301 लोग परमेश्वर के असली चेहरे को नहीं जानते हैं

1 विश्व के सृजन के समय से, शैतान द्वारा लोगों को भ्रष्ट करने से लेकर आज वे जिस हद तक भ्रष्ट हैं वहाँ तक, यह उनकी भ्रष्टता के कारण है कि मैं मनुष्यों से, उनके दृष्टिकोण से, और भी अधिक छिप गया हूँ और अधिक से अधिक अथाह बन गया हूँ। मनुष्य ने कभी भी मेरा वास्तविक चेहरा नहीं देखा है और कभी भी प्रत्यक्ष रूप से मेरे साथ बातचीत नहीं की है। मनुष्य की कल्पना में "मैं" केवल किंवदन्ती और मिथकों में रहा है। इसलिए मैं मनुष्यों के मन के "मैं" को काबू करने के लिए मानवीय कल्पनाओं के अनुरूप, अर्थात्, मानवीय धारणाओं के अनुरूप होता हूँ, ताकि मैं उस "मैं" की अवस्था को बदल सकूँ जिसे उन्होंने बहुत वर्षों से बनाया हुआ है। यह मेरे कार्य का सिद्धान्त है। कोई एक भी व्यक्ति इसे पूरी तरह से जानने में समर्थ नहीं हुआ है।

2 यद्यपि मनुष्यों ने अपने आप को मेरे सामने दंडवत किया है और वे मेरे सम्मुख मेरी आराधना करने आए हैं, फिर भी मैं इस तरह के मानवीय कार्यों का आनंद नहीं लेता, क्योंकि अपने हृदयों में लोग मेरी छवि को नहीं, बल्कि मुझसे इतर दूसरी छवि को धारण करते हैं। इसलिये, उनके मन में मेरे स्वभाव की समझ का अभाव है, वे मेरे वास्तविक चेहरे को बिलकुल भी नहीं पहचानते।नतीजन, जब वे मानते हैं कि उन्होंने मेरा विरोध किया है या मेरी प्रशासनिक आज्ञा का उल्लंघन किया है, मैं तब भी अपनी आँख मूँद लेता हूँ-और इसलिए, उनकी स्मृति में, मैं या तो ऐसा परमेश्वर हूँ जो मनुष्यों को ताड़ना देने की अपेक्षा उन पर दया दिखाता है, या मैं ऐसा स्वयं परमेश्वर हूँ जिसके कहने का आशय वह नहीं होता जो वो कहता है। ये सब मनुष्यों के विचारों में जन्मी कल्पनाएँ हैं, और ये तथ्यों के अनुसार नहीं हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 14 से रूपांतरित

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