501 शरीर त्यागने का अभ्यास
I
गर ऐसा कुछ हो जाए जिसमें सहनी पड़ें मुश्किलेंतुझे,
तो उस वक्त परमेश्वर की इच्छा को समझ और ध्यान में रख।
ख़ुद को संतुष्ट न कर, ख़ुद को दरकिनार कर।
शरीर से अधम और कुछ भी नहीं।
तू परमेश्वर की खोज कर, उसे संतुष्ट कर, और अपना फर्ज़ पूरा कर।
परमेश्वर लाएगा इस मामले में
विशेष प्रबुद्धता ऐसे विचारों के संग,
और मिलेगी तेरे दिल को दिलासा।
II
जब तेरे साथ कुछ घटे,
तो तू ख़ुद को दरकिनार कर,
शरीर को हर चीज़ से तू अधम मान।
शरीर को तू जितना संतुष्ट करेगा,
उतनी ही ज़्यादा ये माँग करेगा, उतनी ही ज़्यादा ये छूट लेगा,
जितनी ये ख़्वाहिशें करेगा, उतना ही ये ऐयाश बनेगा।
शरीर उस हद तक जाएगा जहाँ ये
गहन धारणाएं पालेगा, परमेश्वर की अवज्ञा करेगा,
ख़ुद को ऊँचा उठाएगा, परमेश्वर के कार्य पर सन्देह करेगा।
III
साँप की मानिंद है शरीर इंसान का, ये नुकसान पहुँचाता है ज़िंदगी को।
जब ये अपनी मनमानी करता है पूरी तरह,
तो खो बैठते हो तुम ज़िंदगी पर अधिकार अपना।
शरीर होता है शैतान का।
फिज़ूल की ख़्वाहिशों के संग ये ख़ुदगर्ज़ होता है,
चाहता है सुख-सुविधा, आराम, सहूलियत और निष्क्रियता।
एक हद तक जब हो जाएगा संतुष्ट ये,
तो आख़िरकार निगल जाएगा तुम्हें भी ये।
गर ऐसा कुछ हो जाए जिसमें सहनी पड़ें मुश्किलेंतुझे,
तो उस वक्त परमेश्वर की इच्छा को समझ और ध्यान में रख।
ख़ुद को संतुष्ट न कर, ख़ुद को दरकिनार कर।
शरीर से अधम और कुछ भी नहीं।
तू परमेश्वर की खोज कर, उसे संतुष्ट कर, और अपना फर्ज़ पूरा कर।
परमेश्वर लाएगा इस मामले में
विशेष प्रबुद्धता ऐसे विचारों के संग,
और मिलेगी तेरे दिल को दिलासा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से