177 मैं परमेश्वर की गवाही देने की शपथ लेती हूँ
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चीन में शैतानों का किला है, जहाँ शैतान की सत्ता है, वहाँ मानवाधिकारों का नामोनिशान नहीं है।
परमेश्वर के वचनों की गवाही देते और सुसमाचारों का प्रचार करते हुए, सीसीपी ने मुझे गिरफ्तार कर लिया था।
क्रूर और दुष्ट पुलिस ने मेरे साथ सख्ती बरती, नरमी बरती और मुझे परमेश्वर को धोखा देने के लिए मजबूर करने का प्रयास किया।
क्रूर यातना और बुरी तरह से पीट-पीटकर उन्होंने मेरे शरीर को तहस-नहस कर दिया।
जिंदगी और मौत के बीच झूलते हुए यह तय करना मुश्किल था : निष्ठावान रहूँ या समझौता कर लूँ?
मेरा मन कमजोर था; मैंने परमेश्वर से मेरी रक्षा करने और मुझे आस्था प्रदान करने की प्रार्थना की।
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परमेश्वर के वचनों से प्रबुद्ध होकर, मैं गहराई से समझ गई : जिंदगी और मौत परमेश्वर के हाथों में है।
परमेश्वर के प्राणी के नाते हम उसके प्रेम का आनंद लेते हैं, इसलिए हमें उसके प्रति निष्ठावान रहना चाहिए।
अपने देह को बनाए रखना स्वार्थ और नीचता है, यह स्वार्थ मुझे निर्लज्ज यहूदा बना देगा।
अगर मैं अपना जीवन बचाने के लिए शैतान के सामने हार मान लूँ, तो निश्चय ही परमेश्वर मुझे दंड देगा।
धार्मिकता के लिए कष्ट उठाते हुए मेरे मन में कोई शिकायत नहीं है; मैं केवल परमेश्वर को महिमामंडित करना चाहती हूँ।
मैं पतरस का अनुकरण करूँगी, मौत को गले लगाऊँगी और शानदार गवाही दूंगी।
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परमेश्वर बहुत बुद्धिमान है; उसने मेरी परीक्षा लेने और मुझे पूर्ण बनाने के लिए इस परिवेश की व्यवस्था की है।
परमेश्वर के वचन सच्ची आस्था देते हैं, और मुझे मौत का कोई भय नहीं।
मैं बिना किसी शिकायत या पश्चाताप के, परमेश्वर से प्रेम करने का संकल्प लेती हूँ, मेरा दिल अटल है।
मैं अपना जीवन देती हूँ, परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पित होकर उसकी संतुष्टि को प्राथमिकता देती हूँ।
स्वर्गिक राज्य का मार्ग बहुत लंबा है, हर कदम पर खतरा है, लेकिन मैं परमेश्वर का अनुसरण करने का संकल्प लेती हूँ।
मैं शैतान को शर्मिंदा करूँगी, परमेश्वर को गौरवान्वित करूँगी और व्यर्थ का जीवन नहीं जिऊँगी।