमंद होते हैं। तो क्या सभी अगुआ और कार्यकर्ता ऐसा करने में सक्षम हैं? ऐसा जरूरी नहीं है। पहले, एक क्षेत्रीय अगुआ को बड़े लाल अजगर ने पकड़ लिया था और उसने कलीसिया की सभी संपत्तियाँ बेच दी थीं जिसके कारण एक बहुत बड़ी मात्रा में संपत्तियों का नुकसान हुआ था। अगर उसे यह नहीं पता होता कि कलीसिया की संपत्तियाँ कहाँ हैं तो वह यह खुलासा नहीं कर पाता, भले ही पीट-पीटकर उसकी जान ही क्यों ना ले ली जाती, और तब क्या परमेश्वर के घर की संपत्तियों को नुकसान होता? जब वह यातना और भयानक पिटाई बर्दाश्त नहीं कर पाया तो उसने सब कुछ उगल दिया, बिल्कुल इसलिए क्योंकि वह बहुत ज्यादा जानता था, जिससे यह धन बड़े लाल अजगर के हाथों में चला गया। अगर उसे यह जानने नहीं दिया गया होता कि ये संपत्तियाँ कहाँ हैं और अगर उनकी रक्षा करने वाला व्यक्ति भरोसेमंद होता तो क्या परमेश्वर के घर के धन को नुकसान हुआ होता और उसे बड़े लाल अजगर द्वारा जबरन जब्त कर लिया जाता? नहीं, ऐसा नहीं हुआ होता। यह एक गंभीर सबक है। इसलिए, इस कार्य की व्यवस्था की बात आने पर सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि सुरक्षा सर्वोपरि है, नुकसानों को बिल्कुल न्यूनतम रखा जाना चाहिए, और कार्य उसी तरीके से किया जाना चाहिए जो सुरक्षित हो। परमेश्वर के घर की संपत्तियों का प्रबंधन करने के लिए कोई ऐसा व्यक्ति ढूँढो जो उनका प्रबंधन करने में वफादारी दिखाए—यही कार्य करने का सबसे भरोसेमंद तरीका है। वैसे यह व्यक्ति कुछ और नहीं कर सकता है, वह वफादार होगा और जब धन की रक्षा करने की बात आती है तो वह यकीनन सक्षम होगा, इसलिए संपत्तियों की रक्षा करने के लिए इस व्यक्ति का उपयोग करना सही है। क्योंकि कार्य की यह मद एकल कार्य है, इसलिए इसके लिए व्यवस्थाएँ बहुत ही सरल हैं : संपत्तियों की रक्षा करने के लिए सही लोग ढूँढो और उन्हें रखने के लिए एक सुरक्षित जगह ढूँढो। इसके अलावा, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं में परमेश्वर के घर की संपत्तियों के आवंटन और खर्च के संबंध में भी विशिष्ट अनुबंध हैं; धन जरूरी खर्चों पर खर्च किया जा सकता है लेकिन अनावश्यक खर्चों पर नहीं। एक और चीज है, जो यह है कि संपत्तियों से संबंधित खर्चों के लिए एक सख्त विनियामक प्रणाली है और परमेश्वर के घर में विभिन्न प्रक्रियाओं और कार्यप्रणालियों के लिए विशिष्ट अनुबंध हैं, जिनके लिए कई व्यक्तियों के हस्ताक्षरों की जरूरत होती है, वगैरह। प्रबंधन करना, सुरक्षा करना, खर्च करना और लेखा-जोखा रखना—इन सभी चीजों के लिए विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ हैं।

VII. स्वच्छता कार्य

मद सात, स्वच्छता कार्य। परमेश्वर का घर कार्य की इस मद के लिए भी लगातार विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ बना रहा है। एक लिहाज से कार्य व्यवस्थाएँ परमेश्वर के घर के कार्य की जरूरतों के आधार पर बनाई जाती हैं और दूसरे लिहाज से वे अलग-अलग प्रकार के लोगों के वर्गीकरण और परिभाषा के अनुसार हरेक को उनके अपने प्रकार के अनुरूप अलग करने, साथ ही अलग-अलग प्रकार के लोगों का खुलासा होने के बाद उनकी अभिव्यक्तियों के आधार पर भी बनाई जाती हैं। परमेश्वर के घर में सभी तरह के मसीह-विरोधियों, कुकर्मियों और छद्म-विश्वासियों को संभालने के लिए सिद्धांत हैं; कुछ को कर्तव्य करने वालों की श्रेणियों से दूर कर दिया जाता है, कुछ को पूर्णकालिक कर्तव्य वाली कलीसियाओं से दूर कर दिया जाता है और अंशकालिक कर्तव्य वाली कलीसियाओं या साधारण कलीसियाओं में भेज दिया जाता है, कुछ को साधारण कलीसियाओं से दूर कर दिया जाता है और बी समूहों में भेज दिया जाता है, और कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें सीधे बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाता है। परमेश्वर का घर कलीसिया की स्वच्छता के कार्य के लिए बार-बार कार्य-व्यवस्थाएँ बना रहा है, और इसमें उन विभिन्न प्रकार के लोगों से संबंधित विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ भी हैं जो दूर किए जाने की शर्तें पूरी करते हैं। अपने कर्तव्य करने में लोगों के रवैयों और अपने कर्तव्य करते समय उनके द्वारा किए गए अपराधों, और साथ ही विभिन्न प्रकार के लोगों में प्रकट होने वाले भ्रष्ट सार के आधार पर, परमेश्वर का घर अंत में इन लोगों को संभालने के लिए विशिष्ट योजनाएँ बनाता है। इसलिए, परमेश्वर के घर द्वारा विभिन्न प्रकार के कुकर्मियों, छद्म विश्वासियों और मसीह-विरोधियों को संभालना पूरी तरह से परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार किया जाता है और यह पूरी तरह से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप किया जाता है। जब इन कार्य-व्यवस्थाओं की बात आती है तो एक लिहाज से सत्य सिद्धांतों पर संगति करना जरूरी है ताकि लोग उन्हें समझें और विभिन्न प्रकार के लोगों को पहचानना सीखें, जबकि दूसरे लिहाज से कलीसियाओं को ये कार्य-व्यवस्थाएँ जारी करना जरूरी है ताकि उन पर संगति की जा सके और उन्हें कार्यान्वित किया जा सके। जो भी हो, कलीसिया की स्वच्छता का कार्य जल्द से जल्द कार्यान्वित किया जाना चाहिए और इसमें कभी भी बिल्कुल बाधा नहीं डालनी चाहिए। यह तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि कलीसिया में एक भी कुकर्मी बचा है। ऐसा नहीं है कि एक बार जब ऊपरवाला यह आदेश देते हुए कि कलीसिया को स्वच्छ किया जाए, एक कार्य-व्यवस्था जारी कर देता है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सिर्फ एक समयावधि के लिए ही सफाई का कार्य करने की जरूरत होती है, और अगर सफाई करने के कुछ समय बाद फिर से यह पता चलता है कि कुकर्मी व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं, लेकिन ऊपरवाले ने इसके बारे में कोई कार्य-व्यवस्था नहीं की है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन कुकर्मियों के बारे में परेशान होने या उन्हें दूर करने की जरूरत नहीं है—यह बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं होगा। कलीसिया का स्वच्छता कार्य एक सुव्यवस्थित तरीके से जारी रहना चाहिए; जब तक ऐसे लोग हैं जिन्हें बहिष्कृत या निष्कासित किया जाना चाहिए तब तक सफाई कार्य जारी रहना चाहिए। निष्क्रिय होकर ऊपरवाले द्वारा आदेश दिए जाने या उच्च-स्तर के अगुआओं द्वारा उन्हें तुम्हें संप्रेषित किए जाने की प्रतीक्षा मत करो और निष्क्रिय होकर ज्यादा भाई-बहनों द्वारा किसी की रिपोर्ट किए जाने की प्रतीक्षा मत करो। जैसे ही परमेश्वर के चुने हुए लोग किसी को उजागर करते हैं और उसकी रिपोर्ट करते हैं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उस मामले की जाँच करना और उसे संभालना शुरू कर देना चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता रिपोर्ट की चिट्ठी को रोक लेते हैं और मामले को नहीं संभालते हैं, तो उनकी जाँच की जानी चाहिए और उन्हें संभाला जाना चाहिए, और अगर वे किसी कुकर्मी को बचाते हुए पाए जाते हैं तो उस कुकर्मी के साथ-साथ उन्हें भी कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए। कोई भी अगुआ या कार्यकर्ता जो कलीसिया के स्वच्छता कार्य का निर्वहन नहीं करता है, वह एक झूठा अगुआ या कार्यकर्ता है और उसे तुरंत बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। यहाँ तक कि अगर वह कुकर्मियों को बचाता है और उनकी रक्षा भी करता है तो उसे एक मसीह-विरोधी के रूप में वर्णित किया जा सकता है और कलीसिया से बहिष्कृत और निष्कासित किया जा सकता है। ये वही विशिष्ट अनुबंध हैं जो परमेश्वर के घर ने कलीसिया के स्वच्छता कार्य के संबंध में बनाए हैं। कलीसिया का स्वच्छता कार्य एक अत्यंत जरूरी प्राथमिकता है और इसका परम महत्व है। मुझे बताओ, क्या कलीसिया का स्वच्छता कार्य कलीसिया को शुद्ध करने के लिए नहीं किया जाता है? अगर कलीसिया को शुद्ध कर दिया गया है—यानी, अगर कोई कुकर्मी इसमें व्यवधान उत्पन्न नहीं कर रहा है और इसके सदस्यों में कोई छद्म-विश्वासी नहीं मिला हुआ है—तो फिर यह एक सच्ची कलीसिया होगी और यह कलीसियाई जीवन के लिए सर्वोत्तम परिणाम भी देखेगी। क्या यह मसीह के राज्य को साकार करने की तरफ एक और बड़ा कदम नहीं होगा? इस तरह की शुद्ध कलीसिया राज्य का सुसमाचार फैलाने के लिए सबसे फायदेमंद होगी, क्योंकि हर किसी के पास सत्य वास्तविकता होगी, हर कोई परमेश्वर की गवाही देने में समर्थ होगा और परमेश्वर के लोगों के रूप में पूर्ण किया जाएगा और अब वहाँ व्यवधान उत्पन्न करने वाला कोई कुकर्मी नहीं होगा। स्वाभाविक रूप से इस तरह की कलीसिया सबसे धन्य होगी। इसलिए कलीसिया की स्वच्छता कार्य की सबसे सार्थक मद है और यह पूरी तरह से उस परिवेश को और अधिक शांतिपूर्ण और कुकर्मियों के व्यवधानों से मुक्त बनाने के लिए की जाती है जिसमें परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने कर्तव्य करते हैं। इसके अलावा, परमेश्वर का घर आवारा और निकम्मे लोगों का समर्थन नहीं करता है और यह उन परजीवियों का समर्थन नहीं करता है जो सुख-सुविधाओं में लिप्त रहते हैं और जी भरकर रोटियाँ खाते हैं। वे सभी लोग जो बिल्कुल भी कर्तव्य नहीं करते हैं और अपने कर्तव्य करने वाले दूसरे लोगों को परेशान और प्रभावित करते हैं और वे सभी लोग जो गैर-जिम्मेदार टिप्पणियाँ करते हैं, टाँग अड़ाते हैं और कलीसिया में अपने उचित कार्य पर ध्यान नहीं देते हैं, उन्हें भी बहिष्कृत या निष्कासित किया जाना चाहिए। अब सभी अलग-अलग प्रकार के लोगों को पूरी तरह से प्रकट किया जा चुका है, कलीसिया का स्वच्छता कार्य अनिवार्य है और इसे पूरी तरह से और अच्छी तरह से किया जाना चाहिए। ये सभी कुकर्मी, मसीह-विरोधी, छद्म-विश्वासी, निकम्मे और परजीवी लोग जिन्हें उजागर किया गया है, वे परमेश्वर द्वारा ठुकराए जाने वाले लोग हैं और वे बचाए नहीं जा सकते हैं। अगर कलीसिया स्वच्छता कार्य नहीं करेगी, तो इससे सुसमाचार फैलाने का कार्य प्रभावित होगा। इसलिए, कलीसिया को साफ करने का कार्य, कार्य की एक महत्वपूर्ण मद है जिसे फिलहाल तुरंत अच्छी तरह से करने की जरूरत है। सिर्फ वही अगुआ और कार्यकर्ता विकसित किए जाने के लिए योग्य हैं जो कलीसिया का स्वच्छता कार्य अच्छी तरह से कर सकते हैं और अगुआ और कार्यकर्ता बने रह सकते हैं। कोई भी अगुआ या कार्यकर्ता जो कलीसिया के स्वच्छता कार्य में बाधा डालता है, वह एक बाधा और रुकावट है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसे उजागर करना चाहिए और उसकी रिपोर्ट करनी चाहिए। सभी स्तरों पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले कलीसियाई कार्य में आने वाली सभी बाधाओं और रुकावटों को पूरी तरह से दूर करना चाहिए और उनका समाधान करना चाहिए—यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है। सिर्फ यही कलीसियाई कार्य की विभिन्न मदों की सुचारू प्रगति के लिए और कलीसिया द्वारा परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए अनुकूल है ताकि परमेश्वर सारी महिमा प्राप्त कर सके।

