अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (28)
मद चौदह : सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो (भाग सात)
अगुआओं और कार्यकर्ताओं की चौदहवीं जिम्मेदारी है, “सभी प्रकार के बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को तुरंत पहचानो और फिर बहिष्कृत या निष्कासित कर दो।” पिछली बार हमने विभिन्न प्रकार के बुरे लोगों को पहचानने की दूसरी कसौटी के बारे में संगति की थी, जो उनकी मानवता पर आधारित है, जिसमें तीन अभिव्यक्तियाँ शामिल हैं। ये तीन अभिव्यक्तियाँ पढ़ो। (ज. किसी भी समय विश्वासघात करने में सक्षम होना; झ. किसी भी समय छोड़ने में सक्षम होना; ञ. ढुलमुल होना।) इन तीनों अभिव्यक्तियों के बारे में संगति करने के बाद क्या तुम इन्हें समझ गए हो? (हाँ।) जिन लोगों को ये समस्याएँ हैं उनमें से ज्यादातर लोगों में आम तौर पर सत्य समझने की क्षमता नहीं होती है; वे नहीं समझते हैं कि सत्य क्या है, ना ही वे यह समझते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखने का क्या अर्थ है। इसके अलावा, उनमें से कुछ लोग यह असलियत पहचान नहीं पाते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखने का क्या अर्थ है। उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखना सिर्फ धार्मिक आस्था है और इसके लिए सिर्फ धार्मिक कर्मकांडों का पालन करना ही काफी है। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का महत्व नहीं समझते हैं, और ना ही वे कर्तव्य करने का महत्व समझते हैं; वे अपने दिलों में इस बारे में भी अस्पष्ट हैं कि परमेश्वर का अस्तित्व है भी या नहीं और वे निश्चित नहीं हैं कि क्या परमेश्वर का अनुसरण करने का मार्ग सही है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उन्होंने कितने वर्षों से विश्वास रखा है या उन्होंने कितने धर्मोपदेश सुने हैं, वे कभी भी सच्चे मार्ग में एक नींव स्थापित करने में समर्थ नहीं होते हैं। फलस्वरूप, वे ढुलमुल होते हैं और अगर कुछ ऐसा होता है जो उन्हें नाखुश कर देता है, तो वे किसी भी समय कलीसिया छोड़ सकते हैं या कलीसिया के साथ विश्वासघात भी कर सकते हैं। परमेश्वर के घर में इन कई प्रकार के लोगों से निपटने के लिए विशिष्ट सिद्धांत हैं। उनकी अलग-अलग परिस्थितियों के आधार पर उनसे निपटने और उनका समाधान करने के लिए विशिष्ट योजनाएँ हैं; जिन लोगों को निष्कासित कर देना चाहिए उन्हें निष्कासित किया जाएगा और जिन्हें बहिष्कृत कर देना चाहिए उन्हें बहिष्कृत किया जाएगा। भले ही इनमें से कुछ लोग बुरे लोग ना हों और वे मसीह-विरोधी तो बिल्कुल भी ना हों, लेकिन उनकी इन अभिव्यक्तियों की प्रकृति और परमेश्वर में विश्वास रखने के प्रति उनके रवैयों के आधार पर वे परमेश्वर के घर के लोग नहीं हैं और ना ही वे सच्चे भाई-बहन हैं। अगर वे कलीसिया में रह भी जाएँ, तो भी उनके लिए सत्य समझना बहुत कठिन होगा। उनके लिए सत्य समझना कठिन होने के क्या आशय हैं? इसका आशय यह है कि क्योंकि वे कभी भी परमेश्वर के वचन समझने में समर्थ नहीं होते हैं और कभी भी सत्य समझने में समर्थ नहीं होते हैं, इसलिए अंत में, वे उद्धार प्राप्त करने में विफल हो जाएँगे और परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने में विफल हो जाएँगे। यानी, अंत में वे परमेश्वर के घर के लोग नहीं बन सकते हैं, सच्चे सृजित प्राणी नहीं बन सकते हैं और सृजित प्राणियों का कर्तव्य पूरा नहीं कर सकते हैं और परमेश्वर के सामने नहीं लौट सकते हैं। साथ ही, वे अक्सर कलीसिया में नकारात्मक भूमिका निभाते हैं। वे ना सिर्फ सकारात्मक प्रभाव डालने में विफल रहते हैं, बल्कि वे समय-समय पर बाधाओं और विनाश का कारण भी बनते हैं, जिससे कुछ लोगों की स्थितियाँ प्रभावित होती हैं और अपना कर्तव्य करने वाले कुछ लोग परेशान हो जाते हैं। इसलिए, कलीसिया को अनुरूप उपाय करने चाहिए ताकि उन्हें संभाला जा सके, चाहे ऐसा उन्हें छोड़ने के लिए राजी करके या उन्हें बाहर निकालकर या निष्कासित करके ही क्यों ना किया जाए। जो भी हो, उन्हें कलीसिया में विघ्न-बाधाएँ उत्पन्न करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
विभिन्न प्रकार के बुरे लोगों को पहचानने के लिए मानक और आधार
II. व्यक्ति की मानवता के आधार पर
ञ. ढुलमुल होना
जो लोग ढुलमुल होते हैं वे कभी भी यह पुष्टि करने में समर्थ नहीं होते हैं कि क्या सही मायने में परमेश्वर का अस्तित्व है और वे इस बात की पुष्टि करने में तो बिल्कुल भी समर्थ नहीं होते हैं कि वे जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हैं क्या वही सच्चा परमेश्वर है। आज वे यहाँ तलाशना चाहते हैं और कल वे वहाँ जाकर चीजों की छान-बीन करना चाहते हैं, वे यह नहीं जानते हैं कि सच्चा मार्ग कौन-सा है, हमेशा प्रतीक्षा करके पता लगाने वाला रवैया रखते हैं। इस तरह के लोगों के मामले में उन्हें जल्दी से छोड़कर जाने के लिए राजी करो, उनसे कहो : “तुम कभी भी यह पुष्टि करने में समर्थ नहीं होते हो कि परमेश्वर का कार्य ही सच्चा मार्ग है और तुम अपनी कठिनाइयाँ हल करने के लिए सत्य की तलाश नहीं करते हो। इस तरह से विश्वास रखते रहने से क्या नतीजा मिल सकता है? चूँकि तुम्हें सत्य से प्रेम नहीं है और तुम्हें कलीसियाई जीवन जीने में आनंद नहीं आता है, इसलिए अपनी पसंद के आधार पर तुम्हें जहाँ भी दिलचस्पी हो वहीं चले जाना चाहिए। क्या तुम बाकी लोगों से ऊपर उठने और बड़ी सफलता हासिल करने का अनुसरण नहीं करना चाहते? तो तुम्हें बाहर दुनिया में चले जाना चाहिए और इसके लिए प्रयास करना चाहिए। हो सकता है कि तुम अमीर आदमी या कोई अधिकारी बन सको और दुनिया में अपने सपने साकार कर सको। तुम्हें परमेश्वर के घर में अब और नहीं ठहरना चाहिए।” ऐसे लोगों के मामले में तुम्हें रुकने के लिए उन्हें किसी भी तरीके से मजबूर नहीं करना चाहिए या उनसे आग्रह करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। अगर वे कलीसिया छोड़ना चाहते हैं, तो उन्हें जाने दो। इन छद्म-विश्वासियों को लगातार सलाह और बढ़ावा देना और उनसे रुकने का आग्रह करना परमेश्वर के इरादों के अनुरूप नहीं है। परमेश्वर का कार्य कभी भी लोगों को मजबूर नहीं करता है और जब तुम उन लोगों को घसीटते और खींचते रहते हो जो ढुलमुल हैं, तो इसमें मजबूर किए जाने का तत्व होता है। ये लोग कार्य करने, पैसे कमाने और एक अच्छा जीवन जीने या उन चीजों का अनुसरण करने के लिए बाहर जाना चाहते हैं जिन्हें वे व्यक्तिगत रूप से पसंद करते हैं। उनके हमेशा से यही इरादे रहे हैं और उनकी हमेशा से अपनी आकांक्षाएँ और योजनाएँ रही हैं। वैसे तो कोई भी यह नहीं जानता है, लेकिन उनके व्यवहार ने इसे पहले ही प्रकट कर दिया है। मिसाल के तौर पर, अपना कर्तव्य करते समय वे अक्सर अनमने रहते हैं या वे अक्सर भुलक्कड़, लापरवाह होते हैं और बस औपचारिकताएँ पूरी करते हैं। वे अक्सर अपना कर्तव्य करने में विशेष अनिच्छा दिखाते हैं, हमेशा ऐसा महसूस करते हैं जैसे वे हारते जा रहे हैं, सोचते हैं कि अपना कर्तव्य करना उन्हें पैसे कमाने से रोक रहा है। ऐसे लोगों को यह कहकर छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए : “तुम हमेशा अपने कर्तव्य करने में अनमने और लापरवाह रहते हो और अंत में तुम सत्य प्राप्त करने में विफल रहोगे और परमेश्वर तुम्हें स्वीकार नहीं करेगा—वह कितना बड़ा नुकसान होगा! चूँकि तुम्हें सत्य में दिलचस्पी नहीं है, तुम परमेश्वर के अस्तित्व या उसकी संप्रभुता की पुष्टि करने में असमर्थ हो और सोचते हो कि दुनिया शानदार है, यह मानते हो कि अगर तुम दुनिया का अनुसरण करोगे, तो तुम बहुत ही सफल हो सकते हो और बाकी लोगों से ऊपर उठ सकते हो, इसलिए तुम्हारे लिए यही बेहतर होगा कि तुम दुनिया में वापस चले जाओ और वहाँ प्रयास करो। यहाँ यह कष्ट सहने का क्या फायदा?” विशेष रूप से, ये लोग अक्सर यह महसूस करते हैं कि उन्हें किसी विशेष क्षेत्र में निपुणता हासिल है, उनके पास कुछ कौशल और क्षमता है और वे मानते हैं कि अगर वे समाज या दुनिया की तरफ बढ़ें, तो वे शोहरत और दौलत दोनों ही हासिल कर सकते हैं, ऊँचे रुतबे और पारिश्रमिक का आनंद ले सकते हैं। लेकिन, परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने और कुछ वर्षों तक भ्रमित रहने के बाद उन्हें कोई पदोन्नति नहीं मिली है या किसी महत्वपूर्ण पद के लिए नहीं चुना गया है। बाकी लोगों से बेहतर बनने में असमर्थ होने के कारण वे अपने दिलों में बहुत दुखी और बहुत अनिच्छुक महसूस करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने के मार्ग पर चलने के अनिच्छुक हैं और अपना कर्तव्य करने के तो बिल्कुल भी इच्छुक नहीं हैं। उनका दिल हमेशा बेचैन रहता है और मन भटकता रहता है और वे सनकी और अस्थिर होते हैं। समय-समय पर वे सोचते हैं कि कैसे उनके सहपाठियों और दोस्तों ने बहुत अच्छी नौकरियाँ हासिल कर ली हैं, बहुत ऊँचे पदों पर बैठ गए हैं और दूसरों से बेहतर जीवन जी रहे हैं, जिससे उन्हें यह विशेष रूप से महसूस होता है कि परमेश्वर में विश्वास रखकर वे अपने साथ बहुत बड़ा अन्याय कर रहे हैं और सोचते हैं कि वे किसी काम के नहीं हैं, अयोग्य हैं और परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण असफल व्यक्ति हैं, वे इतना अधिक शर्मिंदा महसूस करते हैं कि अपने माता-पिता और पूर्वजों का सामना तक नहीं कर सकते हैं। यह उन्हें और भी ज्यादा परेशान और अनिच्छुक बना देता है और उन्हें इस बात का बहुत ही बुरी तरह से पछतावा होता है कि आखिर उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखने का चुनाव किया ही क्यों! इसलिए फिर उनका मन और भी ज्यादा ढुलमुल होने लगता है। परमेश्वर में विश्वास रखने और अपना कर्तव्य करने के वर्षों में ना सिर्फ उनकी आस्था मजबूत नहीं हुई है, बल्कि उन्होंने वह शुरुआती उत्साह भी खो दिया है जो कभी उनमें हुआ करता था। तुम लोगों की राय में ऐसे लोगों को कैसे संभालना चाहिए? (उन्हें छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए।) अगर तुम उन्हें छोड़ने के लिए राजी करते हो, तो वे कह सकते हैं, “मैंने इतने वर्षों से परमेश्वर में विश्वास रखा है, मैंने अपनी पढ़ाई, शादी और संभावनाएँ छोड़ दीं। अब तुम मुझे कलीसिया छोड़ने के लिए कह रहे हो—क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि मैंने इन वषों में जो कष्ट सहे हैं वे सभी यूँ ही बेकार गए हैं? क्या इससे मैं भविष्य के किसी भी गंतव्य के बिना नहीं रह जाऊँगा? यह दोनों मोर्चों पर हार होगी। क्या यह आत्महत्या करने जैसा नहीं है?” क्या उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना बहुत ही निर्दयी होना है? क्या ऐसा करना उचित है? (अव्वल तो ऐसे लोग कभी परमेश्वर में विश्वास ही नहीं रखना चाहते थे। उन्होंने सिर्फ आशीषें प्राप्त करने के लिए आँखों में धूल झोंककर कलीसिया में प्रवेश किया। जब वे देखते हैं कि कलीसिया हमेशा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने और सत्य पर संगति करने पर केंद्रित रहती है, तो वे इन चीजों के प्रति विमुख महसूस करने लगते हैं और छोड़ना चाहते हैं। ऐसे लोगों को छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए। वैसे तो तुम उन्हें पकड़कर रख सकते हो, लेकिन तुम उनके दिलों को पकड़कर नहीं रख सकते।) अगर वे अपना कर्तव्य कुछ सच्चाई से करते हैं, लेकिन उनमें सत्य पर स्पष्टता है ही नहीं, या वे थोड़े समय के लिए कुछ हद तक नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं क्योंकि वे बाधाओं और असफलताओं का सामना करते हैं या उनकी काट-छाँट की जाती है, तो इन मामलों में तुम उनकी मदद करने और उन्हें सहारा देने के लिए सत्य पर संगति कर सकते हो। लेकिन, मान लो कि उनकी कमजोरी कुछ समय के लिए नहीं है, बल्कि वे लगातार लापरवाह होते हैं और अपना कर्तव्य करने में औपचारिकताएँ पूरी करते हैं और इसे अनमने होकर करते हैं और वे बस इस बात से संतुष्ट हैं कि उन्हें वापस नहीं भेजा गया; और मान लो कि वे अपना कर्तव्य ईमानदारी या प्रेरणा के बिना करते हैं या इसे और सटीकता से कहें तो उनके पास अनुसरण करने के लिए कोई लक्ष्य नहीं है और वे बस दिन गुजार रहे हैं—अगर यह स्पष्ट हो जाता है कि वे इस प्रकार के व्यक्ति हैं, तो उन्हें छोड़ने के लिए राजी किया जा सकता है।
कुछ लोग छद्म-विश्वासी होते हैं। अगर तुम स्पष्ट रूप से देख पाते हो कि वे वास्तव में ऐसे लोग हैं जो सत्य से प्रेम नहीं करते हैं और यहाँ तक कि श्रम करने के भी अनिच्छुक हैं, तो उन्हें छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए। उनकी मुख्य अभिव्यक्तियाँ यह हैं कि वे कभी परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते हैं, कभी भजन नहीं सीखते हैं, कभी धर्मोपदेश नहीं सुनते हैं और कभी सत्य की संगति नहीं करते हैं या आत्म-ज्ञान के बारे में बात नहीं करते हैं। वे भाई-बहनों की अनुभवजन्य गवाहियाँ सुनना भी पसंद नहीं करते हैं। वे कभी परमेश्वर के घर द्वारा निर्मित फिल्में या भजन वीडियो या अनुभवजन्य गवाही वीडियो नहीं देखते हैं; अगर वे देखते भी हों, तो भी यह सिर्फ मनोरंजन के लिए या जिज्ञासावश देखते है, वे केवल अनिच्छा से थोड़ा-सा ही देखते हैं और यह पूरी तरह से उनके अपने जीवन प्रवेश के लिए किसी दायित्व की भावना से नहीं होता है, बल्कि वे सिर्फ मौज-मस्ती और रोमांच के लिए देखते हैं। वे अपना ज्यादातर समय क्या करने में बिताते हैं? फिजूल की बातें करना, गपशप करना या अपनी पसंद की चीजें देखने के लिए ऑनलाइन जाना। मिसाल के तौर पर, उनमें से कुछ लोगों को शेयर बाजार पसंद है और वे लगातार ऑनलाइन शेयर के रुझान देखते रहते हैं; कुछ लोगों को कार या इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद पसंद हैं और वे हमेशा ऑनलाइन यह देखते रहते हैं कि किस ब्रांड ने बाजार में नए मॉडल उतारे हैं या कोई नई तकनीक विकसित की है; दूसरे लोगों को सेल्फ-मीडिया द्वारा निर्मित ऑनलाइन समाचार रिपोर्ट देखना पसंद है; और कुछ लोगों को सौंदर्य, प्रसाधन या स्वास्थ्य की देखभाल पसंद है और वे अक्सर सौंदर्य, स्वास्थ्य की देखभाल या अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने और लंबा जीवन हासिल करने के तरीकों के बारे में ऑनलाइन पढ़ते रहते हैं। इन लोगों को उन विभिन्न सत्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है जिनमें विश्वासियों को अपने बचाए जाने के लिए प्रवेश करने की जरूरत है या उन्हें भाई-बहनों की अनुभवजन्य गवाहियों में कोई दिलचस्पी नहीं है। अनिच्छा से थोड़ा-सा कर्तव्य करने के अलावा वे और प्रकार से हमेशा अविश्वासी दुनिया की बदलती परिस्थिति पर और दुनिया में चल रहे नए रुझानों और महत्वपूर्ण समाचार पर और अपने देश में हो रही घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे बस इस तरह की जानकारी देखते हैं। हर समय इन चीजों को देखते रहने के कारण उनके दिल सिर्फ ऐसे मामलों से भरे रहते हैं और वे उन सत्यों को पूरी तरह से अनदेखा कर देते हैं जिन्हें उन्हें परमेश्वर में विश्वासियों के रूप में समझना चाहिए। उनके साथ चाहे कोई भी संगति क्यों ना करे, वे इसे नहीं समझते हैं। वे जीवन प्रवेश से संबंधित मामलों में ना तो दिलचस्पी रखते हैं और ना ही उनके बारे में चिंतित रहते हैं, जैसे कि अपना कर्तव्य करते समय उन्हें किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, वे कौन-से भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते हैं और अपना कर्तव्य करते समय उनके सामने कौन-सी समस्याएँ मौजूद रहती हैं और लोगों के लिए परमेश्वर की विभिन्न अपेक्षाओं में से वे कौन-सी अपेक्षाएँ पूरी कर चुके हैं और कौन-सी नहीं। वैसे तो वे अपना कर्तव्य करते हैं, लेकिन वे सिर्फ औपचारिकताएँ पूरी करते हैं, सत्य सिद्धांतों की रत्ती भर भी तलाश नहीं करते हैं। ऐसे लोग भले ही यह दावा करते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वासी हैं, लेकिन वे अंदर से पैसा, रुतबा और अविश्वासी दुनिया के रुझान पसंद करते हैं और इन्हीं चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और उन लोगों से जुड़ना पसंद करते हैं जो अविश्वासी दुनिया के रुझानों का अनुसरण करते हैं। अविश्वासी दुनिया के मामलों के बारे में वे बड़े जोश और अथक उत्साह से बोलते हैं, वाक्पटुता से बात करते हैं और इस बारे में लगातार बोलते ही रहते हैं, लेकिन जब वे उन लोगों से मिलते हैं जिन्हें सत्य के बारे में संगति करना पसंद है, तो उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होता है। किसी भाई या बहन के यह कहने पर, “एक बहुत ही सुंदर भजन है, मैंने उसके सारे बोल याद कर लिए हैं,” वे सतही रूप से कहते हैं, “तुमने इसे याद कर लिया है। यह अच्छी बात है।” किसी भाई या बहन के यह कहने पर, “अमुक बहन की अनुभवजन्य गवाही वाकई अच्छी है!” वे कहते हैं, “अब तो इतने सारे अनुभवजन्य गवाही वीडियो आ गए हैं, कौन-सा अच्छा नहीं है? वे सभी बहुत अच्छे हैं।” वे बस इसी सतही तरीके से उत्तर देते हैं; दरअसल, उन्हें सत्य में कोई दिलचस्पी नहीं है और वे भाई-बहनों के साथ किसी भी समान भाषा में बात नहीं करते हैं। जब कोई उनसे पूछता है, “क्या तुम परिस्थितियों का सामना करने पर प्रार्थना करते हो?”, तो वे जवाब देते हैं, “कैसे प्रार्थना करें? किस बारे में प्रार्थना करें?” वे प्रार्थना नहीं करते हैं और ना ही उनके पास परमेश्वर से कहने के लिए कुछ होता है। इन लोगों को परमेश्वर में विश्वास रखने से संबंधित किसी भी चीज में कोई दिलचस्पी नहीं होती है और उनके दिल अविश्वासी दुनिया की सभी प्रकार की चीजों से भरे हुए हैं। तुम लोग क्या सोचते हो—क्या ऐसे लोगों में कोई समस्या है? (हाँ, है।) अगर तुम देखते हो कि वे अपना कर्तव्य करने में हमेशा अनमने रहते हैं और जब उन्हें कोई कार्य सौंपा जाता है, तो वे बहुत बेसब्र हो जाते हैं, जैसे ही उन्हें थोड़ा-सा भी कष्ट सहना पड़ता है, वे शिकायत करने लगते हैं और परमेश्वर में विश्वास रखने के कुछ वर्षों बाद वे अक्सर इस तरह के विचार प्रकट करते हैं, जैसे कि “मैंने परमेश्वर में विश्वास रखकर बहुत कुछ खो दिया है। अगर मैंने परमेश्वर में विश्वास नहीं रखा होता, तो अब तक मेरा वेतन अमुक राशि तक बढ़ गया होता और मैं अमुक रुतबा और अमुक आलीशान जीवनशैली का आनंद ले पाता,” तो ऐसे लोगों से कैसे निपटना चाहिए? (उन्हें छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए।) ऐसे लोगों को बस छोड़ने के लिए राजी करो और उनसे अब कोई कर्तव्य करने के लिए मत कहो क्योंकि वे श्रम करने को भी तैयार नहीं हैं। उन्हें लगता है कि एक विश्वासी के रूप में सिर्फ सभाओं में भाग लेना ही सहनीय है, लेकिन अपना कर्तव्य करना और परमेश्वर का अनुसरण करना उनके महान उपक्रमों के रास्ते में आता है। उन्हें लगता है कि अपना कर्तव्य करना और परमेश्वर का अनुसरण करना उनकी खुशहाली के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। वे यह मानते हैं कि अगर वे अपना कर्तव्य नहीं कर रहे होते, तो वे पहले ही बाकी लोगों से ऊँचा उठ चुके होते, उच्च-पदस्थ अधिकारी बन चुके होते और दुनिया में बहुत सारे पैसे कमा रहे होते। तो हम उन्हें क्यों रोककर रखें? इसलिए, उन्हें छोड़ने के लिए राजी करना सभी के लिए अच्छा है। उन्हें रहने के लिए मजबूर करना या इसके लिए उनसे आग्रह करना बहुत बड़ी गलती होगी। तुम्हें ऐसे लोगों को इस तरह से राजी करना चाहिए : “तुमने परमेश्वर में विश्वास रखना क्यों चुना? अगर तुम्हें सत्य में दिलचस्पी नहीं है और परमेश्वर के बारे में तुम हमेशा संदेह से भरे रहते हो, तो क्या तुम कभी सत्य प्राप्त कर पाओगे? तुम विचारों, डिप्लोमा और प्रतिभा वाले व्यक्ति हो—अगर तुम दुनिया में कड़ी मेहनत कर रहे होते, तो तुम यकीनन किसी कंपनी के प्रेसिडेंट या सीईओ बन सकते थे या करोड़पति या अरबपति बन सकते थे। पहली बात, परमेश्वर के घर में बस इस तरह से भटककर तुम बाकी लोगों से ऊँचा नहीं उठ सकते; दूसरी बात, तुम बड़ी सफलता हासिल नहीं कर सकते; और अंत में, तुम अपने पूर्वजों को गौरव नहीं दिला सकते। इसके अलावा, अपना कर्तव्य करते समय तुम हमेशा लापरवाह होते हो जिसके कारण तुम्हारी काट-छाँट की जाती है जिससे तुम हर समय हताश रहते हो। यह दुःख सहना ही क्यों है? तुम्हें बाहर दुनिया में चले जाना चाहिए, चाहे राजनीति में जाओ या कारोबार में, और यकीनन तुम्हें अपने लिए एक निश्चित स्तर की सफलता हासिल होगी। तुम हमसे अलग हो : तुम्हारे पास डिप्लोमा और प्रतिभा दोनों हैं और तुम एक कुलीन व्यक्ति हो—क्या हम जैसे साधारण लोगों के साथ रहकर परमेश्वर में विश्वास रखना तुम्हारी शान के खिलाफ नहीं है? जैसा कि अविश्वासी लोग अक्सर कहते हैं, ‘दुनिया तुम्हारी मुट्ठी में है’—तुम्हें इस तथ्य का फायदा उठाना चाहिए कि दुनिया में कुछ शोहरत, फायदे और रुतबे का अनुसरण करने के लिए अब भी समय बचा है, इस मौके का तुम्हें फायदा उठाना चाहिए। यहाँ रहकर अपने साथ अन्याय मत करो।” क्या उन्हें राजी करने का यह उचित तरीका है? ये शब्द काफी कारगर हैं, है ना? (हाँ।) इससे उन्हें ठेस नहीं पहुँचती और वही बात कही जाती है जो वे सुनना चाहते हैं। मुझे लगता है कि यह तरीका उचित है, इससे उनके लिए यह सलाह स्वीकारना आसान हो जाता है और वे बिना किसी चिंता के बेधड़क छोड़कर जा सकते हैं। इस तरह के लोगों से निपटते समय अगर तुम्हें यकीन है कि वे छद्म-विश्वासी हैं और तुम देखते हो कि उनमें परमेश्वर में विश्वास रखने के बारे में बिल्कुल भी उत्साह नहीं है, वे अपना कर्तव्य करने में कभी ईमानदार नहीं होते हैं और उन्होंने कभी कोई जीवन प्रवेश प्राप्त नहीं किया है—ना ही लंबे समय में उनका इसे प्राप्त करने की संभावना है—तो उन्हें छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए। अगर तुम उन्हें छोड़ने के लिए राजी नहीं करते हो, तो वे अपना कर्तव्य करने में हमेशा लापरवाह और उदासीन रवैया रखेंगे और ऐसा समय भी आ सकता है जब उनके कारण कोई बड़ी आपदा आ जाए।
