अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (29)
मद पंद्रह : सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की रक्षा करो, उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखो, और कार्य की विभिन्न महत्वपूर्ण मदों को व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाना सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सुरक्षित रखो
पिछली बार हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के विषय पर अपनी संगति कहाँ छोड़ी थी? (पिछली बार हमने मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार के लोगों का उनकी मानवता के आधार पर भेद पहचानने के संबंध में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी के अंतर्गत अंतिम तीन अभिव्यक्तियों पर संगति की थी। ये तीन अभिव्यक्तियाँ हैं : डरपोक और शंकालु होना, मुसीबत मोल लेने की ओर झुकाव होना और जटिल पृष्ठभूमि होना।) पिछली बार हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी में अंतिम तीन विषयों पर संगति पूरी की थी, इसलिए आज हम पंद्रहवीं जिम्मेदारी पर संगति करेंगे। पंद्रहवीं जिम्मेदारी क्या है? (“मद पंद्रह : सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की रक्षा करो, उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखो, और कार्य की विभिन्न महत्वपूर्ण मदों को व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ाना सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सुरक्षित रखो।”) “सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की रक्षा करो, उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखो, और उन्हें सुरक्षित रखो।” इस जिम्मेदारी में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों का एक और पहलू शामिल है; यह भी कार्य की एक विशेष मद है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अच्छी तरह से पूरा करना चाहिए। कार्य की यह मद किससे संबंधित है? (यह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सुरक्षित रखने से संबंधित है।) इसमें व्यक्तिगत सुरक्षा के मुद्दे शामिल हैं। क्या यह विषय कलीसिया में अक्सर सामने नहीं आता है? क्या तुम लोग इस विषय से अनजान हो? (नहीं।) यह विषय चीनी भाई-बहनों के लिए अनजान नहीं है, क्योंकि चीन के सामाजिक परिवेश में विश्वासियों को सताया और गिरफ्तार किया जाता है, जिससे उन्हें अपने कर्तव्य को निभाने और जीवन के सभी पहलुओं में सुरक्षा की गारंटी की जरूरत होती है। इसलिए यह कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आता है; यह कोई वैकल्पिक कार्य नहीं है। चाहे किसी देश में धार्मिक स्वतंत्रता हो या न हो, विभिन्न महत्वपूर्ण कर्तव्यों को करने वाले कर्मियों के लिए नियुक्तियों की व्यवस्था उचित रूप से करना एक विशिष्ट कार्य है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जरूर पूरा करना चाहिए। इस कार्य का फोकस या विशिष्ट आवश्यकताएँ भिन्न हो सकती हैं, मगर मूल रूप से यह सब इस बात से संबंधित है कि क्या भाई-बहन अपने कर्तव्यों को सुरक्षित रूप से निभा सकते हैं, और क्या उनके कर्तव्यों के नतीजे सुनिश्चित किए जा सकते हैं। इसलिए इस कार्य की उपेक्षा मत करो या एक लोकतांत्रिक देश में रहने के कारण इसे अपने लिए अप्रासंगिक मत समझो। तुम जिस देश में रहते हो वहाँ की शासन व्यवस्था चाहे जैसी भी हो या फिर वहाँ विश्वासियों को सताया जाता हो या नहीं, यह कार्य अगुअओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में आता है; यह ऐसा कार्य है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जरूर पूरा करना चाहिए—इसमें किसी को कोई छूट नहीं है और इसे “अतिरिक्त” कार्य नहीं मानना चाहिए। तो फिर आओ, आज हम इस विषय से जुड़े सभी विभिन्न मुद्दों पर संगति करें।
महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों का दायरा
सबसे पहले, आओ देखें कि पंद्रहवीं जिम्मेदारी में जिन “सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों” का जिक्र किया गया है उसका क्या अर्थ है—क्या हमें इस विषय पर संगति नहीं करनी चाहिए? (बिल्कुल।) तो, “सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों” का क्या अर्थ है? आओ सबसे पहले इस कार्य के लक्ष्यों का दायरा निर्धारित करें। इस पर कौन बात कर सकता है? (सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों में वीडियो निर्माण टीमों, फिल्म निर्माण टीमों, प्रूफरीडिंग टीमों और भजन मंडलियों में काम करने वाले भाई-बहन और अन्य महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले लोग शामिल हैं। इसके अलावा, इसमें कुछ ऐसे भाई-बहन शामिल हैं जो कार्य की विभिन्न महत्वपूर्ण मदों में मुख्य भूमिका निभाते हैं, साथ ही हर एक टीम के पर्यवेक्षक भी शामिल हैं।) और कौन इस बारे में कुछ कहना चाहेगा? (इसमें अगुआ और कार्यकर्ता भी शामिल हैं।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को वाकई सुरक्षित रखना चाहिए। और कौन? (सामान्य मामलों को संभालने वाले महत्वपूर्ण कर्मी भी हैं, जैसे कि वित्त कर्मी।) (और भाई-बहन जो परमेश्वर में विश्वास रखने और कर्तव्य निभाने के कारण पुलिस द्वारा वांछित हैं या जिनका पुलिस रिकॉर्ड है, उन्हें भी सुरक्षा की जरूरत है।) यह एक और श्रेणी है और यह एक विशेष समूह है। आओ संक्षेप में बताएँ कि ऐसी कितनी श्रेणियाँ हैं। पहली श्रेणी में अगुआ और कार्यकर्ता शामिल हैं। दूसरी श्रेणी में वे कर्मी शामिल हैं जो परमेश्वर के घर में कार्य की विभिन्न मदों के लिए बहुत जरूरी हैं, विशेष रूप से कार्य की विभिन्न मदों के टीम अगुआ और पर्यवेक्षक, अच्छी काबिलियत और आध्यात्मिक समझ रखने वाले और सिद्धांतों को समझने और स्वतंत्र रूप से महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी उठाने की क्षमता रखने वाले कर्मी। कार्य की विभिन्न मदों को संभालने वाले कई प्रकार के कर्मी हैं, जैसे कि पाठ आधारित कार्य, भजन कार्य, फिल्म निर्माण कार्य जैसी चीजें करने वाले कर्मी; साथ ही, इसमें अन्य लोगों के अलावा सुसमाचार फैलाने, गवाही देने या सुसमाचार निर्देशक के रूप में सेवा करने वाले कर्मी भी शामिल हैं। इसके अलावा, इसमें वित्त, सुरक्षित रख-रखाव और बाहरी मामलों का कार्यभार संभालने वाले कर्मी शामिल हैं। ये व्यक्ति कलीसिया के कार्य में सहायक भूमिका निभाते हैं और बेहद जरूरी हैं; वे सभी कार्य की विभिन्न मदों को संभालने वाले कर्मियों में शामिल हैं। यह दूसरी प्रमुख श्रेणी है। तीसरी प्रमुख श्रेणी में वे लोग शामिल हैं जो कलीसिया के जोखिम भरे काम में लगे हुए हैं। खास तौर पर, सत्तावादी शासन व्यवस्था वाले देशों में, जहाँ कोई धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है, वहाँ कुछ बेहद जोखिम भरे काम होते हैं, जैसे कि किताबें छापना, किताबें पहुँचाना, कलीसिया की संपत्तियों को सुरक्षित रखना, साथ ही महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले कर्मियों की मेजबानी और उनकी नियुक्तियों की व्यवस्था करना। और कौन लोग शामिल हैं? (कुछ सामान्य मामलों के कर्मी भी हैं जो बाहर सूचना पहुँचाते हैं; उनके द्वारा किए जाने वाले कर्तव्य भी अपेक्षाकृत जोखिम भरे होते हैं।) इन व्यक्तियों को भी जोखिम भरे काम करने वालों में गिना जाता है। हालाँकि, निश्चित रूप से यह इन लोगों का कभी-कभार का काम नहीं है; बल्कि, वे इन महत्वपूर्ण और जोखिम भरे काम जैसे कि सूचना पहुँचाना, कार्य व्यवस्थाओं को बाँटना, परमेश्वर के घर के सभी वीडियो, फिल्में या धर्मोपदेश की रिकॉर्डिंग बाँटना आदि को करने में माहिर होते हैं। सत्तावादी देशों में जहाँ धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कौन महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रहा है और जोखिमभरे काम कर रहा है। संक्षेप में, ये लोग भी महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की एक श्रेणी हैं और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनकी सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए; इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यह तीसरी श्रेणी है। चौथी श्रेणी कलीसिया के कार्य के लिए एक और बेहद जरूरी समूह है। इन लोगों के पास विशेष कौशल और गुण होते हैं, जैसे कि सुसमाचार फैलाने, धर्मोपदेश देने, कलीसिया को सींचने में कुशल होना या काम की विशेष मदों को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी लेना। ये लोग अगुआ और कार्यकर्ता या काम की विभिन्न मदों के पर्यवेक्षक या जोखिमभरे काम में लगे हुए लोग हो सकते हैं। ऐसे लोगों के बिना उनके द्वारा संभाले जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य में कमी रह जाएगी और अन्य कोई भी उनकी भूमिका नहीं निभा सकता। इसलिए, इन लोगों की रक्षा की जानी चाहिए और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। यह लोगों की एक श्रेणी है। दूसरी श्रेणी में वे लोग हैं जो उन देशों में जहाँ धार्मिक लोगों को परमेश्वर में आस्था रखने के कारण सताया जाता है, पुलिस द्वारा वांछित हैं या वहाँ पुलिस रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज है। उनके खिलाफ जारी पुलिस वारंट का दायरा या कलीसिया के भीतर उनके द्वारा निभाए जाने वाले विशिष्ट कार्य का दायरा चाहे जो भी हो, जब तक वे परमेश्वर में उनके विश्वास और कर्तव्य निभाने के कारण पुलिस द्वारा वांछित हैं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनकी सुरक्षा के तरीके खोजने चाहिए, उनके कर्तव्य पालन के लिए उन्हें अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थानों पर रखने की व्यवस्था करनी चाहिए। धार्मिक आस्था रखने वालों को सताने वाले सभी देशों में, चीन का उत्पीड़न सबसे गंभीर है। चीन के विभिन्न प्रांतों और क्षेत्रों में बहुत-से लोगों को गिरफ्तार किया गया है या वे पुलिस द्वारा वांछित हैं और घर नहीं लौट सकते। दुनिया भर में और हर महाद्वीप में कुछ ऐसे देश हैं जो चीन की तरह धार्मिक आस्था रखने वाले लोगों को सताते हैं और इन देशों में ऐसे लोग भी हैं जिन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारने के कारण उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और वे घर नहीं लौट सकते। जो लोग सताए जाते हैं और घर नहीं लौट सकते, उनके लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जल्द से जल्द पूर्णकालिक कर्तव्य वाली कलीसिया में नियुक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से अपेक्षाकृत सुरक्षित परिवेशों में बसाना चाहिए ताकि वे अपने कर्तव्यों को निभा सकें। यह कार्य की प्राथमिकता वाली मद है जिसे अच्छी तरह से किया जाना चाहिए। ये व्यक्ति जो गिरफ्तार किए गए हैं या पुलिस द्वारा वांछित हैं, कर्मियों की पाँचवीं श्रेणी हैं जिन्हें सुरक्षा की जरूरत है। महत्वपूर्ण कार्यों की विभिन्न मदों को संभालने वाले कर्मियों के बीच एक और श्रेणी है जो कि खास है। हो सकता है ये लोग वर्तमान में अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हों, न हीजोखिमभरे काम में लगे हों, मगर उन्होंने पहले कई कर्तव्य निभाए हैं और उनके कार्य का दायरा व्यापक रहा है। वे कई मेजबान परिवारों को और महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले कुछ कर्मियों के बारे में भी जानते हैं। इसलिए अगर ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जाता है तो यह कलीसिया के कार्य में भी तबाही लाएगा। इन लोगों को “अंदरूनी जानकारी रखने वाले लोगों” के रूप में संदर्भित किया जाना चाहिए, और उन्हें सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों में भी शामिल किया जाना चाहिए। परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों की सुरक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कलीसिया का कार्य सामान्य रूप से आगे बढ़े, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। विशेष रूप से इस श्रेणी के कुछ व्यक्ति काफी लापरवाह हैं; वे सतर्क रहना नहीं जानते और उनके पास ज्यादा बुद्धि नहीं है। वे हमेशा जोश में आकर काम करते हैं, बाहर बिना सोचे-विचारे काम करते हैं। कभी गिरफ्तार नहीं होने या यातना नहीं सहने के कारण, वे इसमें शामिल खतरे और कुछ गलत हो जाने पर उसके संभावित परिणामों से अनजान हैं, और वे उन परिणामों की गंभीरता को तो बिल्कुल भी नहीं समझते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि वे केवल परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, कुछ भी बुरा नहीं कर रहे हैं, तो उन्हें किसी चीज का डर नहीं है। इस वजह से, कुछ समय तक स्थानीय स्तर पर काम करने के बाद, वे काफी मशहूर हो सकते हैं और सरकारी निगरानी के दायरे में आ सकते हैं। क्या यह खतरनाक नहीं है? एक बार गिरफ्तार होने के बाद, अगर वे यातना के साथ पूछताछ का सामना नहीं कर सके तो वे भाई-बहनों को धोखा देकर यहूदा बन सकते हैं। इससे कलीसिया को भारी नुकसान होगा और अन्य भाई-बहन भी फँस जाएँगे, जिससे उनकी गिरफ्तारी और कारावास का जोखिम होगा, जो कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा। इसलिए, कलीसिया को ऐसे व्यक्तियों की सुरक्षा को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। अगर उन्हें छिपाने के लिए स्थानीय स्तर पर कोई सुरक्षित स्थान नहीं मिल सकता तो उन्हें अपना कर्तव्य निभाने के लिए किसी और अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान पर भेज दिया जाना चाहिए। यह लोगों की एक और श्रेणी है। उनकी स्थिति की विशेषता के कारण, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनके लिए नियुक्तियों की व्यवस्था करनी होगी, ताकि उन्हें भी सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों में शामिल किया जा सके। कुल मिलाकर लोगों की कितने प्रकार की श्रेणियाँ हैं? (छह श्रेणियाँ हैं। पहली श्रेणी अगुआओं और कार्यकर्ताओं की है। दूसरी श्रेणी में वे महत्वपूर्ण कर्मी शामिल हैं जो परमेश्वर के घर में कार्य की विभिन्न मदों को संभालते हैं; पर्यवेक्षक, टीम अगुआ और सुसमाचार निर्देशक; और जो कार्यभार संभाल सकते हैं। तीसरी श्रेणी उन कर्मियों की है जो कलीसिया के जोखिमभरे कार्य में लगे हैं। चौथी श्रेणी में वे लोग हैं जिनके पास विशेष कौशल और गुण हैं। पाँचवीं श्रेणी में वे लोग हैं जिनका पुलिस रिकॉर्ड में नाम दर्ज है, जिनकी तलाश की जा रही है और जो पुलिस द्वारा वांछित हैं। और छठी श्रेणी में अंदरूनी जानकारी रखने वाले लोग हैं।) हमने मूल रूप से कार्य की विभिन्न मदों में शामिल सभी महत्वपूर्ण कर्मियों के बारे में बात कर ली है, मगर एक श्रेणी और जोड़नी है : अगर कलीसिया के कोई भाई-बहन बाहर जाकर अपना कर्तव्य निभाने के कारण गिरफ्तार हो जाते हैं या किसी और अप्रत्याशित स्थिति का सामना करने के कारण अपने कम उम्र के बच्चों की देखभाल नहीं कर पाते हैं, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन बच्चों को एक उपयुक्त घर में रखने की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि उनके पास जीवन-यापन का साधन हो। यह भी कार्य की एक विशेष मद है। भले ही कार्य की यह मद कलीसिया के कार्य से संबंधित नहीं है और यह केवल विशेष परिस्थितियों के कारण उत्पन्न होती है, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन कम उम्र के बच्चों के लिए उपयुक्त स्थान की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। अगर उन बच्चों के उपयुक्त रिश्तेदार नहीं हैं या अगर उनके रिश्तेदार अविश्वासी हैं और उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते तो कलीसिया को उन्हें स्वीकार लेना चाहिए। कलीसिया को न केवल उनके लिए एक उपयुक्त मेजबान परिवार की व्यवस्था करनी चाहिए, बल्कि भाई-बहनों को उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी सौंपनी चाहिए। जैसे ही उनके लिए उपयुक्त स्थान की व्यवस्था हो जाए, अगर वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं तो यह निश्चित रूप से आदर्श स्थिति है और फिर व्यस्क होने के बाद वे कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। अगर वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं तो वयस्क होकर समाज में प्रवेश करने के बाद, वे अब कलीसिया से जुड़े नहीं रहेंगे और हमारी जिम्मेदारी पूरी हो जाएगी। उसके बाद से हमें उनके लिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं होगी। क्या यह उचित है? (हाँ।) भले ही यह कार्य कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों में शामिल नहीं है, इसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों के दायरे में शामिल किया जाना चाहिए। अगर कलीसिया में अपना कर्तव्य निभा रहे लोगों के बच्चों को किसी स्थान पर रखने की आवश्यकता है तो स्थिति की जानकारी होने पर अगुआ और कार्यकर्ता इसे नजरंदाज नहीं कर सकते। अगर उन्हें इसके बारे में पता है तो उन्हें सवाल पूछने चाहिए, इसे संभालना चाहिए और उनके लिए उचित स्थान की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अपना कर्तव्य निभा रहे भाई-बहन—खास तौर पर जो महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं—इस मामले में चिंता से मुक्त रहें। इस कार्य को अच्छी तरह से करना मुश्किल नहीं है, है ना? (नहीं, यह मुश्किल नहीं है।) महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की कम से कम छह श्रेणियाँ हैं। सातवीं श्रेणी अतिरिक्त है, यह एक बहुत ही विशेष प्रकार की परिस्थिति को दर्शाती है। पहली छह श्रेणियों में जिन कर्मियों का जिक्र किया गया है, जरूरी नहीं कि वे हर पादरी क्षेत्र या देश में मौजूद हों। हालाँकि, देश चाहे कोई भी हो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं और महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा करना कार्य की एक अहम मद है। यह कार्य की एक ऐसी मद है जिस पर सभी कलीसिया अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ध्यान देना चाहिए और एक ऐसी जिम्मेदारी है जिसे उन्हें अच्छी तरह से निभाना चाहिए।
महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखना
1. मेजबान परिवारों की सुरक्षा जरूरतें
