अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (12)

अपनी पिछली सभा में हमने अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की दसवीं मद पर संगति की थी : “परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक चीजों (किताबें, विभिन्न उपकरण, अनाज, आदि) को ठीक से सुरक्षित रखो और समझदारी से बाँटो, और क्षति और बरबादी कम करने के लिए नियमित निरीक्षण, रखरखाव और मरम्मत करो; साथ ही, बुरे लोगों को इन्हें कब्जाने से रोको।” दसवीं मद की संगति इस बारे में थी कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं के संबंध में क्या कार्य करना चाहिए और क्या जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए, साथ ही इसमें नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को तुलना के जरिए उजागर किया गया था। यदि अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर के कार्य की प्रत्येक मद में अपनी वो जिम्मेदारियाँ निभाते हैं जो उन्हें निभानी चाहिए और जो वे निभा सकते हैं, तो वे अगुआ और कार्यकर्ता होने के मानक पर खरे उतरते हैं; यदि वे अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाते और कोई वास्तविक कार्य नहीं करते तो यह बिल्कुल स्पष्ट है कि वे नकली अगुआ हैं। जहाँ तक दसवीं मद का संबंध है, नकली अगुआ निश्चित रूप से परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा और समझदारी से उनका आवंटन करने का कार्य बहुत अच्छी तरह से नहीं करते—उन वस्तुओं की भली-भाँति सुरक्षा नहीं की जाती या संभवतः उनकी सुरक्षा तक बिल्कुल न की जाती हो और नकली अगुआ उनके आवंटन में गड़बड़ी करते हैं। संभव है कि वे इस कार्य को भी गंभीरता से बिल्कुल न लें। हालाँकि यह सामान्य मामलों से संबंधित कार्य है, फिर भी यह एक ऐसी जिम्मेदारी है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभानी चाहिए और ऐसा कार्य है जो उन्हें करना चाहिए। वे चाहे स्वयं यह कार्य करें या इसे करने और साथ ही इसका पर्यवेक्षण, निरीक्षण, खोज-खबर वगैरा करने के लिए उपयुक्त लोगों की व्यवस्था करें, किसी भी हाल में यह कार्य अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों से अलग नहीं है—दोनों का सीधा संबंध है। इसलिए जब इस कार्य की बात आती है, तो यदि अगुआ और कार्यकर्ता परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की उचित सुरक्षा और समझदारी से आवंटन नहीं करते हैं, तो वे अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभा रहे हैं और वे अपना कार्य ठीक से नहीं कर रहे हैं। यह नकली अगुआओं की एक अभिव्यक्ति है। पिछली सभा में हमने सामान्य मामलों से संबंधित कार्य की इस मद को सँभालने में नकली अगुआओं द्वारा प्रदर्शित अभिव्यक्तियों को सरल तरीके से उजागर किया था और इनका गहन-विश्लेषण किया था और हमने कुछ उदाहरण दिए थे। यदि कोई नकली अगुआ है तो उसने इस कार्य में अपनी जिम्मेदारियों को बिल्कुल भी नहीं निभाया है और वह जो कार्य करता है वह मानक के अनुरूप नहीं होता है। ऐसा इसलिए है कि नकली अगुआ वास्तविक कार्य करने के प्रयत्न कभी नहीं करते—एक बार इसके लिए व्यवस्था करने के बाद वे इसकी चिंता नहीं करते और वे कभी भी कार्य की खोज-खबर नहीं लेते या उसमें भागीदारी नहीं करते। दूसरा मुख्य कारण यह है कि नकली अगुआ जो भी कार्य करते हैं उसके सिद्धांतों को नहीं समझते हैं। भले ही वे अपने कार्य में निठल्ले न बैठे रहें, पर वे जो करते हैं वह परमेश्वर के घर द्वारा अपेक्षित सिद्धांतों और नियमों से मेल नहीं खाता या यहाँ तक कि सिद्धांतों से पूरी तरह भटका हुआ होता है। सिद्धांतों से भटका हुआ होने का क्या मतलब है? इसका निहितार्थ यह है कि वे लापरवाही से काम करते हैं, अपनी कल्पनाओं, इच्छा, भावनाओं आदि के आधार पर अनियंत्रित होकर काम करते हैं। इसलिए चाहे जो हो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की इस मद की बात करें तो नकली अगुआओं की दो मुख्य अभिव्यक्तियाँ हैं : पहली यह कि वे वास्तविक कार्य नहीं करते और दूसरी यह है कि वे सिद्धांतों को पकड़ नहीं पाते, इसलिए वे वास्तविक कार्य नहीं कर सकते। यही बुनियादी अभिव्यक्तियाँ हैं। पिछली सभा में हमने यह संगति की थी और यह उजागर किया था कि इस तरह के सामान्य मामलों का कार्य सँभालने में नकली अगुआओं की मानवता कैसे अभिव्यक्त होती है। इस सरल, एक अदद काम में भी नकली अगुआ अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभा सकते। उनमें यह कार्य करने की क्षमता होती है, लेकिन वे इसे करते नहीं हैं। इसका संबंध ऐसे लोगों के चरित्र और मानवता से है। उनकी मानवता में क्या समस्या है? उनके हृदय सही जगह पर नहीं लगे हैं और उनका चरित्र नीच है। हम दसवीं मद के तहत अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों, सामान्य सिद्धांतों और नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों पर अपनी संगति आम तौर पर पूरी कर चुके हैं। आज हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की ग्यारहवीं मद के बारे में संगति करेंगे।

मद ग्यारह : विशेषकर भेंटों के व्यवस्थित रूप से पंजीकरण, मिलान और सुरक्षा के कार्य के लिए मानक स्तर की मानवता वाले भरोसेमंद लोगों को चुनो; आवक और जावक चीजों की नियमित रूप से समीक्षा और जाँच करो, ताकि फिजूलखर्ची या बरबादी के मामलों के साथ-साथ अनुचित व्यय के मामलों की भी तुरंत पहचान की जा सके—ऐसी चीजों पर रोक लगाओ और उचित मुआवजे की माँग करो; इसके अतिरिक्त, किसी भी तरह से, भेंटों को दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ने और उनके द्वारा कब्जा कर लिए जाने से रोको

भेंटें क्या हैं

अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की ग्यारहवीं मद की विषयवस्तु है : “विशेषकर भेंटों के व्यवस्थित रूप से पंजीकरण, मिलान और सुरक्षा के कार्य के लिए मानक स्तर की मानवता वाले भरोसेमंद लोगों को चुनो; आवक और जावक चीजों की नियमित रूप से समीक्षा और जाँच करो, ताकि फिजूलखर्ची या बरबादी के मामलों के साथ-साथ अनुचित व्यय के मामलों की भी तुरंत पहचान की जा सके—ऐसी चीजों पर रोक लगाओ और उचित मुआवजे की माँग करो; इसके अतिरिक्त, किसी भी तरह से, भेंटों को दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ने और उनके द्वारा कब्जा कर लिए जाने से रोको।” इस कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की क्या जिम्मेदारियाँ हैं? उन्हें कौन-सा मुख्य कार्य करना होता है? (भेंटों की उचित तरीके से सुरक्षा करना।) दसवीं मद का संबंध परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुओं की सुरक्षा और समझदारी से उनके आवंटन से था; इस ग्यारहवीं मद का संबंध भेंटों की उचित सुरक्षा से है। परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ और उसकी भेंटें कुछ हद तक समान हैं—लेकिन क्या वे एक ही हैं? (नहीं।) क्या अंतर है? (भेंटों का आशय मुख्य रूप से धन से है।) धन इसका एक पहलू है। परमेश्वर के घर की विभिन्न भौतिक वस्तुएँ और भेंटें प्रकृति में किस प्रकार भिन्न हैं? क्या परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें भेंटें हैं? क्या कार्य के लिए उपयोग में लाए जाने वाली विभिन्न मशीनें भेंटें हैं? क्या परमेश्वर के घर द्वारा खरीदी जाने वाली दैनिक आवश्यकता की विभिन्न चीजें भेंटें हैं? (नहीं।) तो फिर ये क्या हैं? परमेश्वर के घर में मौजूद परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें और अपने काम के लिए जरूरी सभी तरह के उपकरण जिनमें कैमरे, ऑडियो रिकॉर्डर, कंप्यूटर और सेल फोन जैसी बहुत सी वे चीजें शामिल हैं जिन्हें परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दिए धन से खरीदा जाता है—ये सभी परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुएँ हैं। इनके अलावा, मेज, कुर्सियाँ, बेंच, भोजन और दैनिक जरूरत की ऐसी अन्य चीजें भी परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुएँ हैं। इनमें से कुछ वस्तुएँ भाई-बहन खरीदते हैं और अन्य को परमेश्वर का घर भेंटों से खरीदता है; इन सभी को परमेश्वर के घर की भौतिक वस्तुओं के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। अपनी पिछली सभा में हमने इस विषय पर संगति की थी। अब हम एक महत्वपूर्ण बात पर नजर डालेंगे जिस पर हम ग्यारहवीं मद के तहत संगति करेंगे : भेंटें। भेंट वास्तव में क्या हैं? उनका दायरा कैसे निर्धारित किया जाता है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों पर संगति करने से पहले यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भेंटें क्या हैं। यद्यपि अतीत में अधिकांश लोग यीशु पर विश्वास करते थे और कई सालों से कार्य के इस चरण को स्वीकार कर रहे हैं, फिर भी भेंटों के बारे में उनकी अवधारणा अस्पष्ट है। वे इस बारे में स्पष्ट नहीं हैं कि भेंटें वास्तव में क्या हैं। कुछ लोग कहेंगे कि परमेश्वर को चढ़ाया जाने वाला धन और भौतिक वस्तुएँ भेंट हैं, जबकि दूसरे लोग कहेंगे कि भेंट का आशय मुख्य रूप से धन है। इनमें से कौन सा कथन सही है? (परमेश्वर को चढ़ाई गई कोई भी चीज, चाहे वह पैसा हो या कोई भी छोटी-बड़ी वस्तु, वह एक भेंट है।) यह अपेक्षाकृत सटीक सारांश है। अब जबकि भेंटों का दायरा और सीमाएँ स्पष्ट हैं, आओ सटीक रूप से परिभाषित करें कि भेंट वास्तव में क्या है, ताकि हर कोई इस अवधारणा के बारे में स्पष्ट हो सके।

भेंटों के विषय में, बाइबल में दर्ज है कि मूलतः परमेश्वर ने मनुष्य से कहा था कि वह परमेश्वर को दशमांश दे—यह भेंट है। भेंट में दी गई राशि चाहे बड़ी रही हो या छोटी, और चाहे भेंट वास्तव में कुछ भी रही हो—चाहे वह धन हो या भौतिक वस्तुएँ—अगर वह लोगों की आय का दसवाँ हिस्सा था, तो वह वास्तविक भेंट थी। परमेश्वर ने मनुष्य से यही माँगा था, और परमेश्वर में विश्वास करने वालों से परमेश्वर को यही अर्पित करना अपेक्षित था। यह जो दशमांश है वह भेंटों का एक पहलू है। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या दसवाँ हिस्सा सिर्फ धन हो सकता है?” ऐसा जरूरी नहीं है। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति दस एकड़ अनाज की फसल काटता है, तो चाहे उपज कितनी भी रही हो, अंततः परमेश्वर को एक एकड़ भूमि का अनाज दिया जाना चाहिए; यह दसवाँ हिस्सा ही वह है जो लोगों को परमेश्वर के प्रति समर्पित करना चाहिए। इस प्रकार, “दसवें हिस्से” की अवधारणा केवल धन को संदर्भित नहीं करती—इसका मतलब केवल यह नहीं है कि अगर कोई एक हजार डॉलर कमाता है, तो उसे परमेश्वर को एक सौ डॉलर अर्पित करना चाहिए, बल्कि इसका मतलब लोगों की सभी प्रकार की प्राप्तियों से है—इसमें भौतिक चीजों और धन समेत कहीं अधिक चीजें शामिल हैं। बाइबल यही बताती है। बेशक, आजकल परमेश्वर का घर लोगों से अपनी आय का दसवाँ हिस्सा देने की माँग करने में बाइबल जितनी सख्ती नहीं दिखाता। यहाँ मैं केवल “दशमांश” की अवधारणा और परिभाषा के बारे में संगति और इनका प्रसार कर रहा हूँ ताकि लोग जान जाएँ कि यह जो दशमांश है वह भेंटों का एक पहलू है। मैं लोगों से दसवाँ अंश अर्पित करने का आह्वान नहीं कर हूँ; लोग कितना अर्पण करते हैं यह उनकी व्यक्तिगत समझ और इच्छा पर निर्भर करता है और परमेश्वर के घर की इस मामले में कोई अतिरिक्त अपेक्षाएँ नहीं हैं।

भेंटों का एक अन्य पहलू वे चीजें हैं जो लोग परमेश्वर को देते हैं। मोटे तौर पर कहें तो इसमें निश्चित रूप से दशमांश भी शामिल है; विशेष रूप से कहें तो दशमांश के अतिरिक्त लोग जो कुछ भी परमेश्वर को अर्पित करते हैं, वह भी भेंट की श्रेणी में आता है। परमेश्वर को दी जाने वाली भेंटों में कई चीजें शामिल हैं, उदाहरण के लिए भोजन, उपकरण, दैनिक आवश्यकता की चीजें, स्वास्थ्य-अनुपूरक और साथ ही गाय, भेड़ें और अन्य वस्तुएँ जिन्हें पुराने नियम के काल में वेदी पर चढ़ाया जाता था। ये सब भेंटें हैं। कोई चीज भेंट है या नहीं, यह भेंटकर्ता की मंशा पर निर्भर करता है; अगर भेंटकर्ता कहता है कि यह वस्तु परमेश्वर को अर्पित है, तो चाहे यह सीधे परमेश्वर को दी जाए या परमेश्वर के घर की अभिरक्षा में रखी जाए, यह भेंट की श्रेणी में ही आती है और लोग इसे मनमाने तरीके से नहीं छू सकते। उदाहरण के लिए : कोई व्यक्ति ऊँचे स्तर का कंप्यूटर खरीदता है और उसे परमेश्वर को अर्पित करता है, तो यह एक भेंट बन जाता है; जब कोई व्यक्ति परमेश्वर के लिए कार खरीदता है, तो वह एक भेंट बन जाती है; जब कोई व्यक्ति किसी हेल्थ सप्लीमेंट की दो बोतलें खरीद कर उन्हें परमेश्वर को अर्पित करता है, तो वे बोतलें भेंट बन जाती हैं। परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली भौतिक वस्तुओं की कोई विशिष्ट या निश्चित परिभाषा नहीं है। कुल मिलाकर इसका दायरा बहुत व्यापक है—ये वे वस्तुएँ हैं जो परमेश्वर के अनुयायी उसे भेंट करते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, “परमेश्वर ने अब पृथ्वी पर देहधारण किया है और उसे भेंट की जाने वाली चीजें उसकी हैं—लेकिन तब क्या होता जब वह पृथ्वी पर न होता? जब परमेश्वर स्वर्ग में होता है, तो क्या उसे अर्पित की जाने वाली चीजें तब भेंट नहीं होतीं?” क्या यह सही है? (नहीं।) इसका आधार यह नहीं है कि परमेश्वर देहधारण की अवधि में है या नहीं। किसी भी स्थिति में अगर परमेश्वर को कोई चीज अर्पित की जाएगी, तो वह भेंट होगी। दूसरे लोग कह सकते हैं, “परमेश्वर को बहुत सारी चीजें चढ़ाई जाती हैं। क्या वह उन्हें उपयोग में ला सकता है? क्या वह उन सबका उपयोग कर सकता है?” (इसका मनुष्य से कोई मतलब नहीं है।) इसे कहने का यह सही और स्पष्ट तरीका है। ये चीजें मनुष्य परमेश्वर को अर्पित करते हैं; वह उनका उपयोग कैसे करता है और क्या वह उन सभी का उपयोग कर सकता है और वह उन्हें कैसे बाँटता और सँभालता है, इसका मनुष्य से कोई संबंध नहीं है। इसके बारे में तुम्हें चिंता करने या परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। संक्षेप में, जैसे ही कोई व्यक्ति परमेश्वर को कुछ अर्पित करता है, वह चीज भेंटों के दायरे में आ जाती है। वह परमेश्वर की है और इसका किसी व्यक्ति से कोई मतलब नहीं है। कुछ लोग कह सकते हैं, “जिस तरह से तुम यह कह रहे हो, उससे लगता है जैसे परमेश्वर उस चीज पर जबरन अधिकार जता रहा हो।” क्या यही मामला है? (नहीं।) वह चीज परमेश्वर की है, इसलिए उसे भेंट कहा जाता है। लोग उसे न छू सकते हैं, न अपनी इच्छा से आवंटित कर सकते हैं। कुछ लोग पूछ सकते हैं, “क्या यह बरबादी नहीं है?” भले ही यह बरबादी हो, लेकिन तुम्हारा इससे कोई संबंध नहीं है। दूसरे लोग कह सकते हैं, “जब परमेश्वर स्वर्ग में होता है और देहधारी नहीं होता, तो वह लोगों की चढ़ाई चीजों का आनंद नहीं ले सकता या उपयोग नहीं कर सकता। तब क्या किया जाना चाहिए?” इसका ख्याल आसानी से रखा जा सकता है : परमेश्वर का घर और कलीसिया इन चीजों को सिद्धांतों के अनुसार सँभालने के लिए हैं; तुम्हें इस बारे में चिंता करने या परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। निष्कर्ष यह है कि किसी चीज को कैसे भी सँभाला जाए, जैसे ही वह भेंटों की श्रेणी में आती है, जैसे ही उसे भेंट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, उसका मनुष्य से कोई लेना-देना नहीं रह जाता। और चूँकि वह चीज परमेश्वर की है, इसलिए लोग उसके साथ अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते—ऐसा करने के दुष्परिणाम होते हैं। पुराने नियम के युग में पतझड़ के मौसम में फसल काटते समय लोग वेदियों पर तरह-तरह की चीजें अर्पित करते थे। कुछ लोग अनाज, फल और कई अन्य फसलें भेंट करते थे, जबकि बहुत से लोग गाय और भेड़ चढ़ाते थे। क्या परमेश्वर उनका आनंद लेता था? क्या वह उन चीजों को खाता है? (नहीं।) तुम कैसे जानते हो कि वह नहीं खाता? क्या तुमने यह देखा? यह तुम्हारी धारणा है। तुम कहते हो कि परमेश्वर उन्हें नहीं खाता—अच्छा, अगर वह एक निवाला खाए, तो तुम्हें कैसे पता लगेगा? क्या यह तुम्हारी धारणाओं और कल्पनाओं के असंगत होगा? क्या कुछ लोग ऐसा नहीं मानते कि चूँकि परमेश्वर उन चीजों को नहीं खाता या उनका आनंद नहीं लेता, इसलिए उन्हें चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है? तुम इतने आश्वस्त कैसे हो सकते हो? “परमेश्वर उन्हें नहीं खाता”, क्या तुम यह बात यह सोचकर कहते हो कि वह आध्यात्मिक देह है और खा नहीं सकता या फिर यह सोचकर कहते हो कि परमेश्वर की परमेश्वर के रूप में अपनी पहचान है, वह देहयुक्त और नश्वर नहीं है और उसे इन चीजों का आनंद नहीं लेना चाहिए? क्या लोगों की चढ़ाई भेंटों का आनंद लेना परमेश्वर के लिए शर्मनाक है? (नहीं।) तब क्या यह लोगों की धारणाओं के असंगत है या यह परमेश्वर की पहचान के असंगत है? वास्तव में यह कौन सी बात है? (लोगों को इस पर चर्चा नहीं करनी चाहिए।) सही कहा—यह कोई ऐसी बात नहीं है जिसके बारे में लोगों को चिंता करनी चाहिए। तुम्हें यह तय करने की जरूरत नहीं है कि परमेश्वर को उन चीजों का आनंद लेना ही चाहिए या उसे उनका आनंद नहीं लेना चाहिए। जो तुम्हें करना चाहिए, वह करो, अपना कर्तव्य और अपने उत्तरदायित्वों और अपने दायित्वों को निभाओ—इतना ही काफी है। यह करके तुम अपना काम पूरा कर चुके होगे। जहाँ तक यह सवाल है कि परमेश्वर उन चीजों को कैसे सँभालेगा, यह उसका काम है। परमेश्वर उन्हें लोगों के साथ बाँटे या उन्हें खराब होने के लिए छोड़ दे या वह उनका थोड़ा-बहुत आनंद ले या उन पर एक नजर डाले, इस पर सवाल नहीं किए जा सकते हैं और यह वैध है। जहाँ तक इन मामलों को सँभालने की बात है, तो परमेश्वर को अपनी स्वतंत्रता है कि वह इसे कैसे करे। यह ऐसी चीज नहीं है जिसके बारे में लोगों को चिंता करनी चाहिए, न ही यह ऐसी चीज है जिस पर उन्हें कोई फैसला सुनाना चाहिए। लोगों को इन मामलों के बारे में मनमानी कल्पना नहीं करनी चाहिए, उन पर मनमाने तरीके से निर्णय सुनाने या हड़बड़ी में निष्कर्षों पर पहुँचने की बात तो और भी दूर रही। क्या अब तुम समझ गए? परमेश्वर को लोगों की चढ़ाई भेंटों को कैसे सँभालना चाहिए? (वह जैसे चाहेगा, उन्हें वैसे ही सँभालेगा।) सही कहा। जो लोग इस बात को ऐसे समझते हैं, उनमें सामान्य तर्क होता है। परमेश्वर इन चीजों को जैसे चाहेगा वैसे ही सँभालेगा। हो सकता है कि वह उन पर नजर डाल ले या उन्हें बस देखे ही नहीं या उन पर बिल्कुल भी ध्यान न दे। जब समय आए तो केवल जो भेंट करना चाहते हो, उसकी चिंता करो और जब तुम्हारी इच्छा हो तब परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार और मनुष्य की जिम्मेदारी पूरी करते हुए भेंट देने की चिंता करो। इस बारे में चिंता मत करो कि परमेश्वर ऐसे मामलों को कैसे सँभालता है और उनसे कैसे पेश आता है। संक्षेप में, तुम जो कुछ भी करते हो यदि वह परमेश्वर की अपेक्षाओं के दायरे में है, अंतरात्मा के मानक के अनुरूप है और मानवजाति के कर्तव्य, दायित्व और उत्तरदायित्व के अनुरूप है, तो इतना ही पर्याप्त है। जहाँ तक यह बात है कि परमेश्वर इन चीजों को कैसे सँभालता है और उनसे कैसा बरताव करता है, यह उसका अपना मामला है, और लोगों को इस मामले पर निर्णय या फैसला बिल्कुल नहीं सुनाना चाहिए। कुछ ही सेकंडों में तुम लोगों ने बहुत बड़ी गलती कर दी। मैंने तुम लोगों से पूछा था कि क्या परमेश्वर इन चीजों का आनंद लेता है या खाता है, तो तुमने कहा कि वह इन्हें नहीं खाता, न ही इनका आनंद लेता है। तुम्हारी गलती क्या थी? (परमेश्वर के बारे में फैसला सुनाना।) यह जल्दबाजी में सीमांकन करना और जल्दबाजी में निर्णय देना था और इससे साबित होता है कि लोग अंदर ही अंदर अभी भी परमेश्वर से माँग करते हैं। उनकी मानें तो परमेश्वर का इन चीजों का आनंद लेना गलत है और उसका आनंद न लेना भी गलत है। अगर वह आनंद लेता है तो वे कहेंगे, “तुम एक आध्यात्मिक शरीर हो, न कि देहयुक्त, नश्वर शरीर। तुम इन चीजों का आनंद क्यों लोगे? यह तो बहुत अकल्पनीय है!” और अगर परमेश्वर इन चढ़ावे की चीजों पर ध्यान नहीं देता तो लोग कहेंगे, “हमने अपना हृदय तुम्हें अर्पित करने के लिए कठोर श्रम किया है, लेकिन तुम हमारे द्वारा भेंट की गई इन चीजों पर नजर भी नहीं डालते। क्या तुम्हारे मन में हमारे लिए थोड़ी सी भी जगह है?” यहाँ भी लोग कुछ कहने से नहीं चूकते। यह विवेकहीनता है। संक्षेप में, लोगों को इस मामले को किस नजरिये से देखना चाहिए? (लोगों को परमेश्वर को वह भेंट करना चाहिए जो उन्हें करना चाहिए, और जहाँ तक यह सवाल है कि परमेश्वर इन चीजों को किस तरह से सँभालेगा, तो लोगों को इस बारे में कोई धारणा या कल्पना नहीं पालनी चाहिए, न ही उन्हें इस पर कोई फैसला सुनाना चाहिए।) हाँ—यही वह विवेक है जो लोगों में होना चाहिए। इसका संबंध उन वस्तुओं से है जो परमेश्वर को चढ़ाई जाती हैं, जो भेंटों का एक पहलू हैं। परमेश्वर को चढ़ाई जाने वाली भौतिक वस्तुओं में कई तरह की चीजें शामिल हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग भौतिक दुनिया में रहते हैं, और पैसे, सोने, चाँदी और जवाहरात के अलावा ऐसी कई और चीजें हैं जिन्हें वे बहुत अच्छी और मूल्यवान मानते हैं, और जब कुछ लोग परमेश्वर या परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचते हैं, तो वे जिसे बहुमूल्य और मूल्यवान मानते हैं, उस वस्तु को परमेश्वर को वह अर्पित करने के इच्छुक होते हैं। जब ये चीजें परमेश्वर को अर्पित की जाती हैं, तो वे भेंटों के दायरे में आ जाती हैं; वे भेंट बन जाती हैं। और साथ ही, उन वस्तुओं के भेंट बनते ही उन्हें सँभालना परमेश्वर पर निर्भर करता है—तब लोग उन्हें छू नहीं सकते, वे लोगों के नियंत्रण में नहीं रह जातीं और लोगों की नहीं रह जातीं। जब तुम परमेश्वर को एक बार कुछ अर्पित कर देते हो, तो वह परमेश्वर का हो जाता है, इसे सँभालना तुम्हारा काम नहीं रह जाता और इस मामले में तुम अब कोई हस्तक्षेप भी नहीं कर सकते। परमेश्वर उस चीज को चाहे जैसे सँभाले या उसके साथ चाहे जो बरताव करे, उससे मनुष्य का कोई लेना-देना नहीं होता। परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली भौतिक वस्तुएँ भी भेंटों का एक पहलू हैं। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या केवल पैसा और सोना, चाँदी और जवाहरात जैसी कीमती चीजें भेंट हो सकती हैं? मान लो कि किसी ने परमेश्वर को एक जोड़ी जूते, एक जोड़ी मोजे या एक जोड़ी इनसोल अर्पित किए हैं—क्या उन्हें भेंट माना जाएगा?” अगर हम भेंट की परिभाषा के अनुसार देखें, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई चीज कितनी बड़ी या छोटी है, या कितनी कीमती या सस्ती है—वह चाहे कलम या कागज का एक टुकड़ा ही हो—यदि वह परमेश्वर को चढ़ाया गया है, तो वह भेंट है।