ट. कायर और संदेही होना
हमने दसवीं अभिव्यक्ति—ढुलमुल होना—के बारे में संगति पूरी कर ली है। अब चलो हम ग्यारहवीं अभिव्यक्ति—कायर और संदेही होना—पर एक नजर डालें। कायर लोगों की अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (कायर लोग गिरफ्तारी और उत्पीड़न का सामना करते समय डरने लगते हैं। वे अपना कर्तव्य करना तो चाहते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं।) यह सिर्फ एक छोटा सा पहलू है। मुख्य मुद्दा यह है कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बारे में उनका एक दृष्टिकोण है : उन्हें हमेशा यही लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले इस दुनिया में अनुपयुक्त लगते हैं; उन्हें लगता है कि परमेश्वर में उनका विश्वास शर्मनाक है। विशेष रूप से कुछ सत्तावादी देशों या धार्मिक स्वतंत्रता से रहित देशों में, जहाँ परमेश्वर में विश्वास रखने वाले ना सिर्फ कानून द्वारा असंरक्षित होते हैं, बल्कि उनका उत्पीड़न भी किया जाता है, वहाँ कुछ लोग यह स्वीकारने की हिम्मत ही नहीं करते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और डरते हैं कि दूसरों को इसका पता चल जाएगा। उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखना कोई ईमानदार और सम्मानजनक बात नहीं है। वैसे तो वे जानते हैं कि वे सच्चे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, लेकिन उन्हें इसमें कोई सम्मान महसूस नहीं होता है, ना ही उनमें आत्मविश्वास होता है। जब किसी परेशानी का संकेत मिलता है या जब वे सरकार को विश्वासियों को गिरफ्तार करते, सताते, दमन करते और बहिष्कृत करते देखते हैं, तो वे विशेष रूप से चिंतित हो जाते हैं कि उन्हें फँसाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में कुछ लोग जल्दी से खुद को कलीसिया से अलग कर लेते हैं, यहाँ तक कि जल्दी से परमेश्वर के घर किताबें लौटाने चले जाते हैं। दूसरे लोग गिरफ्तार किए जाने के डर से अब सभाओं में शामिल होने की हिम्मत नहीं करते हैं और भाई-बहनों से मिलने पर उनका अभिवादन करने की हिम्मत नहीं करते हैं। विशेष रूप से जो लोग अपने विश्वास के लिए अपेक्षाकृत मशहूर हैं या जिन्हें पहले गिरफ्तार किया जा चुका है, इन लोगों से तो वे बातचीत करने की हिम्मत नहीं करते हैं—वे इस हद तक कायर होते हैं। इससे भी बदतर यह सुनने पर होता है कि सरकार ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ शुरू कर दी है, वे खुद ही आगे बढ़कर जल्दी से अधिकारियों के पास यह स्वीकारने चले जाते हैं कि वे पहले परमेश्वर में विश्वास रखते थे और जानते हैं कि कौन से लोग विश्वास रखते हैं, वे खुद ही आगे बढ़कर उनके साथ विश्वासघात करते हैं और नरमी बरते जाने के बदले में परमेश्वर के वचनों की किताबें और परमेश्वर में विश्वास से संबंधित दूसरी सामग्री अधिकारियों को सौंप देते हैं जिसका एकमात्र उद्देश्य अपना बचाव करना होता है। मुझे बताओ, क्या ये कायर होने की अभिव्यक्तियाँ नहीं हैं? (हाँ।) विशेष रूप से कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद हमेशा इस बात से डरते हैं कि दूसरों को उनकी आस्था के बारे में पता चल जाएगा और वे इस बात से और ज्यादा डरते हैं कि अगर कोई गिरफ्तार हो गया, तो उनके साथ विश्वासघात किया जाएगा। जैसे ही किसी को पता चलता है कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे जल्दी से उसे यह समझाने चले जाते हैं कि वे अब विश्वास नहीं रखते हैं, यहाँ तक कि अविश्वासियों को उनके विश्वासी होने का संदेह करना बंद करवाने के लिए जल्दी से चीजें करने लगते हैं। मिसाल के तौर पर, वे अविश्वासियों के साथ संबंधों को मजबूत करते हैं, उनके साथ खाना खाते हैं, जश्न मनाते हैं, जुआ खेलते हैं, शराब पीते हैं, वगैरह-वगैरह। जरा सी भी परेशानी का संकेत मिलने पर वे सभाओं में शामिल होने की हिम्मत नहीं करते हैं और अब अपना कर्तव्य नहीं करते हैं, उन सभी लोगों को अनदेखा कर देते हैं जो उनसे संपर्क करने का प्रयास करते हैं। जब सब कुछ शांतिपूर्ण होता है, तो वे सोचते हैं कि कैसे परमेश्वर में विश्वास रखने से आशीषें मिलती हैं, व्यक्ति मृत्यु से बच सकता है, स्वर्ग जा सकता है और एक अच्छा गंतव्य प्राप्त कर सकता है—तब वे परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए ऊर्जा से भरे होते हैं। लेकिन जैसे ही वे किसी ऐसे परिवेश का सामना करते हैं जो थोड़ा खतरनाक होता है, वे बिना कोई सुराग छोड़े छूमंतर हो जाते हैं। फिर जब परिस्थिति गुजर जाती है और सब कुछ फिर से शांत हो जाता है, तो वे वापस आ जाते हैं। इस तरह का व्यक्ति अक्सर अचानक गायब हो जाता है। उसे सौंपा गया कर्तव्य चाहे कितना भी महत्वपूर्ण क्यों ना हो, जैसे ही जरा-सा खतरा उत्पन्न होता है, वह कार्य जारी रखने की कोई भी व्यवस्था किए बिना ही तुरंत उसे छोड़ सकता है और उसके बाद कोई भी उससे संपर्क नहीं कर पाता है। जब दूसरे लोगों को इसी तरह के किसी खतरनाक हालात का सामना करना पड़ता है, तो वे इसके बाद की स्थिति को सही तरीके से संभालने के लिए सभी तरह के तरीके सोच पाते हैं। अगर फिलहाल हालात बहुत ज्यादा प्रतिकूल है और गिरफ्तारी का जोखिम ज्यादा है, तो वे कार्य जारी रखने से पहले खतरा टल जाने की प्रतीक्षा करते हैं। अगर वे विश्वासियों के रूप में बहुत मशहूर हैं और कार्य करने के लिए अपना चेहरा दिखाने पर उन्हें आसानी से गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वे किसी और से इसे करवाने की व्यवस्था करते हैं। लेकिन जब इन कायर लोगों को जरा-सी भी परेशानी का आभास होता है, तो वे छिपने की हड़बड़ी मचाते हैं और अपने सिर छिपाने और खुद को बचाने के लिए हाथ-पैर मारने लगते हैं, कलीसिया के कार्य और संपत्ति को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देते हैं और उनकी अवहेलना करते हैं, कलीसिया के कार्य को बचाने या भाई-बहनों की रक्षा करने का कोई प्रयास नहीं करते हैं। परमेश्वर में अपने विश्वास में उन्हें सबसे ज्यादा किस बात का डर होता है? पहली बात, वे डरते हैं कि सरकार को उनके विश्वास के बारे में पता चल जाएगा। दूसरी बात, वे डरते हैं कि उनके पड़ोसी जान जाएँगे। तीसरी बात, उन्हें गिरफ्तार होने और जेल में बंद किए जाने या पीट-पीटकर मार डाले जाने का सबसे ज्यादा डर होता है। इसलिए, जब भी कुछ होता है, तो सबसे पहले वे इसी बारे में सोचते हैं कि क्या उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है या क्या उन्हें मार डाला जा सकता है। अगर इनमें से किसी के होने की 1% भी संभावना हो, तो वे भागने का कोई ना कोई रास्ता निकाल ही लेंगे। मिसाल के तौर पर, सभा के दौरान हो सकता है कोई भाई या बहन यह कहे, “यहाँ आते समय मैंने पास में किसी को देखा जो अजनबी लग रहा था। क्या यह हो सकता है कि कोई छद्म-अविश्वासी हम पर नजर रखे हुए है?” सिर्फ यह टिप्पणी सुनकर ही कायर लोग अगली सभा में शामिल नहीं होंगे और सभी से संपर्क तोड़ देंगे। क्या तुम इसे सावधान रहना कहोगे? (यह सामान्य सावधानी नहीं है, यह कायरता है—उनके दिलों में परमेश्वर के लिए कोई जगह नहीं है।) यह सावधानी को चरम सीमा तक ले जाना है। जिन देशों या क्षेत्रों में हालात विशेष रूप से प्रतिकूल है, वहाँ यह सच है कि विश्वासियों को सावधान रहना चाहिए, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि उन्हें गिरफ्तार होने के डर से अपना कर्तव्य करना या सभाओं में शामिल होना बंद कर देना चाहिए, इतना सावधान हो जाना चाहिए कि उनके दिलों में परमेश्वर के लिए कोई जगह ही ना रहे। सावधान रहने के लिए कायर लोगों का सिद्धांत क्या है? चाहे कुछ भी हो जाए—घटना बड़ी हो या छोटी—वे यह बिल्कुल भी नहीं मानते हैं कि सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है। उन्हें लगता है कि कोई भी भरोसेमंद नहीं है और वे अपनी रक्षा करने के लिए खुद पर भरोसा करते हैं। यही उनका सिद्धांत है। वे यह नहीं मानते हैं कि सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है; सभी चीजें परमेश्वर द्वारा आयोजित और व्यवस्थित हैं; अगर कुछ सही मायने में होता है, तो यह परमेश्वर की अनुमति से होता है और अगर परमेश्वर की अनुमति नहीं है, तो किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। उन्हें इस संबंध में बिल्कुल भी आस्था नहीं है। इसके बजाय, उनके दिलों में सिर्फ कायरता भरी हुई है। इसके अलावा, उनकी कायरता में एक घातक दोष है और यह उनके बारे में सबसे घिनौनी बात भी है : अपनी रक्षा करने और ऐसे हर हालात से निपटने के लिए, जो उन्हें दब्बू महसूस करवाता है, वे उस चीज का अनुसरण करते हैं जिसे वे अपनी “सर्वोच्च बुद्धि” के रूप में देखते हैं, जो यह है कि चाहे कुछ भी हो जाए—चाहे उन पर नजर रखी जा रही हो या उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाला जा रहा हो—एक बार जब कोई गड़बड़ी हो जाती है और उनकी सुरक्षा को खतरा होता है, एक तो वे इस बात से इनकार कर देते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और दूसरा, वे बिना कुछ भी छिपाए जो कुछ भी जानते हैं वह सब उगल देते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? बस खुद को शारीरिक कष्ट से बचाने के लिए; इस प्रकार, वे जो कुछ भी जानते हैं उसे प्रकट कर देते हैं। सबसे पहले, वे कलीसिया अगुआओं के साथ विश्वासघात करते हैं और यह भी खुलासा कर देते हैं कि जिला अगुआ और क्षेत्रीय अगुआ कौन हैं और वे कहाँ रहते हैं, वे अपने पास मौजूद सारी जानकारी का खुलासा कर देते हैं। यहाँ तक कि वे यातना दिए जाने से पहले ही सब कुछ उगल देते हैं। इसके अलावा, अगर उनसे “तीन पत्रों” पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा जाता है, तो वे बेहिचक तुरंत हस्ताक्षर कर देते हैं—मानो वे इसके लिए हमेशा से तैयार बैठे थे। ऐसा इसलिए है ताकि वे जेल में डाले जाने से बच सकें, यातना से बच सकें और मृत्यु के किसी भी खतरे से दूर रह सकें। वे इतने ज्यादा कायर होते हैं। वे ना तो परमेश्वर की संप्रभुता पर विश्वास करते हैं और ना ही वे अपनी जान जोखिम में डालने में समर्थ होते हैं। बल्कि वे अपनी रक्षा करने के लिए हर संभव तरीके के बारे में सोचते हैं। उनके लिए सबसे अच्छा तरीका है दूसरों लोगों और कलीसिया के साथ विश्वासघात करना—यह सबसे प्रभावी तरीका है। वे दूसरों के प्रति विश्वासघात का उपयोग अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने और यंत्रणा से बचने की कीमत के रूप में करते हैं। यह कुछ ऐसा है जिसकी योजना उन्होंने बहुत पहले से बना ली थी—यह उनकी “सर्वोच्च बुद्धि” है। मुझे बताओ, क्या इस तरह के व्यक्ति की कायरता सामान्य कायरता है? (नहीं।) तो फिर यहाँ समस्या क्या है? (वे इतने कायर हैं कि वे यहूदा बन जाते हैं, किसी भी समय और किसी भी जगह भाई-बहनों और कलीसिया के साथ विश्वासघात करने को तैयार रहते हैं। ऐसे लोग सच्चे विश्वासी नहीं होते हैं।) चलो हम अभी के लिए इस बात को एक तरफ रख दें कि वे सच्चे विश्वासी हैं या झूठे विश्वासी। बस उनकी मानवता देखो—वे सोचते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना एक ईमानदार और सम्मानजनक बात होने के बजाय कुछ गुप्त और शर्मनाक बात है और वे परमेश्वर में विश्वास रखने के मामले को, जो इतनी ईमानदार, सम्मानजनक और सकारात्मक चीज है, नकारात्मक चीज मानते हैं—तुम्हारे विचार से वे किस तरह के लोग हैं? (वे भ्रमित लोग हैं, जो अपेक्षाकृत दुष्ट होते हैं।) चीजों पर उनका परिप्रेक्ष्य और उन्हें समझने का उनका तरीका सामान्य लोगों से अलग होता है। कभी-कभी वे सच को झूठ भी कह सकते हैं, सही और गलत में भेद करने में असमर्थ होते हैं। यह कैसे संभव है कि परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोग जानबूझकर गुप्त हो सकते हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि यह दुनिया बहुत ही बुरी है—कानून धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करता है और इससे भी ज्यादा हद तक शैतानी शासन परमेश्वर से नफरत करता है और परमेश्वर के कार्य को शत्रुतापूर्ण नजरों से देखता है। यह सकारात्मक चीजों को अस्तित्व में नहीं रहने देता है और परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को सताने के लिए किसी भी हद तक जाता है। इसलिए, ऐसे सामाजिक हालात में विश्वासियों के पास सभाएँ करते और अपना कर्तव्य करते समय सावधानी से कार्य करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है; वे इसे खुलेआम करने की हिम्मत नहीं करते हैं। बाहर से ऐसा लग सकता है कि वे चोरों की तरह गुप्त बन रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह पूरी तरह से सताए जाने के संदर्भ के कारण है, है ना? (हाँ।) तो बड़ा लाल अजगर परमेश्वर में विश्वास रखने और व्यक्ति द्वारा अपना कर्तव्य करने के क्रियाकलापों का वर्णन कैसे करता है? “संदिग्ध व्यवहार” के रूप में। क्या यह संदिग्ध व्यवहार है? (नहीं।) यह संदिग्ध व्यवहार नहीं है—यह कुछ ऐसा है जो लोग इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प नहीं होता है। क्या इन लोगों ने कोई गैर-कानूनी कार्य किया है? (नहीं।) उन्होंने कोई गैर-कानूनी कार्य नहीं किया है या सरकार का विरोध करने के लिए कुछ नहीं किया है, उन्होंने कानून तो बिल्कुल नहीं तोड़ा है या सार्वजनिक व्यवस्था को बिल्कुल भी अस्त-व्यस्त नहीं किया है। फिर ये लोग क्या कर रहे हैं? वे बस सृजित प्राणियों का कर्तव्य कर रहे हैं। यह कार्य दुनिया का सबसे मूल्यवान, सार्थक और न्यायोचित उपक्रम है। लेकिन, क्योंकि यह दुनिया बुरी और अँधेरी है और सच को झूठ घोषित करती है, इसलिए यह सबसे न्यायोचित, मूल्यवान और सार्थक उपक्रम को “संदिग्ध” कहती है। यह शैतान की व्याख्या है। क्या शैतान की व्याख्या ही सत्य है? क्या यह सकारात्मक है? (नहीं।) यह यकीनन ऐसा नहीं है। लेकिन, जब कायर लोग यह व्याख्या सुनते हैं, तो वे ना सिर्फ अपने दिलों में इससे पूरी तरह से सहमत होते हैं, बल्कि वे शैतान की इस व्याख्या को स्वीकार भी करते हैं। फलस्वरूप, वे भी यही सोचते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखना और गुप्त रूप से अपना कर्तव्य करना अनुचित है और यह गलत ही होगा। वे हमेशा डरते हैं कि एक दिन उन्हें भी समाज और सरकार द्वारा सताया जाएगा, उनके बचाव में बहस करने के लिए कोई जगह नहीं होगी और उनकी मदद करने या उन्हें बचाने के लिए कोई नहीं होगा। इस प्रकार, वे इस बात से विशेष रूप से डरते हैं कि लोगों को परमेश्वर में उनके विश्वास के बारे में पता चल जाएगा। वे अपने दिलों में यह स्वीकार नहीं करते हैं कि परमेश्वर ने जो वचन व्यक्त किए हैं वे ही सत्य हैं या परमेश्वर लोगों को जिस मार्ग पर ले जाता है वही सही मार्ग है, फिर भी वे परमेश्वर से आशीषें प्राप्त करना चाहते हैं। क्या यह विरोधाभासी नहीं है? अंत में, वे ऐसे परिवेश में परमेश्वर में विश्वास रखने और ये कष्ट सहने के कारण अत्यधिक दुखी हो जाते हैं। वे दुखी क्यों हो जाते हैं? क्योंकि वे इस दुनिया के दुष्ट शासन से और राक्षसों और शैतान की बुरी शक्तियों से बहुत अधिक डरते हैं; वे हमेशा इस बात से डरते हैं कि राक्षस और शैतान उन्हें सताएँगे और उनकी जान ले लेंगे। चूँकि परमेश्वर में उनकी कोई वास्तविक आस्था नहीं होती है, इसलिए वे विशेष रूप से कायरतापूर्ण कार्य करते हैं, यहाँ तक कि अपना कर्तव्य भी नहीं करने की हद तक पहुँच जाते हैं। अगर बिल्कुल भी कोई खतरा ना हो, तो वे सभाओं में शामिल होंगे या भाई-बहनों से बातचीत करेंगे या कलीसिया के लिए कुछ चीजें करेंगे, लेकिन वे यह बात मान लेने की हिम्मत नहीं करते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे कलीसिया का हिस्सा हैं या परमेश्वर की गवाही देने या अपना कर्तव्य करने के लिए खड़े होते हैं—वे बहुत अधिक भयभीत रहते हैं। उनकी परमेश्वर में सच्ची आस्था बिल्कुल नहीं है, फिर भी वे परमेश्वर से आशीषें और एक अच्छा गंतव्य प्राप्त करना चाहते हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि यह विरोधाभासी है? (हाँ।) क्या अपने निजी हितों पर ध्यान केंद्रित करने से उनके मन भ्रमित नहीं हो गए हैं? (हाँ।) निजी फायदे के लालच ने उनके दिल और दिमाग पर कब्जा कर लिया है। वे यह नहीं मानते हैं कि परमेश्वर सभी चीजों पर संप्रभु है, फिर भी वे परमेश्वर से आशीषें प्राप्त करना चाहते हैं। वे यह नहीं मानते हैं कि कलीसिया का कार्य और भाई-बहनों द्वारा किया जाने वाला कर्तव्य न्यायोचित, मूल्यवान और सार्थक है। वे महत्वपूर्ण कर्तव्य करने से विशेष रूप से डरते हैं या इस बात से डरते हैं कि अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर उन्हें बाहर जाकर मामले संभालने के लिए कहेंगे, वे डरते हैं कि अगर कुछ गड़बड़ हुआ, तो उन्हें फँसा दिया जाएगा। खतरों का सामना करने पर ये कायर लोग यहूदा बन सकते हैं और कलीसिया के साथ विश्वासघात कर सकते हैं—यह भी एक प्रकार का खतरनाक व्यक्ति है।