अब जबकि हमने स्पष्ट कर दिया है कि महत्वपूर्ण कार्य-कर्मी कौन हैं, आओ उन विशिष्ट कार्यों पर नजर डालें जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करने चाहिए—जैसे कि सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा करना, उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखना, और उन्हें सुरक्षित रखना। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से प्रभावी ढंग से बचाने के लिए क्या विशिष्ट कार्य करने की आवश्यकता है ताकि उनकी जिम्मेदारी पूरी मानी जाए? जब विशिष्ट कार्य करने की बात आती है, कुछ अगुआ और कार्यकर्ता उलझन में पड़ जाते हैं, बहुत परेशान हो जाते हैं और अपना सिर खुजाते हैं, उन्हें नहीं पता होता कि क्या करना है। इन महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के लिए नियुक्तियों की व्यवस्था करने का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है : उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए। चाहे महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को भाई-बहनों के घरों में रखा जाए या किराये के घरों में, जरूरी यह है कि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का मतलब है उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखना। तो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखने के लिए क्या करना चाहिए? जो महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रहे हैं उन लोगों के लिए उपयुक्त स्थानों पर नियुक्ति की व्यवस्था करने की आवश्यकता होती है। आओ इसे दो पहलुओं से देखें : एक मेजबान परिवार का अंदरूनी परिवेश है और दूसरा बाहरी परिवेश है। अंदरूनी परिवेश के संदर्भ में, सबसे पहले मेजबान को एक सच्चा विश्वासी होना चाहिए, मेजबानी करने का इच्छुक होना चाहिए, चीजों को गोपनीय रखने में सक्षम होना चाहिए, सावधानी से कार्य करना चाहिए और बाहरी दुनिया से बुद्धिमानी से निपटना चाहिए। अगर कोई विशेष स्थिति उत्पन्न होती है तो उसे इसे संभालना आना चाहिए; उसे निष्क्रिय रूप से नहीं बल्कि पहल करके इसे संभालने और हल करने में सक्षम होना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय स्तर पर उसकी अच्छी प्रतिष्ठा होनी चाहिए या शायद स्थानीय स्तर पर कुछ प्रतिष्ठा और संबंध होने चाहिए। भले ही उसका प्रभाव ज्यादा न हो, पर उसे कम से कम ऐसा व्यक्ति तो होना ही चाहिए जो अपने उचित स्थान पर बना रहे और सुसभ्य जीवन जिए, जो कभी भी परेशानी में न पड़े या अपने घर में संदिग्ध व्यक्तियों को आने-जाने न दे। उसके महजोंग खेलने या शराब पीने वाले दोस्त नहीं होने चाहिए। इसके अलावा, बाहरी दुनिया और अपने पड़ोसियों के साथ उसके संबंध अपेक्षाकृत सामान्य होने चाहिए। उसे कर्ज को लेकर किसी विवाद में नहीं उलझना चाहिए और न ही अपने पड़ोसियों के साथ विवाद करना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो उसके घर का माहौल अपेक्षाकृत शांत होना चाहिए, मेजबान के सरल संबंध होने चाहिए और उसके घर में बाधाएँ पैदा करने वाले लोग बहुत कम आने चाहिए, वगैरह—सभी पहलू उपयुक्त होने चाहिए। इसके अलावा, मेजबान के बच्चों या रिश्तेदारों को परमेश्वर में उसके विश्वास का समर्थन करना चाहिए या कम से कम अपने मेजबान भाई-बहनों का विरोध नहीं करना चाहिए, और निश्चित रूप से इन चीजों के बारे में बेपरवाही से बात नहीं करनी चाहिए। कुछ लोग कह सकते हैं, “ऐसा मेजबान परिवार ढूँढ़ना आसान नहीं है जो इन सभी मानदंडों को पूरा करता हो!” इसका मकसद अपेक्षाकृत उपयुक्त जगह ढूँढ़ना है; पूरी तरह से सटीक होने की कोई जरूरत नहीं है। कम से कम, रहने का माहौल उपयुक्त होना चाहिए—शांत और बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त—जो महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखने की आवश्यकता को पूरा करता हो। कुछ मेजबान परिवारों में, भले ही परिवार का हर सदस्य विश्वासी नहीं होता, मगर मेजबान व्यक्ति की परिवार में प्रतिष्ठा होती है और वही फैसले लेता है। उसके अविश्वासी बच्चे या रिश्तेदार परमेश्वर में उसके विश्वास या भाई-बहनों की मेजबानी में हस्तक्षेप करने की हिम्मत नहीं करते; भले ही वे आंतरिक रूप से असहमत हों, वे परिवार के बाहर के लोगों को यह जानकारी साझा करने की हिम्मत नहीं करेंगे। अगर वाकई कुछ होता है तो वे सुरक्षा प्रदान करने में भी मदद कर सकते हैं। इस तरह, इस मेजबान घर में रहने वाले भाई-बहन बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से भी अप्रभावित रह सकते हैं। कुछ मामलों में, मेजबान डरपोक होता है—उसे डर होता है कि उसके बच्चे परमेश्वर में उसके विश्वास को उजागर कर सकते हैं, उसके पड़ोसियों को परमेश्वर में उसके विश्वास का पता लगने पर वे उसकी रिपोर्ट कर सकते हैं, और खास तौर पर उसे डर होता है कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए और उसे गिरफ्तार न कर लिया जाए। जैसे ही वह भाई-बहनों की मेजबानी करना शुरू करता है, वह हर दिन बेचैन रहता है, दिन में कुछ खा नहीं पाता या रात में सो नहीं पाता है, दिन भर एक चोर की तरह चिंतित और भयभीत रहता है। जब भी उसे सुनने में आता है कि कुछ होने वाला है, जैसे कि सरकार परिवारों के पंजीकरण की जाँच करने की सोच रही है या सरकारी कर्मचारी अलग-अलग बहानों से कुछ करने के लिए उसके घर आ रहे हैं, तो वह बेहद डर जाता है और लगातार यही चाहता है कि भाई-बहन तुरंत वहाँ से चले जाएँ ताकि वह खुद न फँस जाए। यह देखते ही भाई-बहनों को तुरंत वहाँ से कहीं और चले जाना चाहिए, क्योंकि ऐसी जगह मेजबानी के लिए उपयुक्त नहीं है; यहाँ सिर्फ कुछ दिनों के लिए रुका जा सकता है। अगर मेजबान परिवार के बच्चे, रिश्तेदार या दोस्त बुरे लोग हैं, जो यह जानकर कि मेजबान विश्वासियों को अपने पास रख रहा है, भाई-बहनों को परेशान करने या उन्हें पुलिस के हवाले करने आ सकते हैं, तो यह बहुत खतरनाक है। ऐसा मेजबान परिवार रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। कुछ माता-पिता अपने बच्चों के सामने गुलामों की तरह व्यवहार करते हैं; वे कह सकते हैं, “कोई बात नहीं, मेरे बच्चे मेरी बात सुनते हैं,” मगर वास्तव में, उनके बच्चों की आज्ञाकारिता स्थिति पर निर्भर करती है। जब उनके अपने हित शामिल हों तो बच्चे उनकी बात नहीं सुनते। ऐसा व्यक्ति अपने बच्चों को यह बताने की हिम्मत नहीं करेगा कि वह भाई-बहनों की मेजबानी कर रहा है। अगर उसके बच्चों या रिश्तेदारों को पता चल जाता है तो वे निश्चित रूप से भाई-बहनों को भगा देंगे और मेजबान उन्हें रोक नहीं पाएगा—अपने ही घर में अंतिम फैसला उसका अपना नहीं होता। ऐसा व्यक्ति मेजबानी करने के लिए उपयुक्त नहीं है; उसमें मेजबानी करने की इच्छा तो हो सकती है, मगर मेजबानी करने का साहस नहीं। क्या एक कायर व्यक्ति वास्तव में मेजबानी करने का साहस कर सकता है? अगर तुम भाई-बहनों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते तो तुम इस कर्तव्य के लिए उपयुक्त नहीं हो—तुम्हें इसके लिए अपनी इच्छा से आगे नहीं आना चाहिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से खोखले वादे नहीं करने चाहिए और न ही तुम्हें इस कर्तव्य को स्वीकारना चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता किसी ऐसे घर में भाई-बहनों की मेजबानी की व्यवस्था करते हैं तो क्या यह तुम्हें उचित लगता है? (नहीं।) यह बेहद अनुचित है। भाई-बहनों को खतरे में मत डालो। हो सकता है कि भाई-बहन कहीं और रहते हुए पूरी तरह सुरक्षित हों; अगर तुम उन्हें इस व्यक्ति के घर में रखने की व्यवस्था करते हो, जहाँ बच्चे या रिश्तेदार अविश्वासी हैं और जैसे ही उन्हें पता चलता है कि वहाँ विश्वासी रह रहे हैं जिनसे उनके जीवन को खतरा है और वे उनकी रिपोर्ट कर सकते हैं, तो क्या उस मेजबान को बुरा नहीं लगेगा? अगर मेजबान ऐसी स्थितियों में भाई-बहनों की रक्षा के लिए अपना जीवन जोखिम में डालने के लिए तैयार है और प्रभावी रूप से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है और अगर वह आम तौर पर काफी बुद्धिमानी दिखाता है, तो यह मेजबान परिवार अभी भी एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है। लेकिन, अगर वह भाई-बहनों की रक्षा करने के लिए अपनी जान जोखिम में नहीं डाल सकता और जब उसके परिवार के अविश्वासी लोग भाई-बहनों की रिपोर्ट करने और उन्हें पुलिस के हवाले करने की धमकी देते हैं, तो उसके पास कोई उपाय नहीं होता है और वह केवल कछुए की तरह अपने सिर को अपने खोल में छिपाकर पीछे हट सकता है, भाई-बहनों की रक्षा नहीं कर सकता है और अविश्वासियों को उन्हें पुलिस के हवाले करने दे सकता है, तो यह परिवार मेजबानी के लिए उपयुक्त नहीं है। अगर भाई-बहन कुछ दिनों के लिए अस्थायी रूप से वहाँ रहते हैं और फिर जैसे ही कोई उपयुक्त स्थान मिलता है, तुरंत वहाँ चले जाते हैं तो यह किसी तरह बरदाश्त किया जा सकता है। अपने कर्तव्य निभाने के लिए ऐसे घर में लंबे समय तक रहना उचित नहीं होगा। मेजबान परिवार को कम से कम भाई-बहनों की सुरक्षा करने में सक्षम होना चाहिए—यह किसी मेजबान परिवार के लिए पहली आवश्यकता है। जो लोग बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचने के लिए अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, एक तो उनका रहने का परिवेश उपयुक्त होना चाहिए; इसके अलावा, मेजबान के अपने गुण सभी मामलों में उपयुक्त होने चाहिए—यानी उसे महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर रखने में सक्षम होना चाहिए। जब वह ऐसा करने में सक्षम होगा केवल तभी अगुआ और कार्यकर्ता महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को उसके घर में रखने की व्यवस्था कर सकते हैं। अगर मेजबान में कम आस्था है और वह अक्षम और निर्बल है, अपने घर में अंतिम फैसला लेने में असमर्थ है और उसकी कोई अविश्वासी संतान या रिश्तेदार आकर उस पर अधिकार जमा सकता है, तो यह काफी परेशानी वाली बात है। ऐसी जगह मेजबानी के लिए बिल्कुल अनुपयुक्त है। भले ही घर बड़ा हो, उसमें कई कमरे हों, आरामदायक माहौल हो और अच्छी स्थितियाँ हों, फिर भी यह मेजबानी के लिए उपयुक्त नहीं है। वहाँ रहने का केवल एक उपयुक्त परिवेश होना पर्याप्त नहीं है; मेजबान को भी उपयुक्त होना चाहिए। यहाँ मुख्य बात यह है कि मेजबान को पहले यह सुनिश्चित करने में सक्षम होना चाहिए कि वह अपने कर्तव्य निभाने वाले जिन कर्मियों की मेजबानी कर रहा है वे बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से सुरक्षित हैं। केवल तभी वहाँ रहने के परिवेश पर विचार किया जाना चाहिए। थोड़ा कम आदर्श परिवेश भी स्वीकार्य है—चाहे वह छोटी जगह हो, सीमित इंटरनेट हो, सादा भोजन हो या पानी की कमी हो। अगर मेजबान उपयुक्त है, खतरा उत्पन्न होने पर कदम उठाने में सक्षम है, विभिन्न जटिल परिस्थितियों को संभालने में सक्षम है और खासकर भाई-बहनों की सुरक्षा के लिए उत्पन्न होने वाली किसी भी विशेष परिस्थिति को ठीक से संभाल सकता है, तो वह मेजबान के रूप में मानक पर खरा उतरता है। मेजबान परिवार के रहने के परिवेश के लिए हमारी आवश्यकताएँ बहुत ज्यादा नहीं हैं; सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि वह सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। इस मुद्दे पर विस्तार में जाने की कोई जरूरत नहीं है।
II. निवास स्थान पर परिवेश संबंधी आवश्यकताएँ
अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि मेजबान परिवार के निवास के आस-पास का बाहरी परिवेश सुरक्षित है या नहीं। मेजबान परिवार की परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों या निवास चाहे भाई या बहन का घर हो या किराये का घर, यह विचार करना जरूरी है कि निवास का बाहरी परिवेश सुरक्षित है या नहीं; यह सबसे महत्वपूर्ण बात है। सबसे पहले, अगर इस मेजबान परिवार का परमेश्वर में विश्वास सर्वविदित नहीं हो और जन सुरक्षा ब्यूरो में उसके विश्वास के बारे में कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं हो, तभी यह निवास उपयुक्त है। अगर अतीत में, जब भाई-बहन वहाँ सभा के लिए इकठ्ठा होते थे तो पड़ोसी सरकार को इसकी सूचना दे देते थे, जिससे सरकार को पहले ही पता चल जाता था कि यह परिवार अक्सर अजनबियों के साथ सभा करता है, तो यह स्थान मेजबानी के लिए उपयुक्त नहीं है। अगर घर किराये पर लेने की बात आती है तो ऐसे परिवार का घर किराये पर लेना भी उपयुक्त नहीं है। यह एक पहलू है। इसके अलावा, कुछ स्थानों पर जन सुरक्षा खराब है, जहाँ अक्सर डकैती, हत्या और विभिन्न प्रकार की अन्य घटनाएँ होती रहती हैं। निवासी भी अपेक्षाकृत पेचीदा लोग होते हैं और पुलिस अन्य चीजों के अलावा परिवार के पंजीकरण और आईडी कार्ड की जाँच करने और आपराधिक संदिग्धों के बारे में छानबीन करने के लिए अक्सर वहाँ जाती रहती है। मुझे बताओ, अगर तुम ऐसी जगह पर रहो तो क्या तुम रोका-टोकी से अक्सर परेशान नहीं होगे? (बिल्कुल होंगे।) ऐसी जगहें रहने के लिए भी उपयुक्त नहीं हैं। पुलिस हर कुछ दिनों में दरवाजे पर दस्तक देकर कहती है कि पास में चोरी या हत्या हुई है, तुमसे छानबीन में सहयोग करने को कहती है और लोगों से कहती है कि अगर वे अपराधी को देखें तो तुरंत उसकी रिपोर्ट करें। पुलिस हमेशा सभी तरह के बहाने बनाकर दरवाजे पर दस्तक देती है, मामलों की छानबीन करने का दावा करती है, मगर वास्तव में वह बाहरी लोगों और अजनबियों को ढूँढ रही होती है—ज्यादा सटीकता से कहें तो पुलिस परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को खोज रही होती है। क्या तुम ऐसे मेजबान घर में रहकर किसी भी तरह से सुरक्षित महसूस करोगे? (नहीं।) इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम पूरे दिन तनाव में रहोगे। भले ही बाहर की इन आपराधिक घटनाओं का मेजबान परिवार से कोई लेना-देना न हो, फिर भी तुम सहज महसूस नहीं करोगे। ऐसे परिवेश में रहने से अक्सर तुम्हें लगता है कि तुम्हारी व्यक्तिगत सुरक्षा खतरे में है। कौन जाने कि किसी दिन पुलिस भाई-बहनों को देखकर इन अजनबियों से पूछताछ करना शुरू कर दे और आखिर उन्हें गिरफ्तार कर ले। क्या तुम्हारे हिसाब से यह एक खतरनाक स्थिति नहीं होगी? (हाँ, होगी।) इसके अलावा, ज्यादातर चीनी लोगों में सुरक्षा के बारे में जागरूकता की कमी होती है; जैसे ही वे किसी को दरवाजे पर दस्तक देते हुए सुनते हैं तो दरवाजा खोल देते हैं; वे आम तौर पर अपने दरवाजों पर ताले भी नहीं लगाते, जिससे आसानी से दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। स्वतंत्रता और लोकतंत्र वाले पश्चिमी देशों में निजी आवासों को निजी क्षेत्र माना जाता है। अगर कोई बाहरी व्यक्ति बिना अनुमति के किसी निजी क्षेत्र में प्रवेश करता है तो इसे अवैध माना जाता है और वहाँ रहने वाले लोग पुलिस बुला लेंगे। फिर घुसपैठिए को कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसलिए, अगर कोई अजनबी दस्तक देता है तो तुम्हें दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं है—तुम मना कर सकते हो। यहाँ तक कि अगर किसी ने तुमसे मिलने का समय तय किया है और अगर तुम तैयार नहीं हो या तुमने अपना मन बदल लिया है तो भी तुम्हें दरवाजा खोलने की जरूरत नहीं है; तुम उसके साथ मिलने का समय फिर से तय कर सकते हो। पश्चिमी देशों में लोगों को यह अधिकार है, उनके पास यह कानूनी जागरूकता है। लेकिन चीनी लोगों में इस कानूनी जागरूकता की कमी है। जब भी उन्हें दरवाजे पर दस्तक सुनाई देती है, वे दरवाजा खोलने के लिए दौड़ पड़ते हैं। यह सतर्कता की कमी, अपनी सुरक्षा के बारे में जागरूकता की कमी और संबंधित कानूनों से अनभिज्ञता दर्शाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन एक तानाशाही देश है, जिसमें एक दलीय शासन को कानून से ऊपर रखा गया है और इसकी कानूनी व्यवस्था सिर्फ एक मुखौटा है। बड़ा लाल अजगर चीन में कानून और व्यवस्था की पूरी तरह से अवहेलना करता है, लापरवाही से बुरे कर्म करता है और लोगों के पास कोई मानवाधिकार नहीं है। चीनी लोग मानवाधिकारों पर ध्यान नहीं देते, न ही उनमें अनुशासनात्मक विनियमों का पालन करने और कानून का पालन करने की भावना विकसित हुई है; खास तौर पर, उनमें अपनी सुरक्षा के बारे में जागरूकता की कमी है और ज्यादातर लोग खुद की रक्षा के लिए कानून का उपयोग करना नहीं जानते हैं। इसी वजह से, सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। संक्षेप में, कोई भी ऐसी जगह जहाँ जन सुरक्षा खराब है, जहाँ के निवासियों की पृष्ठभूमि और पहचान पेचीदा है, जहाँ अक्सर निरीक्षण होता रहता है या विभिन्न आपराधिक मामलों की घटनाएँ अक्सर होती रहती हैं, वहाँ लोगों का बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से प्रभावित होना आसान है। ऐसी जगह रहने के लिए उपयुक्त नहीं है। महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के लिए आवास की व्यवस्था करते समय जन सुरक्षा के इस कारक पर विचार करना चाहिए।
अपना कर्तव्य निभा रहे लोगों के रहने का परिवेश सावधानी से चुना जाना चाहिए; चहल-पहल भरे शहरी इलाकों और खतरनाक जगहों से बचना सबसे अच्छा है। हम किन जगहों को चहल-पहल भरे शहरी इलाके कह रहे हैं? इनमें रेलवे, राजमार्ग, चौराहों और बाजारों के आस-पास की जगहें शामिल हैं। खासकर प्रमुख रेलवे लाइनों के किनारे, जहाँ हर दिन अनगिनत ट्रेनें गुजरती हैं और हर गुजरती ट्रेन के साथ आस-पास के घरों की मंजिलें हिलने लगती हैं। ऐसे परिवेश में अपना कर्तव्य निभाते हुए शांति पाना पूरी तरह से नामुमकिन है। इसके अलावा, कुछ लोग जिन्होंने घर से दूर अपना कर्तव्य निभाते हुए सालों बिताए हैं, वे लगातार चिंता में रहते हैं और उनके दिल सबसे अच्छी स्थिति में नहीं होते हैं, जिससे उनके लिए ऐसी जगहों पर रहना और भी कम उपयुक्त हो जाता है। अगर किसी खास काम के लिए शांत परिवेश की आवश्यकता होती है, जैसे रिकॉर्डिंग का काम या पाठ आधारित का काम, तो वहाँ कम से कम कोई शोरगुल नहीं होना चाहिए और सुरक्षा भी सुनिश्चित की जानी चाहिए—यह आदर्श स्थिति होगी। अगर कोई भी जगह पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है तो अपेक्षाकृत सुरक्षित जगह ढूँढनी चाहिए। इस स्थिति में, थोड़ा-बहुत शोरगुल चलेगा और हमें बहुत ऊँची अपेक्षाएँ नहीं रखनी चाहिए; अगर रहने का परिवेश सुरक्षित है तो यह पर्याप्त होगा। इसके अलावा, अगर घर किसी भारी ट्रैफिक वाले इलाके जैसे कि ट्रैफिक लाइट या चौराहे के पास है, तो हर दिन अनगिनत पैदल लोग और गाड़ियाँ पास से गुजरेंगी। ऐसा घर कई राहगीरों की नजर में होता है और वहाँ से गुजरने वाले लोग एक नजर में आसानी से घर के अंदर मौजूद लोगों को देख सकते हैं। खासकर जब रात में लाइट जलती है तो घर के अंदर सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है। क्या तुम कहोगे कि ऐसा घर रहने के लिए तब भी स्वीकार्य है? क्या यह परिवेश उपयुक्त है? (नहीं, यह उपयुक्त नहीं है।) यह वाकई उपयुक्त नहीं है। ऐसी जगह पर रहने वाले लोगों को अक्सर हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है, वे अक्सर देखते हैं कि अजनबी उनकी गतिविधियों को देख रहे हैं। अगर उनकी नजर किसी अजनबी से मिलती है तो वे चौंक जाते हैं, रोज असहज महसूस करते हैं, उन्हें लगातार यही लगता है कि उन पर नजर रखी जा रही है—क्या पता इसके पीछे कोई हो जो चीजों को निर्देशित और नियंत्रित कर रहा हो। क्या तुम्हें लगता है कि ऐसे परिवेश में रहकर कोई शांत महसूस कर सकता है? साथ ही, कुछ घर घटिया गुणवत्ता के होते हैं और उनमें खराब साउंडप्रूफिंग होती है, इसलिए जब जोर से बात करते हैं या अंदर भजन चलाते हैं तो बाहर के लोग सब कुछ सुन सकते हैं। इसके अलावा, कुछ घर समुदाय में सबसे ऊँची जगहों पर स्थित होते हैं, जहाँ न केवल बिजली गिरने का खतरा होता है, बल्कि जब भी भाई-बहन बाहर निकलते हैं तो आस-पास के पड़ोसी भी उन्हें देख सकते हैं। उनके लिए कभी-कभार हवा खाने या ठंडक पाने के लिए खिड़की खोलना भी असुविधाजनक होता है; खिड़कियों के पर्दे खींचकर उन्हें मजबूती से बंद रखना पड़ता है जिससे रोशनी कभी अंदर नहीं आ पाती; बाहर जाकर घूमना-फिरना तो और भी असुविधाजनक होता है। लगातार यह चिंता बनी रहती है कि कहीं बाहरी लोग उन पर नजर तो नहीं रख रहे हैं या उन्हें देख तो नहीं रहे हैं। हालाँकि भाई-बहन एक साथ कहीं आते-जाते नहीं हैं, मगर हर बार जब कोई अंदर आता या बाहर जाता है तो बाहर के लोग साफ-साफ देख सकते हैं। अंत में उन्हें इस बात का ठीक-ठीक अंदाजा हो जाएगा कि इस घर में कितने अजनबी रहते हैं। तुम लोगों का क्या ख्याल है, क्या यहाँ रहकर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है? (नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।) कुछ लोग सोचते हैं, “ज्यादातर समय हम घर के अंदर ही अपना कर्तव्य निभा रहे होते हैं और अगर बाहर जाते भी हैं तो बारी-बारी से जाते हैं, एक साथ बाहर नहीं जाते। इस तरह से करने पर पड़ोसियों को कुछ भी पता नहीं चलेगा।” लेकिन अगर तुम बारी-बारी से बाहर जाते हो और अगर कोई यह देख ले कि तुम अजनबी हो, तो यह परेशानी का कारण बन जाएगा। अनेक अविश्वासी खुद बहुत अच्छा जीवन नहीं जीते, मगर दूसरों के मामलों पर नजर रखने और उनमें ताक-झाँक करने में उन्हें विशेष आनंद आता है। कुछ लोग तुम पर जासूसी करने के लिए दूरबीन का भी इस्तेमाल कर सकते हैं और यह देख सकते हैं कि तुम अंदर क्या कर रहे हो। अगर उन्हें पता चलता है कि विश्वासी इकट्ठा हो रहे हैं तो वे इनाम पाने के लिए सरकार को इसकी सूचना देने दौड़ पड़ते हैं। एक बार ऐसा व्यक्ति जब तुम पर अपनी नजरें गड़ा लेता है, तो क्या यह एक खतरनाक स्थिति नहीं है? (बिल्कुल है।) एक बार जब यह व्यक्ति तुम पर अपनी नजरें गड़ा लेता है, तो क्या इससे कुछ अच्छा हो सकता है? निश्चित रूप से तुम गिरफ्तार हो जाओगे! चाहे कोई भी देश या इलाका हो, दखलंदाजी करने वाले लोगों की कभी कमी नहीं होती। भले ही तुम पर नजर रखने के लिए उन्हें एक पैसा भी न मिले, फिर भी वे ऐसा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं—वे तुम पर नजर रखने के लिए अपनी जेब से पैसे भी खर्च करेंगे और अपने काम में भी देरी होने देंगे। और अगर तुम्हारी रिपोर्ट करने के लिए कोई इनाम है, तो वे ऐसा करने के लिए और भी ज्यादा उत्सुक होंगे। खासकर चीन जैसे तानाशाही शासन में बहुत-से लोग परमेश्वर में विश्वास रखने वालों की निगरानी करते हैं। क्योंकि वे सत्य से विमुख हैं और परमेश्वर में विश्वास रखने वालों के प्रति घृणा महसूस करते हैं, इसलिए जैसे ही उन्हें पता चलता है कि विश्वासी आपस में बातचीत या सभा कर रहे हैं, वे इसकी रिपोर्ट कर देते हैं। अगर रिपोर्ट करने पर कोई इनाम मिलता है तो उन्हें ऐसा करने में बेहद संतुष्टि मिलती है। क्या इससे कलीसिया आसानी से मुसीबत में नहीं पड़ जाएगी? (हाँ।) अगर तुम्हारे साथ इस तरह से हस्तक्षेप किया जा रहा है, तो क्या इसका कारण यह नहीं है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने नियुक्तियों की व्यवस्था ठीक से नहीं की? अगर महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को रखने का स्थान और परिवेश इसलिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने चीजों पर पूरी तरह से विचार नहीं किया है, तो ऐसे परिणाम सामने आते हैं। अगर किसी के रहने की जगह बहुत ध्यान आकर्षित करती है तो आसानी से गड़बड़ हो सकती है। कुछ गलत होने के बाद अगर तुम्हें एहसास होता है कि यह जगह रहने के लिए उपयुक्त नहीं है, तो पहले ही बहुत देर हो चुकी है। इसलिए, अपना कर्तव्य निभा रहे लोगों के रहने के लिए उपयुक्त स्थान चुनना भी एक मुख्य काम है और गलत चयन आसानी से खतरे का कारण बन सकता है।
