246 केवल सत्य की तलाश ही जीवन ला सकती है
सत्य और जीवन को पाने और स्वभावों को बदलने के लिए,
हमें न्याय और ताड़ना को स्वीकार करना ही चाहिए।
ईमानदार बनने के लिए, अपने कर्तव्य में गड़बड़ी न हो इसलिए,
हमें काट-छाँट को सहर्ष स्वीकार करना ही चाहिए।
सत्य की वास्तविकता में प्रवेश,
और परमेश्वर की सराहना पाने के लिए,
हमें हर बात में सत्य का अभ्यास करना ही
होगा।पूर्ण बनाए जाने और मसीह से अनुकूल होने के लिए,
हमें परीक्षणों की बहुत पीड़ा से गुज़रना ही होगा।
I
अतीत में भूलें करके मैंने सबक सीखे हैं।
पिछली गलतियों को मैं सही करना चाहता हूँ।
फिर भी मैं सत्य की तलाश जारी रखूँगा,
भले ही मुझे बाधाएँ और असफलताएँ मिलें।
परीक्षणों और परिशोधन से गुज़रकर,
मैं परमेश्वर का प्रेम चखता हूँ,
और इस तरह परमेश्वर के लिए मेरा प्रेम अधिक निर्मल हो जाता है।
परमेश्वर! मैं समीप से तुम्हारा अनुसरण करना चाहता हूँ।
जीवन को पाने के लिए, मैं सत्य की तलाश में रुकूँगा नहीं।
तुम्हारे मार्ग और परामर्श का मैं पालन करूँगा,
तुम्हारे लिए एक ज़बरदस्त गवाही देते हुए।
सत्य और जीवन को पाने और स्वभावों को बदलने के लिए,
हमें न्याय और ताड़ना को स्वीकार करना ही होगा।
ईमानदार बनने के लिए, अपने कर्तव्य में गड़बड़ी न हो इसलिए,
हमें काट-छाँट को सहर्ष स्वीकार करना ही होगा।
सच्चाई की वास्तविकता में प्रवेश,
और परमेश्वर की सराहना पाने के लिए,
हमें हर बात में सच्चाई का अभ्यास करना होगा।
परिपूर्ण बनाए जाने और मसीह से अनुकूल होने के लिए,
हमें परीक्षणों की बहुत पीड़ा से गुज़रना ही होगा।
II
परमेश्वर के न्याय से मेरी भ्रष्टता बदल चुकी है।
मैं अपने कर्तव्य को ठीक से करता हूँ, मैं सच्चा इंसान हूँ।
मैं परमेश्वर के नियोजन का पालन करना चाहता हूँ,
चाहे कैसी भी परीक्षा या पीड़ा हो।
मैं सत्य को हासिल करूँगा, गवाही दूँगा।
मैं परमेश्वर से प्रेम करूँगा, उसके लिए गवाही दूँगा।
परमेश्वर! मैं समीप से तुम्हारा अनुसरण करना चाहता हूँ।
जीवन को पाने के लिए, मैं सत्य की तलाश में रुकूँगा नहीं।
मुझे और भी न्याय चाहिए, परिशुद्ध होने के लिए।
सत्य को पाना, बचाया जाना मेरी शान है।
सत्य और जीवन को पाने और स्वभावों को बदलने के लिए,
हमें न्याय और ताड़ना को स्वीकार करना ही होगा।
ईमानदार बनने के लिए, अपने कर्तव्य में गड़बड़ी न हो इसलिए,
हमें काट-छाँट को सहर्ष स्वीकार करना ही होगा।
सच्चाई की वास्तविकता में प्रवेश,
और परमेश्वर की सराहना पाने के लिए,
हमें हर बात में सच्चाई का अभ्यास करना होगा।
परिपूर्ण बनाए जाने और मसीह से अनुकूल होने के लिए,
हमें परीक्षणों की बहुत पीड़ा से गुज़रना ही होगा।