अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (5)
पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की पांचवीं मद पर संगति की थी। पांचवीं मद पर संगति करने के दौरान हमने झूठे अगुआओं की कुछ अभिव्यक्तियों और क्रियाकलापों का गहन-विश्लेषण किया और हमने इस मद पर संगति समाप्त कर ली। आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की छठी और सातवीं मद पर संगति कर रहे हैं। इन दो मदों की विशिष्ट विषयवस्तु क्या है? (मद छह : सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को बढ़ावा दो और उन्हें विकसित करो, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को प्रशिक्षण प्राप्त करने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर यथाशीघ्र मिल सके। मद सात : विभिन्न प्रकार के लोगों को उनकी मानवता और खूबियों के आधार पर समझदारी से कार्य आवंटित कर उनका उपयोग करो, ताकि उनमें से प्रत्येक का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके।) चलो, फिर हम इन दो मदों के संबंध में झूठे अगुआओं के विभिन्न क्रियाकलापों और अभिव्यक्तियों का गहन विश्लेषण करें। ये दोनों मदें एक ही श्रेणी की हैं, जो कलीसिया के तमाम तरह के लोगों की पदोन्नति, विकास और उनका नियोजन करने से संबंधित है। आओ, पहले हम हर प्रकार की योग्य प्रतिभा की पदोन्नति और विकास करने से जुड़े परमेश्वर के घर के सिद्धांतों पर संगति करें। उस तरह, क्या तुम फिर यह कार्य करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जिन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, उनमें से कुछ को मूल रूप से नहीं समझ लोगे? तुम लोग सोच सकते हो, “अगुआओं और कार्यकर्ताओं के तौर पर, हम अक्सर इन मामलों के संपर्क में आते हैं, हम इस कार्य से पहले ही परिचित हैं और हमें इसका थोड़ा अनुभव है, तो भले ही तुमने इस बारे में और कुछ ज्यादा न भी बोला हो, तब भी हमारे मन में इस बारे में स्पष्टता है, और तुम्हें इस पर और आगे विशेष तौर पर संगति करने की जरूरत नहीं है।” तो क्या इस पर संगति करने की कोई जरूरत नहीं है? (हमें इस पर तुम्हारी संगति की जरूरत है। हम इस बारे में सिद्धांतों को अभी भी नहीं समझते हैं और कुछ प्रतिभाशाली लोगों को पहचानना हमें अभी भी नहीं आता है।) ज्यादातर अगुआ और कार्यकर्ता इस काम को करने के बारे में अभी भी बहुत भ्रमित हैं, इसका अंदाजा लगाने की प्रक्रिया में हैं, और सटीक सिद्धांतों को नहीं समझ पाते हैं, इसलिए हमें अभी भी विवरणों के बारे में संगति करने की जरूरत है।
मद छह : सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को बढ़ावा दो और उन्हें विकसित करो, ताकि सत्य का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को प्रशिक्षण प्राप्त करने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने का अवसर यथाशीघ्र मिल सके
परमेश्वर के घर द्वारा सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने की महत्ता
परमेश्वर का घर हर प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है? क्या सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करना विज्ञान, शिक्षा और साहित्य में संलग्न होने के लिए है? परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पहले से यह जानना चाहिए कि जब परमेश्वर का घर विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है, तो ऐसा किसी प्रकार के ऊँची टेक्नॉलॉजी वाले उत्पाद का निर्माण करने के लिए, कोई चमत्कार करने के लिए या मानवीय विकास के इतिहास में शोध करने के लिए नहीं किया जाता, और मानवजाति के भविष्य के लिए किसी किस्म की योजना बनाने के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। तो फिर परमेश्वर का घर सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है? तुम लोग इस बात को समझते हो या नहीं? (राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए।) राज्य के सुसमाचार को फैलाने के लिए—यह एक कारण है। और क्या है? (ताकि सत्य का अनुसरण करने वाला हरेक व्यक्ति प्रशिक्षण का अवसर पा सके।) सही है, यह उत्तर काफी तर्कसंगत है और सही निशाने पर है। ऐसा इसलिए है कि सत्य का अनुसरण करने वाले और अधिक लोग प्रशिक्षित होने का अवसर पा सकें, और यथाशीघ्र सत्य वास्तविकता में प्रवेश करें। तुम लोगों के अभी-अभी दिए हुए दोनों जवाब सही और सटीक हैं। परमेश्वर के घर द्वारा सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नति और विकास एक लिहाज से राज्य के सुसमाचार को फैलाने और परमेश्वर के कार्य से संबंधित है, और दूसरे लिहाज से वैयक्तिक अनुसरणों और प्रवेश से संबंधित है। यही दोनों अति महत्वपूर्ण पहलू हैं। विशेष तौर पर कहें, तो परमेश्वर के घर द्वारा तमाम प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नति और विकास करने की क्या महत्ता है? इन पदोन्नत और विकसित किए गए लोगों द्वारा कलीसिया में खास तौर पर कौन-सा कार्य किया जाता है? जब परमेश्वर का घर किसी व्यक्ति को टीम अगुआ, पर्यवेक्षक, कलीसिया अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए पदोन्नत और विकसित करता है, तो क्या वे कोई अधिकारी बनाए जाते हैं? (नहीं।) परमेश्वर का घर लोगों को इसलिए पदोन्नत और विकसित करता है ताकि वे कलीसिया के विभिन्न कार्यों की मदों में से विशिष्ट परियोजनाओं या कामों की जिम्मेदारी उठा सकें, जैसे कि सुसमाचार कार्य, इबारत-आधारित कार्य, फिल्म निर्माण कार्य, सिंचन कार्य, और साथ ही कुछ सामान्य मामले, इत्यादि। तो वे इन विशिष्ट कार्यों को कैसे क्रियान्वित करते हैं? परमेश्वर की अपेक्षाओं, परमेश्वर के वचनों के सत्य सिद्धांतों, और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों का बीड़ा उठाकर, और इस तरह परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार अपना कर्तव्य निभाकर और सत्य सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करके। इस तथ्य को देखते हुए कि इन लोगों को कार्य का बीड़ा उठाने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जा रहा है, यह कोई आधिकारिक पदवी या रुतबा होना नहीं है जो उन्हें अपना कर्तव्य अच्छे से करने योग्य बनाता है। बल्कि एक विशिष्ट कार्य का भार उठाने के लिए उनके पास खास काबिलियत होनी चाहिए, यानी उस कार्य को करने का बीड़ा उठाना जो परमेश्वर ने उन्हें करने के लिए सौंपा है, या दूसरे शब्दों में कहें, तो ऐसा कर्तव्य और दायित्व जिसमें जिम्मेदारी उठानी होती है। यह है विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नत और विकसित करने की विशेष महत्ता और परिभाषा जैसा कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की छठी मद में बताया गया है। इसलिए लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के पीछे परमेश्वर के घर का लक्ष्य, परमेश्वर की अपेक्षाओं और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार, कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों को अच्छे ढंग से करने के लिए सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को विकसित करना है; यह इन लोगों को इस योग्य बनाने के लिए है कि वे कलीसिया के विभिन्न विशेष कार्यों की जिम्मेदारी उठा सकें। साथ ही साथ, परमेश्वर का घर इन लोगों को विकसित और प्रशिक्षित करता है ताकि वे यह सीख लें कि परमेश्वर के वचनों पर चिंतन कैसे करना है, सत्य पर संगति कैसे करनी है और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कैसे करना है, जिससे वे सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के वचनों के मुताबिक जीने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की दिशा में आगे बढ़ें और इस योग्य बनें कि उनके पास सच्चे अनुभव और गवाहियाँ हों, और जिसके बाद वे दूसरों की अगुआई, सिंचन और पोषण कर सकें और कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों को अच्छे ढंग से कर सकें, और साथ ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों को इस योग्य बनाया जा सके कि वे परमेश्वर के प्रति समर्पण करें, परमेश्वर की गवाही दें, और सुसमाचार का प्रचार करने का कर्तव्य पूरा कर सकें। सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों की पदोन्नति और विकास करने के अभ्यास का तरीका, एक लिहाज से, परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने और उनका अनुभव करने, खुद को जानने, अपने भ्रष्ट स्वभावों का त्याग करने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए लोगों की अगुआई करना है; एक अन्य लिहाज से, यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए है कि वे वफादारी और समर्पण के अपने स्वयं के वास्तविक अनुभव का उपयोग करके अपने कर्तव्य पूरे करने और परमेश्वर की जबरदस्त गवाही देने में लोगों की अगुआई करें और उन्हें विकसित करें। विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को विकसित करने के लिए अभ्यास के ये दो प्रमुख मार्ग हैं। विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने में यह विशेष कार्य शामिल है, और उन्हें पदोन्नत और विकसित करने की यही सच्ची महत्ता भी है।
विभिन्न प्रकार के उन प्रतिभाशाली लोगों से अपेक्षित कसौटियाँ जिन्हें परमेश्वर का घर पदोन्नत और विकसित करता है
I. कार्य की विभिन्न मदों के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं से अपेक्षित कसौटियाँ
“कलीसिया द्वारा पदोन्नत और विकसित किए गए विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोग” किन्हें कहा जाता है? इसमें कौन-से दायरे शामिल होते हैं? पहला है उस प्रकार के लोग जो कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं। कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षकों से कौन-से मानक अपेक्षित होते हैं? तीन मुख्य अपेक्षित मानक हैं। पहला, उनमें सत्य को समझने की योग्यता होनी चाहिए। केवल वही लोग जो सत्य को विशुद्ध रूप से बिना किसी विकृति के समझकर निष्कर्ष निकाल सकते हैं, वही अच्छी काबिलियत वाले होते हैं। अच्छी काबिलियत वाले लोगों में कम-से-कम आध्यात्मिक समझ तो होनी ही चाहिए और उन्हें स्वतंत्र रूप से परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने की प्रक्रिया में उन्हें परमेश्वर के वचनों के न्याय, ताड़ना और काट-छाँट को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करने और सत्य को खोजने में सक्षम होना चाहिए, जिससे कि वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं और अपनी ही इच्छा में मिलावट और साथ ही अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर कर सकें—अगर वे इस मानक के स्तर तक पहुँच सकें, तो इसका अर्थ है कि वे परमेश्वर के कार्य को अनुभव करने का तरीका जानते हैं, और यह अच्छी काबिलियत की अभिव्यक्ति है। दूसरे, उन्हें कलीसिया के कार्य का बोझ उठाना ही चाहिए। जो लोग वास्तव में बोझ उठाते हैं, उनमें सिर्फ उत्साह ही नहीं, वास्तविक जीवन अनुभव होता है, वे कुछ सत्य समझते हैं, और वे कुछ समस्याएँ पूरी स्पष्टता से समझ सकते हैं। वे देखते हैं कि कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों में बहुत-सी कठिनाइयाँ और समस्याएँ हैं, जिनका समाधान जरूरी है। वे इसे अपनी आँखों से देखते हैं और इस बारे में अपने दिल से चिंता करते हैं—यही है कलीसिया के कार्य के लिए बोझ उठाने का मतलब। अगर कोई महज अच्छी काबिलियत वाला और सत्य को समझने में सक्षम है, मगर वह आलसी है, देह-सुखों का लालच करता है, वास्तविक काम करने को तैयार नहीं है, और तभी थोड़ा-सा काम करता है जब ऊपरवाला उस काम को पूरा करने की आखिरी तारीख तय कर देता है, जब वे उसे करने से बच नहीं सकते, तो यह ऐसा व्यक्ति है जो कोई भी बोझ नहीं उठाता। जो लोग कोई भी बोझ नहीं उठाते, वे ऐसे लोग होते हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, जिनमें न्याय की भावना नहीं होती, और जो निकम्मे होते हैं, ठूंस-ठूंसकर खाते-पीते पूरा दिन बिता देते हैं, और किसी भी चीज पर गंभीरता से विचार नहीं करते। तीसरे, उनमें कार्यक्षमता होनी चाहिए। “कार्यक्षमता” का क्या अर्थ है? सरल शब्दों में कहें, तो इसका अर्थ है कि न सिर्फ वे लोगों को काम सौंप सकते हैं और निर्देश दे सकते हैं, बल्कि वे समस्याओं को पहचान कर हल भी कर सकते हैं—कार्यक्षमता होने का मतलब यही है। इसके अतिरिक्त, उन्हें सांगठनिक कौशल की भी जरूरत पड़ती है। सांगठनिक कौशल वाले लोग विशेष रूप से लोगों को एकजुट करने, कार्य को संगठित और व्यवस्थित करने और समस्याएँ सुलझाने में कुशल होते हैं, और कार्य को व्यवस्थित करते और समस्याओं को हल करते समय वे लोगों को पूरी तरह से मनाकर उनसे पालन करवा सकते हैं—सांगठनिक कौशल होने का यही अर्थ है। जिन लोगों में वास्तव में कार्यक्षमता होती है, वे परमेश्वर के घर द्वारा व्यवस्थित विशेष कामों को क्रियान्वित कर सकते हैं, और वे ऐसा बिना किसी ढिलाई के तेजी से और निर्णायक ढंग से कर सकते हैं, और यही नहीं, वे विभिन्न कामों को अच्छे ढंग से कर सकते हैं। ये अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विकसित करने के परमेश्वर के घर के तीन मानक हैं। अगर कोई व्यक्ति इन तीन मानकों पर खरा उतरता है, तो वह एक दुर्लभ, प्रतिभाशाली व्यक्ति है और उसे पदोन्नत, विकसित, और सीधे प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और कुछ समय तक अभ्यास के बाद वे कार्य हाथ में ले सकते हैं। जिस भी व्यक्ति में काबिलियत होती है, जो बोझ उठाता है, और जिसमें कार्यक्षमता है, उसके लिए ऐसे लोगों की जरूरत नहीं पड़ती जो उसके बारे में हमेशा चिंता करें, उसके कार्य में उसकी निगरानी करें और उससे आग्रह करें। वे पहले से सक्रिय होते हैं, वे जानते हैं कि कौन-से कार्य कब करने हैं, किन कार्यों का निरीक्षण और निगरानी करनी है, और किन कार्यों की बारीकी से जाँच और निगरानी करने की जरूरत है। वे इन चीजों से अच्छी तरह अवगत होते हैं। ऐसे लोग अपने कार्य में अपेक्षाकृत निर्भर रहने योग्य और विश्वसनीय होते हैं, और कोई बड़ी समस्या नहीं होगी। भले ही समस्याएँ आ भी जाएँ, वे छोटी-मोटी होंगी और पूरे कार्य को प्रभावित नहीं करेंगी, और परमेश्वर को इन लोगों द्वारा किए जा रहे कार्य को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ वही लोग जो वास्तव में अपने दो पैरों पर खड़े हो सकते हैं, वास्तव में कार्यक्षमता संपन्न होते हैं। जो लोग अपने दो पैरों पर खड़े नहीं हो सकते और दूसरों को हमेशा उनके बारे में चिंता करने, उन पर नजर रखने, उनकी निगरानी करने और यहाँ तक कि उनका हाथ थामने और उन्हें यह सिखाने की जरूरत पड़ती है कि क्या करना है, वे ऐसे लोग होते हैं जिनकी काबिलियत बेहद कमजोर होती है। साधारण काबिलियत वाले लोगों द्वारा किए गए कार्यों के नतीजे यकीनन साधारण होते हैं, और ये लोग कुछ भी कर सकें इससे पहले जरूरत पड़ती है कि दूसरे उन पर नजर रखें और उनकी निगरानी करें। इसके विपरीत, अच्छी काबिलियत वाले लोग कुछ समय तक प्रशिक्षित किए जाने के बाद अपने दो पैरों पर खड़े हो सकते हैं, और हर बार जब ऊपरवाला उन्हें किसी काम के लिए निर्देश देता है, और कुछ सिद्धांतों पर संगति करता है, तो वे सिद्धांतों को समझ सकते हैं, उनके अनुसार कार्यों को क्रियान्वित कर सकते हैं, और मूल रूप से बिना बड़े भटकावों या खामियों के सही मार्ग पर चल सकते हैं, और वे नतीजे हासिल कर सकते हैं जो उन्हें करने चाहिए—कार्यक्षमता होने का यही अर्थ है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर का घर कलीसिया को शुद्ध करने का आग्रह करता है और चाहता है कि मसीह-विरोधी और बुरे लोग पहचाने जाएँ और कलीसिया से निष्कासित कर दिए जाएँ और उस प्रकार के लोग जिनमें कार्यक्षमता है, वे इस कार्य को क्रियान्वित करते समय मूल रूप से मार्ग से न भटकें। किसी मसीह-विरोधी के प्रकट होने के बाद उनका खुलासा होने और उन्हें निकाले जाने में कम-से-कम छह महीने का वक्त लगता है। इस दौरान, जिन लोगों में कार्यक्षमता होती है वे उन्हें पहचान सकते हैं, मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियों का गहन-विश्लेषण करने के लिए सत्य पर संगति कर सकते हैं, और उन्हें पहचानने और उनसे गुमराह न होने में भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं, और इस तरह उन्हें इस योग्य बना सकते हैं कि वे मिलकर मसीह-विरोधी को उजागर करने और निष्कासित करने के लिए उठ खड़े हों। जब मसीह-विरोधी या बुरे लोग कार्यक्षमता युक्त लोगों के कार्य के दायरे में प्रकट होते हैं, तो मूल रूप से अधिकतर भाई-बहन गुमराह या प्रभावित नहीं होते। केवल कुछ भ्रमित और बहुत कमजोर काबिलियत वाले लोग ही गुमराह होते हैं, और यह एक सामान्य घटना है। जो लोग अच्छी काबिलियत वाले होते हैं और जिनमें कार्यक्षमता होती है, वे अपने कार्य में ये नतीजे हासिल कर सकते हैं, और ऐसे लोगों में सत्य वास्तविकता होती है और वे मानक स्तर के अगुआ और कार्यकर्ता होते हैं।
जिन विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों का मैंने अभी-अभी जिक्र किया, उनमें पहला प्रकार उन लोगों का था जो कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं। उनसे पहली अपेक्षा यह होती है कि उनमें सत्य को समझने की योग्यता और काबिलियत हो। यह न्यूनतम अपेक्षा है। दूसरी अपेक्षा यह है कि वे कोई बोझ उठाएँ—यह अपरिहार्य है। कुछ लोग साधारण लोगों के मुकाबले ज्यादा तेजी से सत्य समझ लेते हैं, उनमें आध्यात्मिक समझ होती है, वे अच्छी काबिलियत वाले होते हैं, उनमें कार्यक्षमता होती है, और कुछ समय तक अभ्यास करने के बाद वे पूरी तरह से अपने दो पैरों पर खड़े हो सकते हैं। लेकिन ऐसे लोगों के साथ एक गंभीर समस्या होती है—वे कोई बोझ नहीं उठाते। वे खाना, पीना, मौज-मस्ती और आवारागर्दी करना पसंद करते हैं। उन्हें इन चीजों में बड़ी दिलचस्पी होती है, लेकिन अगर उनसे कोई विशेष कार्य करने को कहा जाए जिसमें उन्हें कष्ट सहना पड़े और कीमत चुकानी पड़े, खुद को थोड़ा संयमित रखना पड़े, तो वे सुस्त पड़ जाते हैं, और दावा करते हैं कि उन्हें कोई बीमारी या तकलीफ है, और उनका अंग-अंग असहज महसूस कर रहा है। वे असंयमित और अनुशासनहीन, बेपरवाह, जिद्दी और स्वच्छंद होते हैं। वे जब चाहें तब खाते-पीते, सोते और मौज-मस्ती करते हैं, और तभी थोड़ा-सा काम करते हैं जब उनका मन करता है। अगर काम थोड़ा कठिन और थकाऊ हो, तो वे दिलचस्पी खो देते हैं और फिर अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते। क्या यह बोझ उठाना है? (नहीं।) जो लोग आलसी होते हैं और देह-सुख का लालच करते हैं, वे ऐसे लोग नहीं हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित करना चाहिए। ऐसे लोग भी उपलब्ध हैं जिनकी काबिलियत किसी काम के लिए पर्याप्त से अधिक है, लेकिन दुर्भाग्य से वे कोई बोझ उठाते ही नहीं, वे जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते, उन्हें तकलीफ पसंद नहीं है और वे चिंता करना पसंद नहीं करते। वे उस काम के लिए अंधे हो जाते हैं जो करना होता है, और भले ही वे इसे देख लें, तो भी उसे करना नहीं चाहते। क्या इस प्रकार के लोग पदोन्नति और विकास के उम्मीदवार हैं? बिल्कुल नहीं; पदोन्नत और विकसित होने के लिए लोगों को बोझ उठाना चाहिए। बोझ उठाने का जिम्मेदारी की भावना होने के रूप में भी वर्णन किया जा सकता है। जिम्मेदारी की भावना होने का मानवता से अधिक संबंध है; बोझ उठाना लोगों को मापने के परमेश्वर के घर द्वारा प्रयुक्त मानकों में से एक से संबंधित है। जो लोग दो अन्य चीजों—सत्य को समझने की योग्यता और काबिलियत और कार्यक्षमता—के होने के साथ-साथ बोझ भी उठाते हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है और इस प्रकार के लोग कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं। ये विभिन्न प्रकार के निरीक्षक बनने हेतु लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के लिए अपेक्षित मानक हैं, और जो लोग इन मानकों पर खरे उतरते हैं, वे पदोन्नत और विकसित किए जाने के उम्मीदवार होते हैं।
II. विभिन्न पेशों के उन प्रतिभाशाली लोगों से अपेक्षित कसौटियाँ जिनमें विशेष प्रतिभाएँ या गुण होते हैं
उस प्रकार के लोगों के अलावा जो कार्य की विभिन्न मदों के निरीक्षक बन सकते हैं, एक और प्रकार के लोग हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है, वे वैसे लोग हैं जिनमें विशेष प्रतिभाएँ या गुण होते हैं या जिन्होंने कुछ पेशेवर कौशलों पर महारत हासिल की है। इस प्रकार के लोगों को टीम अगुआओं के रूप में विकसित करने के लिए परमेश्वर का घर किस मानक की अपेक्षा करता है? पहले उनकी मानवता पर गौर करो—अगर वे सकारात्मक चीजों से अपेक्षाकृत प्रेम करते हैं और बुरे लोग नहीं हैं, तो यह काफी है। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “उनसे यह अपेक्षा क्यों नहीं की जाती कि वे सत्य का अनुसरण करें?” क्योंकि टीम अगुआ कलीसिया के अगुआ या कार्यकर्ता नहीं होते, न ही वे सिंचन करने वाले होते हैं, और उनसे सत्य का अनुसरण करने के मानक पर खरे उतरने की अपेक्षा करना कुछ ज्यादा ही माँगना है, और यह उनमें से अधिकतर की पहुँच के बाहर है। उन लोगों से इसकी अपेक्षा नहीं की जाती जो सामान्य मामलों का कार्य करते हैं या पेशेवर कार्य की विशिष्ट चीजें करते हैं; अगर ऐसा होता, तो सिर्फ कुछ ही लोग योग्य साबित होते, इसलिए मानकों को नीचे लाना पड़ता है। अगर लोग अपने पेशे को समझते हैं, और काम का बोझ उठाने में सक्षम हैं, और बुरे कर्म नहीं करते या कोई बाधा पैदा नहीं करते, तो यह काफी है। इन लोगों के लिए, जिनके पास कुछ कौशलों और पेशों की विशेषज्ञता है, और जिनमें कुछ खूबियाँ हैं, अगर वे परमेश्वर के घर में कौशल की जानकारी की जरूरत वाले और उनके पेशों से संबंधित काम करने वाले हों, तो अगर वे अपने चरित्र के मामले में अपेक्षाकृत निष्कपट और ईमानदार हैं, बुरे नहीं हैं, अपनी समझ में विकृत नहीं हैं, कष्ट सहने में सक्षम हैं, और कीमत चुकाने को तैयार हैं, तो यह काफी है। इस तरह ऐसे लोगों को टीम अगुआओं के रूप में विकसित करने के लिए पहली अपेक्षा यह है कि उन्हें अपेक्षाकृत सकारात्मक चीजों से प्रेम करना चाहिए, और इसके अलावा उन्हें कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होना चाहिए। इसके अलावा और क्या है? (उन्हें ईमानदार चरित्र वाला होना चाहिए, बुरा नहीं होना चाहिए, और अपनी समझ में विकृत नहीं होना चाहिए।) उनका चरित्र अपेक्षाकृत ईमानदार होना चाहिए, उन्हें बुरा नहीं होना चाहिए, और उन्हें अपनी समझ में विकृत नहीं होना चाहिए। