502 दैहिक इच्छाएँ त्यागने का अर्थ

1

ईश्वर ने बचाया तुम्हें, चुनी किस्मत तुम्हारी,

लेकिन अगर तुम उसे संतुष्ट न करो,

सत्य का अभ्यास न करो,

ईश्वर-प्रेमी हृदय से अपने देह की इच्छाओं से न लड़ो,

तो खुद को बर्बाद कर लोगे, दर्द में डूब जाओगे।


2

अगर तुम सिर्फ़ देह की परवाह करोगे,

तो धीरे-धीरे शैतान निगल जाएगा तुम्हें,

न जीवन बचेगा, न स्पर्श आत्मा का,

तुम्हारे अंदर अंधकार भर जाएगा।

फिर शैतान के बंदी बन जाओगे तुम,

तुम्हारे दिल में ईश्वर न रहेगा, उसे नकारकर छोड़ दोगे तुम।


क्या तुम ईश्वर के सामने जीवन पाओगे, क्या होगा अंत तुम्हारा,

निर्भर करे कि तुम कैसे लड़ते अपने देह से।


3

ईश्वर से प्रेम करने के लिए तुम्हें कठिनाई और दर्द सहना होगा।

तुम्हें बाहरी जोश या कठिनाई की,

ज्यादा पढ़ने, दौड़ने-भागने की ज़रूरत नहीं।

फ़िजूल विचार, अपने हित करो किनारे,

अपनी धारणाएँ और इरादे छोड़ो,

अपनी योजनाएँ मन से निकालो, यही ईश-इच्छा है।


क्या तुम ईश्वर के सामने जीवन पाओगे, क्या होगा अंत तुम्हारा,

निर्भर करे कि तुम कैसे लड़ते अपने देह से।


ईश्वर कहे लोगों से सत्य का अभ्यास करने के लिए,

अपने भीतर की उन चीज़ों, विचारों,

धारणाओं से निपटने के लिए जो ईश्वर के हृदय के अनुसार नहीं।

इंसान की ये बातें ईश्वर के काम की नहीं, देह भरा हुआ है विद्रोह से,

इसलिए इंसान को देह से लड़ना सीखना होगा।

ईश्वर इसे ही कष्ट कहे, चाहे कि इंसान इसे उसके संग सहे।


क्या तुम ईश्वर के सामने जीवन पाओगे, क्या होगा अंत तुम्हारा,

निर्भर करे कि तुम कैसे लड़ते अपने देह से।

क्या तुम ईश्वर के सामने जीवन पाओगे, क्या होगा अंत तुम्हारा,

निर्भर करे कि तुम कैसे लड़ते अपने देह से।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है से रूपांतरित

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