359 इंसान परमेश्वर के वचनों को दिल से ग्रहण नहीं करता

1

परमेश्वर ने एक बार इंसान को दिखाया था

अपने दिव्य राज्य का ख़ूबसूरत नज़ारा।

इंसान मगर ललचाई नज़रों से महज़ ताकता रहा।

सचमुच कोई प्रवेश नहीं करना चाहता था।

एक बार परमेश्वर ने इंसान को धरती की चीज़ों का हाल बताया,

सुनी उसकी बात इंसान ने, मगर उसके वचनों को दिल से नहीं लगाया।

एक बार परमेश्वर ने इंसान को स्वर्ग का सच बताया,

इंसान ने उस सच को मगर किस्सा बताया

और उसके वचनों को दिल से नहीं लगाया।


2

इंसानों के बीच राज्य के नज़ारे आज कौंधते हैं,

लेकिन किसने उसकी खोज में एक किया है ज़मीन-आसमान?

बिना ईश्वरीय प्रेरणा के अपनी गहरी नींद से, अभी भी नहीं जागेगा इंसान।

क्या सचमुच इतना मोहित है धरती के जीवन से इंसान?

क्या कोई ऊँचे आदर्श नहीं हैं उसके दिल में?

एक बार परमेश्वर ने इंसान को धरती की चीज़ों का हाल बताया,

सुनी उसकी बात इंसान ने, मगर उसके वचनों को दिल से नहीं लगाया।

एक बार परमेश्वर ने इंसान को स्वर्ग का सच बताया,

इंसान ने उस सच को मगर किस्सा बताया

और उसके वचनों को दिल से नहीं लगाया।

एक बार परमेश्वर ने इंसान को धरती की चीज़ों का हाल बताया,

सुनी उसकी बात इंसान ने, मगर उसके वचनों को दिल से नहीं लगाया।

एक बार परमेश्वर ने इंसान को स्वर्ग का सच बताया,

इंसान ने उस सच को मगर किस्सा बताया

और उसके वचनों को दिल से नहीं लगाया।

उस सच को मगर किस्सा बताया और उसके वचनों को दिल से नहीं लगाया।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 25 से रूपांतरित

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