300 इतनी मलिन धरती पर रहते हैं लोग

1

परमेश्वर से ज़्यादा दूर है, उसका ज़्यादा विरोधी है इंसान

क्योंकि मलिन धरती पर जन्मा है वो, समाज से बर्बाद हुआ है इंसान।

सामंती नैतिकता के प्रभाव में है इंसान,

"ऊँची तालीम के स्कूलों" में पढ़ा है इंसान;

इंसान के दिल और ज़मीर पर हमला हुआ है

पिछड़े ख़्यालात का, भ्रष्ट नैतिकता का, नीच फ़लसफ़े का, नाकारा वजूद का,

ख़राब रस्मों, जीवन-शैली का, जीवन पर तुच्छ विचारों का।


2

दिन-ब-दिन दुष्ट होता जाता है उसका स्वभाव।

कोई नहीं है जो परमेश्वर की ख़ातिर,

कुछ-भी त्याग करना चाहता हो स्वेच्छा से,

या आज्ञापालन करना चाहता हो,

उसका प्रकटन खोजना चाहता हो स्वेच्छा से।

इनके बजाय शैतान की प्रभुता के अधीन, भागते हैं सब भोगों के पीछे,

मलिनता की धरती पर

देह की भ्रष्टता के हवाले कर देते हैं ख़ुद को, कर देते हैं ख़ुद को।

अंधेरे में रहने वाले, सुनकर भी सत्य पर अमल नहीं करते,

परमेश्वर का प्रकटन देखकर भी खोज उसकी नहीं करते।

कैसे पा सकता है उद्धार,

कैसे जी सकता है रोशनी में इतना दूषित और पतित इंसान?


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपरिवर्तित स्वभाव होना परमेश्वर के साथ शत्रुता रखना है से रूपांतरित

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