VIII. बाहरी मामले

मद आठ, बाहरी मामले। बाहरी मामलों का कार्य, कार्य की एक बड़ी मद नहीं है और ना ही यह कोई छोटी मद है और बाहरी मामलों के संबंध में परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं में कई सिद्धांत निहित हैं। इनमें से एक है स्थानीय कानूनों और विशिष्ट स्थानीय विनियमों के बारे में जानना। यानी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कलीसिया किसी निश्चित जगह क्या करती है, तुम्हें पहले स्थानीय कानूनों के बारे में जानना चाहिए—यह एक सिद्धांत है। दूसरा सिद्धांत यह है कि जब तुम बाहरी मामलों से जुड़ी किसी ऐसी समस्या का सामना करते हो जो तुम्हें समझ नहीं आती है या जिसके बारे में तुम स्पष्ट नहीं हो, तो तुम्हें किसी वकील और संबंधित कानूनी पेशेवरों से सलाह लेनी चाहिए और बिना जानकारी के अकेले कोई फैसला नहीं लेना चाहिए; तुम्हें अलग-अलग देशों में अलग-अलग राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार मामले संभालने के लिए विशिष्ट योजनाएँ बनानी चाहिए। तो, ये योजनाएँ कैसे बनाई जाती हैं? तुम्हें वकील की सलाह माननी चाहिए और वकील को फैसले लेने देना चाहिए—अकेले मनमानी राय मत बनाओ या मनमाने फैसले मत लो। हर देश की राष्ट्रीय परिस्थितियाँ, नीतियाँ, कानून और विनियम अलग-अलग होते हैं, इसलिए अपनी कल्पना के आधार पर कार्य मत करो। मिसाल के तौर पर, मान लो कि तुम चीन में सड़क पर किसी को लुटते हुए देखते हो। चीन में कानून में यह प्रावधान है कि कोई भी राहगीर जो इस घटना का गवाह है वह बहादुरी से दखल दे सकता है, पहले चोर को पकड़ सकता है और फिर उसे पुलिस के हवाले कर सकता है। अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम एक अप्रत्याशित हीरो बन जाओगे, तुम्हें कोई कानूनी जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ेगी और तुम्हारी तारीफ की जानी चाहिए। चीन में यही राष्ट्रीय स्थिति और व्यवस्था है और यह चीन में एक तरह की पारंपरिक संस्कृति है—चीनी लोग “पारंपरिक सद्गुण” के सुखद नाम से इसका वर्णन करते हैं। लेकिन पश्चिम में, विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में, अगर तुम किसी चोर को चोरी करते हुए देखकर उसे तुरंत पकड़ लेते हो और पुलिस के आने की प्रतीक्षा करते हो तो यह गलत है, यह कानून तोड़ना है। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम एक आम नागरिक हो, कानून लागू करने वाले अधिकारी नहीं हो और तुम्हें किसी को भी गिरफ्तार करने का कोई अधिकार नहीं है; किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार सिर्फ पुलिस को है। जब तुम किसी चोर को चोरी करते हुए देखते हो तो तुम पुलिस को इसकी सूचना दे सकते हो, लेकिन तुम खुद चोर को गिरफ्तार नहीं कर सकते। अगर तुम यादृच्छिकता से किसी चोर को गिरफ्तार करते हो तो तुम गैर कानूनी तरीके से कार्य कर रहे हो—पश्चिम में यही कानून है। पश्चिम में चीनी लोगों के “पारंपरिक सद्गुण” का अभ्यास करना उचित नहीं है; पश्चिम के अपने कानून हैं। अगर तुम पश्चिम में किसी को सड़क पर गिरते हुए देखते हो तो कानून क्या कहता है? तुम्हें उसके पास जाना चाहिए और पूछना चाहिए, “क्या तुम ठीक हो? क्या तुम्हें सहायता की जरूरत है?” अगर वह व्यक्ति कहता है कि उसे किसी सहायता की जरूरत नहीं है तो तुम जा सकते हो। अगर तुम किसी को गिरते हुए देखते हो लेकिन तुम उससे यह नहीं पूछते हो कि क्या वह ठीक है या उसकी जाँच नहीं करते हो और बस चलते रहते हो तो तुम कानून तोड़ रहे हो। अगर तुम चीन में ऐसी स्थिति का सामना करते हो तो हो सकता है यह कोई धोखाधड़ी हो, और इसे अनदेखा करने पर तुम्हें कुछ नहीं होगा। अगर तुम पूछते हो, “क्या तुम ठीक हो? क्या तुम्हें सहायता की जरूरत है?” तो यह तुम्हारे लिए परेशानी वाली बात हो सकती है, वह व्यक्ति तुम्हें ठग सकता है और फिर तुम दोबारा कोई अच्छा जीवन जीने के बारे में तो भूल ही जाओ। ये दोनों मामले तुम्हें क्या बताते हैं? अलग-अलग देशों और अलग-अलग जातियों में शिक्षा पूरी तरह से अलग-अलग होती है, ठीक वैसे ही जैसे सामाजिक परिवेश और सामाजिक व्यवस्थाएँ, और, यकीनन, कानून और विनियम अलग-अलग होते हैं। जब बाहरी मामलों के कार्य की बात आती है तो एक लिहाज से यह कार्य करने वाले लोगों को कलीसियाई कार्य से संबंधित कानूनों, विनियमों और प्रावधानों को सटीकता से समझने की जरूरत होती है और दूसरे लिहाज से उन्हें ऐसे कुछ सामान्य जीवन ज्ञान या कानूनी प्रावधानों का भी प्रसार करना चाहिए जिन्हें भाई-बहनों को जानने की जरूरत है। इसलिए, परमेश्वर के घर में कार्य की इस मद के संबंध में कार्य-व्यवस्थाएँ हैं जो इसका निर्वहन करने वालों से यह अपेक्षा करती हैं कि वे कोई भी कार्य करने से पहले हमेशा संबंधित कानून और सरकारी विनियम देख लें। विशेष रूप से जब ऐसे मुद्दों का सामना करना पड़ता है जिन्हें हल करना कठिन है तो उन्हें किसी वकील से सलाह लेनी चाहिए और आँख मूंदकर अपनी राय नहीं बनानी चाहिए या चीनी लोगों की सोच और तर्क के अनुसार समाधान तैयार नहीं करने चाहिए—यह कार्य करने का एक बेवकूफी भरा और अनभिज्ञ तरीका है। एक बार जब तुम ये चीजें समझ जाते हो तो तुम्हें बाहरी मामलों के कार्य का महत्व, यह क्या परिणाम प्राप्त करने के लिए है, और साथ ही ये कार्य-व्यवस्थाएँ बनाना परमेश्वर के घर के लिए कितना जरूरी है इसका महत्व पता होना चाहिए। कार्य की इस मद का दायरा बहुत बड़ा नहीं है, इसलिए ज्यादातर हालातों में इतना ही पर्याप्त है कि इस कार्य में शामिल कर्मियों में इसकी कार्य-व्यवस्थाओं की स्पष्ट समझ हो। अगर यह कुछ ऐसा है जिसे भाई-बहनों को जानने की जरूरत है तो इसे समझने और उस पर पकड़ बनाने में उनकी सहायता करो। बाहरी मामलों का कार्य बहुत महत्वपूर्ण भी है, क्योंकि अगर भाई-बहन अपने विदेश में रहने और कार्य करने से संबंधित कानूनों और विनियमों को नहीं समझते हैं तो इससे काम नहीं बनेगा। परमेश्वर के घर में इस संबंध में विशिष्ट कार्य व्यवस्थाएँ हैं कि इस लिहाज से क्या अपेक्षित है और इसे सिर्फ कार्य-व्यवस्थाओं के आधार पर कार्यान्वित करना जरूरी है। अगर विशेष हालात उत्पन्न होते हैं तो परमेश्वर का घर कुछ आपातकालीन समाधान तैयार करेगा। अगर कोई कार्य बाहरी मामलों के कार्य से संबंधित है, तो तुम्हें बाहरी मामलों के कर्मियों से सलाह लेनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि परमेश्वर के घर में उस कार्य से संबंधित क्या विशिष्ट व्यवस्थाएँ हैं, अपनी कल्पना पर आँख मूंदकर भरोसा मत करो और बिना जानकारी के कार्रवाई मत करो। इस तरह से कार्य करने से परेशानी उत्पन्न हो सकती है और इसके जो परिणाम होंगे उनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। बाहरी मामलों का कार्य भी एकल कार्य है, यह जटिल नहीं है, और तुम्हें कार्य-व्यवस्थाओं में सबसे विशिष्ट कार्य से संबंधित मामले ढूँढ निकालने में समर्थ होना चाहिए। जब लोग पहली बार विदेश में बाहरी मामलों का कार्य करना शुरू करते हैं तो यह कुछ जटिल लग सकता है लेकिन कुछ समय तक इसे करने के बाद उन्हें मिसालें और तरीके मिल जाते हैं और तब यह उतना जटिल नहीं लगता है। शुरू में, विदेश जाने वाले चीनी लोगों की कूड़ा फैलाने, रात को बहुत देर से सोने, सुबह बहुत जल्दी उठने, उनके कुत्तों के भौंकने से लोगों को परेशानी होने, बालकनी पर कपड़े टाँगने और गलत तरीके से पार्किंग करने के लिए रिपोर्ट की जाती थी—उनकी कई चीजों के लिए रिपोर्ट की जाती थी। आखिरकार, उनकी कई बार रिपोर्ट की गई, पुलिस हमेशा उन्हें मार्गदर्शन देने के लिए उनके घर आती थी और सिर्फ बहुत समय बीतने के बाद ही उन्हें यह एहसास हुआ कि वे चीन में नहीं बल्कि विदेश में हैं। धीरे-धीरे, वे सतर्क हो गए, उन्हें कानून की कुछ जानकारी होने लगी और उन्हें जीवन, कार्य, गाड़ी चलाने वगैरह से संबंधित कुछ नियम समझ में आने लगे। जब चीनी लोग पहली बार विदेश गए तो वे इस बारे में सिर्फ कुछ बुनियादी शिष्टाचार ही समझते थे कि उन्हें कैसे व्यवहार करना है और उन्हें ज्यादातर कानूनी मामलों के बारे में कोई सामान्य ज्ञान नहीं था; वे जंगली पशुओं की तरह थे, उन्हें कानून की कोई जानकारी नहीं थी। कुछ वर्षों बाद, उन्होंने कुछ ज्ञान प्राप्त किया और उन्हें कुछ नियम समझ में आ गए जैसे कि उन्हें पालतू बना दिया गया हो और उनमें थोड़ा सुधार हुआ।