कायर लोगों में और कौन-सी दूसरी अभिव्यक्तियाँ होती हैं? ये लोग किसी भी समय परमेश्वर का नाम नकार सकते हैं और त्याग सकते हैं, किसी भी समय परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर सकते हैं और किसी भी समय यहूदा बन सकते हैं। कायर लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लायक नहीं हैं—क्या यही मामला नहीं है? (हाँ।) कायर लोगों की घातक कमजोरी क्या होती है? (वे मृत्यु से डरते हैं और विश्वासघात कर सकते हैं।) ये लोग ओछे तरीके से जीवन में लक्ष्यहीन होकर चलते रहते हैं, जीवन का लालच करते हैं और मृत्यु से डरते हैं। मृत्यु का डर उनकी घातक कमजोरी है। जब तक उन्हें मरने के लिए मजबूर नहीं किया जाता, तब तक वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं—चाहे वह यहूदा बनना हो, विनाश का बेटा बनना हो या शापित किया जाना हो—जब तक वे जीवित रह सकते हैं, तब तक वे कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। जीना उनका सर्वोच्च लक्ष्य है। चाहे तुम इस बात की संगति कैसे भी करो कि लोगों का जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथों में है; परमेश्वर लोगों की किस्मत को नियंत्रित करता है, उस पर संप्रभु है और उसका आयोजन करता है; और यह कि लोगों को परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना चाहिए, वे न तो इन वचनों पर विश्वास करते हैं और ना ही उन्हें स्वीकार करते हैं। वे बस यही सोचते हैं कि मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेना एक दुर्लभ अवसर है, इसलिए वे बिल्कुल भी नहीं मर सकते; वे यह भी सोचते हैं कि एक बार जो वे मर गए और उनका देह नष्ट हो गया, तो उनकी आत्मा या तो किसी जानवर के रूप में पुनर्जन्म लेगी या भटकता हुआ भूत बन जाएगी, जिसे फिर कभी मनुष्य के रूप में पुनर्जन्म लेने का मौका नहीं मिलेगा। इसलिए, वे मृत्यु से विशेष रूप से डरते हैं। उनके लिए मृत्यु एक भयावह आपदा है, यह अगले पुनर्जन्म के लिए एक अच्छा अवसर नहीं है और ना ही दूसरे पुनर्जन्म के लिए एक नई शुरुआत है। इसलिए, वे अपने जीवन बचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। भले ही इसका अर्थ दूसरों के साथ विश्वासघात करना हो या कलीसिया के कार्य को किसी भी तरह का नुकसान पहुँचाना हो, वे ऐसा करने से नहीं हिचकिचाएँगे; और भले ही इसका अर्थ परमेश्वर का नाम त्यागना हो, वे परिणामों की परवाह नहीं करते हैं—वे सिर्फ सुरक्षित रूप से जीने की परवाह करते हैं। ये किस तरह के लोग हैं? (ऐसे लोग हैं जो एक ओछे अस्तित्व को घसीटते रहते हैं।) वे नीच लोग हैं जो एक ओछे अस्तित्व को घसीटते रहते हैं! वे गरिमा या ईमानदारी के बिना जीते हैं, बस जिंदा रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, किसी भी हद तक गिर सकते हैं। कुछ लोगों ने पहले से ही अपने दिलों में यह हिसाब लगा लिया है कि किसी खतरनाक हालात का सामना करने से पहले उन्हें क्या करना है : “अगर मुझे गिरफ्तार किया गया, तो मैं बस सब कुछ उगल दूँगा। जब बड़ा लाल अजगर तुम लोगों को यातना देता है, धमकाता और डराता है, तुम लोगों को कलीसिया के साथ विश्वासघात करने के लिए मजबूर करता है, तब तुम लोग एक शब्द भी कहने से इनकार कर देते हो। देखो, मैं तुम लोगों जैसा बेवकूफ नहीं हूँ, जो सब कुछ उगल देने के बजाय शारीरिक दर्द सहना पसंद करते हैं। मैं तो पीटे या डराए जाने से पहले ही सब कुछ उगल दूँगा—देखो मैं कितना होशियार हूँ! जैसी कि कहावत है, ‘बुद्धिमान इंसान हालात के अनुसार अपना रुख बदलता है।’ मेरा कलीसिया के भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करने में इतना क्या बुरा है? हर किसी को स्वार्थी होना ही पड़ता है, है ना? क्या अपने हितों का ध्यान नहीं रखना बेवकूफी नहीं है?” इससे पहले कि कुछ हो, वे पहले से ही खुद को बचाने का तरीका निकाल लेते हैं। वे बहुत पहले ही इस बारे में अच्छी तरह से सोच चुके होते हैं। वे जिस तरीके से आचरण करते हैं उसके हिसाब से उनका मत क्या है? “कोई व्यक्ति अपने लिए जीवन कठिन क्यों बनाए? इतना जिद्दी होना ही क्यों? सिर्फ अपने साथ अच्छा व्यवहार करने से यह जीवन बेकार नहीं जाएगा!” यह उनके आचरण का अपना मत है। उनकी कोई नैतिक सीमा नहीं होती। तुम लोगों को क्या लगता है कि ऐसे लोगों के साथ क्या करना चाहिए? (अगर ऐसे लोगों का पता चलता है, तो उन्हें बुद्धिमानी से निष्कासित कर देना चाहिए—वे किसी भी समय फटने वाले टाइम बम जैसे हैं।) बिल्कुल सही कहा, वे किसी भी समय फटने वाले टाइम बम जैसे हैं। वे पूरी तरह से कायर हैं और जब खतरा आएगा, तो वे कलीसिया के साथ विश्वासघात करेंगे। अगर किसी व्यक्ति में सामान्य मानवता है, तो वह खतरनाक हालात से निपटने के लिए बुद्धिमान तरीकों का उपयोग करेगा और उसकी परमेश्वर में वास्तविक आस्था होगी। वह सभाओं में शामिल होने या अपना कर्तव्य करने में बाधा डालने नहीं देगा और वह अपने आध्यात्मिक कद और हालात के आधार पर परमेश्वर के लिए खुद को खपाने का पूरा प्रयास करेगा। यह सामान्य मानवता का प्रकाशन है। लेकिन कायर लोग अपने जीवन को विशेष रूप से संजोते हैं; वे जीवन का लालच करते हैं और मृत्यु से डरते हैं, अपने जीवन को बाकी सभी चीजों से ज्यादा महत्व देते हैं। उनकी परमेश्वर में कोई वास्तविक आस्था नहीं होती है और वे यह नहीं देख पाते हैं कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है। इसलिए, सताए जाने पर वे स्वाभाविक रूप से कायर लोगों के रूप में बेनकाब हो जाते हैं। कायर लोग अपनी रक्षा करने के लिए यहूदा बन सकते हैं। ऐसे लोग खतरनाक तत्व होते हैं, वे डरावने व्यक्ति होते हैं। कलीसिया उन्हें कोई कार्य बिल्कुल नहीं दे सकती और ना ही उन्हें कोई कर्तव्य करने की अनुमति दे सकती है। वरना अगर उन्होंने विश्वासघात किया, तो कलीसिया के कार्य को बहुत ही ज्यादा नुकसान होगा; इससे भला कम और बुरा ज्यादा होगा।
कायर और संदेही लोगों की संदेहशीलता कैसे अभिव्यक्त होती है? कुछ लोग परमेश्वर के घर के कार्य के विभिन्न पहलुओं को कभी स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं। उन्हें यह नहीं पता होता है कि परमेश्वर वास्तव में क्या कार्य कर रहा है या परमेश्वर जो वचन बोलता है क्या वे सत्य हैं। उन्हें इन मामलों की सही समझ नहीं होती या उनके पास इन मामलों पर सही दृष्टिकोण नहीं होता है, इसलिए वे इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते हैं कि परमेश्वर के घर के कार्य में वास्तव में क्या किया जा रहा है, यह कार्य क्या नतीजे हासिल करने का लक्ष्य रखता है या क्या यह लोगों को बचाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। वे इनमें से कोई भी चीज स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं। वे इस बारे में भी अस्पष्ट हैं कि कलीसिया क्या है। चाहे वे कितने भी धर्मोपदेश क्यों ना सुन लें, वे जरा सा भी सत्य नहीं समझते हैं। उन्हें हमेशा भाई-बहनों द्वारा अपने कर्तव्य करने के बारे में संदेह होता है, वे मन ही मन सोचते हैं, “ये लोग लगातार व्यस्त रहते हैं, हर रोज आते-जाते रहते हैं—वे आखिर क्या कर रहे हैं?” विशेष रूप से, परमेश्वर में विश्वास रखने और बड़े लाल अजगर के देश में कर्तव्य करने के संदर्भ में अगुआ और कार्यकर्ता कलीसिया के कार्य की कुछ मदों पर संगति और चर्चा करते हैं—जैसे कि प्रशासनिक कार्य, कार्मिक कार्य, सामान्य मामलों वाले कार्य और विशेष रूप से, कुछ ऐसे कार्य जिनमें जोखिम उठाना शामिल है—जिनके बारे में साधारण भाई-बहनों को नहीं बताया जाता है। यह उनकी रक्षा करता है, यह उन्हें नुकसान नहीं पहुँचाता है। लेकिन कुछ लोग यह बात नहीं समझते हैं और हमेशा इन चीजों के बारे में पूछताछ करना चाहते हैं। मिसाल के तौर पर, वे इस बारे में पूछताछ करते हैं कि किताबें कहाँ छापी जाती हैं या कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मेजबानी कहाँ की जा रही है। क्या इन बातों को जानने से तुम्हें कोई फायदा होगा? (नहीं।) क्या इन बातों को नहीं जानने से तुम्हें कोई नुकसान होगा? (नहीं।) इन बातों को नहीं जानने से तुम्हारा परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना प्रभावित नहीं होता है, इससे तुम्हारी सत्य की प्राप्ति प्रभावित नहीं होती है और यह यकीनन तुम्हारे जीवन प्रवेश या तुम्हारे स्वभाव के परिवर्तन में बाधा नहीं डालता है। तो क्या तुम्हारे लिए इन मामलों के बारे में पूछताछ करना और उनकी जाँच-पड़ताल करना फिजूल नहीं है? मेजबानी करने वाले कुछ लोग हमेशा संदेही होते हैं। जब अगुआ और कार्यकर्ता उन्हें कलीसियाई कार्य पर अपनी संगति और चर्चाओं की जानकारी नहीं देते हैं, तो वे सोचते हैं, “अगुआ और कार्यकर्ता हमेशा मेरी पीठ पीछे क्यों सभाएँ और संगति करते हैं? वे किन गतिविधियों में लगे हुए हैं?” उनके पास कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत जानकारी नहीं होती है और उन्हें अचरज होने लगता है, “वे मुझे इस बारे में क्यों नहीं बताते हैं? मैं उनके नाम, वे कहाँ रहते हैं या उनकी वास्तविक परिस्थिति के बारे में नहीं जानता। क्या ये लोग परमेश्वर में मेरे विश्वास में मेरी अगुआई करते समय मेरे साथ कोई चाल चल सकते हैं या मुझे नुकसान पहुँचा सकते हैं?” कुछ संवेदनशील प्रकार के कार्य भी होते हैं, जैसे कि चढ़ावा चढ़ाने से जुड़े कार्य या कोई खतरनाक कार्य—ये ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में अव्वल तो पूछना ही नहीं चाहिए, फिर भी ये लोग हमेशा उनके बारे में पूछताछ करना चाहते हैं। जब दूसरे लोग उन्हें उत्तर नहीं देते हैं, तो वे और भी संदेही हो जाते हैं। विशेष रूप से, ऐसे कुछ लोग हैं जिन्हें शुरू-शुरू में कभी परमेश्वर में ज्यादा आस्था नहीं थी—लेकिन परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद वे देखते हैं कि उनका पारिवारिक व्यवसाय बेहतर चल रहा है और उनके परिवार के सदस्य स्वस्थ हैं और उन्हें लगता है कि यह परमेश्वर का अनुग्रह और आशीष है। इस क्षणिक खुशी के कारण वे थोड़े-से पैसे चढ़ाते हैं, लेकिन फिर वे सोच में पड़ जाते हैं, “मैंने जो पैसे चढ़ाए थे, वे कहाँ खर्च किए गए? क्या उसका उपयोग कलीसियाई कार्य के लिए किया गया? क्या उसे व्यवसाय में निवेश किया गया या उसका उपयोग गैर-कानूनी गतिविधियों के लिए किया गया?” वे हमेशा इन चीजों के बारे में पूछताछ करना और पता लगाना चाहते हैं और हमेशा इन चीजों की तह तक पहुँचना चाहते हैं। कुछ लोगों के संदेह और भी मजबूत होते हैं। मिसाल के तौर पर, जब कलीसिया कार्य की जरूरतों के कारण कुछ उपकरण या सामग्री खरीदती है या जब यह अपने कर्तव्य करने वालों के दैनिक जीवन के लिए कुछ देखभाल और सहायता प्रदान करती है, तो इस तरह का संदेही व्यक्ति हमेशा संदेह करता है, “इतने सारे अलग-अलग क्षेत्रों में पैसे खर्च किए जा रहे हैं—यह कहाँ से आता है? क्या कलीसिया भी किसी तरह का व्यवसाय कर रही है? क्या इसका कोई अमीर संरक्षक है या पर्दे के पीछे कोई शक्तिशाली समर्थक है? क्या कोई समूह कलीसिया का समर्थन कर रहा है?” विशेष रूप से, जब वे अधिकारियों की ऐसी कुछ निराधार अफवाहों और शैतानी शब्दों को सुनते हैं जो कलीसिया को बदनाम करते हैं—जैसे कि ऐसे दावे कि कलीसिया के अमुक व्यक्ति ने हत्या की और कानून तोड़ा, अमुक व्यक्ति एक अपराधी है जिसे राज्य ढूँढ रहा है, अमुक व्यक्ति बहुत सारा पैसा लेकर विदेश भाग गया, वगैरह-वगैरह—तो कलीसिया के बारे में और परमेश्वर के कार्य के बारे में उनके संदेह और भी मजबूत हो जाते हैं। क्या ऐसे लोगों की सोच सामान्य है? क्या वे उन सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से देख पाते हैं जिनका विश्वासियों को पालन करना चाहिए? ज्यादातर लोग जब एक बार इस बारे में आश्वस्त हो जाते हैं कि यह परमेश्वर का कार्य है, तो फिर उन्हें परमेश्वर के बारे में कोई संदेह नहीं रहता है। कलीसिया में चाहे कोई भी समस्या उत्पन्न हो या किसी भी तरह के लोग दिखें, वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनसे व्यवहार करने में समर्थ होते हैं। भले ही बुरे लोग या मसीह-विरोधी बाधाएँ उत्पन्न करें, वे इसे सही ढंग से समझ पाते हैं। उन्हें कभी भी परमेश्वर या परमेश्वर के कार्य या कलीसिया या परमेश्वर के घर के बारे में संदेह नहीं होते हैं। ज्यादा से ज्यादा, उनकी कुछ व्यक्तियों के बारे में राय हो सकती हैं या परमेश्वर के कार्य के बारे में कुछ धारणाएँ हो सकती हैं, लेकिन वे कलीसियाई जीवन जीकर धीरे-धीरे इन्हें हल कर पाते हैं। लेकिन संदेही लोग अलग होते हैं। परमेश्वर में अपने विश्वास की शुरुआत से ही वे संदेह और सभी प्रकार की धारणाएँ रखते हैं। वे इस बारे में अनिश्चित होते हैं कि क्या परमेश्वर के वचन सत्य हैं, इस बारे में अनिश्चित होते हैं कि क्या परमेश्वर द्वारा ये वचन व्यक्त करना परमेश्वर का कार्य है और इससे भी ज्यादा अनिश्चित इस बारे में होते हैं कि भाई-बहनों का एक साथ जुटना परमेश्वर की कलीसिया है। वे लगातार संदेह रखते हैं और अपने संदेह सही साबित करने के लिए हमेशा तथ्यात्मक प्रमाणों की तलाश करते हैं। यह किस तरह का रवैया है? क्या तुम्हें लगता है कि ऐसा रवैया रखने वाले लोग परमेश्वर में अपने विश्वास में सत्य समझ सकते हैं? (नहीं।) वे कभी भी सत्य नहीं समझ पाएँगे। वे अपने दिलों में सबसे ज्यादा किस चीज पर ध्यान केंद्रित करते हैं? वे हमेशा सोचते रहते हैं, “ये लोग कौन हैं? क्या यह किसी तरह का सामाजिक संगठन है? वैसे तो जब मैं इन लोगों की मेजबानी करता हूँ, तो परमेश्वर का घर इनके जीवन निर्वाह का खर्च उठाता है, फिर भी मैं इनका मेजबान बनकर जोखिम उठा रहा हूँ। तो क्या परमेश्वर मेरे अच्छे कर्मों को याद रखेगा? अगर परमेश्वर उन्हें याद नहीं रखता है, तो क्या मेरी मेजबानी बेकार नहीं जाएगी?” उनके दिलों में लगातार ऐसे संदेह रहते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि वे भाई-बहनों की मेजबानी खुशी से करते हैं? (नहीं।) वे पूरी तरह से ऐसा आशीषें पाने की इच्छा से करते हैं जबकि उनके मन संदेहों से भरे होते हैं। विशेष रूप से, जब वे कुछ ऐसी चीजें सुनते हैं जिन्हें वे स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं और अपनी धारणाओं के अनुसार नकारात्मक मानते हैं, तो उनके दिलों में संदेह बढ़ जाते हैं। मिसाल के तौर पर, सभाओं के दौरान कोई व्यक्ति ऐसे विषय उठा सकता है जिसमें बड़े लाल अजगर के शासन के क्रियाकलाप और राक्षस राजाओं के बदसूरत चेहरे शामिल हों या कभी-कभी सत्य पर संगति बड़े लाल अजगर द्वारा किए गए दमन और गिरफ्तारियों और बड़े लाल अजगर के प्रकृति सार, वगैरह का जिक्र कर सकती है। ये विषय वास्तव में राजनीति से संबंधित नहीं होते हैं—वे बस लोगों को बड़े लाल अजगर को पहचानने और उसका चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में मदद करते हैं ताकि वे बड़े लाल अजगर से नफरत करना और उसे अस्वीकार करना शुरू कर सकें और फिर शैतान के प्रभाव से बेबस ना हों और उससे बँधे ना रहें। लेकिन जब संदेही लोग ऐसे विषय सुनते हैं, तो वे कायर और भयभीत हो जाते हैं : “ये लोग तो राजनीति पर भी चर्चा कर रहे हैं! क्या वे राजनीतिक अपराधी नहीं हैं? क्या वे प्रतिक्रांतिकारी नहीं हैं? ये विषय बहुत ही संवेदनशील हैं! जल्दी करो, खिड़कियाँ बंद करो, दरवाजे बंद करो, इंटरनेट और फोन लाइनें काट दो! अगर सरकार ने छिपकर ये बातें सुन लीं, तो हम बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं! हमें तो यकीनन आजीवन कैद की सजा मिलेगी!” वे ऐसे विषय सुनने के इच्छुक नहीं होते हैं और उन पर चर्चा करना रोकने के लिए संगति में रुकावट डालने का हर संभव प्रयास करेंगे। वे मन ही मन सोचते हैं, “आखिर ये लोग किस तरह का कार्य करते हैं? ऐसा कहा जाता है कि परमेश्वर मानवीय राजनीति में शामिल नहीं होता है, तो ये लोग राजनीति के बारे में क्यों बात कर रहे हैं? क्या विश्वासियों को सिर्फ परमेश्वर में विश्वास रखने के मामलों के बारे में बात नहीं करनी चाहिए? वे इन चीजों पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्या यह सिर्फ मुसीबत को दावत देना नहीं है? अगर वे इन चीजों के बारे में बात करना चाहते हैं, तो वे इसे जहाँ चाहें वहाँ कर सकते हैं, लेकिन उन्हें इसे मेरे घर में नहीं करना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि यह बंदूक मेरे कंधे पर रखकर चलाई जाए!” वे कुछ भी स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते हैं। जब वे सरकार द्वारा गढ़ी कुछ अफवाहें सुनते हैं, तो वे ना सिर्फ उनका भेद पहचानने में विफल होते हैं, बल्कि उनकी आशंकाएँ और भी मजबूत हो जाती हैं। अगर वे सत्ताधारी राक्षसों के समूह या धर्म में मौजूद मसीह-विरोधी शक्तियों और दुष्ट आत्माओं के संप्रदायों के प्रति अक्सर संदेही और आशंकित होते, तो इससे उन्हें अपनी रक्षा करने के लिए वास्तव में मदद मिलती। लेकिन जिस कलीसिया में परमेश्वर कार्य करता है, वहाँ परमेश्वर ने बहुत सारा सत्य व्यक्त किया है और फिर भी वे इसे समझ नहीं पाते हैं और यह तय नहीं कर पाते हैं कि यही सच्चा मार्ग है। इतने लंबे समय तक धर्मोपदेश सुनने और परमेश्वर को इतना बोलते हुए देखने के बाद भी उनकी संदेहशीलता अनसुलझी रह गई है और उनकी धारणाएँ और कल्पनाएँ जड़ से नहीं मिटी हैं। यह स्पष्ट है कि उनकी काबिलियत बहुत ही खराब है, उनमें समझने की क्षमता बिल्कुल नहीं है और वे सत्य का अनुसरण करने वाले लोग नहीं हैं। परमेश्वर में अपने विश्वास की शुरुआत से ही उन्होंने कभी यह नहीं माना है कि परमेश्वर हर चीज पर संप्रभु है और उन्होंने कभी यह नहीं माना है कि परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं; और उन्होंने यह तो बिल्कुल नहीं माना है कि परमेश्वर के घर का कार्य पूरी तरह से पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित है। फलस्वरूप, हर चीज उन्हें संशयी बना देती है। मिसाल के तौर पर, सभाओं के दौरान अलग-अलग तरह के लोगों का भेद पहचानने के बारे में संगति करते समय हम इस बारे में बात कर सकते हैं कि मसीह-विरोधी लोगों को कैसे गुमराह करते हैं; या कैसे कुछ लोग परमेश्वर के चढ़ावों का उपयोग करके सारी चीजों का उपभोग करने और जीवनयापन की चीजें प्रदान किए जाने का आनंद लेने के बावजूद कोई वास्तविक कार्य नहीं करते हैं, जो कि कलीसिया पर पालना है; या कैसे कुछ लोग चढ़ावा चुराते या बर्बाद करते हैं; या कैसे कलीसिया में कुछ लोग अनैतिक गतिविधियों में शामिल होते हैं; या कैसे कुछ लोग सुसमाचार प्रचार करते समय परमेश्वर को अपमानित करने वाली चीजें करते हैं। हम इन मामलों पर चर्चा करते हैं ताकि लोग दूसरों का भेद पहचानना सीख सकें और ताकि वे लोगों और मामलों को परमेश्वर के वचनों और सत्य सिद्धांतों के अनुसार देख सकें, इन चीजों से सबक ले सकें और सीख सकें और दूसरों द्वारा गुमराह या बेबस होने से बच सकें। लेकिन संदेही लोग ये बातें सुनकर कहते हैं, “अरे नहीं! यह परमेश्वर का घर है, वह जगह है जहाँ परमेश्वर का कार्य किया जाता है—यहाँ ऐसी चीजें कैसे हो सकती हैं? ऐसा लगता है कि मेरा पहले से संदेही होना सही था। अब से मुझे और ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है। सभी लोग बहुत ही गैर भरोसेमंद होते हैं और परमेश्वर का घर भी भरोसेमंद नहीं है। तो क्या परमेश्वर भरोसेमंद है? कौन जाने—शायद परमेश्वर भी भरोसेमंद नहीं है।” देखो, वे सत्य नहीं समझते हैं और ना ही वे इसे समझ सकते हैं। परमेश्वर के घर द्वारा सत्य के चाहे किसी भी पहलू पर संगति क्यों ना की जाए, अंत में वे हमेशा किस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं? यही कि उन सभी वर्षों में उनका संदेही होना सही था और यह अनावश्यक नहीं था। अगर सत्य का अनुसरण करने वाले और सामान्य मानवता की सोच वाले लोग ये बातें सुनते हैं, तो वे उन्हें सही तरह से संभाल पाते हैं। एक लिहाज से, उनकी सोच का दायरा व्यापक हो जाता है और वे इन चीजों से सूझ-बूझ प्राप्त करते हैं। दूसरे लिहाज से, वे इन चीजों से सबक ले सकते हैं और सीख सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि लोग दूसरे लोगों का अनुसरण नहीं कर सकते हैं, उन्हें दूसरों का भेद पहचानने और सत्य को अधिक समझने की जरूरत है; अगर व्यक्ति सत्य नहीं समझता है, तो उसे किसी भी समय और किसी भी जगह गुमराह किया जा सकता है; और एक बार जब वह सत्य समझ जाता है और उसके पास आध्यात्मिक कद होता है, तो वह दूसरों से बेबस, गुमराह या नियंत्रित नहीं होगा। लेकिन संदेही लोग कभी इस तरह से नहीं सोचेंगे। परमेश्वर का घर विभिन्न प्रकार के लोगों और मामलों का भेद पहचानने के बारे में जितनी ज्यादा संगति करता है, उतना ही उन्हें लगता है कि उनके संदेह सही और पक्के हैं : “देखो, मैं होशियार व्यक्ति हूँ! अच्छा हुआ कि मैं सावधान बना रहा। लोग अक्सर कहते हैं कि मैं संदेही और अविश्वासी हूँ, लेकिन तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि मेरा संदेह करना सही था। देखो तुम सब कितने बेवकूफ हो—परमेश्वर में अपने विश्वास में तुम सिर्फ अपने कर्तव्य करना और अपने अनुभवजन्य ज्ञान के बारे में बात करना जानते हो। उसका क्या फायदा है? क्या यह तुम्हारी रक्षा कर सकता है? नहीं! तुम चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना क्यों ना करो, तुम अपनी रक्षा सिर्फ तभी कर सकते हो अगर तुम सावधान रहते हो और चीजों पर ज्यादा प्रश्न करते हो। तुम्हें हर किसी से चौकस रहना होगा। तुम खुद पर जितना भरोसा कर सकते हो उतना किसी और पर नहीं कर सकते, यहाँ तक कि अपने माता-पिता पर भी नहीं!” मुझे बताओ, आखिर वे किस तरह के लोग हैं? क्या वे परमेश्वर के विश्वासी हैं? (नहीं।) इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर का घर किस तरह के कार्य के बारे में संगति करता है या किस तरह के लोगों का भेद पहचानता है और परमेश्वर लोगों के लिए चाहे किसी भी परिवेश की व्यवस्था करता हो, इसका उद्देश्य यह है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग इन चीजों से सबक सीखें, वे राज्य में ज्यादा व्यावहारिक तरीके से प्रशिक्षण प्राप्त करें और वे—इन व्यावहारिक सबक के जरिए—सत्य समझने लगें और लोगों के प्रति सूझ-बूझ प्राप्त करने लगें, लोगों और विभिन्न मामलों को स्पष्ट रूप से देखने लगें और इस प्रकार बेहतर ढंग से यह समझ सकें कि परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन और सत्य आखिर किन वास्तविक लोगों, घटनाओं और चीजों के बारे में बात कर रहे हैं। लेकिन संदेही लोग इन चीजों से सबक सीखने में ही असमर्थ नहीं होते हैं, बल्कि वे और भी संदेही और चालाक बन जाते हैं।