III. अगुआ और कार्यकर्ता कार्य-कर्मियों की नियुक्तियों की व्यवस्था कैसे करें?
महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के रहने के परिवेश को लेकर, चाहे वह अंदरूनी परिवेश से संबंधित हो या बाहरी, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सभी पहलुओं पर अच्छी तरह से विचार करना चाहिए। उन्हें अपनी सोच में भोलापन नहीं रखना चाहिए और यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि अगर हम बाहरी दुनिया से बातचीत नहीं करेंगे तो कुछ नहीं होगा। आज का समाज बेहद पेचीदा है, जहाँ सभी तरह के राक्षस रहते हैं; जगह चाहे जो भी हो, हमेशा ऐसे लोग होंगे जो तुम पर नजर रखते हैं और उनकी जाँच-पड़ताल से बचना नामुमकिन होता है। तुम सोच सकते हो, “मैंने परमेश्वर में विश्वास रखकर कोई कानून नहीं तोड़ा है या कोई गलत काम नहीं किया है। मैं बस अपना कर्तव्य निभा रहा हूँ; मेरे साथ कुछ नहीं होना चाहिए, है ना?” मगर तथ्य उतने सरल नहीं हैं जितनी तुम कल्पना करते हो। सीसीपी परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसकी कलीसिया को दबाने के लिए इतना अधिक जनबल और संसाधन क्यों खर्च करती है? क्या तुम इसे समझ सकते हो? तुम यह कभी नहीं समझ पाओगे। तुम शैतानों और राक्षसों की प्रकृति की असलियत को कितना समझते हो? तुम राक्षसों और शैतानों के बारे में बहुत कम समझते हो। यह समाज बहुत पेचीदा है; राक्षस और शैतान ऐसे दुष्ट हैं जो बुरे कर्म करते हैं। उनका मुख्य मकसद परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गिरफ्तार करना और कलीसिया के कार्य में बाधा डालना है। अगर तुम हमेशा शैतानों को बस साधारण लोगों की तरह देखते हो, तो तुम वाकई अज्ञानी हो; यह दर्शाता है कि तुमने इस समाज की बुराई की असलियत को नहीं समझा है और निश्चित रूप से तुमने राक्षसों और शैतानों की नफरत की असलियत को नहीं देखा है। इसलिए, कलीसिया का कार्य सही ढंग से करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं उनकी सुरक्षा हो—यह सबसे महत्वपूर्ण है। तानाशाही शासन वाले देश में जहाँ विश्वास की कोई स्वतंत्रता नहीं है, कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना काफी मुश्किल होता है। लेकिन चाहे यह कितना भी मुश्किल क्यों न हो, रहने के लिए उपयुक्त स्थान का सावधानी से चयन करना चाहिए; इस संबंध में कोई चूक नहीं होनी चाहिए। परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं में इन बातों पर संगति को शामिल किया गया है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भाई-बहन बिना किसी बाधा के या बिना बाहरी दुनिया की दखलंदाजी के अपना कर्तव्य निभा सकें—अगर वे अपना दिल लगाकर काम करें तो वे इसे पूरा कर सकते हैं। समस्या केवल तब होती है जब वे लापरवाही से और गैर-जिम्मेदारी से काम करते हैं, केवल अपनी सुरक्षा का ध्यान रखते हैं और भाई-बहनों की सुरक्षा को अनदेखा करते हैं। इससे कलीसिया का कार्य सही तरीके से होना संभव नहीं हो पाता है। अगर तुम्हारी चूक, गंभीरता की कमी, गैर-जिम्मेदारी की वजह से, या परिवेश और समस्या के डर के कारण तुम ये चीजें नहीं कर पाते हो और इस वजह से महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले कर्मियों को गिरफ्तार कर लिया जाता है और भाई-बहनों के जीवन को खतरा होता है—जिससे कलीसिया के कार्य में देरी होती है और भाई-बहनों को नुकसान पहुँचता है—तो अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। यह जिम्मेदारी केवल हर्जाने के कुछ पैसे देकर या प्रार्थना में अपनी गलती स्वीकार करके पूरी नहीं की जा सकती; यह इतना सरल नहीं है। तो इस मामले की प्रकृति क्या है? यह एक कलंक है जो नहीं मिट सकता, ऐसा पाप है जो हमेशा साथ रहेगा—यह तुम्हारा “दोष” है। यह “दोष” केवल एक साधारण गलती को नहीं दर्शाता है; परमेश्वर की नजरों में यह एक अपराध है। अगर तुम्हारे अपराध बहुत अधिक हैं—तुमने पहले भी अपराध किए, आज भी अपराध कर रहे हो और भविष्य में भी करते रहोगे—तो कई बड़े अपराधों के जुड़ जाने से तुम्हें बर्बादी और विनाश झेलना पड़ेगा। परमेश्वर अब तुम्हें नहीं बचाएगा और परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास व्यर्थ चला जाएगा। न सिर्फ तुम्हारे पास उद्धार की कोई आशा नहीं होगी, बल्कि तुम्हें दंड भी भुगतना होगा। इसलिए, यह जरूरी है कि अगुआ और कार्यकर्ता सिद्धांतों के अनुसार काम करें! क्या तुमने इसे याद कर लिया? (हाँ।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी चाहिए और परिवेश चाहे कितना भी प्रतिकूल या खतरनाक क्यों न हो, उन्हें स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके लिए उचित नियुक्तियों की व्यवस्था करने की हर संभव कोशिश करनी चाहिए। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि कलीसिया का कार्य सामान्य रूप से आगे बढ़ सके।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की यह सुनिश्चित करने में मदद करने के लिए कि महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के लिए व्यवस्थित स्थान बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से मुक्त हों, निवास और उसके परिवेश संबंधी अपेक्षाओं और सिद्धांतों के अलावा, मेजबान परिवार की परिस्थिति के विभिन्न पहलुओं के लिए भी अपेक्षाएँ और सिद्धांत मौजूद हैं। जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कोई संभावित मेजबान परिवार मिलता है, तो उन्हें सबसे पहले इन चीजों के बारे में पूछना चाहिए कि परिवार का माहौल और परिस्थितियाँ कैसी हैं, उसके सदस्यों की स्थिति कैसी है, क्या उनका दूसरों के साथ कोई विवाद है, कोई दुश्मनी है, सरकार के साथ कोई तकरार है, क्या वे अक्सर मुकदमों में शामिल होते हैं, क्या उनके सामाजिक संबंध जटिल हैं, वगैरह। इन सभी बुनियादी स्थितियों के बारे में अच्छी तरह से पूछताछ की जानी चाहिए और उनके बारे में पता लगाया जाना चाहिए। अगर मेजबान या उनके बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों के सामाजिक संबंध पेचीदा हैं और परिवार में लगातार अशांति बनी रहती है—अक्सर संदिग्ध व्यक्तियों का आना-जाना लगा रहता है जो मुसीबत खड़ी करने या कर्ज वसूलने आते हैं या फिर डाकुओं या लुटेरों से धमकी भरी चिट्ठियाँ मिलती रहती हैं, साथ ही सरकार या अदालत से बुलावा आता रहता है—तो ये सभी काफी परेशानी वाले मामले हैं। अगर तुम इस घर में सभा कर रहे होते या अपना कर्तव्य निभा रहे होते, तो क्या ये चीजें बाधाएँ नहीं डालतीं? इसलिए, जब भी कोई मेजबान परिवार मिले, तो सबसे पहले तुम्हें सवाल पूछने चाहिए और उनकी बुनियादी स्थिति के बारे में जानना चाहिए। इन समस्याओं का मौजूद नहीं होना ही सबसे अच्छा होगा, लेकिन अगर वे मौजूद हैं और तुम्हें अभी कोई ज्यादा उपयुक्त स्थान नहीं मिल पा रहा है, तो इस बार पर विचार करो कि क्या मेजबान इन समस्याओं से प्रभावी ढंग से निपट सकता है या नहीं। अगर मेजबान इनसे प्रभावी ढंग से नहीं निपट सकता है और इन अराजक समस्याओं से छुटकारा नहीं पा सकता है, तो यह घर भाई-बहनों की मेजबानी के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि यहाँ रहने का मतलब होगा कि वे किसी भी समय बाहरी दुनिया और बाहरी लोगों, घटनाओं और चीजों के हस्तक्षेप से पीड़ित हो सकते हैं। ये परिवेश सीधे उन लोगों को निशाना नहीं बनाते जो परमेश्वर में विश्वास रखते हैं—लेकिन, विश्वासी एक ऐसे देश में विशेष रूप से संवेदनशील समूह हैं जहाँ धर्म को सताया जाता है; इसके अलावा, सरकार के दुष्प्रचार करने, बुद्धि भ्रष्ट करने, अफवाहें गढ़ने और बदनाम करने के अथक प्रयासों के बाद, अविश्वासी न केवल परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को समझ नहीं पाते, बल्कि यहाँ तक कि सीसीपी की बयानबाजी पर भी विश्वास करने लगते हैं, जिससे विश्वासियों के प्रति एक विशेष घृणा और शत्रुता विकसित हो जाती है। इसलिए, अगर उन्हें पता चलता है कि किसी घर में विश्वासियों की मेजबानी हो रही है, तो यह मेजबान परिवार और भाई-बहनों, दोनों के लिए बहुत खतरनाक हो जाता है। जब भाई-बहन ऐसे परिवेश में रहते हैं, तो न केवल उन्हें अक्सर हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है बल्कि उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित नहीं की जा सकती। तो फिर उन्हें वहाँ क्यों रहने दिया जाए? साफ तौर पर यह खतरनाक जगह है, रहने के लिए उपयुक्त नहीं है—उन्हें फौरन कहीं और भेज देना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भाई-बहनों के लिए नियुक्तियों की व्यवस्था करने के बाद बस यह सोचते हुए मामले से अपना पल्ला नहीं झाड़ लेना चाहिए, “जब तक उनके पास खाने और सोने की जगह है और खराब मौसम से सुरक्षित हैं, तब तक सब ठीक है। जब तक वे अपना कर्तव्य निभा सकते हैं, तब तक कोई दिक्कत नहीं है। वैसे भी हमें इतने सारे उपयुक्त स्थान कहाँ मिलेंगे?” यह बहुत गैर-जिम्मेदाराना है! अगर उस समय कोई उपयुक्त स्थान उपलब्ध नहीं है तो वे वहाँ कुछ समय के लिए रह सकते हैं, मगर तुम्हें जल्द से जल्द उन्हें कहीं और भेजने के लिए तुरंत एक उपयुक्त स्थान खोजना चाहिए; इसे स्थायी निवास मत समझो।
कुछ अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के लिए किसी खास जगह पर नियुक्तियों की व्यवस्था करते हैं, पूछते हैं कि भोजन और आराम की व्यवस्थाएँ कैसी हैं और कहीं कोई अविश्वासी उन पर नजर तो नहीं रख रहा है। यह सुनकर कि कुछ दिनों से कुछ भी असामान्य नहीं देखा गया है, वे मामले के बारे में भूल जाते हैं, आधे साल या उससे भी ज्यादा समय तक उनका हाल-चाल नहीं पूछते। उन्हें लगता है कि उन्होंने अच्छी तरह से नियुक्तियों की व्यवस्था करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है, वे मान लेते हैं कि सब कुछ ठीक चल रहा है। जहाँ तक इस बात का सवाल है कि क्या आगे चलकर उस परिवेश में कोई हस्तक्षेप हो सकता है या कोई संभावित सुरक्षा जोखिम हो सकता है, वे इस पर और ध्यान नहीं देते। क्या यह उचित है? (नहीं।) यह उचित क्यों नहीं है? (नियुक्तियों की व्यवस्था करने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनकी खोज-खबर लेते रहना जरूरी होता है। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं और भाई-बहन खुद को किसी खतरनाक स्थिति में पाते हैं और अपनी जगह नहीं बदल पाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।) मगर कुछ अगुआ और कार्यकर्ता सोचते हैं, “तुम सभी लोग वयस्क हो—क्या मुझे वाकई खोज-खबर लेने की जरूरत है? क्या तुम नहीं देख सकते कि वहाँ कोई खतरा है या नहीं? अगर तुम इतना भी नहीं कर सकते तो तुम्हारा दिमाग काम नहीं कर रहा होगा! अगर तुम्हें कोई खतरा दिखे तो खुद ही कहीं और चले जाओ—क्या मुझे वाकई तुम्हें यह बताने की जरूरत है?” वे इस तरह से तर्क देते हैं। क्या तुम लोगों को लगता है कि इस तर्क का कोई अर्थ है? (नहीं है।) क्यों नहीं? (क्योंकि महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना स्वाभाविक रूप से अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है; यह उनकी भूमिका में शामिल कार्य है जिसे उन्हें पूरा करना चाहिए।) वे इसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्य के रूप में नहीं देखते हैं; उन्हें लगता है कि यह बस भाई-बहनों की मदद करना है, वैसे ही जैसे अच्छे कर्म करने के लेई फेंग वाले उदाहरण को मानना। वे इसे कलीसिया के कार्य को कायम रखने के लिए किए जाने वाले कार्य के रूप में भी नहीं देखते, बल्कि इसे कलीसिया के कार्य से असंबंधित, केवल कर्मियों के लिए नियुक्तियों की व्यवस्था के रूप में देखते हैं। क्या तुम इसे बेवकूफी नहीं कहोगे? किस प्रकार का व्यक्ति इस तरह से सोचेगा? (जिसके पास जिम्मेदारी की कोई भावना नहीं है।) वे आलसी, विश्वासघाती, गैर-जिम्मेदार झूठे अगुआ इसी तरह से सोचते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य को कायम नहीं रखते; भाई-बहनों के लिए जगह की व्यवस्था करने के बाद, वे सोचते हैं : “मैंने तुम लोगों के लिए इतनी अच्छी जगह पर नियुक्ति की व्यवस्था की है—मैंने तुम लोगों पर इतना बड़ा एहसान किया है!” वे इसे कलीसिया के कार्य को कायम रखने के रूप में नहीं देखते हैं। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के रूप में, अगर तुम महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के लिए नियुक्तियों की उचित व्यवस्था नहीं करते हो और उनकी सुरक्षा को प्रभावी ढंग से सुनिश्चित नहीं करते हो तो उनके किसी खतरे का सामना करने और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य नहीं निभा सकने पर, क्या कलीसिया के कार्य में देरी नहीं होगी? तुम्हें सबसे पहले उनके लिए नियुक्तियों की उचित व्यवस्था करनी चाहिए ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके; उसके बाद ही वे सामान्य रूप से काम करना शुरू कर सकते हैं। मगर वे झूठे अगुआ इस तरह से नहीं सोचते हैं; वे इन लोगों को किसी जगह पर छोड़कर उन्हें अनदेखा कर देते हैं और लंबे समय तक उनका हाल-चाल नहीं पूछते हैं। जब कोई खतरनाक स्थिति उत्पन्न होती है और वे अपने अगुआ तक नहीं पहुँच पाते हैं तो उनके पास खुद कहीं और चले जाने के अलावा कोई और चारा नहीं होता है। जब तक उनके अगुआ को पता चलता है और वह आखिरकार जाँच करने जाता है, तब तक लोग बहुत पहले ही जा चुके होते हैं और अगुआ को पता भी नहीं होता कि वे कहाँ चले गए। वे किस तरह के व्यक्ति हैं? वे किस तरह के अगुआ या कार्यकर्ता हैं? वे झूठे अगुआ हैं। खास तौर पर उन भाई-बहनों के लिए जो दूसरे इलाकों से आए हैं और स्थानीय परिवेश से अनजान हैं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को नियमित रूप से उनसे मिलना और उनकी खोज-खबर लेते रहना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह नहीं मानना चाहिए कि उनके लिए एक बार कोई जगह तय कर देने से सब कुछ हमेशा के लिए हल हो जाएगा; असल में, यह काम अभी पूरा नहीं हुआ है। उन्हें अक्सर उनसे मिलने और उनकी खोज-खबर लेने की जरूरत है। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए वहाँ जाकर उनसे मिलना असुविधाजनक है, तो उन्हें दूसरों को जाँच करने के लिए नियुक्त करना चाहिए। कम से कम, उन्हें इस काम की खोज-खबर तो लेनी ही चाहिए—इन महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के रहने के परिवेश का आकलन करना और यह जाँच करना कि क्या कोई खतरा या कुछ असामान्य तो नहीं है, या क्या कोई विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं और क्या कहीं और जाने की जरूरत है। इन सभी के बारे में पता लगाया जाना चाहिए और खोज-खबर लेते रहना चाहिए। अगर हाल-फिलहाल के लिए यह जगह सबसे उपयुक्त लगती है तो ठीक है, मगर कुछ समय बाद, उनके परिवेश और सुरक्षा की जाँच करने और यह जानने के लिए कि क्या उनके पास पर्याप्त भोजन और आपूर्ति है, उन्हें फिर जाना चाहिए—इन सबके बारे में पूछताछ करनी चाहिए। ऐसा हो सकता है कि अगुआ और कार्यकर्ता महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के काम को न समझें, ऐसी स्थिति में उन्हें उस पहलू में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, मगर उनके लिए उचित तरीके से नियुक्तियों की व्यवस्था करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है—ऐसा नहीं करना उनकी जिम्मेदारी का उल्लंघन है और यह दर्शाता है कि वे झूठे अगुआ हैं जो वास्तविक काम नहीं करते। खासकर अन्य इलाकों से आने वाले भाई-बहनों पर अधिक और करीब से ध्यान देने की जरूरत होती है और उनके साथ लापरवाही से पेश नहीं आना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समय-समय पर उनसे बात करनी चाहिए, यह देखना चाहिए कि क्या उन्हें कोई कठिनाई तो नहीं है जिसका समाधान करने की जरूरत है; इस दौरान जिस परिवेश में वे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं उसमें कोई समस्या या विशेष परिस्थितियाँ तो नहीं उत्पन्न हुई हैं; उदाहरण के लिए, क्या स्थानीय सरकार, मोहल्ला समिति या पुलिस थाने से जुड़ी कोई असामान्य गतिविधि हुई है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन चीजों के बारे में पूछना चाहिए ताकि वे अच्छी तरह से जागरूक रह सकें। फिर, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने कर्तव्य निभाने वालों की उचित तरीके से मेजबानी करने और उनकी सुरक्षा करने के सिद्धांतों और अभ्यास के मार्गों पर मेजबान परिवार के साथ संगति करनी चाहिए ताकि मेजबान परिवार इन सिद्धांतों और अभ्यास के मार्गों को पूरी तरह से समझ सके। बात यहीं खत्म नहीं होती है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समय-समय पर मेजबान परिवार से मिलना चाहिए और उनकी स्थिति के बारे में पूछताछ करनी चाहिए। उन्हें जो भी समस्याएँ पता चलती हैं, उनका तुरंत समाधान किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आगे कोई समस्या उत्पन्न नहीं होगी। तभी कोई काम वास्तव में अच्छी तरह से पूरा होता है। अगर मेजबान को मेजबानी करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि वित्तीय परेशानियाँ या बुद्धिमानी की कमी, जिससे वह उत्पन्न होने वाली स्थितियों का जवाब देने या उनसे निपटने में असमर्थ है, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन मुद्दों को हल करने में मदद करनी चाहिए। वित्तीय परेशानियों को हल करना आसान है—परमेश्वर का घर मेजबानी के लिए धन मुहैया करा सकता है, जबकि मेजबान परिवार को केवल जनबल का योगदान करने की जरूरत है। अगर मेजबान में बुद्धिमत्ता की कमी है, तो यह बड़ी समस्या है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस बारे में आवश्यक बुद्धिमत्ता और अभ्यास के कुछ सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से समझाना चाहिए। अगर मेजबान में अभी भी कमी रह जाती है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य को अच्छी तरह से करने में मेजबान परिवार के साथ सहयोग करने के लिए आस-पास मौजूद किसी बुद्धिमान भाई या बहन को तलाशना चाहिए। अगर समस्या मेजबान में ही है—जैसे कि डरपोक होना या गिरफ्तारी से डरना—तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समर्थन और मदद देने के लिए सत्य पर और परमेश्वर के इरादों के साथ-साथ इस कर्तव्य को करने के मूल्य और महत्व पर संगति करनी चाहिए। अगर उस परिवेश में ही कोई समस्या है तो इसमें देरी नहीं करनी चाहिए या इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए और निश्चित रूप से इसे लापरवाही से नहीं लेना चाहिए; इसे तुरंत हल किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर लोगों की नजर पहले ही इस स्थान पर पड़ चुकी है, संदिग्ध अजनबी अक्सर इस इलाके में आते-जाते रहते हैं और यह मुमकिन है कि कोई व्यक्ति इस जगह की निगरानी कर रहा है, तो यह एक छिपा हुआ खतरा है। इसलिए, भाई-बहनों को तुरंत कहीं और भेज दो—कुछ गलत होने का इंतजार करते रहने पर बहुत देर हो जाएगी। अगर यह स्थिति अस्थायी है और यह सिर्फ एक सामान्य, नियमित प्रक्रिया है तो इससे अभी भी किसी तरह से निपटा जा सकता है : भाई-बहनों को एक या दो दिनों के लिए कहीं और भेज दो और फिर बाद में वे वापस आ सकते हैं। अगर लोगों की नजर पहले ही पड़ चुकी है तो वहाँ रहने का अब कोई सवाल ही नहीं उठता और किसी दूसरी स्थायी जगह पर जाना जरूरी है। ये कुछ ऐसी विस्तृत समस्याएँ हैं जिन्हें अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य में संभालने और हल करने की आवश्यकता है। यह काम किसी भी तरह से कुछ लोगों को भोजन और आश्रय की सुविधा के साथ किसी स्थान पर रखकर पल्ला झाड़ लेने का नहीं है; इसमें कई बारीकियाँ शामिल हैं। खासकर चीन जैसे देश में, जहाँ का परिवेश बेहद प्रतिकूल है और धार्मिक उत्पीड़न गंभीर है, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को और भी ज्यादा चौकस रहना चाहिए; महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के रहने के परिवेश और सुरक्षा के मुद्दों पर बारीकी से ध्यान देना चाहिए। वे लापरवाह नहीं हो सकते। विशिष्ट कार्य के सभी पहलुओं को अच्छी तरह से पूरा किया जाना चाहिए ताकि महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और वे शांत मन से अपना कर्तव्य निभा सकें। इस तरह करने से काम अच्छे से पूरा होगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मेजबान परिवारों के संबंध में यही कार्य करना चाहिए और इसमें काफी बारीकियाँ शामिल हैं।