IX. कलीसियाई कल्याण

मद नौ, कलीसियाई कल्याण। इससे पहले परमेश्वर के घर ने कलीसियाई कल्याण के संबंध में कार्य-व्यवस्थाएँ बनाईं, और अगर पूर्णकालिक रूप से अपने कर्तव्य करने वाले लोगों या उनके परिवारों को गुजारा करने में सहायता की जरूरत हो तो कलीसियाई अगुआओं को यह मुद्दा हल करना चाहिए। इन कार्य-व्यवस्थाओं में विशिष्ट कार्यान्वयन योजनाएँ और सिद्धांत पाए जा सकते हैं और परमेश्वर के घर ने विशिष्ट कथनों और अनुबंधों का प्रावधान किया है। जिन भाई-बहनों को परमेश्वर में उनके विश्वास के कारण जेल भेज दिया गया है, जिससे उनके परिवारों के दैनिक जीवन कष्टमय हो गए हैं; जो माता-पिता लंबे समय से घर से दूर अपने कर्तव्य कर रहे हैं और उनके पास अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए कोई नहीं है; और जिन बीमार भाई-बहनों ने कई वर्षों तक अपने कर्तव्य किए हैं, उनके संबंध में कलीसिया को इन और ऐसी दूसरी कठिनाइयों के लिए सहायता और समाधान प्रदान करना चाहिए। यहाँ कार्य के इस मद से संबंधित एक विशेष हालात है और वह यह है कि जब कुछ परिवार अपने घरों में भाई-बहनों की मेजबानी करने की शर्तें पूरी करते हैं लेकिन उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं होता है—तो भाई-बहनों की मेजबानी के लिए उनके खर्चे कैसे संभाले जाने चाहिए? यह कलीसियाई कल्याण के कार्य के अंतर्गत आता है। इसके संबंध में अनुबंध कार्य-व्यवस्थाओं में पाए जा सकते हैं, या अगुआ और कार्यकर्ता मेजबानी कार्य पूरा करने के लिए स्थानीय परिस्थिति के अनुसार कलीसियाई संसाधनों को उचित रूप से आवंटित कर सकते हैं—कलीसिया में इन सभी चीजों के लिए विशिष्ट अनुबंध हैं। अगर इन विशिष्ट अनुबंधों के दायरे के बाहर कुछ विशेष हालात उत्पन्न होते हैं तो अगुआ और कार्यकर्ता संगति कर सकते हैं और इस मामले पर चर्चा कर सकते हैं और उस इलाके के सामान्य जीवन स्तरों के आधार पर ठोस, उचित व्यवस्थाएँ कर सकते हैं। वैसे तो यह कार्य की कोई बड़े पैमाने वाली मद नहीं है और ना ही यह कोई बहुत महत्वपूर्ण कार्य है लेकिन यह कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आता है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है। अगर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसे गुजारा करने के लिए सहारे या आर्थिक मदद की जरूरत हो तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसे लोग ढूँढने का विशेष प्रयास करने की कोई जरूरत नहीं है जिन्हें इसकी जरूरत हो। अगर ऐसे लोग मौजूद हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनसे कतराना नहीं चाहिए और उन्हें अनदेखा तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए, चुपचाप एक तरफ खड़े नहीं रहना चाहिए या यह ढोंग नहीं करना चाहिए कि वे उन्हें नजर नहीं आ रहे हैं। उन्हें सिद्धांतों के अनुसार कार्य करना चाहिए—यह उनकी जिम्मेदारी है।

X. आपातकालीन योजनाएँ

मद दस, आपातकालीन योजनाएँ। आपातकालीन योजनाएँ परमेश्वर के घर के किसी भी कार्य में उत्पन्न होने वाले विशेष मुद्दों का समाधान करती हैं। ऐसी समस्याएँ जिन्हें तुरंत हल करने की जरूरत है, चाहे सुसमाचार कार्य में हों, या प्रशासनिक कार्य में, या पेशेवर कार्य में, या फिर चाहे मसीह-विरोधियों या झूठे अगुआओं से जुड़े किसी मामले को संभाला जा रहा हो, या ऐसी किसी विशेष परिस्थिति को पहचाना जा रहा हो जिसमें लोगों को गुमराह किया गया है, ये सब आपातकालीन योजनाओं की श्रेणी में आते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करता है या अगर कोई मसीह-विरोधी मनमानी और तानाशाही कर रहा है और अपना खुद का राज्य स्थापित करने का प्रयास कर रहा है वगैरह, तो जैसे ही परमेश्वर के घर को यह पता लगता है कि इनमें से किसी भी स्थिति के संबंध में विशिष्ट योजना के लिए एक कार्य-व्यवस्था बनाना उचित है तो वह इसके अनुरूप एक लिखित संप्रेषण तैयार करेगा। आपातकालीन योजनाएँ उस समय कलीसिया में घटित होने वाली कुछ आपातकालीन स्थितियों पर आधारित होती हैं और ऊपरवाला हालातों की गंभीरता के अनुसार विशिष्ट कार्य-व्यवस्थाएँ तैयार करता है और फिर उन्हें जारी और संप्रेषित करता है। यह विशिष्ट योजना कार्य की ऐसी किसी भी मद से संबंधित हो सकती है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए, जब तक कि यह ऊपरवाले द्वारा व्यवस्थित की जाती है और ऊपरवाला यह अपेक्षा करता है कि अगुआ और कार्यकर्ता इसे कार्यान्वित करेंगे तो फिर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसे ऊपरवाले की कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार जारी और कार्यान्वित करना चाहिए। उन्हें इन कार्य-व्यवस्थाओं के बारे में बेपरवाह नहीं होना चाहिए। जब ऊपरवाला इस तरह की कार्य-व्यवस्थाएँ तैयार करता है तो वे किसी भी प्रशासनिक कार्य या किसी विशिष्ट पेशेवर कार्य से कमतर नहीं होती हैं। वैसे तो ये कार्य-व्यवस्थाएँ सिर्फ अस्थायी होती हैं, फिर भी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन्हें नियमित कार्य-व्यवस्थाओं की तरह जारी, संप्रेषित और कार्यान्वित करना चाहिए और उन पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए और बाद में ऊपरवाले को एक विवरण और रिपोर्ट प्रदान करनी चाहिए—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिमम्मेदारी है। आपातकालीन योजनाएँ कार्य की किसी विशेष मद पर लक्षित नहीं होती हैं, यानी किसी भी समय ऊपरवाला सभी क्षेत्रों में सभी स्तरों के अगुआओं को कोई कार्य सौंप देगा, कुछ अपेक्षा करेगा, या कोई कार्य-व्यवस्था देगा, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह का कार्य अनदेखा नहीं करना चाहिए। चूँकि ये कार्य-व्यवस्थाएँ हैं और ये सभी स्तरों के और सभी क्षेत्रों के अगुआओं को जारी की जाती हैं, इसलिए ये ऐसे कार्य हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को चुपचाप एक तरफ खड़े नहीं रहना चाहिए या कार्य को दायरे के लिहाज से, या इस लिहाज से वर्गीकृत नहीं करना चाहिए कि यह कार्य उनकी जिम्मेदारी है या नहीं, या यह तय करने के लिए कि उन्हें समय पर कार्यान्वित करना है या नहीं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य-व्यवस्थाओं में ऊपरवाले के लहजे और तात्कालिकता पर अटकलें नहीं लगानी चाहिए। ऐसी चीजें नहीं होनी चाहिए, बल्कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य उसी तरह से करना चाहिए जैसे वे किसी भी नियमित कार्य को करते, और इसे एक महत्वपूर्ण कार्य और आदेश मानते हुए पूरा करना चाहिए—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। विशेष हालातों में आपातकालीन योजनाएँ होती हैं और यह एक ऐसा कार्य है जो विशेष संदर्भों में पूरा किया जाता है। जब कुछ विशिष्ट और विशेष चीजें होती हैं तो ऊपरवाला इन संदर्भों और घटनाओं का उपयोग अगुआओं और कार्यकर्ताओं या भाई-बहनों द्वारा इस अवसर का लाभ उठाए जाने के लिए करेगा ताकि वे ज्यादा व्यावहारिक तरीके से सत्य का उपयोग करके लोगों और चीजों को पहचानने लगें, लोगों और चीजों की असलियत पहचानने का तरीका सीख जाएँ और सत्य की ज्यादा समझ प्राप्त करें। ऐसा करने का उद्देश्य लोगों को झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को पहचानने में सक्षम बनाना है। इसके अलावा यह भाई-बहनों को उनके कलीसियाई जीवन के लिए एक शांत, उचित और अबाधित परिवेश पाने में सक्षम बनाने के लिए किया जाता है। दूसरे लिहाज से, यह लोगों को समय पर विभिन्न सबक सीखने और प्रशिक्षण प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए किया जाता है; इस तरीके से एक बार प्रशिक्षित होने के बाद लोग अपने जीवन में बहुत अच्छी प्रगति करेंगे। यह एक ऐसा तरीका है जिससे ऊपरवाला सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों को प्रशिक्षित करता है, विशेष रूप से उन भाई-बहनों को जो सत्य का अनुसरण करते हैं। इसमें कोई दुर्भावना नहीं है, ऊपरवाला लोगों को सता नहीं रहा है, या बिना बात का बतंगड़ नहीं बना रहा है। वैसे तो वे आपातकालीन योजनाएँ हैं जो अस्थायी कार्य-व्यवस्थाएँ हैं, फिर भी वे महत्वपूर्ण और मूल्यवान है, और मुझे उम्मीद है कि सभी स्तरों के अगुआ और कार्यकर्ता और भाई-बहन इसे समझ सकते हैं और उन्हें सही तरीके से संभाल सकते हैं।

हमने कार्य-व्यवस्थाओं की कुल 10 मदें सूचीबद्ध की हैं और अब मैं इन 10 मदों पर मूल रूप से संगति समाप्त कर चुका हूँ। मैंने उन पर बहुत विस्तार से संगति नहीं की है, लेकिन मैंने जो संगति की है वह तुम लोगों को यह समझने में सक्षम बनाने के लिए पर्याप्त है कि कार्य-व्यवस्थाएँ वास्तव में क्या हैं और परमेश्वर का घर कौन-सा विशिष्ट कार्य करता है। दूसरे लिहाज से, तुम्हें यह समझने में सक्षम बना दिया गया है कि परमेश्वर इन विशिष्ट मदों के जरिए कलीसिया में और उन लोगों के बीच वास्तव में क्या कर रहा है जिन्हें उसने चुना है। परमेश्वर के घर का कार्य किसी उद्यम या राजनीति या मानवाधिकारों में भाग लेना नहीं है और ना ही यह किसी व्यावसायिक गतिविधि में भाग लेना है; परमेश्वर के घर द्वारा कार्य की जो मदें की जाती हैं वे कार्य-व्यवस्थाओं में पाई जाती हैं। और इसलिए, कुछ सत्तारूढ़ राजनीतिक दल और सामाजिक संस्थाएँ हमेशा इस पर नजर रखे हुए हैं, शोध कर रही हैं और यह जाँच कर रही हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के साथ क्या चल रहा है और शायद इसकी जाँच-पड़ताल करके—परमेश्वर के घर के वीडियो और वेबसाइट देखकर—उन्होंने पुष्टि की है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया एक सच्ची आस्था है और यह किसी भी देश की राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया ने कई वर्षों से सीसीपी का उग्र उत्पीड़न और आक्रमण सहा है और फिर भी उसने सुसमाचार का उपदेश देना और परमेश्वर की गवाही देना जारी रखा है और उसने परमेश्वर के वचन, सत्य और सभी प्रकार के गवाही वीडियो ऑनलाइन अपलोड किए हैं जिससे मानव समाज को शानदार और बहुत सारे फायदे हुए हैं और यह पूरी तरह से प्रमाणित किया है कि परमेश्वर लगातार सत्य व्यक्त कर रहा है और अंत के दिनों में मानवजाति को बचा रहा है। वे लगातार शोध करते रहते हैं और उन्हें अपने शोध से क्या परिणाम मिलता है? क्या वे बुरी तरह से निराश नहीं होते हैं? उन्होंने इस बात पर भी विचार किया कि हमारी कलीसिया पर “पंथ” का लेबल लगाने से और कलीसिया को पार्टी-विरोधी और राज्य-विरोधी करार देने से उन्हें क्या फायदे मिल सकते हैं। लेकिन अब वे देखते हैं कि वे ऐसा नहीं कर सकते हैं—पिछले कुछ वर्षों में कलीसिया द्वारा जारी की गई कार्य-व्यवस्थाओं को देखते हुए, उनके पास कलीसिया पर ये लेबल लगाने का कोई तरीका नहीं है और उनका सारा शोध बेकार चला गया है। यह ठीक वैसा ही है जैसा पुराने दिनों में जब यहूदियों ने प्रभु यीशु का अध्ययन किया था। शास्त्रियों, फरीसियों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने प्रभु यीशु ने जो कहा और किया उसका अध्ययन किया और पाया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया जो कानून या राजनीति के खिलाफ हो, प्रभु यीशु ने जो कुछ भी कहा और किया वह सही था, सत्य था और पूरी तरह से पवित्रशास्त्रों के अनुरूप था, और अंत में वे निराश हो गए। अब धार्मिक दुनिया देखती है कि परमेश्वर का घर ज्यादा से ज्यादा फिल्में और अनुभवजन्य गवाही वीडियो बना रहा है और विशेष रूप से परमेश्वर के वचनों की किताबों और पाठों की संख्या बढ़ रही है, और इसलिए वे क्या सोचते हैं? अगर वे यह नहीं देख पाते हैं कि ये सभी चीजें परमेश्वर से आ रही हैं तो वे वास्तव में बहुत ही बेवकूफ हैं! परमेश्वर से जो चीज आती है उसे फलना-फूलना चाहिए—यह पवित्र आत्मा के कार्य का परिणाम है, और इसे कोई भी छिपा नहीं सकता है। परमेश्वर के वचन अब पूरी दुनिया में फैल चुके हैं और वह जो सत्य व्यक्त करता है वे सारी मानवजाति के सामने रखे जाते हैं; परमेश्वर का प्रकटन और कार्य शक्तिशाली रूप से आगे प्रवाहित हो रहा है, कोई भी राष्ट्र या शक्ति इसका विरोध नहीं कर सकती है। बड़े लाल अजगर को पहले ही पूरी तरह से शर्मिंदा और पराजित किया जा चुका है! धार्मिक दुनिया चाहे इसकी कैसे भी निंदा क्यों ना करे, वह परमेश्वर के कार्य का विरोध नहीं कर सकती है और अंत में, उसे सिर्फ इस ज्वार-भाटे के प्रवाह से ही हटाया और डुबोया जा सकता है।