भेंटों का एक अन्य पहलू भी है : परमेश्वर के घर या कलीसिया को दी जाने वाली वस्तुएँ। ये वस्तुएँ भी भेंटों की श्रेणी में आती हैं। ऐसी भौतिक वस्तुओं में क्या शामिल है? उदाहरण के लिए, मान लो, किसी ने एक कार खरीदी और कुछ समय तक चलाने के बाद उसे लगा कि यह थोड़ी पुरानी हो गई है, इसलिए दूसरी खरीद ली और पुरानी कार परमेश्वर के घर को दे दी, ताकि परमेश्वर का घर उसे अपने कार्य में इस्तेमाल कर सके। यह कार अब परमेश्वर के घर की हो गई। परमेश्वर के घर से संबंधित चीजें भेंटों के रूप में वर्गीकृत की जाएँ—यह उचित है। निस्संदेह कलीसियाओं और परमेश्वर के घर को उपकरण ही नहीं दिए जाते, बल्कि अन्य चीजें भी दी जाती हैं; यह दायरा काफी बड़ा है। कुछ लोग कहते हैं, “लोग अपनी कुल प्राप्तियों का जो दशमांश देते हैं, वह एक प्रकार की भेंट है, उसी प्रकार परमेश्वर को दिया गया धन और वस्तुएँ भी भेंटें होती हैं; उन्हें भेंटों के रूप में वर्गीकृत किए जाने पर हमें कोई आपत्ति नहीं है, इसमें कोई शंका नहीं है। लेकिन जो वस्तुएँ कलीसिया और परमेश्वर के घर को दी जाती हैं, उन्हें भी भेंटों में क्यों गिना जाता है? यह तर्कसंगत नहीं है।” मुझे बताओ कि क्या उन्हें भेंटों के रूप में वर्गीकृत किया जाना तर्कसंगत है? (हाँ।) और तुम लोग ऐसा क्यों कहते हो? (कलीसिया का अस्तित्व केवल परमेश्वर के अस्तित्व के कारण है और इसलिए जो कुछ कलीसिया को दिया जाता है, वह भी परमेश्वर को दी जाने वाली भेंटें है।) सही कहा। कलीसिया और परमेश्वर का घर परमेश्वर के हैं, इनका अस्तित्व केवल इसलिए है, क्योंकि परमेश्वर का अस्तित्व है; केवल कलीसिया होने के कारण ही भाई-बहनों के पास इकट्ठा होने और रहने की कोई जगह है; और केवल परमेश्वर का घर होने के कारण ही सभी भाई-बहनों की समस्याएँ हल होने की कोई जगह है, और भाई-बहनों का एक सच्चा घर है—यह सब केवल परमेश्वर के अस्तित्व की नींव पर मौजूद है। लोग कलीसिया और परमेश्वर के घर को केवल इसलिए नहीं दान करते कि कलीसिया में रहने वाले लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं और वे परमेश्वर के घर के हैं—यह सही कारण नहीं है। लोग परमेश्वर की वजह से ही कलीसिया और परमेश्वर के घर को दान देते हैं। और इसका निहितार्थ क्या है? अगर परमेश्वर न हो तो कौन कलीसिया को यूँ ही चीजें दे देगा? परमेश्वर के बिना कलीसिया का अस्तित्व नहीं होगा। जब लोगों के पास ऐसी चीजें होती हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती या जो आवश्यकता से अधिक होती हैं, तो वे उन्हें फेंक सकते हैं या अप्रयुक्त पड़ा रहने दे सकते हैं; कुछ सामान बिक भी सकता है। ये सभी उन सामानों से निपटने के तरीके हैं, है ना? तो लोग उनसे इस तरह क्यों नहीं निपटते—उन्हें कलीसिया को क्यों देते हैं? क्या यह परमेश्वर की वजह से नहीं है? (हाँ।) चूँकि परमेश्वर है, इसीलिए लोग कलीसिया को चीजें भेंट करते हैं और इसलिए जो कुछ कलीसिया या परमेश्वर के घर को दिया जाता है, उसे भेंट के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं, “मैं अपनी यह चीज कलीसिया को देता हूँ।” वह चीज कलीसिया को देना परमेश्वर को देने के बराबर है और कलीसिया और परमेश्वर के घर को ऐसी चीजों को सँभालने का पूरा अधिकार है। जब तुम कोई चीज कलीसिया को देते हो, तो उसका तुमसे संबंध नहीं रह जाता; परमेश्वर का घर और कलीसिया इन वस्तुओं को परमेश्वर के घर द्वारा परिभाषित सिद्धांतों के अनुसार समझदारी से आवंटित करेंगे, इस्तेमाल करेंगे और सँभालेंगे। और ये सिद्धांत कहाँ से आते हैं? परमेश्वर से। मूल रूप से इन वस्तुओं के उपयोग का सिद्धांत यह है कि इनका उपयोग परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए और परमेश्वर के सुसमाचार कार्य को फैलाने के लिए किया जाना चाहिए। वे किसी व्यक्ति के अनन्य उपयोग के लिए नहीं हैं, किसी समूह के उपयोग के लिए तो बिल्कुल भी नहीं हैं, बल्कि वे सुसमाचार के प्रसार-कार्य और परमेश्वर के घर के विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल करने के लिए हैं। इसलिए किसी के पास भी इन चीजों का इस्तेमाल करने का विशेष अधिकार नहीं है; उनके उपयोग और आवंटन का एकमात्र सिद्धांत और आधार परमेश्वर के घर के अपेक्षित सिद्धांतों के अनुसार है। यह उचित और उपयुक्त है।

भेंट की परिभाषा के ये तीन भाग हैं, जिनमें से प्रत्येक भाग भेंटों के एक पहलू की परिभाषा है और उसके दायरे का एक पहलू है। अब तुम सबको स्पष्ट हो गया है कि भेंट क्या है, है ना? (हाँ।) पहले कुछ लोग थे जिन्होंने कहा था कि “यह चीज पैसा नहीं है और जिस व्यक्ति ने इसे चढ़ाया उसने यह नहीं कहा कि यह परमेश्वर के लिए है। उसने बस इतना कहा था कि वह इसे भेंट कर रहा है। इसलिए यह परमेश्वर के घर के उपयोग के लिए नहीं हो सकता, और इसे परमेश्वर को तो बिल्कुल भी नहीं दिया जा सकता।” और इसीलिए उन्होंने इसका कोई लेखा-जोखा नहीं रखा और उस चीज का गुप्त रूप से अपनी इच्छानुसार उपयोग किया। क्या यह उचित है? (नहीं।) उन्होंने जो कहा वह अपने आप में अनुचित है; उन्होंने यह भी कहा कि “कलीसिया और परमेश्वर के घर को मिलने वाली भेंटें आम संपत्ति हैं—कोई भी उनका उपयोग कर सकता है,” जो स्पष्ट रूप से अनुचित बात है। अधिकतर लोग भेंटों की परिभाषा और अवधारणा के बारे में थोड़ी धुँधली और अस्पष्ट समझ रखते हैं और वास्तव में यही वजह है कि कुछ नीच खलनायक और लालची और अनुचित आकांक्षाएँ रखने वाले कुछ लोग स्थिति का लाभ उठा कर उन चीजों को हड़प लेने के बारे में सोचते हैं। अब जब तुम लोग भेंटों की सटीक परिभाषा और अवधारणा के बारे में स्पष्ट हो, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं और लोगों का सामना करने पर तुम्हारे पास पारखी समझ होगी।

भेंटों की सुरक्षा के संबंध में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ

1. भेंटों की उचित सुरक्षा करना

अब हम यह देखेंगे कि भेंटों की सुरक्षा के मामले में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ठीक-ठीक कौन सी जिम्मेदारियाँ निभानी चाहिए। भेंटों के मामले में अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले यह समझना चाहिए कि भेंटें क्या होती हैं। जब लोग अपनी प्राप्तियों का दसवाँ हिस्सा अर्पित करते हैं, तो वह भेंट होती है; जब वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वे परमेश्वर को पैसे या वस्तुएँ चढ़ा रहे हैं, तो वे भेंटें होती हैं; जब वे स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वे कलीसिया और परमेश्वर के घर को कोई वस्तु अर्पित कर रहे हैं, तो वह भेंट होती है। भेंट की परिभाषा और अवधारणा को समझ लेने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को लोगों द्वारा अर्पित की जाने वाली भेंटों की एक निश्चित समझ होनी चाहिए और उन्हें उसका प्रबंधन करना चाहिए, और इस संबंध में उपयुक्तता की उचित जाँच-पड़ताल करनी चाहिए। सबसे पहले उन्हें भरोसेमंद लोगों को ढूँढ़ना चाहिए जिनकी मानवता मानक के अनुरूप हो ताकि वे भेंटों का लेखा-जोखा व्यवस्थित रूप से रखने और उनकी सुरक्षा करने के लिए अभिरक्षक के रूप में कार्य कर सकें। यह उस कार्य का पहला हिस्सा है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना ही चाहिए। भेंटों के ये अभिरक्षक हो सकता है औसत काबिलियत के हों और अगुआ या कार्यकर्ता बनने में अक्षम हों, लेकिन उन्हें विश्वसनीय होना चाहिए और उन्हें कुछ भी गबन नहीं करना चाहिए, उनके नियंत्रण में रहते हुए भेंटें गायब न हों या उनमें घालमेल न हो और उन्हें ठीक से सुरक्षित रखा जाए। इसके लिए कार्य व्यवस्था में नियम हैं। इस काम के लिए मानक-स्तरीय मानवता वाले भरोसेमंद व्यक्ति से कम कुछ भी नहीं चलेगा। खराब मानवता वाले लोग जब कोई अच्छी चीज देखते हैं, तो वे उसे पाने के लिए लालायित हो जाते हैं और वे हमेशा इसे हथियाने के अवसरों की तलाश में रहते हैं। कुछ भी हो जाए, वे हमेशा लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। मानक-स्तरीय मानवता वाले व्यक्ति को कम-से-कम ईमानदार तो होना ही चाहिए, एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिस पर लोग भरोसा करते हों। यदि उसे भेंटों की सुरक्षा या कलीसिया की संपत्तियों का प्रबंधन करने का काम सौंपा जाता है, तो वह इसे अच्छी तरह से, ध्यानपूर्वक, लगन से और बहुत सावधानी से करेगा। उसके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है और वह इन चीजों का गबन नहीं करेगा, उन्हें उधार नहीं देगा, इत्यादि। संक्षेप में, भेंटें उसे सौंप देने के बाद तुम निश्चिंत हो सकते हो कि उसका एक भी पैसा नहीं खोएगा और एक भी वस्तु नहीं खोएगी। ऐसे व्यक्ति को अवश्य ढूँढ़ा जाना चाहिए। इसके अलावा, परमेश्वर के घर में एक नियम है कि इस तरह के केवल एक व्यक्ति को नहीं ढूँढ़ा जाना चाहिए; सबसे अच्छा होगा कि दो या तीन लोग हों—उनमें से कोई लेखा-जोखा रखेगा और कोई सुरक्षा करेगा। ऐसे लोगों के मिल जाने पर भेंटों को वर्गीकृत किया जाना चाहिए, और उनका व्यवस्थित लेखा-जोखा तैयार किया जाना चाहिए कि कौन किस श्रेणी की चीज की सुरक्षा कर रहा है, और वे कितनी सुरक्षा कर रहे हैं। उपयुक्त लोगों के मिल जाने और चीजों के सुरक्षित और श्रेणियों में पंजीकृत हो जाने पर क्या कहानी खत्म हो जाती है? (नहीं।) तो फिर आगे क्या किया जाना चाहिए? हर तीन से पाँच महीने में आवक-जावक के खातों की जाँच की जानी चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि वे सही हैं या नहीं—यानी, क्या लेखा-जोखा रखने वाले ने लेखांकन में सटीकता बरती है, क्या पंजीकरण करते समय कुछ छूट तो नहीं गया है, क्या कुल राशि आवक-जावक के खातों के अनुरूप है, इत्यादि। इस तरह के लेखांकन का काम ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए। जो अगुआ और कार्यकर्ता इस तरह के काम में बहुत पारंगत न हों, उन्हें इसके लिए किसी ऐसे व्यक्ति की व्यवस्था करनी चाहिए जो इस काम में अपेक्षाकृत कुशल हो और फिर खुद नियमित निरीक्षण करना चाहिए और उनकी रिपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए। निष्कर्ष यह है कि वे लेखांकन और समग्र योजना के काम को खुद समझते हों या नहीं, वे भेंटों की सुरक्षा का काम बिना रखवाले के नहीं छोड़ सकते, न ही वे इसकी उपेक्षा कर सकते हैं कि इस पर आगे पूछताछ ही न करें। इसके बजाय, उन्हें नियमित निरीक्षण करना चाहिए, यह पूछना चाहिए कि जिन खातों की जाँच की जा चुकी है, वे कैसे हैं और क्या वे मेल खाते हैं, और फिर खर्चों के कुछ लेखे-जोखों की मौके पर जाँच करनी चाहिए ताकि यह पता चल सके कि हाल ही में खर्च की स्थिति क्या रही है, क्या कोई बरबादी हुई है, बही-खाता किस स्थिति में है, और क्या आवक की राशियों का जावक की राशियों से मिलान हो रहा है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं की इन सभी परिस्थितियों पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए। भेंटों की सुरक्षा में यह एक काम शामिल है। क्या तुम लोग कहोगे कि यह काम आसान है? क्या इसमें कोई चुनौती है? कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “मुझे संख्याएँ पसंद नहीं हैं; उन्हें देख कर मुझे सिरदर्द होने लगता है।” तो ठीक है, निरीक्षण और पर्यवेक्षण में अपनी मदद करने के लिए एक उपयुक्त व्यक्ति ढूँढ़ो; उससे इन चीजों की जाँच-परख करने में मदद लो। हो सकता है कि तुम्हें यह काम पसंद न हो या तुम्हें यह अच्छी तरह से न आता हो, लेकिन अगर तुम जानते हो कि लोगों का उपयोग कैसे करें और लोगों का उपयोग सही ढंग से कैसे करे, तो भी तुम इस काम को अच्छी तरह से कर लोगे। इसे करने के लिए उपयुक्त लोगों का इस्तेमाल करो और तुम उनकी रिपोर्ट पर गौर कर सकते हो। इससे भी काम चल जाता है। उस काम के प्रभारी व्यक्ति के साथ सभी सुरक्षित संपत्तियों की नियमित रूप से जाँच करने और उनका मिलान करने, और फिर महत्वपूर्ण व्ययों के बारे में कुछ प्रश्न पूछने के सिद्धांत का पालन करो—क्या तुम ऐसा कर सकते हो? (हाँ।) अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य क्यों करना चाहिए? क्योंकि यह भेंटों की सुरक्षा करना है—यह तुम्हारी जिम्मेदारी है।

लोग परमेश्वर को जो चीजें भेंट करते हैं, वे परमेश्वर के आनंद के लिए होती हैं, लेकिन क्या वह उनका उपयोग करता है? क्या परमेश्वर के लिए इस धन और इन वस्तुओं का कोई उपयोग है? क्या परमेश्वर को अर्पित की जाने वाली ये भेंटें सुसमाचार कार्य फैलाने में लगाने के लिए नहीं हैं? क्या वे परमेश्वर के घर के कार्य के सभी खर्चों के लिए नहीं हैं? चूँकि वे परमेश्वर के घर के कार्य से संबंधित हैं, इसलिए भेंटों का प्रबंधन और व्यय दोनों ही में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ शामिल होती हैं। यह धन कोई भी अर्पित करे या ये वस्तुएँ कहीं से आएं, जब तक वे परमेश्वर के घर की हैं, तुमको उनका अच्छी तरह से प्रबंधन करना चाहिए और तुमको इसकी खोज-खबर लेनी चाहिए, इसका निरीक्षण करना चाहिए और इसका ध्यान रखना चाहिए। यदि परमेश्वर को अर्पित की गई भेंटों को परमेश्वर के सुसमाचार का कार्य फैलाने के लिए उचित रूप से खर्च न करके उसे अनाप-शनाप फिजूलखर्च और बरबाद किया जाता है, या कि बुरे लोग उसे हड़प लेते हैं या उस पर कब्जा कर लेते हैं, तो क्या यह उचित है? क्या यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा नहीं है? (है।) यह उनके द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा है। इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह कार्य अवश्य करना चाहिए। यह उनका अनिवार्य दायित्व है। भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना और उन्हें सुसमाचार कार्य फैलाने से लेकर परमेश्वर के प्रबंधन से संबंधित किसी भी कार्य में सही ढंग से उपयोग में लाना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है और इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। भाई-बहन बड़ी मेहनत से परमेश्वर को चढ़ाने के लिए थोड़ा पैसा बचा पाते हैं। मान लो कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं की लापरवाही और अपने कर्तव्य न निभाने के कारण यह पैसा बुरे लोगों के हाथों में चला जाता है—बुरे लोग इसे अनाप-शनाप फिजूलखर्च या बरबाद कर देते हैं या यहाँ तक कि इसे हड़प भी लेते हैं। परिणामतः, अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास यात्रा-व्यय या जीवन-यापन के खर्चों के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता और जब परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें छापने या आवश्यक उपकरण और औजार खरीदने का समय आता है, तो उनके लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं होता है। क्या यह काम में देर करना नहीं है? जब भाई-बहनों का चढ़ाया पैसा उचित उपयोग में लगाने के बजाय दुष्ट लोगों के कब्जे में चला जाता है और परमेश्वर के घर के काम के लिए पैसे खर्च करने की आवश्यकता होती है और पर्याप्त पैसा नहीं होता, तब क्या काम में बाधा नहीं आती? क्या अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल नहीं हुए होते हैं? (होते हैं।) क्योंकि अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे होते हैं और उन्होंने भेंटों का ठीक से प्रबंधन नहीं किया होता और वे अच्छे प्रबंधक नहीं रहे होते या उन्होंने इस कार्य के संबंध में अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में दिल नहीं लगाया होता है, इसलिए भेंटों का नुकसान हुआ होता है और कलीसिया का कुछ कार्य थोड़े समय के लिए पंगु हो जाता है या उसमें ठहराव आ जाता है। क्या इस स्थिति की बहुत बड़ी जिम्मेदारी अगुआओं और कार्यकर्ताओं की नहीं होती? यह अधर्म है। हो सकता है कि तुमने इन भेंटों को न हड़पा हो, फिजूलखर्च या बरबाद न किया हो और हो सकता है कि तुमने उन्हें अपनी जेब में न रखा हो, लेकिन यह स्थिति तुम्हारी लापरवाही और कर्तव्य न करने के कारण आई है। क्या तुमको इसकी जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? (लेनी चाहिए।) यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है!