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “तो क्या सत्य को समझने की उनकी क्षमता को ऊँचा माना जा सकता है? सत्य को सुनने के बाद, क्या वे सत्य वास्तविकता के प्रति जागृत हो सकते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं?” इन सबकी अपेक्षा करने की कोई जरूरत नहीं है; यह अपेक्षा करना पर्याप्त है कि ऐसे लोग अपनी समझ में विकृत न हों। जो लोग अपनी समझ में विकृत नहीं हैं, जब वे अपना कार्य करते हैं तो एक लाभ यह होता है कि उनके बाधा डालने या कुछ भी हास्यास्पद करने की संभावना नहीं होती। उदाहरण के लिए, परमेश्वर के घर ने अभिनेताओं की पोशाकों के सिद्धांतों के बारे में बारम्बार संगति की है, जो गरिमामय और अच्छी होनी चाहिए, और फीकी नहीं बल्कि रंगीन होनी चाहिए। फिर भी ऐसे लोग होते हैं जो उस बात का अर्थ नहीं समझ पाते जो उन्हें बताई जाती है, वे जो सुनते हैं उसे समझ नहीं पाते, और समझने में अक्षम होते हैं और परमेश्वर के घर की इन अपेक्षाओं में निहित सिद्धांतों को पहचानने में असमर्थ होते हैं, और वे ऐसी पोशाकें चुन लेते हैं जो सारी धूसर रंग की होती हैं—क्या यह विकृत समझ नहीं है? (हाँ।) विकृत समझ होने का अर्थ यही है। अपेक्षाकृत सकारात्मक चीजों से प्रेम करने का मुख्य रूप से क्या अर्थ है? (सत्य को स्वीकार करने में सक्षम होना।) सही कहा। इसका अर्थ है उन वचनों और चीजों को स्वीकारने में सक्षम होना जो सत्य के अनुरूप हैं, और परमेश्वर के वचनों और सत्य के सभी पहलुओं को स्वीकार कर उनके प्रति समर्पण करना। ऐसे लोग चाहे इन चीजों को अभ्यास में ला पाएँ या नहीं, कम-से-कम अपने मन की गहराई में उन्हें उनके प्रति प्रतिरोधी नहीं होना चाहिए या उन्हें उनसे घृणा नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोग भले लोग होते हैं, और बोलचाल की भाषा में यह कहा जा सकता है कि वे शालीन लोग हैं। शालीन लोगों के क्या लक्षण होते हैं? गैर-विश्वासी जिन बुरे कर्मों को करना पसंद करते हैं और जिन बुरी प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हैं, उनके प्रति वे घृणा, विकर्षण, और नफरत महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए, गैर-विश्वासियों की दुनिया की प्रवृत्तियाँ बुरी शक्तियों की पैरवी करती हैं, और बहुत-सी औरतें किसी अमीर पुरुष से शादी करने या किसी की रखैल बनने के पीछे भागती हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? सत्य से प्रेम करने वाले लोग इन चीजों को खास तौर पर घिनौना पाते हैं और कुछ कहते हैं, “भले ही मुझे शादी करने के लिए कोई न मिले, भले ही मैं गरीबी से मर जाऊँ, लेकिन मैं कभी भी उन लोगों की तरह काम नहीं करूँगा।” दूसरे शब्दों में कहें, तो वे ऐसे लोगों के प्रति घृणा और तिरस्कार से भरे होते हैं। शालीन लोगों की एक विशेषता यह है कि वे बुरी प्रवृत्तियों को अरुचिकर और घिनौना पाते हैं, और उन लोगों के प्रति घृणा से भरे होते हैं जो इस तरह की प्रवृत्तियों में फँस गए हैं। ये लोग काफी हद तक ईमानदार होते हैं; परमेश्वर में विश्वास रखने और एक अच्छा इंसान बनने, सही रास्ते पर चलने, परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने, बुरी प्रवृत्तियों से दूर रहने और दुनिया के सभी बुरे व्यवहारों से दूर रहने का उल्लेख किए जाने पर अंतर्मन में उन्हें लगता है कि ये चीजें अच्छी हैं। वे इन सबको हासिल करने के लिए कदम आगे बढ़ाने में सक्षम हों या नहीं, और परमेश्वर में विश्वास रखने और सही रास्ते पर चलने की उनकी आकांक्षा चाहे कितनी भी बड़ी हो, कुल मिलाकर अपने अंतर्मन में वे प्रकाश में रहने और उस स्थान पर होने के लिए तरसते हैं, जहाँ धार्मिकता की सत्ता होती है। इस प्रकार के ईमानदार लोग ऐसे लोग हैं जो सकारात्मक चीजों से काफी हद तक प्रेम करते हैं। जिन लोगों को परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किया जाना है, उनमें कम-से-कम ईमानदार मानवता और सकारात्मक चीजों से प्रेम का चरित्र तो होना ही चाहिए। साथ ही यह पेशेवर कौशलों और खूबियों वाले प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत करने के लिए अपेक्षित पहला मानक भी है। दूसरा मानक यह है कि ऐसे लोगों को कठिनाई झेलने और कीमत चुकाने में सक्षम होना चाहिए। अर्थात्, जब उन कारणों या कार्यों की बात आती है, जिनके बारे में वे जुनूनी होते हैं, तो वे अपनी इच्छाएँ अलग रखने में सक्षम होते हैं, दैहिक सुख या आरामदायक जीवन-शैली छोड़ देते हैं, यहाँ तक कि अपनी भविष्य की संभावनाएँ भी छोड़ देते हैं। इसके अलावा, थोड़ी-सी कठिनाई या कुछ हद तक थका हुआ महसूस करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं होती; अगर वे कुछ सार्थक और कुछ ऐसा कर रहे हों, जिसे वे सही मानते हैं, तो वे खुशी-खुशी देह-सुख और लाभ त्याग देते हैं—या कम-से-कम ऐसा करने की अभिलाषा या कामना रखते हैं। कुछ लोग कहते हैं, “कभी-कभी वे लोग अभी भी दैहिक सुखों का लालच करते हैं : कभी-कभी वे सोना चाहते हैं, या अच्छा खाना खाना चाहते हैं, और कभी-कभी वे बाहर घूमने जाना या खेलते-कूदते समय बिताना चाहते हैं—लेकिन अधिकांश समय वे कठिनाई सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होते हैं; बस कभी-कभी उनकी मनःस्थिति उन्हें वैसे विचारों की ओर ले जाती है। क्या इसे समस्या माना जाएगा?” इसे समस्या नहीं माना जाएगा। उनसे यह माँग करना बहुत अधिक होगा कि वे विशेष परिस्थितियों के सिवाय दैहिक सुखों को पूरी तरह से अलग रख दें। सामान्य तौर पर, जब ऐसे लोगों को तुम कोई काम करने के लिए देते हो, तो चाहे वह काम बड़ा हो या नहीं, और चाहे वे उसे करना चाहते हों या नहीं, या वह काम कितना भी कठिन क्यों न हो, अगर तुम उसे उन्हें सौंप देते हो, तो चाहे उन्हें कितनी भी बड़ी कठिनाई झेलनी पड़े, कितनी भी कीमत चुकानी पड़े, तुम्हारे उन पर नजर रखे बिना या निगरानी किए बिना, उनके द्वारा उसे अपनी सर्वोत्तम योग्यता से किए जाने की गारंटी होती है। ऐसे लोग कठिनाई झेल सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं और यह शालीन लोगों की एक और अभिव्यक्ति है। कठिनाई सहने और कीमत चुकाने में सक्षम होने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कार्य को पूरी तरह से करना, बहुत अधिक समर्पित होना और ध्यान देना, और कोई भी कठिनाई सहने और कोई भी कीमत चुकाने को तैयार होना है ताकि वे चीजों को उचित ढंग से करवा सकें। काम करवाने की बात आने पर, ऐसे लोग अपने वायदों पर कायम रहते हैं, और भरोसेमंद होते हैं, उन लोगों की तरह नहीं जो खाऊ और निठल्ले होते हैं, आरामपसंद होते हैं, श्रम से घृणा करते हैं और फायदे को सभी चीजों से ऊपर रखते हैं। उस प्रकार के लोग अपने वायदों से मुकर जाते हैं, धोखा देने और दूसरों को मनाने के लिए निरंतर झूठी बातें कहते हैं, और अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए झूठ बोलने और झूठी शपथ लेने से नहीं हिचकते—परमेश्वर वैसे लोगों को नहीं बचाएगा। परमेश्वर ईमानदार लोगों को पसंद करता है। केवल ईमानदार लोग ही अपने वचन पर कायम रहते हैं और अपने कर्तव्यों के प्रति वफादार होते हैं, और सिर्फ वही लोग जो परमेश्वर का आदेश पूरा करने के लिए कठिनाई झेल सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, परमेश्वर द्वारा बचाए जा सकते हैं। कठिनाई झेलने और कीमत चुकाने में सक्षम होना दूसरी विशेषता और अभिव्यक्ति है जो परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित होने के लिए किसी में होना चाहिए। तीसरा मानक है किसी व्यक्ति का समझ में विकृत न होना। यानी परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद, वे कम-से-कम यह जानने में सक्षम होते हैं कि वचनों का संबंध किससे है, वे परमेश्वर की कही हुई बात का अर्थ समझ पाते हैं, और उनकी समझ में कोई भटकाव या अस्पष्टता नहीं होती है। उदाहरण के लिए, अगर तुम नीले रंग की बात करते हो, तो वे उसका गलत अर्थ लगाते हुए उसे काला नहीं समझेंगे, और अगर तुम धूसर रंग की बात करते हो तो उसका गलत अर्थ लगाते हुए उसे बैंगनी नहीं समझेंगे। यह न्यूनतम बात है। भले ही कभी-कभी उनकी समझ विकृत हो, जब दूसरे उन्हें यह बताते हैं तो वे उसे स्वीकार सकते हैं और अगर वे देखते हैं कि किसी दूसरे में उनसे ज्यादा विशुद्ध समझ है, तो वे उसे फौरन स्वीकार सकते हैं—इस प्रकार के व्यक्ति में विशुद्ध समझ होती है। चौथी बात यह है कि उन लोगों को बुरा नहीं होना चाहिए। क्या इस बात को समझना आसान है? बुरा व्यक्ति न होने का अर्थ कम-से-कम एक कार्य करना होता है, जो यह है कि परमेश्वर के घर द्वारा बताई गई चीज को हासिल करने में विफल होने के बाद या सिद्धांतों का उल्लंघन करने और कोई गलत काम करने के बाद, ऐसे लोगों को काट-छाँट किए जाने पर बिना किसी प्रतिरोध और बिना नकारात्मकता या धारणाएँ फैलाए स्वीकार कर समर्पण करने में सक्षम होना चाहिए। इसके अलावा चाहे वे किसी भी समूह में हों, ज्यादातर लोगों के साथ मिल-जुलकर रह सकें और उनके साथ सामंजस्य से काम कर सकें। जब कोई उनसे कुछ अप्रिय बातें कहकर उनका दिल दुखाए, तो वे बिना कोई हिसाब रखे उसे सहन कर सकें, और कोई उन्हें धौंस दिखाए, तो वे बुराई का दंड बुराई से न दें, बल्कि इसके बजाय, अक्लमंद तरीकों से अपनी दूरी बनाए रखें और साफ बचकर निकल जाएँ। हालाँकि ऐसे व्यक्तियों में ईमानदार होने में थोड़ी कमी रह जाती है, वे कम-से-कम काफी हद तक निष्कपट होते हैं, और बुरे कर्म नहीं करते और यदि कोई उनका अपमान करता है, तो वे प्रतिकार नहीं करते या दूसरे व्यक्ति को सताते नहीं या दबाते नहीं हैं। इसके अलावा, ऐसे लोग अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की कोशिश नहीं करते, परमेश्वर के घर के विरोध में कार्य करने, परमेश्वर के बारे में धारणा फैलाने, या उसकी आलोचना करने का प्रयास नहीं करते, या कुछ भी विध्वंसकारी या गड़बड़ी पैदा करने का प्रयास नहीं करते। ऊपर दिए गए चार बिंदु उन प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के बुनियादी मानदंड हैं, जिनमें कुछ खूबियाँ हैं और जो कुछ पेशेवर कौशलों को समझते हैं। अगर वे ये चार मानदंड पूरे करते हैं, तो वे मूलतः कुछ कर्तव्यों का बोझ उठा सकते हैं और कुछ कार्य उचित तरीके से कर सकते हैं।
कुछ लोग पूछ सकते हैं : “पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए प्रतिभाशाली लोगों को जिन कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए उसमें सत्य को समझना, सत्य वास्तविकता होना, और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने में सक्षम होना क्यों शामिल नहीं है? ऐसा कैसे है कि इनमें परमेश्वर को जानने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम होना, परमेश्वर के प्रति वफादार होना और एक मानक स्तर का सृजित प्राणी होना शामिल नहीं है? क्या इन चीजों को पीछे छोड़ दिया गया है?” मुझे बताओ, अगर कोई सत्य समझता है, उसने सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लिया है, वह परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम है, परमेश्वर के प्रति वफादार है, उसमें परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है, और यही नहीं, वह परमेश्वर को जानता है, उसका प्रतिरोध नहीं करेगा, और एक मानक स्तर का सृजित प्राणी है, तो क्या उसे अब भी विकसित करने की जरूरत है? अगर उसने ये सारी चीजें सचमुच हासिल कर ली हैं, तो क्या विकास का परिणाम पहले ही सिद्ध नहीं हो चुका है? (हाँ।) इसलिए, पदोन्नत और विकसित किए जाने वाले प्रतिभाशाली लोगों से जो अपेक्षाएँ होती हैं, उनमें ये कसौटियाँ शामिल नहीं हैं। क्योंकि उम्मीदवारों को इंसानों के बीच से लेकर पदोन्नत और विकसित किया जाता है जो सत्य नहीं समझते और जो भ्रष्ट स्वभावों से भरे हुए हैं, इसलिए इन पदोन्नत और विकसित किए जाने वाले उम्मीदवारों में पहले से सत्य वास्तविकता का होना या उनका पहले ही पूरी तरह से परमेश्वर को समर्पण कर पाना असंभव है, परमेश्वर के प्रति पूरी तरह वफादार होना तो दूर की बात है, और वे परमेश्वर को जानने और परमेश्वर का भय मानने वाला दिल रखने से तो निश्चित रूप से और भी दूर हैं। सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए सबसे ऊपर जिन कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए, वे वही हैं जिनका हमने अभी-अभी जिक्र किया—ये ही सबसे अधिक वास्तविक और विशिष्ट कसौटियाँ हैं। कुछ झूठे अगुआ कहते हैं, “यहाँ ऐसे कोई प्रतिभाशाली लोग नहीं हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है। अमुक व्यक्ति सत्य नहीं समझता, अमुक व्यक्ति परमेश्वर का भय मानने वाले दिल के बिना काम करता है, अमुक व्यक्ति काट-छाँट से गुजरने को स्वीकार नहीं कर सकता, अमुक व्यक्ति में कोई वफादारी नहीं है ...” आदि-आदि, इस तरह वे ढेरों खामियाँ निकालते हैं। ये बातें कहकर ये झूठे अगुआ क्या जताना चाहते हैं? यह ऐसा है मानो उन लोगों को पदोन्नत और विकसित नहीं किया जा सकता क्योंकि वे सत्य नहीं समझते, परमेश्वर के कार्य का अनुभव नहीं करते, और अभी उनमें सत्य वास्तविकता नहीं है, आदि-आदि, जबकि स्वयं अगुआ इस कारण से अगुआ बनने में सक्षम हो सके क्योंकि उन्हें पहले ही थोड़ा व्यावहारिक अनुभव है और उनके पास सत्य वास्तविकता है। क्या झूठे अगुआओं के कहने का यह मतलब नहीं है? उनकी नजरों में, कोई भी उन जैसा अच्छा नहीं है, और उनके सिवाय कोई भी अगुआ बनने लायक नहीं है। झूठे अगुआओं का यह अहंकारी स्वभाव है; जब परमेश्वर के घर द्वारा लोगों की पदोन्नति और विकास की बात आती है, तो वे धारणाओं और कल्पनाओं से भरे होते हैं।
III. सामान्य कार्य करने वाले कर्मचारियों से अपेक्षित कसौटियाँ
मैंने अभी-अभी दो प्रकार के लोगों का जिक्र किया जिनका विकास करने पर परमेश्वर का घर ध्यान केंद्रित करता है। एक प्रकार के लोग वे हैं जो अगुआ और कार्यकर्ता बन सकते हैं, और दूसरे प्रकार के लोग वे हैं जो विभिन्न पेशेवर काम का बीड़ा उठा सकते हैं। एक और प्रकार का व्यक्ति भी होता है। यह नहीं कहा जा सकता कि उसमें खास खूबियाँ या उसके पास पेशेवर कौशल होते हैं; उसके कार्य में कोई उन्नत टेक्नोलॉजी शामिल नहीं होती, यानी यह कहा जा सकता है कि ये लोग कलीसिया में कुछ साधारण मामलों वाले काम करते हैं, वे कलीसिया के मुख्य कार्य से विषयेतर कुछ अलग मामलों से निपटते हैं। वे इस प्रकार के लोग हैं, जो सामान्य मामलों वाले काम करते हैं। ऐसे लोगों से परमेश्वर के घर की प्रमुख अपेक्षाएँ क्या होती हैं? सबसे महत्वपूर्ण अपेक्षा यह होती है कि वे परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने में सक्षम हों, परमेश्वर के घर की कीमत पर बाहरवालों की मदद न करें, और खुद को शैतान का अनुग्रह पाने के लिए परमेश्वर के घर के हितों का सौदा न करें। बस इतना ही। चाहे वे गुणी संचारक हों, समाज के आला व्यक्ति हों, या विशेष प्रतिभाशाली व्यक्ति हों, परमेश्वर के घर के बाहरी मामलों को संभालते समय उन्हें परमेश्वर के घर के हितों का बचाव करने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर के घर के हितों में क्या शामिल होते हैं? धन, सामग्री, परमेश्वर के घर और कलीसिया की प्रतिष्ठा, और भाई-बहनों की सुरक्षा—इनमें से प्रत्येक पहलू अत्यंत महत्वपूर्ण है। जो भी व्यक्ति परमेश्वर के घर के हितों की प्रतिरक्षा करने में सक्षम होता है, उसमें सामान्य मानवता होती है, वह पर्याप्त ईमानदार होता है, और ऐसा होता है जो सत्य का अभ्यास करने को तैयार होता है। कुछ लोगों को कोई पहचान नहीं होती, और वे कहते हैं, “एक व्यक्ति है जिसकी मानवता बुरी है, मगर वह परमेश्वर के घर के कार्य की प्रतिरक्षा कर सकता है।” क्या यह संभव है? (नहीं, यह संभव नहीं है।) बुरे लोग परमेश्वर के घर के कार्य की प्रतिरक्षा कैसे कर सकते हैं? वे केवल अपने ही हितों की प्रतिरक्षा कर सकते हैं। इस तरह अगर कोई परमेश्वर के घर के हितों की प्रतिरक्षा करने में सचमुच सक्षम है, तो वह निश्चित रूप से अच्छे चरित्र और मानवता वाला होगा; यह गलत नहीं हो सकता। परमेश्वर के घर के लिए काम करते समय अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर की कीमत पर बाहरवालों की मदद करता है, उसके हितों के साथ विश्वासघात करता है, और परमेश्वर के घर को सिर्फ भारी आर्थिक और भौतिक हानि पहुँचाने का कारण ही नहीं बनता, बल्कि परमेश्वर के घर और कलीसिया की प्रतिष्ठा को भी भारी क्षति पहुँचाता है, तो क्या वह अच्छा इंसान है? ऐसे लोग निश्चित रूप से अच्छे नहीं होते हैं। उन्हें परवाह नहीं होती कि परमेश्वर के घर को कितना भारी भौतिक और वित्तीय नुकसान पहुँचता है; उनके लिए जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है, वह है खुद लाभान्वित होना और गैर-विश्वासियों का अनुग्रह पाना; वे गैर-विश्वासियों को न सिर्फ उपहार भेजते हैं, बल्कि मोल-तोल के दौरान उन्हें निरंतर छूट भी देते हैं—उनके मन में यह बात नहीं आती कि परमेश्वर के घर के हितों के लिए लड़ना है। फिर भी वे परमेश्वर के घर से यह कहकर झूठ बोलते हैं कि उन्होंने कार्य कैसे पूरा किया, और किस तरह से परमेश्वर के घर के हितों की प्रतिरक्षा की—जबकि दरअसल कलीसिया के कार्य को पहले ही क्षति पहुँच चुकी है, और गैर-विश्वासियों ने परमेश्वर के घर का खूब फायदा उठाया है। अगर हर लिहाज से कोई व्यक्ति बाहरी मामले संभालते समय परमेश्वर के घर के हितों की प्रतिरक्षा करने में सक्षम हो, तो क्या यह व्यक्ति अच्छा व्यक्ति है? (हाँ।) और इसलिए अगर इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर के घर में कोई अन्य काम करने में अक्षम हो, और सिर्फ इस प्रकार के सामान्य मामले वाला कार्य करने के लायक हो, तो क्या परमेश्वर के घर को उसे पदोन्नत करना चाहिए? (हाँ।) कार्य क्षमता होने और परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार अपना कार्य करने में सक्षम होने के अलावा, वह परमेश्वर के घर के हितों की प्रतिरक्षा करने में भी सक्षम होता है, इसलिए वह मानक स्तर का होता है, और ऐसे लोगों को पदोन्नत करना चाहिए। दूसरा पहलू देखें, तो जो लोग परमेश्वर के घर के हितों को निरंतर नुकसान पहुँचाते हैं, जो भाई-बहनों की सुरक्षा के लिए निरंतर जोखिम खड़ी करते हैं, और जो परमेश्वर के घर और कलीसिया की प्रतिष्ठा के लिए निरंतर विपरीत प्रभावों और परिणामों का कारण बनते हैं—ऐसे लोगों को पदोन्नत और विकसित नहीं करना चाहिए; अगर उन्हें पदोन्नत कर प्रयुक्त कर भी लिया गया, तो भी उन्हें जल्द ही बरखास्त कर देना चाहिए। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो अपना काम करते समय हमेशा मुसीबत में फँस जाते हैं, जैसे कि गाड़ी चलाते समय दुर्घटनाग्रस्त होना, जो मामले वे संभालते हैं उन्हें बिगाड़ देना, या ऐसा टकराव पैदा करना जिसका अंजाम लगातार शिकायतें हों, और अगर कोई खामी हो तो उनका यह न जानना कि उसे ठीक कैसे करें। ऐसे लोग बुद्धि से कमजोर होते हैं, बदकिस्मती लाने वाले और अपव्ययी भी होते हैं। अगर इस प्रकार का व्यक्ति एक टीम अगुआ, पर्यवेक्षक, अगुआ या कार्यकर्ता बन जाए, तो उसे न सिर्फ जल्द ही बरखास्त कर देना चाहिए बल्कि उसे कलीसिया से निकाल भी देना चाहिए। ऐसा इसलिए कि इस प्रकार का व्यक्ति बरबादी का कारण बनता है और बदकिस्मती लाने वाला होता है। अगर कलीसिया में एक या दो ऐसे लोग हुए तो कलीसिया में बिल्कुल शांति नहीं हो सकती। लगता है कि ऐसे लोगों के भीतर बुरी आत्माएँ होती हैं या कोई महामारी होती है। जो भी उनके संपर्क में आता है वह दुर्भाग्य का भागी बनेगा, इसलिए इस प्रकार के व्यक्ति को बिना देर किए समूल उखाड़ फेंकना चाहिए। यहाँ तक कि इन लोगों के चेहरों की बनावट भी गलत होती है, ये कुटिल और दानवी भावों या डरावनी कुरूपता से भरे होते हैं, और जो भी उनके संपर्क में आता है, उसे लगेगा कि कुछ बुरा होने वाला है। इस प्रकार के लोगों को बरखास्त कर निकाल देना चाहिए, और तभी कलीसिया के मामले ठीक ढंग से चल सकते हैं। कलीसिया में विभिन्न लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के लिए सिद्धांतों का पालन करना और बूझने का अभ्यास करना जरूरी होता है, ताकि सिद्धांतों के अनुसार कार्य किया जाए। जिन विभिन्न प्रकार के लोगों को पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उनके बीच वे लोग भी होते हैं जो कलीसिया के अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा करते हैं, जो कलीसिया में विभिन्न पेशों का उत्तरदायित्व संभालते हैं, और जो कलीसिया के सामान्य मामले संभालते हैं। इन तमाम प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को जिन विभिन्न कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए, उनके बारे में भी स्पष्ट रूप से संगति की जा चुकी है। जब तुम्हारे मन में उन सिद्धांतों को लेकर स्पष्टता होगी कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कैसे चुनना है, और लोगों को कैसे पदोन्नत और विकसित करना है, तो कलीसिया का समस्त कार्य सही मार्ग में प्रवेश करेगा।
कुछ लोग पूछ सकते हैं, “जिन लोगों को परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उन्हें प्रतिभाशाली क्यों कहा जाता है?” हम जिन प्रतिभाशाली लोगों की बात करते हैं, वे पदोन्नति और विकास के उम्मीदवार हैं। विभिन्न कार्य कर सकने वाले लोगों के लिए विभिन्न अपेक्षाएँ होती हैं, और चूँकि वे पदोन्नत और विकसित होने की प्रक्रिया में होते हैं, इसलिए यह बहुत पर्याप्त है कि ये तथाकथित प्रतिभाशाली लोग उन कसौटियों पर खरे उतर सकें जिनका हमने अभी जिक्र किया। यह आशा करना अयथार्थवादी होगा कि इन लोगों के पास पहले ही सत्य वास्तविकता हो, वे पहले ही समर्पित और वफादार हों, और पहले ही परमेश्वर का भय मानते हों। इस प्रकार, जिन प्रतिभाशाली लोगों की बात हम करते हैं वे महज वे लोग हैं जिनके पास वे कुछ गुण और सत्यनिष्ठा होती है जो सामान्य मानवता वाले लोगों में होनी चाहिए, और सत्य को समझने की काबिलियत होती है—इस तरह उन्हें योग्यता-प्राप्त माना जाता है। इसका यह मतलब नहीं है कि उन्होंने पहले ही सत्य समझ लिया है और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लिया है, न ही इसका यह मतलब है कि उन्होंने पहले ही परमेश्वर के न्याय और ताड़ना और ऐसी ही चीजों को स्वीकार कर परमेश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण प्राप्त कर लिया है। निस्संदेह, “प्रतिभाशाली लोग” शब्द का संबंध उन लोगों से नहीं है जिन्होंने विश्वविद्यालय में पढ़ाई की हो या पीएच.डी. करने का प्रयास किया हो या जो प्रतिष्ठित पारिवारिक पृष्ठभूमि या उन्नत सामाजिक रुतबे के लोग हों, या विशेष योग्यताओं या गुणों वाले हों—इसका संबंध इन लोगों से नहीं है। चूँकि उन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाना है, इसलिए जिन कुछ लोगों को पेशेवर काम करना है, हो सकता है उनका संभवतः कभी भी उस पेशे से पाला न पड़ा हो या उन्होंने उसका अध्ययन न किया हो, लेकिन अगर वे पदोन्नति और विकास की उन तमाम कसौटियों पर खरे उतरते हैं, और एक विशिष्ट पेशा सीखने को तैयार हैं और सीखने में अच्छे हों, तो फिर परमेश्वर का घर उन्हें पदोन्नत और विकसित कर सकता है। यह कहने का मेरा क्या तात्पर्य है? मेरा यह तात्पर्य नहीं है कि किसी व्यक्ति को सिर्फ तभी पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है जब वह स्वाभाविक रूप से किसी खास पेशे में उत्कृष्ट हो। बल्कि यह है कि अगर उसमें सीखने की ओर झुकाव हो और वह शर्तें पूरी करता हो, या अगर वह इस पेशे की कुछ बुनियादी बातें जानता हो, तो उसे पदोन्नत और विकसित किया जा सकता है—यही सिद्धांत है। परमेश्वर का घर जिन प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करना चाहता है उन्हें जिन कसौटियों पर खरा उतरना चाहिए उनके बारे में हमारी संगति यहीं समाप्त होती है।
सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के परमेश्वर के घर के लक्ष्य
इसके बाद हम इस बारे में संगति करेंगे कि परमेश्वर का घर सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है। कुछ लोग इसे अच्छी तरह समझते नहीं हैं और सोचते हैं, “परमेश्वर के घर के लिए क्या यह काफी नहीं होगा कि वह प्रतिभाशाली लोगों को सीधे पदोन्नत कर उनका उपयोग करे? उसे कुछ समय तक उन्हें विकसित और प्रशिक्षित करने की क्या जरूरत है?” तुम लोग इस बात को समझते हो या नहीं? चलो पहले हम उस प्रकार के लोगों के बारे में बात करें जो अगुआ और कार्यकर्ता बनते हैं। परमेश्वर का घर उन लोगों को क्यों पदोन्नत और विकसित करता है जिनमें समझने की क्षमता है, जो कलीसिया के लिए बोझ दायित्व उठाते हैं, और जिनमें कार्यक्षमता है? क्योंकि वे अपनी काबिलियत और कसौटियों पर खरे उतरने के मामले में भले ही योग्यता-प्राप्त हैं, फिर भी उन्हें अभी वास्तविक अनुभव नहीं हो पाया है और वे सत्य नहीं समझते हैं, सत्य का अभ्यास करने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने का तरीका जानना तो दूर की बात है। उन्हें कुछ समय के लिए प्रशिक्षित करना और मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए, और जब उन्होंने अपना कर्तव्य करने के सिद्धांतों पर महारत हासिल कर ली हो, और वास्तविक अनुभव पा लिया हो, तभी उनका औपचारिक तौर पर उपयोग किया जा सकता है। अगर वे कलीसिया के भाई-बहनों की तरह हों, परमेश्वर के वचनों को खाएँ-पिएँ, उपदेशों को सुनें, कलीसिया का जीवन जिएँ, और कोई कर्तव्य करने में प्रशिक्षण लें, और जीवन में विकसित होने के बाद ही उन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाए, तो फिर उनकी प्रगति बहुत धीमी होगी। उस स्थिति में, परमेश्वर के उपयोग के लिए उनके उपयुक्त होने में कितने वर्ष लगेंगे? क्या इससे कलीसिया के कार्य पर असर नहीं पड़ेगा? इसलिए अगर किसी व्यक्ति में सत्य समझने की योग्यता है, कार्यक्षमता है, दायित्व उठाने की भावना है, तो उसे पदोन्नत और विकसित करना चाहिए और एक अगुआ और कार्यकर्ता का कर्तव्य निभाने में प्रशिक्षण लेने को कहना चाहिए, और उसे कोई दायित्व दे देना चाहिए। एक लिहाज से, इससे उसे अपनी खूबियों का भरपूर लाभ उठाने का मौका मिलता है। दूसरे लिहाज से, जब वह विशेष स्थितियों का सामना करता है, तो यह जरूरी है कि उसकी विभिन्न कठिनाइयाँ दूर करने के लिए उसके साथ सत्य पर संगति की जाए। कभी-कभी उसकी काट-छाँट भी होनी चाहिए, और जरूरत पड़ने पर उसे अनुशासित भी करना चाहिए और अनेक परीक्षणों और शोधनों से गुजारना चाहिए, और उसे काफी कष्ट सहने चाहिए। ऐसे व्यावहारिक प्रशिक्षण से गुजर कर ही ऐसे लोग वास्तविक प्रगति कर सकते हैं, कदम-दर-कदम सत्य समझ सकते हैं और सिद्धांतों पर महारत हासिल कर सकते हैं, और फिर यथाशीघ्र अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कार्य का बीड़ा उठा सकते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस प्रकार विकसित और प्रशिक्षित करने से बेहतर नतीजे निकल पाएँगे, और यह ज्यादा तेजी से होगा, जोकि परमेश्वर के घर के कार्य के लिए लाभप्रद है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के लिए और ज्यादा लाभकारी है, क्योंकि व्यावहारिक अनुभव वाले अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के चुने हुए लोगों का सीधे सिंचन और पोषण कर सकते हैं। जब परमेश्वर का घर किसी को अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित करता है, तो वह उन्हें प्रशिक्षित करने, परमेश्वर पर निर्भर करने और सत्य की ओर प्रयास करने के लिए उन्हें और भी अधिक दायित्व देता है; तभी उनका आध्यात्मिक कद यथाशीघ्र बढ़ेगा। उन पर जितना अधिक दायित्व डाला जाता है, उतना ही उन पर दबाव बनता है, वे सत्य को खोजने और परमेश्वर पर निर्भर रहने के लिए उतने ही मजबूर हो जाते हैं। अंत में, वे अपना कार्य ठीक से करने और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में सक्षम हो पाएँगे, और इस तरह वे बचाए और पूर्ण किए जाने के सही मार्ग पर कदम रखेंगे—यह प्रभाव तब प्राप्त होता है जब परमेश्वर का घर लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है। इन विशेष कामों को किए बिना, वे यह नहीं जान पाएँगे कि उनमें क्या कमी है, यह नहीं जान पाएँगे कि सिद्धांतों के अनुसार कार्य कैसे करें और न ही यह समझ पाएँगे कि सत्य वास्तविकता होने का क्या अर्थ है। तो विशेष काम करने से उन्हें अपनी कमियाँ खोजने में मदद मिलती है, उन्हें यह देखने में मदद मिलती है कि अपने गुणों के अलावा, वे सत्य वास्तविकता से रहित हैं; उन्हें यह आभास पाने में मदद मिलती है कि वे कितने दरिद्र और दयनीय हैं, इससे उन्हें यह एहसास हो पाता है कि यदि वे परमेश्वर पर निर्भर रहकर सत्य को नहीं खोजेंगे, तो वे किसी भी कार्य के योग्य नहीं होंगे, इससे उन्हें खुद को सच में जानने और साफ तौर पर देखने का मौका मिलता है कि यदि वे सत्य का अनुसरण कर अपना स्वभाव नहीं बदलेंगे, तो उनके लिए परमेश्वर के उपयोग के लायक होना असंभव होगा—ये वे तमाम प्रभाव हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विकसित और प्रशिक्षित किए जाने पर प्राप्त होने चाहिए। केवल इन पहलुओं को समझ कर ही लोग दोनों पाँव जमीन पर रखकर सत्य का अनुसरण कर सकते हैं, विनम्रता के साथ अपना आचरण कर सकते हैं, अपना काम करते समय अपनी शेखी न बघारने के प्रति सुनिश्चित हो सकते हैं, निरंतर परमेश्वर की बड़ाई करते हैं और अपना कर्तव्य करते समय परमेश्वर की गवाही देते हैं, और कदम-दर-कदम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करते हैं। जब कोई व्यक्ति अगुआ बनने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो वह इस योग्य बनाया जाता है कि विभिन्न लोगों की दशाओं को बूझने का तरीका सीख ले, विभिन्न लोगों की कठिनाइयों को दूर करने और विभिन्न प्रकार के लोगों को सहारा देने और उनकी आपूर्ति करने और सत्य वास्तविकता में लोगों की अगुआई करने के लिए सत्य को खोजने में प्रशिक्षित हो सके। साथ-ही-साथ उसे कार्य के दौरान