कुछ अगुआ और कार्यकर्ता, कुछ महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को उपयुक्त मेजबान घरों में रखने की व्यवस्था करने के बाद उन्हें पूरी तरह से अनदेखा कर देते हैं और मेजबान परिवारों की स्थिति की लगातार खोज-खबर नहीं रखते। वे कहते हैं, “मैं रोज कलीसिया के काम में व्यस्त रहता हूँ—मेरे पास इन लोगों से मिलने का समय कहाँ से होगा? इसके अलावा, बहुत सारे अन्य काम हैं और यह काफी खतरनाक भी है। हमारा काम आसान नहीं है!” वे लगातार वस्तुनिष्ठ कारणों पर जोर देते हैं, फिर भी अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं करना चाहते। तुम लोगों का क्या ख्याल है—क्या उनकी यह बात उचित है? (नहीं।) क्यों नहीं? (वास्तव में, यह काम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बहुत ज्यादा समय और ऊर्जा खपाने की जरूरत नहीं होती है। वे बाहर चलते-फिरते उनसे मिल सकते हैं। और अगर उनके पास समय नहीं है तो वे आस-पास के भाई-बहनों को भी जाकर देखने के लिए कह सकते हैं।) अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस कार्य को अच्छी तरह से करना चाहते हैं, तो भले ही उनका अपना प्राथमिक कार्य उन्हें थोड़ा व्यस्त रखता हो, फिर भी वे इस कार्य पर ध्यान देने के लिए समय निकाल ही लेंगे। अगर उनके पास खुद जाने का समय नहीं है तो वे दूसरों के जाने की व्यवस्था कर सकते हैं। चाहे वे दूसरों के लिए व्यवस्था करें या खुद जाएँ, आखिरकार यह कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी के दायरे में आता है। इस कार्य को अच्छी तरह से करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। अगर अगुआ और कार्यकर्ता बहुत व्यस्त हैं, उनके पास खुद समय नहीं है और वे दूसरों के जाने की व्यवस्था भी नहीं करते हैं तो कोई भी इस मामले पर ध्यान नहीं देगा। ऐसे में, अगर कुछ गलत होता है तो यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की ओर से जिम्मेदारी की उपेक्षा होगी। महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले लोगों को बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से पीड़ित होने से बचाने के लिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मुद्दों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए, यथासंभव यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे अपने कर्तव्यों को शांति से पूरा कर सकें और मौजूदा कार्य को व्यवस्थित ढंग से कर सकें। अगर महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की अच्छी तरह से सुरक्षा की जाती है, तो यह महत्वपूर्ण कार्य की सुरक्षा के बराबर है। जब महत्वपूर्ण कार्य-कर्मी सामान्य रूप से काम कर सकेंगे, तो महत्वपूर्ण कार्य भी व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ सकेगा। इसलिए, महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा करने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं का मकसद वास्तव में कार्य की हर महत्वपूर्ण मद की सुरक्षा करना है। अगर कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “तुम एक महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रहे हो और मुझे तुम्हारी सुरक्षा करने को कहा जा रहा है, मगर मैं एक अगुआ हूँ और मैं भी सुरक्षित नहीं हूँ। मैं अपनी ही सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता तो फिर तुम लोगों की रक्षा कैसे करूँगा?”—क्या यह कहना सही है? (यह सही नहीं है।) ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की समझ किस तरह की है? (उनकी समझ खराब है; ऐसे लोग स्वार्थी और विकृतियों से ग्रस्त हैं।) वे ऐसे व्यक्ति हैं जो विकृतियों से ग्रस्त हैं। क्या विकृतियों से ग्रस्त व्यक्तियों में तर्कसंगतता की कमी होती है? (हाँ, होती है।) अगर ये भाई-बहन परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाने के बजाय नौकरी कर रहे होते और दुनिया में अपना जीवन जी रहे होते, तो क्या उन्हें अभी भी सुरक्षा की जरूरत होती? महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को ठीक इसलिए अच्छी तरह से सुरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि वे कलीसिया का कार्य कर रहे हैं और परमेश्वर के घर में महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रहे हैं, और क्योंकि अगर वे गिरफ्तार होते हैं तो उन्हें जेल की सजा हो सकती हैं या उन्हें पीट-पीटकर नकारा या अपाहिज बनाया जा सकता है जिससे कलीसिया के काम पर गंभीर असर पड़ सकता है। केवल इसी तरह से कलीसिया का कार्य व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ सकता है। अगर वे किसी लोकतांत्रिक देश में हैं जहाँ धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता है और परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को सताया नहीं जाता है, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह काम सरल हो जाता है। उन्हें मूल रूप से बस एक उपयुक्त घर खोजना होगा; स्थानीय कानूनों और विनियमों के अनुसार, अपना कर्तव्य निभाने वालों के लिए उचित रूप से नियुक्तियों की व्यवस्था करनी होगी। ज्यादा से ज्यादा, उन्हें बस यह पूछना होगा कि हाल-फिलहाल में उनके दैनिक जीवन में क्या कुछ चल रहा है और क्या उनके रहने का परिवेश किसी सरकारी विनियम का उल्लंघन तो नहीं करता है। अगर कोई उल्लंघन करता है तो यह स्पष्ट करना जरूरी है कि समस्या क्या है, साथ ही इसे कैसे ठीक किया जाना चाहिए और कैसे हल किया जाना चाहिए। अगर कोई उल्लंघन नहीं करता है, बल्कि सरकार ही परेशानी पैदा कर रही है, बुरे लोग या अनजान व्यक्ति उत्पीड़न कर रहे हैं, तो इन मामलों को ठीक से संभालने के लिए वकील से परामर्श करना जरूरी हो जाता है। कुछ स्वतंत्र, लोकतांत्रिक देशों में, ज्यादा से ज्यादा केवल इस तरह के काम की जरूरत होती है। लेकिन तानाशाही देशों में, जहाँ धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता नहीं है, वहाँ मेजबान परिवारों के परिवेश और स्थितियों से संबंधित आवश्यकताएँ ज्यादा सख्त—और ज्यादा विस्तृत—होनी चाहिए; साथ ही, सुरक्षा के मामले में ज्यादा काम किया जाना चाहिए। बेशक, ऐसे काम में कठिनाई भी ज्यादा है। महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाने के काम के लिए, अगर परिवेश के हर पहलू पर अच्छी तरह से विचार किया जाए तो उस परिवेश से होने वाले हस्तक्षेप काफी हद तक कम हो जाएँगे। अगर बाहरी परिवेश और अंदरूनी परिवेश दोनों पर पूरी तरह से ध्यान दिया जाए तो एक यथार्थवादी और व्यवहारिक रास्ता मिल सकता है। इस तरह से परिवेश को कुछ हद तक बेहतर बनाया जा सकता है और हस्तक्षेप को कम किया जा सकता है। यह नजरिया अपेक्षाकृत उपयुक्त है।
महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को सुरक्षित रखना
I. आस्था पर अत्याचार करने वाले देशों में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करें
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की पंद्रहवीं जिम्मेदारी, सबसे पहले महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से बचाकर उनकी सुरक्षा करना है; इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन लोगों को सुरक्षित भी रखना चाहिए। उन्हें सुरक्षित रखने की अपेक्षाएँ और भी सख्त हैं। आओ पहले यह देखें कि सुरक्षा से जुड़े कौन से पहलू हैं—तुम लोग सुरक्षा से जुड़ी किन समस्याओं के बारे में सोच सकते हो? महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, सबसे पहले इस बात की गारंटी होना जरूरी है कि वे बाहरी दुनिया के हस्तक्षेप से प्रभावित न हों—कम से कम इसे हासिल किया जाना चाहिए और केवल इसी आधार पर आखिरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। यहाँ हम जिस सुरक्षा की बात कर रहे हैं, उसका सीधा-सा मतलब यह पक्का करने में सक्षम होना है कि अपना कर्तव्य निभाने वाले लोगों को परेशान या गिरफ्तार न किया जाए और वे अपने कर्तव्यों को सामान्य रूप से कर सकें। यह इतना ही सरल है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस बात की गारंटी नहीं ले सकते कि अपना कर्तव्य निभाने वाले लोगों को हस्तक्षेप और गिरफ्तारी से बचाया जाएगा, तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का कोई और तरीका नहीं है। जरा सोचो—महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को किस बात पर ध्यान देना चाहिए? सबसे पहले, उन्हें महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को उपयुक्त स्थान पर रखने की व्यवस्था करनी चाहिए। उपयुक्त स्थान का क्या मतलब है? इसके लिए कम से कम दो शर्तें पूरी होनी चाहिए। पहली, यह स्थान परिवेश से होने वाले किसी भी हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए। दूसरी, इससे लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं होना चाहिए; केवल कुछ ही स्थानीय भाई-बहनों को पता हो कि यह परिवार परमेश्वर में विश्वास रखता है और दूसरों की मेजबानी करता है, जबकि किसी और को इसकी भनक नहीं होनी चाहिए। केवल ऐसी जगह ही महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की मेजबानी लिए उपयुक्त है। इन महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के आने के बाद, हर एक व्यक्ति का नाम और मूल स्थान जैसी व्यक्तिगत जानकारी, साथ ही विशिष्ट परिस्थितियाँ जैसे कि वे कलीसिया में किस तरह के काम में लगे हैं और क्या वे पहले गिरफ्तार किए जा चुके हैं या सरकार द्वारा वांछित हैं, यह सब लापरवाही से दूसरों को नहीं बताया जाना चाहिए। जितने कम लोग जानेंगे, उतना ही बेहतर होगा। क्योंकि लोगों का आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और अगर उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया तो यह निश्चित नहीं है कि वे दृढ़ रह पाएँगे, इसलिए उनमें आत्म-जागरूकता होनी चाहिए और उन्हें भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी के बारे में लापरवाही से पूछताछ नहीं करना चाहिए, ताकि भविष्य में वे खुद पर मुसीबत न लाएँ। इस संबंध में सिद्धांतों और बुद्धिमत्ता के बारे में अक्सर संगति की जानी चाहिए ताकि हर कोई उन्हें समझ सके। यह न केवल परमेश्वर के घर के काम के लिए बल्कि हर एक व्यक्ति के लिए भी फायदेमंद है। इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मेजबान परिवारों के भाई-बहनों को निर्देश देना चाहिए कि वे अपनी जबान पर लगाम लगाएँ और महत्वपूर्ण कर्तव्य करने वाले लोगों की व्यक्तिगत जानकारी अन्य भाई-बहनों को या अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों को न दें। क्या यह काम करना जरूरी है? (बिल्कुल जरूरी है।) मेजबान परिवारों के कुछ भाई-बहन अपनी जबान पर लगाम नहीं लगा पाते हैं। उदाहरण के लिए, किसी ने कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मेजबानी की थी और वह इन लोगों की व्यक्तिगत परिस्थितियों, पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनके द्वारा निभाए जा रहे कर्तव्यों से परिचित हो गया। फिर उसने अपने बच्चों से कहा, “देखो, वह तुम्हारी ही उम्र का है। वह दस साल से परमेश्वर पर विश्वास रख रहा है और अपना कर्तव्य निभाने के लिए उसने अपनी नौकरी तक छोड़ दी। वह फलाँ शहर में एक सरकारी विभाग में काम करता था, जहाँ उसकी सालाना आय दसियों हजार युआन थी!” देखा तुमने, खाली बैठे गपशप करते हुए उसने अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के सामने महत्वपूर्ण कर्तव्य करने वाले इन लोगों की स्थिति का खुलासा कर दिया। यहाँ तक कि कुछ ऐसे लोग भी हैं जो पहले गिरफ्तार करके जेल में बंद किए गए भाई-बहनों की मेजबानी करते समय अपने परिवार के सदस्यों से कहते हैं, “देखो, वे बरसों तक जेल में रहकर भी कभी यहूदा नहीं बने। रिहा होने के बाद भी वे अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। अब सरकार उन्हें फिर से गिरफ्तार करना चाहती है, इसलिए वे अपने परिवारों से मिलने घर नहीं लौट सकते, फिर भी वे नकारात्मक नहीं हैं। देखो उनकी आस्था कितनी महान है? तुम सही तरीके से विश्वास क्यों नहीं रख सकते?” इस तरह, वे अपने बच्चों को निर्देश देने के चक्कर में भाई-बहनों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा कर देते हैं। क्या इससे भविष्य में परेशानी हो सकती है? (हाँ।) क्या यह एक समस्या है? (हाँ, यह समस्या है।) अगर इसके कारण कुछ नहीं होता तो ठीक है; मगर जैसे ही बड़ा लाल अजगर गिरफ्तारियाँ करने लगता है, उनके परिवार के अविश्वासी सदस्य सबसे पहले सामने आकर भाई-बहनों की रिपोर्ट कर देते हैं : “ऑफिसर! फलाँ व्यक्ति अगुआ है—आप उसी की तलाश कर रहे हैं।” फिर जिस व्यक्ति के साथ विश्वासघात हुआ है उसे बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार करके पीट-पीटकर अधमरा कर दिया जाता है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या वह अपना कर्तव्य निभाना जारी रख पाएगा या सामान्य जीवन जी पाएगा। यह विश्वासघात का परिणाम है। क्या यह मेजबान की लापरवाही से बात करने के कारण नहीं हुआ है? (हाँ, हुआ है।) अगर महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को ऐसे सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ता है तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने अपना काम अच्छी तरह से नहीं किया है? (बिल्कुल।) मेजबान सोचता है, “मेरे परिवार के सभी सदस्य अच्छे लोग हैं; वे तुम्हें धोखा नहीं देंगे। वे परमेश्वर में विश्वास का समर्थन करते हैं—जब तुम लोग आते हो तो वे सब्जियाँ और माँस भी खरीदते हैं!” वे अपने परिवार के अविश्वासी सदस्यों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे वे भाई-बहन हों, वे यह साफ तौर पर नहीं देख पाते कि उनका परिवार क्या करने में सक्षम है या अगर वे भाई-बहनों को धोखा देते हैं तो इसके कितने गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वे भाई-बहनों की स्थितियों के बारे में भी बहुत जिज्ञासु होते हैं और पूछते हैं, “तुम कितने सालों से यह कर्तव्य निभा रहे हो? क्या तुमने कभी कोई खतरनाक कर्तव्य किया है? क्या तुम स्थानीय स्तर पर परमेश्वर के विश्वासी के रूप में जाने जाते हो? क्या तुम्हें कभी गिरफ्तार किया गया है?” खासकर जब उन लोगों की बात आती है जो सरकार द्वारा वांछित हैं या जिनका परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण पुलिस रिकॉर्ड में नाम दर्ज है और वे किसी दूसरे इलाके या देश में सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं, तो मेजबान हमेशा उनकी जानकारी के बारे में इस तरह पूछताछ करते हैं, “तुम वांछित हो? क्या यह स्थानीय वारंट है, प्रांतीय वारंट है या फिर राष्ट्रीय वारंट है?” “तुम्हारा नाम पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है—तुम्हें कितनी बार गिरफ्तार किया गया है? तुम्हें कितने सालों के लिए जेल की सजा हुई थी?” वे इन मामलों के बारे में बहुत विस्तार से पूछते हैं। उनके घर में रहने वाले भाई-बहन देखते हैं कि वे मेजबानी करने में काफी उत्साही हैं और वे बुरे लोग नहीं हैं। अगर वे यह जानकारी साझा नहीं करते हैं तो उन्हें लगता है कि यह अशिष्ट लग सकता है, जो उन्हें मुश्किल स्थिति में डाल देता है। कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें कुछ बोलना ही चाहिए और बोलने के बाद, कभी-कभी यह अपरिहार्य रूप से गंभीर परिणामों की ओर ले जाता है। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को मेजबान को सीधे यह निर्देश देना चाहिए : “भाई-बहनों की मेजबानी करते समय तुम्हें कुछ नियमों का पालन करना होगा। बेपरवाही से कोई पूछताछ या सवाल मत करना—उनके बारे में बहुत ज्यादा जानने से तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा। अगर कुछ होता है और तुम यातना की पीड़ा सहन नहीं कर पाते हो तो तुम यहूदा बन सकते हो। उस स्थिति में, तुम्हें जो जानकारी मिली और जो कुछ तुमने समझा है, वह तुम्हारे यहूदा बनने का कारण बन सकता है। अगर ऐसा होता है तो इससे तुम्हें जीवन भर पछतावा होगा और आखिरकार तुम्हें दंड का सामना करना पड़ेगा। अगर तुम्हारे पास यह सब जानकारी नहीं है तो तुम यहूदा नहीं बनोगे। इसलिए, तुम्हें इन मामलों के बारे में पूछताछ करने या जानने की कोशिश बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। इनके बारे में नहीं जानना ही तुम्हारी सुरक्षा करता है और यह तुम्हारी मेजबानी या परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास में सत्य की प्राप्ति को प्रभावित नहीं करता। तुम्हारा नहीं जानना ही सबसे अच्छा है। तुम्हें स्पष्ट है कि ये भाई-बहन अपना कर्तव्य निभाने के लिए यहाँ आए हैं और वे बुरे या दुष्ट लोग नहीं हैं, तो आगे पूछताछ करने की कोई जरूरत नहीं है। उनकी मेजबानी करने का अपना कर्तव्य पूरा करना ही सबसे महत्वपूर्ण है और उनकी सुरक्षा की गारंटी लेना ही काफी है।” यह ऐसा काम है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जरूर करना चाहिए। इसके अलावा, वे स्थानीय विश्वासी जिनके पास अपनी आस्था में आधार नहीं है और वे केवल नाम के विश्वासी हैं, जो जबान के कच्चे हैं और अक्सर पूछताछ करते रहते हैं, जो सरकारी कर्मियों के साथ घनिष्ठ संपर्क बनाए रखते हैं और जो मुसीबत आने पर तुरंत कछुए की तरह अपना सिर अपने खोल में छिपा लेते हैं—और जो कलीसिया को धोखा देकर यहूदा बन सकते हैं—उन्हें यह बिल्कुल भी नहीं जानने दिया जाना चाहिए कि मेजबान परिवार भाई-बहनों की मेजबानी करते हैं। अगर महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की मेजबानी के काम में मदद करने के लिए कुछ भाई-बहनों की जरूरत है, तो केवल उन लोगों को ही सहयोग करने के लिए चुना जाना चाहिए जिनके पास परमेश्वर में विश्वास का आधार और बुद्धिमत्ता है। जिनके पास आधार या बुद्धिमत्ता नहीं है वे बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं हैं। तो आखिर सहायता कैसे की जानी चाहिए? मेजबान परिवारों के भाई-बहन अपने घरों में मेजबानी करने पर ध्यान देते हैं, जबकि स्थानीय भाई-बहन बुद्धिमत्ता और आस्था के साथ बाहर से सहायता प्रदान करके परिवेश की सुरक्षा करते हैं। उन्हें प्रभावशाली लोगों के साथ जुड़ना चाहिए, सरकारी नीतियों, रुझानों और संभावित कार्रवाइयों के बारे में ताजा खबर रखनी चाहिए और मेजबान परिवारों के भाई-बहनों को तुरंत सूचित करना चाहिए। इस तरह, अगर सरकार कोई गिरफ्तारी अभियान शुरू करती है तो इससे निपटने के लिए तुरंत उपाय किए जा सकते हैं; ऐसे में, वहाँ से निकलने और दूसरी जगह जाने या छिपने के लिए अभी भी समय होगा, इस प्रकार किसी भी खतरे से बचा जा सकता है। केवल इसी तरह महत्वपूर्ण कर्तव्यों को करने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। संक्षेप में, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए इस काम को सरल मानसिकता के साथ करना उचित नहीं है; इस संबंध में जटिलता से सोचना हमेशा सरल तरीके से सोचने से बेहतर होता है, क्योंकि सुरक्षा के मुद्दों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता—अगर कुछ गलत होता है तो यह कोई छोटी समस्या नहीं होगी!
महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के काम में कुछ विशिष्ट परिस्थितियाँ भी हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है। कुछ लोग जोखिम भरे कर्तव्य निभाते हैं, जैसे कि परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को ले जाना या जोखिम भरे इलाकों में कार्य से जुड़े निर्देश पहुँचाना या समस्या उत्पन्न होने के बाद की स्थिति को संभालना। ऐसे जोखिम भरे काम करने वालों को कभी भी महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों के साथ नहीं रहना चाहिए, न ही उन्हें यह पता होना चाहिए कि वे लोग कहाँ रहते हैं या कौन-सा परिवार उनकी मेजबानी कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जोखिम भरे काम करने वालों पर किसी भी समय पीछा करके गिरफ्तार किए जाने का खतरा रहता है। अगर उन्हें पकड़ लिया जाता है और यातना दी जाती है, तो वे कलीसिया को धोखा दे सकते हैं, जिसके कारण महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले और मेजबान परिवार फँस सकते हैं। क्या इसमें सुरक्षा का मुद्दा शामिल नहीं है? अगर महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले कुछ कर्मी तीन दिनों में लौटने का कहकर किसी काम से बाहर जाते हैं, मगर वे तीन दिन बाद वापस नहीं आते, तो क्या तुम लोग इस स्थिति को खतरनाक कहोगे? क्या अपने कर्तव्य निभाने वाले अन्य कर्मियों को वहाँ से चले जाना चाहिए? (हाँ।) ऐसे मामलों में तुरंत निकल जाना जरूरी होता है; इसमें कोई देरी नहीं होनी चाहिए और कोई जोखिम नहीं उठाना चाहिए—वे किस्मत पर भरोसा करने की मानसिकता नहीं रख सकते। कुछ लोग आलसी होते हैं, उन्हें लगता है कि इसमें काफी परेशानी है और वे यह कहते हुए जगह खाली करने से कतराते हैं, “एक दिन और इंतजार करने में क्या हर्ज है? हो सकता है उसे किसी विशेष परिस्थिति के कारण देरी हो गई हो।” एक दिन और इंतजार करने से खतरा बढ़ता ही है। अगर तुम जगह खाली कर देते हो और कुछ नहीं होता है, तो तुम कभी भी वापस आ सकते हो और यह कोई गलती नहीं होगी। लेकिन अगर तुम जगह खाली नहीं करते हो और एक दिन और इंतजार करते हो तो कोई घटना घट सकती है; और जब ऐसा होगा तब पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। इसलिए, अगर किसी काम से बाहर गए भाई-बहन तय समय के भीतर वापस नहीं आते तो यह मुमकिन है कि कोई गड़बड़ हुई है। किसी भी संभावित स्थिति से बचने के लिए, संबंधित भाई-बहनों को तुरंत उस जगह को खाली करके किसी सुरक्षित जगह पर चले जाना चाहिए। कोई उपयुक्त स्थान मिलते ही वे बिना और देरी किए सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। दूसरी स्थिति वह है जब स्थानीय कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाने वाले व्यक्ति को जो भाई-बहनों के लिए जगहों की व्यवस्था करने के लिए जिम्मेदार है, बड़ा लाल अजगर गिरफ्तार कर लेता है। ऐसे मामलों में क्या किया जाना चाहिए? (महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को तुरंत दूसरी जगह भेज दो।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए पहली प्राथमिकता इन महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को तुरंत अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान पर भेजना है। सबसे बढ़कर, उनकी सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए। उन्हें किसी भी जोखिम में नहीं डाला जाना चाहिए। उन्हें दूसरी जगह भेजने के बाद आगे का काम किया जा सकता है। कुछ भ्रमित लोगों की हमेशा भाग्य पर निर्भर रहने की मानसिकता होती है : “फलाँ व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया, मगर कोई बात नहीं; उसकी आस्था काफी मजबूत है और वह हमेशा प्रतिकूल परिस्थितियों में काफी मजबूत रहा है। वह कभी विश्वासघात नहीं करेगा। इसलिए, मैं गारंटी से कह सकता हूँ कि कोई खतरा नहीं है—किसी को भी दूसरी जगह भेजने की जरूरत नहीं है।” क्या ये शब्द सही हैं? (नहीं।) ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं, “अगर वह विश्वासघात करता भी है तो सोच-समझकर करेगा—वह केवल महत्वहीन मामलों के बारे में जानकारी देगा, जिससे निश्चित रूप से तुम लोगों की सुरक्षा प्रभावित नहीं होगी।” क्या ये शब्द सही हैं? (नहीं।) ये शब्द टिकते नहीं हैं! क्या लोग दूसरे लोगों को स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं? संबंधित व्यक्ति का आध्यात्मिक कद कितना भी बड़ा क्यों न हो, हमें बहुत आत्मविश्वास से बात नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अगर कुछ गलत होता है तो कोई भी उसके परिणाम नहीं झेल सकता। महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले कर्मियों की सुरक्षा के लिए और क्या काम करने चाहिए? जब वे अपना कर्तव्य निभाना शुरू करें तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उनके कर्तव्य पालन से जुड़े सत्य सिद्धांतों के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करनी चाहिए; साथ ही यह भी बताना चाहिए कि परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर किन सिद्धांतों और बुद्धिमत्ता का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा, जब वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाएँ तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सामाजिक अनुभव और बुद्धिमत्ता रखने वाले एक या दो लोगों को उनका सहयोग करने के लिए नियुक्त करना चाहिए। केवल यही तरीका सुरक्षित और भरोसेमंद है। इस तरह अभ्यास करने से एक तो उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। दूसरी बात, इससे उन्हें कुछ ऐसी समस्याएँ हल करने में मदद मिल सकती है जिन्हें वे खुद हल नहीं कर सकते। इससे कुछ मुसीबतें दूर रहेंगी और इस बात की गारंटी होगी कि अपने कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाने वाले लोग सामान्य रूप से अपना काम कर सकें। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए, अपने कर्तव्य निभाने वाले लोगों की सुरक्षा की गारंटी लेना उनके काम का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, खासकर उन देशों में जहाँ विश्वास रखने की स्वतंत्रता नहीं है। कलीसिया का कार्य अच्छी तरह से करने के लिए पहली प्राथमिकता अपना कर्तव्य निभाने वाले कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, चाहे वे स्थानीय स्तर पर अपने कर्तव्य निभा रहे हों या उन्हें करने के लिए बाहर जा रहे हों। जो अगुआ और कार्यकर्ता सुरक्षा कार्य को अच्छी तरह से संभाल सकते हैं, केवल वही परमेश्वर के उपयोग के लिए उपयुक्त हैं। जो लोग यह कार्य नहीं कर सकते वे ऐसे लोग हैं जिनकी मानवता अपरिपक्व है, जिनमें अंतर्दृष्टि और बुद्धिमत्ता की कमी है। उनके लिए परमेश्वर के उपयोग के लिए उपयुक्त बनना मुश्किल होगा।
II. विभिन्न देशों में परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करें
क. परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कानूनी स्थिति पर काम करना
विभिन्न देशों में कलीसिया का कार्य करते समय पहली प्राथमिकता अपने कर्तव्य निभाने वाले कर्मियों के लिए उचित रूप से जगहों की व्यवस्था करना और उनकी सुरक्षा की गारंटी लेना होनी चाहिए ताकि वे सामान्य रूप से अपने कर्तव्य निभा सकें। एक और महत्वपूर्ण बात कानूनी स्थिति के मुद्दे को संभालना है, जिस पर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के किसी नए देश में पहुँचते ही ध्यान दिया जाना चाहिए। कानूनी स्थिति के बिना या अगर उनकी स्थिति वैध नहीं है तो उनके रहने का परिवेश कितना भी अच्छा क्यों न हो, उन्हें उस देश से निकाले जाने का जोखिम हमेशा बना रहता है। जिन व्यक्तियों की स्थिति वैध नहीं है उन्हें अवैध निवासी माना जाता है और इन लोगों की सुरक्षा जोखिम में होती है; उनकी सुरक्षा सुनिश्चित किए बिना, वे लंबे समय तक अपने कर्तव्यों को नहीं निभा सकते। इसलिए, दूसरे देशों में अपने कर्तव्य निभाने वाले कर्मियों के लिए उचित जगहों की व्यवस्था करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं का पहला कार्य है। उनके लिए जगह की उचित व्यवस्था होते ही अगला कदम उनकी कानूनी स्थिति पर काम शुरू करने की व्यवस्था करना होता है। किसी भी देश में, कानूनी स्थिति पर काम करने का न्यूनतम लक्ष्य भाई-बहनों को कानूनी रूप से वहाँ रहने में सक्षम बनाना होना चाहिए। महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का यह भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। वैध निवास प्राप्त करने के लिए पहली आवश्यकता यह है कि व्यक्ति की स्थिति वैध होनी चाहिए; वे कहीं भी अवैध रूप से नहीं रह सकते। वैधानिक आवासीय स्थिति के सरकारी विनियमों के अनुसार भाई-बहनों के लिए जगहों की व्यवस्था करने की अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए। अगुआ और कार्यकर्ता या तो सीधे तौर पर जगहों की व्यस्व्था करने के इस काम में शामिल हो सकते हैं या इस मामले की खोज-खबर रख सकते हैं। अगर ऐसे मामले हैं जिनकी असलियत वे समझ नहीं पा रहे हैं तो उन्हें तुरंत ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं से संपर्क करना चाहिए। विशेष परिस्थितियों की अनुपस्थिति में, उन्हें कलीसिया के पिछले नियमों के अनुसार कार्य करना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को समय-समय पर पूछताछ करनी चाहिए और अगर उन्हें पता चलता है कि किसी को उसकी कानूनी स्थिति या किसी विशेष परिस्थिति में समस्या आ रही है, तो उन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कानूनी स्थिति पर काम करने से संबंधित मुद्दों को हल करने के लिए विदेशी मामलों को संभालने वाले कर्मियों की व्यवस्था करनी चाहिए। बेशक पहला कदम कानूनी स्थिति के काम को संभालने के लिए कुछ विशेषज्ञ वकीलों को ढूँढ़ना है। वकीलों को काम पर रखते समय ठगे जाने से बचने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए—नकली वकीलों या कानूनी स्थिति की प्रक्रिया में विशेषज्ञता नहीं रखने वाले वकीलों को काम पर नहीं रखा जाना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले कानूनी स्थिति पर काम करने के इन पहलुओं पर विचार करना चाहिए और इन मामलों की अच्छी तरह से व्यवस्था करनी चाहिए। यह कार्य भी महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की रक्षा करने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का हिस्सा है; ऐसे में, जब इस कार्य को करने की बात आती है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सिर्फ हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “अपने कर्तव्य निभाने वाले कर्मियों के लिए जगहों की व्यवस्था करना परमेश्वर के घर का कार्य है; हमें इसे केवल तभी करना है जब सीधे ऊपरवाले से कार्य व्यवस्थाएँ प्राप्त हों। अगर ऊपरवाला इसकी व्यवस्था नहीं करता है तो हमें इसके बारे में परेशान होने की जरूरत नहीं है; और अगर कुछ गलत भी होता है तो इसका हमसे कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा, प्रत्येक देश में आप्रवास और कानूनी स्थिति को लेकर अलग-अलग विनियम हैं; हम इतने बड़े मुद्दे नहीं संभाल सकते! हर किसी को बस खुद पर भरोसा करना होगा और सबसे अच्छे नतीजे की उम्मीद रखनी होगी—अगर वे किसी देश में रह सकते हैं तो वे रहें; नहीं तो वे वापस चले जाएँ।” क्या ये शब्द सही हैं? (नहीं।) इस रवैये के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है? (यह गैर-जिम्मेदाराना रवैया है।) एक ओर, यह गैर-जिम्मेदाराना है; वहीं दूसरी ओर, यह झूठे अगुआओं द्वारा वास्तविक कार्य नहीं करने और जिम्मेदारी से भागने की अभिव्यक्ति है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए, विदेशों में महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के लिए जगहों की व्यवस्था करना भी कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जैसे ही उनके लिए जगहों की उचित व्यवस्था हो जाती है और वे सामान्य रूप से अपने कर्तव्य निभा सकते हैं तो अगला कदम उनकी कानूनी स्थिति पर काम करने में उनका मार्गदर्शन करने के लिए विदेशी मामलों को संभालने वाले कर्मियों की व्यवस्था करना है। खासकर जब कानूनी स्थिति पर काम करने के दौरान विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जिन्हें भाई-बहन संभाल नहीं सकते, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को हल खोजने के तरीकों पर विचार करना चाहिए और इस मुद्दे को अनदेखा नहीं करना चाहिए। अगर कानूनी स्थिति पर काम करने में कोई समस्या है तो यह कोई छोटी बात नहीं है और इसे जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिए। इसमें देरी मत करना—कल करे सो आज कर, आज करे सो अब; इसे कल पर टालने से ऐसे परिणाम हो सकते हैं जो तुम्हारी कल्पना से भी ज्यादा भयानक होंगे। अगर अगुआ और कार्यकर्ता लापरवाह हैं और अपनी जिम्मेदारी निभाने पर ध्यान नहीं देते, मामले को तत्परता से नहीं संभालते और कानूनी स्थिति पर काम करने के लिए सबसे अच्छा समय जाने देते हैं, जिससे अपने कर्तव्य निभाने वाले कर्मी सामान्य रूप से ऐसा नहीं कर पाते हैं तो जिम्मेदारी किसकी है? इन व्यक्तियों ने कलीसिया के अगुआओं और कानूनी स्थिति पर काम करने वाले कर्मियों से अनुरोध किए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इनके बारे में पता था, मगर क्योंकि उन्होंने या तो मामले को गंभीरता से नहीं लिया या फिर इसे संभालने से बचने के लिए बहाने बनाए, कुछ महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की कानूनी स्थिति पर काम करने में देरी हुई, जिससे कलीसिया के कार्य के कुछ महत्वपूर्ण हिस्से कुछ हद तक प्रभावित हुए। तो तुम लोगों को क्या लगता है कि यहाँ जिम्मेदारी किसे उठानी चाहिए? (अगुआओं और कार्यकर्ताओं को।) परमेश्वर के घर ने बार-बार इस मामले पर जोर दिया है। अगुआ और कार्यकर्ता इसके बारे में अनजान नहीं हैं, न ही ऐसा है कि उन्हें इस बारे में पता नहीं है या उनमें समझ की कमी है; बल्कि वे इसके बारे में जानते हुए भी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। जब तक यह उनके अपने मामलों से संबंधित नहीं है, जब तक यह किसी और की समस्याएँ हैं, वे इसे जब भी संभव हो इसे टाल देते हैं, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कानूनी स्थिति पर काम करने जैसे महत्वपूर्ण मामले में देरी होती है। जब परिणाम सामने आते हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी उठानी चाहिए। यह जिम्मेदारी सिर्फ नाममात्र की नहीं है—अगर इससे कलीसिया का कार्य प्रभावित होता है, खासकर परमेश्वर के घर का महत्वपूर्ण कार्य प्रभावित होता है तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा उठाई जाने वाली जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हो जाती है। कम से कम, परमेश्वर उन्हें दोषी ठहराएगा, यह अपराध होगा—यही परिणाम होगा। अगर यह ऐसा कुछ है जो तुम्हें करना है, जो तुम्हारी जिम्मेदारियों के दायरे में आता है और तुम इसे नहीं करते या इसे अनदेखा करते हो या कुछ व्यक्तिगत कारणों से इसमें देरी करते हो तो जिम्मेदारी तुम्हें ही उठानी होगी। कुछ लोग कहते हैं, “मुझे नहीं पता था कि इसे कैसे हल करना है; मेरे पास आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं था।” मगर क्या तुमने इसे गंभीरता से लिया और मौका मिलते ही ऊँचे स्तर के अगुआओं और कार्यकर्ताओं से पूछा? कुछ अन्य लोग कहते हैं कि वे अन्य कामों में व्यस्त होने के कारण इसके बारे में भूल गए। भले ही वे वास्तव में व्यस्त होने के कारण इस बारे में भूल गए हों, मगर जब कोई उनके सामने यह मुद्दा उठाता है और उन्हें बार-बार याद दिलाता है तो वे इसे कैसे भूल सकते हैं? यह किस समस्या का संकेत है? (उन्होंने भाई-बहनों की कानूनी स्थिति पर काम करने के मामले को दिल से नहीं लिया; उन्हें किसी भी तरह के बोझ का एहसास नहीं है।) यह तथ्य कि वे इतने महत्वपूर्ण मामले को भूल सकते हैं, यह दर्शाता है कि उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं है और वे भरोसे के लायक नहीं हैं। तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों की कानूनी स्थिति पर काम करने जैसी महत्वपूर्ण बात को भूल सकते हो—क्या तुम अपनी खुद की कानूनी स्थिति पर काम करना भूल जाओगे? अगर तुम अपना खुद का मुद्दा नहीं भूलते मगर दूसरों की बातें भूल सकते हो, तो इससे यह साबित होता है कि तुम्हारा चरित्र खराब है, तुममें प्रेम की कमी है, तुम स्वार्थी और नीच हो। तुमने अपनी कानूनी स्थिति पर काम कर लिया, मगर तुम भाई-बहनों की कानूनी स्थिति पर काम करना एक साधारण, तुच्छ मामला मानते हो—या इसे पूरी तरह से अनदेखा ही कर देते हो—और आखिरकार उनकी कानूनी स्थिति पर काम करने जैसे इस महत्वपूर्ण मामले में देरी करते हो। क्या तुम वह जिम्मेदारी उठा सकते हो? क्या ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं में अंतरात्मा और विवेक की पूरी तरह कमी नहीं है? वे बहुत स्वार्थी और नीच हैं! वे केवल अपने बारे में सोचते हैं और दूसरों की उपेक्षा करते हैं—यह किस समस्या का संकेत है? क्या वे झूठे अगुआ नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) इस प्रकार उनकी समस्या का सार पूरी तरह से उजागर हो जाता है। वे भाई-बहनों की कानूनी स्थिति पर काम करने पर ध्यान देना ही नहीं चाहते; उन्हें यह परेशानी भरा लगता है। अपने दिलों में वे सोचते हैं, “भाई-बहनों की कानूनी स्थिति पर काम करने का मुझसे क्या लेना-देना है?” भाई-बहनों की कानूनी स्थिति पर काम करने के मामले के प्रति वे ऐसा रवैया अपनाते हैं, आखिरकार इस महत्वपूर्ण मामले में देरी करते हैं, भाई-बहनों के कर्तव्य पालन और कलीसिया के कार्य को प्रभावित करते हैं। क्या तुम्हारे हिसाब से ऐसे झूठे अगुआओं को दंड मिलना चाहिए? (हाँ।) उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए क्योंकि यह जानबूझकर किया गया था; यह निश्चित रूप से किन्हीं वस्तुनिष्ठ कारकों के कारण हुई आकस्मिक देरी नहीं थी। अगर भूकंप, बाढ़ जैसी कोई प्राकृतिक आपदा होती या कोई बड़ी राजनीतिक घटना जो परिवहन और संचार को बाधित करती, जिससे इन मामलों को संभालना असंभव हो जाता तो यह समझ में आता है। लेकिन अगर इनमें से कोई भी घटना नहीं हुई और फिर भी वे भाई-बहनों की कानूनी स्थिति पर काम करना भूल गए या उसे नजरंदाज किया, इन व्यक्तियों की कानूनी स्थिति जैसे महत्वपूर्ण मामले में देरी की, तो ऐसा अगुआ या कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी में लापरवाह है। उसे दोष देना और जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। समझे? (समझ गए।) यह देखते हुए कि तुम अगुआ या कार्यकर्ता हो, तुम्हारे पास वह कार्य करने की जिम्मेदारी है जो तुम्हें करना चाहिए। तुम्हारी जिम्मेदारी के दायरे में आने वाली हर चीज के लिए, तुम्हें परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार इसे ठीक से संभालना और पूरा करना चाहिए। लेकिन अगर तुम जानबूझकर इसे करने से बचते हो या इसमें देरी करते हो, तो यह तुम्हारी जिम्मेदारी की अवहेलना है और यह लापरवाही एक अपराध है। अगर तुम जानबूझकर किसी मामले में देरी करते और इसे संभालते नहीं हो तो तुम्हारी नाकामयाबी आखिरकार एक अपराध बन जाएगी और परमेश्वर तुम्हें दोष देगा। तुम्हें इस मामले के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा।