अब मैं कार्य-व्यवस्थाओं की मदों पर संगति समाप्त कर चुका हूँ। मैंने जो संगति की है, क्या वह परमेश्वर के घर द्वारा किए गए सारे कार्य पर नहीं है? यह वही कार्य है जिसे तुम लोग अपनी आँखों से देखते हो, जिसे तुम अपने कानों से सुनते हो और जिसे तुम लोग व्यक्तिगत रूप से अनुभव करते हो और सराहते हो—इसमें कुछ भी गोपनीय नहीं है। बड़े लाल अजगर के पास पिछले कुछ वर्षों से कलीसिया की सभी कार्य-व्यवस्थाएँ हैं—उनके पास जो कार्य-व्यवस्थाएँ हैं वे बहुत सारी और व्यापक हैं। वह हर रोज उनका अध्ययन करता है और वह लगातार तब तक उनका अध्ययन करता रहता है जब तक कि अंत में वह इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचता है : “अगर ये लोग लगातार परमेश्वर के वचनों का उपदेश देते रहे और इस तरीके से परमेश्वर के कार्य की गवाही देते रहे तो यह बहुत ही बुरा होगा! इन सभी लोगों का विनाश कर देना चाहिए और अगर वे विदेश भाग जाएँ तो भी उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए” तो देखा तुमने, दुष्ट लोग आम भ्रष्ट लोगों जैसे नहीं होते हैं—वे कठिनाइयों के बावजूद अंत तक परमेश्वर का विरोध करेंगे। अगर आम भ्रष्ट लोग कलीसिया से गवाहियाँ देखते हैं तो वे उन्हें समझने में समर्थ होते हैं, उन्हें लगता है कि वे उचित हैं और वे किसी भी उत्पीड़न में शामिल नहीं होंगे। लेकिन शैतान और दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते हैं। जब वे तुम्हें परमेश्वर का अनुसरण करते हुए और परमेश्वर की गवाही देते हुए देखते हैं तो वे तुमसे नफरत करते हैं, वे तुम्हें मार डालना चाहते हैं और वे तुम्हें जीने की अनुमति नहीं देते हैं। अगर तुमने उनकी कही बात नहीं मानी और उनकी आराधना नहीं की तो वे कभी भी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगे और वे तुम्हें जीने नहीं देंगे। तुम जहाँ भी जाओगे, वे तुम्हें ढूँढ निकालेंगे और मार डालेंगे; अगर तुम धरती के छोर तक भी चले जाओ तो भी वे तुम्हें नहीं बख्शेंगे। बड़ा लाल अजगर यही करता है। यह शैतान की दुष्टता है और यह आम भ्रष्ट लोगों से अलग है। तुम्हें इस बिंदु पर स्पष्ट होना चाहिए।

कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित और कार्यान्वित करने का तरीका

I. कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित और कार्यान्वित करने का तरीका

कार्य-व्यवस्थाओं की ये 10 मदें उन सभी अलग-अलग कार्यों की सीमा और सामग्री हैं जो परमेश्वर कलीसिया में और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच करता है। इस कार्य की सामग्री और सीमा समझ लेने से परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह कार्य अच्छी तरह से करने में अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पर्यवेक्षण करने में मदद मिलती है। दूसरे लिहाज से, इससे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनकी जिम्मेदारियों का दायरा और उन्हें जो कार्य करना चाहिए और जो जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए उन्हें समझने में और “अगुआ और कार्यकर्ता” पदनाम की सटीक परिभाषा प्राप्त करने में मदद मिलती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की क्या जिम्मेदारियाँ हैं? उन्हें किसके जैसा जीवन जीना चाहिए? क्या उन्हें राज्य सरकार के अधिकारियों की तरह होना चाहिए? (नहीं।) “अगुआ और कार्यकर्ता” कोई आधिकारिक पद या उपाधि नहीं है। अगुआ और कार्यकर्ता क्या हैं, यह बात व्यक्ति को अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कर्तव्यों से और परमेश्वर द्वारा उन्हें सौंपे गए आदेश से और परमेश्वर द्वारा उनसे अपेक्षित मानकों से समझनी चाहिए। इस तरह से व्यक्ति को “अगुआ और कार्यकर्ता” के पदनाम की अपेक्षाकृत ठोस समझ होने लगेगी और उसके लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं की परिभाषा और स्पष्ट हो जाएगी। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कम-से-कम कौन-सी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए? जैसा मद नौ में बताया गया है, उन्हें परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार हर कार्य-व्यवस्था सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करनी चाहिए। कार्य-व्यवस्था चाहे किसी भी पहलू से संबंधित क्यों ना हो, जब तक इसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जरिए संप्रेषित किया जाता है, तब तक उन्हें इस कार्य-व्यवस्था की पूरी तरह से सटीक समझकर बिना किसी देरी के और बिना रुके कलीसियाओं को संप्रेषित कर देनी चाहिए। जहाँ तक उन लोगों का प्रश्न है जिन्हें कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित की जा रही हैं, अगर परमेश्वर के घर की यह अपेक्षा है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को संप्रेषित की जाएँ, जिसमें प्रचारक, कलीसियाई अगुआ और कलीसियाई उपयाजक स्तर के लोग भी शामिल हैं, तो उन्हें नीचे इस स्तर के लोगों तक संप्रेषित किया जाना चाहिए, और बस इतना ही; अगर कार्य-व्यवस्थाएँ हर भाई-बहन को संप्रेषित की जानी हैं तो फिर उन्हें परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के सख्त अनुपालन में हर भाई-बहन को संप्रेषित किया जाना चाहिए। अगर परिवेश के कारण कार्य-व्यवस्थाओं को लिखित रूप में संप्रेषित करना असुविधाजनक है और ऐसा करने से सुरक्षा जोखिम या और भी बड़ी परेशानियाँ आएँगी तो कार्य-व्यवस्थाओं की महत्वपूर्ण और मुख्य सामग्री मौखिक रूप से हर व्यक्ति को सटीक रूप से संप्रेषित की जानी चाहिए। तो, कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित मानी जाने के लिए इसे कैसे करना चाहिए? अगर कार्य-व्यवस्थाएँ लिखित रूप में संप्रेषित की जा रही हैं तो यह पुष्टि की जानी चाहिए कि सभी ने उन्हें प्राप्त कर लिया है, सभी को उनके बारे में मालूम है, और सभी उन्हें गंभीरता से ले रहे हैं; अगर वे मौखिक रूप से संप्रेषित की जा रही हैं तो उन्हें संप्रेषित किए जाने के बाद लोगों से बार-बार पूछा जाना चाहिए कि क्या वे उन्हें स्पष्ट रूप से समझते हैं और क्या वे उन्हें याद हैं और यहाँ तक कि उनसे कार्य-व्यवस्थाएँ वापस दोहराने के लिए भी कहा जा सकता है—सिर्फ इसी तरीके से यह माना जा सकता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सही मायने में संप्रेषित कर दी गई हैं। अगर लोग वापस दोहरा सकते हैं और स्पष्ट रूप से यह बता सकते हैं कि परमेश्वर के घर के अपेक्षित सिद्धांत क्या हैं और विशिष्ट सामग्री क्या है तो इससे यह प्रमाणित होता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ पहले से ही उनके दिमागों में संप्रेषित की जा चुकी हैं, उन्होंने उन्हें याद कर लिया है और वे उन्हें स्पष्ट रूप से समझते हैं। सिर्फ तभी यह माना जा सकता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सही मायने में संप्रेषित कर दी गई हैं। अगर कार्य-व्यवस्थाएँ लिखित रूप में संप्रेषित करने के लिए परिस्थितियाँ, परिवेश और इसी तरह के सभी दूसरे कारक उपयुक्त हैं तो उन्हें लिखित रूप में बिल्कुल संप्रेषित किया जाना चाहिए; अगर उन्हें लिखित रूप में संप्रेषित नहीं किया जा सकता है क्योंकि परिवेश इसकी अनुमति नहीं देता है और इसलिए उन्हें मौखिक रूप से संप्रेषित किया जाना चाहिए तो यह पुष्टि की जानी चाहिए कि मौखिक रूप से जो संप्रेषित किया जा रहा है वह कार्य-व्यवस्थाओं के समान है, वह विकृत नहीं है, और उसमें कोई व्यक्तिगत समझ नहीं जोड़ी गई है और मूल पाठ वर्णित किया जा रहा है—सिर्फ इसी तरह से यह माना जा सकता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ सही और सटीक रूप से संप्रेषित कर दी गई हैं। कार्य-व्यवस्थाएँ पूरी तरह से उनके विशिष्ट शब्दों के अनुसार संप्रेषित की जानी चाहिए; वे गैर-जिम्मेदार तरीके से या लोगों की व्यक्तिगत समझ और कल्पनाओं के आधार पर विकृत या बेतुकी व्याख्याओं के साथ संप्रेषित नहीं की जानी चाहिए। जब उन्हें सटीक रूप से संप्रेषित करने की बात आती है तो लोगों को कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित करने के लिए सख्ती का स्तर समझना चाहिए; यानी, उन्हें सटीक रूप से संप्रेषित किया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “क्या हमें उन्हें हूबहू संप्रेषित करना पड़ेगा?” नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं है। अचूकता की अपेक्षा उपकरणों से की जाती है; अगर लोग बस उन्हें सटीक रूप से संप्रेषित कर पाएँ तो वे बहुत अच्छा कर रहे होंगे। मिसाल के तौर पर, कलीसियाई जीवन के संबंध में बात करें तो, परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ परमेश्वर के चुने हुए लोगों से परमेश्वर को जानने के बारे में परमेश्वर के वचन खाने-पीने की अपेक्षा करती हैं—क्या इसे संप्रेषित करना आसान है? (हाँ।) कार्य-व्यवस्थाएँ लोगों को एक दायरा देती हैं और वे परमेश्वर के ये सभी प्रासंगिक वचन पढ़ सकते हैं। लेकिन, अगर कोई व्यक्ति कार्य-व्यवस्थाओं की गलत व्याख्या करता है, अपनी व्यक्तिगत समझ और धारणाएँ और कल्पनाएँ जोड़ता है और कुछ अतिरिक्त शब्द संप्रेषित करता है तो क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि वह कार्य-व्यवस्थाओं से हट गया है? क्या वह सटीक रूप से कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित कर रहा है? (नहीं।) वह अपने अतिरिक्त शब्दों के साथ कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित कर रहा है—यह सरासर बकवास है। व्यक्ति को ऊपरवाले से आने वाली हर कार्य-व्यवस्था बहुत बार पढ़नी चाहिए और उसे उसके सही अर्थ, यह कार्य-व्यवस्था जारी करने के महत्व और यह क्या परिणाम प्राप्त करने के लिए है इसके बारे में स्पष्ट होना चाहिए और फिर, ऊपरवाले द्वारा व्यवस्थित की गई कार्य की विशिष्ट मदों का अभ्यास करने के सही तरीके का पता लगाना चाहिए जिससे गलतियाँ करने से बचा जा सके। इन बातों की संगति करने और इन्हें समझ लेने के बाद कार्य-व्यवस्था को संप्रेषित करना पूरी तरह से सटीक होगा। देहाती इलाकों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले दूसरे सभी स्तरों के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित करनी चाहिए और अंत में उन्हें हर कलीसिया की हर टीम के पर्यवेक्षक को आगे भेज देना चाहिए। फिर परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं पर सभाओं में कई बार संगति की जानी चाहिए ताकि परमेश्वर के चुने हुए सभी लोग उन्हें समझ जाएँ और जान लें कि उन्हें कैसे अभ्यास में लाना है—सिर्फ यह परिणाम प्राप्त होने के बाद ही उन्हें संप्रेषित किया गया माना जा सकता है। कार्य-व्यवस्थाएँ परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित विधि और दायरे के अनुसार संप्रेषित की जानी चाहिए। यकीनन, संप्रेषित की गई सामग्री सटीक और त्रुटि रहित होनी चाहिए। तुम्हें लापरवाही से उसकी गलत व्याख्या नहीं करनी चाहिए और उसमें अपने विचार नहीं जोड़ने चाहिए—ऐसा करना उसे सटीक रूप से संप्रेषित करना नहीं है, और यह एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में अपने कर्तव्यों में बेपरवाह होना है। कार्य-व्यवस्थाओं को सटीक रूप से संप्रेषित और कार्यान्वित करना इसी तरह से समझा जाना चाहिए।