II. खातों की जाँच

अपने काम में विभिन्न कार्य व्यवस्थाओं को ठीक से लागू करने और समस्याएँ हल करने के लिए सत्य पर संगति कर पाने के अलावा अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा करनी होती है। उन्हें परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार भेंटों का व्यवस्थित प्रबंधन करने के लिए उपयुक्त लोगों को ढूँढ़ना होता है और समय-समय पर खातों की जाँच करनी होती है। कुछ लोग पूछते हैं, “मैं उनकी जाँच तब कैसे कर सकता हूँ जब परिस्थितियाँ इसकी अनुमति न दें?” “परिस्थितियाँ इसकी अनुमति न दें”—क्या यह खातों की जाँच न करने का एक कारण है? परिस्थितियाँ जब इसकी अनुमति न दें, तब भी तुम उनकी जाँच कर सकते हो; यदि तुम स्वयं न जा सको तो तुम्हें किसी विश्वसनीय, उपयुक्त व्यक्ति को पर्यवेक्षण करने के लिए और यह देखने के लिए अवश्य भेजना चाहिए कि क्या अभिरक्षक भेंटों की उचित तरीके से सुरक्षा कर रहा है, क्या खातों में कोई विसंगति तो नहीं है, क्या संरक्षक विश्वसनीय है, हाल ही में उसकी स्थितियाँ कैसी रही हैं और क्या वह नकारात्मक रहा है, क्या वह कुछ खास स्थितियों का सामना करने पर डरा था और कहीं विश्वासघात की संभावना तो नहीं है। मान लो कि तुम्हें पता चलता है कि उसके परिवार के सामने पैसों की तंगी है—तो क्या यह संभव है कि वह भेंटों का गबन करे? संगति करने और स्थिति की जाँच कर तुम जान सकते हो कि अभिरक्षक काफी विश्वसनीय है, कि वह जानता है कि भेंटों को नहीं छूना चाहिए और उसके परिवार के सामने पैसों की चाहे जितनी भी तंगी क्यों न हो, उसने भेंटों पर हाथ नहीं डाला है, और लंबी अवधि के अवलोकन के माध्यम से साबित हो सकता है कि अभिरक्षक पूरी तरह से विश्वसनीय है। इतना ही नहीं, यह जाँच की जानी चाहिए कि जिस घर में भेंटें रखी जा रही हैं, उसके आस-पास का वातावरण खतरनाक तो नहीं है, बड़े लाल अजगर ने वहाँ किसी भाई-बहन को गिरफ्तार तो नहीं किया है, क्या भेंटों के अभिरक्षक को किसी खतरे का सामना तो नहीं करना पड़ा है, क्या भेंटों को किसी उपयुक्त स्थान पर रखा गया है और उन्हें स्थानांतरित किया जाना चाहिए या नहीं। अभिरक्षकों के घरों के परिवेश और परिस्थितियों का अक्सर निरीक्षण किया जाना चाहिए, ताकि किसी भी समय उचित प्रत्युत्तर और योजनाएँ तैयार की जा सकें। ऐसा करते समय तुमको समय-समय पर यह पूछताछ भी करनी चाहिए कि किस टीम ने हाल ही में नए उपकरण हासिल किए हैं और वे उपकरण कैसे प्राप्त किए गए। यदि उन्हें खरीदा गया था, तो तुमको पूछना चाहिए कि क्या किसी ने उन आवेदनों की समीक्षा की थी और खरीदने से पहले उन पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हें ऊँची कीमत पर खरीदा गया था या उचित बाजार मूल्य पर, कहीं धन अनावश्यक रूप से तो खर्च नहीं किया गया है, इत्यादि। मान लो कि खातों की जाँच और समीक्षा के माध्यम से बहीखातों में कोई समस्या नहीं मिलती है, लेकिन यह पता चल जाता है कि खरीदारी करने वाले कुछ लोग भेंटों को अक्सर अनाप-शनाप ढंग से उड़ा रहे हैं। कोई चीज कितनी भी महँगी क्यों न हो, वे उसे खरीद लेते हैं; इसके अलावा, जब उन्हें अच्छी तरह से पता होता है कि कोई उत्पाद छूट पर बिकने वाला है, मतलब कि उसकी कीमत घटेगी, तब भी वे प्रतीक्षा नहीं करते और इसके बजाय वे इसे तुरंत खरीद लेते हैं और वे अच्छी चीजें, उच्च-स्तरीय चीजें और नवीनतम मॉडल की चीजें ही खरीदते हैं। ये खरीदार सिद्धांतहीन और अनाप-शनाप ढंग से पैसा खर्च करते हैं और वे परमेश्वर के घर के लिए चीजें खरीदने में भेंट को ऐसे खर्च करते हैं मानो वे अपने दुश्मन के लिए काम कर रहे हों। वे कभी भी सिद्धांतों के अनुसार व्यावहारिक चीजें नहीं खरीदते हैं, बल्कि किसी भी दुकान से चीजें बेखटके खरीद लेते हैं, उनकी कीमत और गुणवत्ता चाहे जैसी हो। सामान ले आने के बाद वह इस्तेमाल के कुछ दिनों के भीतर टूट जाता है और ये खरीदार उसे ठीक नहीं करवाते, बल्कि नया सामान खरीद लेते हैं। खातों की जाँच और वित्तीय व्ययों की समीक्षा करते समय यदि ऐसा पाया जाता है कि कुछ लोग गंभीर रूप से फिजूलखर्ची कर रहे हैं और भेंटों को बरबाद कर रहे हैं, तो इससे कैसे निपटा जाए? क्या उन लोगों को अनुशासनात्मक चेतावनी जारी की जानी चाहिए या उनसे हर्जाना माँगा जाना चाहिए? बेशक, दोनों ही आवश्यक हैं। यदि पाया जाता है कि उनके हृदय सही जगह पर नहीं लगा है, कि वे निरेगैर-विश्वासी या छद्म-विश्वासी हैं, कि वे शैतान हैं, तो समस्या का समाधान केवल अनुशासनात्मक चेतावनी देने या उनकी काट-छाँट करने से नहीं किया जा सकता। उनके साथ सत्य पर संगति चाहे जैसे की जाए, वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे; उनकी चाहे जितनी काट-छाँट की जाए, वे इसे गंभीरता से नहीं लेंगे। अगर उनसे हर्जाना भरने के लिए कहा जाए तो वे भर देंगे, लेकिन वे भविष्य में भी ऐसे ही काम करते रहेंगे और बदलेंगे नहीं। वे निश्चित रूप से परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार काम नहीं करेंगे; इसके बजाय, वे स्वेच्छाचारी, लापरवाह और सिद्धांतहीन तरीके से काम करते रहेंगे। इस तरह के व्यक्तियों से कैसे निपटा जाए? क्या उन्हें आगे चलकर इस्तेमाल किया जा सकता है? उनका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए; अगर उनका इस्तेमाल किया जाता है तो अगुआ और कार्यकर्ता बहुत ठस हैं—वे बस निहायत मूर्ख हैं! जब ऐसे छद्म-विश्वासियों का पता चले तो उन्हें तुरंत बरखास्त कर दिया जाना चाहिए, हटा दिया जाना चाहिए और कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए। वे सेवा करने के योग्य भी नहीं हैं—वे ऐसा करने के लिए अनुपयुक्त हैं!

खातों और खर्चों की जाँच करते समय हो सकता है कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को फिजूलखर्ची और बरबादी या कुछ अविवेकपूर्ण खर्चों के मामले ही न मिलें—उन्हें यह भी पता चल सकता है कि यह कार्य कर रहे कुछ लोगों का चरित्र निम्नस्तरीय है, कि वे नीच और स्वार्थी हैं और कि उन्होंने कलीसिया के कार्य को नुकसान पहुँचाया है। तुमको अगर ऐसी स्थिति का पता चले तो तुम्हें इसे कैसे सँभालना चाहिए? इसे सँभालना आसान है : तुम्हें इसे मौके पर ही निपटाना और हल करना चाहिए—उन लोगों को बरखास्त कर दो, फिर काम करने के लिए उपयुक्त लोगों को चुनो। उपयुक्त लोगों का मतलब है ऐसे लोग जिनकी मानवता मानक स्तर की हो, जिनके पास अंतरात्मा और विवेक हो और जो परमेश्वर के घर के सिद्धांतों के अनुसार चीजों को सँभालने में सक्षम हों। जब वे परमेश्वर के घर के लिए खरीदारी करेंगे, तो ऐसी किफायती चीजें खरीदेंगे जो अपेक्षाकृत व्यावहारिक और टिकाऊ भी हों और जिन्हें खरीदना जरूरी हो। जरूरी नहीं कि वे सस्ती चीजें ही खरीदने पर आमादा हों, लेकिन उन्हें सबसे महंगी चीजें खरीदने की जरूरत भी महसूस नहीं होनी चाहिए; एक समान उत्पादों के समूह में से वे उन उत्पादों को चुनेंगे जिनकी समीक्षाएँ और प्रतिष्ठा अच्छी होंगी, साथ ही मूल्य भी उचित होगा और यदि उनकी वारंटी लंबी होगी, तो निश्चित रूप से यह सोने पर सुहागा होगा। परमेश्वर के घर के वास्ते खरीदारी करने के लिए तुम्हें ऐसे ही लोग ढूँढ़ने चाहिए। उनका हृदय सही जगह लगा होना चाहिए और अपने कार्यकलापों में उन्हें परमेश्वर के घर को ध्यान में रखना चाहिए और उन्हें चीजों के हर पहलू पर गहराई से सोचने वाला होना चाहिए; उन्हें परमेश्वर के घर की आवश्यकताओं के अनुसार चीजों को सँभालना चाहिए और बिना किसी वाक्छल के स्पष्टता से अच्छे व्यवहार के साथ कार्य और आचरण करना चाहिए। जब तुम्हें कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए तो उसे परमेश्वर के घर के लिए कुछ चीजें सँभालने दो और उसका प्रेक्षण करो। यदि वह अपेक्षाकृत उपयुक्त लगता है, तो उसका उपयोग किया जा सकता है। लेकिन एक बार यह व्यवस्था हो जाने भर से कहानी खत्म नहीं होती—आगे चलकर तुम्हें उससे मिलना चाहिए, उसके साथ संगति करनी चाहिए और उसके कार्य का निरीक्षण करना चाहिए। कुछ लोग पूछते हैं, “क्या ऐसा इसलिए करना चाहिए कि उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता?” ऐसा पूरी तरह से भरोसा न होने के कारण नहीं है—भले उस पर भरोसा किया जा सकता हो, फिर भी कभी-कभी निरीक्षण किया जाना चाहिए। और किस बात का निरीक्षण किया जाना चाहिए? देखो कि क्या जिन स्थितियों में उसने सिद्धांतों को नहीं समझा होता उनमें उसके व्यवहार में कोई विचलन हुआ है या कि उसकी समझ में कोई विकार आ गया है। यह जरूरी है कि जाँच करके उसकी मदद की जाए। उदाहरण के लिए, मान लो कि वह कहता है कि बाजार में कोई वस्तु बहुत लोकप्रिय है, लेकिन उसे नहीं पता कि परमेश्वर के घर में उसका उपयोग है या नहीं, और वह चिंतित है कि यदि वह इसे अभी नहीं खरीदता है तो भविष्य में उसकी बिक्री बंद हो जाएगी। वह तुमसे पूछता है कि इसे कैसे सँभालना है। यदि तुम नहीं जानते, तो तुम्हें उसे किसी ऐसे व्यक्ति से पूछने को भेजना चाहिए जो उस पेशेवर काम में शामिल हो। वह पेशेवर तब कहता है कि वह वस्तु एक तरह की नवीन चीज है जो अधिकांश समय काम नहीं आएगी और उस पर पैसा खर्च करने की कोई आवश्यकता नहीं है। पेशेवर की राय को देखते हुएयह तय किया जाएगा कि उस वस्तु को खरीदने की कोई जरूरत नहीं है, कि उसे खरीदना बेकार होगा और उसे अभी न खरीदने से कोई नुकसान नहीं होगा। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को अपना काम इस हद तक करना चाहिए। कोई भी चीज चाहे कितनी भी महत्वपूर्ण या तुच्छ क्यों न हो, अगर वे उसे देख सकते हैं, उसके बारे में सोच सकते हैं या उसके बारे में पता लगा सकते हैं, तो उन्हें बराबर खोज-खबर लेनी चाहिए और निरीक्षण करना चाहिए और यह काम परमेश्वर के घर की अपेक्षाओं के अनुसार निर्धारित तरीके से करना चाहिए। अपनी जिम्मेदारी निभाने का यही मतलब है।

कुछ लोग अक्सर कुछ वस्तुएं खरीदने के लिए आवेदन करते हैं, परमेश्वर के घर से इन उत्पादों को खरीदने के लिए कहते हैं, और सावधानीपूर्वक समीक्षा और जाँच में आमतौर पर पाया जाता है कि अनुरोध की गई पाँच में से केवल एक चीज खरीदने की आवश्यकता है, अन्य चार खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसे मामलों में क्या किया जाना चाहिए? जिन वस्तुओं के लिए उन्होंने आवेदन किया होता है, उनके बारे में कड़ाई से समीक्षा और विचार किया जाना चाहिए, उन्हें जल्दबाजी में नहीं खरीदना चाहिए। उन्हें सिर्फ इसलिए नहीं खरीदा जाना चाहिए क्योंकि ये लोग कहते हैं कि काम के लिए उनकी आवश्यकता है—लोगों को अपने काम की आड़ में मनमाने ढंग से चीजों के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ये लोग चाहे कोई भी आड़ लें और कितनी भी अत्यावश्यकता दिखाएं, अगुआओं और कार्यकर्ताओं या भेंटों के प्रबंधन के प्रभारी लोगों को बिल्कुल स्थिरचित्त रहना चाहिए। उन्हें बड़ी गंभीरता से इन चीजों का निरीक्षण और जाँच करनी चाहिए; थोड़ी सी भी त्रुटि नहीं होनी चाहिए। जिन चीजों को बिल्कुल खरीदा जाना चाहिए, उन पर शोध किया जाना चाहिए और अगुआओं द्वारा उन्हें हरी झंडी दी जानी चाहिए और यदि उन्हें खरीदना वैकल्पिक है, तो उन्हें अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए, स्वीकृति नहीं देनी चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस काम को ध्यानपूर्वक, ठोस तरीके से और गहराई से करते हैं, तो इससे भेंटों की फिजूलखर्ची और बरबादी की घटनाएं कम होंगी, और इससे भी बड़ी बात यह कि इससे अनुचित व्यय निश्चित रूप से कम होगा। यह काम केवल बहीखातों में दर्ज आवक-जावक को ध्यान से देखने का या संख्या जानने भर का मामला नहीं है। यह गौण है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम्हारा हृदय सही जगह पर लगा होना चाहिए और तुम्हें हर खर्च और हर प्रविष्टि को ऐसे देखना चाहिए जैसे कि यह तुम्हारे अपने बैंक खाते की कोई प्रविष्टि हो। तब तुम उन्हें सावधानी से देखोगे तो तुम उन्हें याद रख पाओगे और समझ पाओगे—और अगर कोई गलती या समस्या है, तो उसे बता पाओगे। अगर तुम उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति के खाते या सार्वजनिक खाते के रूप में देखते हो, तो निश्चित रूप से तुम्हारी आँखें और दिमाग बंद हो जाएँगे, किसी भी समस्या को खोजने में असमर्थ होंगे। कुछ लोग बैंक में थोड़ा पैसा जमा करते हैं, और हर महीने अपना खाता-विवरण पढ़ते हैं और ब्याज पर नजर डालते हैं, फिर खातों की जाँच करते हैं—वे यह जाँचते हैं कि वे हर महीने कितना खर्च करते हैं, कितनी बार निकासी करते हैं और कितना जमा करते हैं। प्रत्येक प्रविष्टि उनके दिमाग में दर्ज होती है, वे हर संख्या को उतनी अच्छी तरह से जानते हैं जितना कि अपने घर का पता और अपने दिमाग में वे उनके बारे में स्पष्ट होते हैं। कहीं कोई समस्या उत्पन्न होने पर वे उसे एक नजर में पहचान सकते हैं और वे छोटी सी भी गलती को नजरअंदाज नहीं करते। लोग अपने धन के प्रति इतने सावधान हो सकते हैं, लेकिन क्या वे परमेश्वर की भेंटों के प्रति भी इतनी ही चिंता दिखाते हैं? मेरी राय में 99.9% लोग ऐसा नहीं करते, इसलिए जब परमेश्वर की भेंटें सुरक्षा के लिए लोगों को सौंप दी जाती हैं, तो फिजूलखर्ची और बरबादीबरबादी और विभिन्न प्रकार के अनुचित व्यय के मामले अक्सर होते हैं, फिर भी कोई इसे समस्या नहीं मानता और इस कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों की अंतरात्मा भी कभी इसकी पीड़ा महसूस नहीं करती। सौ डॉलर खोने की तो बात ही छोड़ो, यहाँ तक कि अगर वे हजार, दस हजार भी खो देते हैं, तो भी उन्हें अपने दिल में कोई धिक्कार, अपराध बोध या दोष महसूस नहीं होता। जब यह मामला आता है तो लोग इतने भ्रमित क्यों होते हैं? क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि ज्यादातर लोगों के हृदय सही जगह पर नहीं लगे हैं? ऐसा कैसे होता है कि तुम इस बारे में तो खूब स्पष्ट होते हो कि तुमने बैंक में अपना कितना पैसा जमा किया है? जब परमेश्वर के घर का पैसा अस्थायी रूप से तुम्हारे खाते में जमा किया जाता है, ताकि तुम उसे सुरक्षित रखो, तो तुम इसे गंभीरता से नहीं लेते या इसकी परवाह नहीं करते। यह कैसी मानसिकता है? जब परमेश्वर की भेंटों की सुरक्षा की बात आती है, तो तुम निष्ठावान भी नहीं होते, तो क्या तुम अभी भी परमेश्वर में विश्वास करते हो? भेंटों के प्रति लोगों का रवैया परमेश्वर के प्रति उनके रवैये का सबूत है—भेंटों के प्रति उनका रवैया बहुत कुछ बताता है। लोग भेंटों के प्रति उदासीन होते हैं और उन्हें इसे लेकर कोई चिंता नहीं होती। भेंटें अगर खो जाएं तो उन्हें दुख नहीं होता; वे जिम्मेदारी नहीं लेते और उन्हें परवाह नहीं होती। तो क्या परमेश्वर के प्रति भी उनका ऐसा ही रवैया नहीं होता है? (होता है।) क्या कोई कहता है कि “परमेश्वर की भेंटें उसी की हैं। जब तक मैं उसके लिए ललचाता नहीं या उसे हड़पता नहीं हूँ तब तक सब ठीक है। जो कोई भी उन्हें हड़पेगा, वह दंडित किया जाएगा—यह उन लोगों का मामला है और वे इसी के लायक हैं। मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं है। इस पर चिंता करना मेरा दायित्व नहीं है”? क्या यह कथन सही है? स्पष्टतः यह सही नहीं है। तब इसमें क्या गलत है? (उनके हृदय ठीक नहीं हैं; वे परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा नहीं करते और वे भेंटों की संरक्षा नहीं करते।) इस तरह के व्यक्ति की मानवता कैसी होती है? (यह स्वार्थी और नीच होती है। वह अपनी चीजों की बहुत परवाह करते हैं और उनकी बहुत अच्छी तरह से रक्षा करता है, लेकिन परमेश्वर की भेंटों की परवाह नहीं करता या उसके बारे में खोज-खबर नहीं रखता। ऐसे लोगों की मानवता इतनी घटिया होती है।) मुख्य रूप से ऐसा व्यक्ति स्वार्थी और नीच है। क्या ऐसे लोग निर्दयी नहीं हैं? वे स्वार्थी और नीच, निर्दयी हैं और मानवीय भावनाओं से रहित हैं। क्या ऐसे लोग परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं? क्या वे उसके प्रति समसर्पण कर सकते हैं? क्या उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय हो सकता है? (नहीं।) तो फिर ऐसे लोग परमेश्वर का अनुसरण किसलिए करते हैं? (आशीष पाने के लिए।) क्या यह घोर शर्मनाक नहीं है? कोई व्यक्ति परमेश्वर की भेंटों के साथ कैसा व्यवहार करता है, यह उसकी प्रकृति को सबसे ज्यादा बेनकाब करता है। लोग वास्तव में परमेश्वर के लिए कुछ भी करने में सक्षम नहीं होते। अगर वे थोड़ा-बहुत कर्तव्य करने में सक्षम होते भी हैं, तो वह बहुत सीमित होता है। अगर तुम परमेश्वर की भेंटों के साथ भी ठीक से पेश नहीं आ सकते या उनकी अच्छी तरह से सुरक्षा नहीं कर सकते, अगर तुम उस तरह का दृष्टिकोण और रवैया रखते हो, तो क्या तुममें मानवता का सबसे अधिक अभाव नहीं है? क्या तुम्हारा यह कहना झूठ नहीं है कि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो? क्या यह छलपूर्ण नहीं है? यह बहुत छलपूर्ण है! इस तरह के व्यक्ति में मानवता बिलकुल भी नहीं होती—क्या परमेश्वर ऐसे घटिया लोगों को बचाएगा?