विदेशों में अगर परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कानूनी दर्जे को लेकर कुछ समस्याएँ हैं या अगर उनके पड़ोसी या अजनबी उनके बारे में शिकायत दर्ज करते हैं या उनकी रिपोर्ट करते हैं तो उन्हें देश से निकाले जाने का खतरा हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि विदेशों में परमेश्वर के चुने हुए कुछ लोगों को कुछ देशों की सरकारें मनगढ़ंत आरोपों के तहत हिरासत में लेकर दंडित करें या गिरफ्तार करके जेल में डाल दें। स्थिति चाहे जो भी हो, जब अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इसके बारे में पता चलता है तो उन्हें अपने खोल में छिपे कछुओं की तरह काम नहीं करना चाहिए; उन्हें जल्द से जल्द इस मामले को संभालना चाहिए, जिसका अंतिम लक्ष्य भाई-बहनों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और उन्हें बुरे लोगों के हाथों में नहीं पड़ने देना है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता केवल कलीसिया के कार्य की व्यवस्था करने की परवाह करते हैं, मगर भाई-बहनों को कानूनी दर्जा दिलाने की प्रक्रिया पर कोई ध्यान नहीं देते, जिसके कारण भाई-बहनों को उनके पास कानूनी दर्जा नहीं होने के कारण गिरफ्तार किया जाता है या देश से निकाल दिया जाता है तो ये कैसे परिणाम हैं? क्या ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने भाई-बहनों के अपने कर्तव्य निभाने के अवसर को बर्बाद नहीं किया है? क्या इससे कलीसिया का कार्य सीधे प्रभावित नहीं होता है। तब इस समस्या की प्रकृति बहुत गंभीर है। अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने पहले इस मामले को नहीं संभाला है तो वे भाई-बहनों के बीच किसी ऐसे व्यक्ति को खोज सकते हैं जो विदेशी मामलों को संभालने में कुशल हो, ताकि वे इस मामले को संभालने के लिए किसी वकील से सलाह ले सकें, भाई-बहनों की सुरक्षा और महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश कर सकें। यह भी कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विदेशों में करना चाहिए; स्थानीय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस मामले को संभालने के लिए पहल करनी चाहिए। स्थानीय भाई-बहनों की सुरक्षा करने के अलावा, उन्हें विदेशी भाई-बहनों की और भी ज्यादा सुरक्षा करनी चाहिए; केवल इसी तरह से कलीसिया के कार्य के लिए विश्वास बना रहेगा। यही वह जिम्मेदारी है जिसे हर देश के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को स्थानीय भाई-बहनों और महत्वपूर्ण विदेशी कार्य-कर्मियों के प्रति पूरी करनी चाहिए; उन्हें बस चुपचाप खड़े नहीं रहना चाहिए। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “वे विदेशी भाई-बहन हैं और हम उनसे परिचित नहीं हैं; हमारे बीच कोई व्यक्तिगत संबंध नहीं है। उन्हें परमेश्वर के घर ने यहाँ सुसमाचार प्रचार के लिए भेजा है—इसका हमसे क्या लेना-देना? यह दुर्घटना उनकी अपनी करनी का नतीजा है; उन्होंने आने से पहले परिस्थिति की स्पष्ट रूप से पूछताछ नहीं की और इन मामलों को अच्छी तरह से नहीं संभाला। इस दुर्घटना में हस्तक्षेप करने का हमारे पास कोई तरीका नहीं है; क्या पता सरकार उनके साथ क्या करेगी।” वे इन मामलों से बचने और इन्हें टालने के लिए बस अलग-अलग बहाने बनाते हैं, उन्हें हल करने के लिए आगे बढ़ने के तरीके खोजने की कोशिश नहीं करते। क्या इस तरह से काम करना सही है? (नहीं।) क्यों नहीं? (अगर अगुआ और कार्यकर्ता इन समस्याओं को हल करने के लिए आगे नहीं बढ़ते हैं और इस बीच भाई-बहनों के पास समस्याओं को हल करने का कोई रास्ता नहीं होता है तो परेशानी निश्चित रूप से पैदा होगी। अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने भाई-बहनों की रक्षा करने की अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं की है—यह उनकी जिम्मेदारी की अवहेलना है।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं का कर्तव्य हर उस जिम्मेदारी को पूरा करना है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर में पूरा करना चाहिए। परमेश्वर के घर का दायरा स्थानीय इलाके, स्थानीय क्षेत्र या किसी निश्चित देश तक सीमित नहीं है; परमेश्वर के घर की कोई राष्ट्रीय सीमाएँ, कोई क्षेत्रीय सीमाएँ नहीं हैं। क्या परमेश्वर लोगों को चुनने और बचाने में नस्ल और जाति की सीमाएँ रखता है? (बिल्कुल नहीं।) क्या राष्ट्रीयता या क्षेत्र की सीमाएँ होती हैं? (ऐसी भी कोई सीमा नहीं है।) ऐसा कुछ भी नहीं है। परमेश्वर इसी सिद्धांत के अनुसार अपना कार्य करता है; इस प्रकार, यह सिद्धांत सत्य है! भाई-बहन चाहे किसी भी देश से हों, वे सभी एक परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, एक परमेश्वर का अनुसरण करते हैं और उस सत्य को खाते-पीते हैं जिसकी संगति और आपुर्ति एक परमेश्वर करता है। वे एक परमेश्वर द्वारा किए जाने वाले कार्य का अनुभव करते हैं और एक परमेश्वर की आराधना करते हैं। त्वचा का रंग या नस्ल कोई भी हो, परमेश्वर के घर में और परमेश्वर के सामने वे सभी एक हैं—वे एक परिवार हैं। क्योंकि वे एक परिवार हैं तो उनके बीच कोई भेद नहीं होना चाहिए; कोई जातीय या क्षेत्रीय सीमाएँ नहीं होनी चाहिए; “तुम एशियाई हो, मैं यूरोपीय हूँ” या “तुम गोरे हो, मैं गोरा नहीं हूँ” जैसे भेदभाव नहीं होने चाहिए—ये भेद नहीं होने चाहिए। अगर तुम फिर भी परमेश्वर के घर में ये भेद करते हो तो यह स्पष्ट है कि तुम परमेश्वर के घर को परमेश्वर का घर नहीं मानते और न ही खुद को परमेश्वर के घर का सदस्य मानते हो। इसलिए, जब विदेशी भाई-बहन देश से निकाले जाने या गैरकानूनी गिरफ्तारी जैसी समस्याओं का सामना करते हैं, तो चाहे वे कहीं से भी आते हों, उनकी राष्ट्रीयता चाहे जो भी हो या उनकी त्वचा का रंग कैसा भी हो, वे भाई-बहन हैं—चूँकि वे भाई-बहन हैं, जब वे समस्याओं का करें तो स्थानीय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को आगे बढ़कर इस मामले को कर्तव्यनिष्ठ तरीके से संभालना चाहिए और लोगों के बीच भेदभाव नहीं करना चाहिए। यह सिद्धांतों के मुताबिक और पूरी तरह से परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है; यही वह सत्य है जिसका लोगों को अभ्यास करना चाहिए।
वर्तमान में चीन से परमेश्वर के चुने हुए कई लोग सुसमाचार प्रचार करने और परमेश्वर की गवाही देने के लिए विभिन्न देशों में जा रहे हैं। इन देशों में पहुँचने के बाद उन्हें सबसे पहले अपने को कानूनी दर्जा दिलाने की प्रक्रिया पर काम करना चाहिए, तभी वे शांत मन से अपना काम कर सकते हैं। कानूनी दर्जा दिलाने की प्रक्रिया पर काम करना कोई आसान बात नहीं है; इसके लिए स्थानीय कलीसिया के लोगों के सहयोग की आवश्यकता होती है। विभिन्न देशों में कलीसियाओं के प्रभारी लोगों को कुछ ऐसे भाई-बहनों को खोजना चाहिए जो अपने देश की नीतियों को समझते हों और इसके कानूनों को जानते हों, ताकि चीन से आए परमेश्वर के चुने हुए लोगों को कानूनी दर्जा दिलाने की प्रक्रिया पर काम करने के मुद्दे को सुलझाने में मदद मिल सके। इस मुद्दे को सुलझाना सबसे महत्वपूर्ण है। विभिन्न देशों की कलीसियाओं के अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सहयोग करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि लोगों को कानूनी दर्जा दिलाने के मुद्दे को पूरी तरह सुलझाने से ही कलीसिया का कार्य सामान्य रूप से आगे बढ़ सकता है; नहीं तो कलीसिया का कार्य प्रभावित होगा। विभिन्न देशों में कलीसियाओं के प्रभारी लोगों को ऐसे मामलों को संभालने में सक्षम लोगों के साथ तैयार रहना चाहिए। ऐसा करने से कलीसिया के कार्य को फायदा होता है और यह परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील होने की अभिव्यक्ति भी है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कह सकते हैं, “हमने इस तरह के मामले को पहले कभी नहीं संभाला है और हमें नहीं पता कि क्या करना है।” ऐसी स्थिति में उन्हें उन लोगों को खोजना चाहिए जो इस तरह के मामलों को समझते हों। हर देश में परमेश्वर के चुने हुए लोगों के बीच शिक्षित और ज्ञानी लोग होते हैं और ऐसे लोग भी होते हैं जो राष्ट्रीय कानूनों और नीतियों को समझते हैं। उनके लिए, इन मामलों को संभालने के लिए कोई रास्ता खोजने में केवल थोड़े से परामर्श की जरूरत होती है—क्या ऐसा नहीं है? इस तरह के मामले को संभालने में तुम्हें उदासीन और निष्क्रिय नहीं होना चाहिए; अगर तुम्हें कुछ समझ में नहीं आता है तो तुम्हें परामर्श के लिए कोई वकील खोजना चाहिए। अगर तुम्हें इससे संबंधित कोई वकील मिल जाता है तो रास्ता भी अपने आप ही खुल जाएगा। हम इस मामले को नहीं समझ सकते हैं, मगर वकील समझेगा। खोज करने वाला दिल होना सही रवैया है; खोज करने वाला दिल होना जिम्मेदारी की भावना होने की अभिव्यक्ति है। अगर कुछ कठिनाइयाँ आती हैं तो तुम्हें साथ मिलकर एक दिल और एक मन से प्रार्थना, खोज और संगति करनी चाहिए और समस्या को सुलझाने के सिद्धांत और मार्ग खोजने के बाद तुम्हें इस समस्या को पूरी तरह से हल करना चाहिए। तभी कलीसिया का कार्य सुचारू रूप से आगे बढ़ सकता है। अगर किसी समस्या का पता चलने पर अगुआ और कार्यकर्ता तुरंत इसके बारे में जान सकते हैं, इसकी खोज-खबर रख सकते हैं और इसका समाधान कर सकते हैं तो क्या वे जिम्मेदार अगुआ और कार्यकर्ता नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं में न केवल जिम्मेदारी की भावना होती है बल्कि वे समस्याओं को तुरंत सुलझा भी सकते हैं; यानी उनके ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता बनने की उम्मीद है जो मानक के अनुरूप हों। सत्य की उनकी समझ की गहराई चाहे जो भी हो, अगर वे समस्याओं को सुलझाने पर ध्यान देते हैं तो वे वास्तविक कार्य करने में सक्षम हैं। कम से कम, वे कम गलतियाँ करने या कोई गलती नहीं करने का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं; और अगर वे कुछ गलतियाँ करते भी हैं तो उन्हें तुरंत सुधारकर कुछ नुकसानों की भरपाई कर सकते हैं, जिससे आखिरकार परमेश्वर के घर के कार्य की सुरक्षा का लक्ष्य हासिल होता है। क्या तुम लोगों को लगता है कि इस जिम्मेदारी को पूरा करना मुश्किल है? (नहीं।) वास्तव में यह मुश्किल नहीं है; यह इस बात पर निर्भर करता है कि लोग अपने कर्तव्य निभाने में निष्ठावान हैं या नहीं और क्या वे अपने काम में अपनी जिम्मेदारी को पूरा कर सकते हैं। तुम्हें बस थोड़ा विचार करने, थोड़ा समय बिताने और थोड़ी ऊर्जा लगाने की जरूरत है; इसके लिए तुम्हें पैसे खर्च करने या कोई जोखिम उठाने की जरूरत नहीं है। तुम्हें बस समस्याओं को सुलझाने और मामलों को अच्छी तरह से संभालने में मदद करने के लिए आगे बढ़ने की जरूरत है और इस तरह तुम मानक पर खरे उतर सकते हो। तो यह कोई मुश्किल बात नहीं है; और अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए इसे हासिल करना आसान होना चाहिए। मगर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इतना आसान काम भी नहीं कर पाते; बहुत स्पष्ट है कि यह काबिलियत या योग्यता की कमी या फिर प्रतिकुल परिस्थितियों या परिवेश के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए है क्योंकि वे इसे करने के लिए तैयार नहीं हैं। जब ऐसी विशेष परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जिनमें महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के कानूनी दर्जे या वैधानिक आवासीय दर्जे या उनके नियुक्ति स्थान की व्यवस्था करने से संबंधित मामले शामिल होते हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी होती है कि वे यह काम करें। चाहे तुम किसी के लिए भी नियुक्ति स्थान की व्यवस्था कर रहे हो या उसकी राष्ट्रीयता या नस्ल चाहे जो भी हो; तुम्हें बस इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारना है। यह कार्य परमेश्वर ने तुम्हें सौंपा है; यह तुम्हारी जिम्मेदारी और दायित्व है, साथ ही तुम्हारा मकसद भी है। यह कार्य जिसे तुम स्वीकारते हो, वह परमेश्वर से आता है, किसी व्यक्ति से नहीं; इसलिए तुम्हें इस बात से परेशान नहीं होना चाहिए कि वे लोग कौन हैं जिनके लिए तुम नियुक्ति स्थानों की व्यवस्था कर रहे हो। कुछ लोग कह सकते हैं, “स्थानीय भाई-बहनों की सुरक्षा करना स्वीकार्य है, लेकिन अगर विदेशी भाई-बहन यहाँ आते हैं तो यह हमारी परेशानी नहीं है।” क्या ऐसा कहने वाले लोग जिम्मेदारी या मानवता की भावना रखते हैं? (नहीं।) वे स्थानीय भाई-बहनों को भाई-बहन मानते हैं, मगर विदेशी भाई-बहनों को भाई-बहन नहीं मानते—क्या यह सही है? (नहीं।) क्या यह सत्य के अनुरूप है? (नहीं।) यह सत्य के अनुरूप क्यों नहीं है? (झूठे अगुआ परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील नहीं होते; वे विदेशी भाई-बहनों को अनदेखा करते हैं और समस्याएँ आने पर उन्हें संभालने के लिए आगे नहीं आते—वे परमेश्वर के घर के कार्य की सुरक्षा नहीं करते।) झूठे अगुआ विभिन्न प्रकार के बहाने बनाकर जिम्मेदारी से भागते हैं और वास्तविक कार्य नहीं करते। वे दावा करते हैं कि वे परमेश्वर के लिए खुद को खपाने और सत्य का अभ्यास करने के लिए तैयार हैं, मगर जब वास्तव में कलीसिया के कार्य के अहम मामलों की बात आती है तो वे छिप जाते हैं। यह गैर-जिम्मेदार होना है। विदेशों में भाई-बहनों की सुरक्षा से संबंधित सभी मुद्दों के लिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें तुरंत संभालना चाहिए, इसे एक जिम्मेदारी और ऐसे काम की तरह देखना चाहिए जिसे पूरा करना जरूरी है। उन्हें इसे टालने के लिए बहाने नहीं बनाने चाहिए, न ही उनके द्वारा इस कार्य की उपेक्षा से परमेश्वर के घर के विभिन्न कार्यों की प्रगति पर कोई प्रभाव पड़ने देना चाहिए।
ख. सभी भाई-बहनों को कानून की बुनियादी जानकारी प्रदान करना
विदेशों में भाई-बहनों की सुरक्षा से संबंधित कार्य के और कौन-से पहलू हैं जिनके बारे में तुम लोग सोच सकते हो? (विदेशों में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सभी भाई-बहनों को कानून की कुछ बुनियादी कानूनी जानकारी भी देनी चाहिए ताकि उनमें कानूनी जागरूकता की भावना विकसित हो और वे कानून का उल्लंघन करने वाली गतिविधियों में शामिल होने से बचें।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सभी भाई-बहनों को बुनियादी कानूनी जानकारी और विभिन्न सरकारी विनियमों की समझ प्रदान करनी चाहिए। वे जिस देश में रहते हैं वहाँ के स्थानीय भाई-बहनों से इन इलाकों के बारे में और ज्यादा जानना चाहिए, जैसे कि यहाँ की आप्रवासन नीतियाँ और दैनिक जीवन से संबंधित नीतियाँ; और फिर भाई-बहनों को इनका अध्ययन करने के लिए संगठित करना चाहिए ताकि वे राष्ट्रीय सरकार के विनियमों का सख्ती से पालन करें और कानून का उल्लंघन करने वाला कोई भी काम करने से बचें। विशेष रूप से, चीन से परमेश्वर के चुने हुए लोग, जो कई सालों से तानाशाही शासन में रहे हैं, उनके पास कानूनी जानकारी की कमी होती है और वे कानून के महत्व को नहीं समझते। इस कारण, वे असभ्य लोगों की तरह लापरवाही और बेपरवाही से काम करते हैं। जब वे विदेश में रहने आते हैं तो वे बहुत अनभिज्ञ दिखाई देते हैं और अक्सर ऐसे काम करते हैं जो नियमों की समझ की कमी को दर्शाते हैं। जैसे कि कुछ पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों में सामाजिक व्यवस्था बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित होती है, वहाँ रात 10 बजे से सुबह 8 बजे तक शोर-शराबे पर पाबंदी के विनियम हैं—कुत्तों के भौंकने या निर्माण संबंधी मशीनरी की गड़गड़ाहट जैसी कोई आवाजें भी नहीं आ सकतीं। अगर कोई इन विनियमों का उल्लंघन करता है और उसकी रिपोर्ट की जाती है तो इस मामले को पुलिस संभालेगी। चीन की मुख्य भूमि में, कोई भी इन मामलों का प्रबंधन नहीं करता; जहाँ भी लोग रहते हैं, वहाँ तेज आवाज में संगीत बजाने, नाचने-गाने, शराब पीने और पार्टी करने के कारण बेतहाशा शोर होगा और कोई भी हस्तक्षेप नहीं करता है। अगर कोई कुछ करने की कोशिश करे तो उसे प्रतिशोध का सामना करना पड़ सकता है; इसलिए चीनी लोगों के पास इसे सहने के अलावा और कोई चारा नहीं होता। पश्चिमी देश अलग हैं; हर कोई कानून द्वारा संरक्षित है। अगर तुम्हारा कुत्ता भी अक्सर आधी रात को भौंकता है, जिससे तुम्हारे पड़ोसियों के आराम में खलल पड़ता है तो वे तुम्हारे खिलाफ शिकायत दर्ज करेंगे। अगर तुम्हारे कुछ करने से दूसरों के सामान्य जीवन पर प्रभाव पड़ता है तो तुमने कानूनी विनियमों का उल्लंघन किया है—उनका तुम्हारे खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए कानून को हथियार बनाकर इस्तेमाल करना वैध है। कुछ लोग रात के 11 या 12 बजे तक निर्माण का काम जारी रखते हैं, जिससे उनके पड़ोसियों के आराम में खलल पड़ता है और शिकायतें दर्ज की जाती हैं। फिर पुलिस जुर्माना लगाने आती है और उन्हें निर्धारित समय के दौरान शोर नहीं करने की चेतावनी देती है। कुछ लोगों में पर्यावरण की स्वच्छता के बारे में भी जागरूकता की कमी है, वे सड़कों पर कूड़ा-कचरा फैला देते हैं। पश्चिमी लोकतांत्रिक देश विशेष रूप से व्यवस्थित होते हैं। निवासियों के कूड़ा फेंकने के लिए निर्धारित समय होता है और कूड़ा उठाने वाली गाड़ियाँ निर्धारित दिनों पर कूड़ा इकट्ठा करने आती हैं। कूड़ा इकट्ठा करने के बाद सड़कें साफ रहती हैं। जो लोग इस बात को नहीं समझते वे कूड़ा फैला सकते हैं, जिसे विनियमों का उल्लंघन माना जाता है। इससे सार्वजनिक स्वच्छता और शहर की सुंदरता प्रभावित होती है, इसलिए उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है। नियमों का पालन नहीं करने वाले चीनी लोगों को अक्सर विदेशों में रहने पर शिकायतें मिलती हैं। कई बार उनके खिलाफ शिकायत दर्ज होने के बाद, वे पश्चिमी लोगों के बारे में यह कहते हुए राय बनाते हैं, “पश्चिमी लोगों को शिकायत दर्ज करवाना बहुत पसंद है; वे हर छोटी-छोटी बात पर शिकायत करते हैं,” जिस पर मेरा कहना है, “उन्होंने तुम्हारे खिलाफ इतने सारे मामलों पर शिकायतें दर्ज करवाईं और फिर भी तुमने आत्म-चिंतन नहीं किया, बल्कि शिकायत दर्ज करवाने के लिए उन्हें दोषी ठहराया। तो क्या उनका शिकायत दर्ज करवाना सही था? तुमने जो किया वह सही था या गलत?” उनका शिकायत दर्ज करवाना बिल्कुल सही था; तुमने उनके हितों को नुकसान पहुँचाया और उनके जीवन को प्रभावित किया, तो वे तुम्हारे खिलाफ शिकायतें क्यों न दर्ज करें? यह सामाजिक व्यवस्था की रक्षा के लिए किया जाता है और यह दर्शाता है कि यह देश कानून द्वारा शासित है; हर कोई कानून द्वारा संरक्षित है और इस देश में कानून केवल दिखावे के लिए नहीं है—हर कोई अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए कानून का हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। वे तुम्हारे खिलाफ शिकायतें इसलिए दर्ज करवा रहे हैं क्योंकि तुम कानून को नहीं समझते और तुमने स्थानीय विनियमों का उल्लंघन किया है। तुम्हें पहले स्थानीय विनियमों को जानना चाहिए और कानूनों और विनियमों के अनुसार काम करना चाहिए—तो क्या तुम्हें लगता है कि वे तब भी तुम्हारे खिलाफ शिकायत दर्ज करवाएँगे? (वे और शिकायतें दर्ज नहीं करवाएँगे।) तो चीनी लोग कभी शिकायतें दर्ज क्यों नहीं करवाते, चाहे मामला कितना भी गंभीर क्यों न हो? (वे बहुत लंबे समय से सरकार द्वारा प्रताड़ित किए गए हैं। वे शिकायतें दर्ज करवाने की जुर्रत नहीं करते। चीनी लोगों के पास अपने अधिकारों की रक्षा करने जैसी कोई अवधारणा भी नहीं है।) चीन कानून द्वारा शासित देश नहीं है। यह कानून के अनुसार संचालित नहीं होता। चीन के कानून सिर्फ दिखावे के लिए हैं और वहाँ शिकायत दर्ज करवाना बेकार है। अगर तुम शिकायत दर्ज करवाते भी हो और दूसरे पक्ष के पास ताकत और प्रभाव है, तो वे तुम्हारे पीछे पड़ सकते हैं। अगर तुम्हारे पास कोई प्रभाव नहीं है तो तुम शिकायत दर्ज करवाने की हिम्मत तक नहीं करोगे; शिकायत दर्ज करवाने से तुम पर आसानी से मुसीबत आ सकती है। इसलिए जब चीनी लोग उत्पीड़न का सामना करते हैं—खासकर ऐसे मामलों में जहाँ किसी की हत्या की गई है—तो उसकी मौत चाहे कितनी भी अनुचित क्यों न हो, अगर अपराधी कुछ पैसे दे दे तो मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। पीड़ित व्यक्ति के परिवार वाले मुकदमा क्यों नहीं दायर करवाते? क्योंकि वे जानते हैं कि वे कभी नहीं जीतेंगे; इसमें बहुत सारा पैसा खर्च होगा, फिर भी उन्हें न्याय नहीं मिलेगा, न ही अपराधी को न्याय के कटघरे में लाया जाएगा, इसलिए वे कानूनी कार्यवाई करने के बजाय इसे निजी तौर पर निपटाने का रास्ता चुनते हैं। चीन के कानून केवल दिखावे के लिए हैं; चीन में कानून का शासन नहीं है, वहाँ न्याय माँगने के लिए कोई जगह नहीं है। मुकदमा दायर करवाना बेकार है। इसलिए चीनी लोगों को चाहे कितनी भी गैरकानूनी स्थितियों का सामना करना पड़े, वे शिकायतें दर्ज करवाने की जुर्रत नहीं करते। ऐसा इसलिए है क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ गलत काम करने के अलावा और कुछ नहीं करती, यह तर्क से परे है और कानून के अनुसार शासन नहीं करती। चीन में अगर कोई साधारण व्यक्ति है तो उसकी समस्या चाहे कितनी भी गंभीर क्यों न हो, वह कम्युनिस्ट पार्टी की नजरों में चिंता का विषय नहीं है—कोई भी उस पर ध्यान नहीं देगा। दूसरों के आराम को प्रभावित करने वाली चीजें या यहाँ तक कि चोरी, डकैती और सेंधमारी के मामलों को कम्युनिस्ट पार्टी समस्या मानती ही नहीं है। लेकिन पश्चिमी देशों में ऐसा नहीं होता। पश्चिम में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है और कानून द्वारा शासित समाज है; अगर किसी के आराम में खलल पड़ता है तो शिकायत दर्ज की जाएगी; और पुलिस मामले की जाँच करने और उसे निपटाने आएगी। पश्चिमी लोगों में यह कानूनी जागरूकता है और वे ऐसी बेवकूफी भरी चीजें नहीं करते हैं; केवल विदेश से आने वाले लोग जो इन नियमों को नहीं समझते, ऐसी बेवकूफी भरी चीजें करते हैं। जब चीनी लोग पहली बार विदेश में रहना शुरू करते हैं तो उन्हें अक्सर शिकायतें मिलती हैं। समय के साथ, वे स्थानीय कानूनों और विनियमों के बारे में जान जाते हैं और तब कानून का उल्लंघन करने या दूसरों को परेशान करने वाली चीजें करने की हिम्मत नहीं करते। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उस देश के विभिन्न कानूनों और विनियमों के बारे में भाई-बहनों को बताने के लिए संगठित करना चाहिए जिसमें वे रहते हैं। चाहे उनका इरादा कुछ भी करने का हो, उन्हें पहले कानून की जानकारी लेनी चाहिए—भले ही वे अपने घर के आँगन में मुर्गियाँ या सूअर पाल रहे हों, उन्हें पहले सरकार के विनियमों को जानना चाहिए। वे ऑनलाइन जानकारी देख सकते हैं या स्थानीय भाई-बहनों से सलाह लेकर सटीक जवाब पा सकते हैं। विभिन्न पश्चिमी देशों में सभी मामलों के लिए सरकार के विशिष्ट विनियम हैं। उदाहरण के लिए, निर्माण के संबंध में ऐसे नियम हैं कि बिजली के आउटलेट फर्श से कितने ऊँचे होने चाहिए और हर एक आउटलेट कितनी दूरी पर होना चाहिए। सीढ़ी की रेलिंग की मोटाई और सीढ़ी के बलस्तर की चौड़ाई के लिए भी विशिष्ट मानक हैं। सरकारी कर्मी निर्माण कार्य के हर चरण की जाँच-पड़ताल करते हैं, इसलिए निर्माण संहिता का उल्लंघन करने वाली या गैर-विनियमित निर्माण वाली इमारतों की संख्या काफी कम है। अगर निवासी अपने आँगन में कोई मकान, टूल शेड या भंडारण के लिए छोटा शेड बनाना चाहते हैं तो उन्हें सरकार से अनुमति लेनी होगी। अगर वे मुर्गियाँ या बत्तखें पालना चाहते हैं तो इस बात के विनियम हैं कि उनके बाड़े उनके पड़ोसियों की संपत्ति से कितनी दूरी पर होने चाहिए। भले ही अगुआ और कार्यकर्ता इन कानूनों और विनियमों को न समझें, अगर कलीसिया के कार्य में ये मामले शामिल हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन पर ध्यान देना चाहिए। उन्हें पहले स्थानीय कानूनों और सरकारी विनियमों की जानकारी लेनी चाहिए; इन मामलों पर स्पष्ट होना हमारे कर्तव्य निर्वहन के लिए फायदेमंद है। भले ही कानूनी मामले कलीसिया के अंदरूनी कार्य से सीधे संबंधित नहीं हैं, फिर भी सभी को कानून के बारे में बुनियादी जानकारी देना फायदेमंद है। कम से कम, वे कुछ ज्ञान हासिल कर सकेंगे, कुछ नियमों को समझ सकेंगे, सही तरीके से जीना सीखेंगे और मानव के सामान रह सकेंगे। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को विदेशी मामलों के लिए जिम्मेदार लोगों के साथ संगति करनी चाहिए, कानूनी जागरूकता विकसित करने में उनकी मदद करनी चाहिए। छोटे-मोटे मामलों के लिए, किसी वकील से परामर्श करना अनावश्यक है—उन्हें सिर्फ स्थानीय नियमों को समझकर उनका सख्ती से पालन करने की जरूरत है। लेकिन बड़े मामलों के लिए, उन्हें स्थानीय कानूनों की समझ हासिल करने के लिए किसी वकील से परामर्श करना चाहिए। संक्षेप में, चाहे जो भी किया जा रहा हो, सभी क्रियाकलाप कानूनों और विनियमों के अनुरूप किए जाने चाहिए। कुछ समय तक इस तरह से अभ्यास करने से लोगों को कानूनों और विनियमों का पालन करने के महत्व का अनुभव करने का मौका मिलेगा और वे चीजों को करते समय नियमों का पालन करेंगे। यह कलीसिया के कार्य के लिए भी फायदेमंद है।