अगर अगुआ और कार्यकर्ता अब भी इस बारे में सुनिश्चित नहीं हैं कि कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से कैसे संप्रेषित करनी हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए? इसका एक बहुत ही सरल और आसान तरीका है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य-व्यवस्थाएँ प्राप्त होने के बाद उन्हें सबसे पहले दूसरे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के साथ कार्य-व्यवस्थाओं पर संगति करनी चाहिए, यह देखना चाहिए कि इन कार्य-व्यवस्थाओं के लिए ऊपरवाले द्वारा कितनी विशिष्ट मदों की अपेक्षा की जा रही है और उन्हें एक-एक करके इन मदों को सूचीबद्ध करना चाहिए। फिर, इन कार्य-व्यवस्थाओं के आधार पर उन्हें स्थानीय कलीसिया की वास्तविक स्थिति पर विचार करना चाहिए, जैसे कि सुसमाचार कार्य के हालात, विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य और कलीसियई जीवन, साथ ही सभी अलग-अलग प्रकार के लोगों की काबिलियत और पारिवारिक हालात वगैरह और इन सभी चीजों को एकीकृत करना चाहिए ताकि यह देख सकें कि कार्य के इन भागों को कैसे पूरा करना है। संगति के जरिए सभी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य-व्यवस्थाओं की एक हूबहू और सटीक समझ पर पहुँचना चाहिए और उनके पास उन्हें संप्रेषित करने के लिए तदनुरूप तरीके होने चाहिए—सिर्फ इसी तरह से कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित होंगी। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्थाएँ प्राप्त करता है और वह बिना यह जाने कि उनका विशिष्ट रूप से क्या अभिप्राय है, आँख मूंदकर भाई-बहनों को इकट्ठा करता है और उन्हें जारी और संप्रेषित करता है तो क्या यह उचित है? इसका यह परिणाम होता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित किए जाने के एक या दो महीने बाद यह पता चलता है कि हर कलीसिया में वे जिस तरह से कार्यान्वित की गई हैं उनमे विचलन हैं और जब अगुआ या कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्थाओं को बहुत ध्यान से देखते हैं तो उन्हें पता चलता है कि कार्य-व्यवस्थाएँ विचलनों के साथ संप्रेषित की गई हैं। अगर उस अगुआ या कार्यकर्ता ने उस समय कार्य-व्यवस्थाएँ निष्ठा से पढ़ी होतीं और उन पर संगति की होती तो सबकुछ ठीक होता, लेकिन खुद क्षण भर के लिए आलसी और लापरवाह होने के कारण, उसने कलीसियाई कार्य में कई गलतियाँ और विचलन उत्पन्न कर दिए, और बाद में उसे उन्हें सुधारना पड़ा। इससे एक पूरा अनावश्यक अतिरिक्त कदम जुड़ जाता है और समय बर्बाद होता है। बेहतर यह होता कि वह कार्य-व्यवस्थाओं पर स्पष्ट रूप से सीधे संगति करता और फिर उन्हें एक-एक करके संप्रेषित और कार्यान्वित करता। जब कार्य अच्छी तरह से नहीं किया जाता है तो क्या यह एक गलती नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, कार्य व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित करने के लिए कुछ कदम हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पहले कार्य-व्यवस्थाओं की विशिष्ट सामग्री का सच्चा ज्ञान और सटीक समझ होनी चाहिए और फिर उनके पास उन्हें कार्यान्वित करने के लिए ठोस योजनाएँ और विधियाँ होनी चाहिए, साथ ही उन्हें उन लोगों को भी ध्यान में रखना चाहिए जिनके साथ उन्हें कार्यान्वित किया जाना चाहिए—सिर्फ इसी तरह से कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित की जा सकती हैं। जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास कार्य-व्यवस्थाओं की सिर्फ अधूरी समझ हो, वे उन्हें समझते हुए सिर्फ प्रतीत होते हों, उनके बारे में अनिश्चित और अस्पष्ट हों या वे उनमें निहित विशिष्ट अपेक्षाओं और सामग्री को समझते ही नहीं हों, तो क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा आँख मूंदकर उन्हें जारी और संप्रेषित करना उचित है? (नहीं।) क्या ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता अच्छी तरह से कार्य का निर्वहन कर सकते हैं? जाहिर है नहीं। इसलिए, ऐसी स्थितियों में जहाँ भाई-बहन नहीं जानते हैं कि कार्य-व्यवस्थाओं में निहित विशिष्ट अपेक्षित मानक और सिद्धांत क्या हैं या उन्हें वास्तव में कैसे कार्यान्वित करना है, वहाँ अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पहले से ही कार्य-व्यवस्थाओं की सटीक समझ होगी, और साथ ही उन्हें कार्यान्वित करने के लिए ठोस योजनाएँ और कदम भी होंगे—सिर्फ इसी तरह से अगुआ और कार्यकर्ता पहला कदम, यानी कार्य व्यवस्थाएँ संप्रेषित करना, पूरा कर सकते हैं। एक बार जब कार्य-व्यवस्थाएँ संप्रेषित कर दी जाती हैं और सभी भाई-बहन कार्य-व्यवस्थाओं की सामग्री सटीक रूप से समझ लेते हैं और उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा इस कार्य को करने के महत्व, मूल्य और मानकों का कुछ ज्ञान हो जाता है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को तुरंत इस बात पर संगति करनी चाहिए कि लोगों और कार्य के विशिष्ट भागों को कैसे आवंटित करना है और इस कार्य को कौन कार्यान्वित और पूरा करेगा, इसके लिए क्या विशिष्ट योजना है—ये कार्य का निर्वहन करने के लिए चरण हैं। इस तरह से कार्य पर अनुवर्ती कार्रवाई करने के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या इसे कार्य पर बारीकी से अनुवर्ती कार्रवाई करना माना जा सकता है? क्या यह कार्य पर तुरंत अनुवर्ती कार्रवाई करना है? (हाँ।)

II. कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित कैसे करें

ऐसा नहीं है कि एक बार जब अगुआ और कार्यकर्ता कार्य-व्यवस्था प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें बस इसे संप्रेषित और जारी करने की जरूरत होती है और बात वहीं समाप्त हो जाती है। जब हर कलीसिया में परमेश्वर के चुने हुए लोगों को यह मालूम हो जाता है कि कार्य-व्यवस्था जारी कर दी गई है तो क्या इसे कार्यान्वित कर दिया गया माना जा सकता है? यह सही मायने में कार्य-व्यवस्था पूरी करना या कार्यान्वित करना नहीं है, यह उनके द्वारा अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करना नहीं है और ना ही यह वह मानक है जिसकी परमेश्वर अंततः अपेक्षा करता है। उद्देश्य कार्य-व्यवस्था को संप्रेषित और जारी करना नहीं है—उद्देश्य इसे कार्यान्वित करना है। तो कार्य-व्यवस्थाएँ विशिष्ट रूप से कैसे कार्यान्वित की जानी चाहिए? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सभी संबंधित पर्यवेक्षकों और भाई-बहनों को इकट्ठे बुलाना चाहिए और उनके साथ इस बारे में संगति करनी चाहिए कि कार्य कैसे करना है, और साथ ही कार्य पूरा करने के लिए एक प्राथमिक पर्यवेक्षक और टीम के सदस्य चुनने चाहिए। कार्य को कार्यान्वित करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले जो चीज करनी चाहिए वह है संगति—संगति इस बारे में करनी चाहिए कि कार्य को सिद्धांतों के अनुरूप और परमेश्वर के घर से प्राप्त इस कार्य-व्यवस्था के अनुरूप कैसे किया जाए, और इसे ऐसे किस तरीके से किया जाए जिसका अभिप्राय परमेश्वर के घर से प्राप्त इस कार्य-व्यवस्था को कार्यान्वित और क्रियान्वित करना है। संगति करते समय भाई-बहनों और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विभिन्न योजनाएँ सुझानी चाहिए और अंत में एक ऐसा तरीका, ऐसी विधि और ऐसे कदम चुनने चाहिए जो सबसे उपयुक्त हों और सिद्धांतों के सबसे ज्यादा अनुरूप हों और यह तय करना चाहिए कि पहले क्या करना है और उसके बाद क्या करना है ताकि कार्य एक सुव्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सके। एक बार जब इसे सिद्धांत रूप में समझ लिया जाता है, जब लोगों के पास अब कोई कठिनाइयाँ या कल्पनाएँ नहीं होती हैं, जब वे इस कार्य के प्रति कोई प्रतिरोध महसूस नहीं करते हैं और वे परमेश्वर के घर की इस कार्य-व्यवस्था के अर्थ और उद्देश्य को समझ पाते हैं, तब भी कार्य को कार्यान्वित किया गया नहीं माना जा सकता है। यह भी तय किया जाना चाहिए कि इस कार्य के लिए कौन सबसे उपयुक्त और कुशल है, कौन इस कार्य की जिम्मेदारी उठा सकता है, और किस व्यक्ति में यह कार्य पूरा करने की क्षमता है। इस कार्य को स्वीकार करने वाले लोगों को चुना जाना चाहिए, कार्यान्वयन योजना और पूरा होने की समय-सीमा तय की जानी चाहिए और कार्य पूरा करने के लिए जरूरी संसाधन, सामग्री और ऐसी ही दूसरी चीजें तैयार की जानी चाहिए और स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिए—सिर्फ तभी कार्य को कार्यान्वित किया गया माना जा सकता है। यकीनन, कार्यान्वयन से पहले इस कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ व्यक्तिगत रूप से विशिष्ट संप्रेषण और चर्चा करना भी जरूरी है, यह पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्होंने पहले यह कार्य किया है और इस पर उनके विचार और अनुमान क्या हैं। अगर वे ऐसी कुछ योजनाएँ और अनुमान प्रदान करते हैं जो सिद्धांतों के अनुरूप हैं तो उन्हें अपनाया जा सकता है। इसके अलावा हर कार्य कार्यान्वित करते समय यह पता लगाने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि वास्तव में कितनी समस्याएँ मौजूद हैं—इस कदम को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। समस्याओं का पता चलने के बाद, समय से समस्याओं को हल करने के तरीके सोचे जाने चाहिए और सभी मौजूदा समस्याएँ पूरी तरह से हल करने के बाद ही कार्य-व्यवस्था वास्तव में कार्यान्वित की जाएगी। इसके अलाव, क्या तुम्हें यह भी तलाश नहीं करनी चाहिए कि इस कार्य को ऐसे किस तरीके से किया जाए जो परमेश्वर के घर के जरूरी सिद्धांतों के अनुरूप हो? इसके अलावा क्या परमेश्वर के घर में इस कार्य के लिए समय के संबंध में कोई अपेक्षाएँ हैं, इसे किस समय-सीमा में पूरा किया जाना चाहिए, क्या पेशेवर कौशल के संबंध में कोई ठोस नियम हैं, वगैरह सभी ऐसे विषय हैं जिन पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को संबंधित पर्यवेक्षकों के साथ संगति करनी चाहिए। यही कार्यान्वयन है। कार्यान्वयन मौखिक संप्रेषण या सिद्धांत के साथ समाप्त नहीं हो जाता है बल्कि इसमें संबंधित कार्य की वास्तविक प्रगति और साथ ही ऐसी कुछ विशिष्ट समस्याएँ और कठिनाइयाँ शामिल होती हैं जिन्हें हल करने की जरूरत होती है। पर्यवेक्षकों के साथ कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन सभी चीजों पर विचार करना चाहिए। यानी, यह विशिष्ट कार्य करने से पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पर्यवेक्षकों के साथ इस तरह की संगति, विश्लेषण और चर्चा करनी चाहिए—यही कार्यान्वयन है। यह कार्यान्वयन अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है और यही वह चीज है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को प्राप्त करनी चाहिए। इस तरह से अभ्यास करना वास्तविक कार्य करना है। मान लो कि कोई अगुआ कहता है, “अभी, मुझे भी यह कार्य करना नहीं आता है। कुछ भी हो, मैंने इसे तुम्हें सौंप दिया है। मैंने तुम्हें कार्य-व्यवस्था संप्रेषित और जारी कर दी है और मैंने तुम्हें सभी संबंधित मामलों के बारे में भी बता दिया है। जहाँ तक यह प्रश्न है कि तुम इसे करने का तरीका जानते हो या नहीं, तुम इसे कैसे करते हो, तुम इसे अच्छी तरह से करते हो या खराब तरीके से करते हो और तुम्हें इसमें कितना समय लगता है, यह सब तुम पर निर्भर करता है। इन चीजों का मुझसे कोई लेना-देना नहीं है। इतना कार्य करके मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है।” क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ऐसा कहना चाहिए? (नहीं।) अगर कोई अगुआ ऐसा कहता है तो वह किस तरह का व्यक्ति है? वह एक झूठा अगुआ है। जब भी ऊपरवाला अपेक्षाएँ करता है और कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य का निर्वहन करना जरूरी होता है तो इस तरह का व्यक्ति इसे पूरी तरह से किसी और पर थोप देता है और कहता है, “इसे तुम करो, मुझे नहीं पता है कि इसे कैसे करना है। वैसे भी तुम इसे पूरी तरह से समझते हो। तुम एक विशेषज्ञ हो मैं एक आम आदमी हूँ।” यह एक “मशहूर कहावत” है जो अक्सर झूठे अगुआओं द्वारा कही जाती है; वे कोई बहाना ढूँढ लेते हैं और फिर चुपके से निकल जाते हैं।