III. सभी प्रकार के खर्चों पर अनुवर्ती पूछताछ करना, उन पर ध्यान देना और निरीक्षण करना, कड़ी जाँच-परख करना

परमेश्वर के घर का अच्छा प्रबंधक होने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को जो पहला काम अच्छी तरह से करना चाहिए, वह है भेंटों का उचित प्रबंधन करना। भेंटों की उचित सुरक्षा करने के अलावा उन्हें भेंटों से होने वाले व्ययों के संबंध में कड़ी जाँच-परख करनी चाहिए। कड़ी जाँच-परख करने का क्या मतलब है? मुख्य रूप से इसका मतलब है अनुचित व्ययों को पूरी तरह से समाप्त करना और भेंटों की फिजूलखर्ची या बरबादी होने देने की बजाय हर खर्च को उचित और प्रभावी बनाने का प्रयास करना। अगर फिजूलखर्ची या बरबादी के मामले मिलें, तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को न केवल उन्हें तुरंत रोकना चाहिए, बल्कि उसकी जवाबदेही भी तय करनी चाहिए और काम करने के लिए उपयुक्त लोगों की पहचान भी करनी चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को ठीक-ठीक पता होना चाहिए कि प्रत्येक खर्च कहाँ हो रहा है और उनके प्रबंधन के दायरे में प्रत्येक व्यय किस चीज के लिए है—उन्हें इन चीजों की कड़ाई से समीक्षा करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर किसी कमरे में पंखा नहीं है, तो उन्हें ये मापदंड निर्धारित करने चाहिए कि इसे कौन खरीदेगा, इस पर कितना खर्च किया जाएगा और इसमें किन क्रियात्मक-सुविधाओं का होना सबसे उपयुक्त होगा। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कहते हैं, “हम व्यस्त हैं; हम इसे खरीदने का समय नहीं निकाल सकते।” तुमसे इसे स्वयं खरीदने के लिए नहीं कहा जा रहा है। तुम्हें इस कार्य को सँभालने के लिए एक अच्छे व्यक्ति, एक काबिल व्यक्ति को लाना चाहिए। किसी ऐसे बुरे व्यक्ति को न लाओ जो मूर्ख हो और जिसका हृदय सही जगह न लगा हो। सामान्य मानवता के लोग जानते हैं कि उन्हें ऐसी चीजें खरीदनी हैं जिनमें उचित क्रियात्मक-सुविधाएं हों और उनका मूल्य भी उचित हो—उनमें बहुत ज्यादा क्रियात्मक सुविधाओं का होना बेमतलब है और उनकी कीमत भी काफी अधिक होती है। इसके विपरीत आनंद की तलाश में रहने वाले जिन लोगों के हृदय सही जगह नहीं लगे होते, वे ऐसी अव्यावहारिक चीजें खरीदते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार की क्रियात्मक सुविधाएं होती हैं और जिनकी कीमत अधिक होती है। खरीदारों के पास विवेक होना चाहिए; उन्हें सिद्धांतों की समझ होनी चाहिए। खरीदी गई वस्तुएँ व्यावहारिक और किफायती होनी चाहिए और सबको लगना चाहिए कि ये उपयुक्त हैं। अगर तुम्हें कोई ऐसा गैर-जिम्मेदार व्यक्ति मिलता है जो इसे खरीदने के लिए अनाप-शनाप खर्च करते हुए फिजूलखर्ची पसंद करता है तो वह एक पंखे की कीमत पर खर्च होने वाली रकम से दस गुना ज्यादा कीमत पर एक बेहतरीन एयर कंडीशनर खरीदेगा। वह मानता है कि हालांकि इसमें थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च होता है, लेकिन पहली प्राथमिकता लोगों को दी जानी चाहिए—एयर कंडीशनर न केवल हवा को साफ करता है, बल्कि यह नमी और तापमान को भी समायोजित कर सकता है और इसमें कई तरह के टाइमर और सेटिंग हैं। क्या यह बरबादी नहीं है? यह बरबादी और फिजूलखर्ची है। वह व्यक्ति केवल मौज-मस्ती पर आमादा है और वह रोमांच के लिए, दिखावे के लिए पैसे खर्च कर रहा है, व्यावहारिक चीजें खरीदने के लिए नहीं। ऐसे लोगों के हृदय गलत जगह पर लगे होते हैं। अगर वे अपने लिए खरीदारी करते हैं, तो वे पैसे बचाने के तरीके खोजते हैं, छूट वाली चीजें ढूँढ़ते हैं और मोल-भाव करने की कोशिश करते हैं। वे जितने पैसे बचा सकते हैं, उतने बचाते हैं—जितना सस्ता मिले, उतना अच्छा। लेकिन जब वे परमेश्वर के घर के लिए खरीदारी करते हैं, तो वे चाहे जितना पैसा खर्च कर दें, उन्हें कोई परवाह नहीं होती। वे सस्ती चीजों को देखते का भी कष्ट नहीं करते; वे सिर्फ महँगी, उच्च-स्तरीय और अत्याधुनिक चीजें खरीदना चाहते हैं। इसका मतलब है कि उनके हृदय सही जगह पर नहीं लगे होते हैं। क्या ऐसे लोगों का इस्तेमाल किया जा सकता है जिनके हृदय गलत जगह पर लगे होते हैं? (नहीं।) जिन लोगों के हृदय गलत जगह पर लगे होते हैं वे परमेश्वर के घर के लिए काम करते समय सिर्फ बेतुके और बेकार काम करते हैं। वे सही चीजों पर पैसा खर्च नहीं करते; वे भेंटों का केवल अपव्यय और बरबादी करते हैं और उनका हर खर्च अनुचित होता है।

कुछ अन्य लोगों की दरिद्र मानसिकता होती है और उनका मानना होता है कि परमेश्वर के घर के लिए खरीदारी करते समय उन्हें सबसे सस्ती चीजें खरीदनी चाहिए—कोई चीज जितनी सस्ती होगी, उतना अच्छा रहेगा। उन्हें लगता है कि इससे परमेश्वर के घर का पैसा बच रहा है, इसलिए वे केवल अप्रचलित और घटे दामों वाली चीजें खरीदते हैं। नतीजतन वे सबसे सस्ती मशीनें खरीदते हैं जो घटिया होती हैं। ये मशीनें इस्तेमाल होते ही टूट जाती हैं और उनकी मरम्मत नहीं हो सकती और वे इस्तेमाल के लायक नहीं रह जातीं। फिर ऐसी दूसरी मशीनें खरीदनी पड़ती हैं जो पर्याप्त गुणवत्ता वाली हों और जिनका सामान्य रूप से इस्तेमाल किया जा सके और इस तरह एक और रकम खर्च हो जाती है। क्या यह मूर्खता नहीं है? ऐसे लोगों को कंजूस और दरिद्र मानसिकता वाला कहा जाना चाहिए। वे हमेशा परमेश्वर के घर का पैसा बचाना चाहते हैं, और उनकी सारी कंजूसी और बचत का क्या नतीजा निकलता है? यह पैसों की बरबादी, फिजूलखर्ची साबित होती है। वे अपने पक्ष में बहाने भी बनाते हैं : “मैंने यह जानबूझकर नहीं किया। मेरे इरादे नेक थे—मैं बस परमेश्वर के घर का पैसा बचाने की कोशिश कर रहा था—मैं अंधाधुँध तरीके से पैसा खर्च नहीं करना चाहता था।” क्या उनका ऐसा न करना चाहना उपयोगी है? वास्तव में वे अंधाधुँध तरीके से पैसा खर्च कर रहे हैं, उनकी वजह से बरबादी भी होती है और इसमें धन और जनशक्ति भी जाया होती है। ऐसे लोगों का भी उपयोग नहीं किया जा सकता है—वे मंदबुद्धि हैं, पर्याप्त समझदार नहीं हैं। संक्षेप में, जिन लोगों के हृदय गलत जगह लगे रहते हैं उनका और मंदबुद्धि लोगों का उपयोग परमेश्वर के घर की खरीदारी करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। जिनका इस्तेमाल किया जाना चाहिए उन्हें समझदार होना चाहिए और उनके पास खरीदारी का एक निश्चित अनुभव और एक निश्चित काबिलियत हो और वे बिना किसी विकृत तरीके से हर चीज देख सकते हों। जो भी खरीदा जा रहा हो, वह व्यावहारिक होना चाहिए और उसकी कीमत उचित होनी चाहिए, और अगर वह टूटे भी, तो उसे ठीक करना आसान होना चाहिए और उसके पुर्जे आसानी से मिल जाने चाहिए। यही उचित है। कुछ लोग कोई चीज खरीदने के बाद देखते हैं कि उसे एक महीने में वापस किया जा सकता है और वे उसका परीक्षण करने के लिए दौड़ पड़ते हैं और उन्हें एक महीने के भीतर ही परिणाम मिल जाते हैं। अगर कोई चीज थोड़ी खराब है और ठीक से काम नहीं करती, तो वे उसे तुरंत वापस कर देते हैं और कोई दूसरी चीज खरीद लेते हैं, जिससे नुकसान कम होता है। इन लोगों की मानवता अपेक्षाकृत अच्छी होती है। मानवताहीन लोग कोई चीज खरीदते हैं और फिर उसे एक ओर फेंक देते हैं। वे उसे आजमा कर यह भी नहीं देखते कि उसमें कुछ गड़बड़ है या नहीं या वह टिकाऊ है या नहीं, न ही वे यह देखते हैं कि उसकी वारंटी कितनी लंबी है या कितने समय के भीतर उसे वापस किया जा सकता है—उन्हें इनमें से किसी की भी बात की परवाह नहीं होती। जब किसी दिन अचानक उन्हें उस वस्तु में दिलचस्पी होती है, तो वे उसे लेते हैं और आजमाते हैं, लेकिन पाते हैं कि वह तो टूटी पड़ी है। तब वे रसीद देखते हैं और पाते हैं कि वापसी की अवधि बीत चुकी है और उस वस्तु को अब वापस नहीं किया जा सकता। फिर वे कहते हैं, “तो फिर दूसरा खरीद लेते हैं।” क्या यह बरबादी नहीं है? “चलो दूसरा खरीद लेते हैं”—इस वाक्यांश के साथ ही परमेश्वर के घर को एक और धनराशि चुकानी पड़ती है। दूसरी वस्तु खरीदने के लिए आवेदन करना ऊपरी तौर पर कलीसिया के काम की खातिर और एक उचित खर्च लगता है, जबकि वास्तव में यह सब उनके द्वारा वस्तु खरीदने के तुरंत बाद जाँच न करके अपने कर्तव्यों में बेख्याली की वजह से होता है। भेंटों की एक राशि बरबाद हो जाती है, और दूसरी राशि का भुगतान किया जाता है, और नई वस्तु की सुरक्षा के लिए अभी भी कोई जिम्मेदार नहीं है, इसलिए यह भी थोड़े समय तक इस्तेमाल के बाद टूट जाती है। यह आश्चर्यजनक है कि इन चीजों पर निगाह रखने वाला कोई नहीं है, पैदा होने वाली समस्याओं को सँभालने वाला कोई नहीं है—अगुआ और कार्यकर्ता क्या कर रहे हैं? इस कार्य के संबंध में उन्होंने अपने कर्तव्यों की पूरी तरह से उपेक्षा की है—उन्होंने पर्यवेक्षण, निरीक्षण और जाँच-परख करने का अपना काम नहीं किया है और इसलिए भेंटें इस तरह से फिजूलखर्च और बरबाद हुईं। यदि खरीदारी करने वाले लोगों में जिम्मेदारी की भावना हो तो वे खरीदी गई चीजें व्यावहारिक नजर न आने पर तुरंत वापस कर देंगे। इससे नुकसान और बरबादी कम होती है। अगर वे ऐसे गैर-जिम्मेदार लोग हैं जिनके हृदय गलत जगह पर लगे हैं, तो वे घटिया चीजें खरीदेंगे, जिससे भेंटों की बरबादी होगी। तो धन की इस हानि के लिए वास्तव में किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? क्या खरीदार और अगुआ और कार्यकर्ता सभी इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? अगर अगुआओं और कार्यकर्ताओं ने इस मामले को गंभीरता से, ठोस तरीके से और सावधानी से सँभाला होता, तो क्या ये समस्याएँ खोज न ली गई होतीं? क्या इन खामियों को ठीक नहीं कर लिया गया होता? (उन्हें ठीक कर लिया गया होता।) अगर अगुआ और कार्यकर्ता अक्सर विभिन्न स्थानों पर कलीसियाओं में जाकर भेंटों के व्यय की स्थिति का निरीक्षण करें, तो वे समस्याएँ पता लगा लेंगे और इस तरह की फिजूलखर्ची और बरबादी को खत्म कर पाएंगे। अगर अगुआ और कार्यकर्ता आलसी और गैरजिम्मेदार हों, तो अनुचित खर्चों, फिजूलखर्ची और बरबादी के ये मामले बार-बार सामने आएंगे—वे बढ़ते रहेंगे। इस बढ़ोतरी का क्या कारण है? क्या इसका कुछ संबंध अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा वास्तविक कार्य न करने और इसके बजाय खुद को दूसरों से ऊपर रखने और अप्रभावी अधिकारियों की तरह काम करने से नहीं है? (है।) ऐसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास अंतरात्मा या विवेक नहीं होता और उनमें कोई मानवता नहीं होती। क्योंकि कलीसिया द्वारा खर्च किया जाने वाला सारा पैसा परमेश्वर के घर का होता है और यह सब परमेश्वर को मिली भेंटें हैं और उन्हें लगता है कि इसका उनसे कोई लेना-देना नहीं है, इसलिए वे न तो इसकी परवाह करते हैं और न ही इसके बारे में पूछते हैं और इसकी उपेक्षा करते हैं। ज्यादातर लोगों का मानना है कि परमेश्वर के घर का पैसा खर्च किया जाना चाहिए और इसे किसी भी तरह से खर्च करना ठीक है, यदि वे इसे जेब में न डालें या गबन न करें, तब तक इसकी बरबादी से कोई फर्क नहीं पड़ता, और ऐसा करके लोग सिर्फ अनुभव खरीदते हैं और अपने क्षितिज को व्यापक बनाते हैं। अगुआ और कार्यकर्ता इस पर आँखें मूँद लेते हैं : “कोई भी उस पैसे को जैसे चाहे खर्च कर सकता है और जो चाहे खरीद सकता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कितनी बरबादी हुई है—जो भी धन की बरबादी करता है, वही इसके लिए जिम्मेदार है और उसे भविष्य में प्रतिफल और दंड का सामना करना पड़ेगा—इसका मुझसे कोई मतलब नहीं है। आखिरकार मैं तो इसे खर्च नहीं कर रहा हूँ और मेरा पैसा तो खर्च नहीं हो रहा है।” क्या यह वही दृष्टिकोण और रवैया नहीं है जो गैर-विश्वासी लोग सार्वजनिक धन के खर्च के प्रति रखते हैं? यह वैसे ही है जैसे वे अपने दुश्मनों के पैसे खर्च कर रहे हों। गैर-विश्वासी लोग किसी कारखाने में काम करते हों और अगर प्रबंधन ढीला हो, तो सामुदायिक सामान हमेशा चोरी हो जाता है और लोगों के घरों में पहुँच जाता है या लापरवाही से बरबाद कर दिया जाता है और अगर कुछ टूट जाता है तो वे कारखाने से नया सामान खरीदने को कहते हैं। जब वे कारखाने के लिए खरीदारी करते हैं तो वे विशेष रूप से अच्छी और महँगी चीजें खरीदते हैं। कुछ भी हो, बिना किसी ऊपरी सीमा के पैसा मनमाने ढंग से खर्च किया जाता है। अगर परमेश्वर में विश्वास करने वाले भी भेंटों के प्रति ऐसी मानसिकता रखते हैं तो क्या उन्हें बचाया जा सकता है? क्या परमेश्वर ऐसे लोगों के समूह पर काम करेगा? (नहीं।) अगर परमेश्वर की भेंटों के प्रति लोगों का ऐसा रवैया है तो मेरे बताए बिना ही तुम्हें जान लेना चाहिए कि उन लोगों के प्रति परमेश्वर का रवैया कैसा है।

परमेश्वर के प्रति किसी व्यक्ति का रवैया जिस तरीके से सबसे प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होता है, वह है भेंटों के प्रति उसका रवैया। भेंटों के प्रति तुम्हारा जो भी रवैया होता है, वही रवैया तुम्हारा परमेश्वर के प्रति भी होता है। यदि तुम भेंटों के साथ वैसा ही व्यवहार करते हो, जैसे तुम अपने बैंक खाते की प्रविष्टियों के साथ करते हो—पूरे ध्यान से, सावधानी से, सतर्कता से, कठोरता से, जिम्मेदारी से और सजगता से—तो परमेश्वर के प्रति तुम्हारा रवैया कमोबेश ऐसा ही होता है। यदि भेंटों के प्रति तुम्हारा रवैया सार्वजनिक संपत्ति के प्रति या बाजार में सब्जियों के बारे में तुम्हारे रवैये जैसा है—अपनी जरूरत की कुछ सब्जियाँ लापरवाही से खरीद लेना और जो सब्जियाँ तुमको पसंद नहीं हैं उनकी ओर देखना भी नहीं, वे चाहे जहाँ कहीं रखी हों उन्हें अनदेखा करना और इस बात की परवाह न करना कि कोई उन्हें ले जाएगा और इस्तेमाल करेगा, जब वे जमीन पर गिरी थीं और किसी ने उन पर पैर रखा था तो ऐसा दिखावा करना कि तुमने देखा ही नहीं, यह मानना कि इन सब बातों का तुमसे कोई संबंध नहीं है—तो यह तुम्हारे के लिए मुश्किल खड़ी करेगा। यदि भेंटों के प्रति तुम्हारा रवैया ऐसा ही है, तो क्या तुम जिम्मेदार व्यक्ति हो? क्या तुम जैसा व्यक्ति किसी कर्तव्य को ठीक से निभा सकता है? यह स्पष्ट है कि तुममें कैसी मानवता है। संक्षेप में, भेंटों के प्रबंधन कार्य में अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मुख्य जिम्मेदारी उन्हें अच्छी तरह से सुरक्षित रखने के अलावा यह है कि उन्हें बाद के कार्य की खोज-खबर लेनी चाहिए—सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें नियमित रूप से खातों की जाँच करनी चाहिए, साथ ही सभी प्रकार के खर्चों के बारे में खोज-खबर, जाँच और निरीक्षण तथा जाँच-परख करनी चाहिए। उन्हें अनुचित व्ययों को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए ताकि वे फिजूलखर्ची और बरबादी का कारण न बनें; और यदि अनुचित व्यय पहले से ही ऐसी चीजों को जन्म दे चुके हैं तो अगुआओं और कार्यकर्ताओं द्वारा दोषियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, उन्हें चेतावनी देनी चाहिए और उनसे हर्जाना वसूलना चाहिए। यदि तुम यह काम भी अच्छी तरह से नहीं कर सकते तो फौरन इस्तीफा दे दो—अगुआ या कार्यकर्ता का पद न कब्जाए रखो, क्योंकि तुम यह काम नहीं कर सकते। यदि तुम इस काम का प्रभार भी नहीं सँभाल सकते और इसे अच्छी तरह से नहीं कर सकते, तो तुम कौन सा काम कर सकते हो? मुझे व्यवस्थित रूप से बताओ कि भेंटों के संबंध में कुल कितने कार्य हैं जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करने चाहिए? (पहला है उन्हें सुरक्षित रखना। दूसरा है खातों की जाँच करना। तीसरा है सभी प्रकार के व्ययों की अनुवर्ती कार्रवाई करना, उनकी जाँच करना और उनका निरीक्षण करना और कड़ाई से जाँच-परख करना; अनुचित व्ययों को समाप्त किया जाना चाहिए और जो कोई भी फिजूलखर्ची या बरबादी करे, उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और उससे हर्जाना वसूला जाना चाहिए।) क्या इन चरणों के अनुसार काम करना आसान है? (हाँ।) यह काम करने का एक स्पष्ट रूप से चिह्नित तरीका है। यदि तुम इतना सरल काम भी नहीं कर सकते, तो अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में—परमेश्वर के घर के प्रबंधक के रूप में तुम क्या कर सकते हो? हर मोड़ पर भेंटों की बरबादी और फिजूलखर्ची के उदाहरण हैं, और यदि अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है और तुम इसके बारे में जरा भी बुरा महसूस नहीं करते, तो क्या तुम्हारे दिल में परमेश्वर है भी—क्या वहाँ उसकी कोई जगह है? यह संदिग्ध है। तुम कहते हो कि तुम्हारा परमेश्वर-प्रेमी हृदय बड़ा है और तुम्हारा हृदय वास्तव में परमेश्वर का भय मानने वाला है, फिर भी जब उसकी भेंटों की इस तरह से फिजूलखर्ची और बरबादी होती है, तो तुम्हें किसी तरह इसकी कोई जानकारी नहीं होती और तुम्हें इससे बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता—क्या यह तुम्हारे परमेश्वर के प्रति प्रेम और भय पर प्रश्नचिह्न नहीं लगाता? (लगाता है।) परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम और भय की तो बात ही छोड़ो, तुम्हारी तो आस्था भी संदिग्ध है। परमेश्वर के प्रति तुम्हारे प्रेम और भय की बात पुष्ट नहीं होती—यह टिकने योग्य नहीं है! भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा करना एक ऐसा दायित्व है जिसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं को निभाना चाहिए और यह उनकी अपरिहार्य जिम्मेदारी भी है। यदि भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा नहीं की जाती, तो यह उनकी ओर से कर्तव्य की उपेक्षा है—कहा जा सकता है कि जो लोग भेंटों की सुरक्षा खराब तरीके से करते हैं वे नकली अगुआ और नकली कार्यकर्ता हैं।

IV. भेंटों के ठिकाने के साथ-साथ उनके अभिरक्षकों की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में तुरंत पता लगाना