ग. लोगों को सुसमाचार प्रचार के लिए भेजते समय पालन किए जाने वाले सिद्धांत
महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा के संदर्भ में कार्य का एक और क्षेत्र है जिस पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ध्यान देना चाहिए, जो अपने कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाने वाले लोगों की सुरक्षा करना है। लोगों को अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर भेजते समय किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए? सबसे पहले, लोगों की उम्र और लिंग के साथ-साथ उनकी अंतर्दृष्टि और जीवन के अनुभव के बारे में विचार करना चाहिए—अगुआ और कार्यकर्ता इस मामले में भ्रमित या लापरवाह नहीं हो सकते। उदाहरण के लिए, अगर तुम सुसमाचार प्रचार के लिए लोगों को किसी अनजान जगह पर भेज रहे हो तो किस तरह के लोगों को भेजना उपयुक्त होगा? (कुछ अंतर्दृष्टि और बुद्धिमत्ता वाले लोगों को।) अगर किसी कलीसिया में बहुत सारे उपयुक्त लोग नहीं हैं, वहाँ ज्यादातर युवा लोग हैं जिनके पास जीवन का अनुभव और अंतर्दृष्टि नहीं है, जो समस्याओं से सामना होने पर परिस्थितियों को संभालना नहीं जानते—खासकर चुनौतीपूर्ण समस्याओं को—जो सिद्धांतों के बिना बोलते हैं और जिनमें बुद्धिमत्ता की भी कमी है तो वे कार्य करने में असमर्थ होंगे। अगर ऐसे लोगों को भेजा जाता है तो वे न केवल समस्याओं को सुलझाने में नाकामयाब होंगे, बल्कि वे कार्य को प्रभावित और उसमें देरी भी कर सकते हैं। इसलिए लोगों को अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर भेजते समय परिपक्व मानवता और बुद्धिमत्ता वाले लोगों को चुनना जरूरी है—केवल ऐसे लोग ही उपयुक्त हैं। अगर पर्याप्त उपयुक्त लोग मौजूद नहीं हैं तो युवा लोगों को अपने कर्तव्य निभाने के लिए बड़े लोगों के साथ भेजा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो कि 25 या 26 साल की किसी युवा बहन को अगर किसी अनजान जगह पर अपना कर्तव्य निभाने के लिए भेजा जाता है तो काफी समय से परमेश्वर में विश्वास रखने, आस्था रखने, आध्यात्मिक कद होने और लंबे समय से अपना कर्तव्य निभाने के बावजूद भी वह यह नहीं जान पाएगी कि खुद को कैसे सुरक्षित रखा जाए—ऐसी स्थिति में, समाज में अनुभव रखने वाले किसी स्थानीय भाई या बहन को उसके साथ कर्तव्य निभाने के लिए भेजना जरूरी होगा। बेशक, अगर किसी कर्तव्य का स्थान कोई परिचित इलाका या ऐसी जगह है जहाँ पहले से ही कोई कलीसिया है, तो युवा भाई और बहन वहाँ जा सकते हैं। लेकिन अगर लोग सुसमाचार प्रचार के लिए या अन्य कार्य करने के लिए किसी अनजान जगह पर खासकर खराब सार्वजनिक सुरक्षा वाली जगह पर जा रहे हैं तो उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा पर विचार करना जरूरी होगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए, चाहे वे किसी को भी काम करने के लिए बाहर भेज रहे हों, सुरक्षा सबसे पहली चीज है जिस पर उन्हें विचार करना चाहिए। अगर यह स्पष्ट नहीं है कि संभावित सुसमाचार प्राप्तकर्ता किस तरह के लोग हैं या क्या ये लोग गलत काम कर सकते हैं, तो सुसमाचार प्रचार करने के लिए लोगों को भेजते समय सावधानी बरतनी चाहिए। मैंने सुना है कि पहले कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर युवा बहनों को—करीब 18 या 19 वर्ष की या 20-22 वर्ष के आस-पास की बहनों को—सुसमाचार प्रचार के लिए अनजान जगहों पर भेजते थे; और पता चला है कि उनके साथ कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ भी घटीं हैं। वास्तव में चाहे जो भी हुआ हो, आखिरकार यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा काम करते समय पूरी तरह से विचारशील नहीं होने का मामला था। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने काम में इन चीजों को ध्यान में रखना चाहिए और उन्हें बहुत कम उम्र के भाई-बहनों को अपने कर्तव्य निभाने के लिए अनजान और खतरनाक जगहों पर नहीं भेजना चाहिए। एक बार किसी अगुआ ने 18 या 19 साल की दो बहनों को सुसमाचार प्रचार के लिए भेजा था। जब किसी ने कहा कि वे इसके लिए बहुत छोटी और अनुपयुक्त हैं तो अगुआ ने यह सोचकर उनके बजाय किसी 21 साल की बहन को भेजा, “तुमने कहा कि 19 वर्ष वाली बहन बहुत छोटी है तो मैंने 21 साल की बहन को ढूँढ लिया। यह तो बड़ी है, है ना?” इस अगुआ की काबिलियत कैसी थी? वह गड़बड़ियाँ कर सकता था, है ना? (बिल्कुल।) 19 वर्ष से केवल दो वर्ष बड़ी होने के कारण—क्या उसे जीवन का अनुभव हो सकता था? क्या उसे समाज का अनुभव हो सकता था? कठिनाइयों या खतरनाक स्थितियों का सामना करते समय क्या वह रोने लगी होगी? भले ही वह उस बहन से दो साल बड़ी थी, मगर वह अभी भी बहुत छोटी थी और इस काम के लिए सक्षम नहीं थी। कम से कम, ऐसे भाई या बहन को ढूँढना जरूरी है जो अपनी उम्र के 30 या 40 के दशक में हों या फिर 50 या 60 के दशक में हों—वे बड़े होते हैं और समाज में अनुभव रखते हैं; परिस्थितियों का सामना करते समय उनके पास उन्हें संभालने की बुद्धिमत्ता होती है, वे कोई भी खतरनाक स्थिति पैदा होने से रोक सकते हैं। युवा लोगों ने कई चीजों को नहीं देखा होता है या अनुभव नहीं किया होता है और वे नहीं जानते कि उन्हें कैसे संभालना है; खतरे का सामना करते समय शायद उन्हें इसका एहसास तक न हो, जिससे घटनाओं का होना आसान हो जाता है। बड़े लोग इस समाज और इस मानवजाति में अधिक दुष्टता देख चुके होते हैं, वे लोगों के प्रति ज्यादा सतर्क होते हैं। समाज में अपने अनुभव और वास्तविक जीवन से प्राप्त ज्ञान के आधार पर वे कुछ उचित फैसले ले सकते हैं, जैसे कि कुछ स्थितियों में किस तरह का खतरा उत्पन्न हो सकता है, खतरे का स्तर कितना अधिक है, कौन बुरे लोग हैं और कुछ लोग किस तरह की चीजें कर सकते हैं। खतरनाक स्थितियों का सामना करते समय उनके पास खतरे से बचने की बुद्धिमत्ता भी होती है। वहीं दूसरी ओर, युवा लोगों में अनुभव की कमी होती है। परिस्थितियों का सामना करते समय, वे संभावित खतरनाक परिणामों का अनुमान नहीं लगा सकते। इसलिए जब सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं की बात आती है तो युवा लोगों की तुलना में बड़े लोग ज्यादा विचारशील होते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता लोगों के लिए बाहर जाकर अपने कर्तव्य निभाने की व्यवस्था करें, तो उन्हें स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपने कर्तव्य निभाने में युवा लोगों का सहयोग करने के लिए उम्र में अपेक्षाकृत बड़े लोगों को भेजना चाहिए, जिनके पास बुद्धिमत्ता और अनुभव है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इन मामलों में पूरी तरह से विचारशील होना चाहिए।
कलीसिया का कार्य चाहे किसी भी देश में किया जाए, अपने कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना ऐसा काम है जिस पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को पूरा ध्यान देना चाहिए। चाहे किसी को कोई भी काम करने के लिए भेजा जाए, उसके पास एक निश्चित काबिलियत और थोड़ी क्षमता होनी चाहिए ताकि वह उस काम को करने में सक्षम हो और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके; विशेष रूप से, यह उन इलाकों या देशों में और भी ज्यादा जरूरी है जहाँ जन सुरक्षा की स्थिति खराब है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपने कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए, लापरवाही से इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “कोई बात नहीं। हम परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभा रहे हैं—हमारे पास परमेश्वर की सुरक्षा है, कोई नहीं मरेगा। हमारे साथ संभवतः क्या गलत हो सकता है?” क्या उनका ऐसा कहना सही है? (नहीं।) क्यों नहीं? (इस तरह से बोलना गैर-जिम्मेदाराना है और यह दृष्टिकोण वास्तविकता से बहुत अलग भी है।) लोगों को अपनी उन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए जिन्हें वे पूरा करने में सक्षम हैं और उन चीजों पर ध्यान देना चाहिए जिन पर वे विचार करने में सक्षम हैं; उन्हें परमेश्वर की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए या भाई-बहनों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। परमेश्वर लोगों की सुरक्षा कर सकता है, लेकिन अगर तुम उन समस्याओं पर विचार नहीं करते जिन पर तुम विचार करने में सक्षम हो और तुम परमेश्वर की परीक्षा लेने के लिए भाई-बहनों की सुरक्षा को दांव पर लगा देते हो तो परमेश्वर तुम्हें बेनकाब कर देगा—किसने तुम्हें इतना मूर्ख बनाया कि तुम ऐसी बेवकूफी भरी चीजें करते हो! इसलिए, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस तरह की बातों को गैर-जिम्मेदाराना चीजें करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए; अपने कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करना तुम्हारी जिम्मेदारी है और तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए। जब तुम हर उस चीज पर ध्यान दे चुके होते हो जिसके बारे में सोचने और जिसे करने में तुम सक्षम हो, उसके बाद जिस बारे में तुमने विचार नहीं किया है उसे लेकर परमेश्वर कैसे काम करेगा, यह परमेश्वर का अपना मामला है और इसका तुमने कोई लेना-देना नहीं है। कुछ लोग बिना सोचे-विचारे सारी जिम्मेदारी परमेश्वर पर डालकर कहते हैं, “लोगों की सुरक्षा के लिए परमेश्वर जिम्मेदार है, हमें डरने की जरूरत नहीं है; हम जैसे चाहें वैसे प्रचार कर सकते हैं। परमेश्वर के साथ सब कुछ स्वतंत्र और मुक्त है; हमें उन चीजों को लेकर परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है!” क्या इस तरह का बयान सही है? (नहीं।) इस तरह के बयान के हिसाब से, जब घटनाएँ घटे तो लोगों को सिद्धांत खोजने की कोई जरूरत नहीं है; अगर ऐसा होता तो परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्य का क्या काम होता? यह बेकार होता। इन वर्षों में परमेश्वर ने लोगों को सिखाने के लिए धैर्यपूर्वक और कड़ी मेहनत से बहुत सारे वचन बोले हैं, ताकि परमेश्वर के चुने हुए लोग उसके इरादों के अनुसार जीवन जीना, सत्य का अनुसरण करना, इस बुरे संसार में और इस बुरी मानवजाति के बीच एक इंसान होना सीख सकें। परमेश्वर की परीक्षा लेना तुम्हारा काम नहीं है, न ही यह तुम्हारा काम है कि तुम शब्दों और धर्म-सिद्धांतों के अनुसार और सिद्धांतों के बिना अपनी मनमर्जी से काम करो। सुसमाचार प्रचार में अच्छा काम करने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। ऐसा करने के लिए, उन्हें सबसे पहले अपने कर्तव्य निभाने वालों की विशिष्ट परिस्थितियों का पता लगाना और उन्हें समझना होगा, उपयुक्त लोगों को भेजना होगा और यह भी समझना होगा कि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्थितियों में क्या करना चाहिए। अगर कोई जगह विशेष रूप से अव्यवस्थित है, वहाँ कोई जान-पहचान वाला नहीं है और जो कोई भी वहाँ सुसमाचार प्रचार करने जाता है उसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती, तो फिलहाल वहाँ लोगों को मत भेजो; यह जोखिम मत लो, अनावश्यक त्याग मत करो। चाहे कोई भी कर्तव्य या कोई भी कार्य किया जा रहा हो, इसके लिए तुम्हें संसार में जाने या अपने जीवन को खतरे में डालने की जरूरत नहीं है, न ही तुम्हें अपनी सुरक्षा या अपने जीवन को दांव पर लगाने की कोई जरूरत है। बेशक, चीन के परिवेश में अपना कर्तव्य निभाने के लिए खतरा मोल लेना ही पड़ता है। सरकार परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को सताती है और यह अच्छी तरह से जानते हुए भी कि खतरा है, तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखना, परमेश्वर का अनुसरण करना और अपना कर्तव्य निभाना चाहिए; तुम अपने कर्तव्य को त्याग नहीं सकते और कोई भी कार्य रोका नहीं जा सकता। दूसरे देशों में स्थितियाँ बिल्कुल अलग हैं—कुछ चीन के समान सत्तावादी देश हैं जबकि अन्य देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में सुसमाचार प्रचार का काम सुचारू रूप से आगे बढ़ सकता है और काम के विभिन्न हिस्सों को भी अधिक सुचारू रूप से पूरा किया जा सकता है। मगर सत्तावादी लक्षणों वाले कुछ देशों में लोग असभ्य और पिछड़े होते हैं और उनके लिए सच्चे मार्ग को स्वीकारना आसान नहीं होता। जब उन्हें सुसमाचार सुनाया जाता है तो न केवल वे इसकी जाँच नहीं करते, बल्कि बिना सोचे-समझे इसकी निंदा भी करते हैं और यहाँ तक कि पुलिस को स्थिति की रिपोर्ट भी कर सकते हैं। ऐसे मामलों में, लोगों को वहाँ सुसमाचार प्रचार के लिए मत भेजो; इसके बजाय ऐसी जगहें ढूँढ़ो जहाँ कार्य करने के लिए सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। ये सभी ऐसी चीजें हैं जिन पर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सावधानी से विचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, मलेशिया, इंडोनेशिया या भारत जैसे देशों में, जिनकी धार्मिक पृष्ठभूमि बहुत जटिल है, कुछ धार्मिक संप्रदायों का बहुत प्रभाव होता है और वे पूरे समाज को इस हद तक नियंत्रित करते हैं कि सरकारें भी इन धर्मों के प्रभाव के आगे घुटने टेक देती हैं। ऐसे देशों में सुसमाचार प्रचार करने के लिए और लोगों को मत भेजो; केवल स्थानीय कलीसियाओं द्वारा सुसमाचार प्रचार करना ही पर्याप्त है। कुछ देशों में, अलग-अलग राज्यों या प्रांतों में स्थिति अलग-अलग होती है, स्थानीय कानून और विनियम राष्ट्रीय कानूनों और विनियमों से भिन्न होते हैं। जैसे, कुछ इलाकों की विशेष धार्मिक पृष्ठभूमि होती है, उन इलाकों में कलीसिया और राज्य एकीकृत होते हैं। कुछ मामलों में, धार्मिक अगुआओं के पास स्थानीय सरकारी अधिकारियों से भी ज्यादा अधिकार होते हैं और वे कुछ राष्ट्रीय नीतियों का खुलेआम उल्लंघन कर सकते हैं। अगर तुम ऐसे इलाकों में जाकर सुसमाचार प्रचार करते हो तो संभावित सुरक्षा जोखिम होंगे। ये संभावित जोखिम तुम्हारे बारे में अफवाहें गढ़ने या तुम्हें खदेड़ने तक सीमित नहीं हैं—तुम्हें गिरफ्तार करके बिना किसी आरोप के जेल में बंद किया जा सकता है, यहाँ तक कि तुम्हें यातना देकर अपंग बनाया जा सकता है या जान से मारा भी जा सकता है और सरकार इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी। वास्तव में, ज्यादातर धार्मिक संप्रदायों के अगुआ बाहरी धर्मों से नफरत करते हैं। क्योंकि उनका प्रभाव बहुत ज्यादा है और वे किसी भी कानून द्वारा नियंत्रित नहीं हैं; कोई भी उन्हें जवाबदेह ठहराने की हिम्मत नहीं करता, चाहे वे सुसमाचार कार्यकर्ताओं पर कितनी भी क्रूरता से अत्याचार क्यों न करें; यहाँ तक कि स्थानीय सरकारी अधिकारी भी उन्हें नाराज नहीं करना चाहते। जैसै ही तुम उनके इलाके में सुसमाचार प्रचार करने लगोगे, वे जैसे चाहें वैसे तुम्हें परेशान कर सकते हैं। इसलिए, लोगों को कहीं भी सुसमाचार प्रचार के लिए भेजते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बहुत सतर्कता बरतनी चाहिए। सबसे पहले, उन्हें उस जगह की स्थिति के बारे में छानबीन करना और जानना चाहिए—क्या वहाँ विश्वास रखने की स्वतंत्रता है, धार्मिक ताकतें कितनी शक्तिशाली हैं और अगर वहाँ सुसमाचार प्रचार करने वाले लोगों की रिपोर्ट की जाती है तो क्या परिणाम हो सकते हैं। लोगों को वहाँ भेजना है या नहीं, यह तय करने से पहले इन बातों को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए। अगर किसी जगह के बारे में जानने के बाद पता चलता है कि यह सुसमाचार प्रचार के लिए उपयुक्त नहीं है तो वहाँ लोगों को प्रचार करने के लिए भेजने की इजाजत किसी को भी नहीं है। यह भी उस कार्य का एक हिस्सा है जो सुसमाचार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाना चाहिए। कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की समझ विकृत होती है और वे कहते हैं, “कोई बात नहीं; परमेश्वर हमारी रक्षा करेगा। चुनौती जितनी कठिन होगी, हमें उसका उतना ही डटकर सामना करना चाहिए। उस जगह पर प्रभु में विश्वास रखने वाले बहुत-से लोग हैं, तो हम वहाँ जाकर सुसमाचार प्रचार क्यों न करें?” कोई उनसे कहता है, “वहाँ निजी जेलें हैं। अगर हम सुसमाचार प्रचार के लिए वहाँ गए तो न सिर्फ हमें हिरासत में ले लिया जाएगा, बल्कि हम वहाँ मर भी सकते हैं। हम नहीं जा सकते!” वे बेवकूफ झूठे अगुआ इस पर विचार करते हैं, “बड़े लाल अजगर के पास बहुत-सी जेलें हैं, मगर हम उससे नहीं डरते—तो हमें वहाँ की निजी जेलों से क्यों डरना चाहिए? जेलें हमारे शरीर को तो पकड़ सकती हैं, मगर हमारे दिलों को नहीं! डरो मत—बस चले जाओ!” फिर वे लोगों की एक के बाद एक टोली भेजते हैं और अंत में उनमें से कोई भी वापस नहीं आता; उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है। झूठे अगुआ चौंक जाते हैं। यहाँ समस्या क्या है? (ऐसे झूठे अगुआ बेवकूफ हैं।) ऐसे झूठे अगुआ बदमाश हैं; वे गैर-जिम्मेदार हैं, लोगों को खतरे में धकेलते हैं। वे खुद क्यों नहीं जाते? अगर वे खतरे से नहीं डरते तो उन्हें पहले जाना चाहिए। अगर वे वहाँ जाकर सुरक्षित वापस लौटते हैं, लोगों को हासिल करते हैं तो अन्य लोग उनके पीछे जा सकते हैं। चाहे कुछ भी हो, सुसमाचार प्रचार करते समय लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन इलाकों में जोखिम बिल्कुल मत लो जो खतरनाक हैं और सुसमाचार प्रचार के लिए उपयुक्त नहीं हैं। यह मत मानो कि चीन की मुख्य भूमि के बाहर कोई भी जगह सुरक्षित है; यह एक भ्रम है, एक विकृत समझ है। सिर्फ अज्ञानी लोग ही इस तरह सोचते हैं—ऐसे लोग इस संसार के बारे में बहुत कम समझते हैं! यह मत मानो कि चूँकि ज्यादातर पश्चिमी देशों में विश्वास रखने की स्वतंत्रता है और वहाँ ऐसे कई लोग हैं जो प्रभु में विश्वास रखते हैं, इसलिए तुम खुलेआम सुसमाचार प्रचार कर सकते हो और वहाँ का धार्मिक समुदाय कितना अंधकारमय और दुष्ट है इसे उजागर करने वाले विभिन्न प्रकार के बयान खुलेआम दे सकते हो; अगर तुम ऐसा करते हो तो परिणाम अकल्पनीय होंगे। चाहे धार्मिक लोगों के सामने हो या फिर अविश्वासियों के, सुसमाचार प्रचार करते समय तुम्हें यह समझना चाहिए कि तुम भ्रष्ट मानवजाति का सामना कर रहे हो, उस मानवजाति का जो परमेश्वर का विरोध करती है। इस मामले को ज्यादा सरलता से मत लो।