कुछ संदेही लोग जब भी परमेश्वर के घर में कुछ कहते या करते हैं, तो वे हमेशा बेहद सावधान रहते हैं, लगातार इस बात से डरते हैं कि भाई-बहन या अगुआ और कार्यकर्ता उनकी काट-छाँट करेंगे या यहाँ तक कि उन्हें सताएँगे भी। वे कहते हैं, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास रखना बंद कर दूँ और कलीसिया छोड़ दूँ, तो क्या कलीसिया मुझसे प्रतिशोध लेगी?” उन्हें इस बारे में निश्चिंत रहना चाहिए। अगर कोई छद्म-विश्वासी कलीसिया छोड़ देता है, तो यह सभी पक्षों के लिए खुशी का मौका है—इससे सभी का फायदा है। इसलिए, अगर तुम कलीसिया छोड़ना चाहते हो या अपने घर वापस जाने और अपना जीवन जीने के लिए अपना कर्तव्य छोड़ देना चाहते हो, तो तुम्हें बिना किसी चिंता के यह बात बेधड़क उठानी चाहिए। तुम एक बयान भी लिख सकते हो, उसमें यह कहना : “अमुक तारीख से मैं आधिकारिक रूप से सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया छोड़ रहा हूँ और अपना कर्तव्य करने वालों की श्रेणी से हट रहा हूँ।” इसकी पूरी तरह से अनुमति है। परमेश्वर के घर के दरवाजे खुले हैं और तुम बिना इस चिंता के बेधड़क इसे छोड़ सकते हो कि कोई तुमसे प्रतिशोध लेगा। डरने या संदेही होने की कोई जरूरत नहीं है। क्या तुम्हें कलीसिया में इन लोगों के बीच बुरे व्यक्ति दिखाई देते हैं? बिल्कुल नहीं। फिर भी अगर बुरे लोग हों, तो उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए। ज्यादातर लोग काफी शिष्ट होते हैं और जीवन में सही रास्ते पर चलना पसंद करते हैं। दूसरों से प्रतिशोध लेना या उन्हें नुकसान पहुँचाना सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन है और वे ऐसा कभी नहीं कर सकते हैं। तुम लोगों को क्या लगता है कि संदेही लोगों के आचरण के तरीके में क्या गलत है? उनके पास सिर्फ एक अविश्वासी मन है, लेकिन प्रतिभा नहीं है। वे मानते हैं कि जब बात उनके आचरण के तरीके की आती है, तो उनका चालाक, धोखेबाज और अविश्वासी मन ही बुद्धि का सर्वोच्च रूप होता है। उन्हें न तो सत्य सिद्धांतों में दिलचस्पी है और ना ही परमेश्वर के कार्य और वचनों में—वे न तो समझते हैं और ना ही समझने का प्रयास करते हैं। इसके बजाय, वे सिर्फ शैतान के फलसफों के अनुसार जीते हैं, यह सोचते हैं, “मेरे साथ चाहे कुछ भी हो जाए, मुझे चीजों पर ज्यादा प्रश्न करने चाहिए। इसके अलावा, मुझे लगता है कि मैं चाहे किसी के भी प्रति संदेह क्यों ना रखूँ, मेरा ऐसा करना उचित है और चाहे मेरा संदेह तथ्यों से मेल खाए या ना खाए, यह जायज है। संक्षेप में, परिस्थितियों का सामना करने पर ज्यादा संदेह करना मेरे लिए फायदेमंद है।” फलस्वरूप, वे चाहे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास क्यों ना रख लें, वे कभी भी परमेश्वर के वचनों में सत्य की तलाश नहीं करते हैं और ना ही वे अपनी विभिन्न समस्याओं और आशंकाओं का समाधान करने के लिए परमेश्वर के वचनों में उत्तर तलाशते हैं। इसके बजाय, वे इन मामलों का विश्लेषण करने और उनसे निपटने के लिए अपने मन, अविश्वासी मानसिकता, सांसारिक आचरण के फलसफों या अपने जीवन के अनुभवों पर भरोसा करते हैं। अंत में, वे जितना ज्यादा विभिन्न परिस्थितियों का सामना करते हैं और वे जितना ज्यादा विभिन्न प्रकार की जानकारी सुनते हैं, उससे ना सिर्फ उनकी संदेही प्रकृति अपरिवर्तित रहती है, बल्कि उनकी आशंकाएँ भी लगातार बढ़ती जाती हैं। मिसाल के तौर पर, जब इस तरह के संदेही व्यक्ति को परमेश्वर में विश्वास रखते हुए एक-दो वर्ष हो जाते हैं और वह परमेश्वर के घर को बदनाम करने के लिए सीसीपी द्वारा गढ़ी गई झाओयुआन की घटना के बारे में सुनता है, तो वह सोचता है, “हो सकता है कि यह परमेश्वर के घर ने ही किया हो। अगर इसका आदेश परमेश्वर के घर ने नहीं भी दिया हो, तो भी इसे जरूर नीचे के कुछ भाई-बहनों ने किया होगा और तुम लोग बस इसे मान नहीं रहे हो।” तीन से पाँच वर्ष तक परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी वे घटनाओं के बारे में बड़े लाल अजगर की बातों पर विश्वास करते हैं। आठ से दस वर्ष बाद भी परमेश्वर के घर के बारे में उनकी आशंकाएँ अनसुलझी रहती हैं। वे यह नहीं मानते कि बड़ा लाल अजगर ही कलीसिया को फँसा रहा था और बदनाम कर रहा था; वे सीधा यह मान लेते हैं कि यह परमेश्वर के घर के लोगों की ही करतूत है। देखा तुमने, जब वे किसी मामले को देखते हैं, तो यह कभी भी परमेश्वर के वचनों या सत्य सिद्धांतों पर आधारित नहीं होता है—वे बड़े लाल अजगर की बातों पर विश्वास करते हैं और मामले को राक्षसों और शैतान के नजरिये से देखते हैं। शैतान परमेश्वर के चुने हुए लोगों का चाहे कैसे भी दमन करे और उनके साथ क्रूर व्यवहार करे, उन्हें लगता है कि यह स्वाभाविक बात है, लेकिन वे कभी भी यह नहीं मानते कि परमेश्वर का घर निर्दोष है या जो भाई-बहन परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण उत्पीड़न सहते हैं वे निर्दोष हैं। भले ही वे अपनी आँखों से यह देखें कि परमेश्वर के घर में सभी भाई-बहन शिष्ट लोग हैं और अपनी सीमा में रहते हैं, फिर भी वे अपने दिल में बिना किसी संदेह के उन चीजों पर विश्वास करते हैं जो बड़े लाल अजगर ने कलीसिया को बदनाम करने के लिए की हैं। भले ही ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास रखने में कष्ट सह सकते हैं, कीमत चुका सकते हैं और यहाँ तक कि चढ़ावा भी चढ़ा सकते हैं, लेकिन आखिरकार वे छद्म-विश्वासी ही हैं। दरअसल, संदेही लोग उन लोगों की तुलना में ज्यादा परेशान करने वाले लोग होते हैं जो सत्य से प्रेम नहीं करते हैं या उसे स्वीकार नहीं करते हैं। वे किस तरह से ज्यादा परेशान करने वाले लोग हैं? जो लोग सत्य में दिलचस्पी नहीं रखते हैं वे कलीसिया के कार्य में और कर्तव्यों के निर्वहन में पूरी तरह से उदासीन होते हैं और उनकी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं होती है; विश्वासी लोग चाहे जैसे भी परमेश्वर का अनुसरण करें या अपने कर्तव्य करें, यह उनके लिए महत्वहीन है। फलस्वरूप, उन्हें परमेश्वर में विश्वास रखने या कोई कर्तव्य करने के मामलों के बारे में आशंकाएँ नहीं होती हैं और वे आम तौर पर कलीसिया के मामलों के बारे में कभी पूछताछ नहीं करते हैं। लेकिन संदेही लोग इसके बिल्कुल विपरीत होते हैं—वे सुनी-सुनाई बातों के बारे में पूछताछ करना पसंद करते हैं। वे इन चीजों के बारे में क्यों पूछताछ करना चाहते हैं? उनका एक लक्ष्य निश्चित रूप से यह है : “अगर मैं ज्यादा पूछताछ करता हूँ और ज्यादा जानता हूँ, तो मुझे पहले से ही अपनी अतिरिक्त योजना तैयार करने और किसी भी समय यह तय करने में मदद मिलेगी कि मुझे कलीसिया में रहना है या इसे छोड़ना है।” वे कुछ मामलों के बारे में पूछताछ करने पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं, जैसे कि किसी विशेष अगुआ या कार्यकर्ता का असली नाम क्या है, वह कहाँ रहता है, लौकिक दुनिया में उसका किस तरह का पेशा है या उसने अपना कर्तव्य करने के लिए अपना घर क्यों छोड़ा। वे सुसमाचार प्रचार करने वालों के बारे में भी पूछताछ कर सकते हैं, जैसे कि उन्होंने किसे सुसमाचार सुनाया, उनके परिवार के कौन-से सदस्य परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, वे कितने वर्षों से सुसमाचार प्रचार कर रहे हैं, उन्होंने कितने लोग प्राप्त किए हैं, वगैरह-वगैरह। वे इन सभी चीजों के बारे में बहुत विस्तार से पूछताछ करते हैं। संदेही लोग इस तरह की जानकारी इकट्ठा करना पसंद करते हैं और एक बार जब वे इसे इकट्ठा कर लेते हैं, तो वे निश्चिंत हो जाते हैं, यह सोचते हैं कि इन चीजों को जानना बहुत जरूरी है और वे महत्वपूर्ण समय में इस जानकारी का उपयोग कर सकते हैं। संदेही लोगों के पास बहुत ज्यादा जानकारी होती है। वे “सूचना का भंडार” होते हैं और वे कुछ ऐसी चीजें भी जानते हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को नहीं पता होती हैं, जैसे कि कौन अपना कर्तव्य करने के लिए विदेश गया है और वह किस देश में गया है—उन्हें दूसरे देशों में जाने वाले लोगों के बारे में भी ये चीजें पता होती हैं। लेकिन अगर तुम उनसे पूछो कि धर्मोपदेशों का कौन सा भाग सबसे हाल ही में जारी किया गया है, तो वे तुम्हें नहीं बता पाएँगे। वे जीवन प्रवेश के मामलों पर कभी ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन जब भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी और कलीसिया की कुछ परिस्थितियों की बात आती है, तो वे उन चीजों पर बहुत स्पष्ट होते हैं। अक्सर चीजों के बारे में पूछताछ करने का उनका एक उद्देश्य सभी प्रकार की परिस्थितियों के बारे में ज्यादा जानना होता है जिसके बाद वे किसी भी समय अपने लिए बाहर निकलने का रास्ता तैयार कर सकते हैं। उनका मानना है कि अपने बाहर निकलने के रास्ते के बारे में नहीं सोचना निहायत बेवकूफी होगी—अविश्वासियों के शब्दों में कहें, तो वे “किसी के द्वारा धोखे से बेचे जाने के बाद उसके पैसे गिनने में उसकी मदद कर रहे होंगे!” दरअसल, वे सड़े हुए पुराने भोजन की तरह हैं, एक धेले के भी लायक नहीं हैं और फिर भी वे खुद को बहुत मूल्यवान समझते हैं। तुम लोग क्या सोचते हो, क्या ये लोग संदेही हैं? (हाँ।) ये सचमुच संदेही लोग हैं। संदेही लोगों में विशेष रूप से चालाक और धोखेबाज मानवता होती है। कुछ लोग चालाकी और धोखेबाजी को उच्च प्रतिभा के संकेतों के रूप में देखते हैं, लेकिन यह गलत है। दरअसल, ये चालाक और धोखेबाज लोग निहायत बेवकूफ होते हैं और इनमें बिल्कुल भी काबिलियत नहीं होती है। उनकी काबिलियत बहुत खराब होती है और इसे बदलना पहले से ही कठिन होता है; उनके चालाक भी होने का अर्थ है कि उन्हें ठीक करना और भी कठिन होता है। अगर कोई व्यक्ति सिर्फ खराब काबिलियत वाला है, लेकिन वह अपेक्षाकृत ईमानदार है और चालाक नहीं है और वह ईमानदारी से अपना कर्तव्य कर सकता है, तो शायद अब भी उसके पास बचाए जाने की उम्मीद की एक किरण बाकी है। अगर उसकी काबिलियत खराब है और वह कुछ हद तक धोखेबाज है, लेकिन वह सत्य स्वीकार सकता है और खुद को जान सकता है, तो शायद उसके पास अपना धोखेबाज स्वभाव छोड़ देने की उम्मीद की एक किरण बाकी है। अगर वह सत्य समझ सकता है और धीरे-धीरे उसे जान सकता है और उसमें प्रवेश कर सकता है, तो उसकी संदेहशीलता धीरे-धीरे हट सकती है। लेकिन बदकिस्मती से इन लोगों में काबिलियत की कमी होती है, वे धोखेबाज, चालाक और काफी हद तक बेवकूफ भी होते हैं। यह उस अंधे व्यक्ति की तरह है जिसे आँख की समस्या है—इसका कोई इलाज नहीं है, है ना? (सही कहा।) ऐसे लोगों को ठीक नहीं किया जा सकता। चूँकि ये लोग इस हद तक संदेही होते हैं कि इन्हें ठीक नहीं किया जा सकता, तुम लोगों को क्या लगता है कि उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? (अगर ऐसे लोगों का पता चलता है, तो उनसे चौकस रहना चाहिए। वे अपनी रक्षा करने के लिए कलीसिया के साथ विश्वासघात करने में सक्षम हैं; वे खतरनाक व्यक्ति हैं। हम उन्हें उजागर करने और उन्हें बाहर निकालने के अवसर तलाश सकते हैं या अगर हमें ऐसा करने का कोई अवसर नहीं मिलता है, तो हम बुद्धिमानी से उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी कर सकते हैं।) एक बार जब तुम आश्वस्त हो जाते हो कि कोई व्यक्ति संदेही है, तो उसके साथ मेलजोल मत रखो। उसके साथ मेलजोल रखने से सिर्फ मुसीबत ही खड़ी होगी। अगर तुम उससे मेलजोल रखोगे, तो वह हमेशा तुम्हें समझने का प्रयास करेगा। अगर तुम बाहर जाने वाले होगे, तो वह तुम पर कड़ी नजर रखेगा, लगातार पूछता रहेगा, “तुम कहाँ जा रहे हो? कितने दिनों के लिए जा रहे हो? क्या करने जा रहे हो?” जब तुम वापस आओगे, तो वह पूछेगा, “तुम किससे मिले? क्या तुमने अपना कार्य पूरा किया? तुम लोगों ने किस बारे में बात की?” अगर तुमने उसे उत्तर नहीं दिया, तो वह शिकायत करेगा : “वे मुझे किसी भी चीज के बारे में नहीं बताते। उन्हें मुझ पर भरोसा नहीं है, है ना? वे मुझे परमेश्वर के घर का सदस्य नहीं मान रहे हैं! उन्होंने कहा कि वे कलीसियाई कार्य करने जा रहे हैं, लेकिन वे मुझसे यह बात क्यों छिपा रहे हैं? वे जरूर कोई गैर-कनूनी चीज करने गए होंगे।” वह हमेशा तुम्हारी पीठ पीछे तुम्हारी जासूसी करेगा। ऐसे लोग वाकई परेशान करने वाले लोग होते हैं। वे ढेरों चीजों के बारे में पूछताछ करते हैं, सब कुछ जानना चाहते हैं। लेकिन एक बार जब उन्हें वे चीजें मालूम हो जाती हैं, तो वे उन्हें विशुद्ध रूप से समझ नहीं पाते हैं या उन्हें सही तरीके से संभाल नहीं पाते हैं और वे उनमें संदिग्ध भागों की तलाश भी करते हैं जिससे उनका संदेह लगातार बढ़ता जाता है। मान लो कि तुम उन्हें सलाह देते हुए कहते हो, “चूँकि तुम्हें परमेश्वर के बारे में इतने बड़े संदेह हैं और चूँकि तुम यह विश्वास नहीं करते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं और वे मनुष्य को शुद्ध कर सकते हैं और बचा सकते हैं, इसलिए तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखना ही बंद कर देना चाहिए!” वे ऐसा करने के इच्छुक नहीं होंगे—वे अब भी विश्वास करना चाहेंगे और अब भी आशीषें प्राप्त करना चाहेंगे। क्या ये लोग परेशान करने वाले लोग नहीं हैं? (हाँ।) इन लोगों से निपटना आसान है। अगर वे कलीसिया में बड़ी मुसीबत ला सकते हैं, तो जल्दी से उन्हें छोड़ने के लिए राजी करो। ये लोग भरोसेमंद नहीं हैं, उनमें सत्य समझने की क्षमता नहीं है और अगर वे थोड़ा-सा कर्तव्य कर भी सकते हों, तो भी वे परमेश्वर के घर में बड़ी मुसीबत ले आएँगे—वे भला कम और बुरा ज्यादा करते हैं। इसलिए, उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना जरूरी है।
कायर लोग मुसीबत खड़ी करने वाले होते हैं और संदेही लोग भी मुसीबत खड़ी करने वाले होते हैं। लेकिन जो लोग कायर और संदेही दोनों होते हैं, वे और भी ज्यादा मुसीबत खड़ी करने वाले होते हैं। ये लोग बेहद डरपोक होते हैं और मृत्यु से डरते हैं; वे हर चीज के बारे में संदेही होते हैं, लगातार इस बारे में संदेही होते हैं कि क्या परमेश्वर में विश्वास रखने से वे चालबाजी का शिकार हो जाएँगे। वे डरते हैं कि उनकी संभावनाओं में बाधा आ सकती है और उन्हें लगता है कि गिरफ्तार होने और सताए जाने के कारण उनकी मृत्यु होना शायद ही सार्थक होगा। अगर वे इस हद तक संदेही हैं, तो परमेश्वर में विश्वास रखने से उन्हें क्या फायदा है? क्या यह उनके लिए सिर्फ चीजें कठिन नहीं बना रहा है? वे भाई-बहनों और परमेश्वर के घर की हर कार्य-व्यवस्था से ऐसे चौकस रहते हैं मानो वे ठगों से चौकस हों, ठीक वैसे ही जैसे वे बड़े लाल अजगर या राक्षसों और शैतान से चौकस रहते हैं। कुछ लोग अब भी उन्हें सलाह देने का प्रयास करते हुए कहते हैं, “बस यह सुनिश्चित करो कि तुम निष्ठापूर्वक परमेश्वर में विश्वास रखो, सत्य का अनुसरण करो और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से करो और परमेश्वर तुम्हें स्वीकृति देगा।” लेकिन वे अपने मन में क्या सोच रहे हैं? “तुम चाहते हो कि मैं अपना कर्तव्य उचित रूप से करूँ, लेकिन एक बार जब मैं मशहूर हो जाऊँगा और बड़ा लाल अजगर मुझे गिरफ्तार कर लेगा, तो क्या वह मेरा अंत नहीं होगा?” अगर उनकी वाकई यह मानसिकता है, तो उन्हें सलाह देने का प्रयास करने का कोई अर्थ नहीं है। वे बेहद डरपोक हैं और हमेशा मृत्यु से आतंकित रहते हैं। जब वे सुनते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को गिरफ्तार किया गया है, तो वे इतने डर जाते हैं कि उनकी पतलूनें गीली हो जाती हैं। लेकिन जब व्यापार में लोगों को ठगने और धोखा देने की बात आती है, तो चाहे वे कितनी भी मुसीबत में क्यों ना पड़ जाएँ, वे बिल्कुल भी नहीं डरते हैं—वे इस संबंध में बहुत साहसी हैं। लेकिन जब परमेश्वर में विश्वास रखने के मामलों की बात आती है, तो वे बेहद डरपोक होते हैं। वे भाई-बहनों के बारे में, परमेश्वर के घर के बारे में और विशेष रूप से, परमेश्वर और परमेश्वर के वचनों और कार्य के बारे में सभी तरह की आशंकाओं से भरे होते हैं और कितनी भी संगति इन आशंकाओं को दूर नहीं कर सकती है। वे चाहे कितने भी वर्षों तक विश्वास क्यों ना रखें, उन्हें अब भी यह नहीं पता होता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने का क्या अर्थ है या उन्हें क्यों सभाएँ करने और अपना कर्तव्य निभाने की जरूरत है। यह स्पष्ट है कि ये लोग कमजोर प्रतिभा वाले होते हैं; काफी चालाक और धोखेबाज होते हैं। ऐसे लोगों को जल्दी से कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए। अगर वे सभाओं में आना बंद कर देते हैं और अब अपना कर्तव्य नहीं करना चाहते हैं क्योंकि वे कायर हैं या कोई दूसरा कारण है, तो यह बढ़िया है—इससे उन्हें बाहर निकाल देने की परेशानी से छुटकारा मिल जाता है और झंझट से बचा जा सकता है। अगर किसी दिन उनकी परमेश्वर में विश्वास रखने में फिर से दिलचस्पी हो जाती है और वे परमेश्वर में विश्वास रखने में लौटना चाहते हैं, तो तुम उन्हें बता सकते हो, “परमेश्वर के विश्वासी के रूप में तुम्हें कभी भी गिरफ्तार करके जेल में डाला जा सकता है और यहाँ तक कि इसमें तुम्हारी जान जाने का भी जोखिम है। लेकिन अगर तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते हो, बल्कि दुनिया में व्यापार करते हो और बहुत पैसे कमाते हो, तो शायद तुम कुछ आरामदायक दिनों का आनंद ले पाओगे।” यह सुनने के बाद उनके दिल पूरी तरह से शांत हो जाएँगे और फिर वे परमेश्वर में विश्वास रखने के बारे में और नहीं सोचेंगे। वे सोचेंगे, “आखिरकार मेरी चिंता और डर के वर्ष समाप्त हो गए हैं। अब मुझे कलीसिया, भाई-बहनों या परमेश्वर के घर पर संदेह करने की जरूरत नहीं है। आखिरकार मैं आजाद हो गया हूँ।” और बस ऐसे ही ये कायर और संदेही लोग कलीसिया छोड़ने के लिए मान जाते हैं। यह बड़ी मुसीबत को दूर कर देता है, है ना? (हाँ।) यह इस मामले को हल करने का एक बढ़िया तरीका है।
ठ. मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति
आओ हम अगली अभिव्यक्ति “मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति” पर एक नजर डालें। क्या तुम्हें पता है कि किस तरह के लोगों में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति होती है? क्या कलीसिया में तुम लोग इस प्रकार के किसी व्यक्ति से मिले हो जिसमें मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति हो? इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी उम्र, लिंग या दुनिया में उनका पेशा क्या है, अगर वे हमेशा मुसीबत मोल लेते हैं और हमेशा ऐसी चीजें करते हैं जो कानूनों और विनियमों का उल्लंघन करती हैं, कलीसिया पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं और सुसमाचार कार्य में बड़ी बाधाएँ पैदा करती हैं, तो कलीसिया को ऐसे लोगों से तुरंत निपटना चाहिए। सबसे पहले, उन्हें एक चेतावनी दो और अगर परिस्थिति बहुत ही गंभीर है, तो उन्हें निष्कासित कर दो या उन्हें बाहर निकाल दो। तुम उनके प्रति शिष्टाचार बिल्कुल नहीं दिखा सकते। मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग किस प्रकार के होते हैं? मिसाल के तौर पर, कुछ लोग, दुनिया में व्यापार करते समय या कारखाने चलाते समय संदिग्ध व्यक्तियों के साथ मेलजोल रखते हैं और अक्सर ऐसी चीजें करते हैं जो कानूनों और विनियमों का उल्लंघन करती हैं। आज वे करों की चोरी कर रहे हैं या कम कर दे रहे हैं; कल वे धोखाधड़ी और छल करेंगे या किसी की मौत का कारण बनने पर कानूनी मामलों में फँस जाएँगे। इन चीजों के कारण उन्हें अक्सर अदालती समन मिलते रहते हैं, उनके दिन मुकदमों से निपटने में बीत जाते हैं और वे लगातार विवादों में उलझे रहते हैं। क्या ऐसे लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रख सकते हैं? यह नामुमकिन है। ऐसे भी कुछ लोग हैं जो परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा तो करते हैं, लेकिन बहुत ही अजीब और असामान्य तरीके से व्यवहार करते हैं। आज वे विपरीत लिंग के लोगों को परेशान कर रहे हैं; तो हो सकता है कि कल वे किसी का यौन उत्पीड़न करें और उनकी रिपोर्ट कर दी जाए। क्या तुम कहोगे कि इन लोगों में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति है? (हाँ।) तो क्या ऐसे लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास रख सकते हैं? (नहीं।) ये मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी हमेशा समाज के संदिग्ध व्यक्तियों के साथ मेलजोल रखते हैं और लगातार विवादों का कारण बनते हैं, जैसे कि भावनात्मक मामलों, पैसों, संपत्ति या व्यक्तिगत हितों से जुड़े विवाद। ऐसे कुछ लोग हमेशा होते हैं जो उनके किसी रिश्ते में तनाव पैदा करने वाली किसी घटना के कारण या उनके गलत तरीके से कमाए गए फायदे बराबर नहीं बाँटे जाने के कारण उनके लिए मुसीबत खड़ी करने की फिराक में रहते हैं। कभी-कभी जब भाई-बहन उनके घर जाते हैं, तो ऐसे संदिग्ध लोगों से उनकी मुलाकात हो सकती है। यहाँ तक कि जब वे सभाओं में होते हैं या अपना कर्तव्य कर रहे होते हैं, तब भी ये संदिग्ध लोग कभी-कभी उनके दरवाजे पर आ धमकते हैं या उन्हें परेशान करने वाले संदेश भेजते हैं, इसलिए मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों की संगत में जो भी होता है, उसके उनकी मुसीबत में घसीटे जाने की संभावना रहती है; खास तौर पर, कलीसिया के कार्य और प्रतिष्ठा को इन लोगों द्वारा घसीटे जाने और नुकसान पहुँचाए जाने की संभावना और भी ज्यादा रहती है। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों के लिए कलीसिया में रहना अच्छा है? (नहीं।) इस तरह के व्यक्ति को भी बाहर निकाल देना चाहिए और उससे निपटना चाहिए।
ऐसे भी कुछ लोग हैं जो समाज में चाहे किसी भी पेशे में हों, हमेशा सरकार, सरकारी अधिकारियों या कुछ सामाजिक समूहों और जानी-मानी हस्तियों से मनमुटाव रखना चाहते हैं। आज वे सरकार के अनुचित क्रियाकलापों को उजागर कर रहे हैं; और कल वे किसी समूह या संगठन पर मुकदमा दायर कर देंगे, नुकसानों की भरपाई की माँग करेंगे; परसों वे किसी जानी-मानी हस्ती के निजी जीवन को उजागर करेंगे जिससे लोग उनकी तलाश करते हुए आ धमकेंगे। क्या यह मुसीबत मोल लेना है? (हाँ।) परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद भी वे सामाजिक मामलों में लगातार शामिल रहना चाहते हैं। जब वे कुछ ऐसा देखते हैं जो उन्हें असंतुष्ट और नाराज कर देता है, तो वे अपना दिखावा करने के लिए हमेशा न्याय के लिए खड़े होना चाहते हैं या मामले के सही और गलत पहलुओं पर राय देने के लिए कोई टिप्पणी या लेख लिखना चाहते हैं। अंत में क्या होता है? वे कुछ भी हासिल नहीं करते हैं, बल्कि खुद को एक बहुत बड़ी मुसीबत में डाल लेते हैं, मुकदमों में फँस जाते हैं और अपनी प्रतिष्ठा बर्बाद कर लेते हैं। और समाज में हमेशा ऐसे कुछ संदिग्ध लोग होते हैं जो उनकी तलाश में रहते हैं, उनसे बदला लेना चाहते हैं या उनके खिलाफ कार्रवाई करना चाहते हैं, इसलिए वे बेहद डर-डरकर जीते हैं। इस तरह के जीवन से भाग निकलने और मुसीबत से बचने के लिए वे कई घर खरीद लेते हैं और यह दलील देते हैं, “जैसा कि लोग कहते हैं, ‘एक चालाक खरगोश के पास तीन बिल होते हैं।’ मेरे तीन घरों में से सिर्फ एक के बारे में ही लोगों को पता है; बाकी दो के बारे में किसी को नहीं पता। मैं उन्हें कलीसिया द्वारा उपयोग किए जाने और भाई-बहनों के ठहरने के लिए बचाए रख रहा हूँ।” क्या तुम्हें लगता है कि भाई-बहनों का वहाँ रहना सुरक्षित होगा? (नहीं होगा।) उनकी सारी बातें बहुत अच्छी लगती हैं और ऐसा करने के पीछे उनके इरादे भी अच्छे होते हैं, लेकिन उनके चरित्र और मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति के कारण उनके घर में रहने की हिम्मत भला कौन करेगा? अगर तुम वहाँ रहे, तो हो सकता है कि लोग तुम्हें उनके परिवार का सदस्य मान लें। अगर कोई उन्हें पीटना चाहता हो, लेकिन उन्हें ढूँढ नहीं पा रहा हो, तो क्या वह उनके बजाय तुम्हें नहीं पीट देगा? कुछ लोगों में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति होती है। जब वे यूँ ही गाड़ी में घूम रहे होते हैं और किसी सुनसान जगह से गुजरते हैं, तो वहाँ बीच रास्ते में हो सकता है कि कोई उन्हें रोक ले और उन्हें खींचकर गाड़ी से बाहर निकाल ले, फिर उन्हें बहुत बुरी तरह से पीटे और चेतावनी दे। उन्हें पता होता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने पहले किसी को नाराज कर दिया था और वे खुद पर यह मुसीबत ले आए और वह नाराज व्यक्ति उन्हें सताना चाहता था। क्या वे बिल्कुल इसी लायक नहीं हैं? इस प्रकार का व्यक्ति ही मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाला व्यक्ति होता है। परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू करने के बाद, कलीसिया चाहे किसी भी मामले पर चर्चा क्यों ना कर रही हो, वह हमेशा अपनी टाँग अड़ाना चाहता है; वह उस मामले पर अपनी राय जताना चाहता है, कुछ टिप्पणियाँ देना चाहता है और यह प्रयास भी करता रहता है कि लोग उसकी बात सुनें। अगर कलीसिया उसके सुझाव नहीं अपनाती है, तो वह पूरी तरह से असंतुष्ट और नाराज हो जाता है, वह अपनी क्षमताओं से पूरी तरह से बेखबर होता है। उसे चाहे कितने भी नुकसान क्यों ना उठाने पड़ें, वह उन्हें कभी भी याद नहीं रखता है या अपनी असफलताओं से सबक नहीं सीखता है। ऐसे लोग परमेश्वर में विश्वास रखते हुए भी मुसीबत का कारण बनते हैं। एक बात तो यह है कि वे सत्य नहीं समझते हैं, लेकिन फिर भी हमेशा कलीसिया के कार्य में शामिल होना चाहते हैं, हर चीज में दखल देने का प्रयास करते हैं जिससे कलीसियाई कार्य में विघ्न-बाधाएँ पैदा हो जाती हैं। दूसरी बात यह है कि जब भी वे किसी भाई या बहन के साथ बहुत समय बिताते हैं, तो वे उनके लिए भी मुसीबत ले आते हैं। मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग बहुत ही बड़ी सिरदर्दी होते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग गड़बड़ी नहीं मचाने वाले लोग होते हैं? क्या ऐसे लोग अपनी मर्यादा में रहते हैं? (नहीं।) यकीनन वे अपनी मर्यादा में रहने वाले लोग नहीं होते हैं। आम तौर पर, सभ्य जीवन जीने वाले लोग अपनी मर्यादा में रहने की प्रवृत्ति रखते हैं। जब तक सामाजिक मामलों का परमेश्वर में उनके विश्वास से कोई लेना-देना नहीं होता है, वे उनमें बिल्कुल भी शामिल नहीं होते हैं या उनके बारे में पूछताछ नहीं करते हैं। इसे तर्कसंगत होना, बदलते दौर को समझना और चीजों का मतलब समझना कहते हैं। यह समाज और मानवजाति बहुत ही दुष्ट और जटिल हैं। जैसा कि अविश्वासी कहते हैं, “इस अराजक युग और अराजक दुनिया में लोगों को अपनी रक्षा करना सीखना पड़ेगा।” इसके अलावा, तुम हमेशा सामाजिक मामलों पर टिप्पणी करते रहते हो और उनमें शामिल होना चाहते हो, लेकिन यह वह मार्ग नहीं है जिस पर जीवन में तुम्हें चलना चाहिए। उन चीजों को करना बेकार है और यह जीवन में सही मार्ग नहीं है। भले ही तुम निष्पक्ष रूप से बात कर पाते हो, फिर भी इसे उचित उद्देश्य नहीं माना जाता है। क्यों नहीं? क्योंकि इस दुनिया में कोई निष्पक्षता नहीं है; बुरे चलन इसकी अनुमति नहीं देते हैं। अगर तुम परमेश्वर के घर में सही मायने में निष्पक्ष और ईमानदार शब्द बोल पाते हो, तो उसका मूल्य और महत्व है। लेकिन अगर तुम इस दुष्ट, भ्रष्ट और अराजक मनुष्यों की दुनिया में निष्पक्ष और ईमानदार शब्द बोलते हो, तो ऐसे शब्द आसानी से मुसीबत को दावत देते हैं और खतरा ले आते हैं। क्या ऐसे शब्द बोलना बहुत बेवकूफी नहीं होगी? ऐसा करने से ना सिर्फ तुम उस तरीके से नहीं जी पाओगे जिसका मूल्य है, बल्कि इससे तुम पर मुसीबतों का पहाड़ भी टूट पड़ेगा। इसलिए, होशियार लोग देख पाते हैं कि ये सामाजिक मामले आफत हैं और वे उनसे दूरी बना लेते हैं और उनसे बचते हैं, जबकि बेवकूफ लोग उनकी तरफ चले जाते हैं और अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लेते हैं। खास तौर पर, कुछ लोग कुछ दिनों तक मार्शल आर्ट में प्रशिक्षण लेने के बाद कुछ आकर्षक पैंतरे सीख जाते हैं और थोड़ी शोहरत हासिल कर लेते हैं और फिर न्याय के लिए लड़ना चाहते हैं, गरीबों की मदद करने के लिए अमीरों को लूटना चाहते हैं। वे एक शूरवीर या तलवारबाज की भूमिका निभाना चाहते हैं, जगह-जगह जाकर गलत चीजों को सही करते रहते हैं और यहाँ तक कि कहीं अन्याय होता देखने पर मदद करने के लिए खुद ही आगे आ जाते हैं। नतीजतन, यह मुसीबत खड़ी हो जाती है—वे यह नहीं समझते हैं कि समाज बहुत ही जटिल है। मुझे बताओ, जब तुम मदद करने के लिए आगे आओगे, तो क्या तुम कुछ लोगों को नाराज नहीं कर दोगे? क्या तुम उन लोगों की बड़े ध्यान से बनाई योजनाओं को बर्बाद नहीं कर दोगे? (हाँ।) जब तुम उन लोगों की बड़े ध्यान से बनाई योजनाओं को बर्बाद कर दोगे, तो क्या वे तुम्हें यूँ ही छोड़ देंगे? (नहीं।) तुम कह सकते हो, “मैं एक न्यायोचित उद्देश्य पूरा कर रहा हूँ,” लेकिन अगर यह कोई न्यायोचित उद्देश्य भी हो, तो भी यह सही नहीं होगा—यह दुनिया तुम्हें न्यायोचित उद्देश्य पूरा नहीं करने देगी। अगर तुमने ऐसा किया, तो तुम्हारे लिए यह मुसीबत मोल लेना होगा। यह बात बेवकूफों को समझ नहीं आती है, वे दुनिया की असलियत पहचान नहीं पाते हैं। वे हमेशा यही सोचते हैं कि चूँकि वे शूरवीर हैं, इसलिए उन्हें दूसरों की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए। लेकिन अंत में वे किसी की बड़े ध्यान से बनाई गई योजनाएँ बिगाड़ देते हैं और वह व्यक्ति उनसे बदला लेना चाहता है और मामले को अनदेखा करने से इनकार कर देता है। वे इसी तरह से आपदा को दावत देते हैं। दूसरा व्यक्ति चुपके से उसका नाम, वह कहाँ रहता है, उसकी पारिवारिक स्थिति क्या है, उसके परिवार के सदस्य कौन हैं, क्या उस इलाके में उसका दबदबा है और उसके खिलाफ सबसे अच्छी कार्रवाई कैसे करनी चाहिए, इन चीजों के बारे में पता लगाना शुरू कर देता है। एक बार जब वह इन सभी चीजों को स्पष्ट तौर पर समझ जाता है, तो फिर वह उस “शूरवीर” पर अपनी चालें चलना शुरू कर देता है, जिसके जीवन में उस क्षण से कठिनाइयाँ बढ़ने लगती हैं। इस प्रकार के लोग अक्सर मुसीबत मोल ले लेते हैं और चाहे उन्हें कितने भी बड़े नुकसान क्यों ना उठाने पड़ें, वे कभी भी अपना सबक नहीं सीखते हैं। फिर से जब उन्हें कुछ ऐसा दिखता है जो उन्हें अन्यायपूर्ण लगता है, तब भी वे न्याय के लिए लड़ना और आगे बढ़कर मदद करना चाहते हैं। वे ना सिर्फ खुद पर मुसीबत ले आते हैं बल्कि अपने परिवार को भी खतरे में डाल देते हैं और कभी-कभी अपने आसपास के दोस्तों या सहकर्मियों को भी इसमें घसीट लेते हैं। अगर वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और कलीसिया में प्रवेश करते हैं, तो वे भाई-बहनों को भी खतरे में डाल सकते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर वे समाज में किसी मुसीबत में फँस जाते हैं और कोई उनसे बदला लेना चाहता है और उस व्यक्ति को यह पता होता है कि तुम उनके साथ सभाओं में जाते हो, तो वह व्यक्ति इनकी व्यक्तिगत और पारिवारिक स्थिति के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए तुम्हारे पास आ सकता है। तो क्या तुम उस व्यक्ति को यह जानकारी दोगे या नहीं दोगे? अगर तुमने जानकारी दे दी, तो यह उनके साथ विश्वासघात करने के बराबर होगा जिससे उन पर मुसीबत आएगी; अगर तुमने जानकारी नहीं दी, तो वह व्यक्ति तुम्हें सता सकता है। इस दुनिया में बुरे लोगों की तादाद बहुत ही ज्यादा है और सभी बुरे लोगों में विवेक नहीं होता है। अगर किसी ने उन्हें अपमानित किया, तो वे बदला लेने के लिए कोई भी रास्ता अपनाएँगे। क्या यही बात नहीं है? (हाँ।) मुसीबत मोल लेने वाले लोग चाहे किसी भी प्रकार की मुसीबत में क्यों ना फँस जाएँ, इससे उनके कर्तव्य निर्वहन में परेशानी और बाधाएँ पैदा हो जाती हैं और यह कलीसिया के कार्य को भी अलग-अलग स्तर तक प्रभावित कर सकता है। अगर कोई लगातार मुसीबत मोल लेता है, तो क्या तुम लोगों को लगता है कि उसके साथ सत्य की संगति करने से यह समस्या हल हो सकती है? (नहीं।) इस प्रकार के लोगों में अक्सर सही सूझ-बूझ की कमी होती है। मुसीबत में फँसने पर भी वे इसे मुसीबत की तरह नहीं देखते हैं; यहाँ तक कि उन्हें यह भी लग सकता है कि उनमें न्याय की समझ है। ऐसे मामलों में, उनके साथ सत्य की संगति करना बेकार है क्योंकि वे विकृत समझ वाले लोग हैं, वे बेतुके व्यक्ति हैं। बेतुके व्यक्ति आसानी से सत्य स्वीकार नहीं करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोग कहें, “उन्हें कठिनाई हो रही है; हम उन्हें नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं? हम उन पर दया दिखाने से खुद को कैसे रोक सकते हैं? हमें उनके साथ प्रेम से पेश आना चाहिए।” उनके साथ प्रेम से पेश आना ठीक है, लेकिन क्या वे इसे स्वीकार कर पाते हैं? अगर वे सत्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं और अपने विचारों में जकड़े रहते हैं, तो क्या तुम्हारा लगातार उनके साथ सत्य की संगति करना उचित है? (नहीं।) यह उचित क्यों नहीं है? (इस प्रकार के लोग परमेश्वर में ईमानदारी से विश्वास नहीं रखते हैं। उनका सार छद्म-विश्वासियों का सार है। अगर हम उनके साथ सत्य की संगति कर भी लें, तो भी इससे समस्या का समाधान नहीं होगा और तब भी वे कलीसिया में बहुत सारी मुसीबत ला सकते हैं।) तो क्या इस प्रकार के लोगों को बाहर निकाल देना चाहिए? (हाँ, ऐसा ही करना चाहिए।)
एक और प्रकार के लोग हैं जिनमें मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति होती है। वे कलीसिया में भाई-बहनों को कुछ खास चीजें करने के लिए हमेशा उकसाते रहते हैं। मिसाल के तौर पर, वे कहते हैं : “सरकार ने जो कार्रवाई की और जो नीति बनाई वह अनुचित है। ईसाई होने के नाते, हमें धार्मिकता का अभ्यास करना चाहिए, हमें अपनी आवाज उठानी चाहिए और हम बुजदिलों की तरह चुप नहीं बैठ सकते। हमें तख्तियाँ और झंडे लेकर सड़कों पर जलूस निकालना चाहिए, हमें भाई-बहनों, हमारी कलीसिया और पूरी मानवजाति की भलाई के लिए लड़ना चाहिए!” और इसका क्या नतीजा निकलता है? उनके जुलूस निकालने से पहले ही सरकार को इसका पता चल जाता है और अदालत समन भेज देती है। मुझे बताओ, ऐसे लोगों का होना कलीसिया के लिए खुशकिस्मती की बात है या बदकिस्मती की? (बदकिस्मती की।) कुछ लोग कहते हैं : “पता चला है कि हमारी कलीसिया में एक बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति है—यह व्यक्ति अगुआई करने के लिए उपयुक्त है! जरा हमारी कलीसिया के लोगों को देखो; वे सभी दब्बू और हुक्म बजाने वाले लोग हैं, समाज में उनका कोई दबदबा नहीं है। वे डरपोक हैं और कोई भी बड़ा मुद्दा उठाने की हिम्मत नहीं करते हैं और वे मुसीबत मोल लेने से बहुत डरते हैं। यह व्यक्ति अलग है—वह बहादुर, अंतर्दृष्टि वाला और निर्णायक है; उसका समाज में दबदबा भी है, वह सक्षम है और जब वह अन्याय होते देखता है, तो उठ खड़े होने और आगे बढ़ने की हिम्मत करता है। यहाँ तक कि जब उसे किसी कानूनी मामले का सामना करना पड़ता है, तो वह घबराता नहीं है और ना ही बेचैन होता है। उसकी मानसिक क्षमता उसे अधिकारी बनने के लिए स्वाभाविक रूप से उपयुक्त बनाती है। अगर यह व्यक्ति राजनीति में होता, तो वह या तो प्रतिनिधि होता या कम-से-कम किसी प्रांत का गवर्नर तो जरूर होता। हम उतने अच्छे नहीं हैं। इसलिए, कलीसिया को उसे अगुआ बनने के लिए चुनना चाहिए। अगर उसने हमारी अगुआई की, तो हम यकीनन उद्धार प्राप्त करेंगे!” कुछ बेवकूफ लोग समाज में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों को विशेष रूप से ऊँचा सम्मान देते हैं और उन्हें आदर्श मानते हैं, यहाँ तक कि उन्हें कलीसियाई अगुआओं के रूप में चुनना चाहते हैं। क्या तुम लोगों को लगता है कि यह उचित है? (नहीं।) यह उचित क्यों नहीं है? क्या कलीसिया को ऐसे “सक्षम लोगों” की जरूरत नहीं है? (कलीसिया को ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है। कलीसियाई अगुआओं को परमेश्वर के चुने हुए लोगों को सभाओं में एक साथ परमेश्वर के वचन खाने-पीने, सत्य का अनुसरण करने और सुसमाचार फैलाने के लिए अपना कर्तव्य करने में उनकी अगुआई करनी चाहिए। भले ही ऊपरी तौर पर ऐसा लगे कि इन लोगों में तथाकथित बहादुरी, अंतर्दृष्टि और निर्णायकता है, लेकिन वे इस तरह का कार्य करने में असमर्थ हैं और कलीसिया में लगातार मुसीबत लाते रहेंगे। इसलिए, वे कलीसिया अगुआ बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं।) मैं तुम्हें बताता हूँ, इस तरह के व्यक्ति का कलीसिया में रहना एक गलती है और ऐसे लोगों को अगुआ के रूप में चुनना और भी ज्यादा विनाशकारी होगा। वे कलीसिया को कहाँ लेकर जाएँगे? वे कलीसिया को एक धार्मिक समूह में बदल देंगे! वह इसलिए क्योंकि जब उन्हें समाज में अन्याय होते दिखाई देंगे, तो वे मुकदमे दायर करेंगे; जब वे बुरे लोगों को गरीबों को डराते-धमकाते देखेंगे, तो वे उनके लिए लड़ेंगे; जब वे भ्रष्ट अधिकारियों को लोगों को बुरी तरह से नुकसान पहुँचाते देखेंगे, तो वे स्वर्ग की तरफ से न्याय की हिमायत करना चाहेंगे। नतीजतन, धीरे-धीरे तुम सब भी न्याय के लिए लड़ने वाले शूरवीर बन जाओगे। इस तरह से क्या तुम्हें अब भी उद्धार प्राप्त हो सकता है? ऊपरी तौर पर, मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग काफी योग्य लग सकते हैं, लेकिन अंत में क्या होता है? उन सभी को कलीसिया के कार्य में विघ्न-बाधा डालने के कारण हटा दिया जाता है, क्योंकि वे जिस मार्ग पर चलते हैं वह सही मार्ग नहीं है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे किस तरह की मुसीबत मोल लेते हैं, वे सही मार्ग पर नहीं चल रहे हैं और ना ही वे परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल रहे हैं। वे जो कुछ भी करते हैं उसका कलीसिया से, परमेश्वर के कार्य से या परमेश्वर के इरादों से कोई लेना-देना नहीं होता है; वे जो कुछ भी करते हैं वह परमेश्वर के इरादों से दूर होता है और सही रास्ते से भटक जाता है। मुसीबत मोल लेने की उनकी प्रकृति यह है कि वे दानवों से निपट रहे हैं और उनके साथ उलझ गए हैं; दानव उन्हें पंगु बनाए जा रहे हैं। इसलिए, परमेश्वर के घर को अपने और ऐसे लोगों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींचनी चाहिए। अगर वे बार-बार मुसीबत मोल लेते हैं, चाहे कोई भी उन्हें सलाह देने का प्रयास करे, वे सुनने से इनकार करते हैं और अपनी गलतियों से सबक सीखे बिना मुसीबत मोल लेते हैं, यहाँ तक कि बेतहाशा गलत काम भी करते हैं, तो उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए। तुम कह सकते हो : “देखो तुमने कितनी सारी मुसीबत मोल ली है, यह कलीसिया के कार्य में कितनी बड़ी बाधा बनी हुई है और कितने सारे लोगों का कर्तव्य निर्वहन प्रभावित हुआ है। तुम्हें इस बात का एहसास कैसे नहीं होता है? तुम्हारा मन बहुत ही विशाल है—यह इतना विशाल है कि पूरी की पूरी दुनिया इसमें समा सकती है। तुम जैसे व्यक्ति को दुनिया में आगे बढ़ना चाहिए; तुम्हें अपना विकास करना चाहिए और देश पर शासन करना चाहिए, दुनिया में शांति लानी चाहिए। तुम उच्च-स्तरीय अधिकारियों से मेलजोल रखने के लिए उपयुक्त हो; सिर्फ तभी तुम रोजमर्रा के जीवन से ऊपर उठ सकते हो और अपने पंख फैलाकर ऊँची उड़ान भर सकते हो। सारा दिन परमेश्वर में विश्वास रखने वाले लोगों के साथ रहना—क्या यह तुम्हारी विशाल महत्वाकांक्षाओं को पूरा होने से रोक नहीं देगा और पंख फैलाकर उड़ने की तुम्हारी क्षमता को सीमित नहीं कर देगा? हमें देखो—हममें से किसी की भी विशाल आकांक्षाएँ नहीं हैं। हम पूरी तरह से परमेश्वर में विश्वास रखने, कुछ सत्य समझने के लिए परमेश्वर के और ज्यादा वचन पढ़ने और कम बुरा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और फिर शायद हम परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त कर सकें—बस इतना ही। हम सभी सांसारिक लोगों द्वारा बदनाम और अपमानित किए गए ऐसे लोग हैं जिन्हें दुनिया ने ठुकरा दिया है, इसलिए तुम्हें हम जैसे लोगों से मेलजोल नहीं रखना चाहिए। अगर तुम दुनिया में वापस चले जाओ और वहाँ प्रयास करो, तो तुम ज्यादा खुश रहोगे; हो सकता है कि तुम्हें बड़ी सफलता मिल जाए और तुम अपनी महत्वाकांक्षाएँ पूरी कर सको।” क्या उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए इस तरह से राजी करना उचित है? क्या यह इस मुद्दे को हल करने का एक अच्छा तरीका है? (हाँ।) कलीसिया को ऐसे छद्म-विश्वासियों से इसी तरह से निपटना चाहिए; इस मामले को इस तरीके से हल करना पूरी तरह से सत्य सिद्धांतों के अनुरूप है।