भेंटों के व्यय की स्थिति का निरीक्षण करने और अनुचित व्यय को हल करने के अलावा अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास एक और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है : उन्हें भेंटों के ठिकाने के साथ ही भेंटों के संरक्षकों की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में भी तुरंत पता लगाना होता है। इसका उद्देश्य यह है कि दुष्टों, षड्यंत्रकारी लोगों और लालची हृदय वाले लोगों को असावधानियों का फायदा उठाकर भेंटें हड़पने से रोका जाए। कुछ लोग देखते हैं कि परमेश्वर के घर में बहुत सारी चीजें हैं और कुछ भेंटों पर नजर रखने वाला या उनका रिकॉर्ड रखने वाला कोई नहीं है, इसलिए वे हमेशा इस बारे में सोचते रहते हैं कि कब उन चीजों को अपनी निजी संपत्ति बना लें और अपने इस्तेमाल के लिए रख सकें। ऐसे लोग हर जगह हैं। कुछ लोगों को देखकर लगता है कि वे दूसरों का फायदा नहीं उठाते और भौतिक चीजों या पैसे की बहुत इच्छा नहीं रखते, लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि स्थिति और परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होतीं—अगर भेंटों को वास्तव में सुरक्षा के लिए उनके हाथों में दिया जाए तो वे उन्हें हड़प सकते हैं। कुछ लोग पूछते हैं, “लेकिन वे पहले बहुत अच्छे व्यक्ति थे : वे लालची नहीं थे और उनका चरित्र ठीक था—तो उनके हाथों में इतनी सी भेंट रखने से वे कैसे बेनकाब हो गए?” ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि तुमने इन लोगों के साथ बहुत समय नहीं बिताया है, तुम उनके बारे में गहराई से नहीं समझते हो, उनके प्रकृति सार को गहराई नहीं समझ पाए हो। अगर तुम्हें पहले ही पता चल जाता कि वे इस तरह के व्यक्ति हैं, तो भेंटों को बुरे लोगों के हाथ में जाने के दुर्भाग्य से बचाया जा सकता था। इसलिए भेंटों को बुरे लोगों के हाथों में जाने से रोकने के लिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास एक और अधिक महत्वपूर्ण कार्य होता है : भेंट के ठिकानों और उनके संरक्षकों की विभिन्न परिस्थितियों के बारे में तुरंत पता लगाना और उनसे अवगत रहना। मान लो कि किसी के पास कुछ सौ या हजार डॉलर के प्रबंधन का दायित्व है, अगर उनमें जरा भी अंतरात्मा है, तो वे गबन नहीं करेंगे—लेकिन अगर वे दसियों या सैकड़ों हजार डॉलर हों, तो ज्यादातर लोगों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, यह खतरनाक होगा और उस स्थिति में उनके दिल बदल सकते हैं। उनके दिल बदल कैसे सकते हैं? कुछ सौ या हजार डॉलर किसी व्यक्ति के दिल को नहीं डोला सकते, लेकिन दसियों या सैकड़ों हजार डॉलरों से उसका दिल आसानी से डोल सकता है। “मैं कई जन्मों में इतना नहीं कमा पाया और अब यह मेरे हाथ में है—अगर यह सब मेरा होता तो मैं कितना ज्यादा मालदार होता!” वे सोचते हैं, “इन विचारों को लेकर मैं अपराधबोध नहीं महसूस करता—तो क्या वास्तव में कोई परमेश्वर है या नहीं? परमेश्वर कहाँ है? क्या ऐसा नहीं है कि किसी को नहीं पता कि मेरे मन में ऐसे विचार आ रहे हैं? कोई नहीं जानता और मैं खुद को दोषी या बुरा महसूस नहीं करता—क्या इसका मतलब है कि कोई परमेश्वर नहीं है? फिर अगर मैं यह पैसा हथिया लूँ, तो क्या मुझे कोई दंड या प्रतिफल नहीं भुगतना पड़ेगा? क्या इसका कोई दुष्परिणाम नहीं होगा?” क्या इस व्यक्ति का हृदय बदलने की प्रक्रिया में नहीं है? क्या उसके हाथ में मौजूद भेंट खतरे में नहीं है? (है।) इसके अलावा भेंटों का प्रबंधन करने वाले कुछ लोग काफी अच्छे होते हैं, परमेश्वर में विश्वास का उनका एक आधार होता है और वे अपने कार्यकलापों में निष्ठावान होते हैं, और भले ही तुम उन्हें कुछ दसियों या सैकड़ों हजार डॉलर की सुरक्षा करने को दे दो, वे इसे अच्छी तरह से करने में सक्षम होंगे, और इस बात की गारंटी है कि वे इसमें गबन नहीं करेंगे। लेकिन उनके परिवारों में कुछ गैरविश्वासी हैं और जब वे लोग धन देखते हैं तो उनकी आँखें ऐसे लाल हो जाती हैं जैसे किसी भेड़िये की आँखें अपने शिकार को देख कर होती हैं। दसियों या सैकड़ों हजार डॉलर की बात तो छोड़ ही दो—अगर उन्हें एक हजार डॉलर भी दिख जाएँ तो वे इन्हें अपनी जेब के हवाले कर देंगे। उन्हें इस बात की परवाह नहीं होती कि यह धन किसका है; उन्हें लगता है कि यह उसी का है जो इसे जेब में डाल ले, जो इसे सबसे पहले झपट ले। अगर भेंटों की सुरक्षा कर रहे किसी व्यक्ति के इर्द-गिर्द ऐसे दुष्ट भेड़िये हों, तो क्या भेंटों पर कहीं भी, कभी भी कब्जा कर लिए जाने का खतरा नहीं है? क्या ऐसी स्थिति हो सकती है? (हो सकती है।) क्या यह खतरनाक नहीं है कि अगुआ और कार्यकर्ता लापरवाह हों और उन्हें कोई दायित्वबोध न हो, और वे इस पर ध्यान भी न दें या इसके बारे में पूछताछ करने न जाएँ और जब भेंटें ऐसी खतरनाक स्थिति में हो तो उसकी जाँच भी न करें? कहीं भी, कभी भी कुछ गलत हो सकता है। एक और तरह की स्थिति होती है : कुछ अभिरक्षक धन और कई तरह की चीजें अपने घर में सुरक्षित रखते हैं और वे वहाँ भाई-बहनों और अगुआओं और कार्यकर्ताओं की मेजबानी भी करते हैं। अस्थायी तौर पर तो यह अपेक्षाकृत सुरक्षित हो सकता है, लेकिन क्या लंबे समय तक भेंटें वहाँ रखना उचित है? (नहीं।) भले ही उन्हें सुरक्षित रखने वाला व्यक्ति उपयुक्त हो, लेकिन वातावरण और परिस्थितियाँ बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं हैं। या तो वह जिन लोगों की मेजबानी कर रहा है उन्हें दूसरी जगह भेज देना चाहिए या भेंटों को हटा दिया जाना चाहिए। अगर अगुआ और कार्यकर्ता इस कार्य को समझने की कोशिश नहीं करते और न ही इसके संबंध में अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं तो कहीं भी, कभी भी कुछ गलत हो सकता है; भेंटों को नुकसान हो सकता है और वे कहीं भी, कभी भी राक्षसों के हाथों में पड़ सकती हैं। एक और तरह की स्थिति है : कुछ कलीसियाओं के इर्द-गिर्द शत्रुतापूर्ण वातावरण है जिसमें लोगों को अक्सर गिरफ्तार कर लिया जाता है और इस वजह से जिन घरों में भेंटों सुरक्षित रखी गई हों, उनके साथ गद्दारी होना और बड़े लाल अजगर द्वारा छापामारी और तलाशी लेना बहुत आसान है—भेंटें किसी भी समय राक्षसों द्वारा लूटी जा सकती हैं। क्या ऐसे स्थान भेंटें रखने के लिए उपयुक्त हैं? (नहीं।) ऐसे में अगर वे पहले से ही वहाँ रखी हैं तो क्या करें? उन्हें तुरंत किसी दूसरी जगह भेज दो। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते और वास्तविक कार्य नहीं करते हैं। वे इन चीजों का अनुमान लगाने या उनके बारे में सोचने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें इनके बारे में कोई जानकारी नहीं होती और केवल जब कुछ गलत हो जाता है और राक्षस भेंटों को छीन ले जाते हैं, तो वे सोचते हैं, “हमें उन्हें पहले ही हटा देना चाहिए था,” और बस इस तरह से थोड़ा पश्चात्ताप महसूस करते हैं। लेकिन अगर कुछ भी गलत न हो, तो अगले दस साल बीत जाने पर भी वे भेंटों को वहाँ से नहीं ले जाएँगे। वे नहीं समझ सकते कि इस समस्या के कारण क्या गंभीर परिणाम हो सकते हैं और वे महत्व और तात्कालिकता के आधार पर चीजों को प्राथमिकता नहीं दे पाते। इस स्थिति का सामना करते समय अगुआओं और कार्यकर्ताओं को स्पष्ट समझ होनी चाहिए, “जिन स्थानों पर भेंटें रखी जा रही हैं उनमें से एक स्थान उपयुक्त नहीं है। वातावरण बहुत खतरनाक है और आसपास के क्षेत्र में कई भाई-बहनों को गिरफ्तार किया गया है, उनका पीछा किया गया है या उन्हें निगरानी में रखा गया है। हमें भेंटों को वहाँ से निकालने का कोई तरीका सोचना होगा। उन्हें वहीं छोड़कर छिनने का इंतजार करने से बेहतर कदम होगा अपेक्षाकृत सुरक्षित स्थान पर ले जाना।” जब कोई स्थिति अभी-अभी उत्पन्न हुई हो और वे ताड़ लें कि भेंटें खतरे में है तो उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए, ताकि उन्हें बड़े लाल अजगर राक्षस के कब्जे में जाने और हड़पने से बचाया जा सके। भेंटों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसी भी तरह की गड़बड़ी या चूक से बचने का यही एकमात्र तरीका है। यह वह काम है जो अगुआओं और कार्यकर्ताओं को करना चाहिए। जैसे ही खतरे का थोड़ा-सा भी संकेत मिले, जैसे ही किसी को गिरफ्तार किया जाए, जैसे ही कोई स्थिति उत्पन्न हो, अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले सोचना चाहिए कि क्या भेंटें सुरक्षित हैं, क्या वे दुष्ट लोगों के हाथों में पड़ सकती हैं या दुष्ट लोग उन पर कब्जा कर सकते हैं, या राक्षस छीनकर ले जा सकते हैं और क्या भेंटों को कोई नुकसान हुआ है। उन्हें भेंटों की सुरक्षा के कदम तुरंत उठाने चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है। कुछ अगुआ और कार्यकर्ता कह सकते हैं, “ये काम करने में हमें जोखिम उठाना होगा। क्या ऐसा हो सकता है कि हम ऐसा न करें? क्या ऐसा नहीं है कि हमारी पहली प्राथमिकता लोग हैं, यानी भेंटों को प्राथमिकता देना आवश्यक नहीं है, लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए?” तुम उनके सवाल के बारे में क्या सोचते हो? क्या इन लोगों में मानवता है? (नहीं।) भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा करना, उनका अच्छी तरह से प्रबंधन करना और उनकी अच्छी तरह से देखभाल करना—ये ऐसी जिम्मेदारियाँ हैं जिन्हें किसी भी अच्छे प्रबंधक को पूरा करना चाहिए। अधिक गंभीर शब्दों में, यह काम इस लायक है कि अपने जीवन का बलिदान भी करना पड़े तो कर दो और यह वह काम है जो तुम्हें करना चाहिए। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। लोग हमेशा चिल्लाते रहते हैं, “परमेश्वर के लिए मरना एक सम्मानजनक मृत्यु है।” क्या लोग वास्तव में परमेश्वर के लिए मरने को तैयार हैं? अभी तुमसे परमेश्वर के लिए मरने को नहीं कहा जा रहा है; बस भेंटों की सुरक्षा के लिए तुमसे थोड़ा-सा जोखिम उठाने की अपेक्षा की जा रही है। क्या तुम ऐसा करने के लिए तैयार हो? तुमको खुशी से कहना चाहिए, “मैं तैयार हूँ!” क्यों? क्योंकि यह परमेश्वर का आदेश और मनुष्य से अपेक्षा है, यह तुम्हारी अपरिहार्य जिम्मेदारी है, और तुमको इससे बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। तुम्हारे इस दावे के मद्देनजर कि तुम परमेश्वर के लिए मर भी सकते हो, तुम थोड़ी-सी कीमत क्यों नहीं चुका सकते और भेंट की सुरक्षा के लिए थोड़ा-सा जोखिम क्यों नहीं ले सकते? क्या यह वह काम नहीं है जो तुम्हें करना चाहिए? यदि तुम कुछ भी वास्तविक कार्य नहीं करते, लेकिन हमेशा परमेश्वर के लिए मरने के बारे में चिल्लाते रहते हो, तो क्या ये शब्द खोखले नहीं हैं? अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटों की सुरक्षा के कार्य की शुद्ध समझ होनी चाहिए और उन्हें यह जिम्मेदारी उठानी ही चाहिए। उन्हें इससे बचना या इसे टालना नहीं चाहिए और अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटना चाहिए। चूँकि तुम अगुआ या कार्यकर्ता हो, इसलिए यह कार्य तुम्हारी एक ऐसी जिम्मेदारी है जिससे तुम मुँह नहीं मोड़ सकते हो। यह महत्वपूर्ण कार्य है—क्या तुम इसे तब भी करने के लिए तैयार हो, जब तुम्हें कुछ जोखिम उठाना पड़े या जब तुम्हारी जान दाँव पर लगी हो? क्या तुम्हें इसे करना चाहिए? (हाँ।) तुम्हें इसे करने का इच्छुक होना चाहिए; तुम्हें इस जिम्मेदारी को त्यागना नहीं चाहिए। यह मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षा है और यह वह आदेश है जो उसने मनुष्य को दिया है। परमेश्वर ने तुमको अपनी सबसे न्यूनतम अपेक्षा और आदेश बताया है—यदि तुम इसे पूरा करने के भी इच्छुक नहीं हो तो तुम क्या करने में सक्षम हो?

अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटों की सुरक्षा और खर्च का काम यथासंभव सावधानी और ठोस तरीके से करना चाहिए। उन्हें इसमें ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए, इसे किसी दूसरे के काम की तरह नहीं मानना चाहिए और जिम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। अगुआओं और कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत रूप से जाँच-परख करनी चाहिए, इसमें रुचि लेनी चाहिए, इन चीजों के बारे में पूछताछ करनी चाहिए और यहाँ तक कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से सँभालना चाहिए, ताकि बुरे लोगों और घटिया मानवता वाले लोगों को चूक का फायदा उठाने और विनाश करने से दूर रखा जा सके। जितनी अधिक सावधानी से तुम यह काम करोगे, बुरे और खराब लोगों को चूक का फायदा उठाने का उतना ही कम मौका मिलेगा; तुम जितनी अधिक विस्तृत पूछताछ करोगे और तुम्हारा प्रबंधन जितना कठोर होगा, अनुचित खर्च, फिजूलखर्ची और बरबादी के मामले उतने ही कम होंगे। कुछ लोग कहते हैं, “क्या इस क्रियाकलाप का संबंध परमेश्वर के घर का धन बचाने से है? क्या परमेश्वर के घर में धन की कमी है? अगर ऐसा है तो मैं थोड़ा और भेंट दे दूँगा।” क्या यही सब चल रहा है? (नहीं।) यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है, यह मनुष्य से परमेश्वर की अपेक्षा है और यह एक सिद्धांत है जिसका अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य को करने में पालन करना चाहिए। परमेश्वर के विश्वासी के रूप में, परमेश्वर के घर में प्रबंधक की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति के रूप में भेंटों के प्रति तुम्हारा रवैया जिम्मेदारी वाला और सख्त जाँच-परख करने वाला होना चाहिए; अन्यथा तुम यह कार्य करने योग्य नहीं हो। यदि तुम एक ऐसे साधारण विश्वासी होते जिसमें जिम्मेदारी की भावना न होती और जो सत्य का अनुसरण न कर रहा होता तो तुमसे ये चीजें करने की अपेक्षा न की जाती। तुम अगुआ या कार्यकर्ता हो; यदि तुममें जिम्मेदारी की यह भावना नहीं है तो तुम अगुआ या कार्यकर्ता होने लायक नहीं हो और भले ही तुम अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सेवा करते हो, तुम एक गैर-जिम्मेदार नकली अगुआ या कार्यकर्ता हो और देर-सवेर तुमको हटा दिया जाएगा। वे सभी लोग जिनमें जिम्मेदारी की भावना का पूर्ण अभाव है, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर के घर के कार्य का बिल्कुल भी बचाव नहीं करते—उन सभी में थोड़ी-सी भी अंतरात्मा और विवेक नहीं है। ऐसे लोग भला कर्तव्य कैसे निभा सकते हैं? वे सभी विचारहीन कूड़ा हैं—उन्हें तुरंत परमेश्वर का घर छोड़ देना चाहिए और उस दुनिया में वापस चले जाना चाहिए जहाँ के वे हैं!

यदि हम भेंटों के बारे में सामान्य ज्ञान, भेंटों की सुरक्षा में शामिल सत्यों और जिन सिद्धांतों का लोगों को पालन करना चाहिए उन पर इस तरह से संगति न करते, तो क्या तुम लोग इन चीजों के बारे में अस्पष्ट नहीं रहते? (हम अस्पष्ट रहते।) लोग जब सटीक सिद्धांतों के बारे में अस्पष्ट होते हैं, तो क्या वे अपनी कुछ जिम्मेदारी निभा सकते हैं? क्या वे अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं? क्या अधिकांश लोग इस सबसे छिछले सिद्धांत और नियम पर नहीं चल रहे हैं कि “कुछ भी हो, मैं परमेश्वर की भेंटों का लालच नहीं करता, मैं उन्हें हड़पता नहीं हूँ या उनका गबन नहीं करता और मैं उन पर अच्छी निगहबानी रखता हूँ और लोगों को उन्हें मनमाने ढंग से खर्च नहीं करने देता—इतना ही काफी है”? क्या यह सत्य का अभ्यास है? क्या यह अपनी जिम्मेदारी निभाना है? (नहीं।) यदि अधिकांश लोगों का ज्ञान इस मानक से आगे नहीं जाता, तो यह विषय वास्तव में संगति के योग्य है। इस संगति के माध्यम से, क्या अब तुम पहले की तुलना में थोड़ा-सा और अच्छी तरह से जानते और समझते हो कि भेंटों की सुरक्षा कैसे करें और उन्हें सुरक्षित रखने में तुम्हारा दृष्टिकोण और ज्ञान कैसा होना चाहिए? (हाँ।) हम अपनी संगति का समापन भेंटों से संबंधित सत्यों और उन सिद्धांतों से करेंगे जिनका संबंध भेंटों के साथ किए जाने वाले व्यवहार और उनके प्रबंधन के तरीकों से है।

भेंटों के संबंध में नकली अगुआओं का रवैया और अभिव्यक्तियाँ

I. भेंटों को साझा संपत्ति समझना

अब हम अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों की ग्यारहवीं मद के संबंध में नकली अगुआओं का एक साधारण प्रकाशन और गहन-विश्लेषण करेंगे। हम देखेंगे कि भेंटों, भेंटों की सुरक्षा और उनके प्रबंधन के प्रति नकली अगुआओं का रवैया और अभिव्यक्तियाँ क्या होती हैं। पहली अभिव्यक्ति यह है कि नकली अगुआओं को भेंटों के बारे में सटीक ज्ञान नहीं होता। वे मानते हैं, “भेंटें केवल नाम के लिए परमेश्वर को अर्पित की जाती हैं, लेकिन वास्तव में वे कलीसिया को दी जाती हैं। हम नहीं जानते कि परमेश्वर कहाँ है, और वैसे भी वह इतनी सारी चीजों का उपयोग नहीं कर सकता। ये भेंटें केवल नाम के लिए परमेश्वर को अर्पित की जा रही हैं; वास्तव में वे कलीसिया और परमेश्वर के घर को अर्पित की जा रही होती हैं, और उन्हें किसी भी व्यक्ति को स्पष्ट रूप से नहीं अर्पित किया जाता है। कलीसिया और परमेश्वर का घर उनसे जुड़े सभी लोगों के पर्याय हैं और इसका निहितार्थ यह है कि भेंटें सबकी हैं और जो सबकी है वह आम संपत्ति है। इसलिए भेंटें आम संपत्ति हैं जो सभी भाई-बहनों की हैं।” क्या यह समझ बिल्कुल ठीक है? स्पष्ट रूप से बिल्कुल भी नहीं। क्या ऐसी समझ रखने वाले लोगों की मानवता में कोई समस्या नहीं है? क्या वे वही लोग नहीं हैं जो भेंटों की लालसा रखते हैं? लालची दिल वाले और भेंटों को हड़पने की इच्छा रखने वाले लोग भेंटों के मामले में यह तरीका और दृष्टिकोण अपनाते हैं। जाहिर है, वे भेंटों पर नजर गड़ाए रखते हैं और उन्हें अपने आनंद के लिए इस्तेमाल करना चाहेंगे। ये किस तरह के प्राणी हैं? क्या वे यहूदा की बिरादरी के नहीं हैं? तो इस तरह के अगुआ या कार्यकर्ता परमेश्वर की भेंटों को कलीसिया की आम संपत्ति मानते हैं। वे अपने दिल में इस तरह का रवैया पालते हैं—वे भेंटों की गंभीरता से सुरक्षा नहीं करते या उचित तरीके और जिम्मेदारी से उनका प्रबंधन नहीं करते, इसके बजाय वे भेंटों का इस्तेमाल अपनी मर्जी से, बेशर्मी से और बिल्कुल अनियंत्रित और सिद्धांतहीन तरीके से करते हैं। वे किसी को भी इन भेंटों का इस्तेमाल करने देते हैं, और जिस किसी का “आधिकारिक पद” बड़ा होता है, जिस किसी का रुतबा ऊँचा होता है, भाई-बहनों के बीच जो कोई प्रतिष्ठित होता है, उसे ही इन पर कब्जा करने और इस्तेमाल में प्राथमिकता मिलती है। यह बिल्कुल समाज की कंपनियों और कारखानों की तरह ही है, जहाँ कंपनी की कारें और अच्छी, उच्चस्तरीय चीजें प्रबंधकों, कारखाने के निदेशकों और अध्यक्षों के उपयोग के लिए होती हैं। उनका मानना है कि परमेश्वर की भेंटों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए, कि जो कोई भी अगुआ या कार्यकर्ता है, उसे ही परमेश्वर के घर की उच्चस्तरीय चीजों का, परमेश्वर को चढ़ाई गई भेंटों का आनंद लेने में प्राथमिकता मिले। इसलिए जो अगुआ और कार्यकर्ता होने के बहाने उच्चस्तरीय कंप्यूटर और सेल फोन खरीदते हैं, साथ ही जो अगुआ और कार्यकर्ता भेंटों को अपने उपयोग के लिए ले लेते हैं, वे सभी मानते हैं कि भेंटें आम संपत्ति हैं और वे जैसे चाहें वैसा इनका उपयोग और अपव्यय होना चाहिए। जब कुछ भाई-बहन सोने और चाँदी के गहने, बैग, कपड़े और जूते अर्पित करते हैं तो वे यह उल्लेख नहीं करते कि वे उन्हें परमेश्वर को अर्पित कर रहे हैं, और इसलिए कुछ नकली अगुआ मानते हैं, “चूँकि उन्होंने यह उल्लेख नहीं किया कि ये वस्तुएँ परमेश्वर को चढ़ाई जा रही हैं, इसलिए उन्हें कलीसिया के उपयोग के लिए होना चाहिए। कलीसिया को जो कुछ भी दिया जाता है वह आम संपत्ति है और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को आम संपत्ति का आनंद लेने में प्राथमिकता मिलनी चाहिए।” और इसलिए वे इन चीजों को बेहिचक अपने लिए ले लेते हैं। उनके छाँटने के बाद बची हुई चीजों का उपयोग कोई भी कर सकता है और जो चाहे ले सकता है—हर कोई उन्हें आपस में बाँट लेता है। ये अगुआ और कार्यकर्ता इसे धन साझा करना कहते हैं; उनका अनुसरण करने से लोग अच्छा खा-पी सकते हैं और वास्तव में आनंद ले सकते हैं। हर कोई खुश रहता है और कहता है, “परमेश्वर का शुक्र है—अगर हम उस पर विश्वास न करते तो क्या हम इन चीजों का आनंद ले पाते? ये भेंटें हैं और हम इनका आनंद लेने के योग्य नहीं हैं!” वे कहते हैं कि वे इनके योग्य नहीं हैं, फिर भी वे उन चीजों को कसकर पकड़े रहते हैं, छोड़ते नहीं। ऐसे अगुआ और कार्यकर्ता सिर्फ भेंटों को झपटकर उन्हें आपस में बाँट ही नहीं देते और बिना किसी की स्वीकृति के उसका व्यक्तिगत रूप से आनंद ही नहीं लेते—ऐसा करते समय वे भेंटों के प्रबंधन, व्यय और उपयोग पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते, न ही वे उन्हें सँभालने और उनका लेखा-जोखा रखने के लिए उपयुक्त लोगों को चुनते हैं, और खातों की जाँच करने या व्यय की स्थिति की गहन समीक्षा करने की चिंता तो बिल्कुल ही नहीं करते। भेंटों के प्रबंधन के प्रति नकली अगुआओं की उदासीनता अराजकता पैदा करती है, और कुछ भेंटें गायब और फिजूलखर्च हो जाती हैं। नकली अगुआओं के कार्य की सबसे खास बात यह है कि हर कोई मनमर्जी से कार्य करता है। किसी भी टीम का सुपरवाइजर जो कहता है, वही होता है और जब किसी टीम को कुछ खरीदने की जरूरत होती है तो वे स्वीकृति के लिए आवेदन प्रस्तुत किए बिना खुद ही खरीदने का फैसला कर सकते हैं। कार्य के लिए जरूरी चीजों को वे बिना इस बात की चिंता किए खरीद सकते हैं कि उनकी कीमत कितनी है, वे उन चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं या नहीं या वह चीज जरूरी है या नहीं—हर हाल में वे किसी व्यक्ति का धन नहीं, बल्कि भेंटें खर्च कर रहे होते हैं। नकली अगुआ न इसका पर्यवेक्षण करते हैं, न जाँच-परख करते हैं, सिद्धांतों के बारे में तो बिल्कुल भी संगति नहीं करते। जब कोई चीज खरीद ली जाती है तो नकली अगुआ इस बात पर कभी कोई ध्यान नहीं देते कि उसकी सुरक्षा करने वाला कोई है या नहीं, उसमें कुछ गड़बड़ हो सकती है या नहीं या उस पर जितना खर्च किया गया है, वह उतने खर्च के लायक है या नहीं। वे इन बातों पर कोई ध्यान क्यों नहीं देते? इसलिए कि इन पर लगने वाला धन उनका नहीं होता—उन्हें लगता है कि कोई भी इसे खर्च कर सकता है, क्योंकि किसी भी तरह से उनका पैसा नहीं खर्च हो रहा होता है। भेंटों के प्रबंधन के हर पहलू में अराजकता है। यह कितनी अराजक स्थिति है? यह स्थिति समाजवादी देशों के बड़े, सरकारी कारखानों जैसी ही है, जहाँ हर किसी को बराबर हिस्सा मिलता है, चाहे वह कितना भी काम करे। हर व्यक्ति कारखाने का सामान अपने घर ले जाता है, कारखाने का खाना खाता है और कारखाने से पैसा कमाता है और कारखाने की चीजों का गबन करता है। पूरी अराजकता होती है। नकली अगुआ किसी भी उपकरण या यंत्र को खरीदने में होने वाले खर्च का कोई नियम नहीं बनाते हैं। परमेश्वर का घर नियम बनाता है, लेकिन वे खर्चों की कड़ी समीक्षा, जाँच, खोज-खबर या निरीक्षण नहीं करते। वे इनमें से कोई भी काम नहीं करते। नकली अगुआओं का कार्य पूरी तरह से अराजक होता है, किसी भी चीज में कोई व्यवस्था नहीं होती, और हर जगह गड़बड़ियाँ रहती हैं। हर मोड़ पर बुरे लोगों और उन लोगों को जिनके हृदय गलत जगह लगे होते हैं, चूकों का फायदा उठाने और लाभ लेने के मौके दिए जाते हैं। वे लोग बेरोकटोक परमेश्वर की भेंटों को फिजूलखर्च और बरबाद कर देते हैं, फिर भी उन्हें किसी भी तरह से दंडित नहीं किया जाता, न प्रतिबंध लगाया जाता है—उन्हें चेतावनी तक नहीं दी जाती है। ये किस तरह के अगुआ और कार्यकर्ता हैं? क्या वे जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद नहीं कर रहे हैं? क्या वे परमेश्वर के घर के प्रबंधक हैं? वे परमेश्वर के घर के चोट्टे गद्दार हैं!

इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को कैसे देखा जाना चाहिए जो भेंटों की सुरक्षा का मामला आने पर जिम्मेदारी नहीं लेते? क्या वे नीच चरित्र के नहीं हैं और अंतरात्मा और विवेक से रहित नहीं हैं? ये नकली अगुआ भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर और कलीसिया को अर्पित की गई चीजों को परमेश्वर के घर की संपत्ति मानते हैं और कहते हैं कि इन चीजों का प्रबंधन भाई-बहनों को एक समूह के रूप में करना चाहिए। और इसलिए जब समस्याओं से पर्दा हटता है और ऊपरवाला लोगों को जवाबदेह ठहराता है, तो वे अपना बचाव करने की पूरी कोशिश करते हैं और यह स्वीकार नहीं करते कि अगुआ बनने और रुतबा पाने के बाद उनका परमेश्वर की भेंटें चुरा या हड़प लेना कितनी गंभीर प्रकृति का मामला है। क्या ये लोग नीच चरित्र के नहीं हैं? वे निरे बेशर्म हैं! वे नहीं जानते कि भाई-बहन पैसे और वस्तुएँ क्यों चढ़ाते हैं, न ही यह जानते हैं कि वे उन चीजों को किसे चढ़ाते हैं। अगर परमेश्वर नहीं होता, तो कौन अपनी पसंद की चीजें आसानी से अर्पित करता? यह इतना सीधा तर्क है, फिर भी ये तथाकथित “अगुआ” इसे नहीं जानते या समझते। इन नकली अगुआओं का पसंदीदा जुमला है : “परमेश्वर के घर की भेंटें।” क्या इस अभिव्यक्ति में सुधार की आवश्यकता नहीं है? सही अभिव्यक्ति क्या होनी चाहिए? “भेंटें” या “परमेश्वर की भेंटें।” यदि तुम कोई विशेषण जोड़ रहे हो, तो तुम्हें “परमेश्वर” जोड़ना चाहिए—भेंटें केवल परमेश्वर की हैं। यदि तुम कोई विशेषण नहीं जोड़ते, तो यह केवल “भेंट” है—लोगों को अब भी पता होना चाहिए कि भेंटों का स्वामी सृष्टिकर्ता, परमेश्वर है, न कि मनुष्य। मनुष्य भेंटें रखने के योग्य नहीं है, और यहाँ तक कि याजक भी यह नहीं कह सकते कि भेंटें उनकी हैं—वे परमेश्वर की अनुमति से भेंटों का आनंद ले सकते हैं, लेकिन वे उनकी हैं नहीं। “भेंटों” के लिए विशेषण कभी भी कोई व्यक्ति नहीं होगा—यह केवल परमेश्वर हो सकता है, कोई और नहीं। तो यह बिल्कुल स्पष्ट है कि नकली अगुआओं द्वारा अक्सर बोली जाने वाली अभिव्यक्ति “परमेश्वर के घर की भेंटें” गलत है और इसे सही किया जाना चाहिए। “परमेश्वर के घर की भेंटें” या “कलीसिया की भेंटें” जैसा कोई वाक्यांश नहीं होना चाहिए। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि “हमारी भेंटें” और “हमारे परमेश्वर के घर की भेंटें”। ये सभी अभिव्यक्तियाँ गलत हैं। परमेश्वर को भेंटें सृजित मानवजाति चढ़ाती है, परमेश्वर का अनुसरण करने वाले चढ़ाते हैं। केवल परमेश्वर को ही उनका स्वामी, उपयोगकर्ता और उपभोगकर्ता होने का अनन्य अधिकार है। भेंटें आम संपत्तियाँ नहीं हैं; वे मनुष्य की नहीं होतीं, कलीसिया और परमेश्वर के घर की तो बिल्कुल भी नहीं होतीं, इसके बजाय वे परमेश्वर की होती हैं। कलीसिया और परमेश्वर के घर को उनका उपयोग करने की अनुमति परमेश्वर देता है—यह उसका आदेश है। इसलिए “परमेश्वर के घर की भेंटें”, “कलीसिया की भेंटें” और “हमारी भेंटें” जैसी सभी अभिव्यक्तियाँ गलत हैं और इससे भी बढ़कर, वे गुप्त उद्देश्यों वाले लोगों की अभिव्यक्तियाँ हैं, इन अभिव्यक्तियों का उद्देश्य लोगों को गुमराह करना और उन्हें जड़ बना देना है, और इससे भी अधिक, लोगों को भ्रमित करना है। ये लोग भेंटों को कलीसिया, परमेश्वर के घर या सभी भाई-बहनों की आम संपत्ति के रूप में वर्गीकृत करते हैं। यह सब समस्यामूलक और दोषपूर्ण है और इसे ठीक किया जाना चाहिए। यह एक तरह के नकली अगुआओं की अभिव्यक्ति है। ऐसे लोग भेंटों को आम संपत्ति समझते हैं और उनका मनचाहा इस्तेमाल करते हैं; या वे मानते हैं कि अगुआ होने के नाते उन्हें इन चीजों को आवंटित करने का अधिकार है और इसलिए वे अपनी पसंद के लोगों को या सभी को ये चीजें समान रूप से आवंटित कर देते हैं। वे किस तरह का परिदृश्य रचने की कोशिश कर रहे होते हैं? ऐसा परिदृश्य जहाँ हर कोई समान हो, जहाँ हर कोई परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद ले सके, जहाँ हर कोई इन भेंटों को साझा करे। परमेश्वर के घर के संसाधनों का उदारता से प्रयोग करते हुए वे लोगों का समर्थन खरीदना चाहते हैं। क्या यह घृणित नहीं है? यह नीचतापूर्ण, बेशर्म व्यवहार है! ऐसे लोगों का चरित्रांकन कैसे किया जाना चाहिए? ऐसे नकली अगुआ भेंटों के लिए ललचाते हैं और लोगों को उनकी निगरानी करने, उन्हें उजागर करने और भेद पहचानने से रोकने के लिए वे अपने उपयोग से बची वस्तुओं को भाई-बहनों को आवंटित करते हैं, उनका समर्थन खरीदते हैं और ऐसा परिदृश्य रचते हैं जिसमें हर कोई समान होता है और जो हर किसी को उनके साथ जुड़कर फायदा लेने में सक्षम बनाता है, ताकि कोई उन्हें उजागर न करे। यदि तुम लोग ऐसे किसी नकली अगुआ से मिलो जो तुम लोगों को कुछ फायदा लेने दे और जिसके साथ तुम लोग कुछ “साझा संपत्ति” का आनंद ले सको—यदि तुम्हारे पास यह अधिकार हो और तुम इस प्रकार का लाभ उठाते हो तो क्या तुम लोग इससे खुश होओगे? क्या तुम लोग इसे अस्वीकार कर पाओगे? (हम अस्वीकार करेंगे।) यदि तुम लोग लालची हो, तुम्हारे पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल न हो और तुम परमेश्वर से नहीं डरते तो तुम ऐसा नहीं कर पाओगे। जिस किसी के पास थोड़ी-सी भी सत्यनिष्ठा, थोड़ी-सा भी विवेक और परमेश्वर का भय मानने वाला थोड़ा-सा भी दिल होगा, वह इसे अस्वीकार कर देगा और उस अगुआ को फटकारने, उसकी काट-छाँट करने और रोकने के लिए भी खड़ा हो जाएगा और कहेगा : “अगुआ के रूप में तुम्हें जो काम सबसे पहले करना चाहिए वह है भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना, उनका गबन न करना और अपनी इच्छा के आधार पर उन्हें सभी को अनधिकृत रूप से आवंटित करने का निर्णय तो बिल्कुल भी न करना। तुम्हारे पास यह अधिकार नहीं है; परमेश्वर ने तुम्हें यह आदेश नहीं दिया है। भेंटें परमेश्वर के उपयोग के लिए हैं और कलीसिया द्वारा उनका उपयोग किए जाने के कुछ सिद्धांत हैं—उन पर किसी का भी अंतिम अधिकार नहीं है। तुम अगुआ हो सकते हो लेकिन तुम्हारे पास वह विशेषाधिकार नहीं है। परमेश्वर ने तुम्हें यह प्रदान नहीं किया है। तुम्हें परमेश्वर की चीजें इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है—परमेश्वर ने तुम्हें यह कार्य नहीं सौंपा है। इसलिए भाई-बहनों द्वारा परमेश्वर को चढ़ाए गए सोने-चाँदी के गहने तुरंत उतारो और वे कपड़े भी उतारो जो उन्होंने परमेश्वर को अर्पित किए थे। जल्दी करो और उन चीजों को चट कर जाने का हर्जाना चुकाओ जो तुम्हें नहीं खानी चाहिए थीं। अगर तुम अभी भी एक इंसान हो और तुममें थोड़ी-सी भी शर्म है, तो यह काम तुरंत करो। यही नहीं, तुमने समर्थन पाने के लिए इन भेंटों को चाहे जिसे दिया हो या तुमने चाहे जिसे उन पर अधिकार जमा कर उनका आनंद लेने दिया हो, उनसे उन भेंटों को तुरंत वापस लो। अगर तुम ऐसा नहीं करते तो मैं सभी भाई-बहनों को सूचित कर दूँगा और तुम्हारे साथ यहूदा की तरह व्यवहार किया जाएगा!” क्या तुम लोग ऐसा करने की हिम्मत करोगे? (हाँ।) भेंटों के मामले में हर किसी की यह जिम्मेदारी होती है और सभी को ऐसी ही अंतरात्मा और इसी तरह के रवैये के साथ व्यवहार करना चाहिए। बेशक, सभी लोगों का यह भी दायित्व है कि वे इस बात की निगरानी करें कि दूसरे लोग भेंटों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, क्या वे उनकी अच्छी तरह से सुरक्षा कर रहे हैं और क्या वे सिद्धांतों के अनुसार उनका प्रबंधन कर रहे हैं। ऐसा मत सोचो कि इसका तुमसे कोई संबंध नहीं है और फिर यह कहते हुए जिम्मेदारी से बचो, “वैसे भी, मैं कोई अगुआ या कार्यकर्ता नहीं हूँ, यह मेरी जिम्मेदारी नहीं है। अगर मुझे इसका पता भी चल जाए, तो मुझे इसके बारे में परेशान होने या कुछ कहने की जरूरत नहीं है—यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं का मामला है। जो कोई भी मनमाने तरीके से पैसे खर्च करता है और भेंटों का गबन करता है वह यहूदा है, और समय आने पर परमेश्वर उसे सजा देगा। जो कोई भी किसी परिणाम का कारण बनेगा, वह उसके लिए जिम्मेदार होगा। मुझे इस बारे में परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। इस बारे में बेमौके मेरे बोलने से क्या फायदा होगा?” इस तरह के व्यक्ति के बारे में तुम लोग क्या सोचते हो? (उसमें अंतरात्मा नहीं है।) अगर तुम्हें पता चल जाए कि जिन कुछ क्षेत्रों में अगुआ और कार्यकर्ता ध्यान नहीं देते, वहाँ ऐसे लोग हैं जो भेंटों का अपव्यय कर रहे हैं और उन्हें हड़प रहे हैं, तो इस कार्य में शामिल लोगों को तुम्हें व्यक्तिगत रूप से चेतावनी देनी चाहिए और इस बारे में फौरन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सूचना देनी चाहिए। तुम लोगों को कहना चाहिए, “हमारे दल का मुखिया और हमारे अगुआ अक्सर भेंटों को अपने लिए रख लेते हैं। वे मनमाने ढंग से भेंटें खर्च करते हैं और दूसरों के साथ चर्चा किए बिना बस खुद ही तय कर लेते हैं कि कोई भी चीज खरीदनी है या नहीं। उनके ज्यादातर खर्च सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। क्या परमेश्वर का घर इससे निपट सकता है?” परमेश्वर के चुने हुए लोगों की जिम्मेदारी है कि वे जो भी समस्याएँ देखें, उनके बारे में रिपोर्ट करें और सूचना दें। हमारी पिछली संगति एक तरह के नकली अगुआ की अभिव्यक्ति के बारे में रही है—भेंटों के प्रति उनका रवैया उन्हें साझा संपत्ति मानने का है।

II. भेंटों के व्ययों की परवाह या पूछताछ न करना

भेंटों की सुरक्षा के मामले में नकली अगुआओं की एक और अभिव्यक्ति यह है कि वे नहीं जानते कि भेंटों का प्रबंधन कैसे किया जाए। वे केवल इतना जानते हैं कि भेंटों को छुआ नहीं जाना चाहिए, कि मनमाने या गलत तरीके से उनका इस्तेमाल या गबन नहीं किया जाना चाहिए, कि वे पवित्र हैं, पवित्र वस्तु के रूप में अलग रखी गई हैं और उनके बारे में किसी को अनुचित विचार नहीं रखना चाहिए। लेकिन जब यह बात आती है कि भेंटों का एकदम ठीक से प्रबंधन कैसे किया जाए, उनकी सुरक्षा करने में अच्छा प्रबंधक कैसे बना जाए, तो इस काम के लिए उनके पास न तो कोई रास्ता होता है, न कोई सिद्धांत, न ही कोई विशिष्ट योजना या प्रक्रिया होती है। इसलिए भेंटों के पंजीकरण, मिलान और सुरक्षा के साथ ही आवक-जावक खातों की जाँच और व्यय की जाँच जैसे मामलों में ये नकली अगुआ काफी निष्क्रिय होते हैं। जब कोई अनुमोदन के लिए कुछ प्रस्तुत करता है, तो वे उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं। जब कोई खर्च की प्रतिपूर्ति के लिए आवेदन करता है, तो वे मंजूर कर देते हैं। जब कोई किसी उद्देश्य के लिए पैसे के लिए आवेदन करता है, तो वे उसे दे देते हैं। वे नहीं जानते कि विभिन्न मशीनों और उपकरणों की सुरक्षा कहाँ की जा रही है। वे यह भी नहीं जानते कि उनका संरक्षक उपयुक्त है या नहीं, न ही यह कि वे कैसे जानें कि वे उपयुक्त हैं या नहीं; वे लोगों के दिलों को गहराई से नहीं समझ सकते और वे लोगों का सार नहीं देख सकते। इसलिए भले ही इन लोगों के प्रबंधन के दायरे में भेंटों की सभी जावकों का लेखा-जोखा होता है, उन खातों में व्यय के विवरण को देखा जाए तो कई व्यय अनुचित और अनावश्यक होते हैं—उनमें से कुछ तो बहुत ज्यादा और फिजूल होते हैं। इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं की अनुमति से भेंटें गायब हो जाती हैं। बाहर से देखने में वे विशिष्ट कार्य करते प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में वे जो कर रहे होते हैं उसका कोई सिद्धांत नहीं होता। वे जाँच-परख नहीं कर रहे होते हैं—वे केवल औपचारिकताएँ निभा रहे होते हैं और नियमों-विनियमों का पालन कर रहे होते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। उनका यह काम भेंटों के प्रबंधन के मानकों पर खरा नहीं उतरता और इसके सिद्धांतों को तो कतई पूरा नहीं करता। इसलिए नकली अगुआओं के कार्य की अवधि में बहुत सारे अनुचित व्यय होते हैं। अगर चीजों की निगरानी और प्रबंधन के लिए कोई व्यक्ति मौजूद है तो ये अनुचित व्यय कैसे होते हैं? ऐसा इसलिए है कि ये अगुआ और कार्यकर्ता अपने कार्य में जिम्मेदारी नहीं लेते। वे औपचारिकता निभाते हैं और चीजों को लापरवाही से निपटाते हैं और वे सिद्धांतों के अनुसार काम नहीं करते। वे दूसरों को नाराज नहीं करते, चापलूसों की तरह काम करते हैं और उचित जाँच-परख नहीं करते। यहाँ तक संभव है कि भेंटों का प्रबंधन करने वालों में एक भी सही मायने में जिम्मेदार व्यक्ति न हो, न ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो सही मायने में जाँच-परख कर सके। नकली अगुआ इस बात पर ध्यान नहीं देते कि भेंटों की सुरक्षा करने वाले लोग उपयुक्त हैं या नहीं या उन लोगों की कलीसियाओं में कोई खतरनाक स्थिति तो नहीं है। उनके लिहाज से जब तक वे खुद सुरक्षित हैं, तब तक सब कुछ ठीक है। जब खतरा पैदा होता है तो वे सबसे पहले यह सोचते हैं कि भाग कर कहाँ जा सकते हैं और क्या उनके अपने धन पर छापा पड़ेगा, जबकि वे न तो भेंटों के ठिकाने के बारे में ध्यान देते हैं और न ही यह पता करते हैं कि भेंटों को कोई खतरा है या नहीं। इस घटना के बाद कुछ महीने या यहाँ तक कि आधा साल बीत जाने पर वे अंतरात्मा के दबाव में इस बारे में पूछ सकते हैं और यह पता चलने पर कि कुछ भेंटों पर बड़े लाल अजगर ने कब्जा कर लिया है, कुछेक को बुरे लोगों ने फिजूल उड़ा दिया है और कुछ अन्य का अता-पता नहीं है, थोड़े समय के लिए उन्हें बुरा लगेगा—वे थोड़ी-सी प्रार्थना करेंगे, अपनी गलती स्वीकार करेंगे और बस इतने पर सब खत्म हो जाएगा। ये लोग किस तरह के प्राणी हैं? क्या इस तरह से कार्य करने में कोई समस्या नहीं है? भेंटों के प्रति ऐसा रवैया रखने वाले व्यक्ति के साथ परमेश्वर कैसा व्यवहार करेगा? क्या वह उन्हें सच्चा विश्वासी मानेगा? (नहीं।) तब वह उन्हें क्या मानेगा? (गैरविश्वासी।) परमेश्वर जब किसी को गैरविश्वासी मानता है तो क्या उस व्यक्ति को कोई एहसास होता है? वे आत्मा के स्तर पर जड़ और मंदबुद्धि हो जाते हैं और जब वे कोई कार्य करते हैं, तो उनके पास परमेश्वर का प्रबोधन, मार्गदर्शन या कोई प्रकाश नहीं होता। उनके साथ जब कुछ होता है तो उन्हें परमेश्वर से सुरक्षा नहीं मिलती और वे अक्सर नकारात्मक और कमजोर हो जाते हैं, अंधकार में रहते हैं। यूँ तो वे अक्सर धर्मोपदेश सुनते हैं और अपने कार्य में कष्ट उठा सकते हैं और कीमत चुका सकते हैं, लेकिन वे कोई प्रगति नहीं करते और दयनीय दिखाई देते हैं। ये उनके “नतीजे” हैं। क्या यह सजा सहने से भी ज्यादा मुश्किल नहीं है? मुझे बताओ कि अगर परमेश्वर में किसी के विश्वास का यह नतीजा है तो यह खुशी और उत्सव का कारण है या दुःख और विलाप का? मेरी राय में तो यह अच्छा संकेत नहीं है।