संक्षेप में कहूँ तो झूठे अगुआ अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार नहीं होते हैं। उनकी काबिलियत चाहे ज्यादा हो या कम, चाहे वे कार्य संभालने में समर्थ हों या नहीं, मुख्य बात यह है कि वे सतर्क नहीं होते हैं और उसमें अपना दिल नहीं लगाते हैं और वे हमेशा लापरवाह होते हैं। ये जिम्मेदार नहीं होने की अभिव्यक्तियाँ हैं। मान लो कि किसी अगुआ या कार्यकर्ता में काबिलियत और अनुभव की गहराई की कुछ हद तक कमी है लेकिन वह सतर्कता से कार्य कर सकता है और अपने कार्य में अपना दिल लगा सकता है। वैसे तो वह अपने कार्य में उतने बढ़िया परिणाम प्राप्त नहीं करता है लेकिन कम-से-कम वह एक जिम्मेदार व्यक्ति होता है, वह अपने कार्य में अपना पूरा दिल लगा देता है और वह अपना सब कुछ लगा देता है। सिर्फ इसलिए क्योंकि उसमें काबिलियत की कुछ हद तक कमी होती है और वह छोटे आध्यात्मिक कद का होता है, वह अच्छी तरह से कार्य नहीं करता है। अगर वह कुछ समय तक खुद को प्रशिक्षित करने के बाद अपने कार्य में पूरी तरह से योग्य हो जाएगा तो इस तरह के अगुआ को विकसित करना जारी रखना चाहिए। अगर किसी अगुआ में रत्ती भर जमीर या सूझ-बूझ नहीं है और वह सिर्फ अपने पद पर बना रहता है और रुतबे के फायदों में लिप्त रहता है लेकिन कोई वास्तविक कार्य नहीं करता है तो वह एक प्रामाणिक झूठा अगुआ है और उसे तुरंत बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए और उसे फिर कभी भी पदोन्नत या उपयोग किए जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। एक सच्चा अगुआ, एक जिम्मेदार अगुआ, अपने कार्य में अपना सब कुछ लगा देता है—वह अपना मन उसमें समर्पित कर देता है, वह परमेश्वर का आदेश पूरा करने के लिए सभी तरह के तरीके ढूँढ निकालता है और वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करता है—इस तरह से वह अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी कर रहा होता है। परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करते समय जिम्मेदार अगुआ कार्यान्वयन की स्थिति की जाँच-परख और अनुवर्ती कार्रवाई भी करेंगे। जब कोई अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न होती है तो वे चुपके से निकल जाने और मामले से अपना पल्ला झाड़ लेने के बजाय प्रतिक्रिया के उपाय और समाधान अपनाने में समर्थ होंगे। कार्य को इस तरह से कार्यान्वित करना जिम्मेदार होना कहलाता है। कोई कार्य-व्यवस्था जारी की जाने पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उस कार्य को फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण मानना चाहिए और उसका प्रभार लेना चाहिए; उन्हें व्यक्तिगत रूप से उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए, शुरू से अंत तक उसके लिए जिम्मेदार होना चाहिए और कार्य को तभी छोड़ना चाहिए जब वह सही रास्ते पर आ जाए और हर टीम के अगुआओं को पता हो कि इसका निर्वहन कैसे करना है। लेकिन इसे छोड़ने के बाद भी अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य की स्थिति समझने और समय-समय पर उसका निरीक्षण करने की जरूरत होती है, सिर्फ इसी तरह से यह आश्वस्त किया जा सकता है कि कार्य अच्छी तरह से किया जाएगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपने पद नहीं छोड़ना, शुरू से अंत तक डटे रहना, कार्य को सही रास्ते पर ले जाना—इसे वास्तविक कार्य करना कहते हैं। इस दौरान अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कार्य की दूसरी मदों की प्रगति का ध्यान रखने और उसकी जाँच-पड़ताल करने की जरूरत होती है। कार्य में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ या समस्याएँ क्यों ना उत्पन्न हों, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को दिशा और समाधान प्रदान करने के लिए तुरंत कार्यस्थल पर जाना चाहिए। मुख्य अगुआ को सबसे महत्वपूर्ण कार्य को मजबूती से पकड़कर रखना चाहिए और साथ ही उसके लिए कलीसिया के दूसरे कार्यों पर अनुवर्ती कार्रवाई करना, उन्हें समझना, उनका निरीक्षण और पर्यवेक्षेण करना और यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि यह सब कुछ सामान्य रूप से आगे बढ़े। जब सबसे महत्वपूर्ण कार्य की बात आती है तो मुख्य अगुआ को व्यक्तिगत रूप से कार्यस्थल पर कार्य करना चाहिए और इस कार्य की बागडोर संभालनी चाहिए और खासकर जब कार्य के अत्यंत महत्वपूर्ण भागों की बात आती है तो उसे यकीनन कार्यस्थल नहीं छोड़ना चाहिए। अगर एक व्यक्ति पर्याप्त नहीं है तो उसके साथ साझेदारी करने और कार्य को निर्देशित करने के लिए एक और व्यक्ति की व्यवस्था की जानी चाहिए—यह हर संभव प्रयास करना और अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को अच्छी तरह से करने के एक सामान्य उद्देश्य के साथ एकजुट होना है। चूँकि परमेश्वर के घर में हर चरण और हर समयावधि में एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है इसलिए अगर मुख्य अगुआ अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य को अच्छी तरह से नहीं करता है तो इसका यह अर्थ है कि उसकी काबिलियत में समस्या है और उसे बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए। मुख्य अगुआ को सबसे अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य का प्रभार लेना चाहिए जबकि दूसरे अगुआओं को साधारण कार्य का प्रभार लेना चाहिए; अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह सीखना चाहिए कि कार्य को महत्व और तात्कालिकता के क्रम में कैसे प्राथमिकता देनी है और फायदे और नुकसान का आकलन कैसे करना है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इन सिद्धांतों में महारत हासिल कर सकते हैं तो वे मानक स्तर के अगुआ और कार्यकर्ता हैं।