सामने आई विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों को दूर करने में भी प्रशिक्षण लेना चाहिए, और विभिन्न प्रकार के मसीह-विरोधियों, बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों में भेदकर उनसे निपटने और कलीसिया को स्वच्छ करने के कार्य का तरीका सीखना चाहिए। इस प्रकार, दूसरों के मुकाबले, वह ज्यादा लोगों, घटनाओं और चीजों का और परमेश्वर द्वारा व्यवस्थित परिवेशों का अनुभव कर सकेगा, परमेश्वर के ज्यादा-से-ज्यादा वचनों को खा पी सकेगा, और पहले से कहीं अधिक सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर सकेगा। यह उसके लिए खुद को प्रशिक्षित करने का अवसर है, है ना? प्रशिक्षण के जितने ज्यादा अवसर होंगे, उतने ही ज्यादा लोगों के अनुभव होंगे, उनकी अंतर्दृष्टियाँ उतनी ही व्यापक होंगी, और वे उतनी ही तेजी से बढ़ेंगे। लेकिन, अगर लोग अगुआ का कार्य नहीं करते, तो वे सिर्फ व्यक्तिगत अस्तित्व और व्यक्तिगत अनुभवों का सामना कर उनमें से गुजरेंगे और केवल व्यक्तिगत भ्रष्ट स्वभावों और विभिन्न व्यक्तिगत दशाओं को पहचान पाएँगे—जो सब-के-सब केवल स्वयं उनसे ही संबंधित होते हैं। जब एक बार वे अगुआ बन जाते हैं तो उनकी मुलाकात ज्यादा लोगों, ज्यादा घटनाओं और ज्यादा परिवेशों से होती है, जिससे वे अक्सर परमेश्वर के सामने आकर सत्य सिद्धांतों को खोजने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। उनके लिए ये लोग, घटनाएँ, और चीजें एक अदृश्य दायित्व बन जाती हैं, और स्वाभाविक रूप से सत्य वास्तविकता में उनके प्रवेश के लिए अत्यंत अनुकूल स्थितियाँ तैयार कर देते हैं, जोकि एक अच्छी बात है। और इसलिए जिस व्यक्ति में काबिलियत होती है, जो दायित्व उठाता है, और जिसमें कार्यक्षमता होती है, वह एक साधारण विश्वासी के रूप में धीरे-धीरे प्रवेश करेगा, और एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तेजी से प्रवेश करेगा। लोगों के लिए सत्य वास्तविकता में तेजी से प्रवेश करना अच्छी बात है या धीरे-धीरे? (तेजी से।) इसलिए, जब उन लोगों की बात आती है, जिनमें काबिलियत होती है, जो दायित्व उठाते हैं, और जिनमें कार्यक्षमता है, परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को पदोन्नत कर एक अपवाद बनाता है, अगर वे ऐसे लोग हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, और सत्य की ओर प्रयास नहीं करते, तो ऐसी स्थिति में, परमेश्वर का घर उन्हें मजबूर नहीं करेगा। अगर किसी व्यक्ति के पास परमेश्वर में विश्वास की नींव है, वह एक अगुआ या कार्यकर्ता होने की कसौटियों पर खरा उतरता है, और सत्य का अनुसरण करने और परमेश्वर द्वारा उपयोग में लाए जाने को तैयार है, तो इसमें कोई संदेह ही नहीं है कि परमेश्वर का घर उन्हें पदोन्नत और विकसित करेगा, एक अगुआ या कार्यकर्ता बनने हेतु प्रशिक्षित होने का अवसर देगा, और उन्हें इस योग्य बनाएगा कि वे कलीसिया का कार्य करना सीखें, लोगों को बूझना-पहचानना सीखें, कलीसिया की सभी विभिन्न समस्याओं से निपटना सीखें, और कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार विभिन्न कामों को क्रियान्वित करना सीखें। प्रशिक्षित होने की अवधि के दौरान, अगर लोग सत्य को और काट-छाँट किए जाने को स्वीकार सकें, परमेश्वर के आयोजन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर सकें, विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य को खोज सकें, और सभी प्रकार के लोगों से पेश आना सीख सकें और परमेश्वर के वचनों के अनुसार हर तरह के लोगों में भेद करना और निपटना सीख सकें, तो वे संगत सत्य सिद्धांतों को आत्मसात कर सकेंगे, और सत्य को समझ सकेंगे और वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे—ये वे चीजें हैं जो साधारण विश्वासी अनुभव नहीं कर सकते या हासिल नहीं कर सकते। इसलिए इस दृष्टिकोण से, परमेश्वर के घर द्वारा किसी को पदोन्नत और विकसित करना अच्छी चीज है या बुरी चीज? क्या यह उनके लिए लाभकारी है या उन पर थोपी गई कठिनाई है? यह उनके लिए लाभकारी है। बेशक, जब कुछ लोगों को अभी-अभी पदोन्नत किया गया हो, तो वे नहीं जानते कि उन्हें कौन-से काम करने हैं, या उन्हें कैसे करना है, और थोड़े चकराए रहते हैं। यह सामान्य है; कभी ऐसा कोई कहाँ पैदा हुआ है जो हर काम करने में सक्षम हो? अगर तुम सब कुछ कर सकते, तो यकीनन तुम सभी लोगों में सबसे अहंकारी और दंभी होते, और किसी की बात नहीं मानते—ऐसी स्थिति में, क्या तुम तब भी सत्य को स्वीकार सकते? अगर तुम सब-कुछ कर सकते, तो क्या तब भी तुम परमेश्वर पर निर्भर रहोगे, और उसे आदरपूर्वक देखोगे? क्या तब भी तुम अपनी भ्रष्टता की समस्याओं को दूर करने के लिए सत्य को खोजोगे? तुम निश्चित रूप से नहीं खोजोगे? इसके विपरीत, तुम अहंकारी और दंभी रहोगे और मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलोगे, तुम सत्ता और रुतबे के लिए लड़ोगे और किसी के आगे नहीं झुकोगे, और तुम लोगों को गुमराह कर फँसाओगे, और कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा डालोगे—उस स्थिति में भी क्या तुम परमेश्वर के घर द्वारा उपयोग में लिए जा सकते हो? अगर तुम जानते हो कि तुममें कई खामियाँ हैं, तो तुम्हें आज्ञापालन करना और समर्पण करना सीखना चाहिए और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार अच्छे ढंग से विभिन्न काम करने चाहिए; इससे तुम धीरे-धीरे उस मुकाम पर पहुँच सकोगे जहाँ तुम अपना कार्य इस तरह से कर पाओगे जो मानक स्तर का होगा। लेकिन ज्यादातर लोग आज्ञापालन और समर्पण करने जैसी सरल-सी चीजें नहीं कर सकते, इसलिए उन्हें पदोन्नत और विकसित न करने के लिए परमेश्वर के घर को दोष नहीं देना चाहिए, क्योंकि वे आज्ञापालन में अक्षम हैं। अगर आज्ञापालन करना भी तुम्हारे बस में नहीं है, तो क्या परमेश्वर का घर तुम्हें पदोन्नत और विकसित करने की हिम्मत करेगा? (नहीं।) और क्यों नहीं? तुम्हारा उपयोग करना बेहद जोखिम-भरा होगा, बड़ी मुसीबत और बड़ी चिंता का काम होगा! क्योंकि अगर कभी परमेश्वर के घर ने तुम्हारा उपयोग किया, तो हो सकता है तुम लोगों पर काबू कर लो, और दुष्टता के मार्ग पर उनकी अगुआई करो—इसीलिए यह बेहद जोखिम-भरा है। अगर तुम्हारा उपयोग किया गया, तो हो सकता है कि तुम लापरवाही से कुकर्म करो, और कार्य को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दो, और परमेश्वर के घर को तुम्हें बरखास्त करना पड़े और तुम्हारी जगह खुद सारी गड़बड़ी को ठीक करना पड़े—इसीलिए यह बहुत बड़ी मुसीबत है। और अगर तुम्हारा उपयोग किया गया, तो तुम नहीं जानोगे कि कोई भी कार्य कैसे करना है, और अपने कार्य के लिहाज से तुम कोई परिणाम नहीं दे पाओगे; तुम्हारे तमाम कामों में, ऊपरवाले को तुमसे आग्रह करना पड़ेगा, निगरानी करनी पड़ेगी और टोह लेनी पड़ेगी, और उसे सभी मामलों में हस्तक्षेप करना पड़ेगा—तो तुम्हारा उपयोग क्यों किया जाना चाहिए? तुम बहुत चिंताजनक हो! इस प्रकार के व्यक्ति का उपयोग बिल्कुल नहीं किया जा सकता। उसका विकास किया भी जाए तो भी यह बेकार होगा, यह बड़ी मुसीबत लाएगा और दूसरों के विकास को भी प्रभावित करेगा; क्या इससे होने वाले लाभ पर हानि भारी नहीं पड़ेगी? (हाँ, भारी पड़ेगी।)
परमेश्वर के घर द्वारा कभी भी पदोन्नत या नियोजित न किए जाने के कारण कुछ लोगों के दिमाग में कुछ विचार उपजते हैं और वे कहते हैं, “ऊपरवाला मुझ पर कभी भी ध्यान क्यों नहीं देता? परमेश्वर का घर मुझे कभी भी पदोन्नत और विकसित क्यों नहीं करता? यह उचित नहीं है!” अरे, पहले उन्हें खुद नाप-तोल कर देखना चाहिए कि क्या वे आज्ञापालन कर सकते हैं, क्या वे परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर सकते हैं। और दूसरे, उन्हें यह देखना चाहिए कि क्या वे लोगों को अगुआ और कार्यकर्ता बनाने हेतु पदोन्नत और विकसित करने के परमेश्वर के घर की तीनों कसौटियों पर खरे उतरते हैं—सत्य को समझने, दायित्व उठाने में सक्षम होना और कार्यक्षमता होना। अगर वे इन कसौटियों पर खरे उतरते हैं, तो देर-सवेर, उन्हें पदोन्नत और विकसित होने और उपयोग में लिए जाने का अवसर मिलेगा। परमेश्वर का घर उन्हें पदोन्नत करे, इसके लिए कुछ चीजें हैं जो उनसे माँगी जाती हैं। और ये चीजें क्या हैं? उनसे परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करने की अपेक्षा की जाती है; उन्हें वह काम करना चाहिए, जिसका उनसे निवेदन किया गया हो, और उसी ढंग से करना चाहिए जैसा निवेदन किया गया हो, इस प्रकार उन्हें विकसित किया जाता है कि वे पहले सिद्धांतपूर्ण ढंग से कार्य करना सीखें, सत्य को खोजना और उसके प्रति समर्पण करना सीखें और सामंजस्यपूर्ण ढंग से सहयोग करना सीखें। जब उनका विकास किया जा रहा हो, उस दौरान परमेश्वर का घर कभी-कभी उनकी काट-छाँट करेगा; कभी-कभी वह उन्हें गंभीर रूप से डांटेगा-फटकारेगा; कभी-कभी वह उनसे कार्य की प्रगति के बारे में पूछताछ करेगा; कभी-कभी वह उनसे पूछेगा कि वास्तव में कार्य कैसा चल रहा है, और उनके कार्य की जाँच करेगा; और कभी-कभी वह किसी खास चीज के प्रति उनके दृष्टिकोण की परीक्षा लेगा। इन परीक्षाओं का लक्ष्य उनके लिए चीजों को कठिन बनाना नहीं है, बल्कि उन्हें यह समझाना है कि इन मामलों में परमेश्वर के इरादे क्या हैं, और उनके पास कैसा रवैया और सिद्धांत होने चाहिए। परमेश्वर का घर यह काम उन्हें प्रशिक्षित करने और उनसे अभ्यास करवाने के लिए करता है। और लोगों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है? यह उन्हें इस योग्य बनाने के लिए है कि वे सत्य समझें। सत्य को समझने का लक्ष्य यह है कि लोग सत्य के प्रति समर्पण करने में सक्षम बनें, और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करें, अपने स्थान पर बने रहें और वफादारी से अपना कर्तव्य निभाएँ, और अपना कर्तव्य निभाने की प्रक्रिया में विभिन्न सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश कर अपने स्वभाव में बदलाव हासिल करें। परमेश्वर का घर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह से प्रशिक्षण देता है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता सत्य समझते हैं, तो उनके परमेश्वर के चुने हुए लोगों की अगुआई करने में सक्षम होने की उम्मीद होती है। अगुआ और कार्यकर्ता जितने सत्यों को समझते हैं, उतने ही सत्यों को समझने की उम्मीद उन लोगों को होती है, जिनकी वे अगुआई करते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता अपने कार्य में सत्य सिद्धांतों को समझते हैं, तो वे जिनकी अगुआई करते हैं, वे भी सिद्धांतों को समझ सकते हैं और अपने कार्य में सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए, जो अगुआ और कार्यकर्ता प्रशिक्षण लेते हैं, उनमें दूसरे लोगों के मुकाबले बेहतर काबिलियत होनी चाहिए। उन्हें इस योग्य बनाया जाता है कि वे पहले सत्य सिद्धांतों को समझें और पहले सत्य वास्तविकता में प्रवेश करें, और फिर वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने और सत्य सिद्धांतों को समझने में ज्यादा लोगों की अगुआई करते हैं। इस दृष्टिकोण के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? (यह अच्छा है।) हो सकता है कि ऐसे लोग बहुत सुशिक्षित न हों, या बोलने में सुस्पष्ट न हों, या टेक्नोलॉजी या मौजूदा मामलों और राजनीति के बारे में ज्यादा न समझते हों। हो सकता है कि वे किसी पेशे में उतने प्रवीण न हों। लेकिन वे सत्य समझने में सक्षम होते हैं, और परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद, वे उनका अभ्यास और अनुभव करने में सक्षम होते हैं, और सत्य सिद्धांतों का पता लगाने में सक्षम होते हैं, और परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करने और सत्य सिद्धांतों का पालन करने में ज्यादा लोगों की अगुआई करने में सक्षम होते हैं। जब हम उस प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों के बारे में बात करते हैं, जिन्हें अगुआओं के रूप में सेवा करने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो हमारा तात्पर्य इन्हीं लोगों से होता है। क्या यह अमूर्त है? (नहीं, अमूर्त नहीं है।) कुछ लोग पूछ सकते हैं : “तुम प्रतिभाशाली लोगों की बात करते हो, तो क्या वे समाज के आला लोग हैं? क्या यह जरूरी है कि उन्होंने समाज में कोई व्यापार चला रखा हो, या वे किसी किस्म के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हों या उद्यमी हों? क्या वे राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली कोई हस्ती हैं, या व्यावसायिक प्रतिभा हैं या कला और साहित्यिक वर्गों की प्रतिभा हैं? क्या वे विशेष रूप से गुणी लोग हैं?” परमेश्वर के घर में जिन प्रतिभाशाली लोगों की चर्चा होती है वे बाहरी दुनिया के प्रतिभाशाली लोगों से अलग होते हैं। यह पारिभाषिक पद, “प्रतिभाशाली लोग” जिसकी हम बात करते हैं, इसका क्या तात्पर्य है? इसका तात्पर्य है सत्य समझने में सक्षम होना, और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में लोगों की अगुआई करने में सक्षम होना, और यह जानना कि विभिन्न प्रकार के लोगों को कैसे पहचाना जाए और उन विभिन्न दशाओं और कठिनाइयों को कैसे सुलझाया जाए जिसमें लोग खुद को पाते हैं, और मसलों का सामना होने पर सही विचार और रवैये अपनाना और ऐसे विचार और रवैये अपनाना जो परमेश्वर में विश्वास रखनेवाले और उसका अनुसरण करने वाले लोगों में होने चाहिए। इसका संबंध उन लोगों से नहीं है जिन्हें कोई आध्यात्मिक समझ नहीं है, या जो पाखंडी हैं, या उन लोगों से नहीं है जो आडंबरी चीजें बोलते हैं और वाक्चातुर्य दिखाते हैं। बल्कि इसका संबंध उन लोगों से है जिनमें सत्य वास्तविकता होती है। “प्रतिभाशाली लोग” का तात्पर्य यही है। क्या यह खोखला है? (नहीं।) क्या ये कसौटियाँ, जिनकी अपेक्षा परमेश्वर का घर इस प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों से करता है जिन्हें वह अगुआ और कार्यकर्ता बनाता है, बहुत व्यावहारिक हैं? (हाँ।) बहुत ज्यादा व्यावहारिक हैं! ऐसे उम्मीदवारों के पास उन्नत शैक्षणिक योग्यता होने की अपेक्षा नहीं होती, लेकिन उनमें कम-से-कम सत्य समझने की काबिलियत होनी चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं : “अगर उनसे उन्नत शैक्षणिक योग्यता रखने की अपेक्षा नहीं की जाती, तो क्या उनका अनपढ़ होना ठीक है?” थोड़ी शिक्षा के बिना परमेश्वर के वचनों को पढ़ना संभव नहीं हो पाएगा। यह जरूरी है कि वे लिखित शब्दों को समझें, लेकिन उनके लिए उन्नत शैक्षणिक योग्यता होना जरूरी नहीं है। परमेश्वर के घर में जिन लोगों को पदोन्नत किया जाता है उनमें हाई स्कूल उत्तीर्ण, विश्वविद्यालय उत्तीर्ण और पीएच.डी. प्राप्त लोग शामिल होते हैं, इसलिए शैक्षणिक स्तर को लेकर कोई सीमा नहीं है। इसके अलावा, किसी के सामाजिक रुतबे को लेकर भी कोई सीमा नहीं है। किसानों से लेकर बुद्धिजीवियों तक, व्यापारियों से लेकर गृहिणियों तक—सभी प्रकार के लोगों का स्वागत है। शैक्षणिक स्तर और सामाजिक रुतबे पर कोई प्रतिबंध न होने के अलावा उनसे अपेक्षित कसौटियाँ वही सारी हैं जिनकी मैंने चर्चा की। क्या यह उचित है? (हाँ।) बहुत ही उचित है! क्या अब इस बात को तुम थोड़ा और समझ पाए हो कि “परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित प्रतिभाशाली लोगों” से मेरा क्या तात्पर्य है? (हाँ।) सत्य समझने में सक्षम होने, दायित्व उठाने और कार्यक्षमता होने की इन तमाम कसौटियों पर खरे उतरने वाले लोग परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के उम्मीदवार हैं। अगर वे इन कसौटियों पर खरे उतरते हैं, तो वे योग्यता-प्राप्त हैं। जहाँ तक शिक्षा, पारिवारिक पृष्ठभूमि, सामाजिक स्तर, रंग-रूप आदि-आदि की बात है, अपेक्षाएँ उतनी ऊँची नहीं हैं। यह अगुआ और कार्यकर्ता बनने के लिए लोगों को पदोन्नत और विकसित करने को लेकर है।
अभी-अभी हमने उन अनेक कसौटियों पर चर्चा की जिन पर कौशलोंवाले या पेशेवर प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए खरा उतरना चाहिए, जो ये हैं कि उन्हें सकारात्मक चीजों से प्रेम करना चाहिए, और सत्य को स्वीकारने में सक्षम होना चाहिए, अपनी समझ में विकृत नहीं होना चाहिए, वफादारी से अपना कर्तव्य करने में सक्षम होना चाहिए, कठिनाई सहनी चाहिए, और बिना शिकायत के कीमत चुकानी चाहिए, और कम-से-कम कोई बुरे कर्म नहीं करने चाहिए—इन लोगों की बात आने पर ये तमाम कसौटियाँ अनिवार्य हैं। तो इन लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का लक्ष्य क्या है? इसी तरह, यह इसलिए है ताकि अपना कर्तव्य करते समय और कोई विशेष कार्य करते समय, जब कभी इन लोगों का सामना समस्याओं से हो, तो वे समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य को खोज सकें, और सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकें। प्रवेश का अभ्यास करने की प्रक्रिया में, वे अनजाने ही प्रशिक्षित और विनियमित हो जाते हैं, और अपने इरादों को त्यागने का अभ्यास करते हैं, सांसारिक लोगों के बारे में अपने गलत और ऊटपटांग विचारों को सुधारते हैं, कुछ बचकाने विचारों को त्याग देते हैं, परमेश्वर में आस्था, और ऐसी चीजों को लेकर पूर्वाग्रहों, धारणाओं और कल्पनाओं को त्याग देते हैं। चाहे जो हो, अभ्यास की इस प्रक्रिया का अभिप्राय निस्संदेह लोगों को इस योग्य बनाना है कि वे धीरे-धीरे सत्य समझें, समर्पण करना सीखें, और विभिन्न सत्य वास्तविकताओं में प्रवेश करना सीखें। सीखने की प्रक्रिया के दौरान, वे धीरे-धीरे सत्य सिद्धांतों में प्रवीणता प्राप्त करते हैं, जान पाते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना क्या होता है, और सत्य का अभ्यास करने का अर्थ क्या है, और अपना कर्तव्य निभाने का अर्थ क्या है, और अंततः वे धीरे-धीरे समझ लेते हैं कि उन्हें मानक स्तर के तरीके से अपना कर्तव्य निभाने के लिए क्या करना चाहिए, एक विश्वासी को जिस तरीके से चीजें करनी चाहिए उस तरह से चीजों को कैसे करना चाहिए, आदि—पदोन्नत और विकसित किए जाने के बाद लोग धीरे-धीरे इन सभी चीजों में प्रवेश करते हैं। लोगों के धीरे-धीरे प्रवेश की प्रक्रिया विकसित किए जाने की प्रक्रिया है, और विकसित किए जाने की प्रक्रिया वास्तव में लोगों के सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के अभ्यास की प्रक्रिया है। लेकिन अगर तुम्हें पदोन्नत और विकसित नहीं किया गया है, और तुम सिर्फ एक साधारण विश्वासी की तरह कार्य करते हो जो सभाओं में जाता है, परमेश्वर के वचन पढ़ता है, सत्य के बारे में संगति करता है, या भजन सीखता है, तो परमेश्वर में इस प्रकार विश्वास रखकर तुम एक सृजित प्राणी के रूप में वास्तव में अपना कर्तव्य नहीं निभा रहे हो, इसलिए तुम एक मानक स्तर से अपना कर्तव्य निभाने से बहुत दूर हो। तुम इस बारे में भी स्पष्ट नहीं हो कि तुम्हें अपना कर्तव्य करने के लिए किन सिद्धांतों को समझना चाहिए, और तुम सिर्फ कुछ धर्म-सिद्धांत बोल और नारे ही लगा सकते हो; इसलिए तुमने अभी सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं किया है, और जीवन में तुम्हारा प्रवेश बहुत धीमा है। इसी तरह, पेशेवर कामों में संलग्न इन लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का लक्ष्य और उद्देश्य यह है कि वे सत्य वास्तविकता में और अधिक शीघ्रता से प्रवेश करें और सत्य सिद्धांतों की बेहतर एवं और अधिक सटीक समझ हासिल कर सकें। जो लोग सत्य सिद्धांतों को समझ सकते हैं और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं—वे ही वे प्रतिभाशाली लोग हैं जिन्हें परमेश्वर का घर पदोन्नत और विकसित करता है। इस प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों का संदर्भ किनसे है? इसका मतलब वे लोग हैं—जिन्होंने सकारात्मक चीजों से प्रेम करने, कठिनाइयाँ झेलने और कीमत चुकाने में सक्षम होने और अपनी समझ में विकृत न होने, और बुरे न होने के आधार पर—सत्य सिद्धांतों की समझ हासिल की है और सत्य वास्तविकता में प्रवेश किया है, और जो परमेश्वर और परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने में सक्षम हैं, और जिनके पास कुछ हद तक परमेश्वर का भय मानने वाला दिल है। ये वे दूसरे प्रकार के प्रतिभाशाली लोग हैं जिनकी मैं चर्चा करता हूँ। उनसे की जाने वाली अपेक्षाएँ भी व्यावहारिक हैं, अमूर्त नहीं, पर्याप्त रूप से विशिष्ट। तो क्या यह आवश्यक है कि इस प्रकार के प्रतिभाशाली लोग समाज के आला लोग हों, सामाजिक रूप से अनुभवी हों, और उनके पास कुछ विशेष शैक्षणिक योग्यताएँ हों, और कोई खास सामाजिक रुतबा हो? (नहीं।) परमेश्वर का घर लोगों से कभी अपेक्षा नहीं करता कि उनके पास सामाजिक रुतबा हो, ख्याति हो, शैक्षणिक योग्यताएँ हों या उच्च स्तर का ज्ञान हो—इन चीजों की कभी अपेक्षा नहीं की जाती। लोगों को पदोन्नत और विकसित करते समय, परमेश्वर का घर उनका रंग-रूप नहीं देखता, यानी यह कि वे कितने कुरूप हैं या आकर्षक। गैर-विश्वासियों जैसे दिखने वालों या रंग-रूप में वीभत्स या दुष्ट लोगों को पदोन्नत न करने के अलावा, दूसरी कसौटियाँ वे होती हैं जिनका मैंने अभी जिक्र किया—ये सर्वाधिक व्यावहारिक हैं। जब गैर-विश्वासी किसी को पदोन्नत करते हैं, तो पहले वे उस व्यक्ति का रंग-रूप देखते हैं, पुरुषों को आकर्षक होना चाहिए, अधिकारियों जैसे, और महिलाओं को सुंदर होना चाहिए, परियों जैसी। इसके अतिरिक्त, वे लोगों की शैक्षणिक योग्यताएँ, सामाजिक रुतबा, पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनका फरेब देखते हैं। अगर तुम्हारे पास उन्नत शैक्षणिक योग्यताएँ तो हैं, मगर कोई फरेब नहीं है, तो इससे भी काम नहीं चलेगा, और तुम्हें कभी भी पदोन्नत नहीं किया जाएगा और कोई भी तुम्हारे बारे में ऊँचा नहीं सोचेगा। अगर तुम्हारे पास उन्नत शैक्षणिक योग्यताएँ हैं और वास्तविक प्रतिभा है, मगर देखने में खास अच्छे नहीं लगते, नाटे हो, और नहीं जानते कि अपने वरिष्ठ अधिकारियों की चापलूसी कैसे करें या कैसे उनके करीब हो पाएँ, तो जीते जी तुम कभी भी पदोन्नत या विकसित नहीं किए जाओगे, और कोई भी तुम्हारा पता नहीं लगाएगा। इसलिए, गैर-विश्वासियों के बीच यह कहावत प्रचलित है, “तेज घोड़े तो बहुत-से हैं, मगर उन्हें पहचानने वाले बहुत कम हैं।” क्या यह कहावत परमेश्वर के घर में सच होती है? (नहीं, यह सच नहीं होती।) तो क्या यह अभिव्यक्ति “सच्चा सोना अंततः चमकता ही है” सच होती है? क्या यह वैध है? (नहीं।) जो लोग दोषदर्शी होते हैं और किसी के आगे नहीं झुकते, वे अक्सर ऐसा कहते हैं। हमेशा चमकने की चाह रखना—यह एक इंसानी महत्वाकांक्षा है। परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए गए विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोग सोना नहीं हैं, वे बस साधारण लोग हैं। हम जिस पदोन्नति और विकसित किए जाने की बात करते हैं, वह बस कहने का तरीका है; दरअसल, इसका संबंध परमेश्वर द्वारा ऊपर उठाए जाने से है। क्या तुम, एक सृजित प्राणी, सृष्टिकर्ता के सामने सोना हो? तुम सिर्फ धूल हो, तुम तांबा या लोहा भी नहीं हो। मैं यह क्यों कहता हूँ कि तुम सोना नहीं, बल्कि धूल हो? लोगों के बारे में कुछ भी सराहनीय नहीं होता। कुछ लोग पूछ सकते हैं : “क्या तुमने जो कहा वह विरोधात्मक नहीं है? क्या तुमने अभी-अभी नहीं कहा कि सकारात्मक चीजों से प्रेम करने की कसौटी पर खरे उतरने पर किसी को पदोन्नत किया जा सकता है?” एक इंसान के रूप में, क्या तुम्हें सकारात्मक चीजों से प्रेम नहीं करना चाहिए? अगर तुम कुछ सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हो, तो क्या इससे तुम सोना बन जाते हो? क्या इससे तुममें चमक आ जाती है? अगर तुम कुछ सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हो, तो क्या इसका यह अर्थ है कि तुम्हारे पास सत्य है? केवल सत्य होने पर ही कोई व्यक्ति चमकता है। अगर तुम्हारे पास सत्य नहीं है, तो ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि तुम चमकते हो। तथ्य यह है कि एक सृजित प्राणी कोई भी सत्य नहीं समझता। थोड़ी मानवता होने, और सत्य समझने की थोड़ी योग्यता और काबिलियत होने का यह अर्थ नहीं है कि किसी में सहज ही सत्य है। भले ही लोगों की मानवता ईमानदार और दयालु हो, तो भी लोगों में सत्य नहीं होता, क्योंकि ये चीजें सत्य नहीं हैं, ये बस गुण हैं जो सामान्य मानवता में होने चाहिए। इसलिए चमकने की बात मत करो। तो कोई कब थोड़ा चमक सकता है? जब वह अय्यूब के ये वचन बोल सके, “यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है” (अय्यूब 1:21), तब ही यह कहा जा सकता है कि वे थोड़ा चमकते हैं, और वे रोशनी में रहते हैं। जब तुम दूसरों को पोषण और समर्थन देने और उनकी अगुआई करने के लिए अपनी सत्य वास्तविकता, और जो सत्य तुम समझते हो, उसका उपयोग कर सको, जिसके जरिये उन्हें परमेश्वर के सामने और सत्य वास्तविकता में लाया जा सके, उनसे परमेश्वर के प्रति समर्पण और उसकी आराधना करवाई जा सके, तभी तुम थोड़ा चमक सकते हो।