नकली अगुआ कभी भी भेंटों के प्रबंधन के काम को गंभीरता से नहीं लेते। भले ही वे कहते हैं, “लोगों को परमेश्वर की भेंटें छूनी नहीं चाहिए; किसी को परमेश्वर की भेंटों का गबन नहीं करना चाहिए और ये बुरे लोगों के हाथों में नहीं पड़नी चाहिए” और वे ये नारे बखूबी लगाते हैं, उनके शब्द बहुत नैतिक और सभ्य लगते हैं, लेकिन वे मनुष्यों जैसा कार्य नहीं करते। भले ही वे भेंटों का गबन नहीं करते और उनके मन में भेंटों के बारे में अनुचित विचार नहीं आते या उन्हें हड़पने का कोई इरादा नहीं होता, और उनमें से कुछ तो कभी भी परमेश्वर के घर के पैसे का इस्तेमाल नहीं करते या अपने खर्च के लिए परमेश्वर की भेंटों को छूने की बजाय खुद अपने पैसे खर्च करते हैं, लेकिन अगुआ और कार्यकर्ता के तौर पर जब भेंटों के प्रबंधन की बात आती है तो वे कोई वास्तविक कार्य नहीं करते। वे भेंटों के खर्च की स्थिति के बारे में पूछने या भेंटों के खर्च की जाँच-परख करने जैसे सरल काम भी नहीं करते। ये साफ-साफ नकली अगुआ हैं। भेंटों के प्रति उनका रवैया यह होता है : “मैं उन्हें खर्च नहीं करता और मैं उनका गबन नहीं करता, और मैं इस बात की चिंता भी नहीं करता कि दूसरे लोग उन्हें कैसे खर्च करते हैं या उनका गबन करते हैं।” मैं इन नकली अगुआओं से कहता हूँ कि तुम्हारा यह उदासीन रवैया बहुत समस्याजनक है। भेंटों को खर्च न करना और उनका गबन न करना ही वह काम है जो लोगों को करना चाहिए, लेकिन एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में तुम्हें इससे भी आगे जो करना चाहिए वह है भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना, और फिर भी तुम ऐसा करने में विफल रहे हो। इसे कर्तव्य की अवहेलना कहा जाता है। यह एक नकली अगुआ की अभिव्यक्ति है। हो सकता है कि तुमने एक भी पैसा खर्च न किया हो या एक भी भेंट का गबन न किया हो, लेकिन क्योंकि तुम वास्तविक कार्य नहीं करते और भेंटों के संबंध में कोई विशिष्ट प्रबंधन कार्य नहीं करते, इसीलिए तुम्हारा चरित्रांकन नकली अगुआ के रूप में किया जाता है और ऐसा करना उचित और तर्कसंगत है। कुछ अगुआ कभी भी कोई भेंट नहीं लेते या उसका उपयोग नहीं करते—भले ही अन्य सभी अगुआ और कार्यकर्ता उनका उपयोग करते हों, वे नहीं करते और जब परमेश्वर का घर उन्हें कुछ देने की व्यवस्था करता है तो वे उसे मना कर देते हैं। वे काफी साफ-सुथरे और लालच-मुक्त दिखते हैं, लेकिन जब उन्हें भेंटों के प्रबंधन की व्यवस्था दी जाती है, तो वे कोई विशिष्ट कार्य नहीं करते हैं। कोई भी भेंट खर्च करे, वे उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं—वे कोई पूछताछ तक नहीं करते और इसके बारे में एक शब्द भी नहीं कहते। हालाँकि ये लोग भेंटों का एक पैसा भी गबन नहीं करते, लेकिन उनके प्रबंधन के दायरे में भेंटें बुरे लोगों के कब्जे में चली जाती हैं और उनकी गैरजिम्मेदारी और कर्तव्य में लापरवाही के कारण कोई भी भेंटों को फिजूलखर्च और बरबाद कर सकता है। क्या इस फिजूलखर्ची और बरबादी का संबंध उनके कुप्रबंधन से नहीं है? क्या यह उनकी कर्तव्य में लापरवाही के कारण नहीं होता है? (होता है।) क्या लोगों के बुरे कामों में इन अगुआओं का हिस्सा नहीं है? क्या वे उनके लिए जिम्मेदार नहीं हैं? यह एक बड़ी जिम्मेदारी है और वे इससे भाग नहीं सकते! वे बस अपनी बात पर अड़े रहते हैं : “किसी भी तौर पर मैं परमेश्वर की भेंटों का गबन नहीं कर रहा हूँ और ऐसा करने की मेरी इच्छा या योजना भी नहीं है। परमेश्वर की भेंटों को कोई भी खर्च करे, मैं उसे खर्च नहीं करता; चाहे कोई भी उसे ले ले और इस्तेमाल करे, मैं नहीं करता; कोई भी उसका आनंद ले, मैं नहीं लेता। भेंटों के प्रति मेरा यही रवैया है—तुम जो चाहो कर सकते हो!” क्या ऐसे लोग होते हैं? (हाँ।) मसीह-विरोधी भेंटों को महंगे कपड़ों, विलासिता के सामान और यहाँ तक कि कारों पर खर्च करते हैं। मुझे बताओ, क्या इस तरह के नकली अगुआ इस समस्या को पहचान सकते हैं? वे खुद भेंटों का गबन नहीं करते, उनमें यह रवैया होता है, तो क्या वे यह नहीं मानते कि भेंटों का गबन करना बुरा है? (मानते हैं।) तो जब मसीह-विरोधी इतनी बड़ी बुराई करते हैं तो वे इसकी अनदेखी क्यों करते हैं और इसे रोकते क्यों नहीं? वे इसे गंभीरता से क्यों नहीं लेते? (वे किसी को आहत नहीं करना चाहते।) क्या यह कुकर्म नहीं है? (है।) यह उस जिम्मेदारी को न निभाना है जो किसी प्रबंधक को निभानी चाहिए। यदि तुम्हारे प्रबंधन के दौरान भेंटें बुरे लोगों के कब्जे में चली जाती हैं, यदि वे फिजूलखर्च, बरबाद और अनुचित तरीके से खर्च कर दी जाती हैं, यदि वे इस तरह हाथ से फिसल जाती हैं, और फिर भी तुम कोई कार्य नहीं करते या एक शब्द भी नहीं बोलते, तो क्या यह कर्तव्य का त्याग नहीं है? क्या यह किसी नकली अगुआ की अभिव्यक्ति नहीं है? यदि तुम वह बात नहीं कहते जो तुम्हें कहनी चाहिए, वह कार्य नहीं करते जो तुम्हें करना चाहिए, वह जिम्मेदारी नहीं निभाते जो तुम्हें निभानी चाहिए और भले ही तुम हर धर्म-सिद्धांत समझते हो, फिर भी वास्तविक कार्य नहीं करते, तो तुम निश्चित रूप से नकली अगुआ हो। तुम मानते हो, “किसी भी हालत में मैं भेंटों का गबन नहीं कर रहा हूँ; यदि दूसरे लोग करते हैं, तो यह उनका मामला है।” तो क्या तुम नकली अगुआ नहीं हो? भेंटों का गबन न करना तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है, लेकिन क्या तुमने भेंटों की अच्छी तरह से सुरक्षा की? क्या तुमने भेंटों के संबंध में अपनी जिम्मेदारी निभाई? यदि तुमने नहीं निभाई तो तुम नकली अगुआ हो। यह कहकर बहाने न बनाओ : “किसी भी हालत में मैं भेंटों का गबन नहीं करता, इसलिए मैं नकली अगुआ नहीं हूँ!” भेंटों का गबन न करना यह मापने का मानदंड नहीं है कि कोई अगुआ या कार्यकर्ता मानक पर खरा है या नहीं; वह मानक के अनुरूप हैं या नहीं, इसका सही मापदंड यह है कि क्या वह परमेश्वर के सौंपे हुए मामलों में अपनी जिम्मेदारी निभाता है, वह काम करता है जो एक व्यक्ति को करना चाहिए और उस दायित्व को निभाता है जो किसी व्यक्ति को निभाना चाहिए—यही सबसे महत्वपूर्ण है। तो भेंटों के प्रबंधन में तुम्हारा दायित्व और जिम्मेदारी क्या है? क्या तुमने उन सबको पूरा किया है? यह बिल्कुल स्पष्ट है कि तुमने ऐसा नहीं किया है। तुम बस औपचारिकता निभा रहे हो; तुम लोगों को नाराज करने से डरते हो, लेकिन परमेश्वर को नाराज करने से नहीं डरते। तुम भेंटों की उपेक्षा करते हो क्योंकि तुम लोगों को नाराज करने से डरते हो, उनकी नजरों में अपनी अच्छी छवि गिरने से डरते हो—यदि तुम्हारी यह अभिव्यक्ति है तो तुम निश्चित रूप से नकली अगुआ हो। यह तुम पर कोई ठप्पा लगाने वाली बात नहीं है। तथ्य सभी के सामने हैं : तुम अपना दायित्व और जिम्मेदारी भी नहीं निभा सकते—तुम इतने स्वार्थी हो! तुम अपनी चीजों, अपनी निजी संपत्ति का प्रबंधन बहुत अच्छे से, गंभीरता से और सावधानी से करते हो। तुम उन चीजों को मौसम के असर से बचाते हो; किसी को उन्हें ले नहीं जाने देते और तुम किसी को अपना फायदा नहीं उठाने देते। लेकिन भेंटों के मामले में तुम्हारे भीतर जिम्मेदारी का भाव बिल्कुल भी नहीं होता है—अपनी चीजों के प्रबंधन के मामले में जो जिम्मेदारी उठाते हो, भेंटों के मामले में तुम उसका दसवाँ हिस्सा भी नहीं निभाते। तुम्हें अच्छा प्रबंधक कैसे माना जा सकता है? तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता कैसे माना जा सकता है? तुम स्पष्ट रूप से नकली अगुआ हो। यह एक तरह के नकली अगुआ की अभिव्यक्ति है।

III. उचित व्ययों पर रोक लगाना

एक और तरह के नकली अगुआ होते हैं और वे भी काफी घृणास्पद होते हैं। इस तरह के लोग अगुआ बनने के बाद जब देखते हैं कि भेंटों की सुरक्षा कर रहा व्यक्ति बहुत ज्यादा और बहुत ही बरबादी करने वाले तरीके से पैसा खर्च कर रहा है तो वे उसे बरखास्त कर देते हैं। फिर वे एक ऐसे व्यक्ति को ढूँढ़ना चाहते हैं जो सावधानीपूर्वक योजना बना सके और ध्यान से बजट बना सके, जो वास्तव में मितव्ययी हो और जानता हो कि घर को किफायती तरीके से कैसे चलाया जाए। उन्हें लगता है कि इस तरह का व्यक्ति एक अच्छा प्रबंधक होगा और पता चलता है कि उन्हें कोई भी उपयुक्त नहीं लगता तो आखिरकार वे खुद ही भेंटों की सुरक्षा करने लगते हैं। जब भाई-बहन कहते हैं कि सुसमाचार का प्रचार करने के लिए परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों की कुछ प्रतियाँ छापने की जरूरत है, तो ये अगुआ यह सोचकर ऐसा करने की अनुमति नहीं देते कि पुस्तकें छापने में बहुत ज्यादा खर्च होता है; वे यह परवाह नहीं करते कि कार्य के लिए इसकी तत्काल जरूरत है—उनके लिए जब तक पैसे बचाए जा सकें, तब तक सब ठीक है। वे वास्तव में यह जानते ही नहीं कि परमेश्वर की भेंटों का उपयोग कहाँ परमेश्वर के इरादों के सर्वाधिक अनुरूप होगा; वे केवल इतना ही जानते हैं कि परमेश्वर की भेंटों की रक्षा करनी है और उन्हें बिल्कुल भी नहीं छूना है। जो खर्च किया जाना चाहिए, वे उसे खर्च नहीं करते—वे वास्तव में “अच्छी तरह से” जाँच कर रहे होते हैं, ठीक है! इस तरह कार्य कैसे आगे बढ़ सकता है? क्या इन अगुआओं के पास अपने कार्यकलापों के लिए सिद्धांत हैं? (नहीं।) वे वह कार्य नहीं करने देते जो किया जाना चाहिए, वो किताबें नहीं छापने देते जो छपनी चाहिए या वह पैसा खर्च नहीं करने देते जो खर्च करना जरूरी है—वे किसी भी उचित व्यय की अनुमति नहीं देते। क्या यह प्रबंधन है? (नहीं।) यह क्या है? यह सिद्धांतों की समझ की कमी है। जिन लोगों में सिद्धांतों की समझ नहीं होती, वे कार्य करते समय भेंटों का प्रबंधन करना नहीं जानते हैं। उनका मानना होता है कि उन्हें पैसे पर नजर रखनी चाहिए और इसमें एक पैसा भी घटने नहीं देना चाहिए और चाहे जिस भी चीज के लिए खर्च हो, पैसे को छूना नहीं चाहिए। क्या यह परमेश्वर के इरादों के अनुरूप है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) सिद्धांतों के बिना चीजों को नियंत्रित करना और जाँच करना प्रबंधन नहीं है। बेतहाशा खर्च, बरबादी और अपव्यय प्रबंधन नहीं है, लेकिन एक पैसा भी खर्च न होने देना और जाँच-परख के नाम पर उचित व्यय पर रोक लगाना भी प्रबंधन नहीं है। दोनों ही तरीके सिद्धांतों के अनुरूप नहीं हैं। क्योंकि कुछ लोग भेंटों का उपयोग करने, उन्हें आवंटित करने और उनका प्रबंधन करने के सिद्धांतों को नहीं समझते, इसलिए सभी प्रकार के तमाशे खड़े होते हैं और सभी प्रकार की अराजकता पैदा होती है। ये अगुआ बाहर से काफी जिम्मेदार और समर्पित दिखते हैं, लेकिन वे जो कार्य कर रहे हैं वह कैसा है? (वह सिद्धांतहीन है।) और क्योंकि यह सिद्धांतहीन कार्य है, इसलिए उनके क्षेत्र में सुसमाचार कार्य में बाधा और रुकावट आती है, और भेंटों के उपयोग की अत्यधिक सख्त जाँच के कारण कुछ पेशेवर कार्य भी रुक जाता है। ऊपर से वे भेंटों की सुरक्षा में बहुत कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार दिखाई देते हैं। लेकिन वास्तव में, क्योंकि उनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है और वे केवल अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर कार्य करते हैं और कलीसिया के हित में मितव्ययी होने की आड़ में परमेश्वर के घर के खर्चों की भी जाँच करते हैं, इसलिए वे अनजाने ही कलीसिया के कार्य की विभिन्न मदों की प्रगति को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। क्या ऐसे लोगों को नकली अगुआओं के रूप में चिह्नित किया जा सकता है? (हाँ।) यह कृत्य उन्हें नकली अगुआ कहे जाने योग्य बनाता है। एक निश्चित सीमा तक वे पहले ही सुसमाचार कार्य और कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा कर चुके होते हैं। ये बाधाएँ और गड़बड़ियाँ उनमें सिद्धांतों की समझ न होने के कारण होती हैं, साथ ही वे अपनी प्राथमिकताओं और धारणाओं के आधार पर लापरवाही से कार्य करते हैं और सत्य सिद्धांत नहीं खोजते, न ही चीजों पर चर्चा या दूसरों के साथ सहयोग करते हैं। उनके पास होने पर भेंटें बरबाद या अपव्यय नहीं होतीं, लेकिन वे सिद्धांतों के अनुसार उचित तरीके से भेंटों का उपयोग नहीं कर सकते और केवल उन भेंटों की सुरक्षा की खातिर उनका इस्तेमाल नहीं होने देते, और परिणामस्वरूप सुसमाचार फैलाने के कार्य में देरी होती है और परमेश्वर के घर के कार्य का सामान्य संचालन प्रभावित होता है। इसलिए इस अभिव्यक्ति के आधार पर उन्हें नकली अगुआ निरूपित करना जरा भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है। ऐसे लोगों को भी नकली अगुआ निरूपित क्यों किया जाता है? वे नहीं जानते कि कार्य कैसे करना है और भेंटों के साथ व्यवहार करने को लेकर उनकी समझ और तौर-तरीके बहुत ही विकृत होते हैं, तो क्या वे दूसरा कार्य ठीक से कर सकते हैं? निश्चित रूप से नहीं। क्या इन लोगों की समझ में कोई समस्या नहीं है? (है।) उनकी समझ विकृत है, वे विनियमों से चिपके रहते हैं, ढोंग करते हैं और वे छद्म-आध्यात्मिक होते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य पर विचार नहीं करते और सिद्धांतों के अनुसार कार्य नहीं करते—वे कार्य करने लिए सिद्धांत नहीं खोज सकते और वे केवल अपनी क्षुद्र चतुराई और इच्छा से चलते हैं और विनियमों से चिपके रहते हैं। इसी कारण उनका कार्य बाधाओं और गड़बड़ियों के रूप में सामने आता है। उनके कार्य करने का तरीका मूर्खतापूर्ण और बेढंगा होता है—यह घृणित है। ऐसे लोग स्पष्ट रूप से नकली अगुआ हैं। क्या कोई ऐसा है जो कहता हो कि “मैं भेंटों की इतनी अच्छी तरह से सुरक्षा करता हूँ, मैं यह काम इतनी सावधानी से करता हूँ, फिर भी मुझे नकली अगुआ कहा जाता है। आगे से मैं उनका प्रबंधन नहीं करूँगा! जो भी उन्हें खर्च करना चाहे, कर सकता है; जो भी उनका उपयोग करना चाहे, कर सकता है; जो भी उन्हें लेना चाहे, ले सकता है!” क्या कोई ऐसा है जो इस तरह सोचता है? तो फिर विभिन्न प्रकार के नकली अगुआओं की विभिन्न अवस्थाओं और अभिव्यक्तियों को उजागर करने के पीछे हमारा उद्देश्य क्या है? (लोगों को सिद्धांत समझने देना और नकली अगुआओं के मार्ग पर चलने से बचाना।) सही कहा। इसका उद्देश्य लोगों को सिद्धांत समझाना, सिद्धांतों के अनुसार अपना कार्य अच्छी तरह से करने और अपनी जिम्मेदारी निभाने में सक्षम बनाना, कल्पनाओं और धारणाओं के आधार पर न चलने देना, मानवीय इच्छा या उतावलेपन का आश्रय न लेने देना, सत्य सिद्धांतों को अपने किसी कल्पित सिद्धांत से न बदलने देना, आध्यात्मिक होने का दिखावा न करने देना और जिस चीज को वे आध्यात्मिकता मानते हैं उसका उपयोग सिद्धांतों के प्रतिरूप या प्रतिस्थापन के रूप में न करने देना है। अगुआओं और कार्यकर्ताओं के बीच ऐसे लोग मौजूद हैं और इन बातों को चेतावनी के रूप में लेना उचित है।

IV. भेंटों को हड़पना और उनका आनंद लेना

एक और तरह के नकली अगुआ होते हैं और वे भेंटों के प्रबंधन में जो कार्य करते हैं वह और भी ज्यादा गड़बड़ होता है। वे मानते हैं कि अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में वे हमेशा भेंटों पर नजर नहीं रख सकते या भेंटों पर बहुत बारीकी से ध्यान नहीं रख सकते हैं। उन्हें लगता है कि उनको बस कलीसिया का प्रशासनिक कार्य अच्छी तरह से करना चाहिए और कलीसियाई जीवन के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश के कार्य को अच्छी तरह से करना चाहिए, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विभिन्न प्रकार के पेशेवर कार्य अच्छी तरह से किए जाएँ। वे मानते हैं कि भेंटों का मतलब परमेश्वर की ओर से कलीसिया को दिए जाने वाला धन और वस्तुएँ हैं, और यह धन और वस्तुएँ अगुआओं और कार्यकर्ताओं के जीवन और कार्य में उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए होती हैं। इसका निहितार्थ यह है कि भेंटें अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए तैयार की जाती हैं, और जब किसी को अगुआ या कार्यकर्ता चुना जाता है तो परमेश्वर उसे इन भेंटों का आनंद लेने की अनुमति देता है, और अगुआओं और कार्यकर्ताओं को उन्हें आवंटित करने, उनका आनंद लेने और उन्हें खर्च करने में प्राथमिकता मिलती है—और इसलिए जब कोई व्यक्ति अगुआ या कार्यकर्ता बन जाता है तो वह भेंटों का स्वामी बन जाता है, भेंटों का प्रबंधक और मालिक बन जाता है। जब इस तरह के लोग अपने कार्य में भेंटों के संपर्क में आते हैं, तो वे उनका पंजीकरण नहीं करते, उनका मिलान नहीं करते या उनकी सुरक्षा नहीं करते, न ही वे भेंटों के आवक-जावक खातों की जाँच करते हैं, और वे उनके व्यय और आवंटन की स्थिति का निरीक्षण तो और भी नहीं करते। इसके बजाय, वे यह जानने और समझने की कोशिश करते हैं कि कौन-सी भेंटें उपलब्ध हैं और क्या उनमें ऐसा कुछ है जिसका अगुआ और कार्यकर्ता आनंद ले सकते हैं। भेंटों के प्रति इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का ऐसा ही रवैया होता है। उनके विचार में भेंटों को पंजीकृत करने, मिलान करने, सुरक्षित रखने या उनकी आवक-जावक या उनके खर्च की स्थिति का निरीक्षण करने की आवश्यकता नहीं होती—ऐसी चीजों का उनसे कोई लेना-देना नहीं है—उन्हें केवल अगुआओं और कार्यकर्ताओं को भेंटें आवंटित करने की जरूरत है, ताकि भेंटों का आनंद लेने में उन्हें प्राथमिकता दी जा सके। उनके विचार में अगुआ और कार्यकर्ता जो कह दें, वही सिद्धांत होता है—यह निर्णय उन पर निर्भर करता है कि भेंटों को कैसे खर्च करें और कैसे आवंटित करें। उनका मानना है कि अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में चुने जाने का मतलब है कि वह व्यक्ति पहले ही पूर्ण बनाया जा चुका है और किसी याजक की तरह उसे भेंटों का आनंद लेने का विशेषाधिकार है, साथ ही उनके बारे में अंतिम निर्णय लेने, उपयोग करने और आवंटन का अधिकार भी है। कुछ कलीसियाओं में भाई-बहनों की चढ़ाई चीजों का उचित कार्मिकों द्वारा पंजीकरण, मिलान और भंडारण किए जाने से पहले ही अगुआ और कार्यकर्ता उन्हें देख लेते हैं, छान-बीन कर लेते हैं और जिन चीजों का वे उपयोग कर सकते हैं उसे रख लेते हैं, जो कुछ भी वे खा सकते हैं उसे खा लेते हैं, उन भेटों में से जो कुछ भी पहन सकते हैं, उसे पहन लेते हैं और जिस चीज की उन्हें जरूरत नहीं होती, उसे सीधे उन लोगों को आवंटित कर देते हैं जिन्हें इसकी जरूरत है, इस प्रकार वे परमेश्वर के स्थान पर खुद निर्णय लेते हैं। यही उनका सिद्धांत है। यहाँ क्या हो रहा है? क्या वे वास्तव में यह सोचते हैं कि वे याजक हैं? क्या यह अत्यधिक विवेकहीनता नहीं है? (है।) कुछ अन्य अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे भी हैं जो देखते हैं कि एक परिवार के पास दो कुर्सियाँ कम हैं, दूसरे के पास चूल्हा नहीं है और किसी का स्वास्थ्य खराब है और उसे स्वास्थ्यपूरकों की जरूरत है, और तब वे परमेश्वर के घर के पैसों का उपयोग ये सब चीजें खरीदने के लिए करते हैं। सभी भेंटों के आवंटन, उपभोग, व्यय और उपयोग का अधिकार इन अगुआओं और कार्यकर्ताओं का है—क्या यह ठीक बात है? क्या यह दृष्टिकोण उनकी संज्ञानात्मक क्षमता में कुछ गड़बड़ होने के कारण उत्पन्न नहीं होता है? वे किस आधार पर निर्णय ले रहे हैं? क्या अगुआओं और कार्यकर्ताओं के पास भेंटों को नियंत्रित करने का अधिकार है? (नहीं।) उनके जिम्मे भेंटों का प्रबंधन करना है, न कि उन्हें नियंत्रित करना और उनका उपयोग करना। उन्हें उनका आनंद लेने का विशेषाधिकार नहीं है। क्या अगुआ और कार्यकर्ता याजकों के बराबर हैं? क्या वे उन लोगों के बराबर हैं जो पूर्ण बनाए जा चुके हैं? क्या वे भेंटों के मालिक हैं? (नहीं।) तो फिर वे बिना अनुमति के इस या उस परिवार के लिए चीजें खरीदने के लिए भेंटों का उपयोग करने का फैसला क्यों करते हैं—उन्हें यह अधिकार क्यों है? उन्हें यह अधिकार किसने दिया? क्या कार्य व्यवस्था में यह निर्धारित है : “अपना पद संभालने के बाद अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सबसे पहले जो करना चाहिए, वह है परमेश्वर के घर की वित्तीय व्यवस्था पर पूरा नियंत्रण रखना”? (नहीं।) तो फिर अगुआओं और कार्यकर्ताओं का एक हिस्सा ऐसा क्यों मानता है? इसमें क्या समस्या है? जब कोई भाई या बहन कोई महँगा वस्त्र अर्पित करता है और अगले दिन कोई अगुआ या कार्यकर्ता उसे पहने होता है, तो यह क्या चल रहा है? भाई-बहनों की चढ़ाई भेंटें किसी व्यक्ति के हाथ में क्यों पहुँच जाती हैं? यहाँ “व्यक्ति” का मतलब अगुआ या कार्यकर्ता के अलावा किसी और से नहीं है। वे मात्र भेंटों का ठीक से प्रबंधन करने में ही विफल नहीं होते हैं—बल्कि वे उन्हें हथियाने और व्यक्तिगत रूप से उनका आनंद लेने की अगुआई भी करते हैं। यहाँ समस्या क्या है? अगर हम ऐसे अगुआओं या कार्यकर्ताओं को इस नजरिए से देखें कि भेंटों के प्रबंधन के मामले में वे वास्तविक कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें नकली अगुआ के रूप में निरूपित किया जा सकता है—लेकिन अगर हम उन्हें इस नजरिए से देखें कि वे भेंटों को हथियाते हैं और व्यक्तिगत रूप से उसका आनंद लेते हैं तो उन्हें सौ प्रतिशत मसीह-विरोधी के रूप में निरूपित जा सकता है। तो वास्तव में ऐसे व्यक्ति को किस रूप में निरूपित करने में समझदारी है? (मसीह-विरोधी के रूप में।) वह नकली अगुआ और मसीह-विरोधी दोनों होता है। भेंटों का प्रबंधन करने में नकली अगुआ सभी भेंटों को देखता है और उनके प्रबंधन के लिए लोगों को नियुक्त करता है। लेकिन ऐसा करने से पहले वह भेंटों का एक हिस्सा अपने लिए हथिया लेता हैं और अनधिकृत रूप से एक अन्य हिस्से को आवंटित करने का फैसला करता है। जहाँ तक बची हुई चीजों का सवाल है—जो उसे नहीं चाहिए या जिनकी उसे पहचान नहीं है लेकिन वह किसी को देना नहीं चाहता—वह उन चीजों को फिलहाल एक तरफ रख देता है। जब उन भेंटों के पता-ठिकाने की बात आती है, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए किसी उपयुक्त व्यक्ति के होने की बात हो, नियमित रूप से उनका निरीक्षण करने का मामला हो, यह देखने की बात हो कि क्या कोई उन्हें चुरा रहा है या क्या कोई उन पर कब्जा कर रहा है, तो नकली अगुआ इन सभी चीजों के बारे में कभी कोई चिंता नहीं करते। उनका सिद्धांत यह है : “मुझे जिन चीजों का आनंद लेना चाहिए और मुझे जिनकी जरूरत है, उन पर मैंने पहले ही हाथ रख लिया है। बची हुई चीजों को, जिनकी मुझे जरूरत नहीं है, जो भी चाहे ले सकता है; जो भी उनका प्रबंधन करना चाहे, वह कर सकता है। वे चीजें उसी की हैं जो उन्हें पहले हड़प ले—वे जिसके हाथ लग जाएँ वही उनका फायदा ले।” यह कैसा सिद्धांत और तर्क है? ऐसे लोग वास्तव में दानव और जानवर हैं!