कौन से दूसरे प्रकार के लोग मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति रखते हैं? एक प्रकार का व्यक्ति है जो विपरीत लिंग के लोगों में विशेष रूप से लोकप्रिय होता है और हमेशा संदिग्ध व्यक्तियों से इश्कबाजी करता रहता है। वह कोई उचित रूमानी रिश्ता नहीं बनाता है; बल्कि वह विपरीत लिंग के बहुत-से लोगों के साथ बहुत करीबी और अनुचित रिश्ते बनाए रखता है। क्योंकि वह इन रिश्तों को ठीक से नहीं संभाल पाता है, इसलिए हो सकता है कि वह जिन लोगों से इश्कबाजी करता है वे एक दूसरे से जलने लग जाएँ या यहाँ तक कि एक-दूसरे से बदला भी लें। क्या यह उसके लिए मुसीबत की बात है? (हाँ।) यह भी एक बड़ी मुसीबत है। हो सकता है कि कुछ लोग इन मामलों की परवाह ना करें, लेकिन ऐसी चीजें अक्सर उनके निजी जीवन और उनकी आस्था में मुसीबत लाती हैं और ये उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकती हैं। ये मुसीबतें लगातार उनका पीछा करती हैं और जो लोग अक्सर उनसे बातचीत करते हैं उन्हें भी इन चीजों में फँसना पड़ता है। वे विपरीत लिंग के इन व्यक्तियों के साथ चाहे सही मायने में रूमानी रिश्ते में हों या सिर्फ एक-दूसरे से इश्कबजी कर रहे हों और एक-दूसरे का उपयोग कर रहे हों, हम ऐसे मामलों को लेकर चिंतित नहीं हैं। हमें किस बात की चिंता है? हमें इस बात की चिंता है कि वे जो मुसीबतें लेकर आते हैं, कहीं उनका भाई-बहनों या कलीसिया पर कोई नुकसानदेह प्रभाव तो नहीं पड़ेगा। अगर कोई प्रभाव पड़ता है, तो कलीसिया को यह मुद्दा हल करने और उससे निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए, उन्हें इन मुसीबतों से उचित रूप से निपटने की सलाह देनी चाहिए। जहाँ तक यह प्रश्न है कि वे इससे कैसे निपटते हैं, हम उसमें दखल नहीं देंगे। उन्हें चाहे कैसे भी सलाह क्यों ना दी जाए, अगर फिर भी वे सुनने से इनकार करते हैं और इन मुसीबतों से नहीं निपटते हैं या इन्हें हल नहीं करते हैं, तो उन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए और एक चेतावनी देनी चाहिए : “तुम सबसे पहले अपनी व्यक्तिगत मुसीबतें निपटाओ। जब वे निपट जाएँ, तो तुम अपना कर्तव्य करना फिर से शुरू कर सकते हो। अगर तुम उनसे ठीक से नहीं निपटते हो, तो तुम्हें अलग-थलग ही रखा जाएगा।” वैसे तो वे विश्वासी हैं और अपना कर्तव्य भी कर सकते हैं—जो शायद कोई महत्वपूर्ण कर्तव्य भी हो—लेकिन क्योंकि उनके व्यक्तिगत जीवन में गंभीर समस्याएँ हैं और वे जो मुसीबत मोल लेते हैं, वह कलीसिया के कार्य को प्रभावित कर सकती है, इसलिए कलीसिया अगुआ इसे अनदेखा नहीं कर सकते, क्योंकि ये मुसीबतें जोखिम पैदा कर सकती हैं। मिसाल के तौर पर, वे जिन लोगों से रिश्ते बनाते हैं, हो सकता है कि उन्हें इन लोगों से कलीसिया के कुछ हालात या भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी का पता चल जाए। अगर उन्होंने यह जानकारी बुरे इरादों वाले व्यक्तियों या बड़े लाल अजगर को दे दी, तो यह कलीसिया और भाई-बहनों दोनों के लिए नुकसानदेह होगा। इसलिए, कलीसिया के लिए ये सभी मुसीबतें या संभावित जोखिम वही लोग लेकर आते हैं, लिहाजा कलीसिया को चाहिए कि वह उनसे पहले अपनी व्यक्तिगत मुसीबतें हल करने के लिए कहे। अगर वे इन मुसीबतों को पूरी तरह से निपटा लेते हैं, तो परमेश्वर का घर उनके हालात के आधार पर उन्हें फिर से स्वीकारने का फैसला ले सकता है। लेकिन अगर वे मुसीबतें हल करने का कोई प्रयास नहीं करते हैं और फिर भी अपना कर्तव्य करना चाहते हैं, तो क्या किया जाना चाहिए? (उन्हें अपना कर्तव्य करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।) ऐसे में उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करना चाहिए या बाहर निकाल देना चाहिए। संक्षेप में, चाहे वे कलीसिया अगुआ हों या भाई-बहन, एक बार जब उन्हें यह पता चल जाता है कि कलीसिया में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोग हैं, तो उन्हें सिद्धांतों के अनुसार इस मामले पर ध्यान देना चाहिए और इसे तुरंत निपटाना चाहिए। उन्हें इसे निपटाने और हल करने के लिए तब तक प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए जब तक कि ये लोग भाई-बहनों के लिए खतरा नहीं बन जाते या कलीसिया के कार्य में मुसीबत पैदा नहीं करते।
कुछ लोग मुसीबत की शुरुआत करने में देर नहीं करते हैं और मारपीट और गाली-गलौज करने में लग जाते हैं। उन्हें हमेशा लगता है कि वे जबर्दस्त मुक्का मार सकते हैं, दुनिया में हर किसी को हमेशा हराना चाहते हैं या अगर उन्हें मार्शल आर्ट के कुछ आकर्षक पैंतरे आते हैं, तो वे हमेशा दूसरों पर हिंसा और शक्ति का उपयोग करना चाहते हैं। क्या इस तरह के लोगों में भी मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति नहीं होती है? (हाँ।) फिर ऐसे लोग भी हैं जो जहाँ भी जाते हैं अपनी मर्यादा में नहीं रहते हैं। वे नियम नहीं मानते हैं या सार्वजनिक व्यवस्था का पालन नहीं करते हैं और हमेशा स्वच्छंद बने रहना चाहते हैं। गाड़ी चलाते समय वे जानबूझकर लाल बत्ती का उल्लंघन करते हैं या जहाँ अनुमति नहीं है वहाँ जानबूझकर बाएँ मुड़ते हैं; फिर जब पुलिस उन्हें रोकती है और जुर्माना लगाती है, तो वे इसे स्वीकारने से इनकार कर देते हैं और उस पुलिस अफसर की शिकायत करना चाहते हैं। देखा तुमने, वे किसी की भी शिकायत करने की हिम्मत करते हैं। भले ही पुलिस कानून के अनुसार कार्य करती हो, फिर भी वे उसकी शिकायत करना चाहते हैं—वे कानून का अनादर करते हैं। क्या ये कमअक्ल लोग भी मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति नहीं रखते हैं? (हाँ।) मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाला यह व्यक्ति सोचता है कि उसके पास भरोसा करने के लिए परमेश्वर है क्योंकि वह उसमें विश्वास रखता है और उधर कलीसिया के पास बड़ी तादाद में लोग हैं और उसका बहुत दबदबा है; इसलिए वे किसी भी चीज से नहीं डरते हैं। अपनी क्षमताओं का दिखावा करने और यह दिखाने के लिए कि वे कितने डरावने हैं, वे हर जगह बेतहाशा बुरे कर्म करते फिरते हैं। कानूनी झमेलों में पड़ने के बाद भी वे अपने तरीके बदलना नहीं जानते हैं। अंत में वे क्या कहते हैं? “यह दुनिया सच में बुरी है। मुझे बस न्याय के लिए खड़े होने के कारण गिरफ्तार किया गया। यह दुनिया सच में अन्यायी है!” वे अब भी अपनी गलतियाँ मानने से इनकार करते हैं। वे खुद ही अपने लिए मुसीबत की शुरुआत करते हैं और फिर भी यही शिकायत करते हैं कि उनके साथ अन्याय हुआ है। क्या यह बिल्कुल बेतुका नहीं है? (हाँ, है।) दुनिया चाहे कितनी भी बुरी और अँधेरी क्यों न हो, इन लोगों का मुसीबत की शुरुआत करना बेवकूफी है। परमेश्वर ने कभी किसी से मुसीबत की शुरुआत करने के लिए नहीं कहा है और ना ही उसने किसी को न्याय के लिए लड़ने और स्वर्ग की तरफ से न्याय लागू करने के लिए परमेश्वर में विश्वास रखने के झंडे का उपयोग करने के लिए कहा है। कुछ लोग कहते हैं, “इस दुनिया के कानून सत्य नहीं हैं, इसलिए उनका पालन करने की कोई जरूरत नहीं है।” भले ही कानून सत्य ना हो, लेकिन परमेश्वर ने कभी तुमसे यह तो नहीं कहा है कि तुम अपनी इच्छा से कानून तोड़ सकते हो और ना ही उसने तुमसे यह कहा है कि तुम हत्या या आगजनी कर सकते हो। परमेश्वर तुमसे कानून का पालन करने, समाज में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने, नैतिक मानकों का पालन करने और जहाँ भी तुम जाते हो वहाँ के नियम मानने, उत्तेजक नहीं होने और मुसीबत मोल नहीं लेने के लिए कहता है। अगर तुमने कानून तोड़ा, तो तुम्हें खुद ही इसका परिणाम भुगतना पड़ेगा—परमेश्वर के घर से यह उम्मीद मत करना कि वह तुम्हारी तरफ से जिम्मेदारी लेगा, क्योंकि यह व्यक्तिगत व्यवहार है और तुम्हें सिर्फ एक व्यक्ति के रूप में दर्शाता है; परमेश्वर के घर ने कभी तुम्हें कुछ भी गैर-कानूनी करने का निर्देश नहीं दिया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम किस देश में मामले निपटा रहे हो, परमेश्वर का घर तुम्हें कानून जानने और वकील की सलाह लेने के लिए कहता है। वकील जो भी कहे वह उचित है, तुम्हें वही करना चाहिए। अगर वकील ने तुम्हें एक विशेष तरीके से कार्य करने की सलाह नहीं दी है और तुम बिना सोचे-विचारे कार्य करते हो, मामले बिगाड़ देते हो और कानून तोड़ते हो, तो तुम्हें खुद ही इसका नतीजा भुगतना पड़ेगा—परमेश्वर के घर में मुसीबत मत लाओ। भले ही वकील का सुझाया तरीका सबसे अच्छा विकल्प ना हो, फिर भी तुम्हें वकील की सलाह ही माननी चाहिए। जब तक यह कानूनी है और परमेश्वर के घर को कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुँचाता है, तब तक इसे किया जा सकता है। परमेश्वर के घर ने हमेशा लोगों से वकीलों की सलाह लेने और कानून के अनुसार मामले निपटाने के लिए कहा है। लेकिन कुछ लोग सोचते हैं, “परमेश्वर का घर दुनिया का हिस्सा नहीं है, इसलिए हमें दुनिया के चलन का पालन नहीं करना चाहिए! कानून सत्य का प्रतिनिधित्व नहीं करता है—सिर्फ परमेश्वर ही सत्य है और परमेश्वर सर्वोच्च है। हम सिर्फ सत्य और परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं!” यह बात सही है, लेकिन तुम अब भी इसी दुनिया में रह रहे हो और तुम्हें बहुत-से वास्तविक मुद्दों से निपटना पड़ता है। इसलिए, तुम कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते और ना ही तुम सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकते हो। परमेश्वर की सर्वोच्चता परमेश्वर की पहचान और उसके दर्जे के बारे में है; यह तुम्हारे लिए गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने या समाज में निरंकुश होकर कार्य करने, जो चाहो वह करने और हर जगह मुसीबत मोल लेने का कारण नहीं है। परमेश्वर ने कुछ भी करने में कानून तोड़ने के लिए ना कभी किसी को बढ़ावा दिया है और ना ही किसी से इसकी अपेक्षा की है, बल्कि वह तुमसे कानून का पालन करने और सामाजिक नियमों को मानने के लिए कहता है, वह कहता है कि अगर तुम कानून तोड़ते हो और तुम्हें सजा दी जाती है, तो तुम्हें सजा स्वीकार लेनी चाहिए और कोई समस्या पैदा नहीं करनी चाहिए या मुसीबत मोल नहीं लेनी चाहिए। अगर तुम हमेशा मुसीबत मोल लेते रहते हो, हमेशा यही सोचते हो कि चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए परमेश्वर तुम्हारा समर्थन कर रहा है और इसलिए तुम किसी चीज से नहीं डरते, तो मैं तुम्हें बता देता हूँ, तुम गलत समझ रहे हो! परमेश्वर सभी चीजों का सामना करने में तुम्हारी निडरता का समर्थन नहीं करता है और परमेश्वर का घर तुम्हारे बदमाशों वाले तर्क की कीमत नहीं चुकाएगा। ऐसा कभी मत सोचना कि सिर्फ इसलिए कि परमेश्वर के घर में बहुत-से लोग हैं और उसका बहुत दबदबा है, तो तुम जो चाहो कर सकते हो। अगर तुम इस तरीके से सोचते हो, तो तुम गलत हो। यह शैतान का तर्क है। परमेश्वर के घर ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा है और ना ही परमेश्वर ने। परमेश्वर का घर किसी को भी इस तरह से कार्य करने के लिए बढ़ावा नहीं देता है। यह सच है कि परमेश्वर के घर में बहुत-से लोग हैं, लेकिन लोगों की तादाद—चाहे बहुत हो या कम—किसी का समर्थन करने, किसी को बहादुर बनाने या किसी को मुसीबत से बचाने और बिगड़े मामले शांत करने के लिए नहीं है। परमेश्वर लोगों को इसलिए चुनता है ताकि वे उसका अनुसरण करें और उसकी इच्छा का पालन करें, ताकि वे सृजित प्राणियों के रूप में मानक-स्तर के हो सकें और सृजित प्राणियों का कर्तव्य पूरा कर सकें। यह इसलिए नहीं है कि तुम दुनिया के खिलाफ जा सको, यह इसलिए नहीं है कि तुम दुनिया में बड़बोले विचार बड़बड़ा सको और निश्चित रूप से दुनिया को सबक सिखाना तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है। परमेश्वर में विश्वास रखना धारा के खिलाफ जाने के बारे में नहीं है; इसका धारा के खिलाफ जाने या दुनिया से नफरत करने से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, लोगों के लिए परमेश्वर के इरादों को गलत मत समझो और परमेश्वर में विश्वास रखने के महत्व का गलत मतलब मत लगाओ या उसे गलत मत समझो। परमेश्वर किस उद्देश्य से लोगों को चुनता है? (इस उद्देश्य से कि लोग परमेश्वर का अनुसरण करें, परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलें और सृजित प्राणियों का कर्तव्य करें।) परमेश्वर लोगों को इसलिए चुनता है ताकि वह उन्हें प्राप्त कर सके, सच्चे सृजित प्राणियों को प्राप्त कर सके और सही मायने में परमेश्वर की आराधना करने वाले मनुष्यों को प्राप्त कर सके; यह इसलिए है ताकि एक ऐसी नई मानवजाति निकलकर आए जो परमेश्वर की आराधना कर सके। परमेश्वर लोगों को इस उद्देश्य से नहीं चुनता है कि वे इस दुनिया या मानवजाति के खिलाफ जाएँ। इसलिए मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों को जितना हो सके कलीसिया से और उन जगहों से दूर रखना चाहिए जहाँ लोग अपना कर्तव्य करते हैं, ताकि दूसरों के कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित होने से बचाया जा सके।
जहाँ तक मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों की बात है, वे चाहे किसी भी तरह की मुसीबत क्यों ना मोल लें, अगर इससे कलीसिया में मुसीबत आती है और भाई-बहनों का कर्तव्य निर्वहन प्रभावित होता है, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कदम उठाना चाहिए और यह मामला हल करना चाहिए। इसे बेकाबू बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें तुरंत परिस्थिति को समझना चाहिए और उसके बारे में जानकारी हासिल करनी चाहिए, समस्या की जड़ को स्पष्ट करना चाहिए और फिर एक उचित समाधान सोचना चाहिए और समस्या से निपटना चाहिए। इससे क्यों निपटना चाहिए? एक बात तो यह है कि ये मुसीबतें कलीसिया के कार्य, कलीसियाई जीवन या भाई-बहनों के कर्तव्य निर्वहन को प्रभावित कर सकती हैं। दूसरी बात यह है कि चाहे दूसरे लोग इन मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों को प्रतिभाशाली लोगों के रूप में देखें या आवारा और बदमाश लोगों के रूप में, अगर वे मुसीबत लाते हैं, तो उनसे समय रहते निपट लेना चाहिए। तो उनसे कैसे निपटना चाहिए? यह मुसीबत से निपटने के बारे में नहीं है, बल्कि यह इसे लाने के लिए जिम्मेदार लोगों से निपटने के बारे में है। उन्हें कलीसिया से दूर करके परेशानी की जड़ हल हो जाती है और इस तरह से मुद्दे से निपटा जाता है। तुम्हें कभी भी सिर्फ इसलिए नरमी नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले कुछ लोग तुम्हें सक्षम या गुणी नजर आते हैं। अगर तुम उनके साथ नरमी बरत पाते हो, तो तुम वाकई बहुत ही भ्रमित व्यक्ति हो और कलीसिया अगुआ बनने के लिए अयोग्य हो और भाई-बहनों को तुम्हें तुम्हारे पद से हटा देना चाहिए। अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों का और भाई-बहनों का बचाव नहीं करते हो, बल्कि बुरे लोगों और मुसीबत पैदा करने वालों की रक्षा करते हो, यहाँ तक कि उन्हें बेहद पूजते हो, उन्हें सम्मानित अतिथि और गुणी व्यक्ति मानते हो, सोचते हो कि वे ऐसे प्रतिभाशाली लोग हैं जो कलीसिया में मुश्किल से मिलते है, तुम बड़े कार्यों के लिए उनका उपयोग करते हो और यहाँ तक कि उनके लिए उनकी परेशानियाँ भी कम करते हो—तो तुम कलीसिया अगुआ की भूमिका के लिए पूरी तरह से अयोग्य हो। तुम एक भ्रमित व्यक्ति और नकली अगुआ हो और तुम्हें बर्खास्त कर देना चाहिए और हटा देना चाहिए। अगर कोई कलीसिया अगुआ सलाह मानने से इनकार कर देता है और किसी ऐसे बुरे व्यक्ति की रक्षा करने पर अड़ जाता है जिसमें मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति है या बड़े कार्यों के लिए उसका उपयोग करता है, तो भाई-बहनों को ना सिर्फ इस अगुआ को हटा देना चाहिए, बल्कि उसे और मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले इस व्यक्ति को एक साथ कलीसिया बाहर निकाल देना चाहिए। क्या तुम मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को पूजते नहीं हो? वह भी महसूस करता है कि तुम उसकी रक्षा करते हो और तुम लोगों की इतनी अच्छी दोस्ती भी है—तो फिर माफ करना, तुम दोनों को ही चले जाना होगा। परमेश्वर के घर को तुम दोनों में से किसी की भी जरूरत नहीं है! अगर किसी कलीसिया में मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले व्यक्ति हैं और ऊँचे स्तर के अगुआ इस बात से अनजान हैं, जबकि कलीसिया अगुआ भ्रमित है और उसमें सूझ-बूझ की कमी है, तो सत्य समझने वाले भाई-बहनों को इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम उठाना चाहिए। एक बात तो यह है कि उन्हें तुरंत इस मामले की रिपोर्ट ऊँचे स्तर के अगुआओं को कर देनी चाहिए। इसके अलावा, उन्हें संगति करने और नकली अगुआ का भेद पहचानने के लिए दूसरे भाई-बहनों के साथ एकजुट होना चाहिए। एक बार जब यह पक्का हो जाता है कि वे नकली अगुआ हैं, तो उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए या हटा देना चाहिए और एक नया अगुआ चुनना चाहिए—कोई ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर के घर के हितों, कलीसिया के कार्य और कलीसियाई जीवन का बचाव कर सके। क्या इस तरीके से अभ्यास करना उचित है? (हाँ।) इस कलीसिया अगुआ और मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले उस व्यक्ति को एक साथ दूर कर दो। क्या ये वही दो लोग नहीं हैं जो अपने एक जैसे बुरे गुणों के कारण मिलजुलकर रहते हैं, एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं और एक-दूसरे की सराहना करते हैं? तो फिर उनकी इच्छा पूरी कर दो और उन्हें एक साथ दुनिया में वापस जाने दो—परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को नहीं चाहता है। अगर वे कलीसिया में रहे, तो वे सिर्फ मुसीबत मोल लेंगे और मुसीबत पैदा करेंगे जिससे कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान पहुँचेगा। उन्हें दूर कर देना चाहिए। वे चाहे जहाँ भी जाना चाहें और चाहे कितनी भी बड़ी मुसीबत मोल लेना चाहें, यह उनका अपना मामला है। जो भी हो, इसका कलीसिया से कोई लेना-देना नहीं है और कलीसिया इस मामले में नहीं फँसेगी। क्या इससे मुद्दा हल नहीं हो जाएगा? (हाँ।) यह समाधान काफी अच्छा है। इसके साथ ही बारहवीं अभिव्यक्ति पर हमारी संगति समाप्त होती है जो मुसीबत मोल लेने की प्रवृत्ति वाले लोगों के बारे में थी।