परमेश्वर के घर द्वारा विकसित विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोग अलौकिक रूप से गुणी नहीं होते हैं, वे बस साधारण, भ्रष्ट लोग होते हैं। अगर वे सत्य को स्वीकार सकें, आज्ञापालन और समर्पण कर सकें, और उनमें कोई विशेष काबिलियत हो, तो परमेश्वर का घर उन्हें पदोन्नत और विकसित करके छूट देगा। जब मैं लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए छूट देने की बात कहता हूँ, तो यह परमेश्वर द्वारा ऊपर उठाए जाने के बारे में है, यह तुम्हें परमेश्वर के सामने आने, परमेश्वर की अगुआई स्वीकारने और परमेश्वर द्वारा विकसित और प्रशिक्षित किए जाने का अवसर देने के बारे में है, ताकि इस अवधि के दौरान, तुम सत्य वास्तविकता में यथाशीघ्र प्रवेश कर सको, और सत्य सिद्धांतों के सटीक रूप से समझने में सक्षम हो सको, अपना कर्तव्य ऐसे तरीके से कर सको जो मानक स्तर का हो, और मनुष्य के समान जी सको। परमेश्वर के घर में, “प्रतिभाशाली लोग” शब्दों का यही अर्थ है। ऐसे लोग जरा भी बड़े और प्रभावी नहीं होते, वे सिर्फ सत्य समझते हैं, उनमें सत्य वास्तविकता होती है, वे ईमानदारी और जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य कर सकते हैं, उनमें थोड़ी ईमानदारी होती है, वे थोड़ी कीमत चुकाने में समर्थ होते हैं, और वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर लापरवाही से कार्य नहीं करते। क्या परमेश्वर के घर के लिए अपवादस्वरूप इन कसौटियों पर खरे उतरने वाले लोगों को पदोन्नत और विकसित करना और उन्हें प्रशिक्षित करना उचित है? क्या यह लोगों के लिए लाभप्रद है? यह लोगों के लिए बहुत लाभप्रद है! दूसरे विश्वासियों की ही तरह, जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया जाता है वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, उपदेशों को सुनते हैं, और अपना कर्तव्य करते हैं, लेकिन दूसरे विश्वासियों के तुलना में, वे ज्यादा तेजी से बढ़ेंगे और ज्यादा हासिल करेंगे। क्या तुम लोग ज्यादा हासिल करना चाहते हो, या सिर्फ थोड़ा हासिल करना चाहते हो? (हम ज्यादा हासिल करना चाहते हैं।) ज्यादातर लोगों की यह आकांक्षा होती है, जिसका अर्थ है कि वे सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं। कभी-कभी मैं कुछ दलों के साथ जीवन में प्रवेश करने के बारे में संगति करता हूँ, और काफी लोग सुनने के लिए आते हैं, जो यह दिखाता है कि ज्यादातर लोगों में सत्य के लिए लालसापूर्ण इच्छा है, और वे अधिक सत्य समझने को तैयार हैं, और वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने को भी तैयार हैं। आरंभ में, मैंने कुछ लोगों के साथ संगति की और वे बहुत ही संवेदनहीन थे। मैंने लंबे समय तक बात की, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, मुस्कराहट का नामोनिशान न था। उनके साथ एक या दो वर्ष तक संपर्क में रहने के बाद, उनमें से ज्यादातर लोग अपने हाव-भाव में ज्यादा सहज हो गए और उन्होंने प्रतिक्रिया दिखाई, और समय के साथ उनकी प्रतिक्रियाएँ कुछ हद तक जल्दी आने लगीं। यानी, वे मृत लोगों से जिंदा लोगों में तब्दील हो गए, और उनकी आत्माएँ जागृत हो गईं। यह कैसे हासिल हुआ? अगर लोग सत्य नहीं समझते, तो वे सकारात्मक चीजों से जितना भी प्रेम करें, या वे जितने भी चतुर और दिमागी क्यों न हों, वे फिर भी मृत लोग हैं। कुछ लोग शुरू में मूर्ख और मंद-बुद्धि होते हैं, दुनिया में कोई भी उनके बारे में ऊँची राय नहीं रखता, और न ही वे बहुत ज्ञानी या बड़े जानकार होते हैं। लेकिन परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद, वे अनेक सत्यों को समझ सकते हैं, कई चीजों को स्पष्ट देख सकते हैं, और फिर मनुष्य के समान जी सकते हैं, और इस तरह जीवित लोग बन जाते हैं। “जीवित लोग” होने का अर्थ क्या है? यह इस बारे में नहीं है कि तुम्हारा भौतिक शरीर जीवित है या मृत, या तुम्हारा शरीर चल-फिर सकता है या साँस ले सकता है या नहीं, बल्कि इस बारे में है कि क्या तुम्हारी आत्मा परमेश्वर के वचनों और सत्य के प्रति सचेत और संवेदनशील है या नहीं। जीवित लोग सत्य और परमेश्वर के वचनों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं। परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद, उनमें चेतना आती है, एक मार्ग, एक योजना और एक लक्ष्य होता है। मृत लोगों में ये अभिव्यक्तियाँ नहीं होतीं। इसलिए, अगर परमेश्वर का घर किसी को पदोन्नत और विकसित करता है, तो वह व्यक्ति अपेक्षाकृत अधिक हासिल करेगा। तो जो लोग इन कसौटियों पर खरे नहीं उतरते, और पदोन्नत या विकसित नहीं किए जाते, वे पर्याप्त रूप से हासिल कैसे कर सकेंगे? वे सत्य वास्तविकता में शीघ्रता से कैसे प्रवेश कर सकेंगे? उन्हें परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करना चाहिए, अनेक सत्यों की समझ प्राप्त करनी चाहिए, और लोगों को बूझने-पहचानने और समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य लागू करने में सक्षम होना चाहिए—फिर वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे।
कुछ लोग कहते हैं : “यह देखते हुए कि परमेश्वर का घर सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करता है, और उन्हें यथाशीघ्र सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने देता है, क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि जो लोग प्रतिभाशाली नहीं हैं, वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकते?” क्या ऐसा कहना सही है? (नहीं, यह गलत है।) तो इस विषय पर संगति करने के बाद, क्या इसने कुछ लोगों को रोमांचित किया है जबकि दूसरों को मायूस और निराश? किसी व्यक्ति को इस पर इस तरह से गौर करना चाहिए : जो लोग पदोन्नत और विकसित किए गए हैं उन्हें घमंड नहीं करना चाहिए। तुम्हारे पास डींग मारने के लिए कुछ नहीं है, यह परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष है। जब परमेश्वर तुम्हें ज्यादा देता है, तो वह तुमसे ज्यादा देने की भी माँग करता है। अगर परमेश्वर का घर तुम्हें पदोन्नत और विकसित कर कोई छूट देता है, तो इसका अर्थ है कि तुम्हें ज्यादा कीमत चुकाने की जरूरत है। अगर तुम यह कठिनाई झेल सकते हो, तो बेशक तुम ज्यादा हासिल करोगे। अगर तुम कहते हो, “मैं यह कठिनाई सहने को तैयार नहीं हूँ,” तो तुम सत्य हासिल नहीं करोगे, न ही परमेश्वर का आशीष प्राप्त करोगे। कुछ लोग कहते हैं, “मैं उन चीजों को हासिल करना चाहता हूँ, मगर मुझे नहीं लगता कि मैं हासिल कर सकता हूँ, क्योंकि परमेश्वर का घर अपवाद के रूप में मुझे पदोन्नत और विकसित करेगा। मैं कसौटियों पर खरा नहीं उतरा हूँ।” अगर तुम कसौटियों पर खरे नहीं उतरते, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर तुम सत्य का अनुसरण करते हो और उसके लिए कड़ी मेहनत करते हो, तो परमेश्वर तुमसे अनुचित व्यवहार नहीं करेगा। जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया गया है, वे महज अपनी काबिलियत और अपनी विभिन्न दशाओं के कारण सत्य वास्तविकता में पहले प्रवेश कर सकेंगे। लेकिन इस तरह पहले प्रवेश करने का यह अर्थ नहीं है कि सिर्फ वे ही लोग सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे। इसका बस यह अर्थ है कि वे थोड़ा पहले थोड़ा ज्यादा हासिल कर सकेंगे और थोड़ा पहले सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकेंगे। जिन लोगों को पदोन्नत नहीं किया गया है, वे उनसे थोड़ा पीछे रह जाएँगे, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। कोई सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकता है या नहीं, यह उसके प्रयासों पर निर्भर करता है। जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया गया है, वे सत्य सिद्धांतों को अधिक शीघ्रता से समझ सकेंगे और विकसित किए जाने की प्रक्रिया के दौरान सत्य वास्तविकता में अधिक शीघ्रता से प्रवेश कर सकेंगे, जिससे परमेश्वर के घर के कार्य को लाभ पहुँचता है। इसलिए जिन लोगों में अच्छी काबिलियत देखी गई हो, सत्य से प्रेम देखा गया हो, उन्हें पदोन्नत और विकसित करना सही है। अगर कोई ऐसे लोगों का पता लगाकर उनसे ईर्ष्यालु होने या उन्हें नीचे खींचने के बजाय उन्हें पदोन्नत और विकसित कर सके, उनकी देखभाल कर सके, तो वह परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील है। इसके विपरीत, अगर कुछ लोग ईर्ष्यालु हैं, और चिंता करते हैं कि ये लोग उनसे बेहतर हैं, और उनसे आगे बढ़ जाएँगे, तो वे उन्हें अलग-थलग कर देते हैं और नीचे गिरा देते हैं, यह स्पष्ट रूप से एक बुरा कर्म है, और कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधी अक्सर करते हैं। केवल बुरे लोग और मसीह-विरोधी ही भाई-बहनों पर हमला बोलकर उन्हें अलग-थलग कर सकते हैं।
वह समझ और रवैया जो परमेश्वर के घर द्वारा लोगों की पदोन्नति और विकास को लेकर किसी में होना चाहिए
अभी-अभी हमने जिन पर संगति की वे सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के परमेश्वर के घर के लक्ष्य हैं। पदोन्नति और विकास के लिए जिन्हें चुना गया हो, वे चाहे जैसा भी कार्य करते हों—वह चाहे तकनीकी हो, साधारण हो, या कलीसिया के सामान्य मामलों का काम हो—संक्षेप में कहें, तो यह सब उन्हें इस योग्य बनाने के लिए है कि वे सत्य सिद्धांतों को समझ सकें, और सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकें, और ताकि वे अपना कर्तव्य इस तरीके से यथाशीघ्र कर सकें जो मानक स्तर का हो ताकि परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट कर सकें—परमेश्वर लोगों से इसी की अपेक्षा करता है, और बेशक, कलीसिया के कार्य को भी इसी की जरूरत है। क्या अब तुम समझते हो कि परमेश्वर के घर द्वारा सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने का क्या महत्त्व है? क्या अभी भी कोई गलतफहमी है? (नहीं।) कुछ लोग कहते हैं, “अब चूँकि इस व्यक्ति को अगुआ के तौर पर पदोन्नत कर दिया गया है, उसके पास रुतबा है, तो वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं रहा।” क्या ऐसा कहना सही है या गलत? (यह गलत है।) दूसरे लोग कह सकते हैं : “जो लोग अगुआ बन जाते हैं, उनका रुतबा होता है, लेकिन ऊँचाई पर तुम अकेले ही होगे। तुम जितना ऊँचे चढ़ोगे, उतनी ही जोर से गिरोगे!” ऐसा कहना सही है या गलत? यह स्पष्ट रूप से गलत है। “तुम जितना ऊँचे चढ़ोगे, उतनी ही जोर से गिरोगे” किन लोगों के बारे में कहा गया है? यह उन लोगों के बारे में है जिनमें महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ होती हैं, इसका संबंध मसीह-विरोधियों से है। जब सत्य का अनुसरण करने वाले लोग अगुआ बन जाते हैं, तो यह ऊँचे चढ़ना नहीं है—यह परमेश्वर द्वारा उन्हें ऊँचा उठाकर छूट देना है, और यह परमेश्वर का आशीष है जो उन पर यह बोझ रखकर उन्हें अगुआ का कार्य करने देता है। “तुम जितना ऊँचे चढ़ोगे, उतनी ही जोर से गिरोगे” एक निष्कर्ष है जो गैर-विश्वासियों ने निकाला है, और यह गैर-विश्वासियों के अधिकारी वर्ग वाले एक करियर के पीछे भागने के परिणामों का वर्णन करता है। इन छद्म-विश्वासियों में कोई समझ-बूझ नहीं होती और वे इसे सकारात्मक लोगों पर लागू करते हैं, जो एक जघन्य गलती है। दूसरे लोग कह सकते हैं : “वह एक ग्रामीण इलाके में पैदा हुआ था, और अब वह एक कलीसिया का अगुआ बन गया है—नीची शुरुआत से ऊँची उड़ान भरनेवाला परिंदा।” ऐसा कहना सही है या गलत? ये गैर-विश्वासियों के दानवी शब्द हैं और इन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर लागू नहीं किया जा सकता। परमेश्वर के घर में, परमेश्वर उन लोगों को आशीष देता है जो सत्य का अनुसरण करते हैं, जो ईमानदार हैं, जो दयावान हैं, और जो परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करते हैं। जब एक बार ये लोग सत्य समझ लेते हैं और थोड़ा आध्यात्मिक कद हासिल कर लेते हैं, तो देर-सवेर उन्हें विकसित करने और अभ्यास करने के लिए पदोन्नत किया जाएगा, ताकि उन लोगों को बदला जा सके जो झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। परमेश्वर के घर में, जो सकारात्मक लोग अनेक परीक्षणों और परीक्षाओं से गुजर चुके हैं और जिन्होंने निरंतर परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा की है, वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करते हैं और इनका वर्णन करने के लिए गैर-विश्वासियों के दानवी शब्दों का उपयोग करना अनुचित होगा। इसलिए, जो लोग परमेश्वर के घर के मामलों का वर्णन करने और अपने विचार व्यक्त करने के लिए हमेशा गैर-विश्वासियों के दानवी शब्दों का उपयोग करते हैं, वे ऐसे लोग हैं जो सत्य नहीं समझते और जिनके मन में चीजों के बारे में ऊटपटांग विचार होते हैं। चीजों के बारे में उनके विचार जरा भी नहीं बदले हैं, और अभी भी गैर-विश्वासियों के ही विचार हैं, और उन्होंने परमेश्वर में कई वर्षों तक विश्वास रखने के बावजूद बिल्कुल सत्य हासिल नहीं किया है, और अभी भी चीजों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं देख सकते—तो फिर ये लोग छद्म-विश्वासी और गैर-विश्वासी हैं। जब किसी व्यक्ति को अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करने के लिए पदोन्नत किया जाता है, या उसे किसी तरह के तकनीकी कार्य का निरीक्षक बनने के लिए विकसित किया जाता है, तो यह परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें एक दायित्व सौंपने से ज्यादा कुछ नहीं है। यह एक आदेश है, एक जिम्मेदारी है, और निस्संदेह, यह एक विशेष कर्तव्य, एक विशेष अवसर भी है, और यह एक असाधारण उन्नति है—और उसकी प्रशंसा करने लायक कुछ भी नहीं है। जब किसी को परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि परमेश्वर के घर में उसका विशेष स्थान या रुतबा है, ताकि वह विशेष व्यवहार और कृपा का आनंद ले सके। इसके बजाय, परमेश्वर के घर द्वारा असाधारण रूप से ऊपर उठाए जाने के बाद उसे कुछ महत्वपूर्ण कलीसिया-कार्य करने का अभ्यास करने के लिए परमेश्वर के घर से प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु उत्कृष्ट स्थितियाँ दी जाती हैं, और साथ ही परमेश्वर का घर इस व्यक्ति से ज्यादा ऊँचे मानकों की अपेक्षा करेगा, जो उसके जीवन-प्रवेश के लिए बहुत फायदेमंद है। जब किसी व्यक्ति को परमेश्वर के घर में पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो इसका मतलब है कि उसे सख्त अपेक्षाओं के अधीन रखा जाएगा और उसकी कड़ी निगरानी की जाएगी। परमेश्वर का घर उसके द्वारा किए जाने वाले कार्य का कड़ाई से निरीक्षण और निगरानी कर उसे आगे बढ़ाएगा, और उसके जीवन-प्रवेश को समझकर उस पर ध्यान देगा। इन दृष्टिकोणों से, क्या परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए गए लोग विशेष व्यवहार, विशेष रुतबे और विशेष स्थिति का आनंद लेते हैं? बिल्कुल नहीं, और किसी विशेष स्थान का आनंद तो वे बिल्कुल भी नहीं लेते। जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया गया है, अगर उन्हें लगे कि अपना कर्तव्य कुछ हद तक प्रभावी ढंग से करने के परिणामस्वरूप उनके पास पूँजी है, और इसलिए वे निष्क्रिय होकर सत्य का अनुसरण करना बंद कर दें, तो वे परीक्षणों और क्लेशों का सामना होने पर खतरे में पड़ जाएँगे। अगर लोगों का आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, तो संभवतः वे मजबूती से खड़े रहने में असमर्थ होंगे। कुछ लोग कहते हैं, “अगर किसी को अगुआ के रूप में पदोन्नत और विकसित किया जाता है, तो उसका एक स्थान होता है। वह पहलौठे पुत्रों में से एक न भी हो, फिर भी उसके पास कम-से-कम परमेश्वर के लोगों में से एक बनने की आशा तो है। मुझे कभी भी पदोन्नत या विकसित नहीं किया गया है, तो क्या मेरे लिए परमेश्वर के लोगों में से एक बनने की आशा नहीं है?” ऐसा सोचना गलत है। परमेश्वर के लोगों में से एक बनने के लिए तुम्हारे पास जीवन अनुभव होना चाहिए, और तुम्हें ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो परमेश्वर के प्रति समर्पण करता है। चाहे तुम कोई अगुआ हो या कार्यकर्ता या साधारण अनुयायी, कोई भी जिसके पास सत्य वास्तविकताएँ हैं, वह परमेश्वर के लोगों में से एक है। भले ही तुम कोई अगुआ या कार्यकर्ता हो, अगर तुममें सत्य वास्तविकताओं की कमी है, तो तुम अभी भी एक श्रमिक ही हो। वास्तव में, पदोन्नत और विकसित किए जाने वाले लोगों के बारे में कुछ खास नहीं होता। उनकी केवल एक ही चीज दूसरों से अलग होती है, और वह यह है कि उनके पास अधिक अनुकूल माहौल, अधिक अनुकूल अवसर और सत्य सिद्धांतों से जुड़े हुए विशिष्ट कार्य करने के लिए बेहतर स्थितियाँ होती हैं। भले ही उनके द्वारा किया गया अधिकतर कार्य किसी खास पेशे से संबंधित हो, अगर उसे विनियमित करने और उस पर मजबूत पकड़ के लिए कोई सत्य सिद्धांत न हो, तो वे जो कर्तव्य करते हैं, वह सिद्धांतों के अनुरूप नहीं होगा और वे बस मजदूरी करेंगे, और उन्हें निश्चित रूप से परमेश्वर की स्वीकृति नहीं मिलेगी। जिन विभिन्न प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किया जाता है उनके लिए परमेश्वर के घर की अपेक्षाएँ क्या होती हैं? परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए, कम-से-कम उन्हें ऐसे लोग होना चाहिए जिनमें अंतरात्मा और विवेक हो, जो सत्य स्वीकार सकते हों, जो वफादारी से अपना कर्तव्य निभा सकते हों, और जो परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण कर सकते हों, और कम-से-कम काट-छाँट किए जाने पर उसे स्वीकार कर समर्पण करने में सक्षम हों। परमेश्वर के घर द्वारा विकसित किए जाने और प्रशिक्षण से गुजरने वाले लोगों को जो प्रभाव प्राप्त करना चाहिए, वह यह नहीं है कि वे अधिकारी या मालिक बन सकें या पूरे दल की अगुआई करें और यह भी नहीं है कि वे लोगों के विचारों पर कार्य कर सकें और बेशक यह तो और भी कम है कि उनमें बेहतर पेशेवर कौशल हो या उनके पास उच्च स्तर की शिक्षा हो, या ज्यादा प्रतिष्ठा हो, या यह कि उनका जिक्र उन लोगों के साथ किया जा सके जो दुनिया में अपने पेशेवर कौशलों या राजनीतिक कारनामों के लिए प्रख्यात हैं। इसके बजाय, जो प्रभाव हासिल होना चाहिए, वह यह है वे सत्य को समझें और परमेश्वर के वचनों को जिएँ, और वे ऐसे लोग बनें जो परमेश्वर का भय मानते हों, और बुराई से दूर रहते हों। प्रशिक्षण लेने से, वे सत्य को समझने और सत्य सिद्धांतों को समझने में सक्षम होते हैं, और यह बेहतर ढंग से जान पाते हैं कि परमेश्वर में आस्था वास्तव में क्या है और परमेश्वर का अनुसरण कैसे करना चाहिए—यह उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी है जो पूर्णता प्राप्त करने के लिए सत्य का अनुसरण करते हैं। परमेश्वर का घर सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करके ये प्रभाव और मानक हासिल करना चाहता है, और यह पदोन्नत और उपयोग किए जाने वाले लोगों द्वारा काटी गई सबसे बड़ी फसल भी होती है।
कुछ लोग अपेक्षाकृत अधिक जिम्मेदारी से अपना कर्तव्य करते हैं, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों द्वारा स्वीकृत किए जाते हैं, इसलिए कलीसिया उन्हें अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए विकसित करती है। रुतबा हासिल करने के बाद, वे लोग ऐसा महसूस करने लगते हैं कि वे भीड़ से अलग हैं और सोचने लगते हैं कि “परमेश्वर के घर ने मुझे ही क्यों चुना? क्या इसलिए नहीं कि मैं तुम सभी लोगों से बेहतर हूँ?” क्या यह किसी बच्चे के मुंह से निकली बात जैसा नहीं लगता है? यह अपरिपक्व, हास्यास्पद और नादान बात है। असल में वे दूसरे लोगों से जरा भी बेहतर नहीं हैं। बात सिर्फ इतनी है कि वे परमेश्वर के घर द्वारा विकसित किए जाने की कसौटियों पर खरे उतरते हैं। क्या वे यह जिम्मेदारी उठा सकते हैं या नहीं, इस कर्तव्य को अच्छी तरह कर सकते हैं या नहीं, या भरोसे पर खरे उतर सकते हो या नहीं, यह बिल्कुल अलग बात है। जब कोई व्यक्ति भाई-बहनों द्वारा अगुआ के रूप में चुना जाता है या परमेश्वर के घर द्वारा कोई निश्चित कार्य करने या कोई निश्चित कर्तव्य निभाने के लिए उन्नत किया जाता है, तो इसका यह मतलब नहीं कि उसका कोई विशेष रुतबा या पद है या वह जिन सत्यों को समझता है, वे अन्य लोगों की तुलना में अधिक गहरे और संख्या में अधिक हैं—तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यह व्यक्ति परमेश्वर के प्रति समर्पण करने में सक्षम है और उसे धोखा नहीं देगा। निश्चय ही, इसका यह मतलब भी नहीं है कि ऐसे लोग परमेश्वर को जानते हैं और परमेश्वर का भय मानते हैं। वास्तव में उन्होंने इसमें से कुछ भी हासिल नहीं किया है। पदोन्नयन और संवर्धन सीधे मायने में केवल पदोन्नयन और संवर्धन ही है, और यह भाग्य में लिखे होने या परमेश्वर की अभिस्वीकृति पाने के समतुल्य नहीं है। उनकी उन्नति और विकास का सीधा-सा अर्थ है कि उन्हें उन्नत किया गया है, और वे विकसित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। और इस विकसित किए जाने का अंतिम परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि क्या यह व्यक्ति सत्य का अनुसरण करता है और क्या वह सत्य के अनुसरण का रास्ता चुनने में सक्षम है। इस प्रकार, जब कलीसिया में किसी को अगुआ बनने के लिए उन्नत और विकसित किया जाता है, तो उसे सीधे अर्थ में उन्नत और विकसित किया जाता है; इसका यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही अगुआ के रूप में मानक स्तर का है, या सक्षम अगुआ है, कि वह पहले से ही अगुआई का काम करने में सक्षम है, और वास्तविक कार्य कर सकता है—ऐसा नहीं है। ज्यादातर लोगों को इन चीजों को स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते, और अपनी कल्पनाओं के आधार पर वे इन पदोन्नत लोगों का सम्मान करते हैं, पर यह एक भूल है। जिन्हें उन्नत किया जाता है, उन्होंने चाहे कितने ही वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा हो, क्या उनके पास वास्तव में सत्य वास्तविकता होती है? ऐसा जरूरी नहीं है। क्या वे परमेश्वर के घर की कार्य-व्यवस्थाएँ लागू करने में सक्षम हैं? अनिवार्य रूप से नहीं। क्या उनमें जिम्मेदारी की भावना है? क्या वे निष्ठावान हैं? क्या वे समर्पण करने में सक्षम हैं? जब उनके सामने कोई समस्या आती है, तो क्या वे सत्य की खोज करने योग्य हैं? यह सब अज्ञात है। क्या इन लोगों के अंदर परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय हैं? और परमेश्वर का भय मानने वाले उनके हृदय कितने विशाल हैं? क्या काम करते समय वे अपनी इच्छा का पालन करना टाल पाते हैं? क्या वे परमेश्वर की खोज करने में समर्थ हैं? अगुआई का कार्य करने के दौरान क्या वे अक्सर परमेश्वर के इरादों की तलाश में परमेश्वर के सामने आने में सक्षम हैं? क्या वे लोगों के सत्य वास्तविकता में प्रवेश की अगुआई करने में सक्षम हैं? निश्चय ही वे ऐसी चीजें कर पाने में अक्षम होते हैं। उन्हें प्रशिक्षण नहीं मिला है और उनके पास पर्याप्त अनुभव भी नहीं है, इसलिए वे ये चीजें नहीं कर पाते। इसीलिए, किसी को उन्नत और विकसित करने का यह मतलब नहीं कि वह पहले से ही सत्य को समझता है, और न ही इसका अर्थ यह है कि वह पहले से ही अपना कर्तव्य एक मानक तरीके से करने में सक्षम है। तो किसी को पदोन्नत और विकसित करने का क्या उद्देश्य और मायने हैं? वह यह है कि इस व्यक्ति को, एक व्यक्ति के रूप में पदोन्नत किया गया है, ताकि वह अभ्यास कर सके, और वह विशेष रूप से सिंचित और प्रशिक्षित हो सके, जिससे वह इस योग्य हो जाए कि सत्य सिद्धांतों, और विभिन्न कामों को करने के सिद्धांतों, और विभिन्न कार्य करने और विभिन्न समस्याओं को हल करने के सिद्धांतों, साधनों और तरीकों को समझ सके, साथ ही यह भी कि जब वह विभिन्न प्रकार के परिवेशों और लोगों का सामना करे, तो परमेश्वर के इरादों के अनुसार और उस रूप में, जिससे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा हो सके, उन्हें सँभालने और उनके साथ निपटने का तरीका सीख सके। इन बिंदुओं के आधार पर परखें, तो क्या परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए गए प्रतिभाशाली लोग, पदोन्नत और विकसित किए जाने की अवधि के दौरान या पदोन्नत और विकसित किए जाने से पहले अपना कार्य और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करने में पर्याप्त सक्षम हैं? बेशक नहीं। इस प्रकार, यह अपरिहार्य है कि विकसित किए जाने की अवधि के दौरान ये लोग काट-छाँट और न्याय किए जाने और ताड़ना दिए जाने, उजागर किए जाने, यहाँ तक कि बरखास्तगी का भी अनुभव करेंगे; यह सामान्य बात है, यही है प्रशिक्षण और विकसित किया जाना। जिन लोगों को पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उनसे लोगों को ऊंची अपेक्षाएँ या अवास्तविक माँगें नहीं करनी चाहिए; यह अनुचित होगा, और उनके साथ अन्याय होगा। तुम लोग उनके कार्य की निगरानी कर सकते हो। अगर उनके काम के दौरान तुम्हें समस्याओं या ऐसी बातों का पता चले जिनसे सिद्धांतों का उल्लंघन होता हो, तो तुम यह मसला उठा सकते हो, और इन मामलों को सुलझाने के लिए सत्य को खोज सकते हो। तुम्हें उनकी आलोचना, और निंदा नहीं करनी चाहिए, या उन पर हमला कर उन्हें अलग-थलग नहीं करना चाहिए, क्योंकि वे बस विकसित किए जाने की अवधि में हैं, और उन्हें ऐसे लोगों के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए जिन्हें पूर्ण बना दिया गया है, उन्हें दोषरहित या ऐसे लोगों के रूप में बिल्कुल भी नहीं देखना चाहिए जिनमें सत्य वास्तविकता है। तुम लोगों की ही तरह, वे महज प्रशिक्षण की अवधि में हैं। अंतर केवल इतना है कि वे साधारण लोगों की तुलना में अधिक काम करते हैं और अधिक जिम्मेदारियाँ उठाते हैं। उनके पास साधारण लोगों की तुलना में अधिक काम करने की जिम्मेदारी और दायित्व है; उन्हें ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है, अधिक कठिनाई सहनी पड़ती है, ज्यादा मानसिक प्रयास करने पड़ते हैं, अधिक समस्याएँ हल करनी पड़ती हैं, अधिक लोगों की निंदा सहन करनी पड़ती हैं, और निस्संदेह, उन्हें सामान्य लोगों की तुलना में अधिक प्रयास करने पड़ते हैं, और साधारण लोगों के कार्य करने की तुलना में—उन्हें थोड़ा कम सोना चाहिए, अच्छी चीजों का कम आनंद लेना चाहिए, और उतनी ज्यादा गपशप नहीं करनी चाहिए। उनके बारे में यही खास बात है; इसके अतिरिक्त वे किसी भी अन्य व्यक्ति के समान ही होते हैं। मेरे यह कहने का क्या मतलब है? सभी को यह बताया जाना है कि उन्हें परमेश्वर के घर में विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को बढ़ावा दिए जाने और विकसित किए जाने को सही तरह से लेना चाहिए, और इन लोगों से अपनी अपेक्षाओं में उन्हें कठोर नहीं होना चाहिए, और निश्चय ही उन्हें इन लोगों के बारे में अपनी राय बनाने में अयथार्थवादी भी नहीं होना चाहिए। उनकी अत्यधिक सराहना करना या सम्मान देना मूर्खता है, तो उनके प्रति अपनी अपेक्षाओं में अत्यधिक कठोर होना भी अमानवीय और यथार्थ से परे होना है। तो उनके साथ व्यवहार का सबसे उचित तरीका क्या है? उन्हें सामान्य लोगों की तरह ही समझना, और जब तुम्हें किसी समस्या के संदर्भ में किसी को तलाशने की आवश्यकता हो, तो उनके साथ संगति करना और एक-दूसरे के मजबूत पक्षों से सीखना और एक-दूसरे का पूरक होना। इसके अतिरिक्त, अगुआ और कार्यकर्ता का यह देखने के लिए निरीक्षण करना कि वे वास्तविक कार्य कर रहे हैं या नहीं, वे समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं, इस पर नजर रखना सभी की जिम्मेदारी है; अगुआ या कार्यकर्ता मानक स्तर का है या नहीं, इसे मापने के ये मानक और सिद्धांत हैं। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता आम समस्याओं से निपटने और उन्हें सुलझाने में सक्षम है, तो वह सक्षम है। लेकिन अगर वह साधारण समस्याओं से भी नहीं निपट सकता, उन्हें हल नहीं कर सकता, तो वह अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य नहीं है, और उसे फौरन उसके पद से निकाल देना चाहिए। किसी दूसरे को चुनन चाहिए, और परमेश्वर के घर के काम में देरी नहीं की जानी चाहिए। परमेश्वर के घर के काम में देरी करना खुद को और दूसरों को आहत करना है, इसमें किसी का भला नहीं है।