परमेश्वर के घर में ज्यादातर अगुआ और कार्यकर्ता युवा लोग हैं, वे नौसिखिये हैं और वे कार्य करने के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं इसलिए उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि वे सिद्धांतों में महारत हासिल करना सीखें। हो सकता है कि कुछ लोग कहें, “परमेश्वर के घर में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए जो अपेक्षाएँ हैं क्या वे बहुत ऊँची नहीं हैं?” वास्तव में ऐसा बिल्कुल नहीं है। लोगों से सिद्धांतों में महारत हासिल करने की अपेक्षा करना एक ऊँची अपेक्षा कैसे हो सकती है? अगर कोई व्यक्ति सिद्धांतों में महारत हासिल नहीं कर पाता है तो वह कलीसिया का कार्य अच्छी तरह से कैसे कर पाएगा? अगर कोई व्यक्ति सिद्धांतों के बिना ही मामले संभालता है तो वह अगुआ या कार्यकर्ता कैसे हो सकता है? सिद्धांतों में महारत हासिल करना आम लोगों से नहीं बल्कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं से अपेक्षित है; अगर कोई व्यक्ति सिद्धांतों में महारत हासिल नहीं कर पाता है तो वह अच्छी तरह से कार्य नहीं कर पाएगा। जिन लोगों में काबिलियत की बहुत कमी है वे सिद्धांतों के लिए अपर्याप्त होते हैं, परमेश्वर का घर उन्हें विकसित नहीं करेगा और वे अगुआ बनने के लिए भी योग्य नहीं हैं। कुछ लोगों को हमेशा लगता है कि अगुआ बनना कठिन है और इसके दो कारण हैं : एक यह है कि वे सत्य बिल्कुल नहीं समझते हैं और समस्याओं को हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में समर्थ नहीं हैं; दूसरा यह है कि उनमें काबिलियत की कमी है, उन्हें नहीं पता है कि कार्य करने का क्या अर्थ है, वे कार्य के लिए सिद्धांत और अभ्यास का मार्ग स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाते हैं और यहाँ तक कि वे स्पष्ट रूप से धर्म-सिद्धांत भी नहीं बोल नहीं पाते हैं। इस तरह के लोग अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। मान लो कि किसी की काबिलियत बहुत ही खराब है, वह कार्य करना नहीं जानता है और वह अपना कर्तव्य करने में बिल्कुल भी कुशल नहीं है—यानी वह उस कार्य को करने में कई दिन लगा देता है जिसे करने में एक दिन का समय लगना चाहिए और उस कार्य को करने में छह महीने लगा देता है जिसे करने में एक महीने का समय लगना चाहिए—ऐसे लोग बेकार हैं, वे निकम्मे हैं। जिन लोगों की काबिलियत बहुत ही खराब है वे कोई भी कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं। लोगों से ये अपेक्षाएँ रखना मेरे लिए उचित और तर्कसंगत दोनों है और ये ऐसी चीजें हैं जिन्हें अगुआ और कार्यकर्ता पूरी कर सकते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि परमेश्वर के घर द्वारा की गई अपेक्षाएँ बहुत ही ऊँची हैं—इससे पता चलता है कि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है, वे अगुआ और कार्यकर्ता बनने के लिए योग्य नहीं हैं और उन्हें जवाबदेह होना चाहिए और इस्तीफा दे देना चाहिए। वे अगुआ या कार्यकर्ता की जिम्मेदारियाँ स्वीकार करने में समर्थ नहीं हैं और वे अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं इसलिए भले ही वे अगुआ क्यों ना हों, वे झूठे अगुआ हैं। अगर वे एक कार्य भी अच्छी तरह से नहीं कर पाते हैं तो वे एक ही समय में दूसरे कार्य पर कैसे ध्यान दे सकते हैं? क्या बहुत ही खराब काबिलियत वाले लोग अगुआ और कार्यकर्ता बनने के योग्य हैं? अगर वे एक रक्षक कुत्ते जितने भी अच्छे नहीं हैं तो फिर वे मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हैं। जब कुत्ता किसी घर की रखवाली करता है तो वह ना सिर्फ सामने वाले आँगन, पिछले आँगन और सब्जी के बगीचे की रखवाली करता है बल्कि वह घर की मुर्गियों, हंसों और भेड़ों की भी रखवाली कर सकता है। जैसे ही उसे कोई अजनबी आता हुआ दिखाई देता है वह भौंकने लगता है—वह किसी को भी आँगन में आने नहीं देगा और वह जानता है कि उसे अपने मालिक को अजनबी के आने के बारे में चौकन्ना करना है। कुत्ते का मन भी सरल नहीं होता है। अगर किसी की काबिलियत बहुत ही खराब है और उसकी तुलना कुत्ते से भी नहीं की जा सकती है तो क्या ऐसा व्यक्ति निकम्मा नहीं है? कुछ लोग आराम पसंद करते हैं और कार्य से नफरत करते हैं, वे पेटू और आलसी होते हैं और वे खुद कुछ भी किए बिना परमेश्वर के घर में मुफ्तखोरी करना चाहते हैं—क्या वे परजीवी नहीं हैं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं से सिद्धांतों के साथ मामले संभालने की अपेक्षा करके परमेश्वर का घर उन्हें अपने कर्तव्यों के निर्वहन में सत्य का अभ्यास करने और वास्तविकता में प्रवेश करने में समर्थ होने के लिए विकसित और प्रशिक्षित कर रहा है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में समर्थ हैं—ये सभी लोग परमेश्वर द्वारा धन्य हैं। जो लोग आराम पसंद करते हैं और कार्य से नफरत करते हैं और जो कोई भी वास्तविक चीज नहीं करते हैं उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। वे सभी बेकार लोग जो सुख-सुविधाओं का लालच करते हैं, जो कष्ट और थकान से डरते हैं, जो हमेशा कष्टों और कठिनाइयों की शिकायत करते हैं और बिल्कुल कष्ट सहन नहीं कर सकते हैं उन्हें हटा दिया जाना चाहिए—एक भी ना बचे! अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपना कार्य शुरू करने पर विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तो उन्हें समस्या का स्रोत खोजना चाहिए और फिर उन बाधक और अनुचित उपद्रवियों को—उन बाधाओं और रुकावटों को—दूर कर देना चाहिए। जब बचे हुए सभी लोग ऐसे हैं जो सत्य स्वीकार सकते हैं, आज्ञा मान सकते हैं और समर्पण कर सकते हैं तो उनकी अगुआई करना ज्यादा आसान होगा। जब अगुआ और कार्यकर्ता कार्य करते हैं तो उन्हें सबसे पहले सत्य पर स्पष्ट रूप से संगति करनी चाहिए ताकि उन्हें सुनने के बाद लोगों के पास आगे बढ़ने का एक रास्ता हो। उन्हें धर्म-सिद्धांतों की बात नहीं करनी चाहिए, नारे नहीं लगाने चाहिए और लोगों को उन पर ध्यान देने और उनका पालन करने और अभ्यास करने के लिए मजबूर तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता सत्य पर स्पष्ट रूप से संगति करते हैं तो फिर ज्यादातर लोग उसे अभ्यास में लाने के इच्छुक होंगे। यह चिंताजनक बात है कि अगर अगुआ और कार्यकर्ता चीजों को स्पष्ट या सुबोध रूप से नहीं समझाते हैं और फिर भी भाई-बहनों से अभ्यास करने की अपेक्षा करते हैं और भाई-बहनों को यह नहीं पता होता है कि अभ्यास कैसे करना है और वे अभ्यास का मार्ग नहीं ढूँढ पाते हैं—तो यह कार्य के परिणामों को प्रभावित करेगा। जब तक अगुआ और कार्यकर्ता हर विशिष्ट प्रकार के कार्यों में शामिल सत्य सिद्धांतों को सुबोध रूप से समझा सकते हैं और उन पर स्पष्ट रूप से संगति कर सकते हैं तब तक ज्यादातर लोग समझदार और उचित होंगे और वे सहयोग करने के इच्छुक होंगे। अगर कोई व्यक्ति जो कहता है वह सही है, सत्य के अनुरूप है और कलीसियाई कार्य और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए फायदेमंद है तो सब लोग उसकी बात सुनने के इच्छुक होते हैं। लेकिन ऐसी एक स्थिति है जिसमें कुछ अगुआ और कार्यकर्ता सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और जब कोई उनसे अभ्यास के विशिष्ट मार्ग के बारे में पूछता है तो वे इसे समझा नहीं पाते हैं और कुछ बहुत बड़े-बड़े धर्म-सिद्धांत बोलने लगते हैं और कुछ नारे लगाते हैं और फिर उस व्यक्ति को विदा कर देते हैं। वह व्यक्ति आश्वस्त नहीं होता है और सोचता है, “तुम मुझे इसे अभ्यास में लाने के लिए कह रहे हो लेकिन तुमने इसे स्पष्ट रूप से नहीं समझाया है—तो फिर मैं इसका अभ्यास कैसे कर सकता हूँ? मेरे पास अनुसरण करने के लिए कोई मार्ग नहीं है! मैंने तुमसे पूछा क्योंकि मुझे समझ नहीं आता है लेकिन यह पता चला है कि तुम्हें भी समझ नहीं आता है और तुम सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलना और नारे लगाना जानते हो। तुम मुझसे बेहतर नहीं हो। मुझे तुम्हारी आज्ञा क्यों माननी चाहिए? मैं सत्य का पालन करता हूँ, तुम्हारा नहीं जो धर्म-सिद्धांत बोलता है और नारे लगाता है!” इस प्रकार की परिस्थिति होती है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता खोखली बातें बोलने से बच सकें, सच्चाई से बोल पाएँ और सिद्धांतों और अभ्यास के मार्ग पर स्पष्ट रूप से संगति कर पाएँ तो ज्यादातर लोग आज्ञा मानने में समर्थ होंगे। इसलिए कलीसिया का कार्य करना वास्तव में आसान है; जब तक अगुआ और कार्यकर्ता ईमानदारी से कार्य-व्यवस्थाओं को कार्यान्वित कर पाते हैं, अपने कार्य पदों पर बने रह पाते हैं और विशिष्ट कार्य में शामिल हो पाते हैं तब तक वे कार्य को अच्छी तरह से करने में पूरी तरह से समर्थ होंगे। चिंता की बात यह है कि अगर अगुआ, कार्यकर्ता और पर्यवेक्षक गैर-जिम्मेदार हैं और रोब जमाते हैं, सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलना और नारे लगाना जानते हैं और कार्यस्थल पर विशिष्ट कार्य में शामिल नहीं होते हैं—तो यकीनन कार्य में समस्याएँ होंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि नीचे के लोग इस तरह की चीजें पूरी नहीं कर पाते हैं, उन्हें रास्ता दिखाने के लिए किसी की जरूरत पड़ती है, उन्हें किसी सहारे की जरूरत पड़ती है, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ती है जो व्यक्तिगत रूप से उनकी अगुवाई करे और उन्हें बताए कि क्या करना है, उन्हें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत पड़ती है जो पर्यवेक्षण प्रदान करे और निरीक्षण करे, नहीं तो कार्य कार्यान्वित नहीं होगा। अगर तुम यह उम्मीद करते हो कि तुम किसी रुतबे की स्थिति से कुछ धर्म-सिद्धांत और नारे लगा सकते हो और फिर नीचे के लोग कार्रवाई करेंगे और तुम जैसा कहोगे वैसा ही करेंगे तो तुम सपना देख रहे हो। नीचे के लोग मशीनों जैसे होते हैं : अगर किसी ने उन्हें चालू नहीं किया तो वे क्रियाकलाप नहीं करेंगे। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में कार्य करने वाले लोग इसे भी पूरा नहीं कर पाते हैं तो उनमें अंतर्दृष्टि की अत्यंत कमी है! जब झूठे अगुआ कार्य करते हैं तो वे किसी भी चीज की असलियत पहचान नहीं पाते हैं। उन्हें नहीं पता होता है कि कौन-सा कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है और कौन-सा सामान्य मामलों वाला कार्य है और ना ही वे महत्व और तात्कालिकता के क्रम में कार्यों को प्राथमिकता देने में समर्थ होते हैं। वे चाहे कुछ भी करें उनके पास कोई सिद्धांत नहीं होता है, वे अभ्यास का मार्ग स्पष्ट रूप से नहीं समझा पाते हैं और वे सिर्फ धर्म-सिद्धांत बोलते हैं और नारे लगाते हैं, सिर्फ कुछ अव्यावहारिक चीजें कहते हैं। फलस्वरूप वे कोई भी कार्य करने में बिल्कुल समर्थ नहीं होते हैं और उन्हें सिर्फ हटाया जा सकता है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह मालूम होना चाहिए कि कार्य कैसे व्यवस्थित और कार्यान्वित करना है और उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि कार्य का निरीक्षण और निर्देशन कैसे करना है और उत्पन्न होने वाली समस्याओं को व्यक्तिगत रूप से कैसे सुलझाना है। सिर्फ ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता ही वास्तविक कार्य कर सकते हैं और लोगों को पूरी तरह से विश्वास दिला सकते हैं। अगर कोई अगुआ कार्य का निर्देशन नहीं कर सकता है या समस्याओं का पता नहीं लगा सकता है और उन्हें सुलझा नहीं सकता है, अगर वह सिर्फ दूसरों को लगातार व्याख्यान देने और उनकी काट-छाँट करने में समर्थ है और खुद चीजों को गड़बड़ करने पर वह दूसरों को दोष देता है तो यह एक अयोग्य अगुआ होना है। ऐसा अगुआ एक बेकार व्यक्ति है, वह झूठा अगुआ है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। अगर तुम्हें यह मालूम नहीं है कि कोई विशिष्ट कार्य कैसे करना है तो तुम्हें कम-से-कम दो ऐसे उपयुक्त लोग ढूँढने चाहिए जो तुम्हारे सहायक के रूप में कार्य कर सकें ताकि तुम यह विशिष्ट कार्य अच्छी तरह से कर सको और तुम्हें कम-से-कम पहले उन बाधक लोगों को संभालना और बहिष्कृत या निष्कासित करना चाहिए जो विघ्न उत्पन्न करते हैं। क्या इससे इस कार्य को अच्छी तरह से करने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न नहीं हो रही हैं? वास्तविक चीजें कर सकने वाले लोग मिलने पर अगर तुम उन्हें तुरंत पदोन्नत करते हो और विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने वाले लोग मिलने पर अगर तुम उन्हें तुरंत संभालते हो और बहिष्कृत या निष्कासित करते हो तो फिर इस कार्य को जारी रखने में तुम्हें बहुत कम कठिनाइयाँ होंगी। जिन अगुआओं में काबिलियत की अत्यंत कमी होती है वे इस तरह से कार्य करने में समर्थ नहीं होते हैं। वे लोगों को नाराज करने से डरते हैं और जब वे किसी कुकर्मी को लगातार विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करते देखते हैं तो वे उन्हें नहीं संभालते हैं। वे यह भी नहीं बता पाते हैं कि कौन कुछ वास्तविक चीज करने में सक्षम है और उन्हें यह नहीं पता होता है कि कार्य का प्रभार लेने के लिए किसे पदोन्नत करना उचित है। इस तरह के अगुआ अंधे होते हैं और वे अपने कार्य का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं। अगर अगुआ और कार्यकर्ता सत्य या पेशेवर कौशल नहीं समझते हैं तो वे अपना कार्य अच्छी तरह से नहीं करेंगे, इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को वास्तविक कार्य करने के लिए बार-बार प्रशिक्षण लेना चाहिए। जब तक वे सिद्धांतों में महारत हासिल करते हैं, महत्व और तात्कालिकता के क्रम में कार्यों को प्राथमिकता देना जानते हैं और उन्हें यह पता होता है कि नफे और नुकसान का आकलन कैसे करना है तब तक वे अपना कार्य अच्छी तरह से कर पाते हैं और मानक-स्तर के अगुआ और कार्यकर्ता बन पाते हैं।