ड. जटिल पृष्ठभूमि होना
चलो, हम अगली अभिव्यक्ति पर एक नजर डालें : जटिल पृष्ठभूमि होना। तुम लोग क्या सोचते हो कि जटिल पृष्ठभूमि किस तरह के लोगों की होती है? (कुछ लोग आपराधिक अंडरवर्ल्ड और कानूनी मंडलियों दोनों में शामिल होते हैं और उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि अपेक्षाकृत जटिल होती हैं—क्या वे इस श्रेणी में आते हैं?) जब हम जटिल पृष्ठभूमि की बात करते हैं तब निश्चित तौर पर सांसारिक रूप से बुद्धिमान लोगों की तरफ इशारा कर रहे होते हैं। सांसारिक रूप से बुद्धिमान लोगों का विशिष्ट तरीका क्या है? यह कि वे पैर पर पैर रखकर बैठ जाते हैं और लगातार बातें करते रहते हैं; वे दुनिया की हर चीज के बारे में बेसिर-पैर की बातें करते हैं, वे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर काफी देर बकबक कर सकते हैं, लेकिन वे जो भी कहते हैं उसमें एक शब्द भी सच्चा नहीं होता है—यह सब शेखी बघारना होता है, जो मनगढ़ंत या कल्पित होता है। जरूरी नहीं है कि शेखीबाज लोग वही हों, जिनकी सामाजिक पृष्ठभूमि जटिल होती है। शेखीबाज सिर्फ लफंगे भी हो सकते हैं और साधारण लोग भी—जहाँ वे भी जाते हैं, लोगों को गुमराह करने और दूसरों को अपने बारे में ऊँचा सोचने को मजबूर करने के लिए डींग मारते हैं, बड़ी-बड़ी और अवास्तविक बातें करते हैं और इससे उनकी इज्जत खराब होने में ज्यादा समय नहीं लगता है। किस तरह के लोगों की जटिल पृष्ठभूमि होती है? मिसाल के तौर पर, समाज में कुछ लोग एक राजनीतिक दल से जुड़ते हैं, लेकिन कई सालों तक कोशिश करने के बाद भी उन्हें कोई पद ुनहीं मिलता। तब वे दूसरे दल से जुड़ जाते हैं और आखिरकार एक छोटे अगुआ या छोटे अधिकारी का पद पाने में सफल हो जाते हैं। उनके सामाजिक संबंध खास तौर पर उलझे हुए होते हैं। कोई भी निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकता कि जिन लोगों से उनका मेल-जोल है वे उनके दोस्त हैं या दुश्मन—यहाँ तक कि उनके परिवार को भी नहीं पता होता, सिर्फ वे खुद ही जानते हैं। क्या ऐसे लोगों की पृष्ठभूमि जटिल नहीं है? (हाँ।) ऐसे लोगों की राजनीतिक पृष्ठभूमि जटिल होती है। आज वे इस दल का समर्थन करते हैं, कल वे किसी दूसरे का समर्थन करते हैं; आज वे चुनाव के लिए एक व्यक्ति का समर्थन करते हैं और कल वे किसी दूसरे का समर्थन करते हैं। संक्षेप में, कोई नहीं जानता कि वे सच में क्या सोचते हैं। वे आम लोगों को यह ठीक-ठीक नहीं बताते हैं कि वे किसका समर्थन करते हैं, वास्तव में उनके राजनीतिक रुख या राजनीतिक लक्ष्य क्या हैं; वे इन बातों को खासतौर पर गुप्त रखते हैं और आम लोग—यहाँ तक कि उनके अपने परिवार के लोग भी—उनके बारे में ये बातें नहीं जानते हैं। लेकिन वे राजनीति के बारे में विशेष रूप से जुनूनी होते हैं, उनकी कुछ जान-पहचान होती है और वे राजनीतिक मंच पर कुछ लोगों को जानते हैं; बात बस इतनी है कि फिलहाल उनकी महत्वाकांक्षाएँ पूरी नहीं हुई हैं। इस तरह के व्यक्ति कलीसिया में प्रवेश करने के बाद देखते हैं कि भाई-बहन बस आम लोग हैं, जिन्हें राजनीति की समझ नहीं है और न ही वे इसमें संलग्न होते हैं; अपने दिल में वे वास्तव में परमेश्वर में यकीन करने वालों को तुच्छ समझते हैं। फिर भी वे हमेशा धार्मिक दुनिया और समाज में कलीसिया की प्रसिद्धि का फायदा उठाना चाहते हैं या कलीसिया के प्रभाव का फायदा उठाकर अपनी मनचाही चीजें करना चाहते हैं, अपनी ढेर सारी इच्छाओं को संतुष्ट करना चाहते हैं या अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना चाहते हैं—यानी वे कलीसिया के भीतर छिपना चाहते हैं और सही मौके का इंतजार करना चाहते हैं ताकि वे कलीसियाई समुदाय या कलीसिया के भीतर कुछ लोगों, घटनाओं और चीजों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कर सकें। क्या इस तरह के व्यक्ति को जटिल पृष्ठभूमि वाला माना जा सकता है? (हाँ।) राजनीति में शामिल लोगों के विचार, मामलों से निपटने के उनके सिद्धांत, अलग-अलग दांव-पेच और बोलने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रणनीतियां और तरीके ऐसी चीजें हैं, जिनकी असलियत आम लोगों को समझ में नहीं आती। खास तौर पर युवा लोग या बिना सामाजिक अनुभव वाले लोग उनकी असलियत बिल्कुल भी नहीं समझ पाते। राजनीतिक रूप से जटिल पृष्ठभूमि वाले इन लोगों के लिए बिना राजनीतिक समझ वाले लोग हाथों का खिलौना हैं और वे ऐसे लोगों को नीची नजरों से देखते हैं। एक अस्पष्ट उदाहरण देता हूँ, जानवरों के साम्राज्य में सबसे चालाक जीवसांप, लोमड़ी और बाघ हैं। उनके परिप्रेक्ष्य से भेड़, खरगोश, हिरण और कुत्ते जैसे जानवर मूर्ख हैं। राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले लोग ज्यादातर भाई-बहनों को उसी तरह देखते हैं जिस तरह चालाक जानवर जैसे लोमड़ी और सांप, भोले-भाले जानवरों जैसे भेड़, हिरण और कुत्तों को देखते हैं। वे भाई-बहनों को साफ तौर पर समझते हैं, लेकिन भाई-बहन उनकी असलियत नहीं समझ सकते। तो हम राजनीतिक रूप से जटिल पृष्ठभूमि वाले लोगों का भेद कैसे पहचान सकते हैं? जो लोग राजनीति में शामिल हैं, उनके दिल राजनीति और सत्ता में लगे होते हैं। अगर उन्हें सत्ता और राजनीति में शामिल होना पसंद है, वे देर-सवेर राजनीति में भाग लेंगे; वे हमेशा के लिए कलीसिया में छिपे नहीं रह सकते। जब वे खुद को उजागर करेंगे, तब तुम समझोगे : “तो इसका मतलब यह है कि वे राजनीतिक उद्देश्यों के लिए परमेश्वर में विश्वास करते हैं! उनकी एक राजनीतिक पृष्ठभूमि है और वे ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने का उनका एक और ही एजेंडा है!” जब वे लोग पहली बार कलीसिया में प्रवेश करते हैं तो खुद को बहुत अच्छी तरह से छिपाते हैं, सभाओं में भाग लेते हैं और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभाते हैं। लेकिन जब सही समय आएगा तो वे जो चाहते हैं उसे करने के लिए कलीसिया का उपयोग करने की कोशिश करेंगे और उनकी ऊँची इच्छाएँ और असली चेहरे स्वाभाविक रूप से उजागर हो जाएंगे। तभी भाई-बहन देख पाएंगे कि वे छद्म-विश्वासी हैं। जब वे उजागर होते हैं तो उनका भेद पहचानना बहुत आसान हो जाता है। मिसाल के तौर पर, जब एक भेड़िया भेड़ की खाल में छिपा होता है और झुंड के साथ घुल-मिल जाता है तो तुम शायद यह नहीं पहचान पाओगे कि यह भेड़िया है या भेड़, लेकिन जब वह भेड़ को खाना शुरू कर देता है तो तुम पहचान जाओगे कि यह एक भेड़िया है। जो लोग राजनीति में हैं वे सभी छद्म-विश्वासी हैं और जिन्होंने कलीसिया में घुसपैठ की है। जब ये लोग भाई-बहनों को किसी राजनीतिक दल में शामिल होने और उनके साथ राजनीति में भाग लेने के लिए गुमराह करने और आकर्षित करने की कोशिश करते हैं तो तुम देखोगे कि परमेश्वर में उनका विश्वास झूठा है और उनका असली लक्ष्य राजनीति में शामिल होना है—चाहे उनकी पृष्ठभूमि कितनी भी जटिल हो, इसकी असलियत सामने आएगी और उजागर हो जाएगी। इस बिंदु पर लोग उनका भेद पहचानने के काबिल हो जाएंगे। यह एक प्रकार का व्यक्ति है, जिसकी जटिल पृष्ठभूमि है—वह राजनीतिक रूप से जटिल पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति है।
एक अन्य प्रकार का व्यक्ति है, जो जटिल पृष्ठभूमि वाले लोगों की श्रेणी में आता है। समाज में कुछ लोग अपने लिए जो स्थान उपयुक्त है, वहाँ रहकर सभ्य जीवन नहीं जीते हैं, बल्कि संदिग्ध व्यक्तियों के साथ रहना पसंद करते हैं। मिसाल के तौर पर, इन व्यक्तियों में जालसाजी और धोखाधड़ी करने वाले या आपराधिक अंडरवर्ल्ड के सदस्य शामिल होते हैं; जिनके पास समाज में रुतबा, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा होती है, जो ऊपरी तौर पर सरकारी अधिकारी या व्यवसायी होते हैं, लेकिन पर्दे के पीछे हमेशा अवैध, आपराधिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं, कुछ अधिकारियों या आपराधिक अंडरवर्ल्ड के सदस्यों के साथ मिलकरहथियारों, नशीली दवाओं या राज्य द्वारा प्रतिबंधित अन्य वस्तुओं की तस्करी करते हैं; साथ ही वे लोग जिन्हें कई बार दोषी ठहराया गया है और जेल में डाला गया है और जिन्होंने कुछ बुरे कर्म किए हैं, जैसे गंभीर लूट-पाट, बलात्कार, यौन उत्पीड़न या यहाँ तक कि मानवों के अवैध व्यापारी या मानव तस्कर भी हैं। इस प्रकार के लोग जिनकी जटिल पृष्ठभूमि होती है, वे इस प्रकार के व्यक्तियों के साथ जुड़ते हैं और उनके साथ खासतौर पर उनके घनिष्ठ संबंध भी होते हैं—वे एक-दूसरे को “भाई” कहते हैं, एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हैं और एक-दूसरे के लिए काम करते हैं। ऊपरी तौर पर ये लोग साफ तौर पर कोई बुरा कर्म नहीं करते हैं; वे चोरी, डकैती, हत्या या आगजनी नहीं करते हैं, लेकिन जिन समूहों के साथ वे जुड़ते हैं और जिन मंडलियों में घूमते हैं, वे सभी ऐसे असभ्य लोगों से बनी होती हैं। क्या इस तरह का व्यक्ति काफी डरावना नहीं है? (हाँ।) वे व्यवसाय में निवेश करने के लिए इन व्यक्तियों के साथ साझेदारी करते हैं और जब उनका साथी कुछ अवैध करता है और उसे उनकी मदद की जरूरत होती है तो वे सहायता की पेशकश करते हैं। चाहेवे मुख्य अपराधी नहीं होते, लेकिन वे अपराध में सहयोगी हैं। तुम कह सकते हो कि इस तरह के लोग अक्सर कानून की सीमाओं को लांघते हैं। “कानून की सीमाओं को लाँघने” का क्या मतलब है? (इसका मतलब है कि वे अक्सर ऐसी गतिविधियों में शामिल होते हैं, जो संभावित रूप से कानून का उल्लंघन कर सकती हैं।) यह एक पहलू है। इसके अलावा वे अक्सर कानूनी खामियों का फायदा उठाते हैं और जिन चीजों में शामिल होते हैं, वे सभी बड़े मामले होते हैं। अगर वे कभी पकड़े भी जाते हैं तो एक सहयोगी के रूप में उन्हें भी 10 या 20 साल की सजा हो सकती है या भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। क्या तुम नहीं कहोगे कि इस तरह के लोग मुसीबत पैदा करने वाले होते हैं? (हाँ।) तुमने उन्हें कभी साफ तौर पर कोई बुरा कर्म करते नहीं देखा है और तुमने उन्हें लोगों को मारते, आगजनी करते या किसी को धोखा देते या फँसाते नहीं देखा है, लेकिन जब वे लोग जो अवैध रूप से अपनी जेबें भरते हैं और आपराधिक अंडरवर्ल्ड और वैध हलकों दोनों में कानून तोड़ते हैं, भारी मुनाफा कमाने के लिए गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होते हैं तो इस तरह के लोग लूट में भी भाग लेते हैं और फायदे में भी एक हिस्सा पाते हैं। क्या तुम लोग कहोगे कि इस तरह के व्यक्ति की पृष्ठभूमि जटिल है? (हाँ।) क्या ऐसे लोगों के लिए परमेश्वर के घर में रहना अच्छी बात होगी? (नहीं।) वे आपराधिक अंडरवर्ल्ड और वैध हलकों दोनों से जुड़ते हैं; इतना ही नहीं, वे अवैध गतिविधियों में भी शामिल होते हैं—यह एक जटिल पृष्ठभूमि है। अगर वे कुछ सरकारी अधिकारियों के साथ जुड़ते हैं और उनके साथ सामान्य तरीके से मिलते-जुलते और बातचीत करते हैं तो यह स्वीकार्य है। लेकिनजिन लोगों के साथ वे जुड़ते हैं, अगर वे विभिन्न अवैध और आपराधिक गतिविधियों में शामिल नकारात्मक चरित्र वाले हैं तो यह बहुत मुसीबत भरा है और देर-सवेर कुछ न कुछ गलत होगा। इस तरह के व्यक्ति उन लोगों के साथ मेलजोल पसंद करते हैं; वे उनकी उंगली पकड़ कर चलते हैं, पैसा बनाने, अमीर बनने और अच्छा जीवन जीने के लिए उनके प्रभाव पर भरोसा करते हैं। तो क्या उन्हें अच्छा व्यक्ति माना जा सकता है? (नहीं)। लोग अक्सर कहते हैं, “चोर-चोर मौसेरे भाई”—वे आपराधिक अंडरवर्ल्ड और वैध हलकों दोनों के सदस्यों के साथ जुड़ सकते हैं; क्या तुम्हें लगता है कि वे सभ्य व्यक्ति हैं, जो अपने उपयुक्त स्थान पर रहते हैं? (नहीं।) निश्चित रूप से नहीं। एक तरह से देखें तो वे उन व्यक्तियों के साथ जुड़ते हैं क्योंकि वे शायद उन लोगों के लिए उपयोगी हैं—वे उन लोगों के लिए कुछ खास काम कर सकते हैं, जिनके साथ वे जुड़ते हैं। दूसरी तरह से ऐसा इसलिए है क्योंकि वे उन लोगों को पसंद करते हैं, जिनके साथ वे आपराधिक अंडरवर्ल्ड और वैध दोनों ही हलकों से जुड़ते हैं—उन लोगों के कौशल, योग्यताएँ और प्रभाव और वे जो फायदा उन्हें देते हैं, वे सभी चीजें हैं जिनकी उन्हें जरूरत है और वे जिनका आनंद लेते हैं। तो वे किस तरह के व्यक्ति हैं? (वे सभ्य व्यक्ति नहीं हैं।) हम इसे सिर्फ इस तरह से कह सकते हैं। वे उन लोगों के जैसे ही हैं, जिनके साथ वे जुड़े हुए हैं—वे सभी एक दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। इस दुनिया में ऐसे बहुत से लोग नहीं हैं, जो तुम्हारे लिए कुछ कर सकें या तुम पर पूरी तरह भरोसा कर सकें और तुम्हारे दोस्त बन सकें, लेकिन वे मौजूद हैं—ऐसे लोगों के साथ जुड़ने की कोई जरूरत नहीं है। एक तरह से इस तरह के लोग उनके साथ जुड़ते, क्योंकि दोनों की बुराइयां एक जैसी होने के कारण एक दूसरे के साथ उनकी अच्छी पटती है और वे एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दूसरी तरह देखें तो ऐसा इसलिए है क्योंकि ऐसे व्यक्ति अपने हितों और सांसारिक दुनिया में अपने अस्तित्व के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और जब लोगों के साथ जुड़ने की बात आती है तो उनके पास कोई सिद्धांत नहीं होता है, न ही उनकी किसी बात में कोई सिद्धांत होता है। अविश्वासी लोग यहाँ तक कहते हैं, “एक सज्जन व्यक्ति धन से प्यार करता है, लेकिन इसे सही तरीके से अर्जित करता है” और इसे न्यूनतम मानक मानते हैं। भले ही वे इस न्यूनतम मानक पर खरे उतरें या नहीं, मामला चाहे कोई भी हो, यह मानवजाति के बीच अस्तित्व में बने रहने के लिए अपेक्षाकृत अच्छे फलसफे के रूप में गिना जाता है। चाहे इस तरह के लोग जिनकी पृष्ठभूमि जटिल होती है, वे अपने हितों और फायदों की खातिर लोगों के साथ जुड़ने के मामले में बेशर्म और अविवेकी होते हैं—जब तक वे इससे फायदे प्राप्त कर सकते हैं, वे किसी के साथ भी जुड़ जाएँगे। यही नहीं, वे उन लोगों के साथ जुड़ने में सक्षम होने पर बहुत गर्व महसूस करते हैं और सोचते हैं कि लोगों के साथ जुड़ने में वे खुद जो तरीके अपनाते हैं, वे बहुत अच्छे हैं। तो हमें इस तरह के व्यक्ति को कैसे देखना चाहिए? वे आपराधिक अंडरवर्ल्ड और वैध हलकों दोनों में शामिल हैं—यह एक जटिल पृष्ठभूमि है। इस तरह के लोग बहुत डरावने होते हैं! क्या वे जो चेहरा दिखाते हैं, वह असली है? नहीं, वे हमेशा मुखौटा पहने रहते हैं। तुम कभी भी उनके अंदर की सच्चाई नहीं जान सकते या यह नहीं जान सकते कि वे अंदर क्या सोच रहे हैं। जब वे तुम्हारे साथ जुड़ते हैं तो वे मुखौटा पहनते हैं और यहाँ तक कि परमेश्वर में विश्वास रखने वालों के बीच छिप जाते हैं। यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे शैतान लोगों की भीड़ में घुल-मिल जाता है या लोमड़ी या भेड़िया भेड़ों के झुंड में घुस जाता है। क्या यह तुम्हें सुरक्षित महसूस कराता है? (नहीं।) तुम ऐसा क्यों कहते हो? इसका आधार उनकी चालाक, शातिर और दुष्ट प्रकृति है; वे लगातार तुम्हारे विरुद्ध षडयंत्र रच रहे हैं—यह कुछ ऐसा है जैसे हमेशा कुछ चालाक, दुष्ट आँखें तुम्हारे पीछे लगी रहती हैं, जो तुम्हारी हर हरकत पर नजर रखती हैं—और वे बस तुम्हें नष्ट करने और निगल जाने के मौके का इंतजार कर रहे होते हैं। क्या यह डरावना नहीं है? (हाँ।) इस प्रकार के लोग तुम्हें कभी भी सुरक्षा की भावना नहीं देते हैं क्योंकि उनकी प्रकृति और पृष्ठभूमि तुम्हें हमेशा महसूस कराती है कि वे तुम्हारे लिए खतरा हैं। किस तरह का खतरा? ऐसा इसलिए है क्योंकि जब वे आस-पास होते हैं तो तुम्हें हमेशा लगता है कि वे तुम्हारे खिलाफ साजिश रच सकते हैं, तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर सकते हैं, कभी भी और कहीं भी तुम्हारे लिए जाल बिछा सकते हैं और तुम्हें नहीं पता कि कब वे तुम्हारा इस्तेमाल कर सकते हैं या तुम्हें नुकसान पहुँचा सकते हैं और तुम उनके हाथों मारे जा सकते हो या उनके द्वारा बर्बाद किए जा सकते हो। इसलिए ऐसे लोगों को बिल्कुल भी अपने करीब नहीं रखना चाहिए। मुझे बताओ, क्या चीजें ऐसी ही नहीं हैं? (हाँ, बिल्कुल हैं।) मिसाल के तौर पर, भेड़ों के झुंड में भेड़िये को रखने से भेड़ों की रक्षा होगी या उनकी बर्बादी? (यह उन्हें बर्बाद कर देगा।) भेड़िये की प्रकृति के अनुसार, वह कभी भी भेड़ों के साथ नहीं रहेगा और उनकी सुरक्षा नहीं करेगा क्योंकि उसके मन में भेड़ें ही उसका भोजन हैं और जब भी या जहाँ भी उसे भूख लगेगी, वह उन्हें खा जाएगा; उसे भेड़ों पर कोई दया नहीं आएगी और वह उन्हें नहीं छोड़ेगा। भेड़िये में कुत्ते जैसी खूबियाँ नहीं होती हैं। अगर कुत्ता भेड़ों के साथ बड़ा होता है तो वह भेड़ों को बचाने की चीज समझता है और जब भेड़िया भेड़ों पर हमला करने या उन्हें खाने के लिए आता है तो कुत्ता भेड़ों की रक्षा करने की जिम्मेदारी को अपना कर्तव्य मानकर लड़ने के लिए आगे आएगा—कुत्तों में यह गुण जन्मजात होता है। लेकिन भेड़िये अलग होते हैं; भेड़ों को खाने की चाहत भेड़ियों का जन्मजात गुण है। जब इस तरह का कोई व्यक्ति जिसकी पृष्ठभूमि जटिल होती है, कलीसिया में घुसपैठ करता है तो यह भेड़िये का भेड़ों के झुंड में घुसपैठ करने जैसा ही है—जब भेड़िया भूखा नहीं होता तो वह भेड़ों के लिए खतरा पैदा नहीं करता, लेकिन जब उसे भूख लगती है, तो भेड़ें ही उसका भोजन बन जाती हैं और कोई भी इस सच्चाई को नहीं बदल सकता। यह उसकी प्रकृति से निर्धारित होता है। भेड़िये द्वारा भेड़ों को खाने की समस्या को हल करने के लिए तुम्हें जल्दी से भेड़िये की पहचान करनी चाहिए। एक बार जब तुम पहचान लेते हो कि भेड़ की खाल में भेड़िया कौन है तो तुम्हें तुरंत उससे छुटकारा पाना चाहिए—संकोच मत करो और उस पर कोई दया मत दिखाओ। जटिल पृष्ठभूमि वाले इस प्रकार के लोगों के साथ सावधानी से पेश आना चाहिए। अगर तुम्हें पता चलता है कि वे कुछ बुरा कर रहे हैं और कलीसिया में बाधा डाल रहे हैं तो तुम्हें उनके साथ बिल्कुल भी शिष्टता का आचरण नहीं करना चाहिए। तुम्हें उनसे कहना चाहिए : “तुम सांसारिक रूप से बुद्धिमान व्यक्ति हो और तुम परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए उपयुक्त नहीं हो। तुमने परमेश्वर के घर आकर गलत जगह चुनी है; यह जगह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। तुम्हें समाज में अपनी संभावनाओं को तलाशना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास रखने वाले सिर्फ परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, सत्य पर संगति करते हैं और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य निभाते हैं; वे षड्यंत्रों और साजिशों में शामिल नहीं होते या राजनीति में भाग नहीं लेते। यहाँ तुम ज्यादा ऊपर नहीं उठ सकते या अमीर नहीं बन सकते या ऐसा जीवन नहीं जी सकते जो दूसरों से बेहतर हो। चाहे तुम यहाँ कितनी भी देर तक रहो, उससे सिर्फ समय की बर्बादी होगी।” इस तरह उन्हें छोड़कर जाने के लिए राजी किया जाएगा, है न? (हाँ।) जरूरी नहीं है कि जटिल सामाजिक संबंधों वाले कुछ लोग बुरे ही हों या उन्होंने कोई बहुत बड़ी बुराई की हो, लेकिन वे सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते और वे दरअसल छद्म-विश्वासियों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोगों को वास्तव में परमेश्वर में विश्वास दिलाने और सत्य का अनुसरण करने के लिए प्रेरित करना भेड़िये को भेड़ में बदलने की कोशिश करने जैसा है—यह असंभव है। भेड़िया चाहे कितने भी लंबे समय तक भेड़ की खाल में रहे, वह भेड़िया ही रहेगा; वह कभी भेड़ नहीं बन सकेगा। चीजें ऐसी ही है। तो ऐसे लोगों का परमेश्वर पर विश्वास करना बस एक मजाक है; उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास करके गलत रास्ते का चुनाव किया है!