कुछ लोगों को कलीसिया द्वारा प्रोन्नत किया जाता है और उनका संवर्धन किया जाता है, उन्हें प्रशिक्षित होने का एक अच्छा मौका मिलता है। यह अच्छी बात है। यह कहा जा सकता है कि उन्हें परमेश्वर द्वारा ऊँचा उठाया और अनुगृहीत किया गया है। तो फिर, उन्हें अपना कर्तव्य कैसे करना चाहिए? सबसे पहले जिस सिद्धांत का उन्हें पालन करना चाहिए, वह है सत्य को समझना—जब वे सत्य को न समझते हों, तो उन्हें सत्य की खोज करनी चाहिए, और अगर अपने आप खोजने के बाद भी वे इसे नहीं समझते, तो उन्हें संगति और खोज करने के लिए किसी ऐसे इंसान की तलाश कर सकते हैं, जो सत्य समझता है, इससे समस्या का समाधान अधिक तेजी से और समय पर होगा। अगर तुम केवल परमेश्वर के वचनों को अकेले पढ़ने और उन वचनों पर विचार करने में अधिक समय व्यतीत करने पर ध्यान केंद्रित करते हो, ताकि तुम सत्य की समझ प्राप्त कर समस्या हल कर सको, तो यह बहुत धीमा है; जैसी कि कहावत है, “धीमी गति से किए जाने वाले उपाय तात्कालिक जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते।” अगर सत्य की बात आने पर तुम शीघ्र प्रगति करना चाहते हो, तो तुम्हें दूसरों के साथ सामंजस्य में काम करना, अधिक प्रश्न पूछना और अधिक तलाश करना सीखना होगा। तभी तुम्हारा जीवन तेजी से आगे बढ़ेगा, और तुम समस्याएँ तेजी से, बिना किसी देरी के हल कर पाओगे। चूँकि तुम्हें अभी-अभी पदोन्नत किया गया है और तुम अभी भी परिवीक्षा पर हो, और वास्तव में सत्य को नहीं समझते या तुममें सत्य वास्तविकता नहीं है—चूँकि तुम्हारे पास अभी भी इस कद की कमी है—तो यह मत सोचो कि तुम्हारी पदोन्नति का अर्थ है कि तुममें सत्य वास्तविकता है; यह बात नहीं है। तुम्हें पदोन्नति और संवर्धन के लिए केवल इसलिए चुना गया है, क्योंकि तुममें कार्य के प्रति दायित्व की भावना और अगुआ होने की क्षमता है। तुममें यह विवेक होना चाहिए। अगर पदोन्नत किए जाने और अगुआ या कार्यकर्ता बन जाने के बाद तुम अपना रुतबा दिखाना चालू करते हो और मानते हो कि तुम तुम सत्य का अनुसरण करने वाले इंसान हो और तुममें सत्य वास्तविकता है—और अगर, चाहे भाई-बहनों को कोई भी समस्या हो, तुम दिखावा करते हो कि तुम उसे समझते हो, और कि तुम आध्यात्मिक हो—तो यह बेवकूफी करना है, और यह पाखंडी फरीसियों जैसा ही है। तुम्हें सच्चाई के साथ बोलना और कार्य करना चाहिए। जब तुम्हें समझ न आए, तो तुम दूसरों से पूछ सकते हो या ऊपर वाले से संगति प्रदान करने की माँग कर सकते हो—इसमें कुछ भी शर्मनाक नहीं है। अगर तुम नहीं पूछोगे, तो भी ऊपर वाले को तुम्हारे वास्तविक कद का पता चल ही जाएगा, और वह जान ही जाएगा कि तुममें सत्य वास्तविकता नदारद है। खोज और संगति ही वे चीजें हैं, जो तुम्हें करनी चाहिए; यही वह विवेक है जो सामान्य मानवता में पाया जाना चाहिए, और यही वह सिद्धांत है जिसका पालन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। यह शर्मिंदा होने की बात नहीं है। अगर तुम्हें यह लगता है कि अगुआ बन जाने के बाद सिद्धांतों को न समझना, या हमेशा दूसरों से या ऊपर वाले से सवाल पूछते रहना शर्मनाक है, और डरे रहना कि दूसरे लोग तुम्हें नीची निगाह से देखेंगे और नतीजतन तुम यह दिखावा करते हुए ढोंग करते हो कि तुम सब कुछ समझते हो, सब कुछ जानते हो, कि तुम काम करने में क्षमता है, कि तुम कलीसिया का कोई भी काम कर सकते हो, और किसी को तुम्हें याद दिलाने या तुम्हारे साथ सहभागिता करने, या किसी को तुम्हें पोषण प्रदान करने या तुम्हारी सहायता करने की आवश्यकता नहीं है, तो यह खतरनाक है, और तुम बहुत अहंकारी और आत्मतुष्ट हो, विवेक की बहुत कमी है। तुम अपना माप तक नहीं जानते—और क्या यह तुम्हें भ्रमित व्यक्ति नहीं बनाता? ऐसे लोग वास्तव में परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के मानदंडों को पूरा नहीं करते और देर-सवेर उन्हें बरखास्त कर दिया जाएगा और हटा दिया जाएगा। और इसलिए नए-नए पदोन्नत हर अगुआ या कार्यकर्ता को स्पष्ट होना चाहिए कि उसमें सत्य वास्तविकता नहीं है, उसमें यह आत्म-जागरूकता होनी चाहिए। तुम अब अगुआ या कार्यकर्ता इसलिए नहीं हो कि तुम्हें परमेश्वर ने नियुक्त किया है, बल्कि इसलिए हो कि तुम्हें दूसरे अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने पदोन्नत किया या परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने चुना था; इसका यह मतलब नहीं है कि तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता और सच्चा आध्यात्मिक कद है। जब तुम यह बात समझ लोगे तो तुममें थोड़ा विवेक आ जाएगा, यह विवेक अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास अवश्य होना चाहिए। क्या तुम अब समझ पाए हो? (हाँ।) तो वास्तव में तुम लोगों को किस तरह से काम करना चाहिए? तुम्हें सामंजस्यपूर्ण सहयोग को अभ्यास में कैसे लाना चाहिए? जब भी समस्याओं से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें उन्हें सुलझाने के लिए सत्य को कैसे खोजना चाहिए? इन चीजों को समझना जरूरी है। अगर भ्रष्ट स्वभावों का खुलासा होता है, तो सत्य को खोजकर उन्हें यथाशीघ्र दूर करो। अगर उन्हें समय से दूर नहीं किया गया, और तुम्हारे कार्य पर उनका प्रभाव पड़ा, तो यह एक समस्या है। अगर तुम किसी पेशे से परिचित नहीं हो, तो तुम्हें बिना विलंब के सीखना शुरू कर देना चाहिए। क्योंकि कुछ कर्तव्यों में पेशेवर ज्ञान शामिल होता है, इसलिए अगर तुम किसी पेशेवर ज्ञान को समझे बिना सिर्फ सत्य को समझते हो, तो इससे तुम्हारे कार्य परिणामों पर भी असर पड़ेगा। कम-से-कम, तुम्हें कुछ पेशेवर ज्ञान को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए ताकि तुम लोगों के कार्य की खोज-खबर लेकर उसे रास्ता दिखाने में प्रभावी हो सको। अगर तुम किसी पेशे में सिर्फ माहिर हो मगर सत्य को नहीं समझते, तो तुम्हारे कार्य में भी उसी प्रकार खामियाँ होंगी, इसलिए तुम्हें सत्य का अनुसरण करने की भी जरूरत पड़ेगी और सत्य को समझने वाले लोगों के साथ सहयोग करना पड़ेगा ताकि तुम अपना कर्तव्य उचित ढंग से निभा सको। सिर्फ इसलिए कि पेशेवर कौशलों या ज्ञान के किसी क्षेत्र में तुम्हें महारत हासिल है, इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम सिद्धांतों के अनुसार चीजें करने में सक्षम हो, इसलिए सत्य समझने वाले लोगों से संगति का प्रयास करना अनिवार्य है—यह वह सिद्धांत है जिसका तुम लोगों को पालन करना चाहिए। तुम चाहे जो भी करो, तुम्हें ढोंग नहीं करना चाहिए। तुम प्रशिक्षण और विकास के दौर में हो, तुम्हारा स्वभाव भ्रष्ट है और तुम सत्य को बिल्कुल भी नहीं समझते। मुझे बताओ, क्या परमेश्वर इन चीजों के बारे में जानता है? (हाँ।) तो अगर तुम दिखावा करोगे तो क्या तुम मूर्ख नहीं लगोगे? क्या तुम लोग मूर्ख होना चाहते हो? (नहीं, हम ऐसा नहीं चाहते।) यदि तुम मूर्ख नहीं होना चाहते तो तुम्हें किस तरह का व्यक्ति बनना चाहिए? विवेकशील बनो, जो विनम्रतापूर्वक सत्य खोज सके और सत्य को स्वीकार कर सके। दिखावा मत करो, पाखंडी फरीसी मत बनो। तुम जो जानते हो वह केवल थोड़ा सा पेशेवर ज्ञान है, वह सत्य सिद्धांत नहीं है। तुम्हें सत्य सिद्धांतों को समझने के आधार पर अपनी पेशेवर खूबियों का उचित लाभ उठाने और अपने अर्जित ज्ञान और सीखने की प्रक्रिया का सदुपयोग करने का तरीका खोजना होगा। क्या यह एक सिद्धांत नहीं है? क्या यह अभ्यास का मार्ग नहीं है? एक बार जब तुम इसे करना सीख जाओगे तो तुम्हारे पास अनुसरण का एक मार्ग होगा और तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकोगे। तुम जो भी करो, उसमें हठी मत बनो और दिखावा न करो। हठी होना और दिखावा करना काम करने का तर्कसंगत तरीका नहीं है। बल्कि यह चीजों को करने का सबसे मूर्खतापूर्ण तरीका है। जो लोग अपने भ्रष्ट स्वभाव के अनुसार जीते हैं, वे सबसे मूर्ख लोग होते हैं। जो लोग सत्य खोजते हैं और सत्य सिद्धांतों के अनुसार मामलों को संभालते हैं, सिर्फ वे ही सबसे बुद्धिमान होते हैं।
इस संगति के जरिये, क्या अब तुम लोगों के पास परमेश्वर के घर द्वारा सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के बारे में सही समझ और दृष्टिकोण है? (हाँ।) अब चूँकि तुम्हारे पास इस बारे में सही दृष्टिकोण है, क्या तुम इन लोगों के प्रति सही दृष्टिकोण अपना सकते हो? तुम्हें उनकी खूबियों और साथ ही उनकी मानवता, कार्य, पेशे और विभिन्न अन्य पहलुओं से जुड़ी कमियों और खामियों के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाना ही चाहिए—इन सभी चीजों के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, चाहे तुम्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में पदोन्नत और विकसित किया गया हो, या चाहे तुम विभिन्न पेशों के प्रतिभाशाली लोग हो, तुम सब साधारण हो, शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए हो और तुममें से कोई भी सत्य को नहीं समझता। इसलिए तुममें से किसी को भी मुखौटा पहनना या खुद को छिपाना नहीं चाहिए; इसके बजाय तुम्हें संगति में खुद को खुलकर पेश करना सीखना चाहिए। अगर तुम नहीं समझते हो, तो मान लो कि तुम नहीं समझते हो। अगर तुम नहीं जानते कि कोई काम कैसे करना है, तो स्वीकार करो कि तुम नहीं कर सकते। चाहे जो भी समस्याएँ और मुश्किलें उत्पन्न हों, सभी को साथ मिलकर संगति करके समाधान पाने के लिए सत्य को खोजना चाहिए। सत्य के सामने हर कोई एक शिशु की तरह होता है, हर कोई कमजोर, दयनीय और पूरी तरह अभावग्रस्त होता है। जरूरत इस बात की है कि लोग सत्य के सामने समर्पित हों, एक विनयशील और लालसा-पूर्ण हृदय रखें, और सत्य को खोजकर उसे स्वीकार करें, और सत्य का अभ्यास करें और परमेश्वर के प्रति समर्पण करें। अपने वास्तविक जीवन में और अपने कर्तव्य निभाते हुए ऐसा करके लोग परमेश्वर के वचनों के सत्य की वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं। सत्य के सामने हर कोई एक समान है। जो लोग पदोन्नत और विकसित किए जाते हैं, वे दूसरों से बहुत बेहतर नहीं होते। हर किसी ने लगभग एक ही समय तक परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है। जिन लोगों को पदोन्नत या विकसित नहीं किया गया है, उन्हें भी अपने कर्तव्य करते हुए सत्य का अनुसरण करना चाहिए। कोई भी दूसरों को सत्य का अनुसरण करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता। कुछ लोग सत्य की अपनी खोज में अधिक उत्सुक होते हैं और उनमें थोड़ी काबिलियत होती है, इसलिए उन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाता है। यह परमेश्वर के घर के कार्य की जरूरतों के कारण होता है। तो फिर लोगों को पदोन्नत करने और उनका उपयोग करने के लिए परमेश्वर के घर में ऐसे सिद्धांत क्यों होते हैं? चूँकि लोगों की काबिलियत और चरित्र में अंतर होता है, और प्रत्येक व्यक्ति एक अलग मार्ग चुनता है, इसलिए परमेश्वर में लोगों की आस्था के परिणाम अलग होते हैं। जो लोग सत्य का अनुसरण करते हैं वे बचाए जाते हैं और वे राज्य की प्रजा बन जाते हैं, जबकि जो लोग सत्य को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते, जो अपना कर्तव्य करने में वफादार नहीं होते, वे हटा दिए जाते हैं। परमेश्वर का घर इस आधार पर लोगों का विकास और उपयोग करता है कि वे सत्य का अनुसरण करते हैं या नहीं, और वे अपना कर्तव्य करने में वफादार हैं या नहीं। क्या परमेश्वर के घर में विभिन्न लोगों के पदानुक्रम में कोई अंतर होता है? फिलहाल, विभिन्न लोगों के स्थान, मूल्य, रुतबे या अवस्थिति में कोई पदानुक्रम नहीं है। कम-से-कम उस अवधि के दौरान जब परमेश्वर लोगों को बचाने और मार्गदर्शन देने के लिए कार्य करता है, विभिन्न लोगों की श्रेणियों, स्थानों, या रुतबे के बीच कोई अंतर नहीं होता। अंतर केवल कार्य के विभाजन और कर्तव्य की भूमिकाओं में होता है। निस्संदेह, इस दौरान, कुछ लोगों को, अपवाद के तौर पर, कुछ विशेष कार्य करने के लिए पदोन्नत और विकसित किया जाता है, जबकि कुछ लोगों को अपनी काबिलियत या पारिवारिक परिवेश में समस्याओं जैसे विभिन्न कारणों से ऐसे अवसर नहीं मिलते। लेकिन क्या परमेश्वर उन लोगों को नहीं बचाता, जिन्हें ऐसे मौके नहीं मिले हैं? ऐसा नहीं है। क्या उनका मूल्य और स्थान दूसरों से कम है? नहीं। सत्य के सामने सभी समान हैं, सभी के पास सत्य का अनुसरण करने और उसे प्राप्त करने का अवसर होता है, और परमेश्वर सबके साथ निष्पक्ष और उचित व्यवहार करता है। लोगों के पदों, मूल्य और रुतबे में ध्यान देने योग्य अंतर किस मुकाम पर दिखाई देते हैं? ये तब दिखाई देते हैं जब लोग अपने मार्ग के अंत पर पहुँचते हैं, परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाता है, और प्रत्येक व्यक्ति द्वारा उद्धार का अनुसरण करने की प्रक्रिया और अपना कर्तव्य निभाने के दौरान प्रदर्शित रवैयों और विचारों और साथ ही परमेश्वर के प्रति उनकी विभिन्न अभिव्यक्तियों और रवैयों पर अंततः एक निष्कर्ष तैयार हो जाता है—यानी जब परमेश्वर की नोटबुक में एक पूरा रिकॉर्ड दर्ज हो जाता है—उस वक्त, क्योंकि लोगों के नतीजे और मंजिलें अलग होंगी, इसलिए उनके मूल्य, पदों और रुतबे में भी अंतर होंगे। केवल तभी इन तमाम चीजों की झलक मिल सकेगी और करीब-करीब जाँचकर उनका पता लगाया जा सकेगा, जबकि फिलहाल सभी लोग एक समान हैं। क्या तुम समझ गए? क्या तुम लोग उस दिन का इंतजार कर रहे हो? क्या तुम लोग उसका इंतजार कर रहे हो और साथ ही उससे भयभीत भी हो रहे हो? तुम जिसका इंतजार कर रहे हो वह यह है कि उस दिन अंततः एक परिणाम निकलेगा, और तमाम मुश्किलों के बावजूद तुम अंततः उस दिन तक पहुँच गए होगे; और तुम्हें जिसका भय है वह यह है कि तुम मार्ग पर उचित ढंग से नहीं चल पाओगे, बीच रास्ते में गिरकर विफल हो जाओगे, और अंतिम परिणाम असंतोषजनक होगा, तुम जैसी कल्पना और उम्मीद करते हो उससे कहीं बदतर—वह कितना दुखदायी, कितना दर्दनाक और कितना निराशाजनक होगा! उतने आगे की मत सोचो, उतने आगे की सोचना अव्यावहारिक है। पहले उसे देखो जो तुम्हारी आँखों के सामने है, अपने पाँव के नीचे की जमीन पर सही ढंग से चलो, हाथ में लिया हुआ काम अच्छे से करो, और परमेश्वर द्वारा सौंपे गए कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा करो। सबसे अहम और सबसे महत्वपूर्ण यही है। अपना कर्तव्य करने के लिए उस सत्य और उन सिद्धांतों को समझो जिन्हें तुरंत समझना चाहिए, और उन पर तब तक संगति करो जब तक वे सुस्पष्ट न हो जाएँ—ताकि वे तुम्हारे मन में पूरी तरह से तैयार हों, और तुम स्पष्ट रूप से और सटीकता से जान लो कि तुम्हारे हर काम में क्या सिद्धांत हैं—और यह सुनिश्चित करो कि तुम सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं कर रहे हो, या उनसे भटक नहीं रहे हो, या गड़बड़ियाँ नहीं कर रहे और बाधाएँ नहीं डाल रहे हो, या ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे हो जो परमेश्वर के घर के हितों को हानि पहुँचाता हो—तुम्हें इन सभी में तुरंत प्रवेश करना चाहिए। हमें आगे की किसी और चीज के बारे में बात करने की जरूरत नहीं है, और न ही तुम लोगों को इस बारे में पूछने या सोचने की जरूरत है। इतना आगे की सोचना बेकार है—यह वह चीज नहीं है जिसके बारे में तुम्हें सोचना चाहिए। कुछ लोग पूछ सकते हैं : “हम इस बारे में क्यों न सोचें? विपदा की स्थिति अब इतनी बड़ी हो चुकी है, क्या अभी वह वक्त नहीं है कि हम ऐसी चीजों के बारे में सोचें?” क्या वक्त हो गया है? क्या यह तथ्य कि विपदा बड़ी है, सत्य में तुम्हारे प्रवेश को प्रभावित करता है? (नहीं, यह प्रभावित नहीं करता।) विपदा की स्थिति बहुत बड़ी हो गई है, फिर भी मैं विपदा को लेकर कब सभाएँ करता हूँ या विशेष रूप से उपदेश देता हूँ? मैं कभी भी विपदा के मामले पर ध्यान केंद्रित नहीं करता, मैं हमेशा बस सत्य के बारे में बोलता हूँ, ताकि तुम लोग सत्य को समझ सको, और परमेश्वर के इरादों को समझ सको, ताकि तुम अपने कर्तव्य को अच्छे से करने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने का तरीका समझ सको। आजकल, कुछ लोग यह भी नहीं समझते कि सत्य वास्तविकता क्या है, और धर्म-सिद्धांत क्या हैं। वे हर दिन बस वही कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत और खोखली बातें बोलते हैं, और फिर भी उन्हें लगता है कि उन्होंने सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर लिया है। मैं उनको लेकर चिंतित हूँ, लेकिन वे अपने बारे में चिंता नहीं करते। वे अभी भी भविष्य की उन दूरगामी चीजों के बारे में सोचते हैं—उन चीजों के बारे में सोचना व्यावहारिक नहीं है।
सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का लक्ष्य उन्हें सक्रिय लोगों में तब्दील करना नहीं है, न ही उनके लिए यह योजना बनाना है कि वे भविष्य में किसी किस्म के मुख्य आधार बन जाएँ, बल्कि कुछ ऐसे लोग देना है जो सापेक्ष शब्दों में सत्य का अधिक अनुसरण करें और जो पदोन्नत और विकसित किए जाने और उपयुक्त परिवेशों में और अधिक अनुकूल स्थितियों के तहत प्रशिक्षण लेने की कसौटियों पर खरे उतरें। सबसे महत्वपूर्ण चीज यह है कि वे परमेश्वर के वचनों और सत्य को समझने और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने में सक्षम हों। क्या यह वो चीज नहीं है जो लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने के द्वारा हासिल करनी चाहिए? क्या यह वो चीज नहीं है जो लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने के द्वारा प्राप्त करनी चाहिए? सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए, तुम लोगों को फिलहाल किस मुख्य चीज का अनुसरण करना चाहिए? क्या तुम्हारे पास इसे करने की कोई योजनाएँ या कदम हैं? मैं तुम्हें एक तरकीब बताऊँगा जो सरल, आसान और तेज है। सरल शब्दों में, सत्य वास्तविकता में प्रवेश करना वास्तव में सत्य का अभ्यास करना है। सत्य का अभ्यास करने के लिए यह जरूरी है कि पहले अपने भ्रष्ट स्वभावों से निपटा जाए। अपने भ्रष्ट स्वभावों को दूर करने के लिए सबसे शीघ्र शुरुआती बिंदु क्या है? तुम लोगों के लिए, सरलतम, शीघ्रतम, और सबसे निरापद तरीका पहले अपना कर्तव्य निभाने में लापरवाही दिखाने की समस्या को दूर करना है, अपने भ्रष्ट स्वभावों को कदम-दर-कदम दूर करना है। इसे दूर करने में तुम लोगों को कितना समय लग सकता है? क्या तुम्हारी कोई योजना है? ज्यादातर लोगों के पास कोई योजना नहीं होती, वे बस अपने दिमाग में ही इस पर काम करते हैं, यह जाने बिना कि आधिकारिक तौर पर इसे कब शुरू करना है। हालाँकि वे जानते हैं कि वे लापरवाह हैं, वे इसे दूर करने की शुरुआत नहीं करते, और उनके पास कोई विशिष्ट हल नहीं होता। अपना कर्तव्य निभाने में आलसी होना, सतर्क न होना, गैर-जिम्मेदार होना और उसे गंभीरता से न लेना—ये सब लापरवाह होने की अभिव्यक्तियाँ हैं। पहला कदम लापरवाह होने की समस्या को दूर करना है। दूसरा कदम अपनी ही इच्छा के अनुसार कार्य करने की समस्या को दूर करना है। जहाँ तक अन्य चीजों, जैसे कि कभी-कभार बेईमानी से बोलने, या कपटपूर्ण या अहंकारी स्वभाव का खुलासा करने की बात है, उनके बार में फिलहाल चिंता न करो। क्या लापरवाह होने और अपनी ही इच्छा से कार्य करने से पहले निपटना ज्यादा व्यावहारिक और असरदार नहीं होता? क्या इन दो मसलों का पता लगाना सबसे आसान नहीं है? क्या इन्हें दूर करना आसान नहीं है? (हाँ, है।) जब तुम लापरवाह होते हो, तो क्या तुम्हें पता होता है? जब तुम आलसी होने के बारे में सोच रहे होते हो, तो क्या तुम्हें एहसास होता है? जब तुम चालें चलने के बारे में या चालबाजी से सांठ-गाँठ करने और अपना फायदा करने के बारे में सोचते हो, तो क्या तुम्हें एहसास होता है? (हाँ।) अगर तुम्हें सचमुच एहसास होता है, तो इसका समाधान करना आसान है। उन समस्याओं को दूर करने से शुरुआत करो जिनका तुम आसानी से पता लगा सकते हो, और जिनके बारे में तुम अंतर्मन से अवगत हो। अपने कर्तव्य में लापरवाह होना एक बहुत जाहिर और आम समस्या है, मगर साथ ही यह अड़ियल भी है जिसे दूर करना बहुत कठिन है। कोई कर्तव्य निभाते समय, व्यक्ति को कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती होना, सतर्कता से काम करना और जिम्मेदार होना सीखना चाहिए, और इसे दृढ़ता से स्थिर होकर करना चाहिए, यानी एक कदम दूसरे के आगे रखते हुए करना चाहिए। व्यक्ति को उस कर्तव्य को अच्छे ढंग से निभाने में अपनी पूरी शक्ति लगा देनी चाहिए, जब तक कि वे अपने निर्वहन से संतुष्ट न हो जाएँ। अगर कोई सत्य को नहीं समझता, तो उसे सिद्धांत खोजने चाहिए, और उनके अनुसार और परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार कार्य करना चाहिए; उसे स्वेच्छा से अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने में अधिक प्रयास लगाने चाहिए, और उसे कभी भी लापरवाही से नहीं करना चाहिए। सिर्फ इस प्रकार से कार्य करके ही अंतरात्मा की फटकार खाए बिना किसी के दिल को सुकून मिल सकता है। क्या लापरवाही को दूर करना आसान है? अगर तुममें अंतरात्मा और विवेक है, तो तुम उसे दूर कर सकते हो। पहले तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए : “हे परमेश्वर, मैं अपना कर्तव्य शुरू कर रहा हूँ। अगर मैं लापरवाह हूँ, तो मैं विनती करता हूँ कि तुम मुझे अनुशासित करो और मेरे मन में मुझे फटकारो। मैं यह भी निवेदन करता हूँ कि तुम मेरा कर्तव्य अच्छे से करने और लापरवाह न होने में मेरी अगुआई करो।” हर दिन इस तरह से अभ्यास करो और देखो कि लापरवाही की तुम्हारी समस्या के दूर होने, तुम्हारी लापरवाह दशाओं के कम होने, तुम्हारे कर्तव्यों में मिलावटों के कम होने, तुम्हारे वास्तविक परिणामों में सुधार आने और तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में तुम्हारी दक्षता के बढ़ने में कितना समय लगता है। लापरवाह हुए बिना अपना कर्तव्य निर्वहन करना—क्या यह ऐसी कोई चीज है जो तुम खुद पर भरोसा करके हासिल कर सकते हो? लापरवाह होने पर क्या तुम उस पर काबू कर सकते हो? (यह आसान नहीं है।) तो फिर यह पेचीदा है। अगर इस पर नियंत्रण करना तुम्हारे लिए सचमुच कठिन है, तो तुम लोगों के सामने एक बहुत बड़ी समस्या है! फिर वे कौन-सी चीजें हैं जो तुम लापरवाह हुए बिना कर सकते हो? कुछ लोग इस बारे में बहुत सतर्क होते हैं कि वे क्या खाते हैं; अगर कोई भोजन उनकी पसंद का न हो, तो सारा दिन उनका मिजाज ठीक नहीं रहेगा। कुछ महिलाओं को शानदार कपड़े पहनना और साज-सिंगार करना बहुत अच्छा लगता है; एक बाल भी उनकी नजर से बच नहीं पाता। कुछ लोग व्यापार-व्यवसाय में अच्छे होते हैं; वे पाई-पाई का हिसाब रखते हैं। अगर तुम लोग ऐसे कर्तव्यनिष्ठ रवैये से काम करो, तो तुम लापरवाह होने से बच सकते हो। पहले, लापरवाह होने की समस्या को दूर करो, फिर अपनी ही इच्छा के अनुसार काम करने की समस्या को सुलझाओ। अपनी ही इच्छा के अनुसार काम करना एक आम समस्या है, और यह एक और ऐसी समस्या है जिसका वे खुद में आसानी से पता लगा सकते हैं। थोड़ा आत्म-चिंतन करके व्यक्ति यह पहचान सकता है कि वह अपनी ही इच्छा के अनुसार काम करता है, जोकि सत्य सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। लोग जिन समस्याओं को पहचान सकते हैं उन्हें सुलझाना आसान होता है। पहले खुद को इन दो मसलों को सुलझाने में लगाओ, एक है लापरवाह होने की समस्या और दूसरी अपनी ही इच्छा के अनुसार कार्य करने की समस्या। एक-दो साल के भीतर नतीजे पाने, लापरवाह न रहने, अपनी ही इच्छा से कार्य न करने और जो भी करो उसमें अपनी इच्छा की मिलावट न करने का प्रयास करो। एक बार ये दोनों समस्याएँ दूर हो जाएँ, तो तुम मानक स्तर से अपना कर्तव्य निर्वहन करने से दूर नहीं रहोगे। और अगर तुम लोग इन्हें दूर भी नहीं कर सकते, तो तुम लोग अभी भी परमेश्वर के प्रति समर्पण करने या उसके इरादों के प्रति विचारशील होने से बहुत दूर हो—तुमने इसकी सतह को बिल्कुल खरोंचा भी नहीं है।
हमने अभी-अभी विभिन्न प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित करने की कसौटियों और लक्ष्यों के साथ ही इस बात पर संगति की कि परमेश्वर के घर द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के संबंध में व्यक्ति के पास कैसी समझ और दृष्टिकोण होना चाहिए। एक और पहलू वह रवैया और दृष्टिकोण है जो पदोन्नत और विकसित किए गए विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों के प्रति व्यक्ति को रखना चाहिए। ये कुछ मसले हैं जिन पर छठी मद में संगति की जानी चाहिए। तो आगे, विशेष तौर पर छठी मद को लेकर, आओ यह उजागर और गहन विश्लेषण करें कि झूठे अगुआ किस तरह से विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने का कार्य करते हैं। यह मुख्य विषयवस्तु है जिस पर हम संगति करेंगे।
सभी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने को लेकर झूठे अगुआओं के रवैए और अभिव्यक्तियाँ