एक बार एक नकली अगुआ ने कहा कि भंडारघर में बहुत सारा सामान है और मैंने पूछा कि क्या उसने उनका पंजीकरण किया है। उसने कहा, “मुझे यह भी नहीं पता कि उनमें से कुछ चीजें क्या हैं, इसलिए उन्हें पंजीकृत करने का कोई तरीका नहीं है।” मैंने कहा, “यह बकवास है। ऐसा कैसे हो सकता है कि उन चीजों के पंजीकरण का कोई तरीका न हो? जब उन्हें पहली बार यहाँ लाया गया था, तबसे उनका लेखा-जोखा होना चाहिए!” “यह तो बहुत पहले की बात है, उनके बारे में जानने का कोई तरीका नहीं है।” यह किस तरह की बात है? क्या वे जिम्मेदारी ले रहे हैं? (नहीं।) मैंने कहा, “कुछ कपड़े हैं—देखो कि भाई-बहनों में से किसे उनकी जरूरत है और उन्हें कपड़े दे दो।” “उनमें से कुछ पुराने चलन के हैं। उनमें किसी की रुचि नहीं है।” मैंने कहा, “जिन भाई-बहनों को कपड़ों की जरूरत है उन्हें कपड़े दे दो और अगर उन्हें जरूरत नहीं है तो तुम इन्हें उचित तरीके से सँभाल सकते हो।” उसने इसका पालन नहीं किया। क्या वह कर्तव्यनिष्ठ और मेहनती था? जब उससे कोई काम करने के लिए कहा जाता है, तो वह शिकायत करता रहता है, नकारात्मक बातें कहता है और कठिनाइयों की ओर इशारा करता है। वह यह नहीं कहता कि वह सिद्धांतों के अनुसार इन चीजों को अच्छी तरह से सँभाल लेगा। समर्पण करने की उसकी बिल्कुल भी मंशा नहीं है। कोई उससे चाहे जो अपेक्षा करे, वह कठिनाइयों के बारे में बात करता रहता है, मानो इस तरह बोलकर वह उस व्यक्ति को चुप करा देगा, तो जीत जाएगा, भारी पड़ जाएगा और फिर अपना काम पूरा कर लेगा। यह व्यक्ति किस तरह का प्राणी है? तुम्हें अगुआ या कार्यकर्ता इसलिए नहीं बनाया गया कि तुम परेशानी पैदा करो या कठिनाइयाँ और मसले बताते रहो—ऐसा इसलिए किया गया था कि तुम समस्याएँ हल कर सको और मुश्किलों को सँभाल सको। यदि तुम अपने कार्य में वास्तव में सक्षम हो, तो मसलों और कठिनाइयों का जिक्र करने के बाद, इस बारे में बात करोगे कि सिद्धांतों के अनुसार तुम उन्हें कैसे सँभालोगे और हल करोगे। नकली अगुआ केवल नारे लगा सकते हैं, धर्म-सिद्धांतों का उपदेश दे सकते हैं, बड़ी-बड़ी बातें कर सकते हैं और वस्तुनिष्ठ औचित्यों और बहानों के बारे में बात कर सकते हैं—उनके पास कोई वास्तविक कार्य क्षमता नहीं होती, और भेंटों के प्रबंधन के मामले में भी वे उसी तरह सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने या अपनी जिम्मेदारी पूरी करने में असमर्थ होते है। वे इतने कमजोर दिमाग के और अक्षम होते हैं, फिर भी उन्हें लगता है कि अगुआ या कार्यकर्ता होने के कारण उनके पास विशेषाधिकार और रुतबा है, विशिष्ट पहचान है और वे भेंटों के मालिक और उपयोगकर्ता हैं। इस तरह का नकली अगुआ केवल भेंटों को खर्च करने के विशेषाधिकार का आनंद लेना जानता है—वह भेंटों के अनुचित और अविवेकपूर्ण व्यय के किसी भी मामले को देख या खोज नहीं सकता, और हो सकता है कि देख लेने पर भी वह उन्हें सँभालने के लिए कुछ न करे। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि वह केवल अगुआ या कार्यकर्ता होने के साथ आने वाले श्रेष्ठताबोध का आनंद लेना जानता है—उसे अगुआओं और कार्यकर्ताओं से परमेश्वर की अपेक्षाओं की समझ या परमेश्वर के घर के कार्य करने के सिद्धांतों की समझ बिल्कुल भी नहीं होती है। वह एकदम बेकार है, कूड़ा है और कूढ़ मगज है। क्या यह उबकाई आने वाली बात नहीं है कि ऐसे भ्रमित लोग फिर भी रुतबे के लाभों का आनंद लेना चाहते हैं? इस प्रकार के नकली अगुआ को हमारे द्वारा उजागर किए जाने से तुम लोगों ने क्या समझा? इस तरह का व्यक्ति जैसे ही अगुआ या कार्यकर्ता बनता है, वह भेंटों के बारे में षड्यंत्र रचना चाहता है और उसकी नजर भेंटों पर गड़ी होती है। कोई एक ही नजर में बता सकता है कि वह पैसों को अनाप-शनाप उड़ाने और भेंटों को फिजूलखर्च करने के लिए लंबे समय से लालायित था। अंततः अब उसके पास मौका है; वह उस तरीके से मनमाना पैसा खर्च कर सकता है और परमेश्वर की भेंटों का अपनी इच्छानुसार उपयोग कर सकता है, उन चीजों का आनंद ले सकता है जिनके लिए उसने कार्य नहीं किया। इस प्रकार उसके लालची असली रंग पूरी तरह उजागर हो जाते हैं। क्या तुम लोग अतीत और वर्तमान के अगुआओं और कार्यकर्ताओं में शामिल ऐसे लोगों को देखते हो? वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियों और परिभाषा की हमेशा गलत व्याख्या करते हैं और अगुआ या कार्यकर्ता बनते ही वे खुद को परमेश्वर के घर का मालिक मानने लगते हैं, खुद को याजकों की श्रेणी में रखते हैं और अपने आप को प्रतिष्ठित व्यक्ति मानने लगते हैं। क्या यह थोड़ी-सी दिमागी कमजोरी नहीं है? क्या ऐसा है कि अगुआ या कार्यकर्ता बनते ही कोई भ्रष्ट मनुष्य नहीं रह जाता? क्या ऐसा है कि वह तुरंत पवित्र व्यक्ति बन जाता है? अगुआ बन जाने के बाद वे भूल जाते हैं कि वे कौन हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें भेंटों का आनंद लेना चाहिए—क्या ऐसे लोग कमजोर दिमाग वाले नहीं हैं? ऐसे लोग निश्चित रूप से कमजोर दिमाग वाले होते हैं, उनके पास सामान्य मानवीय विवेक नहीं होता। हमारे इस तरह से संगति करने के बाद भी वे अब तक नहीं जानते कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं के कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ क्या हैं। इस तरह के अगुआ और कार्यकर्ता निश्चित रूप से होते हैं और ऐसे लोगों की अभिव्यक्तियाँ काफी स्पष्ट और प्रकट होती हैं।

ये मूलतः भेंटों की सुरक्षा के संबंध में विभिन्न प्रकार के नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ हैं। अधिक गंभीर समस्याओं वाले लोग नकली अगुआओं की श्रेणी में नहीं आते—वे मसीह-विरोधी होते हैं। इसलिए तुम लोगों को इस दायरे को अच्छी तरह से समझने की जरूरत है। यदि कोई नकली अगुआ है तो वह नकली अगुआ ही है—उसे मसीह-विरोधी नहीं कहा जा सकता। मसीह-विरोधी मानवता, कार्यकलापों, अभिव्यक्तियों और सार के संदर्भ में नकली अगुआओं की तुलना में बहुत अधिक बुरे होते हैं। अधिकांश नकली अगुआओं की काबिलियत कम होती है, वे कमजोर दिमाग वाले होते हैं, उनमें कार्य क्षमता नहीं होती, उनकी समझ विकृत होती है और उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं होती, उनका चरित्र घटिया होता है, वे स्वार्थी और नीच होते हैं और उनका हृदय सही स्थान पर नहीं लगा होता है। इसके कारण वे भेंटों की सुरक्षा के संबंध में वास्तविक कार्य करने में सक्षम नहीं होते और न ही कर पाते हैं, और इससे भेंटों के उचित प्रबंधन और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है। नकली अगुआओं द्वारा अपने कर्तव्य में लापरवाही बरतने से, वास्तविक कार्य न करने और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों और आवश्यकताओं के अनुसार कार्य न करने के कारण भेंटों का एक हिस्सा बुरे लोगों के हाथ में चला जाता है—इस तरह की समस्या भी काफी बार आती है। भेंटों की सुरक्षा में नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ मूल रूप से इस प्रकार उजागर होती हैं : उनका चरित्र नीच होता है, वे स्वार्थी और नीच होते हैं, उनकी समझ विकृत होती है, उनमें कार्य क्षमता नहीं होती, उनमें बहुत कम काबिलियत होती है, वे सत्य सिद्धांत बिल्कुल भी नहीं खोजते और वे मूर्ख और कमजोर दिमाग वाले लोगों की तरह होते हैं। कुछ लोग कह सकते हैं, “हम उन सभी अन्य अभिव्यक्तियों को स्वीकार करते हैं जिन्हें तुमने उजागर किया, लेकिन अगर वे मूर्ख और कमजोर दिमाग वाले हैं तो वे अगुआ कैसे बन गए?” क्या तुम कुबूल करते हो कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता मूर्ख और कमजोर दिमाग वाले हैं? क्या ऐसे लोग मौजूद हैं? कुछ लोग कह सकते हैं, “तुम हमें बहुत ही तुच्छ समझते हो। हम सब आधुनिक लोग हैं, कॉलेज या हाई स्कूल के स्नातक हैं—हमारे पास इस समाज और इस मानवजाति के बारे में भेद पहचानने की उत्कृष्ट शक्ति है। हम अपने अगुआ के रूप में एक कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति को कैसे चुन सकते हैं? ऐसा शायद नहीं हो सकता!” इसमें असंभव क्या है? तुममें से ज्यादातर लोग कमजोर दिमाग वाले हैं और अपर्याप्त बुद्धि वाले भी हैं, इसलिए तुम्हारे लिए बहुत ही आसान है कि तुम किसी कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति को अगुआ चुन लो। मैं क्यों कहता हूँ कि तुममें से ज्यादातर लोग कमजोर दिमाग वाले हैं? क्योंकि तुम लोगों में से ज्यादातर लोगों के पास चाहे जितना भी अनुभव हो, वे चीजों के सार को अच्छी तरह नहीं देख सकते और सिद्धांतों को नहीं समझ सकते। तुम सालो-साल सिर्फ विनियमों का पालन करते रह सकते हो, बार-बार बिना बदलाव के एक ही दृष्टिकोण अपनाए रख सकते हो और तुम्हारे साथ सत्य की चाहे जैसी संगति की जाए, तुम सत्य सिद्धांत समझने में असमर्थ रह सकते हो। यहाँ समस्या क्या है? तुम्हारी काबिलियत बहुत कम है। तुम समस्याओं के सार या जड़ को अच्छी तरह से समझ नहीं सकते और चीजों के विकास का पैटर्न खोजने में असमर्थ हो, उन सिद्धांतों का पालन करना तो दूर की बात है जो चीजों को करने में होने चाहिए—इसे कमजोर दिमाग का होना कहते हैं। तुम लोगों को अपने कर्तव्यों से संबंधित चीजों के सिद्धांत समझने में कितना समय लगता है? कुछ लोग हैं जो कई सालों से पाठ-आधारित कार्य कर रहे हैं, लेकिन अभी भी वे जो लेख और पटकथा लिखते हैं, उनमें सभी खोखले शब्द होते हैं, वे अभी भी सिद्धांतों को नहीं समझ पाते और नहीं जानते कि वास्तविकता क्या है या कोई वास्तविक बात कैसे कही जाए। यह बहुत कम काबिलियत और बहुत कम बुद्धि का होना है। तुम लोगों के पास जो बुद्धि है, उससे क्या किसी कमजोर दिमाग वाले व्यक्ति को अगुआ के रूप में चुनना बहुत आसान नहीं होगा? और तुम लोग उसे चुनोगे ही नहीं, बल्कि तहेदिल से यह भी चाहोगे कि वह अगुआ बने। जब उसे बरखास्त किया जा रहा होगा तो तुम लोग ऐसा नहीं चाहोगे। दो साल बाद जब तुम उसकी असलियत जान लोगे और समझ हासिल कर लोगे, तब तुम यह भेद पहचान पाओगे कि वह नकली अगुआ है, लेकिन उसके पहले तुम लोगों को चाहे कुछ भी बताया गया हो, तुम लोग उसे बरखास्त नहीं होने दोगे। क्या तुम उससे भी ज्यादा कमजोर दिमाग वाले नहीं हो? मैं क्यों कहता हूँ कि कुछ अगुआ और कार्यकर्ता अपर्याप्त बुद्धि वाले हैं? ऐसा इसलिए कि वे केवल सबसे आसान कार्य करना जानते हैं। जब थोड़ा जटिल कार्य आता है, तो वे नहीं जानते कि उसे कैसे किया जाए, जब उन्हें थोड़ी सी कठिनाई होती है, तो वे नहीं जानते कि इसे कैसे सँभालना है, और जब उन्हें कोई अतिरिक्त कार्य दिया जाता है तो वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं। क्या यह उनकी बुद्धि से जुड़ी समस्या नहीं है? क्या ऐसे अगुआओं को तुम्हीं लोग नहीं चुनते हो? और तुम लोग उनकी प्रशंसा में बिछे जाते हो : “वे किसी रोमांटिक साथी की तलाश किए बिना परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और उन्होंने बीस से अधिक वर्षों तक खुद को परमेश्वर के लिए खपाया है। उनमें कष्ट सहने की इच्छा है, ठीक है, और वे अपने कार्य के प्रति वास्तव में गंभीर हैं।” “तो भी, क्या वे अपने कार्य में लागू होने वाले सिद्धांतों को समझते हैं?” “अगर वे नहीं समझते तो फिर कौन समझता है?” और जब उनके कार्य का निरीक्षण किया जाता है तो पता चलता है कि यह पूरी तरह से गड़बड़ है—वे किसी भी कार्य को लागू करने में सक्षम नहीं हैं। उन्हें उनके कार्य के सिद्धांत बताए जाते हैं, लेकिन वे कभी नहीं जान पाते कि उसे कैसे करना है। वे बस सवाल पूछते रहते हैं, और जब तक उन्हें साफ-साफ नहीं बताया जाता, तब तक उन्हें नहीं पता होता कि क्या करना है। उन्हें सिद्धांत बताना कुछ न कहने जैसा है; भले ही सिद्धांतों को एक-एक करके सूचीबद्ध किया जाए, फिर भी वे नहीं जान पाते कि उस कार्य को कैसे लागू किया जाए। क्या इस तरह के अगुआ होते हैं? उन्हें चाहे जैसे सिद्धांत बता दिए जाएँ, वे उन्हें नहीं समझते और कार्य को क्रियान्वित नहीं कर पाते। उनके साथ संगति करो या उन्हें एक ही शब्द या चीज के बारे में कई बार निर्देश दो, फिर भी वे समझते नहीं हैं और इसके बाद भी समस्या पूरी तरह अनसुलझी रह जाती है—फिर भी वे पूछते हैं कि क्या करना है और अगर एक भी पँक्ति छूट गई तो काम नहीं चलेगा। क्या वे कमजोर दिमाग वाले नहीं हैं? क्या ये कमजोर दिमाग वाले अगुआ तुम्हीं लोगों ने नहीं चुने हैं? (चुने हैं।) तुम इससे इनकार नहीं कर सकते, है ना? पक्की बात है कि ऐसे अगुआ हैं।

नकली अगुआओं की जिन विभिन्न अभिव्यक्तियों पर हम आज संगति कर रहे हैं, वे मुख्य रूप से भेंटों के प्रबंधन कार्य से संबंधित हैं। नकली अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को हमारे द्वारा उजागर किए जाने से लोगों को जान लेना चाहिए कि भेंटों का प्रबंधन अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण कार्य है और उन्हें इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए। भले ही सामान्य मामलों का यह कार्य दूसरे कार्य से अलग है, पर इसका संबंध परमेश्वर के घर के अन्य कार्यों के सामान्य संचालन से है। इसलिए भेंटों का प्रबंधन करना बहुत ही महत्वपूर्ण, आवश्यक कार्य है। यह महत्वपूर्ण कैसे है? भेंटों के प्रबंधन कार्य में सुरक्षित रखी गई चीजें परमेश्वर की होती हैं—इसे थोड़ा अनुचित तरीके से कहें तो वे चीजें परमेश्वर की निजी संपत्ति होती हैं, इसलिए अगुआओं और कार्यकर्ताओं को इस कार्य के संबंध में और भी अधिक पूरे दिल से, कर्तव्यनिष्ठा और मेहनत से काम करना चाहिए। यदि हम इस कार्य को इसकी प्रकृति के संदर्भ में देखें, तो मुझे नहीं लगता कि इसे प्रशासनिक कार्य के अंतर्गत सूचीबद्ध करना कोई अतिशयोक्ति होगी। हम इसे प्रशासनिक कार्य की श्रेणी में इसलिए डाल रहे हैं क्योंकि यह कार्य करना परमेश्वर और उसकी संपत्तियों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण से संबंधित है। इसलिए इस कार्य को करने में लोगों के लिए सही दृष्टिकोण रखना और सही सिद्धांतों को समझना आवश्यक है। हम इसे प्रशासनिक कार्य की श्रेणी में इसलिए डाल रहे हैं ताकि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह समझ में आ जाए कि यह कार्य करना बहुत महत्वपूर्ण है, यह बहुत भारी कार्यदायित्व है और बहुत भारी बोझ है। इसका उद्देश्य उन्हें यह समझाना है कि उन्हें इसे सामान्य मामलों के कार्य की तरह नहीं देखना चाहिए—कि उन्हें इस कार्य के महत्व का सटीक और गहरा ज्ञान होना चाहिए और फिर इसके प्रति पूरे दिल, कर्तव्यनिष्ठा और मेहनत से लगना चाहिए। लोग दूसरे लोगों के प्रति असावधान हो सकते हैं—भले ही गलतियाँ हो जाएँ, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। लेकिन मैं लोगों से आग्रह करता हूँ कि वे परमेश्वर के प्रति अपने दृष्टिकोण में भ्रमित न रहें, बेपरवाह न रहें और “केवल बातें और कोई काम नहीं” का रवैया न रखें। भेंटों का अच्छी तरह से प्रबंधन करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं के लिए परमेश्वर का एक महत्वपूर्ण आदेश है।

8 मई 2021

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