अब जब मैं परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य-व्यवस्थाएँ सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करने की इस विषय-वस्तु पर संगति कर चुका हूँ, तो क्या अब तुम अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस बात की कुछ मूलभूत समझ हो गई है कि कार्य-व्यवस्थाएँ कैसे संभालनी और कार्यान्वित करनी हैं? और क्या अब तुम्हें उन जिम्मेदारियों और दायित्वों की कुछ विशिष्ट समझ हो गई है जो तुम्हें कार्य-व्यवस्थाएँ कार्यान्वित करते समय पूरे करने चाहिए है? (हाँ।) अब जब तुम्हें यह विशिष्ट समझ है तो तुम्हें इस बारे में विचार करना चाहिए कि तुम्हें क्या करना चाहिए और तुम किस हद तक इसे करने में समर्थ हो और फिर तुम्हें यह फैसला करने में समर्थ होना चाहिए कि तुम्हारे पास अगुआ या कार्यकर्ता बनने की काबिलियत है या नहीं और तुम अगुआ या कार्यकर्ता के कार्य के लिए उपयुक्त हो या नहीं। जहाँ तक ऐसे कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं का प्रश्न है जो खराब काबिलियत वाले हैं और जो वास्तविक कार्य नहीं करते हैं—यानी, जिन्हें हम झूठे अगुआकहकर बुलाते हैं—एक बार जब वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नौवीं जिम्मेदारी की विशिष्ट विषय-वस्तु समझ लेते हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए? कुछ लोग कहते हैं, “मैं पहले अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ वाकई नहीं समझता था और अगुआ बनने के बाद मैंने दिखावे की खातिर कुछ कार्य करने के लिए सिर्फ अपनी धारणाओं और कल्पनाओं पर भरोसा किया और मैंने सोचा कि चूँकि मैं उत्साही हूँ और कष्ट सहने को तैयार हूँ इसलिए शायद मैं एक मानक-स्तर का अगुआ हूँ। परमेश्वर को इस तरह से संगति करते हुए सुनने के बाद मैं भौंचक्का हो गया हूँ। यह पता चला है कि मैं एक झूठा अगुआ हूँ, मेरी काबिलियत बहुत ही खराब है और मैं वास्तविक कार्य नहीं कर सकता। मैं परमेश्वर के घर की एक विशिष्ट कार्य-व्यवस्था को कार्यान्वित करने में भी सक्षम नहीं हूँ। मैं सोचता था कि किसी कार्य-व्यवस्था को कई बार पढ़ने, उसके बारे में सभी को बताने और जब नीचे के लोग उस पर कार्य करें, तो उनसे आग्रह करने और उनकी देखरेख करने का अर्थ है कि मैं वह कार्य-व्यवस्था कार्यान्वित कर रहा हूँ। कुछ समय बाद मुझे पता चला कि कार्य ठीक से नहीं किया गया है और कई विशिष्ट कार्य अनदेखा किए गए हैं, और सिर्फ तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि मेरी काबिलियत में वाकई कमी है और मुझमें अगुआ बनने के गुण नहीं हैं।” तो इस तरह के व्यक्ति को क्या करना चाहिए? अगर उसने अपना कार्य छोड़ दिया तो क्या यह ठीक होगा? (नहीं।) तो फिर क्या इस समस्या को सुलझाने का कोई तरीका है? या यह समस्या नहीं सुलझने योग्य है? (नहीं, यह नहीं सुलझने योग्य नहीं है। उन लोगों को परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार बेहतर करने का भरसक प्रयास करना चाहिए।) यह एक सकारात्मक और सक्रिय परिप्रेक्ष्य है; यह एक बहुत ही अच्छा परिप्रेक्ष्य है। उन्हें परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार बेहतर करने का भरसक प्रयास करना चाहिए, परमेश्वर में आस्था रखनी चाहिए और उस पर भरोसा करना चाहिए, और नकारात्मक नहीं बनना चाहिए या अपना कार्य नहीं छोड़ना चाहिए—यह एक समाधान है। क्या यह एक अच्छा समाधान है? (हाँ।) लेकिन क्या यही इकलौता समाधान है? (नहीं, ऐसा नहीं है। अगर उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है और वे वाकई कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं तो वे इसके लिए जवाबदेह हो सकते हैं और अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं।) यह दूसरा समाधान है। अगर वे पहले प्रयास कर चुके हैं और उन्हें लगता है कि वे अगुआ का कार्य नहीं कर सकते हैं—यानी अगर यह उनके लिए बहुत ही श्रमसाध्य और कठिन है, और वे इसके बारे में बहुत चिंतित रहते हैं और अच्छी तरह से सो नहीं पाते हैं, और हर रोज उन्हें लगता है जैसे वे किसी बड़े पहाड़ के बोझ तले दबे हुए हैं जिस कारण वे अपना सिर नहीं उठा पाते हैं या साँस खींच नहीं पाते हैं, और उन्हें यह भी लगता है कि चलते समय उनके पैर भारी हो गए हैं—और ये विशिष्ट अपेक्षाएँ सुनने के बाद उन्हें यह और अधिक महसूस होता है कि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है और वे बस कार्य कर ही नहीं सकते हैं तो उन्हें क्या करना चाहिए? वे एक चीज कर सकते हैं और वह है तुरंत इस्तीफा दे देना। अगर वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते हैं तो उन्हें परमेश्वर के घर के कार्य को प्रभावित नहीं करना चाहिए—उनके पास यही कारण होना चाहिए। उन्हें आँख मूँदकर खुद को अपनी सीमाओं से परे नहीं धकेलना चाहिए, ऐसी कोई चीज करने का प्रयास करने पर नहीं अड़ना चाहिए जो उनकी क्षमताओं से परे हो या बेवकूफी भरी चीजें नहीं करनी चाहिए। सिर्फ उन्हीं लोगों में सूझ-बूझ है जो ये चीजें करने से बचते हैं। सूझ-बूझ वाले लोगों में आत्म-जागरूकता होती है; वे अपनी काबिलियत के बारे में स्पष्ट होते हैं और उन्हें अपनी खामियाँ पता होती हैं। जब लोगों को अपनी खुद की माप स्पष्ट रूप से पता होती है, सिर्फ तभी वे सटीक रूप से यह समझ पाते हैं कि वे क्या करने में सक्षम हैं, वे क्या करने में सक्षम नहीं हैं और वे क्या करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। लोगों को अपनी काबिलियत क्यों पता होनी चाहिए? इससे उन्हें यह निर्धारित करने में मदद मिलती है कि उन्हें कौन-सा कर्तव्य करना चाहिए और इससे उन्हें वह कर्तव्य अच्छी तरह से करने में भी मदद मिलती है। अगर तुमने पहले ही अपनी जाँच कर ली है और यह देखा है कि तुम्हारे पास सिर्फ यही काबिलियत है और तुम जानते हो कि तुम एक अगुआ का कार्य नहीं कर सकते हो तो तुम्हें फिर से अपनी जाँच करने और इसे साबित करने की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए—अपने पद पर बने मत रहो और पद छोड़ने से इनकार मत करो; जब तुम विशिष्ट कार्य का निर्वहन करने में समर्थ नहीं हो तो दूसरे लोगों को प्रभावित मत करो और उनके लिए बाधाएँ उत्पन्न मत करो। क्या इस्तीफा देना आगे बढ़ने का एक मार्ग नहीं है? तुम्हारे सामने ये दो मार्ग रखे हुए हैं और तुम इनमें से एक को चुन सकते हो; तुम्हारे पास आगे बढ़ने के रास्ते की कमी नहीं है और सिर्फ एक ही मार्ग नहीं है। तुम अपने बारे में अपनी समझ के आधार पर और साथ ही तुम्हें जानने वाले भाई-बहनों ने तुम्हारे जो मूल्यांकन किए हैं उनके आधार पर व्यावहारिक और सटीक फैसले ले सकते हो और फिर सही चुनाव कर सकते हो। परमेश्वर का घर तुम्हारे लिए चीजें कठिन नहीं बनाएगा। तुम इसके बारे में क्या सोचते हो? (यह अच्छा है।) कुछ लोग कहते हैं, “मैं फिर से प्रयास करना चाहता हूँ और बेहतर करने का भरसक प्रयास करना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि मैं यह कर सकता हूँ। मैंने उन वर्षों के दौरान सत्य का अनुसरण करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अगुआ बनने के बाद भी मुझे मालूम नहीं था कि सत्य की तलाश कैसे करनी है और मैं भ्रमित तरीके से कार्य करता था। मैं सोचता था कि कलीसियाई अगुआ बनना बहुत आसान है, इसमें सिर्फ लोगों को सभाओं में शामिल होने के लिए संगठित करना, सत्य पर संगति करने में अगुवाई करना, समस्याएँ उत्पन्न होने पर उन्हें समय पर सुलझाना और ऊपरवाले से मिली किसी भी व्यवस्था को तुरंत कार्यान्वित करना और उसे बस वहीं छोड़ देना शामिल है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि कुछ समय तक अगुआ बने रहने के बाद मुझे पता चलेगा कि ऐसी बहुत सी समस्याएँ हैं जिन्हें मैं नहीं सुलझा सकता, जब ऊपरवाले ने कार्य के बारे में पूछा तो मुझे यह नहीं पता था कि कैसे उत्तर देना है और जब परमेश्वर के चुने हुए कुछ लोगों ने वास्तविक मुद्दे उठाए तो मैं उत्तर प्रदान करने में समर्थ नहीं था। इन वर्षों में जब भाई-बहनों ने परमेश्वर में विश्वास रखा है, उन सबने परमेश्वर के वचन पढ़े हैं और बार-बार धर्मोपदेश सुने हैं। यकीनन वे सभी कुछ सत्य समझते हैं और उनमें कुछ सूझ-बूझ है। सत्य वास्तविकता के बिना मैं वाकई उन्हें सींच नहीं सकता या उनका भरण-पोषण नहीं कर सकता।” अब यह स्पष्ट है कि परमेश्वर के घर में किसी भी तरह का विशिष्ट कार्य अच्छी तरह से करना इतना सरल नहीं है। एक लिहाज से, लोगों में काबिलियत होनी चाहिए, जबकि दूसरे लिहाज से, उन्हें एक दायित्व उठाने और साथ ही सत्य समझने की जरूरत है—ये सभी चीजें पूरी तरह से जरूरी हैं। किसी व्यक्ति का सत्य का अनुसरण नहीं करना या उसमें काबिलियत की कमी होना उचित नहीं है, ना ही किसी व्यक्ति में मानवता की कमी होना और उसका दायित्व नहीं उठाना उचित है। विशिष्ट कार्य के लिए विशिष्ट दृष्टिकोण की जरूरत पड़ती है और यह इतना सरल मामला नहीं है। लेकिन कुछ लोगों को अब भी विश्वास नहीं है। वे अब भी फिर से प्रयास करना चाहते हैं और वे एक और मौका दिए जाने की माँग करते हैं—क्या इस तरह के लोगों को एक और मौका दिया जाना चाहिए? अगर उनकी कार्य क्षमता और काबिलियत दोनों ही औसत हैं लेकिन वे कुछ विशिष्ट कार्य कर सकते हैं और वे लापरवाह नहीं हैं और अपने कार्य में परिणाम प्राप्त करने के लिए समस्याएँ सुलझाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और ऊपरवाले द्वारा की गई किसी भी व्यवस्था का पालन कर सकते हैं और उसके प्रति समर्पण कर सकते हैं, और मूल रूप से परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाओं और अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार कार्य को कार्यान्वित कर सकते हैं, और चाहे उन्होंने पहले अपना कार्य अच्छी तरह से नहीं किया हो क्योंकि वे युवा थे, सत्य नहीं समझते थे और उनकी नींव सतही थी लेकिन वे सही लोग हैं तो फिर उन्हें एक और मौका दिया जाना चाहिए और उन्हें खुद को प्रशिक्षित करना जारी रखना चाहिए—उन्हें आँख मूंदकर खारिज मत करो। अगुआ या कार्यकर्ता बनना इतना आसान नहीं है और ना ही किसी अगुआ या कार्यकर्ता को चुनना इतना आसान है। अब ज्यादातर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपनी जिम्मेदारियों की कुछ समझ हो गई है और वे अपने कार्य में पहले की तुलना में कम-से-कम कुछ हद तक बेहतर होंगे—यह एक सच्चाई है।

अब जब मैंने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नौवीं जिम्मेदारी—मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण और आग्रह करते हुए, परमेश्वर के घर की विभिन्न कार्य-व्यवस्थाओं को उसकी अपेक्षाओं के अनुसार सटीक रूप से संप्रेषित, जारी और कार्यान्वित करो, और उनके कार्यान्वयन की स्थिति का निरीक्षण करो और उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करो—के संबंध में सत्य सिद्धांतों पर संगति समाप्त कर ली है तो तुम्हारे दिल पूरी तरह से उज्ज्वल हैं और तुम्हारे पास अभ्यास का एक मार्ग है। अब तुम ना सिर्फ अपना कर्तव्य पूरा करने और जीवन प्रवेश प्राप्त करने में समर्थ हो बल्कि तुम्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कुछ ज्ञान या उनकी कुछ पहचान भी होनी चाहिए और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए और उन्हें जो कार्य करना चाहिए, तुम्हें कम-से-कम उस बारे में स्पष्टता और समझ हासिल हो जानी चाहिए। संक्षेप में, यह जानना कि अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से हर एक के लिए मददगार और फायदेमंद है और इस तरह से अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के बारे में उनकी समझ अब खोखली नहीं रहेगी बल्कि और ठोस हो जाएगी।

10 अप्रैल 2021

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