झूठे अगुआ सत्य को नहीं समझते और सत्य को नहीं खोजते। इसलिए, जब परमेश्वर के घर में सभी प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित करने के महत्वपूर्ण कार्य की बात आती है, तो वे उसे खराब भी कर देते हैं, पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर देते हैं, और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं पर खरे उतरने में बिल्कुल विफल हो जाते हैं। क्योंकि वे विभिन्न प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित किए जाने को लेकर परमेश्वर के इरादों को समझना तो दूर, कसौटियों को भी नहीं समझते, और न ही वे विभिन्न प्रकार की योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित किए जाने की महत्ता समझते हैं, इसलिए इस कार्य को मानक स्तर पर और सिद्धांतपूर्ण ढंग से करना उनके लिए बहुत कठिन होता है। जिन विभिन्न प्रकार के “प्रतिभाशाली” लोगों को झूठे अगुआ अपना कार्य करने के दौरान विकसित करते हैं, वे निश्चित रूप से मिश्रित किस्म के होते हैं। योग्य प्रतिभाओं को पदोन्नत और विकसित करने के बजाय, झूठे अगुआ ऐसे लोगों को पदोन्नत करते हैं जिन्हें किसी भी हालत में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में सेवा करने के लिए पदोन्नत और विकसित नहीं किया जाना चाहिए, और वे उन लोगों को कलीसिया के खर्च पर जीने और परमेश्वर की भेंटों को बरबाद करने देते हैं। सभी झूठे अगुआ ऐसे काम करते हैं, जिसके कारण सत्य का अनुसरण करने वाले और न्याय की भावना वाले कुछ लोग दबाए और कुचले जाते हैं, और उन्हें पदोन्नत कर उनका उपयोग नहीं किया जाता। इसके बजाय, जो लोग निकम्मे होते हैं, वे इन झूठे अगुआओं की नजरों में तथाकथित प्रतिभाशाली लोग बन जाते हैं, और उनके द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाते हैं। तो इस कार्य को करते समय झूठे अगुआओं की क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? उदाहरण के लिए, चलो मान लें कि अपने कार्य की जरूरतों के कारण परमेश्वर के घर को बाहरी मामलों को संभालने के लिए कुछ लोगों को तलाशना है। तो उसे कैसे लोगों को तलाशना चाहिए? मैंने अभी-अभी अनेक कसौटियों की सूची बनाई, जिसमें हैं कार्य क्षमता, परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम होना, और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना। क्या एक झूठा अगुआ ये सिद्धांत जानता है? स्पष्टतः वह नहीं जानता, तो वह बाहरी मामले संभालने के लिए लोगों को किस तरह तलाशता है? वह मन-ही-मन सोचता है : “बाहरी मामले कौन संभाल सकता है? एक बहन है जो कुशाग्र है, और तेजी से प्रतिक्रिया करती है, अच्छी वक्ता है, और लोगों से निपटना जानती है। बोलते समय उसकी आँखें इधर-उधर नाचते हुए हिसाब-किताब लगाती हैं, और औसत इंसान उसे भाँप नहीं सकता। वह कलीसिया की अगुआ बनने के लिए थोड़ी अनुपयुक्त है, लेकिन बाहरी मामले संभालने में वह शानदार होगी, इसलिए मैं उसे चुनूँगा। बात बस इतनी है कि उसकी शिक्षा का स्तर थोड़ा कम होने के कारण मुझे चिंता होती है कि गैर-विश्वासी उसे नीची नजर से देखेंगे, इसलिए मैं उसके साथ साझेदारी करने के लिए एक विश्वविद्यालय स्नातक को तलाशूंगा—जो अपने छात्र संघ की अध्यक्ष रह चुकी थी। यह महिला काफी चालाक तो है, मगर उसके पास समाज का अपेक्षाकृत कम अनुभव है, और उसने दुनिया अपेक्षाकृत कम देखी है, तो वह अपने साझेदार से सीख सकेगी। इन दोनों लोगों में, एक का शिक्षा स्तर कम है, और दूसरी उच्च शिक्षा प्राप्त है, एक के पास समाज का अनुभव है और दूसरे के पास बिल्कुल नहीं है—उनकी जोड़ी उपयुक्त है, है कि नहीं?” एक वाक्पटु और सुस्पष्ट है, हाजिर-जवाब है, और समाज में काफी जानी-मानी है; जब भी वह गैर-विश्वासियों से बातचीत करती है, तो वे नहीं बता सकते कि वह एक विश्वासी है। दूसरी उच्च शिक्षा प्राप्त है, और सामाजिक रुतबे वाली है; जब भी वह गैर-विश्वासियों से बातचीत करती है, तो वे उसे नीची नजर से नहीं देखते। यह झूठा अगुआ इन दो लोगों को जिन सिद्धांतों के आधार पर चुनता है, उनके बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? झूठा अगुआ मानता है कि अगर किसी में बोलने की खूबी है, हाजिर जवाबी है, और उसकी प्रतिक्रियाएँ तेज हैं, तो वह परमेश्वर के घर के सामान्य मामले संभाल सकता है। क्या लोगों को चुनने का यह उपयुक्त तरीका है? (नहीं।) यह किस प्रकार से उपयुक्त नहीं है? (ऐसे लोग अक्सर बहुत चतुर होते हैं; हालाँकि वे दूसरों के साथ सांसारिक आचरण के लिए फलसफों में संलग्न हो सकते हैं, और लोगों से निपटना जानते हैं, फिर भी जरूरी नहीं है कि वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम हो सकें।) सही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर के चाहे जो भी मामले संभालता हो, उसे कम-से-कम ईमानदार होना चाहिए और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। वाक्-चतुर होने, और बातों से मुर्दा को जिंदा कर देने में सक्षम होने से क्या वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकेंगे? क्या हाजिर जवाब, वाक्पटु और सुस्पष्ट होने का अर्थ यह है कि वे परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर सकते हैं? (नहीं, यह अर्थ नहीं है।) वे शपथ भी ले लें, तो भी यह बेकार है, और तुम्हारा उनके सामने माँगें रखना भी उतना ही व्यर्थ है—उनमें वह चरित्र होना चाहिए। लेकिन झूठे अगुआ इन चीजों की जाँच नहीं करते, वे बस यह देखते हैं कि किसके पास समाज का अनुभव है, कौन चतुर है, हाजिर जवाब है, वाक्पटु और सुस्पष्ट है, कौन अवसर के मुताबिक काम करना जानता है, और कौन गिरगिट जैसा और कौन समाज का एक जाना-माना व्यक्ति है। उन्हें लगता है कि ऐसे लोग परमेश्वर के घर के सामान्य मामले संभाल सकते हैं। क्या यह एक गलती नहीं है? यह लोगों को चुनने के सिद्धांतों और मानकों के लिहाज से एक गलती है। तथ्य यह है कि इस प्रकार का व्यक्ति अत्यंत वाक्-चतुर होता है : ऐसे लोग चाहे किसी भी चीज से निपट रहे हों, उनकी कही हुई हर बात झूठ होती है, और वे चाहे जितने भी शपथ ले लें वे नहीं बदल सकते। काम करते समय वे सिर्फ अपने ही हितों की रक्षा करते हैं, और खास तौर पर खतरे का सामना होने पर वे सबसे पहले और सबसे अहम अपनी रक्षा करते हैं, और एक बार भी कभी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते। अगर गैर-विश्वासियों के साथ उनका रिश्ता अच्छा हो, तो उनके लिए यह काफी होता है; जहाँ तक परमेश्वर के घर के हितों को हानि पहुँचने, न पहुँचने की बात है, उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं होती। न ही भाई-बहनों की सुरक्षा कोई ऐसी चीज है जिस पर वे ध्यान देते हैं, न वे इस बात की परवाह करते हैं कि क्या परमेश्वर का नाम बदनाम हुआ है; वे सिर्फ अपना ख्याल रखते हैं। झूठे अगुआ ऐसे व्यक्ति की असलियत नहीं पहचान सकते, और सोचते हैं कि ऐसे लोग परमेश्वर के घर के बाहरी मामलों को संभालने में अत्यंत उपयुक्त हैं। क्या यह मूर्खता नहीं है? वह व्यक्ति परमेश्वर के घर के हितों का सौदा कर देता है, लेकिन झूठा अगुआ यह जानता भी नहीं और उसे अहम काम सौंप देता है और हर काम के लिए उस पर निर्भर करता है। क्या यह मूर्खता की हद नहीं है? क्या वे लोग जो वाक्पटु, सुस्पष्ट और हाजिर जवाब होते हैं, वे ईमानदार इरादों वाले लोग होते हैं? अगर उनके साथ तुम्हारा कोई आचरण न हुआ हो, या तुमने सावधानी से उनका निरीक्षण न किया हो, तो तुम नहीं जानोगे। उनके साथ आचरण करते समय और मामले संभालते समय बस देखो कि क्या वे वही करते हैं जो वे कहते हैं। इसकी एक घटना से परीक्षा की जा सकती है। उदाहरण के लिए मान लो कि तुम चीजें कहीं और ले जा रहे हो। यह देखकर भी वे तुम्हारी मदद नहीं करेंगे। जब तुम काम पूरा कर लोगे तभी वे आकर कहेंगे, “इतना थकाऊ काम तुम अकेले कैसे कर सकते हो? अगर तुमने मुझसे बस कह दिया होता, तो मैं जितना भी व्यस्त होता तुम्हारी मदद जरूर करता। तुम थके-हारे लगते हो। मैं बाद में तुम्हारे लिए खाना बना दूँगा, आज तुम्हें बनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” यह कहकर वे गायब हो जाते हैं। तुम पूरी तरह थके-हारे हो, फिर भी तुम्हें खाना बनाना पड़ेगा। फिर तुम्हारे खाना बना लेने के बाद वे खाने के लिए आ जाएँगे और यह भी कहेंगे, “तुमने खाना बनाना शुरू करते समय मुझ क्यों नहीं बुलाया? तुम पूरी तरह चूर हो गए हो, और अभी भी मेरे लिए खाना बना रहे हो—यह ठीक कैसे है? चूँकि तुमने बना दिया है, मैं खा ही लेता हूँ। अगला खाना मैं बना दूँगा, और जब भी भविष्य में तुम्हें कुछ करने की जरूरत हो मुझे आवाज दे देना।” उनकी असलियत जानने के लिए यह एक घटना काफी है। वे चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, हाजिर जवाब होते हैं, और जानते हैं कि क्या कहना है। वे जानते हैं कि अवसर के अनुसार कैसे काम करना है, और वे बिना कोई वास्तविक कार्य किए बस मीठी-मीठी बातें ही करते हैं। क्या ऐसे लोग भरोसेमंद होते हैं? अगर तुम उनसे परमेश्वर के घर के सामान्य मामले संभालने को कहोगे, तो क्या वे उसके हितों की रक्षा कर सकेंगे? क्या वे कलीसिया की प्रतिष्ठा का मान रख सकेंगे और भाई-बहनों की सुरक्षा कर सकेंगे? (नहीं।) क्या परमेश्वर के घर की संपत्ति और उसके समस्त हित उसकी सर्वोपरि प्राथमिकता हैं? बिल्कुल भी नहीं। झूठे अगुआओं की नजरें और दिमाग ऐसी आसानी से पता लगाई जा सकनेवाली समस्याओं के प्रति अंधे होते हैं, वे उन्हें देख ही नहीं सकते। इसके बजाय, वे सिर्फ शब्द और धर्म-सिद्धांत बता सकते हैं। परमेश्वर किससे प्रेम करता है और किससे प्रेम नहीं करता, कौन सत्य से प्रेम करता है और कौन नहीं करता, परमेश्वर में अपनी आस्था में बुनियाद होने का क्या अर्थ है और किस प्रकार के लोगों के पास कोई बुनियाद नहीं होती, किस प्रकार के लोग अपना कर्तव्य करने में वफादार होते हैं और किस प्रकार के लोग अपना कर्तव्य करने में वफादार नहीं होते—वे इन चीजों के बारे में उचित और तार्किक ढंग से बोलते हैं, और लगता है जैसे वे उन्हें वास्तव में समझ रहे हैं, लेकिन ये सब खोखली बातें और धर्म-सिद्धांत हैं। जब भी उनसे लोगों को पहचानने को कहा जाता है, तो उनकी आँखें और दिमाग अंधे हो जाते हैं; वे जानते ही नहीं कि लोगों को कैसे पहचानें। वे इस प्रकार के लोगों के साथ चाहे जितने समय तक भी बातचीत करें, वे उनकी असलियत नहीं जान पाते, और उन्हें महत्वपूर्ण काम तक सौंप देते हैं।
झूठे अगुआओं का गलत लोगों का नियोजन करना पहले ही एक घिनौना काम होता है, फिर भी वे और अधिक घिनौने काम करके इस गलत कर्म को बढ़ा देते हैं। उदाहरण के लिए मान लो कि एक झूठे अगुआ ने गलत व्यक्ति को नियोजित किया। यह व्यक्ति एक पर्यवेक्षक बनने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है, और पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए परमेश्वर के घर की कसौटियों पर खरा नहीं उतरता है। फिर भी झूठा अगुआ उन्हें नियोजित करने पर अड़ा रहता है और यह मानकर उस व्यक्ति के कार्य का कभी निरीक्षण नहीं करता कि “किसी को उन लोगों पर न तो संदेह करना चाहिए जिन्हें वह नियोजित करता है, न ही उन लोगों को नियोजित करना चाहिए जिन पर उसे संदेह हो। चूँकि मैंने तुम्हें चुना और पदोन्नत किया है, इसलिए तुम इस कार्य को अच्छे ढंग से करने में सक्षम होगे, तो बस आगे बढ़ो और तुम यह काम जैसे भी ठीक समझो वैसे करो। तुम जो भी करोगे मैं तुम्हारा समर्थन करूँगा, और किसी के इस पर आपत्ति उठाने का कोई तुक नहीं है!” उन्होंने गलत व्यक्ति को नियोजित किया और फिर भी वे अपनी गलती को अंत तक बने रहने देते हैं—वे खुद पर इतना विश्वास करते हैं। सभी झूठे अगुआ अंधे होते हैं। वे किसी भी समस्या को नहीं देख पाते, वे नहीं बता सकते कि कौन-से लोग बुरे हैं या छद्म-विश्वासी हैं, और कलीसिया के कार्य में चाहे कोई भी गड़बड़ी करे या उसे बाधित करे, उन्हें इसकी जानकारी नहीं होती, और यहाँ तक कि वे भ्रमित लोगों को अहम काम भी सौंप देते हैं। झूठे अगुआ जिसे भी पदोन्नत करते हैं उस पर बहुत भरोसा रखते हैं, और खुशी-खुशी उन्हें अहम काम सौंप देते हैं। नतीजतन, वे लोग कलीसिया के कार्य को बिगाड़ देते हैं, जिससे सुसमाचार का फैलाव गंभीरता से प्रभावित हो जाता है, और परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचता है। झूठे अगुआ ढोंग भी करते हैं कि वे इस बारे में कुछ भी नहीं जानते। ऊपरवाला उनसे पूछता है, “जिस व्यक्ति को तुमने पदोन्नत किया, उसका काम कैसा है? क्या वह इस काम को करने के लिए उपयुक्त है? क्या वह कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा कर रहा है? कठिन क्षणों में, वे खुद की रक्षा करेंगे या कलीसिया के कार्य की रक्षा करेंगे?” ये झूठे अगुआ जवाब देते हैं, “उन्होंने शपथ ली थी कि वे कलीसिया के कार्य की रक्षा करेंगे। इसके अलावा, उन्होंने 20 वर्ष तक परमेश्वर में विश्वास रखा है। वे भला खुद की रक्षा करके परमेश्वर के घर के हितों का सौदा कैसे कर सकते हैं? वे संभवतः परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करेंगे।” ऊपरवाला जवाब देता है : “क्या तुम्हारी बात सटीक है? क्या तुमने उसके कार्य का निरीक्षण किया है?” ये झूठे अगुआ जवाब देते हैं, “मैंने उसके कार्य का निरीक्षण नहीं किया है, लेकिन मैंने उससे कहा है कि उसे अपने हितों की रक्षा न करके कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए, और उसने मुझसे वादा किया है कि वह ऐसा ही करेगा।” उस व्यक्ति के उनसे वादा करने का क्या फायदा? वह व्यक्ति परमेश्वर के सामने ली गई शपथ को भी पूरा नहीं कर सकता। क्या उन्हें लगता है कि सिर्फ इस कारण से कि उस व्यक्ति ने उनसे एक वादा किया, उस पर भरोसा करना सुरक्षित है? क्या जो वादा उसने किया उसे वह निश्चित रूप से पूरा करेगा? चूँकि इन झूठे अगुआओं ने उस व्यक्ति के कार्य का निरीक्षण नहीं किया है, उन्हें कैसे पता कि वह ऐसा व्यक्ति है या नहीं जो परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करता है? वे खुद पर इतना विश्वास कैसे कर सकते हैं? क्या ऐसे झूठे अगुआ बदमाश नहीं हैं? गलत व्यक्ति को नियोजित करके उन्होंने पहले ही एक बड़ी गलती कर दी है, और फिर इस व्यक्ति के कार्य के बारे में कभी पूछताछ न करके, ज्यादा जानने की कोशिश न करके, या उस व्यक्ति के काम की जाँच न करके; निगरानी या निरीक्षण न करके वे अपनी गलती और बढ़ा लेते हैं। वे केवल इतना करते हैं कि उस व्यक्ति का अनियंत्रित ढंग से काम करने और गलत कर्म करने को बस सहन करते रहते हैं। नकली अगुआ इसी तरह काम करते हैं। जब भी काम की किसी मद में लोगों की कमी होती है, तो नकली अगुआ सहर्ष किसी को इसकी जिम्मेदारी देने की व्यवस्था कर देते हैं, और बस, उनका काम खत्म हो जाता है; वे कभी कार्य का निरीक्षण नहीं करते, न ही वास्तव में कार्यस्थल पर उस व्यक्ति से बातचीत करने जाते हैं, न उसका निरीक्षण करते हैं, और न उसके बारे में ज्यादा जानने की कोशिश करते हैं। कुछ स्थानों का माहौल उससे मिलने और समय बिताने के लिए अनुकूल नहीं होता, लेकिन उन अगुआओं को उसके काम के बारे में पूछना चाहिए, और परोक्ष पूछताछ करनी चाहिए कि वह क्या करते रहे हैं और कैसे करते रहे हैं—वे भाई-बहनों या उसके किसी करीबी से पूछ सकते हैं। क्या यह नहीं किया जा सकता? लेकिन नकली अगुआ तो कोई सवाल पूछने का भी कष्ट नहीं उठाते, वे इतने आश्वस्त रहते हैं। अपने कार्य में वे सिर्फ सभाएँ करते हैं और धर्म-सिद्धांतों के उपदेश देते हैं, और जब सभाएँ समाप्त हो जाती हैं और कार्य-व्यवस्थाएँ कर दी जाती हैं, तो वे और कुछ नहीं करते; वे यह देखने नहीं जाते कि उनके द्वारा चुना गया व्यक्ति वास्तविक कार्य करने में सक्षम है या नहीं। शुरुआत में, उन्होंने उस व्यक्ति को नहीं समझा, मगर उसकी काबिलियत, उसकी सतही अभिव्यक्तियों और जोश के आधार पर उन्हें लगा कि वह इस कार्य के लिए उपयुक्त है, इसलिए उन्होंने उसे नियोजित किया—इसमें कुछ गलत नहीं है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि लोग कैसे निकलेंगे। लेकिन उसे पदोन्नत करने के बाद, क्या उन अगुआओं को काम की प्रगति का जायजा लेकर यह नहीं देखना चाहिए कि वह वास्तविक काम करता है या नहीं, वह कैसे काम करता है, क्या वह लापरवाह है, अविश्वसनीय है, या कामचोरी कर रहा है? उन्हें ठीक यही काम करना चाहिए, लेकिन वे इसमें से कुछ नहीं करते, कोई जिम्मेदारी नहीं लेते। वे झूठे अगुआ हाँ, और उन्हें बरखास्त कर हटा देना चाहिए।
झूठे अगुआ गंभीर गलती करते हैं, जो यह है कि लोगों को पदोन्नत करने के बाद, वे उन्हें काम समझाते हैं, फिर थोड़ा धर्म-सिद्धांत उगलते हैं, प्रोत्साहन के दो शब्द बोलते हैं, और बस छोड़ देते हैं, कभी काम की प्रगति का जायजा नहीं लेते या विशिष्ट कामों में शामिल नहीं होते। अगर वे कहते हैं कि उनकी काबिलियत कमजोर है, और उनमें लोगों के बारे में अंतर्दृष्टि नहीं है, तो वे काम की प्रगति का जायजा लेकर पता लगा सकते हैं कि विशिष्ट काम कैसे चल रहे हैं, और फिर वे स्थिति को पूरी तरह संभाल सकते हैं। लेकिन झूठे अगुआ काम की प्रगति का जायजा नहीं लेते, और बिल्कुल पता नहीं लगाते कि काम कैसा चल रहा है। उदाहरण के लिए किताबों की छपाई का काम लो, जोकि एक विशिष्ट कार्य है। एक झूठे अगुआ ने किसी को इस कार्य का प्रभार सौंपा, लेकिन छह महीने में एक बार भी उसकी जाँच नहीं की। फलस्वरूप छह महीनों के बाद, सारी मुद्रित पुस्तकें दोषपूर्ण निकलीं—कितनी अधिक गड़बड़ है! झूठे अगुआ ऐसे ही होते हैं—वे कोई भी विशिष्ट कार्य नहीं करते। अगर तुम कोई पुस्तक मुद्रित करवाने की व्यवस्था कर रहे हो, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें पहले कोई उपयुक्त पर्यवेक्षक निर्धारित करना चाहिए, और फिर निगरानी और जाँच करनी चाहिए कि वह अपना काम कितने अच्छे ढंग से कर रहा है, और क्या वह उसे बिगाड़ सकता है। तुम्हें कार्य की निगरानी करनी चाहिए और उसकी प्रगति का जायजा लेना चाहिए, और किसी समस्या का पता चलने पर उसे सीधे सुलझाना चाहिए—सिर्फ इसी से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि कोई समस्या उत्पन्न न हो। लेकिन झूठे अगुआ यह नहीं करते। उन्हें लगता है कि उनकी जिम्मेदारियों में सिर्फ लोगों को धर्म-सिद्धांत बता देना ही है, और उन्हें धर्म-सिद्धांत समझने देना है, और अगर वे धर्म-सिद्धांतों को समझते हैं, तो समस्याएँ हल हो सकती हैं। इसलिए वे सिर्फ धर्म-सिद्धांत बताने और नारे लगाने पर ध्यान देते हैं, और विशिष्ट कार्यों में शामिल नहीं होते। जहाँ तक झूठे अगुआओं का सवाल है, वे सोचते हैं कि विशिष्ट कार्यों में शामिल होना उनका काम नहीं है, और इसकी चिंता उनके मातहत लोगों को होनी चाहिए। तो वे खुद क्या करते हैं? वे ऊँचे स्थान से समग्र स्थिति पर नियंत्रण करते हैं और एक निष्प्रभावी अधिकारी बन जाते हैं। कार्य चाहे जो हो, वे मौजूद नहीं रहते या उसमें शामिल नहीं होते। लोगों को सिद्धांत बताने के बाद, अगर उनसे विस्तृत मसलों या विशिष्ट मार्गों के बारे में पूछा जाए, तो वे कहेंगे, “विशिष्ट कार्य तुम लोगों के जिम्मे है, मैं इस चीज को नहीं समझता।” इसलिए वे नहीं जानते कि उनके अधीनस्थ लोग किस तरह से यह कार्य करते हैं। जहाँ तक इसकी बात है कि पर्यवेक्षक सक्षम है या नहीं और काम के लिए उपयुक्त है या नहीं, या उसकी मानवता कैसी है, या क्या वह ऐसा व्यक्ति है जो सत्य का अनुसरण करता हैं, वह अपना कर्तव्य निभाने में जिम्मेदार है या नहीं, या वह लापरवाह है या बुरी चीजें करते हुए पागलों की तरह गड़बड़ करता है, या कार्य में विलंब हो रहा है, वगैरह-वगैरह—झूठे अगुआ इनमें से किसी के बारे में नहीं जानते, वे बस गैर-विश्वासी कलम घिसनेवाले अधिकारियों की तरह इधर-उधर घूमते रहते हैं, और कोई वास्तविक कार्य नहीं करते। झूठे अगुआ जिन कलीसियाओं में कार्य करते हैं, वहाँ वे नहीं जान पाते कि कुछ पर्यवेक्षकों ने कब काम को पूरी तरह रोक दिया है, या कब कुछ पर्यवेक्षक अपना स्वयं का स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहे हैं, या कब कुछ पर्यवेक्षक अपने उचित कर्तव्य करने के बजाय अपने दिन खाने, पीने और मौज-मस्ती करने में बिताते हैं, और वे तब आँखें फेर लेते हैं जब कुछ पर्यवेक्षकों में बेहद कमजोर काबिलियत, विकृत समझ होती है, और वे जरा भी काम नहीं कर सकते। ऐसे झूठे अगुआ बस थोथे चने होते हैं, वे बस नाम के लिए अगुआ होते हैं, और अगुआ वाला कोई ठोस कार्य नहीं करते। ऊपर से तो ये झूठे अगुआ बहुत अच्छा व्यवहार करने वाले लगते हैं। वे काम की हर मद के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त करते हैं, बार-बार इन लोगों की सभाएँ करते हैं, और अपना शेष समय एक जगह आध्यात्मिक भक्ति, प्रार्थना, परमेश्वर के वचनों के पाठ, उपदेश श्रवण, भजन सीखने और अपने स्वयं के उपदेश लिखने में बिताते हैं। ऐसे कुछ झूठे अगुआ हैं जो पूरे हफ्ते अपने कमरा छोड़ कर बाहर भी नहीं निकलते। ऐसे भी झूठे अगुआ हैं, जो ऑनलाइन सभाएँ करने के सिवाय कुछ नहीं करते, और स्थिति को समझने के लिए कार्य स्थलों पर कभी नहीं जाते। भाई-बहन उन्हें लंबे समय तक रूबरू नहीं देख पाते, और उन्हें कोई अंदाजा नहीं होता कि कि झूठे अगुआओं के जीवन अनुभव या आध्यात्मिक कद कैसे हैं। सभाओं में, झूठे अगुआ सिर्फ कुछ सामान्य मामले संभालते हैं, लेकिन जहाँ तक इसका सवाल है कि विशेष रूप से कौन-सा पर्यवेक्षक क्या कर रहा है, और जिन लोगों को उन्होंने पदोन्नत और विकसित किया, वे दिए हुए कार्य के लिए उपयुक्त हैं या नहीं, या अपना कर्तव्य निभाने के प्रति इन लोगों का रवैया क्या है, या क्या वे अपने कार्य पर पूरा ध्यान देते हैं और उसे अच्छी तरह करते हैं, या वे नकारात्मक और लापरवाह हैं, या क्या ये लोग सही मार्ग पर चल रहे हैं, या क्या वे सही लोग हैं, झूठे अगुआओं को इसकी परवाह नहीं होती, या वे इनमें से किसी भी मामले के बारे में नहीं पूछते, और वे इनके बारे में जानना भी नहीं चाहते। क्या इस समस्या की प्रकृति गंभीर नहीं है? (हाँ, है।)
परमेश्वर के घर को कुछ ऐसे प्रतिभाशाली लोगों की जरूरत होती है, जो कुछ खास पेशेवर क्षेत्रों के बारे में समझते हों, और जिनमें कुछ विशेष कौशल हों, और वह उन पेशों का अध्ययन करने के लिए इन लोगों को विकसित करता है ताकि वे परमेश्वर के घर में एक कर्तव्य निभा सकें। तुम लोगों के ख्याल से झूठे अगुआ किस प्रकार के लोगों को खोज निकालते हैं? वे उन युवाओं को इकट्ठा करते हैं जिन्होंने विश्वविद्यालयों में पढ़ाई की को, और जो अपने माता-पिता के पीछे चलते हुए परमेश्वर में विश्वास रखने लगे हों, और वे उन पर गौर करते हैं जो बोलने में सुस्पष्ट हों, और जो लोगों के ध्यान का केंद्र बनना पसंद करते हों, और वे उनसे कहते हैं, “परमेश्वर का घर तुम लोगों को विकसित करना चाहता है; तुम लोग आरक्षित सेना और नई शक्तियाँ हो।” फिर वे इन लोगों के करने के लिए एक कर्तव्य सौंपते हैं। वास्तव में, इन लोगों ने कभी कोई कर्तव्य नहीं निभाया है, उनमें विभिन्न प्रकार के अनुभवों की कमी है, और वे किसी भी सत्य को नहीं समझते। लेकिन झूठे अगुआ उन पर कृपा करते हैं और उन्हें पसंद करते हैं, इसलिए वे उन्हें विकसित करना शुरू करते हैं। वे इस आधार पर इन लोगों को कर्तव्य सौंपते हैं जिस पर उनकी विशेषज्ञता उन्हें सीखने के लिए उपयुक्त बनाती है; कुछ को पाठ-आधारित कार्य दिया जाता है, कुछ को फिल्म निर्माण, कुछ को वीडियो निर्माण और कुछ को अभिनेता बनने का कार्य सौंपा जाता है। इन लोगों के पास करने के लिए कोई कर्तव्य हो, झूठे अगुआओं के लिए बस यही काफी है। झूठे अगुआ यह खोजबीन नहीं करते कि क्या ये लोग सत्य से प्रेम करते हैं या नहीं, सत्य को स्वीकार सकते हैं या नहीं, न ही वे इस बात पर गौर करते हैं कि ये लोग किस चीज का अनुसरण कर रहे हैं, या उनके लक्ष्य क्या हैं। अंत में, क्या होता है? उनमें से कुछ लोग हटा दिए जाते हैं। ऐसा इसलिए कि वे स्वच्छंद और असंयमित होते हैं, सांसारिक प्रवृत्तियों के पीछे भागते हैं, अपने दिन सजने-सँवरने, और दूसरों से नैन लड़ाने में बिता देते हैं, और वे किसी नियम को नहीं समझते न ही उनमें कोई शिष्टाचार होता है—यह स्पष्ट है कि वे छद्म-विश्वासी और गैर-विश्वासी हैं। वे अपने कर्तव्य करते समय अपने उचित कार्य नहीं करते, और तमाम काम लापरवाही से करते हैं, लेकिन झूठे अगुआ ये सब नहीं देख पाते। क्या झूठे अगुआ आँख के अंधे नहीं हैं? (हाँ, हैं।) उनकी आँखों के इस अंधेपन का कारण क्या है? क्या यह इसलिए नहीं है कि झूठे अगुआ दिमाग से अंधे हैं? आँखों का अंधापन और दिमाग का अंधापन झूठे अगुआओं की दो विशेषताएँ हैं। हालाँकि उनकी आँखें पूरी खुली होती हैं, फिर भी झूठे अगुआ कुछ भी नहीं समझ सकते या किसी का असली रूप नहीं देख सकते—यानी उनकी आँखें अंधी होती हैं। उनके दिमाग में किसी भी व्यक्ति या किसी भी चीज के बारे में कोई समझ-बूझ या नजरिया नहीं होता, और चाहे वे जो भी देखें, उनमें सही और गलत में फर्क करने की योग्यता नहीं होती, और उनमें कोई रवैया, कोई राय या कोई परिभाषा नहीं होती—यह दिमाग से अंधे होने का एक गंभीर मामला है। झूठे अगुआ वे तमाम लोग हैं जिन्होंने अनेक वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखा है, जो अक्सर उपदेश सुनते हैं, तो ऐसा क्यों है कि वे उन छद्म-विश्वासियों को नहीं पहचान पाते? यह अतिरिक्त साक्ष्य है कि झूठे अगुआ बहुत कमजोर काबिलियत वाले होते हैं, कि वे सत्य को समझने में अक्षम होते हैं, और वे चाहे जितने भी सत्य सुनें, इसका कोई लाभ नहीं होता और वे उन्हें नहीं समझते। वे आँख और दिमाग से अंधे हैं, और वे लोगों को समझने-बूझने में पूरी तरह अक्षम हैं। वे कलीसिया में अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए कैसे उपयुक्त हो सकते हैं? वे मानते हैं कि अच्छा बोलनेवाले लोग प्रतिभाशाली होते हैं, और जो लोग नाच-गा सकते हैं, वे भी प्रतिभाशाली व्यक्ति होते हैं; जब वे उन लोगों को देखते हैं जिन्होंने चश्मा पहना हो, या जिन्होंने विश्वविद्यालय में पढ़ाई की हो, तो वे उन्हें प्रतिभाशाली समझते हैं, और जब वे उन लोगों को देखते हैं जो समाज में रुतबे वाले हैं, अमीर हैं, जो व्यापार-व्यवसाय करना जानते हैं और छल-कपट की गतिविधियों में संलग्न होते हैं, और जो समाज में किसी किस्म का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, तो झूठे अगुआ सोचते हैं कि वे प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। वे मानते हैं कि परमेश्वर के घर को इस प्रकार के लोगों को विकसित करना चाहिए। वे इन लोगों का चरित्र नहीं देखते, या यह नहीं देखते कि क्या परमेश्वर में उनके विश्वास की कोई नींव है, और उससे भी कम वे यह देखते हैं कि ये लोग किस रवैये से परमेश्वर और सत्य के साथ पेश आते हैं। वे सिर्फ लोगों के सामाजिक रुतबे और पृष्ठभूमि पर ध्यान देते हैं। क्या झूठे अगुआओं का लोगों और चीजों को इस दृष्टि से देखना बेतुका नहीं है? झूठे अगुआ लोगों और चीजों को गैर-विश्वासियों की ही तरह देखते है—उनका वही नजरिया होता है जो चीजों के बारे में गैर-विश्वासियों का होता है। यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि झूठे अगुआ वे लोग नहीं हैं जो सत्य से प्रेम करते और उसे समझते हैं, और उनमें कोई समझ-बूझ नहीं होती है। क्या वे अत्यंत उथले नहीं होते? वे सच में अंधे होते हैं—पूरी तरह से!
