503 परमेश्वर की मनोरमता को देखने के लिए देहासक्ति को त्याग दो
1 यदि तुम परमेश्वर से सचमुच प्रेम करते हो, और देह को संतुष्ट नहीं करते हो, तो तुम देखोगे कि परमेश्वर जो कुछ करेगा वह बहुत सही, और बहुत अच्छा होता है, और यह कि तुम्हारे विद्रोह के लिए उसका श्राप और तुम्हारी अधार्मिकता के बारे में उसका न्याय तर्कसंगत होता है। ऐसे समय होंगे जब परमेश्वर तुम्हें ताड़ना देगा और अनुशासित करेगा, तुम्हें उसके सामने आने के लिए बाध्य करते हुए, तुम्हें तैयार करने के लिए वातावरण बनाएगा—और तुम हमेशा यह महसूस करोगे कि जो कुछ परमेश्वर कर रहा है वह अद्भुत है। इस प्रकार तुम ऐसा महसूस करोगे मानो कि कोई अत्यधिक पीड़ा नहीं है, और यह कि परमेश्वर बहुत प्यारा है।
2 यदि तुम देह की कमज़ोरियों को बढ़ावा देते हो, और कहते हो कि परमेश्वर बहुत दूर चला जाता है, तो तुम हमेशा ही पीड़ा का अनुभव करोगे, और हमेशा ही उदास रहोगे और तुम परमेश्वर के समस्त कार्य के बारे में अस्पष्ट रहोगे, और ऐसा प्रतीत होगा मानो कि परमेश्वर मनुष्यों की कमज़ोरियों के प्रति बिल्कुल भी सहानुभूतिशील नहीं है, और मनुष्यों की कठिनाईयों से अनजान है। इस प्रकार से तुम दुःखी और अकेला महसूस करोगे, मानो कि तुमने अत्यधिक अन्याय सहा है, और इस समय तुम शिकायत करना आरम्भ कर दोगे।
3 जितना अधिक तुम इस प्रकार से देह की कमज़ोरियों को बढ़ावा दोगे, उतना ही अधिक तुम महसूस करोगे कि परमेश्वर बहुत दूर चला जाता है, जब तक कि यह इतना बुरा नहीं हो जाता है कि तुम परमेश्वर के कार्य को इनकार कर देते हो, और परमेश्वर का विरोध करने लगते हो और अवज्ञा से भर जाते हो। इस प्रकार से, तुम्हें अवश्य देह के विरोध में विद्रोह करना चाहिए, और इसको बढ़ावा नहीं देना चाहिए: "मेरा पति (मेरी पत्नी), बच्चे, सम्भावनाएँ, विवाह, परिवार—इनमें से कुछ भी मायने नहीं रखता है! मेरे हृदय में केवल परमेश्वर ही है और मुझे परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना अथक प्रयास अवश्य करना चाहिए और देह को संतुष्ट करने के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए।" तुममें ऐसा संकल्प होना चाहिए।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है" से रूपांतरित