एक अन्य प्रकार का व्यक्ति है जिसकी पृष्ठभूमि जटिल है। वैसे तो वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, फिर भी उनके कुछ धार्मिक अगुआओं, अधिकारियों या विभिन्न संप्रदायों के रुतबे वाले लोगों के साथ घनिष्ठ संबंध होते हैं। वे इन लोगों के साथ जुड़ना पसंद करते हैं और अक्सर विभिन्न संप्रदायों की धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं; वे इन लोगों के साथ संबंध बनाते हैं और मित्रता करते हैं; वे एक-दूसरे का उपयोग करते हैं और एक-दूसरे के लिए काम करते हैं। समय-समय पर, चाहे जानबूझकर या फिर अनजाने में, वे इन व्यक्तियों के सामने कलीसिया के कुछ सामान्य मामलों के कार्य या कर्मियों के आंतरिक कार्य का खुलासा भी करते हैं। यह बहुत मुसीबत पैदा करने वाला मसला है। अगर तुम सिर्फ धार्मिक लोगों से बातचीत करते हो या उन धार्मिक स्थलों से खुद को अलग करना तुम्हें नामुमकिन लगता है और तुम्हें विभिन्न धार्मिक उत्सव वाली गतिविधियों और विभिन्न धार्मिक समारोहों में भाग लेना भी पसंद है, तो यह स्वीकार्य है। लेकिन, तुम्हें इन परिस्थितियों में कलीसिया के कार्य या भाई-बहनों के बारे में जानकारी का खुलासा नहीं करना चाहिए। मिसाल के तौर पर, तुम्हें ऐसी बातों का खुलासा नहीं करना चाहिए जैसे कि किसी व्यक्ति ने “चमकती पूर्वी बिजली” को स्वीकार किया है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में वह क्या कर्तव्य करता है, वह कहाँ रहता है और वह आमतौर पर किसके साथ-जुड़ता है—अगर तुम इन बातों का खुलासा करते हो, तो यह दर्शाता है कि तुम बहुत अनैतिक हो। अगर कोई यह जानकारी सरकार को दे देता है, तो परिणाम अकल्पनीय होंगे। अगर तुम धर्म के लोगों के बहुत करीब हो या उनके साथ तुम्हारे कुछ हित जुड़े हुए हैं या तुमने एक दूसरे की मदद की है, तो ज्यादा-से-ज्यादा, इसे तुम्हारी जटिल पृष्ठभूमि माना जा सकता है। लेकिन, अगर तुम गुप्त रूप से कुछ अन्य कार्य करते हो, जैसे कि परमेश्वर के घर की कार्य व्यवस्थाओं का खुलासा करना या परमेश्वर के घर के आंतरिक मामलों या भाई-बहनों की व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा करना, तो इसकी प्रकृति विश्वासघात की हो जाती है और इसकी निंदा की जाती है। विशेष रूप से, कुछ भाई-बहन नहीं चाहते कि अन्य लोग उनकी स्थिति के बारे में जानें या उसका खुलासा करें, क्योंकि उन्हें पहले गिरफ्तार किया जा चुका है या वे वर्तमान में वांछित सूची में हैं, फिर भी जटिल पृष्ठभूमि वाले इस प्रकार के व्यक्ति इस जानकारी को कुछ लाभों के बदले में प्राप्त होने वाली चीज के रूप में देखते हैं या इसे महत्वहीन मानते हैं और वे इसका खुलासा कर देते हैं, जिससे उन भाई-बहनों के लिए मुसीबत खड़ी होती है। अगर परमेश्वर के घर को ऐसे मामलों का पता चलता है, तो वह उस व्यक्ति को बिल्कुल भी हल्के में नहीं छोड़ेगा; ऐसे लोगों को तुरंत दूर कर देना चाहिए। सामाजिक संदर्भ में, जहाँ लोगों को परमेश्वर पर विश्वास रखने के कारण सताया जाता है, विश्वासियों के लिए कर्तव्य निभाने का अवसर प्राप्त करना भी मुश्किल होता है और प्रत्येक व्यक्ति वास्तव में इस अवसर को संजोता है। कोई भी नहीं चाहता कि दूसरों के कारण या अपनी किसी मूर्खता के कारण उसके कर्तव्य पालन में कोई संभावित जोखिम आए। इसलिए, अगर कोई भाई-बहनों के कर्तव्यों के पालन या व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए संभावित जोखिम का कारण बनता है या अगर कोई दूसरों के परमेश्वर में विश्वास रखने के मार्ग में बाधा डालता है, तो परमेश्वर का घर उन्हें आसानी से नहीं छोड़ेगा। एक बार जब परमेश्वर का घर उसे खोज लेता है, तो वह उसे तुरंत बाहर निकाल देगा या निष्कासित कर देगा, वह बिल्कुल भी पीछे नहीं हटेगा! अगर वह अपना बचाव करते हुए तर्क देता है और ऐसे बहाने बनाता है, “यह बस एक क्षणिक चूक थी कि मेरी जबान फिसल गई क्योंकि मैं ध्यान नहीं दे रहा था,” तो तुम्हें इस पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं करना चाहिए—ऐसे बहाने में कोई दम नहीं होता। उसने अपने पारिवारिक मामलों के बारे में लोगों को क्यों नहीं बताया? इसके बजाय, उसने भाई-बहनों के मामलों के बारे में क्यों बात की? उसके इरादे साफ तौर पर बुरे हैं। उसने कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों के बारे में जानकारी का खुलासा किया; अगर इससे भाई-बहनों के लिए मुसीबत खड़ी होती है, तो ऐसे लोगों को कोसा जाना चाहिए! क्या ऐसे लोगों को कोसा नहीं जाना चाहिए? (हाँ।) कलीसिया द्वारा अपने सुसमाचार कार्य को फैलाने के दौरान, यह अपरिहार्य है कि इस तरह के कुछ लोग कलीसिया में शामिल होंगे। उन्हें कलीसिया से गद्दारी करने, भाई-बहनों से गद्दारी करने और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात करने में कोई संकोच नहीं है। वे निजी तौर पर सभी तरह के लोगों के साथ जुड़ते हैं और उनके साथ जुड़ने का उनका उद्देश्य ठीक नहीं होता है। उन लोगों के साथ बातचीत करते समय, वे बेधड़क कुछ भी बोलते हैं, उन्हें कलीसिया की सारी आंतरिक जानकारी दे देते हैं, कुछ भी अनकहा नहीं छोड़ते, इससे अंततः भाई-बहनों और कलीसिया के लिए मुसीबत खड़ी होती है। इसके लिए दोष उन लोगों पर होना चाहिए जो बेधड़क सारी बातें बता डालते हैं। उनमें से कुछ लोग कह सकते हैं कि उन्होंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया, लेकिन अगर यह जानबूझकर नहीं किया गया था, तो भी यह स्वीकार्य नहीं है। अगर यह जानबूझकर नहीं किया गया था, तो तुमने खुद को नुकसान क्यों नहीं पहुँचाया? तुमने खास तौर पर दूसरों को ही क्यों नुकसान पहुँचाया? तुमने कलीसिया और भाई-बहनों के लिए मुसीबत खड़ी की है, यह एक निर्धारित तथ्य है। इसलिए, दोष तुम पर ही आना चाहिए। अगर तुमने किसी को मारने के बाद यह कहा, “मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया; मेरा उसे मारने का कभी कोई इरादा नहीं था—मेरे मन में ऐसा कोई विचार नहीं था,” तो क्या कानून तुम्हें उस बयान के कारण निर्दोष मानेगा? (नहीं।) भले ही तुम सच बोल रहे हो, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं होगा। तथ्य यह है कि तुमने किसी की हत्या की है और कानूनी तौर पर इसके निर्णायक सबूत मौजूद हैं, इसलिए तुम्हें तथ्यों के आधार पर दोषी करार दिया जाना चाहिए। तुमने हत्या का अपराध किया है, इसलिए तुम हत्यारे हो और तुम अपनी कितनी भी सफाई दो वह तुम्हारी मदद नहीं करेगी। कुछ लोग अक्सर अपने कार्यों के माध्यम से कलीसिया में मुसीबत लाते हैं और कभी-कभी यह मुसीबत बहुत बड़ी होती है, जिसके परिणामस्वरूप न सिर्फ भाई-बहनों की गिरफ्तारी होती है और उन्हें जेल जाना पड़ता है, बल्कि कलीसिया के कार्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। परमेश्वर का घर ऐसे लोगों को बिल्कुल भी नहीं छोड़ेगा; वह जिन लोगों को पकड़ेगा, उन्हें निष्कासित कर देगा और उन्हें कोसेगा—परमेश्वर का घर बिल्कुल भी पीछे नहीं हटेगा! अगर ये चीजें व्यवस्था के युग में हुई होतीं, तो कुकर्मियों को घसीटकर बाहर निकाला जाता और डंडों से पीट-पीटकर मार डाला जाता या पत्थरों से मार डाला जाता; ऐसे मामलों को ऐसे ही निपटाया जाता था। अब, चूँकि यह परमेश्वर के घर के प्रशासनिक आदेशों का हिस्सा नहीं है, इसलिए उन्हें निष्कासित कर दिया जाएगा और भाई-बहन सामूहिक रूप से उन्हें कोसेंगे। उन्हें आशीष या उद्धार मिलने की कोई संभावना नहीं है—उन्हें नरक में भेज दिया जाना चाहिए और दंडित किया जाना चाहिए!
एक और प्रकार के व्यक्ति होते हैं जिनकी पृष्ठभूमि होती है; वे कलीसिया में विशेष मिशन पूरे करने के लिए आते हैं। इस प्रकार के कुछ व्यक्तियों को सरकारों द्वारा भेजा जाता है, जबकि अन्य को कुछ धार्मिक या सामाजिक समूहों द्वारा मिशन सौंपे जाते हैं। मिसाल के तौर पर, ऐसे मिशन में भाई-बहनों की निगरानी करना, कलीसिया की निगरानी करना या कलीसिया के विभिन्न कार्यों और विभिन्न अवधियों के दौरान इसकी कार्य व्यवस्थाओं में ताक-झाँक करना शामिल हो सकता है। चाहे उनका मिशन कुछ भी हो, किसी भी तरह से, हमारे परिप्रेक्ष्य से इस प्रकार के व्यक्ति की पृष्ठभूमि जटिल होती है। जटिल पृष्ठभूमि वाले इन लोगों में से ज्यादातर छद्म-अविश्वासी हैं; ये वे लोग हैं जो सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते हैं। वे उन लोगों से अलग हैं जिनमें कम आस्था, कम काबिलियत या बहुत सारी धारणाएँ होती हैं—वे लोग वास्तव में विश्वास करते हैं, जबकि जटिल पृष्ठभूमि वाले इन लोगों के साथ एक गंभीर समस्या है। सबसे पहले, आओ विचार करें : ऐसे लोगों में किस तरह की मानवता होती है? (उनमें बुरी मानवता होती है, वे दुष्ट होते हैं, और वे शैतान के गिरोह के सदस्य हैं।) तो वे किस तरह के लोग हैं (वे शैतान हैं।) यह सही है, तुमने बिल्कुल ठीक कहा है—वे शैतान हैं जो कलीसिया में घुसपैठ करते हैं। वे ऐसे लोग हैं जो कलीसिया में घुसपैठ करते हैं और छिपे हुए रहकर मन में विभिन्न साजिशों और उद्देश्यों के बारे में सोचते रहते हैं। ऐसे लोग शैतान होते हैं। शुरू से ही जब ये लोग कलीसिया में प्रवेश करते हैं तो उनके इरादे अच्छे नहीं होते हैं। इस बात की परवाह किए बगैर कि उन्हें किसने नियुक्त किया—कुछ को शायद सरकार या कुछ समूहों ने नियुक्त किया होगा, जबकि अन्य को शायद किसी ने नियुक्त नहीं किया होगा और वे बस अपने दम पर कलीसिया में घुसपैठ करना चाहते हों—ऐसे लोग पूरी तरह से सांसारिक रूप से बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं। वे कई तरह के लोगों से जुड़ते हैं और उनके जटिल पारस्परिक संबंध और सामाजिक संपर्क होते हैं—उनकी पृष्ठभूमि जटिल होती है। “जटिल पृष्ठभूमि” का मतलब है कि उनके सामाजिक संपर्क, पारस्परिक संबंध और जीवन परिवेश विशेष रूप से अशुद्ध और सरल से बहुत दूर होता है; वे आम लोगों की तरह नहीं हैं जो सिर्फ पैसा कमाने और एक अच्छा जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं। समाज में ये लोग जो भूमिकाएँ निभाते हैं, वे विभिन्न मंडलियों और समूहों के भीतर अनूठे लोग, अगुआ या अपेक्षाकृत असाधारण हस्ती होने की भूमिका निभाते हैं—वे ऐसे लोग हैं जिन्हें गैर-विश्वासी लोग “सक्षम व्यक्ति” या “गुरु” कहते हैं। वे जहाँ कहीं भी हों, वे ऐसे लोग नहीं हैं जो अपने लिए उपयुक्त स्थान पर रहते हैं और वे सभ्य लोग नहीं हैं। वे चाहे व्यक्तिगत फायदे या सत्ता या विभिन्न समूहों और मंडलियों के भीतर दूसरों पर नियंत्रण हासिल करने के अवसर तलाशते हों, यही उनका उद्देश्य है और यह उनके अस्तित्व का लक्ष्य भी है। चाहे वे किसी भी कलीसिया में हों, उनकी मानसिकता शैतान की तरह होती है, वे हमेशा आगे बढ़ने के लिए उत्सुक रहते हैं, परिस्थितियों को नियंत्रित करना, लोगों को नियंत्रित करना, धन को नियंत्रित करना, प्रभाव डालना और ताकत का उपयोग करना चाहते हैं। ये इस तरह के व्यक्ति की अभिव्यक्तियाँ हैं। इसलिए, इस बात की परवाह किए बगैर कि ऐसे लोगों के पास कोई मिशन हो या नहीं, या उन्हें सरकार या किसी सामाजिक समूह द्वारा नियुक्त किया गया हो, वे कलीसिया में आने के बाद अपने उचित स्थान पर नहीं रह सकते हैं। भले ही उनका कोई मिशन न हो और भले ही कलीसिया या भाई-बहन उनके शोषण का लक्ष्य न हों, वे ऐसे लोग नहीं हैं जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास रखना चाहते हैं और वे निश्चित रूप से ऐसे लोग नहीं हैं जो परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। कलीसिया में शामिल होने का उनका उद्देश्य भी शुद्ध नहीं है—कम से कम, एक बात उनके लिए सच्चाई के बहुत करीब है, यह कि “कलीसिया की उंगली पकड़ कर चलना” और अपने एजेंडे को पूरा करने के अवसर की प्रतीक्षा करना। अगर वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहते हैं और उनकी इच्छाएँ धराशायी हो जाती हैं, तो वे किसी भी समय कलीसिया छोड़ सकते हैं। वे अवसर की तलाश में रहते हैं और सही समय का इंतज़ार करते हैं—अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जिसका वे फायदा उठा सकते हैं या कोई उपयुक्त क्षण आता है जो उन्हें अपने लक्ष्यों, महत्वाकांक्षाओं या आकांक्षाओं को साकार करने की अनुमति दे सकता है, तो वे उस व्यक्ति या उस क्षण को बिल्कुल भी जाने नहीं देंगे। अगर वे लगातार अवसर पाने में विफल रहते हैं, तो वे हतोत्साहित और निराश हो जाते हैं और वे कलीसिया छोड़ना चाहते हैं। इसलिए, इस तरह का व्यक्ति कलीसिया के भीतर एक प्रकार का खतरनाक व्यक्ति भी है और उसका भेद पहचान कर उनसे दूरी बनाए रखनी चाहिए। एक और ज्यादा महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि अगर तुम इस बारे में अनिश्चित हो कि किसी व्यक्ति की पृष्ठभूमि क्या है या तुम्हें अस्पष्ट रूप से लगता है कि उसकी पृष्ठभूमि बहुत जटिल है, तो एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें कम से कम यह पता होना चाहिए कि इस व्यक्ति को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है या उसे रुतबा या ताकत नहीं दी जा सकती है या कलीसिया के भीतर कोई महत्वपूर्ण कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। अगर तुम उसकी असलियत समझ नहीं सकते हो, तो कम-से-कम तुम उसकी जाँच-परख कर सकते हो, लेकिन तुम्हें बिल्कुल भी उतावलापन या जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। अगर तुम बिना उसकी असलियत समझे उसे रुतबा दे देते हो या किसी महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने की जिम्मेदारी देते हो, तो तुम बेहद मूर्ख हो! तुम उसकी असलियत जितना कम समझते हो, उतना ही कम तुम्हें उसे कोई महत्वपूर्ण कार्य सौंपना चाहिए, तुम्हें उतना ही ज्यादा सतर्क रहना चाहिए और उतना ही ज्यादा तुम्हें उस पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और उसकी सख्ती से निगरानी करनी चाहिए। दरअसल, चाहे कोई मिशन हो या नहीं हो, इस प्रकार के लोग जिनकी पृष्ठभूमि जटिल होती है, अंततः कलीसिया में ज्यादा समय तक नहीं टिक पाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अपने दिलों में, ऐसे छद्म-विश्वासी लोग आस्था के मामलों से दूर ही रहते हैं। नास्तिक यह नहीं मानते कि परमेश्वर का अस्तित्व है और उन्हें परमेश्वर, परमेश्वर के कार्य या परमेश्वर द्वारा सत्य की अभिव्यक्ति से संबंधित किसी भी चीज में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। वे लगातार छानबीन करते हैं : “क्या परमेश्वर में विश्वास रखने से कोई फायदा हो सकता है? क्या मैं इससे बहुत पैसा कमा सकता हूँ और अमीर बन सकता हूँ? क्या मैं यहाँ अपनी साजिशों और चालों का इस्तेमाल कर सकता हूँ जैसे मैं दुनिया में करता हूँ?” यह देखकर कि परमेश्वर का घर इन चीजों को बढ़ावा नहीं देता है, बल्कि हमेशा एक ईमानदार व्यक्ति होने की बात करता है और जो कोई भी अपने कर्तव्य को करने में लापरवाह होता है या आधे-अधूरे मन से कार्य करता है, उसकी अक्सर काट-छाँट की जाती है, इन बातों से उनका मन हट जाता है और वे परमेश्वर के घर में दुखी और असुरक्षित महसूस करते हैं और हमेशा वहाँ से निकल जाने का मौका ढूँढ़ते रहते हैं। अगर कोई वास्तव में परमेश्वर की भेड़ों में से एक है, परमेश्वर द्वारा चुने गए लोगों में से एक है, तो वह उन सत्यों को सुनने से नहीं थकेगा जिन पर परमेश्वर पर विश्वास रखने के दौरान अक्सर चर्चा की जाती है, भले ही उन पर 20 या 30 वर्षों तक चर्चा की जाती रही हो; वह उन्हें जीवन भर सुन सकता है और उसके बाद भी उनमें नयापन पा सकता है। ऐसे लोग जितना ज्यादा सुनते हैं, ये सत्य उनके लिए उतने ही ज्यादा स्पष्ट हो जाते हैं; जितना ज्यादा वे सुनते हैं, उतना ही ज्यादा उनके दिल का पोषण होता है; वे जितना ज्यादा सुनते हैं, उतना ही ज्यादा वे सत्य की चाह करते हैं। भले ही वे हर दिन इन वचनों को सुनें, वे ऐसा करने के लिए तैयार होंगे। विशेष रूप से, जब वे अनुभवजन्य गवाहियाँ सुनते हैं जो उनके लिए सहायक होते हैं, तो वे आनंदित और तृप्त महसूस करते हैं मानो कि उन्होंने एक शानदार दावत का आनंद लिया हो—वे सोने का एक टुकड़ा पा लेने से भी ज्यादा खुश होते हैं। जहाँ तक इन छद्म-विश्वासियों, इन दानवों की बात है—विशेष रूप से जटिल पृष्ठभूमि वाले इन लोगों की—वे जितना ज्यादा सत्य के बारे में संगति सुनते हैं, उतनी ही ज्यादा चिढ़ महसूस करते हैं; जितना ज्यादा वे सुनते हैं, उतना ही ज्यादा अंदर से व्यथित और विरक्त महसूस करते हैं। जब वे ये शब्द सुनते हैं, तो उन्हें ये उबाऊ, नीरस और थकाऊ लगते हैं। अगर तुम उन्हें बैठाकर धर्मोपदेश सुनने के लिए कहो, तो उन्हें ऐसा लगेगा जैसे उन्हें यातना दी जा रही हो। वे कहते हैं, “ऐसा कैसे है कि तुम सभी को ये शब्द सुनने में इतना आनंद आता है, मानो तुमने कोई बढ़िया दावत खा ली हो? जब मैं इन्हें सुनता हूँ, तो मुझे इतनी विरक्ति क्यों महसूस होती है?” लंबे समय तक सुनने के बाद, वे शांत बैठने में असमर्थ हो जाते हैं। अगर वे अगुआ नहीं बन सकते हैं, तो वे अपना कर्तव्य करने या कठिनाई सहने के लिए तैयार नहीं होते हैं और समय के साथ, उन्हें यह सब व्यर्थ लगने लगता है; अपनी आस्था त्यागने के विचार जोर मारने लगते हैं। इस तरह से छद्म-विश्वासियों का खुलासा होता है। जहाँ तक जटिल पृष्ठभूमि वाले इन लोगों का सवाल है, अगर उनकी जाँच-परख के दौरान तुम्हें पता चलता है कि वे संदिग्ध मूल और जटिल पृष्ठभूमि वाले लोग हैं, तो उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी करने का मौका खोजने का हर संभव प्रयास करो। ऐसे लोगों के लिए जो सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते, थोड़ी बुद्धिमानी से काम लेना जरूरी है। तुम उनसे कह सकते हो, “तुम अमीर बनना चाहते हो और तुम अधिकारी बनने का सपना देखते हो—अगर तुम अपनी पूरी जिंदगी अधिकारी बने बिना गुजारते हो, तो तुम वाकई बहुत कुछ खो रहे होगे! तुम्हें अधिकारी बनना चाहिए, अमीर बनना चाहिए और दुनिया में जाना चाहिए—असली फायदे वहीं मिलते हैं। तुम्हारे पास व्यवसाय करने के लिए दिमाग है और तुम अधिकारी बनने के लिए बने हो—अगर तुम दुनिया में जाते हो, तो तुम निश्चित रूप से अमीर बन सकते हो और अधिकारी बन सकते हो।” जब वे यह सुनेंगे, तो उन्हें लगेगा कि उन्हें कोई अपना कोई हितैषी मिल गया है और वे कहेंगे : “तुम बिल्कुल सही कह रहे हो! मुझे ऐसा लग रहा है कि परमेश्वर में विश्वास रखने का कोई मतलब नहीं है—तुमने जो कहा, वह वास्तव में मुझे प्रभावित करता है। आस्था का वास्तव में सिर्फ मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है; इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे पास यह है या नहीं। जीवन छोटा है—बस कुछ दशक जो पलक झपकते ही बीत जाते हैं। हमेशा परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों के साथ अपना समय यहाँ बर्बाद करने से मुझे कुछ भी नहीं मिला है और मैं हमेशा असंतुष्ट महसूस करता हूँ। क्या मैं ऐसा करके अपने साथ अन्याय नहीं कर रहा हूँ? बाहर जाकर बहुत सारा पैसा कमाना ही वास्तव में मायने रखता है!” वे तुम्हारी कही गई बातों से सहमत होंगे। एक बार जब वे सहमत हो जाते हैं, तो शायद एक दिन वे खुद ही कलीसिया छोड़ देंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि कलीसिया में रहना व्यर्थ है और क्योंकि इन सबसे बढ़कर, उनके लिए कुछ चीजें गलत हो जाती हैं या उन्हें कुछ असफलताओं और नाकामियों का सामना करना पड़ता है और कुछ काट-छाँट झेलनी पड़ती है। क्या यह बढ़िया नहीं है? (हाँ। यह एक बुद्धिमानी वाला रास्ता है।) शैतानों को कलीसिया से बाहर निकालना आसान है : एक बार जब तुम उनकी मानसिकता को समझ लेते हो, अगर कोई ऐसी चीज है जो वे चाहते हैं, तो उन्हें उसे पाने के लिए प्रोत्साहित करो। इस तरह, तुम उन्हें कलीसिया छोड़ने के लिए राजी कर सकते हो। उन्हें बाहर निकालने का रास्ता दिखाने के लिए धारा के साथ चलो। इस तरह के छद्म-विश्वासी से निपटने का यही तरीका है।
अगर कलीसिया में ऐसी जटिल पृष्ठभूमि वाले लोग पाए जाते हैं, तो उन्हें तुरंत चले जाने या बाहर निकालने के लिए राजी किया जाना चाहिए; उन्हें रुकने के लिए आग्रह करने की कोशिश नहीं करो। क्यों नहीं? एक बात तो यह है कि वे कलीसिया में कोई अच्छी भूमिका नहीं निभाते हैं; दूसरी बात यह है कि वे बिल्कुल भी परमेश्वर द्वारा चुने गए लोगों में से नहीं हैं। इसके अलावा, भले ही वे कलीसिया में बने रहें, अंत में, उद्धार पाने के लिए परमेश्वर के वचनों, परमेश्वर के कार्य या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकारना उनके लिए असंभव होगा। अगर वे कलीसिया में बने रहेंगे, तो यह कलीसिया के कार्य के लिए हानिकारक होगा और वे छोटे आध्यात्मिक कद वाले कुछ भाई-बहनों को गुमराह और प्रभावित कर सकते हैं। परमेश्वर के घर के लोग उन्हें नापसंद करते हैं, और बदले में, वे परमेश्वर के घर के भाई-बहनों को भी उतनी ही नापसंदगी से देखते हैं। अपने दिलों में, वे हमेशा परमेश्वर के घर, कलीसिया और भाई-बहनों के प्रति वैर-भाव रखते हैं। तो मुझे बताओ, अगर कलीसिया में ऐसा कोई दुश्मन, ऐसा कोई विरोधी है, तो क्या तुम लोग परेशान महसूस करोगे? (हाँ।) इसलिए, ऐसे लोगों से रुकने का आग्रह नहीं करना सबसे अच्छा है। एक बार जब उनका पता चल जाए, तो तुरंत उन्हें यहाँ से चले जाने के लिए राजी करो, उन्हें बाहर निकाल दो या निष्कासित कर दो। अगर सुसमाचार प्रचार की प्रक्रिया के दौरान ऐसे लोगों का सामना हो जाए तो उनसे कैसे निपटा जाना चाहिए (बस उनसे दूर रहो और उन्हें अनदेखा करो।) जब तुम्हारा सामना इस प्रकार के व्यक्ति से होता है, तो तुम्हें उसे सुसमाचार प्रचार नहीं करना चाहिए। ऐसे लोग बहुत ही फिजूल, बेबुनियाद तरीके से बोलते हैं और काफी बातूनी होते हैं, लेकिन वास्तव में उनके पास कोई प्रतिभा नहीं होती है। परमेश्वर के घर को ऐसी जटिल पृष्ठभूमि वाले लोगों की जरूरत नहीं है; वे परमेश्वर द्वारा चुने गए लोगों में से नहीं हैं। भले ही वे अभी परिवर्तित हो जाएँ, लेकिन देर-सवेर, उन्हें अभी भी दूर किए जाने की जरूरत होगी। इसलिए, जब सुसमाचार का प्रचार करने वाले लोग ऐसे लोगों का सामना करते हैं, तो उन्हें बस उनसे दूरी बना लेनी चाहिए। परमेश्वर का घर न तो ऐसे लोगों को चाहता है और न ही उनका स्वागत करता है। जटिल पृष्ठभूमि वाले लोगों से निपटने का यही तरीका है और यही सिद्धांत है। बेशक, इस मुद्दे से निपटने में, चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की कोई जरूरत नहीं है; तुम्हें यह स्पष्ट रूप से समझना चाहिए कि क्या कोई व्यक्ति जटिल पृष्ठभूमि वाले लोगों की श्रेणी में आता है या नहीं। अगर उसकी अभिव्यक्तियाँ इस प्रकार के व्यक्ति से मेल खाती हैं, तो उसे इस समूह की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। हालाँकि, अगर कोई कभी-कभार ही शेखी बघारता है या बकवास करता है और उसके अत्यधिक शेखी बघारने के कारण उसे गलती से एक जटिल पृष्ठभूमि वाला मान लिया जाता है, लेकिन वास्तव में, परमेश्वर में उसका विश्वास सच्चा है और वह इस श्रेणी में नहीं आता है, तो इस स्थिति में एक अच्छे व्यक्ति पर गलत आरोप लगाने से बचने के लिए अलग तरह के व्यवहार की जरूरत होती है।
III. अपने कर्तव्य निर्वहन के समय व्यक्ति के रवैये के आधार पर
हमने लोगों की मानवता के आधार पर उनका भेद पहचानने की कसौटी पर संगति कमोवेश पूरी कर ली है। एक और कसौटी है—अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय व्यक्ति के रवैये के आधार पर लोगों का भेद पहचानना। हमने पिछले धर्मोपदेशों में इस कसौटी के बारे में काफी बात की है, इसलिए इसके बारे में और कुछ कहने की जरूरत नहीं है।
बहुत बढ़िया। आज की हमारी संगति यहीं समाप्त होती है। अलविदा!
6 जुलाई, 2024