अतीत में, मेरी मुलाकात एक झूठे अगुआ से हुई थी जो मेरी उससे बातचीत के दौरान बोलता और हंसता, लेकिन जैसे ही मैं उससे कार्य के बारे पूछता, वह संवेदनहीन और मंद-बुद्धि होकर आकाश में देखता, और मेरी किसी भी बात का कोई जवाब नहीं देता। इस व्यक्ति की काबिलियत इतनी कमजोर थी कि उसे नियोजित नहीं किया जा सकता था। कोई अचरज की बात नहीं कि वह मेरी कही हुई किसी भी बात को नहीं समझ सका और उसे क्रियान्वित नहीं कर सका। मैं उससे जिस बारे में भी बात करता वह यह कहता रहा, “कुछ दिन पहले मैंने एक सभा की और कामकाज के बारे में खोज-खबर ली।” मैंने कहा, “क्या सभाएँ करने के सिवाय तुम्हारे पास और कोई काम नहीं है? कलीसिया में करने के लिए इतने ढेरों काम हैं, तुम करने के लिए और कुछ क्यों नहीं तलाशते?” उसने कहा : “क्या अगुआ और कार्यकर्ता होने का मतलब बस सभाएँ करना नहीं है? सभाएँ आयोजित करने के अलावा करने के लिए और कुछ नहीं है, मैं कोई दूसरा काम करना नहीं जानता!” यह दर्शाता है कि उस पद पर बैठते समय उसका झूठा अगुआ बनना तय था, और वह कोई वास्तविक कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी काबिलियत बहुत ज्यादा कमजोर है! अत्यधिक कमजोर काबिलियत आँखों और दिमाग के अंधत्व का कारण बनती है। आँख के अंधत्व का मतलब क्या है? इसका अर्थ है कि व्यक्ति चाहे कुछ भी देखे, वह विशिष्ट समस्याओं को देख पाने में असमर्थ होता है, और इसलिए उसकी आँखें होने का कोई लाभ नहीं है। दिमाग के अंधेपन का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि चाहे कुछ भी हो जाए, व्यक्ति को उसकी जानकारी नहीं होती, वह उसमें निहित समस्या को समझने में विफल होता है, और वह नहीं देख सकता कि समस्या का सार कहाँ है—दिमाग से अंधे होने का यह अर्थ है। अगर कोई व्यक्ति दिमाग से अंधा है, तो वह बिल्कुल खत्म हो चुका है। झूठे अगुआ इस तरह आँखों और दिमाग से अंधे होते हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि ये बातें सुनकर झूठे अगुआ परेशान हो जाते हैं? वे सोचते हैं, “मेरी आँखें खासी बड़ी हैं, लेकिन वह कहता है कि मैं आँख से अंधा हूँ; मेरे मन में नेक इरादे हैं, फिर भी वह कहता है कि मैं दिमाग से अंधा हूँ—उसकी परिभाषा विशेष तौर पर सटीक नहीं है, है ना? मुझे बस झूठा अगुआ क्यों नहीं कह देते? यह जोड़ने की क्या जरूरत है कि मैं आँख और दिमाग से अंधा हूँ?” अगर मैंने ऐसे नहीं कहा होता, तो झूठे अगुआओं की काबिलियत को देखते हुए, क्या उन्हें यह एहसास हो पाता कि उनकी काबिलियत कमजोर है? (नहीं, उन्हें इसका एहसास नहीं होता।) क्या यह कहना कि ये झूठे अगुआ आँखों और दिमाग से अंधे हैं, मामले को अच्छी तरह नहीं समझाता? उदाहरण के लिए, चलो मान लें कि एक मसीह-विरोधी कलीसिया में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहा है। लेकिन एक झूठा अगुआ कहता है, “यह व्यक्ति बहुत काबिल है। वह विश्वविद्यालय में प्राध्यापक था, वह स्पष्टता से, क्रमानुसार और एक सुव्यवस्थित और सुस्पष्ट तरीके से बोलता है। इसके अलावा, उसे मंच का भय नहीं है, भले ही दर्शकगण जितने भी हों।” यह दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है कि वे जिस व्यक्ति की बात कर रहे हैं वह एक फरीसी है जो अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहा है, और फिर भी झूठा अगुआ उसकी प्रशंसा करता है। क्या यह आँखों का अंधत्व नहीं है? (हाँ।) अगर कोई बेसुरा गा रहा हो और तुम उसे नहीं सुनते, तो क्या इसे आँखों का अंधत्व माना जाएगा? (नहीं।) यह काबिलियत का मसला नहीं, बल्कि एक पेशेवर मसला है। लेकिन इतने सारे सत्य सुनने के बाद भी झूठे अगुआ मसीह-विरोधियों की असलियत को पहचान भी नहीं सकते, और वे नहीं बता सकते कि किसी व्यक्ति की मानवता अच्छी है या बुरी, या कोई व्यक्ति परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने का उम्मीदवार है या नहीं, या कोई छद्म-विश्वासी है या नहीं, या क्या वह परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास रखता है, और वे यह नहीं बता सकते कि कोई व्यक्ति अपना कर्तव्य करने में वफादार है या नहीं—तो फिर उन्होंने इतने वर्षों तक उपदेश सुनकर क्या हासिल किया है? उन्होंने कोई सत्य हासिल नहीं किया है, जिसका अर्थ है कि वे बेवकूफ अंधे हैं; झूठे अगुआ इतने ज्यादा अंधे होते हैं। वे मानते हैं कि किसी अगुआ का मुख्य काम उपदेश देने में सक्षम होना है, और दो या तीन घंटे उपदेश देना है, और अगर वे शब्द और धर्म-सिद्धांत बोल सकें, नारे लगा सकें, और लोगों को जगा सकें, तो वे मानक स्तर के अगुआ हैं, वे कार्य का दायित्व उठाने में सक्षम हैं, उनमें सत्य वास्तविकता है, और परमेश्वर उनसे संतुष्ट है। यह किस प्रकार का तर्क है? क्योंकि झूठे अगुआ सत्य नहीं समझते और बहुत कमजोर काबिलियत वाले हैं, आँखों और दिमाग से अंधे हैं, इसलिए उनमें विभिन्न प्रकार के लोगों को समझने-बूझने की योग्यता बिल्कुल नहीं होती, और वे विभिन्न प्रकार के लोगों को असलियत नहीं जान सकते। तो क्या वे विभिन्न प्रकार के लोगों को उचित तरीके से नियोजित करने में सक्षम हो पाते हैं? (नहीं।) उनके पास बस एक रणनीति होती है : जो लोग पहले शिक्षक थे उन्हें उपदेश देने का काम सौंपा जाता है, जो लोग विदेश व्यापार में शामिल थे उन्हें सामान्य मामले संभालने का काम सौंपा जाता है, जो लोग अंग्रेजी बोल सकते हैं उन्हें अनुवादक का काम सौंपा जाता है, और जो लोग बोलने में सुस्पष्ट और मोटी चमड़ी के होते हैं उन्हें सुसमाचार का प्रचार करने का काम सौंपा जाता है; जो लोग दब्बू होते हैं उन्हें घर पर अनुभवजन्य गवाही आलेख लिखने का काम सौंपा जाता है, जो लोग हिम्मतवाले होते हैं और अभिनय करना पसंद करते हैं उन्हें अभिनेता के रूप में नियुक्त किया जाता है, और जो लोग अधिकारी बनना चाहते हैं उन्हें अगुआ या निदेशकों के रूप में नियुक्त किया जाता है। झूठे अगुआ इस तरह से बिना किसी सिद्धांत के लोगों को नियोजित करते हैं।
नकली अगुआ जिस कार्य के लिए जिम्मेदार हैं उसके दायरे में अक्सर कुछ ऐसे लोग होते हैं जो वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं और पदोन्नति और विकास के मानदंडों को पूरा करते हैं, लेकिन उन्हें रोक दिया जाता है। इनमें से कुछ लोग सुसमाचार का प्रचार करते हैं और कुछ को मेजबानी का काम सौंपा गया होता है। सच तो यह है कि वे सब काबिल हैं, वे कुछ सत्यों को समझते हैं और अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में विकसित किए जाने के योग्य हैं, बस उन्हें आत्म-प्रदर्शन करना या आकर्षण का केंद्र बनना पसंद नहीं है। फिर भी नकली अगुए इन लोगों पर कोई ध्यान नहीं देते। वे उनके साथ बातचीत नहीं करते या उनके बारे में पूछताछ नहीं करते, और वे कभी भी प्रतिभाशाली लोगों को परमेश्वर के घर के लिए विकसित नहीं करते। वे अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं की पूर्ति के लिए उन लोगों को फँसाने पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं। लिहाजा जो लोग वास्तव में सत्य का अनुसरण करते हैं, उनका पदोन्नयन और विकास नहीं किया जाता है, जबकि जो लोग आकर्षण का केंद्र बनना पसंद करते हैं, जो मुखर हैं, लोगों की चापलूसी करना जानते हैं और प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के शौकीन हैं—वे सभी पदोन्नत हो जाते हैं, और यहाँ तक कि जो लोग समाज में काम करते हुए अधिकारी या किसी कंपनी के मुख्य कार्यकारी रहे हैं या जिन्होंने कॉर्पोरेट प्रबंधन का अध्ययन किया है, उन्हें भी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है। वे लोग चाहे सच्चे विश्वासी हों या न हों, वे लोग सत्य का अनुसरण करते हों या न करते हों, हर हाल में वे लोग पदोन्नत हो जाते हैं और नकली अगुआओं के जिम्मेदारी वाले कार्य के दायरे में उनका उपयोग किया जाता है। क्या यह सिद्धांतों के अनुसार लोगों का उपयोग करना है? क्या नकली अगुआओं का केवल ऐसे लोगों को पदोन्नत करना बिल्कुल अविश्वासी समाज जैसा नहीं है? जो लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए वास्तव में समय पर दक्षतापूर्वक कार्य कर सकते हैं, न्यायबोध वाले हैं और सत्य और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं, उन्हें नकली अगुआओं के कार्यकाल के दौरान पदोन्नत या विकसित नहीं किया जाता है—उनके लिए प्रशिक्षण के अवसर प्राप्त करना कठिन होता है। इसके बजाय, जो लोग मुखर होते हैं, जो आत्म-प्रदर्शन करना पसंद करते हैं और जो लोगों की चापलूसी करना जानते हैं, साथ ही जो लोग प्रसिद्धि, लाभ और रुतबे के शौकीन होते हैं, उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जाता है। वे लोग काफी चतुर लगते हैं, लेकिन वास्तव में उनमें समझने की कोई क्षमता नहीं होती, उनमें बहुत कम काबिलियत और कम मानवता होती है, वे अपने कर्तव्यों के प्रति वास्तविक भार नहीं उठाते और वे विकसित करने के लिए जरा भी सुपात्र नहीं होते। लेकिन यही लोग कलीसिया में अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पदों पर बैठे होते हैं। लिहाजा कलीसिया का अधिकांश कार्य शीघ्र और सुचारु रूप से शुरू नहीं हो पाता या उसकी प्रगति धीमी रहती है और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्था को लागू होने में बहुत लंबा समय लगता है। नकली अगुआ जब लोगों का अनुचित तरीके से उपयोग करते हैं तो इसके कारण कलीसिया के कार्य पर यही प्रभाव पड़ता है और यही दुष्परिणाम निकलते हैं।
अधिकतर नकली अगुआ कम काबिलियत वाले होते हैं। भले ही वे मुखर लगते हैं, उनमें सत्य समझने की बिल्कुल योग्यता नहीं होती, इस हद तक कि उनमें आध्यात्मिक समझ ही नहीं होती। वे आँख और दिमाग से अंधे होते हैं, वे किसी भी मामले की असलियत नहीं जान पाते हैं और सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, जो अपने आप में एक घातक समस्या है। उनके साथ एक और अधिक गंभीर समस्या यह होती है कि जब वे कुछ शब्द और धर्म-सिद्धांत समझकर इनमें निपुण हो जाते हैं और कुछ नारे लगा सकते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनमें सत्य वास्तविकता है। इसलिए वे कोई भी कार्य करते हुए या किसी भी व्यक्ति से काम लेते हुए सत्य सिद्धांत नहीं खोजते हैं, वे दूसरों के साथ संगति नहीं करते हैं और परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं और सिद्धांतों का पालन तो और भी कम करते हैं। वे इतने आत्मविश्वास से भरे होते हैं कि अपने विचारों को हमेशा सही मानते हैं और जो जी में आए वही करते हैं। लिहाजा किसी कठिनाई या असाधारण परिस्थिति का सामना करने पर उन्हें कुछ भी नहीं सूझता। यही नहीं, वे अक्सर गलती से यह मान लेते हैं कि परमेश्वर के घर में बरसों से कार्य करने और एक अगुआ के रूप में सेवा करने का पर्याप्त अनुभव होने के कारण उन्हें कलीसिया का कार्य संचालित और विकसित करना आता है। ऐसा लगता है कि वे इन चीजों को समझ चुके हैं, लेकिन वास्तव में वे बिल्कुल नहीं जानते कि कोई भी कार्य कैसे करना है। वे अपनी धारणाओं और कल्पनाओं, अपने अनुभव और दिनचर्या और अपने विनियमों पर चलते हुए अपनी मर्जी के मुताबिक कलीसिया का कार्य करते हैं। इससे कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों में गड़बड़ी और अव्यवस्था पैदा होती है और इनसे कोई भी वास्तविक नतीजे निकलने में रुकावट आती है। अगर किसी टीम में कुछ ऐसे लोग हों जो सत्य को समझते हैं और थोड़ा वास्तविक काम कर सकते हैं तो वे उस टीम के कार्य को सामान्य बनाए रख सकते हैं। लेकिन इसका संबंध उनके नकली अगुआ होने से बिल्कुल नहीं होता। काम अच्छी तरह से हो पाने का कारण यह है कि टीम में कुछ अच्छे लोग हैं जो थोड़ा वास्तविक कार्य कर सकते हैं और कार्य को सही दिशा में बनाए रख सकते हैं; इसका मतलब यह नहीं है कि उनके नकली अगुआ ने वास्तविक कार्य किया है। इस तरह के कुछ अच्छे लोगों के प्रभारी हुए बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता। नकली अगुआ अपना कार्य करने में निपट असमर्थ होते हैं और वे कोई भी कार्य नहीं कर पाते हैं। नकली अगुआ कलीसिया के कार्य को अस्त-व्यस्त क्यों करेंगे? पहला कारण यह है कि नकली अगुआ सत्य को नहीं समझते, वे समस्याएँ हल करने के लिए सत्य के बारे में संगति नहीं कर सकते और वे समस्याएँ हल करने का तरीका नहीं खोजते, जिसके परिणामस्वरूप समस्याएँ बढ़ती जाती हैं और कलीसिया का काम ठप हो जाता है। दूसरा कारण यह है कि नकली अगुआ दृष्टिहीन होते हैं और वे प्रतिभाशाली व्यक्तियों की पहचान करने में असमर्थ होते हैं। वे टीम सुपरवाइजर कर्मचारी का उचित तरीके से समायोजन नहीं कर सकते, लिहाजा उपयुक्त प्रभारी न होने के कारण कुछ कार्य ठप हो जाते हैं। तीसरा कारण यह है कि नकली अगुआ अधिकारियों की तरह बहुत ज्यादा पेश आते हैं। वे कार्य की निगरानी या निर्देशन नहीं करते और जहाँ काम में कोई कमजोर कड़ी होती है, वहाँ वे सक्रिय भागीदारी नहीं करते या काम की बारीकियों के बारे में मार्गदर्शन नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, मान लो कि कार्य की किसी खास मद में काम करने वाले कई लोग नए विश्वासी हैं जिनका बहुत आधार नहीं है, वे सत्य को नहीं समझते हैं और कार्यक्षेत्र से बहुत परिचित नहीं हैं, न ही कार्य के सिद्धांतों को ठीक से समझ पाए हैं। नकली अगुआ अपने अंधेपन के कारण इन समस्याओं को नहीं देख सकता। वह मानता है कि जब तक कोई काम कर रहा है, तब तक सब ठीक है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि काम अच्छी तरह से किया जा रहा है या बुरी तरह से। वे यह नहीं जानते कि कलीसिया के कार्य में जहाँ कहीं भी कोई कमजोर कड़ी हो, वहाँ उन्हें निगरानी रखकर निरीक्षण करते रहना चाहिए और निर्देशन करते रहना चाहिए, उन्हें समस्याएँ हल करने में व्यक्तिगत रूप से भाग लेना चाहिए और जो लोग अपने कर्तव्य निभा रहे हैं उन्हें तब तक सहारा देना चाहिए जब तक कि वे सत्य को समझ न लें, सिद्धांतों के अनुसार कार्य न करने लगें और सही रास्ते पर न आ जाएँ। केवल इसी बिंदु पर उन्हें बहुत चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती। नकली अगुआ इस तरह से काम नहीं करते। जब वे देखते हैं कि कोई व्यक्ति काम करने के लिए मौजूद है तो वे इस पर और अधिक ध्यान नहीं देते। काम चाहे कैसा भी चल रहा हो, वे कोई पूछताछ नहीं करते। जहाँ काम में कोई कमजोर कड़ी होती है या कम काबिलियत वाला कोई सुपरवाइजर होता है, वहाँ वे व्यक्तिगत रूप से काम का मार्गदर्शन नहीं करते और स्वयं काम में भागीदारी नहीं करते। और जब कोई सुपरवाइजर काम का बीड़ा उठाने में सक्षम होता है तो नकली अगुआ खुद चीजों की जाँच या निर्देशन का काम और भी कम करते हैं; वे ज्यादा मेहनत करने के कायल नहीं होते, यहाँ तक कि अगर कोई किसी समस्या की सूचना देता है, तो भी वे इसके बारे में नहीं पूछते—उन्हें लगता है कि इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। नकली अगुआ इस विशिष्ट कार्य में से कुछ नहीं करते। संक्षेप में कहें तो नकली अगुआ ऐसे पतित होते हैं जो थोड़ा-सा भी वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे मानते हैं कि किसी भी काम का कोई प्रभारी होने और काम करने के लिए सभी लोगों के तैयार होने भर से सारा काम खत्म और पूरा हो जाता है। उन्हें लगता है कि उन्हें बस कभी-कभार एक सभा करनी होती है और अगर कोई समस्या आए तो पूछताछ करनी होती है। इस तरह से कार्य करने के बावजूद नकली अगुआ मानते हैं कि वे अच्छा काम कर रहे हैं और खुद से काफी खुश रहते हैं। वे सोचते हैं, “कार्य की किसी भी मद में कोई समस्या नहीं है। सभी कर्मचारी पूरी तरह से व्यवस्थित हैं और सुपरवाइजर अपनी जगह तैनात हैं। मैं इस काम में कितना बढ़िया हूँ, कितना प्रतिभाशाली हूँ!” क्या यह बेशर्मी नहीं है? वे आँख और दिमाग से इतने अंधे होते हैं कि उन्हें कोई काम नहीं दिखता और कोई समस्या नहीं दिखती। कुछ जगहों पर काम रुक गया हो, फिर भी वे संतोष के साथ सोचते हैं कि “सभी भाई-बहन युवा हैं, नए खून के हैं। वे अपने कर्तव्यों को मानव डायनेमो की तरह पूरा करते हैं; वे निश्चित रूप से काम को अच्छी तरह से कर सकते हैं।” वास्तव में, ये युवा लोग नौसिखिए होते हैं, जिनमें किसी पेशेवर कौशल की समझ नहीं होती। उन्हें काम करते हुए सीखना चाहिए। यह कहना उचित होगा कि वे अभी तक कोई काम करना नहीं जानते हैं : कुछ लोग थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं, लेकिन वे विशेषज्ञ नहीं हैं और वे सिद्धांतों को नहीं समझते, और जब वे कोई काम कर लेते हैं, तो उसे बार-बार सुधारने या बार-बार नए सिरे से करने की आवश्यकता होती है। कुछ युवा अप्रशिक्षित भी होते हैं और उन्हें काट-छाँट का अनुभव नहीं होता है। वे बेहद गंदे और आलसी होते हैं, और आरामखोर होते हैं; वे सत्य का एक अंश भी स्वीकार नहीं करते हैं और थोड़ा-सा भी कष्ट सहने पर लगातार भुनभुनाते रहते हैं। उनमें से अधिकतर लोग लापरवाह पतित होते हैं जो आराम की लालसा रखते हैं। इस तरह के युवाओं के साथ तुम्हें सत्य पर अक्सर संगति करनी चाहिए और उससे भी अधिक तुम्हें उनकी काट-छाँट करनी चाहिए। इन युवा लोगों को कोई ऐसा व्यक्ति चाहिए जो उनका प्रभार संभाले और उन पर नजर रखे। उनके काम की व्यक्तिगत जिम्मेदारी लेने और व्यक्तिगत निगरानी करने और निर्देशन प्रदान करने के लिए कोई अगुआ या कार्यकर्ता होना चाहिए। तभी उनका काम थोड़ा-सा फलदायी हो सकता है। यदि अगुआ या कार्यकर्ता कार्यस्थल छोड़ देता है और काम पर ध्यान नहीं देता या इसकी खैरियत नहीं पूछता, तो ये लोग अव्यवस्थित होकर बिखर जाएँगे और इनका कर्तव्य निर्वहन निष्फल होगा। फिर भी नकली अगुआओं में इस बारे में कोई अंतर्दृष्टि नहीं होती। वे सबको भाई-बहनों के रूप में देखते हैं, आज्ञाकारी और समर्पित लोग मानते हैं और इसीलिए वे उन पर बहुत भरोसा कर उन्हें काम सौंपते हैं और फिर उन पर ध्यान नहीं देते—यह एक नकली अगुआओं की आँख और दिमाग की अंधता का सबसे अच्छा सबूत है। नकली अगुए सत्य को बिल्कुल नहीं समझते, मामलों को साफ तौर पर नहीं देख सकते और किसी भी समस्या को सामने लाने में असमर्थ होते हैं, फिर भी उन्हें लगता है कि वे ठीक-ठाक काम कर रहे हैं। वे अपने दिन क्या सोचते हुए बिताते हैं? वे सोचते हैं कि कैसे किसी अधिकारी की तरह काम किया जाए और रुतबे के फायदे उठाए जाएँ। विचारहीन लोगों की तरह नकली अगुए परमेश्वर के इरादों के प्रति जरा भी विचार नहीं करते। वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते, फिर भी वे परमेश्वर के घर से प्रशंसा और पदोन्नति पाने की प्रतीक्षा करते हैं। सच में, उन्हें जरा भी शर्म नहीं आती!
झूठे अगुआ अपना काम करने में बिल्कुल बेकार होते हैं, और उनके बारे में कुछ भी प्रशंसनीय नहीं होता। वे व्यापक परिप्रेक्ष्य के अर्थ में सिद्धांतों को समझने में विफल होते हैं, विशिष्ट विस्तृत कार्य से संबंधित सिद्धांतों को समझने की बात तो दूर रही। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों में सशक्त पेशेवर योग्यताएँ होती हैं, मगर उनकी मानवता बेहद खराब होती है, जबकि दूसरों की मानवता में कोई समस्या नहीं होती, मगर उनकी काबिलियत और पेशेवर योग्यताएँ कमजोर होती हैं। जब इन लोगों के उचित ढंग से नियोजन और आवंटन किए जाने की बात आती है, तो झूठे अगुआ इन अधिक विशिष्ट और विस्तृत मामलों के बारे में और भी कम जानते हैं। तो जब भी झूठे अगुआओं से पूछा जाता है कि क्या उन्हें कोई पर्याप्त अच्छी योग्यता वाला मिल गया है जिसे विकसित किया जा सकता है, तो वे कहते हैं कि अभी उन्हें कोई नहीं मिल पाया है। झूठे अगुआ बहुत दृष्टिहीन होते हैं—वे किसी को कैसे ढूँढ़ सकते थे? अगर तुम उनसे पूछो कि अमुक बहन कैसी है, तो वे कहेंगे कि वह देह-सुख का लालच करती है; उनसे पूछो कि अमुक भाई कैसा है, तो वे कहेंगे कि वह अक्सर निराश रहता है; उनसे पूछो कि दूसरा कोई कैसा है तो वे कहेंगे कि उस व्यक्ति ने लंबे समय से परमेश्वर में विश्वास नहीं रखा है और उसकी कोई नींव नहीं है। उनकी नजरों में कोई भी संतोषजनक नहीं है। वे दूसरे लोगों की सिर्फ खामियाँ, कमियाँ और अपराध देखते हैं; वे यह देखने में सक्षम नहीं होते कि क्या कोई व्यक्ति पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप है, या क्या वह पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए एक अच्छा उम्मीदवार है। वे नहीं बता सकते कि कौन-सा व्यक्ति पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए सचमुच उपयुक्त है, लेकिन वे उन लोगों को बड़े उत्साह और तेजी से पदोन्नत करते हैं जो परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं और सिद्धांतों पर खरे नहीं उतरते। वे कलीसिया में तमाम धनाढ्य महिलाओं, अमीर पुरुषों, और धनी परिवारों के बेटे-बेटियों को, और साथ ही जिन लोगों ने बाहरी दुनिया में अधिकारियों के रूप में सेवा की है, जो बोलने में सुस्पष्ट हैं, और जो धोखा देना और गबन करना जानते हैं, उन्हें पदोन्नत कर देते हैं—हर हाल में, वे बाहरी दुनिया में जाने-माने और विशिष्ट लोगों और जो भी ध्यान का केंद्र बनना पसंद करते हैं, उन्हें पदोन्नत करते हैं। वे मानते हैं कि केवल यही लोग प्रतिभाशाली हैं, और वे ऐसे एक भी व्यक्ति को नहीं तलाशते या पदोन्नत करते जिसमें सच में समझने की योग्यता होती है और जो सत्य स्वीकार सकता है। किसी झूठे अगुआ के लिए खुद को चाँद पर पहुँचा लेने की अपेक्षा परमेश्वर के घर के लिए एक भी, वास्तव में योग्य प्रतिभा दे पाना काफी कठिन होगा। उदाहरण के लिए, मान लो कि परमेश्वर के घर को फिलहाल पाठ-आधारित कार्य के लिए प्रतिभाशाली व्यक्तियों की जरूरत है—इस प्रकार का एक व्यक्ति एक कलीसिया में है जिसका प्रभारी एक झूठा अगुआ है, लेकिन वह झूठा अगुआ इस व्यक्ति का नाम आगे नहीं बढ़ाता। जब उस झूठे अगुआ से पूछा जाता है कि वह उस व्यक्ति को पदोन्नत या विकसित क्यों नहीं करता, तो वह कहता है : “उस व्यक्ति ने विश्वविद्यालय में पढ़ते समय दो बार व्यभिचार किया था, लेकिन शादी हो जाने के बाद उसने दोबारा ऐसा नहीं किया। मैं नहीं जानता था कि उसे पदोन्नत करना चाहिए या नहीं।” यह कैसा कथन है? क्या झूठा अगुआ इस बात की गारंटी दे सकता है कि वह जिन धनाढ्य और शक्तिशाली लोगों को पदोन्नत करता है, उन्होंने कभी भी व्यभिचार नहीं किया? क्या वे लोग और भी ज्यादा व्यभिचार नहीं करते? ऐसा कैसे है कि वे यह देख ही नहीं पाते? झूठे अगुआ इतने झूठे आध्यात्मिक होते हैं, ऐसा ढोंग करते हैं कि वे कुछ सिद्धांत जानते हैं, और उन लोगों को पदोन्नत न करने को सही ठहराने के बहाने ढूँढ़ते हैं जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाना चाहिए। उनकी नजरों में हर कोई उनसे हीन है। अंत में क्या होता है? क्या झूठे अगुआओं द्वारा पदोन्नत किए गए “अभिजात” और “प्रतिभाशाली लोग” अडिग खड़े रहे हैं? हम यह नहीं कह रहे हैं कि ये लोग निश्चित रूप से अच्छे नहीं हैं। हम मुख्य रूप से यह उजागर कर रहे हैं कि झूठे अगुआओं का लोगों से व्यवहार करने का सिद्धांत, पैमाने के रूप में, सत्य के बजाय मानवीय धारणाओं का उपयोग करना है, और लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के लिए उनका सिद्धांत अपनी खुद की धारणाओं, कल्पनाओं और प्राथमिकताओं और पूरी तरह से गैर-विश्वासियों के दृष्टिकोणों के अनुसार चलना होता है, बजाय इसके कि अपने पैमाने के रूप में परमेश्वर के घर के अपेक्षित मानकों का उपयोग करें। झूठे अगुआ ऐसा करने में क्यों सक्षम होते हैं? क्योंकि वे सत्य को या परमेश्वर के इरादों को नहीं समझते, इसलिए वे उन लोगों को पदोन्नत करने में सक्षम होते हैं जो परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं को बिल्कुल पूरा नहीं करते, वे उन्हें विकसित करने और परमेश्वर के घर के महत्वपूर्ण कामों में लगाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। झूठे अगुआ ऐसे ही कार्य करते हैं। अपने आसपास के झूठे अगुआओं पर गौर करो; क्या वे इसी तरीके से काम नहीं करते और लोगों से इसी तरह व्यवहार नहीं करते?