अगर अगुआ और कार्यकर्ता सुसमाचार कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं तो उन्हें इस मुद्दे के सभी पहलुओं पर पूरी तरह से विचार करना चाहिए; और अगर कोई समस्या उत्पन्न होती है तो उसे तुरंत संभाला जाना चाहिए और उसके बाद, सिद्धांत और अभ्यास का मार्ग खोजने के लिए अनुभवों और सबकों का सारांश तैयार करना चाहिए; यह निर्धारित करना चाहिए कि आगे कैसे अभ्यास करना है—यह भी कार्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसे जरूर किया जाना चाहिए। कुछ ऐसे मामले हैं जिनके बारे में अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने पहले विचार नहीं किया या जिनसे उनका सामना नहीं हुआ है; समस्याएँ उत्पन्न होने के बाद उनका सारांश तैयार करना चाहिए : “क्या हमें अभी भी वैसी जगह पर जाना चाहिए? क्या लोगों को भेजने का यह तरीका सही है? क्या हमें सुसमाचार प्रचार या कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए अगले चरणों की योजनाएँ, रणनीति या दिशा बदलनी चाहिए?” सारांश तैयार करने की निरंतर प्रक्रिया में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को धीरे-धीरे कार्य के तरीके और सिद्धांत निर्धारित करने चाहिए, ताकि जितना ज्यादा वे कार्य करें, यह उतना ही विशिष्ट हो और अपेक्षित मानक पर खरा उतरे, कम आकस्मिकताएँ हों या कोई आकस्मिकताएँ हों ही नहीं या यहाँ तक कि महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों को कोई जोखिम न उठाना पड़े। यह नतीजा हासिल करने के लिए अगुओं और कार्यकर्ताओं को अक्सर अनुभवों का सारांश तैयार करना चाहिए और सुसमाचार प्रचार करते समय विभिन्न इलाकों में सामने आने वाले विभिन्न परिवेशों और स्थितियों की समझ हासिल करनी चाहिए। वे जितनी ज्यादा और जितनी सटीक जानकारी प्राप्त करेंगे, मामलों को संभालने के सिद्धांत और योजनाएँ उतनी ही ज्यादा सटीक होंगी, जिससे आखिरकार लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का नतीजा हासिल होगा। इस तरह यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि सुसमाचार प्रचार का काम व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़े।
III. सुरक्षा कार्य पर ध्यान न देने वाले अगुआओं और कार्यकर्ताओं से कैसे निपटें
कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं में कम काबिलियत होती है और उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं होती; वे वास्तविक कार्य नहीं कर पाते और वास्तविक कार्य करने में बहुत आलसी भी हैं। जिन इलाकों के लिए वे जिम्मेदार हैं वहाँ महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वाले लोग अक्सर सुरक्षा जोखिमों का सामना करते हैं, जिसके कारण उन्हें कहीं और जाना या स्थानांतरित होना पड़ता है, जिससे वे शांत मन से अपना कर्तव्य निभाने में असमर्थ होते हैं। यहाँ तक कि जो चीजें नहीं होनी चाहिए वे भी अक्सर होती हैं। उदाहरण के लिए, किसी अगुआ या कार्यकर्ता को ऐसा मेजबान घर मिलता है जो निचले इलाके में स्थित है। जब भारी बारिश और बाढ़ की संभावना होती है तो घर के डूब जाने के डर से वहाँ रहने वाले भाई-बहनों को पहले ही वहाँ से हटना पड़ता है—काम के उपकरण, बर्तन, कड़ाही और बाकी सारी चीजें लेकर लगातार दो दिनों तक चलना पड़ता है। इससे सभी बुरी तरह थक जाते हैं और निराशा में उनके मुँह लटक जाते हैं। वे कहते हैं, “हम हर कुछ दिनों में जगह बदल रहे हैं, हमेशा भागते रहते हैं। यह सिलसिला कब खत्म होगा? क्या हमें ऐसा सुरक्षित और भरोसेमंद घर नहीं मिल सकता जहाँ हम सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा सकें?” ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता इतना छोटा-सा काम भी नहीं कर सकते; उनके अधीन रहने वाले भाई-बहन न तो ठीक से खा पाते हैं, न अच्छे से सो पाते हैं और न ही उनके पास पर्याप्त आवास होता है। वे हमेशा अस्थायी रूप से रहते हैं, हर कोई किसी भी समय आपदा से भागने के लिए तैयार रहता है। जैसे ही उनकी रोजमर्रा की चीजों का इस्तेमाल पूरा होता है, वे जल्दी से उन्हें पैक कर देते हैं, क्योंकि किसी भी समय ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहाँ परिवार के पंजीकरण की जाँच की घोषणा की जा सकती है। वास्तव में, हर कोई जानता है कि इसका मतलब परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों को खोजना है, इसलिए उन्हें किसी भी समय दूसरी जगह जाने के लिए तैयार रहना पड़ता है। इसी वजह से, कर्तव्य निभाने वाले लोग हमेशा डरे हुए रहते हैं और उनमें सुरक्षा की भावना नहीं होती। क्या इससे उनके कर्तव्य के नतीजे प्रभावित नहीं होते? क्या यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा किए जाने वाले कार्य से संबंधित नहीं है? (बिल्कुल है।) वे यह कार्य कैसा कर रहे हैं? (वे इसे खराब तरीके से कर रहे हैं, अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं।) कुछ अगुआ और कार्यकर्ता गैर-जिम्मेदार होते हैं और उनमें समर्पण की कमी होती है। उनकी खुद की रहने की स्थिति उच्च मानकों वाली नहीं हैं; अगर उन्हें हवा और बारिश से बचने के लिए कोई जगह मिल जाए तो यही काफी है। इसलिए, वे भाई-बहनों के रहने के लिए भी सुरक्षित और स्थायी जगह खोजने की पूरी कोशिश नहीं करते। कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं में कम काबिलियत होती है; वे नहीं जानते कि किस तरह का परिवेश शांत और रहने के लिए उपयुक्त है या फिर भाई-बहनों के लिए अपना कर्तव्य निभाने के लिए उपयुक्त है। वे किसी निचली जगह पर स्थित घर किराये पर लेते हैं जिसे कोई और किराये पर नहीं लेना चाहता; और भाई-बहनों के वहाँ रहने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें दाद हो जाते हैं, पूरे शरीर पर खाज-खुजली होने लगती है। यह क्या हो रहा है? घर बहुत नम है, फर्श से पानी रिस रहा है। क्या कोई ऐसी जगह पर रह सकता है? ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता इस समस्या को भी हल नहीं कर सकते, वे कर्तव्य निभाने के लिए एक उपयुक्त घर नहीं ढूँढ़ सकते—यह कैसी काबिलियत है? कुछ अन्य अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे घर किराये पर लेते हैं जिनमें लगातार बारिश का पानी टपकता रहता है, हवा के झोंके अंदर आते हैं, कोई साउंड प्रूफिंग नहीं है या फिर इंटरनेट, पानी या बिजली नहीं है—कोई वहाँ कैसे रह सकता है? वे अच्छे घरों को नजरंदाज करके इन खराब घरों को किराये पर लेने पर जोर देते हैं—क्या इससे मामलों में बाधा नहीं आती? भले ही भाई-बहन खुले में परेशान नहीं हो रह रहे हैं, मगर घर की कई बुनियादी सुविधाएँ उन्हें नहीं मिल रही हैं; इससे तो उनके लिए तंबू में रहना ही बेहतर होता। भले ही ज्यादातर भाई-बहन कठिनाई सहने के आदी हों, उन्हें लगे कि इस स्तर की कठिनाई सहना कोई बड़ी बात नहीं है और वे इसे सह सकते हैं, मगर क्या हर कुछ दिन में लगातार इस तरह सताए जाने से उनके कर्तव्य निर्वहन पर प्रभाव नहीं पड़ेगा? इसलिए, अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं में कम काबिलियत है और उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं है तो वे इस काम का बोझ नहीं उठा सकते; उन्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए और किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त करने की सिफारिश करनी चाहिए जो यह काम अच्छी तरह कर सकता हो, ताकि वे ज्यादातर महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के जीवन और कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित न करें। महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों के लिए नियुक्ति स्थानों की व्यवस्था करने में हर एक पहलू पर विचार करने की जरूरत नहीं है, मगर कम से कम रहने का बुनियादी परिवेश जरूर सुनिश्चित किया जाना चाहिए। जब यह चीज सुनिश्चित होगी तभी कलीसिया का काम प्रभावित नहीं होगा। क्या यह काम करना आसान है? (बिल्कुल आसान है।) यह कहना तो सरल है कि इसे करना आसान है, लेकिन अगर अगुआ और कार्यकर्ता कम काबिलियत वाले भ्रमित लोग हैं और उनमें जिम्मेदारी की भावना नहीं है तो वे इस काम को नहीं कर सकते। जब अगुआ और कार्यकर्ता यह काम नहीं कर सकते या इसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते, तो बहुत-से लोगों को इसके परिणाम भुगतने पड़ते हैं, वे हर दिन ऐसे जीते हैं जैसे वे किसी अकाल से भाग रहे हों—वे इस तरह अपना कर्तव्य कैसे निभा सकते हैं? कुछ झूठे अगुआ सत्य सिद्धांत नहीं समझते, फिर भी वे चर्चा में बने रहना पसंद करते हैं। वे काम को अच्छी तरह से नहीं कर सकते, फिर भी पीछे हटने से इनकार करते हैं, अपने पद से चिपके रहते हैं और उसे नहीं छोड़ते। ऐसे अगुआओं से कैसे निपटा जाना चाहिए? (उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए।) उन्हें बर्खास्त करना आसान है; समस्या यह है कि क्या उनका काम संभालने के लिए कोई बेहतर व्यक्ति है या नहीं। अगर नहीं, तो क्या तुम लोग इस काम का बोझ उठा सकते हो? क्या तुम यह गारंटी ले सकते हो कि महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों के पास रहने का स्थायी परिवेश होगा? अगर कोई एक व्यक्ति इसे नहीं संभाल सकता तो क्या तुम में से तीन या पाँच लोग मिलकर इस काम का बोझ उठा सकते हैं? अगर तुम लोग भी इस काम को नहीं संभाल सकते—अगर तुम इतना आसान काम भी नहीं कर सकते, एक बुनियादी आवासीय परिवेश भी सुनिश्चित नहीं कर सकते—तो तुम लोगों को फिलहाल थोड़ी और कठिनाई और पीड़ा सहनी होगी। अगर तुम अभी भी अपना कर्तव्य निभाने में लगे रहते हो और परमेश्वर यह देखकर कि कठिनाई सहने का तुम्हारा संकल्प काफी दृढ़ है, किसी ऐसे व्यक्ति को भेजता है जो चीजों को भरोसेमंद तरीके से संभालता है और काम करने के लिए समस्याएँ हल कर सकता है, तो तुम लोगों के दुख के दिन खत्म हो जाएँगे और अच्छे दिन आ जाएँगे। अगर इन समस्याओं को हल करने के लिए ऐसा कोई व्यक्ति नहीं आता है तो तुम लोगों को अपना भाग्य स्वीकारना होगा—कठिनाई सहना तुम्हारी नियति है, तुम्हें यह झेलना ही होगा; तुम्हें अपना दिल शांत करके इसे सहना होगा। वास्तव में, इतनी कठिनाई सहना सार्थक है; यह जेल में रहने और यातना सहने से कहीं बेहतर है। कम से कम तुम्हें यातना या पूछताछ का सामना तो नहीं करना पड़ता; तुम अभी भी परमेश्वर के वचन पढ़ सकते हो, अपना कर्तव्य निभा सकते हो और भाई-बहनों के साथ मिलकर कलीसियाई जीवन जी सकते हो। भले ही रास्ते में कुछ डर, नाकामियाँ और अड़चनें हैं और तुम्हें अक्सर जगह बदलनी पड़ती है, फिर भी यह तुम्हारे जीवन का एक असाधारण अनुभव है, जिससे तुम सबक सीख कर कुछ हासिल कर सकते हो। क्या यह काफी अच्छा नहीं है? (बिल्कुल है।) लोगों में कठिनाई सहने का संकल्प होना चाहिए और परमेश्वर को उसकी इच्छानुसार आयोजन करने देना चाहिए। अगर तुम वाकई यह कठिनाई नहीं सह सकते तो तुम अपने दिल में ईमानदारी से परमेश्वर से प्रार्थना कर सकते हो : “परमेश्वर, हम तुझसे विनती करते हैं कि हम पीड़ित लोगों पर ध्यान दे—हम कितने दयनीय हैं! हम बिना किसी शिकायत या पछतावे के तेरा अनुसरण करते हैं! हम प्रार्थना करते हैं कि तेरे प्रति हमारी इस अटूट निष्ठा को देखते हुए हमारे इस कठिनाई भरे जीवन का अंत कर दे! हम तुझसे विनती करते हैं कि हमारे लिए उपयुक्त जगह खोजने के लिए किसी उपयुक्त अगुआ या कार्यकर्ता को भेज दे! हम लगातार खुले में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, हर दिन इधर से उधर भाग रहे हैं और पता नहीं कि यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा। हम अब और जगह नहीं बदलना चाहते—हमारे लिए एक स्थायी निवास स्थान खोज दे!” क्या इस तरह से प्रार्थना करना उचित है? तुम इस तरह से प्रार्थना कर सकते हो; परिवेश की आवश्यकताओं के हिसाब से तुम्हें इस तरह प्रार्थना करनी चाहिए।
दूसरे नजरिये से देखें तो कठिनाई सहना इतनी बुरी बात नहीं है; थोड़ी कठिनाई सहने से तुम्हारी इच्छाशक्ति निखर सकती है। अपनी इच्छाशक्ति निखरने का क्या मतलब है? यही कि लगातार इस कठिनाई को सहने से तुम इसके प्रति सुन्न हो जाते हो और इसे कठिनाई नहीं मानते; चाहे तुम कितनी भी कठिनाई सहो, तुम्हें अब दर्द महसूस नहीं होता। लेकिन परिस्थितियों का सामना करते हुए तुम्हें कुछ सबक सीखने चाहिए, कुछ अंतर्दृष्टि हासिल करनी चाहिए और लोगों का भेद पहचानना सीखना चाहिए। अगर किसी अगुआ या कार्यकर्ता में बहुत कम काबिलियत है और वह नियुक्ति स्थानों की व्यवस्था करने का काम भी ठीक से नहीं कर सकता, तो वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण कैसे देगा और उनका नेतृत्व कैसे कर सकेगा? ऐसे लोग अगुआ या कार्यकर्ता बनने के लायक नहीं हैं। परमेश्वर के घर के पास किराये पर घर लेने के लिए पैसों की कमी नहीं है और वह भाई-बहनों को बिना किसी स्थायी जगह के यूँ भटकते नहीं देखना चाहेगा। परमेश्वर का घर लोगों को हमेशा कठिनाई सहने या हर दिन कठिन जीवन जीने की वकालत नहीं करता, हालाँकि बेशक वह लोगों को कोई कठिनाई सहने देने से कतराता भी नहीं है। लेकिन अगर अगुआ और कार्यकर्ता नियुक्ति स्थानों की व्यवस्था करने का काम भी नहीं संभाल सकते और कोई भी काम सही से करना उनके लिए वास्तव में एक संघर्ष है, तो उनके पास घमंड करने के लिए क्या बचा है? उनमें से हर कोई दिखने में अच्छा है, हर किसी के पास डिप्लोमा है और हर कोई रुतबे वाला व्यक्ति है, फिर भी इस छोटे से मामले को संभालना उनके लिए एक संघर्ष है। ऐसे मामले में कुछ भी नहीं किया जा सकता—तुम इसे बस परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार सकते हो। लोगों को यह कठिनाई सहनी ही चाहिए; तुम्हें परमेश्वर को उसकी इच्छानुसार आयोजन करने देना चाहिए। यह सही है। क्या पता एक दिन इस कठिनाई के बाद बेहतर दिन आएँ और इस तरह का जीवन नहीं जीना पड़े। चाहे तुम किसी भी तरह के परिवेश में हों, तुम्हें समर्पण का रवैया बनाए रखना चाहिए और शिकायत नहीं करनी चाहिए। अगर कोई अगुआ या कार्यकर्ता भरोसेमंद नहीं है और काम अच्छी तरह से नहीं करता है, तो इससे अपनी ईमानदारी और परमेश्वर के प्रति निष्ठा प्रभावित मत होने दो; न ही इससे परमेश्वर के प्रति अपना समर्पण और परमेश्वर के प्रति समर्पण का रवैया प्रभावित होने दो। इस तरह तुम इस मामले में दृढ़ रहोगे। अगुआ और कार्यकर्ता बस साधारण लोग हैं। अगर उनकी काबिलियत कम है और वे काम नहीं कर सकते या अगर वे झूठे अगुआ हैं जो अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करते, तो यह उनकी व्यक्तिगत समस्या है और इसका परमेश्वर के घर से कोई लेना-देना नहीं है। परमेश्वर के घर ने उन्हें इस तरह काम करने के लिए नहीं कहा था; बात बस इतनी है कि उनकी गैर-जिम्मेदारी के कारण उन्हें बेनकाब किया गया है। वे परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सौंपे गए कार्य को पूरा नहीं कर सकते और इस प्रकार उन्हें केवल बर्खास्त किया जा सकता है और हटाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में, जब परमेश्वर के चुने हुए लोग इस कठिनाई को सहते हैं, तो उन्हें इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारना चाहिए और परमेश्वर को उसकी इच्छानुसार आयोजन करने देना चाहिए। भले ही अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने काम अच्छी तरह से नहीं किया हो या उन्हें कोई समस्या हो, यह तथ्य कि परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है, कभी नहीं बदलेगा। तुम्हारा परमेश्वर का अनुसरण करना, परमेश्वर के प्रति समर्पण करना और परमेश्वर के वचन स्वीकारना कभी नहीं बदलना चाहिए। ये शाश्वत सत्य हैं। अपना कर्तव्य निभाते समय चाहे कोई भी अप्रिय मामला सामने क्यों न आए, तुम्हें उसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारना चाहिए और उसमें से सबक सीखने चाहिए। तुम्हें परमेश्वर के सामने खुद को शांत करके उससे प्रार्थना करनी चाहिए और खुद को बाहरी संसार से प्रभावित नहीं होने देना चाहिए। तुम्हें विभिन्न परिवेशों के अनुकूल होना सीखना चाहिए और सभी प्रकार के परिवेशों में परमेश्वर के कार्य का अनुभव करना सीखना चाहिए। केवल इसी तरह से तुम जीवन प्रवेश प्राप्त कर सकते हो। कुछ लोगों का आध्यात्मिक कद छोटा होता है; जब कठिनाई आती है तो वे शिकायत करते हैं और दुखी हो जाते हैं, बेचैनी महसूस करते हैं और परमेश्वर में आस्था खो देते हैं—यह बेहद बेवकूफी भरा और अज्ञानतापूर्ण है! जो अगुआ और कार्यकर्ता वास्तविक कार्य नहीं करते, उन्हें उजागर करके हटा दिया गया है, मगर इसका तुमसे क्या लेना-देना है? उनके द्वारा चीजों को गलत तरीके से व्यवस्थित करने के कारण तुम नकारात्मक और परमेश्वर से दूर क्यों हो गए? क्या यह पूरी तरह से विद्रोही नहीं है? (बिल्कुल है।) जब लोग कुछ गलत करते हैं तो तुम उन्हें पहचानकर अस्वीकार कर सकते हो, मगर परमेश्वर को या सत्य को अस्वीकार मत करो। सत्य गलत नहीं है, परमेश्वर गलत नहीं है। परमेश्वर का मूल इरादा यह नहीं है कि लोग ऐसी कठिनाई सहें; मगर भ्रष्ट मानवजाति के लिए थोड़ी कठिनाई सहना वास्तव में जरूरी है। थोड़ी कठिनाई सहने में तुम्हारा ही फायदा है; इसका फायदा यह है कि तुम सबक सीखते हो और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य खोजना सीखते हो। अगर तुम विभिन्न प्रकार की कठिनाइयाँ सह सकते हो तो तुममें थोड़ी सहनशीलता आती है और सभी प्रकार के परिवेशों में अपनी गवाही में दृढ़ रहने में सक्षम बन जाते हो। कठिनाई सहने में सक्षम होने से परमेश्वर के प्रति समर्पण करने का तुम्हारा संकल्प निखरता है। यह परमेश्वर का मूल इरादा है और वह नतीजा है जो परमेश्वर तुममें देखना चाहता है। अगर तुम परमेश्वर के इरादों को समझकर उसके इरादों के अनुसार कार्य और अभ्यास कर सकते हो; अगर तुम किसी भी प्रकार के लोगों या परिवेशों का सामने करने पर परमेश्वर को त्यागने से बच सकते हो; और अगर तुम सत्य का अभ्यास करना सीख सकते हो, परमेश्वर के प्रति समर्पण कर सकते हो, सही समझ और रवैया रख सकते हो, परमेश्वर में अडिग आस्था बनाए रख सकते हो और चाहे तुम्हारा शरीर कितना भी कष्ट क्यों न सहे, तुम अपने दिल में परमेश्वर के बारे में शिकायत करने या उससे दूर होने से बच सकते हो; तो तुम्हारे पास आध्यात्मिक कद है।
अगुआओं और कार्यकर्ताओं को महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाने वालों की सुरक्षा करनी चाहिए, उन्हें बाहरी संसार के हस्तक्षेप से बचाना चाहिए। इस काम में कई बारीकियाँ शामिल हैं। पहली बात, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझना चाहिए कि इन विस्तृत कार्यों को विशेष रूप से कैसे कार्यान्वित किया जाए। इसके अलावा, कुछ विशेष परिस्थितियों का सामना करते समय, उन्हें सटीक फैसले लेने चाहिए और फिर परिस्थितियों को संभालने के लिए उपयुक्त सिद्धांत खोजने चाहिए और विशिष्ट योजनाएँ बनानी चाहिए। अंतिम लक्ष्य सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्य-कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। केवल इस तरह ही इस बात की गारंटी ली जा सकती है कि सुसमाचार प्रचार का काम व्यवस्थित तरीके से आगे बढ़ेगा। इस सिद्धांत का पालन करना सही है; इस कार्य को करने में अगुआओं और कार्यकर्ताओं का लक्ष्य और सिद्धांत यही है। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस लक्ष्य और सिद्धांत का सटीक रूप से पालन करते हैं, तो वे मूलतः इस कार्य को करने में मानक पर खरे उतरते हैं। इस कार्य में और कौन-सी समस्याएँ शामिल हैं? कुछ लोग कहते हैं, “मैं पहले कभी अगुआ या कार्यकर्ता नहीं रहा, न ही इस तरह के मामलों से मेरा सामना हुआ है। मैं नहीं जानता कि इस कार्य में मुझे क्या करना चाहिए और न ही मुझे इसे करना आता है। तो मुझे यह करने की जरूरत नहीं है—तुम्हारे सुरक्षित होने या नहीं होने की परवाह किसे है? तुम लोग खुद ही इसे संभालो।” क्या उनके लिए इस मामले से पल्ला झाड़ लेना स्वीकार्य है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को हटा देना चाहिए। अगर तुम वास्तविक कार्य नहीं करते तो तुम किस काम के हो? क्या हम तुम्हारी खूबसूरती के कारण सजावट के लिए तुम्हें रखते हैं? ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को बर्खास्त करके हटा देना चाहिए; उन्हें बिना कोई कार्य किए किसी पद पर रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। झूठे अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते—उनके पास अंतरात्मा या विवेक नहीं है, है ना? अगर उनके पास वाकई अंतरात्मा और विवेक होता तो वे समस्याएँ आने पर उन्हें सुलझाने के लिए सत्य क्यों नहीं खोजते? कोई भी सब कुछ जानकर पैदा नहीं होता; हर कोई समय के साथ चीजें सीखता है। अगर तुम सत्य खोज सकते हो तो तुम काम को अच्छी तरह से करने का तरीका खोज लोगे। अगर तुममें जिम्मेदारी की भावना है तो तुम काम को अच्छी तरह से करने का तरीका सोच लोगे। अगुआई का काम करना वास्तव में इतना मुश्किल नहीं है; अगर कोई सत्य खोज सकता है, तो काम को अच्छी तरह से करना आसान है। इसके अलावा, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास साझेदार होते हैं; अगर दो या तीन लोग एक दिल और दिमाग वाले हैं तो कोई भी काम पूरा करना आसान होता है। वर्तमान में, कई अगुआ और कार्यकर्ता प्रशिक्षण ले रहे हैं; वे समस्याएँ हल करने के लिए सभी चीजों में सत्य खोजने का प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस समय, कम से कम कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अगुआई के काम में सक्षम हैं और सुसमाचार फैलाने का कार्य अच्छी तरह से पूरा कर सकते हैं, है ना? (सही है।) तो आज की संगति हम यहीं पर रोकते हैं। फिर मिलेंगे!
20 जुलाई 2024