एक विशेष दृष्टिकोण है जो अक्सर झूठे अगुआओं में प्रकट होता है : वे सोचते हैं कि जानकार, रुतबे वाले और बाहरी दुनिया में अधिकारियों के रूप में काम कर चुके सभी लोग प्रतिभाशाली हैं, और ऐसे लोगों को उनके परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद से परमेश्वर के घर द्वारा विकसित और नियोजित किया जाना चाहिए। वे ऐसे लोगों का वास्तव में सम्मान करते हैं और उनकी आराधना करते हैं—यहाँ तक कि वे उनसे अपने ही बच्चों और अपने ही परिवार के सदस्यों जैसा व्यवहार करते हैं। जब वे दूसरों से इन लोगों को मिलवाते हैं, तो वे अक्सर यह बताते हैं कि बाहरी दुनिया में वे किस तरह किसी कंपनी के मालिक, या किसी सरकारी विभाग के प्रमुख, या किसी समाचारपत्र के संपादक, या जन सुरक्षा विभाग के निदेशक थे, या वे इस बारे में बताते हैं कि वे कितने अमीर हैं। झूठे अगुआ ऐसे लोगों के बारे में खासा ऊँचा सोचते हैं। तुम लोग क्या कहते हो, क्या झूठे अगुआओं में काबिलियत होती है? क्या बात ऐसी नहीं है कि वे झूठी तरह से आध्यात्मिक हैं, और चीजों की असलियत नहीं समझ सकते? झूठे अगुआ सोचते हैं कि चूँकि ये लोग समाज में प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, इसलिए परमेश्वर के घर को उन्हें विकसित करना चाहिए और उनके यहाँ आने पर उन्हें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए लगाना चाहिए। क्या यह नजरिया सही है? क्या यह सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है? अगर इन लोगों को सत्य से बिल्कुल भी प्रेम नहीं है, और इनमें अंतरात्मा और विवेक नहीं है, तो क्या उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा विकसित कर कोई महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी जा सकती है? वे विकसित किए जाने की योग्यता नहीं रखते। इस तथ्य का कि वे गैर-विश्वासियों के बीच प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, यह मतलब नहीं है कि वे परमेश्वर के घर में प्रतिभाशाली लोग हैं, बल्कि यह है कि झूठे अगुआओं को अधिकारी होना अच्छा लगता है, और वे उन दूसरे लोगों की विशेष रूप से आराधना करना पसंद करते हैं जो अधिकारी रह चुके हैं। जब भी वे ऐसे लोगों को देखते हैं जो पहले अधिकारी थे या बाहरी दुनिया में जिनका रुतबा था, तो वे माथा टेकते हैं और उनकी बड़ी चापलूसी करते हैं, जैसे कि मालिक के सामने गुलाम करते हैं; वे बहुत चाहते हैं कि उन्हें माता या पिता या बड़ी बहन या बड़ा भाई बुलाएँ, और वे कलीसिया में इन लोगों को अगुआओं या कार्यकर्ताओं के रूप में पदोन्नत करवाने की भी कामना करते हैं। मुझे बताओ, क्या ये सत्य का अनुसरण करने वाले लोग हैं? क्या उनके बाहरी दुनिया में थोड़े रुतबे या थोड़ी ख्याति का आनंद लेने का यह अर्थ है कि वे परमेश्वर के घर में एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करने के लिए उपयुक्त हैं? अगर वे सत्य नहीं समझते और अहंकारी और दंभी स्वभावों से भर हुए हैं, तो क्या वे परमेश्वर के घर में एक अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य हैं? क्या लोगों को सिर्फ उनके रुतबे और ख्याति पर ध्यान देकर, और उनके चरित्र की अनदेखी कर पदोन्नत करना सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या झूठे अगुआ जानते हैं कि परमेश्वर किस प्रकार के लोगों को पसंद करता है, और वह किस प्रकार के लोगों को पदोन्नत और नियोजित करता है? परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं में बारम्बार इस बात पर जोर दिया गया है कि लोगों को तीन मानकों के अनुसार पदोन्नत और विकसित किया जाना चाहिए : पहला, उनमें मानवता, अंतरात्मा और विवेक होने चाहिए; दूसरा, उन्हें ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो सत्य से प्रेम करता हो और सत्य को स्वीकारने में सक्षम हो; तीसरा, उसमें कुछ हद तक काबिलियत और कार्य क्षमता होनी चाहिए। केवल वे लोग जो इन तीनों मानकों पर खरे उतरते हैं, पदोन्नत और विकसित किए जाने में सक्षम होते हैं, और वे उम्मीदवार होने और अगुआ या कार्यकर्ता बनने के योग्य होते हैं। सिर्फ काबिलियत और प्रतिभा होने भर से काम बिल्कुल नहीं चलेगा। सबसे पहले आता है चरित्र, और दूसरे, सत्य को स्वीकारने में सक्षम होना अनिवार्य है—ये दो सबसे महत्वपूर्ण मानक हैं। जिन बुरे लोगों को सत्य से बिल्कुल प्रेम नहीं होता, अगर उन्हें पदोन्नत किया जाता है, तो परिणाम विनाशकारी होंगे, इसलिए जिन लोगों में मानवता नहीं होती उन्हें पदोन्नत करने की बिल्कुल अनुमति नहीं होती। लेकिन झूठे अगुआ परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं की अनदेखी करते हैं। लोगों को चुनते और नियोजित करते समय वे हमेशा इस बात पर ध्यान केंद्रित करते हैं कि क्या उस व्यक्ति का समाज में रुतबा है, उसकी पृष्ठभूमि और स्थान क्या है, क्या उसने उच्च शिक्षा प्राप्त की है, और समाज में उसकी प्रतिष्ठा कितनी ऊँची है—लोगों को पदोन्नत और विकसित करते समय वे इन्हीं पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। क्या यह परमेश्वर के घर द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या यह परमेश्वर के वचनों के सत्य के अनुरूप है? वे कौन लोग हैं जिनका समाज में रुतबा है? यह कहा जा सकता है कि ये वे सभी लोग हैं जो कुछ भी करके सत्ता और रुतबे के लिए लड़ते हैं, और वे शैतान का कुनबा हैं। अगर परमेश्वर के घर में सत्ता उनके हाथ में होगी, तो क्या परमेश्वर का घर तब भी परमेश्वर की कलीसिया होगा? शैतान के कुनबे के लोगों को अगुआ के रूप में पदोन्नत करने के पीछे झूठे अगुआओं का लक्ष्य क्या होता है? क्या इस तरह कार्य करना लोगों को विकसित कर नियोजित करने के परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुरूप है? क्या यह कलीसिया के कार्य को खुल्लमखुल्ला बाधित कर उसे हानि पहुँचाना नहीं है? झूठे अगुआओं का लोगों की असैद्धांतिक पदोन्नति करना और उन्हें विकसित करना ही कलीसिया के कार्य में सबसे बड़ी गड़बड़ी और बाधा पैदा करता है, और परमेश्वर का प्रतिरोध करने का एक तरीका है।
झूठे अगुआओं में सत्य को समझने की बेहद कमजोर काबिलियत होती है, और योग्यता होती ही नहीं। वे चाहे जितने भी धर्मोपदेश सुन लें या परमेश्वर के जितने भी वचन पढ़ लें, फिर भी सत्य की न तो शुद्धता से गहन समझ प्राप्त करते हैं न ही उसे समझते हैं, और चाहे उन्होंने जितने भी वर्षों तक धर्म-सिद्धांतों का प्रचार किया हो, वे जो कहते हैं उसे नहीं समझते, ये सब सिर्फ दिखावटी होता है, और उसे समझना असंभव होता है! वे धर्म-सिद्धांत को थोड़ा याद रख कर प्रचार कर सकते हैं, इसलिए वे सोचते हैं कि उनके पास सत्य वास्तविकता है, लेकिन वे जो भी करते हैं वह सत्य से संबंधित नहीं होता—वे ठेठ फरीसी होते हैं। बाहर से ऐसा दिखता है कि वे अक्सर लोगों को उपदेश देते हैं, और अच्छी लगने वाली बातें बताते हैं, जैसे कि उन्होंने सत्य को समझ लिया हो, लेकिन वे जो करते हैं वह सत्य के प्रति विरोधात्मक और उसके विपरीत होता है। वे यह भी दावा करते हैं कि वे परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं और कलीसियाई कार्य कर रहे हैं, जबकि वास्तव में उनके द्वारा किया जाने वाला हर काम पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण होता है। झूठे अगुआ कभी भी उन प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत नहीं करते जो परमेश्वर के घर के लिए उपयोगी होते हैं, और वे उन अपेक्षाकृत ईमानदार लोगों की अनदेखी कर उनसे आँखें फेर लेते हैं, जो सही मायनों में सत्य का अनुसरण करते हैं। इसके बजाय, वे उन लोगों को पदोन्नत और विकसित करते हैं जो चापलूसी में लीन होते हैं, जो अस्थिर और कपटपूर्ण होते हैं, और जिन लोगों में कलीसिया में काम संभालने की महत्वाकांक्षाएं और इच्छाएँ होती हैं। इन सबका परिणाम यह होता है कि जब वे लोग एक खास अवधि तक कार्य पर रह चुके होते हैं, तो कलीसियाई कार्य की विभिन्न मदें थम जाती हैं और व्यावहारिक तौर पर पूरी तरह ठप्प पड़ जाने की स्थिति में प्रवेश कर जाती हैं, और इस तरह इन झूठे अगुआओं के हाथो कलीसियाई कार्य बरबाद हो जाता है। क्या झूठे अगुआ इस प्रकार के लोग नहीं हैं, जो घिनौने होते हैं? क्या उन्हें बरखास्त कर दिया जाना चाहिए? उन्हें जरूर बरखास्त कर दिया जाना चाहिए! विलंब का प्रत्येक दिन कलीसियाई कार्य को एक पूरे दिन के लिए प्रभावित करता है। हालाँकि कुछ झूठे अगुआ यह जानते हैं कि वे वास्तविक कार्य करने में अक्षम हैं, फिर भी वे स्वेच्छा से इस्तीफा नहीं देना चाहते, और निरंतर रुतबे के लाभों का लालच करते हैं, और कलीसियाई कार्य को नुकसान पहुँचाने तक चले जाते हैं। क्या इन लोगों में जरा-सा भी विवेक है? झूठे अगुआओं में गहन समझ की कोई क्षमता नहीं होती, या कोई सच्ची प्रतिभा और वास्तविक ज्ञान नहीं होता, और वे ऐसे लोग नहीं होते जो सत्य का अनुसरण करते हैं, और वे रुतबे के लाभों का भी लालच करते हैं—वे बेशर्म लोग होते हैं; इसलिए उन्हें बिल्कुल भी पदोन्नत और विकसित नहीं करना चाहिए। अगर तुम सोचते हो कि तुम्हारी काबिलियत बहुत कमजोर है, तुममें सही और गलत का भेद करने की क्षमता नहीं है और तुममें सत्य की गहन समझ की क्षमता नहीं है, तो तुम चाहे कुछ भी करो, अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं से आसक्त मत रहो, और यह मत सोचो कि ऐसे प्रयास कैसे करें कि कलीसिया में कोई अधिकारी बनें—कलीसिया का अगुआ बनें—अगुआ बनना उतना आसान नहीं है। अगर तुम एक ईमानदार इंसान नहीं हो, और तुम सत्य से प्रेम नहीं करते, तो फिर अगुआ बनते ही तुम या तो एक मसीह-विरोधी बन जाओगे या झूठा अगुआ। मसीह-विरोधी और झूठे अगुआ दोनों ही अंतरात्मा और विवेक रहित, और ऐसे लोग होते हैं जो बुरे काम करने और कलीसियाई कार्य को बाधित करने में सक्षम होते हैं। यद्यपि यह कहना सही है कि मसीह-विरोधी दानव और शैतान होते हैं, पर झूठे अगुआ भी अच्छे लोग नहीं होते; कम-से-कम वे खुल्लमखुल्ला बेशर्म लोग होते हैं जिनमें अंतरात्मा और विवेक नहीं होता। क्या एक झूठा अगुआ होने और बरखास्त किए जाने में कोई महिमामय बात है? यह शर्मनाक है, एक धब्बा है, और इसको लेकर कुछ भी महिमामय नहीं है। अगर तुम में कलीसिया के कार्य के प्रति दायित्व की भावना है, और वे उसमें शामिल होना चाहते हैं, तो यह अच्छा है; लेकिन तुम्हें इस बात पर चिंतन करना चाहिए कि क्या तुम सत्य को समझते हो, क्या तुम समस्याएँ सुलझाने के लिए सत्य की संगति करने में सक्षम हैं, क्या तुम वास्तव में परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित होने में सक्षम हैं, और क्या वे कलीसिया का कार्य, कार्य-व्यवस्थाओं के अनुसार ठीक से करने में सक्षम हैं। अगर तुम ये मानदंड पूरे करते हो, तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए आगे आ सकते हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि लोगों को कम-से-कम खुद को जानना चाहिए। पहले देखो कि क्या तुम विभिन्न प्रकार के लोगों का भेद पहचानने में सक्षम हो, क्या तुम सत्य समझ सकते हो और सिद्धांत के अनुसार कार्य कर सकते हो। अगर तुम ये अपेक्षाएँ पूरी करते हो, तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लिए उपयुक्त हो। अगर तुम अपना मूल्यांकन न कर पाओ, तो तुम अपने आस-पास के उन लोगों से पूछ सकते हो, जो तुमसे परिचित हैं या तुम्हारे निकट हैं। अगर वे सब कहें कि अगुआ बनने के लिए तुम्हारी क्षमता अपर्याप्त है, और कि तुम्हारा अपने मौजूदा काम को बढ़िया तरीके से करना ही बहुत अच्छा है तो तुम्हें जल्दी से खुद को जान लेना चाहिए। क्योंकि तुम्हारी काबिलियत कम है, तो अपना सारा समय अगुआ बनने की चाह में न गँवाओ—बस वही करो जो कर सकते हो, धरातल पर रहते हुए अपना कर्तव्य ठीक से करो, ताकि तुम्हें मानसिक शांति मिल सके। यह भी अच्छा है। और अगर तुम अगुआ बनने में सक्षम हो, अगर तुम वास्तव में ऐसी काबिलियत और प्रतिभा रखते हो, अगर तुममें वास्तव में कार्य-क्षमता और दायित्व की भावना है, तो तुम ठीक उस तरह की प्रतिभा वाले लोग हो, जिसकी परमेश्वर के घर में कमी है, और तुम्हें निश्चित रूप से पदोन्नत और विकसित किया जाएगा; किंतु ये सब चीजें परमेश्वर द्वारा निर्धारित समय पर होती हैं। यह इच्छा—पदोन्नत होने की इच्छा—महत्वाकांक्षा नहीं है, लेकिन तुममें अगुआ बनने की क्षमता होनी चाहिए और तुम्हें उसके मानदंड पूरे करने चाहिए। अगर तुम खराब क्षमता के हो, फिर भी अपना सारा समय अगुआ बनना चाहने या किसी महत्वपूर्ण कार्य का बीड़ा उठाने, या समग्र कार्य की जिम्मेदारी लेने, या कुछ ऐसा करने में लगाते हो जो तुम्हें सबसे अलग दिखाता हो, तो मैं तुमसे कहता हूँ : यह महत्वाकांक्षा है। महत्वाकांक्षा आपदाओं को आमंत्रित कर सकती है, इसलिए तुम्हें इससे सावधान रहना चाहिए। सभी लोगों में प्रगति करने की इच्छा होती है और वे सत्य की ओर बढ़ने के प्रयास करने के इच्छुक होते हैं, जो कोई समस्या नहीं है। कुछ लोगों में काबिलियत होती है, वे अगुआ होने के मानदंड पूरे करते हैं और सत्य की ओर बढ़ने के प्रयास करने में सक्षम होते हैं, और यह अच्छी बात है। दूसरों में काबिलियत नहीं होती, इसलिए उन्हें अपने कर्तव्य पर टिके रहते हुए अपने सामने के कर्तव्य को अच्छी तरह से और सिद्धांत के अनुसार, और परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के मुताबिक करना चाहिए। उनके लिए यही बेहतर, सुरक्षित, अधिक यथार्थपरक है।
जिन लोगों को अगुआ और कार्यकर्ता होने के लिए चुना जाता है या जिन्हें पदोन्नत और विकसित किया जाता है, उन्हें यह महसूस करके खयाली पुलाव पकाने में नहीं लगना चाहिए कि, “भाई-बहनों ने मुझे इतने सारे लोगों के बीच में से चुना, परमेश्वर के घर ने मुझे पदोन्नत किया, तो मुझमें सच में थोड़ी प्रतिभा है और मैं साधारण लोगों से बेहतर हूँ; आखिरकार सच्चे सोने का दमकना तय होता है।” क्या इस तरह सोचना अच्छा है? क्या यह भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन नहीं है? (हाँ।) पदोन्नत और विकसित होना एक अच्छी बात और एक अच्छा अवसर है, लेकिन तुम इस मार्ग पर चल सकते हो या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम इस अवसर को किस दृष्टि से देखते हो, और क्या तुम इसकी कद्र कर सकते हो। परमेश्वर ने तुम्हें यह मौका दिया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम वास्तव में किसी अन्य व्यक्ति से बेहतर हो; हो सकता है कि तुम्हारी काबिलियत दूसरों से थोड़ी बेहतर हो, या तुममें कुछ गुण हों, लेकिन यह कहना कठिन है कि तुम्हारा जीवन प्रवेश कैसा है और क्या तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है—क्योंकि सभी लोगों के भ्रष्ट स्वभाव एक समान ही होते हैं, और तुम भी भ्रष्ट मानवजाति के ही एक सदस्य हो। अगर तुम इसका एहसास कर सको तो तुम परमेश्वर के घर द्वारा अपने पदोन्नत और विकसित किए जाने को सही दृष्टि से देखने में सक्षम हो सकोगे। तुम्हें स्वयं को एक प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में नहीं लेना चाहिए, न ही तुम्हें यह सोचना चाहिए कि तुम्हारे पास सत्य वास्तविकता है। बात सिर्फ इतनी है कि तुममें थोड़ी-सी काबिलियत है, और तुम सत्य के लिए भी थोड़ा प्रयास कर सकते हो, तो तुम्हें खुद को प्रशिक्षित करने योग्य बना दिया गया है। यह एक परिवीक्षाधीन अवधि है, और यह अभी सुनिश्चित नहीं है कि क्या तुम सच में वह व्यक्ति हो जो सत्य का अनुसरण करता है, या तुम विकसित किए जाने योग्य हो। यह कहना कठिन है कि इस अवधि के दौरान की आजमाइश के बाद तुम दृढ़ता से खड़े रहने में सक्षम होगे। हो सकता है कि तुम्हें विकसित किए जाने के लिए बनाए रखा गया हो, या हो सकता है कि तुम्हें हटा दिया जाए—यह सब इस पर निर्भर करता है कि तुम कितना प्रयास करते हो। लोगों को अगुआ और कार्यकर्ता बनाने के लिए पदोन्नत करना इसी बात को लेकर होता है, और तुम्हें यह समझना चाहिए। तुम्हारा खुद का यह सोचना व्यर्थ है कि तुम प्रतिभाशाली व्यक्ति हो। अगर परमेश्वर का घर तुम्हें पदोन्नत और विकसित नहीं करता, तो तुम कुछ भी नहीं हो। अगर तुम सत्य का अनुसरण नहीं करते, और परमेश्वर के घर द्वारा नियोजित किए जाने की इच्छा नहीं रखते, तो तुम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। फिर अगर तुम कहो, “परमेश्वर का घर मुझे नियोजित नहीं करता, मैं बाहर समाज में चला जाऊँगा,” तो ठीक है, बाहर समाज में जाओ और आजमाओ, देखो कि तुम्हें कौन पदोन्नति देता है, और देखो कि तुम क्या हासिल करने में सक्षम होते हो। यह कहने का मेरा तात्पर्य तुम लोगों को यह बताना है कि तुममें परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के प्रति सही समझ और दृष्टिकोण होना चाहिए। जो लोग कमजोर या औसत काबिलियत के होते हैं और जो लोग परमेश्वर के घर द्वारा पदोन्नत और विकसित किए जाने के लिए अपेक्षित मानकों पर खरे नहीं उतर सकते, उन्हें बस अपना कर्तव्य विनयपूर्वक और दृढ़ता से पूरा करना चाहिए। अगर वे पूरे तन-मन से अपना कर्तव्य निभाते हैं, तो परमेश्वर उनके साथ अनुचित व्यवहार नहीं करेगा। इसलिए, पदोन्नत और विकसित किए जाने के मामलों पर लड़ो मत, लेकिन उन्हें इनकार भी मत करो, बस सभी चीजों को सहज रूप से होने दो; एक लिहाज से, तुम्हें परमेश्वर के घर की व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए, और दूसरे लिहाज से तुम्हारे पास परमेश्वर के प्रति समर्पण का दिल होना चाहिए—यही सही तरीका है। क्या ऐसा करना सरल है? (हाँ, यह सरल है।) क्या कमजोर काबिलियत वाले व्यक्ति के अगुआ होने का कोई लाभ है? अंत में, जब उन्हें झूठे अगुआ की श्रेणी में डालकर हटा दिया जाता है, तो वे इस बारे में कैसा महसूस करेंगे? क्या यह ऐसा होगा जैसा वे चाहते थे? (नहीं।) उनके सिर पर झूठे अगुआ का पदनाम होगा, और वे जहाँ भी जाएँगे, लोग कहेंगे कि यह व्यक्ति कभी एक झूठा अगुआ होता था। क्या यह अच्छी बात है या बुरी? यह अच्छी बात नहीं है, और यह कोई गरिमामय चीज नहीं है। लोगों में पदोन्नत और विकसित किए जाने के प्रति सही समझ और दृष्टिकोण होना चाहिए; इन मामलों में उन्हें सत्य की तलाश करनी चाहिए, अपनी इच्छा का पालन नहीं करना चाहिए, महत्वाकांक्षाएं और इच्छाएँ नहीं रखनी चाहिए। अगर तुम्हें लगता है कि तुम अच्छी क्षमता के हो, लेकिन परमेश्वर के घर ने तुम्हें कभी पदोन्नत नहीं किया है, और न ही तुम्हें विकसित करने की उसकी कोई योजना है, तो निराश न हो, शिकायत न करने लगो, बस सत्य का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करो। जब तुम्हारा कुछ अध्यात्मिक कद हो जाएगा और तुम वास्तविक कार्य करने में सक्षम हो जाओगे, तो परमेश्वर के चुने हुए लोग स्वाभाविक रूप से तुम्हें अगुआ चुन लेंगे। और अगर तुम्हें लगता है कि तुम खराब क्षमता के हो, और तुम्हारे पदोन्नत या विकसित होने की कोई संभावना नहीं, और तुम्हारी महत्वाकांक्षा पूरी होना असंभव है, तो क्या यह अच्छी बात नहीं है? यह तुम्हारी रक्षा करेगा! क्योंकि तुम खराब क्षमता के हो, तो यदि तुम्हें दृष्टिहीन और भ्रमित लोगों का ऐसा समूह मिल जाता है जो तुम्हें अपना अगुआ चुन लेते हैं, तो क्या तुम दहकते अंगारों पर नहीं चलने जा रहे हो? तुम कोई भी काम करने में असमर्थ होते हो, तुम्हारे दिमाग और आँखों को कुछ नहीं दिखता। तुम्हारा सिर्फ बाधा डालने वाले काम करते हो; तुम्हारी हर हरकत दुष्टता होती है। बेहतर होगा कि तुम मौजूदा कर्तव्य का कार्य ही अच्छी तरह से करो; कम से कम तुम शर्मिंदा तो नहीं होगे, और यह नकली अगुआ होने और पर्दे के पीछे होने वाली आलोचनाओं का लक्ष्य बनने से तो बेहतर है। एक इंसान के रूप में तुम्हें अपना माप पता होना चाहिए, तुम्हें खुद का ज्ञान होना चाहिए; ऐसा होने पर तुम गलत रास्ता अपनाने और गंभीर गलतियाँ करने से बच सकोगे।
तुम लोग नकली अगुआ बनना चाहते हो या साधारण अनुयायी? (साधारण अनुयायी।) अगर भाई-बहन तुम्हें चुनते हैं, तो इसे आजमाओ; हो सकता है कि तुम्हारे बारे में उनका नजरिया अपने बारे में तुम्हारी अपनी भावनाओं की अपेक्षा ज्यादा सटीक हो। अगर भाई-बहनों को लगता है कि तुम यह कर सकते हो, तो तुम्हें अपना सब-कुछ लगा देना चाहिए। अगर तुम वास्तव में सर्वोत्तम प्रयास करते हो, लेकिन फिर भी काम में असफल होते हो, और तुम्हारा दिल व्याकुलता से इस तरह जल रहा हो कि तुम खा-पी न सको, तुम्हारी नींद उड़ जाए, और तुम न जान सको कि इसे ठीक से कैसे करना है, तो अगुआ या कार्यकर्ता बनना छोड़ दो—यह तुम्हारे लिए बहुत कठिन है। अगर तुम जारी रखोगे, तो हो सकता है कि तुम एक नकली अगुआ बन जाओ, इसलिए तुम्हें बिना विलंब के यह घोषणा करते हुए त्यागपत्र लिख देना चाहिए, “मैं कमजोर काबिलियत का हूँ और वास्तविक कार्य करने में अक्षम हूँ, अगर मैं अगुआ बना रहा, तो यकीनन जल्द ही मैं एक झूठा अगुआ बन जाऊँगा, इसलिए मैं निवेदन करता हूँ कि मुझे त्यागपत्र देने दिया जाए और स्वेच्छा से पद त्यागने दिया जाए।” यह सबसे बुद्धिमत्तापूर्ण क्रियाविधि है, और यह करना सबसे उपयुक्त बात है : यह तर्कसंगत है, और पद पर बने रहने और नकली अगुआ बनने से बेहतर है। अगर तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुम खराब क्षमता वाले हो और अगुआ बनने में अक्षम हो, लेकिन रुतबा छोड़ना सहन नहीं कर सकते, और अपने आप से कहते हो, “मैं यह क्यों नहीं कर सकता? मेरी थोड़ी-बहुत मदद कौन कर सकता है? कितना बढ़िया होगा अगर मैं अगुआ के रूप में अपना रुतबा भी बनाए रख सकूँ, और कोई अन्य मेरे लिए सभी योजनाएँ और रणनीतियाँ बना दे! फिलहाल ऐसा कोई नहीं है जो मेरा स्थान लेने लायक हो, इसलिए मैं ही एक अगुआ बना रह सकता हूँ और बस यही कर सकता हूँ कि जितने समय तक मैं काम कर रहा हूँ तब तक हर दिन उसका आनंद लेता रहूँ; भले ही मैं कार्य न कर सकूँ, फिर भी मैं अगुआ हूँ, और अगुआ होना साधारण भाई-बहन होने से बेहतर है। अगर परमेश्वर का घर मुझे बरखास्त नहीं करता और भाई-बहन मुझे नहीं निकालते, तो मैं त्यागपत्र नहीं दूँगा।” क्या यह उचित है? (नहीं।) यह उचित क्यों नहीं है? (यह अनुचित है; अगर मैं वास्तविक कार्य करने में अक्षम हूँ, और फिर भी त्यागपत्र नहीं देता, तो इससे कलीसिया का कार्य विलंबित ही होगा।) इस प्रकार कार्य करने से कलीसिया के कार्य में देर होती है—इससे दूसरों को पीड़ा पहुँचती है, और यह तुम्हें भी पीड़ा पहुँचती है। अगुआ होने का मतलब जानते हो? इसका मतलब है कि तुम्हारा कई लोगों के जीवन में प्रवेश के साथ सीधा संबंध है, और तुम्हारी अगुआई का इस बात से सीधा संबंध है कि वे अपने सामने के मार्ग पर कैसे चलते हैं। अगर तुम अच्छी तरह से अगुआई करो और उन्हें सही मार्ग पर आगे बढ़ाओ, तो वे सही मार्ग पर कदम रखने में सक्षम होंगे। अगर तुम खराब तरीके से उनकी अगुआई करो और उन्हें गंदे नाले में आगे बढ़ाओ, और वे तुम जैसे फरीसी बन जाएँ, तो तुम्हारा पाप बहुत बड़ा होगा! और तुम्हारे यह बड़ा पाप करने के बाद, क्या यही इसका अंत होगा? परमेश्वर इसे दर्ज कर लेगा! तुम अच्छी तरह से जानते हो कि तुम्हारी काबिलियत खराब है, तुम एक झूठे अगुआ हो और वास्तविक कार्य करने में अक्षम हो, फिर भी तुम अपने दोष मानकर त्यागपत्र नहीं देते, बल्कि बेशर्मी से अपने पद से चिपके रहते हो, और किसी और के लिए वह स्थान नहीं छोड़ते। यह पाप है, और परमेश्वर इसका हिसाब रखेगा। और उसका हिसाब रखना भविष्य में तुम्हारे लिए अच्छा होगा या बुरा? तुम मुसीबत में पड़ जाओगे! मैं तुम्हें ईमानदारी से सत्य बताऊँगा : परमेश्वर प्रत्येक व्यक्ति के ऐसे कामों का हिसाब रखता है, और उसमें हर चीज स्पष्ट रूप से दर्ज की जाती है। अगर तुम्हारे उद्धार के मार्ग पर कोई ऐसी बेहद गंभीर चीज हो जाए, तो तुम पर उसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। तुम कुछ भी करो, मगर इस मार्ग पर मत चलो और इस तरह के व्यक्ति मत बनो।
हमने विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित किए जाने के बारे में झूठे अगुआओं के कुछ अभ्यासों और अभिव्यक्तियों पर संक्षेप में संगति की है। संक्षेप में कहें, तो जिस प्रकार का व्यक्ति झूठा अगुआ होता है वह वास्तविक कार्य नहीं करता, और वह वास्तविक कार्य करने में अक्षम होता है। उसकी काबिलियत कमजोर होती है, उसकी आँखें और दिमाग दृष्टिहीन होते हैं, वे समस्याएँ खोजने में अक्षम होते हैं, और विभिन्न प्रकार के लोगों की असलियत नहीं समझ सकते, इसलिए वे विभिन्न प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों को पदोन्नत और विकसित करने के महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होते हैं। इस प्रकार उनके पास कलीसिया का कार्य अच्छे ढंग से करने का कोई तरीका नहीं होता, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश में बहुत-सी कठिनाइयाँ खड़ी होती हैं। इन कारकों पर विचार करने से यह स्पष्ट है कि झूठे अगुआ कलीसिया के अगुआ बनने के लायक नहीं हैं। ऐसे दूसरे झूठे अगुआ भी हैं जो कलीसिया का कोई विशेष कार्य नहीं करते और विशिष्ट कार्य के पर्यवेक्षकों से कोई संपर्क नहीं करते, इसलिए वे यह नहीं जानते कि कौन-से प्रतिभाशाली व्यक्ति कौन-सा कार्य करने के काबिल हैं, न ही यह कि कौन किस कार्य के लिए उपयुक्त है, न ही यह कि उनका कामकाज सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। इस प्रकार वे प्रतिभावान लोगों को पदोन्नत और विकसित करने में असमर्थ होते हैं। तो फिर ऐसे लोग कलीसिया के कार्य को अच्छे ढंग से कैसे कर सकते हैं? झूठे अगुआओं के वास्तविक कार्य न कर पाने का मुख्य कारण यह है कि उनकी काबिलियत कमजोर होती है; उनके पास किसी भी चीज की अंतर्दृष्टि नहीं होती है, और वे नहीं जानते कि वास्तविक कार्य क्या होता है। इससे कलीसिया के कार्य में अक्सर अकर्मण्यता की स्थितियाँ पैदा होती हैं या पूर्ण गतिहीनता आ जाती है। ये सीधे तौर पर झूठे अगुआओं के वास्तविक कार्य करने में विफलता से संबंधित होती हैं। पिछले अनेक वर्षों से परमेश्वर के घर ने बार-बार जोर दिया है कि बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को बाहर निकाल देना चाहिए और झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं को बरखास्त कर देना चाहिए। विभिन्न बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को क्यों निकाल देना जाना चाहिए? क्योंकि कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी, ये लोग सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और ये उस मुकाम पर पहुँच गए हैं जहाँ उनके लिए उद्धार की कोई उम्मीद नहीं बची है। और सभी झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं को क्यों बरखास्त कर देना चाहिए? क्योंकि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और कभी भी उन लोगों को पदोन्नत और विकसित नहीं करते जो सत्य का अनुसरण करते हैं; इसके बजाय वे बस व्यर्थ के प्रयासों में संलग्न रहते हैं। इस कारण से कलीसिया का कार्य अस्त-व्यस्त होकर पूर्ण गतिहीनता में पड़ जाता है, मौजूदा समस्याएँ कायम रहती हैं, सुलझ नहीं पातीं, और इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों का जीवन प्रवेश धीमा भी पड़ जाता है। अगर इन सभी झूठे अगुआओं और झूठे कार्यकर्ताओं को बरखास्त कर दिया जाए और कलीसिया को बाधित करने वाले इन सभी बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को बाहर निकाल दिया जाए, तो कलीसिया का कार्य स्वाभाविक रूप से सुचारू रूप से चलने लगेगा, कलीसिया का जीवन सहज ही काफी बेहतर हो जाएगा, और परमेश्वर के चुने हुए लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खाने, पीने, अपने कर्तव्य निभाने और परमेश्वर में आस्था के सही मार्ग में प्रवेश करने में सक्षम हो जाएँगे। यही चीज है जो परमेश्वर देखना चाहेगा।
27 फरवरी 2021