800 परमेश्वर को जानकर ही कोई उसका भय मान सकता है और बुराई से दूर रह सकता है

1

बुराई त्यागने को, तुम्हें भय ईश्वर का मानना होगा।

भय प्राप्त करने को, तुम्हें ईश्वर को जानना होगा।

ईश्वर को जानने को तुम्हें अभ्यास वचनों का करना होगा,

उसके अनुशासन और न्याय को महसूस करना होगा।

ईश्वर का भय और बुराई का त्याग असंख्य संबंध के धागों से,

जुड़ा है परमेश्वर के ज्ञान से।

केवल ईश्वर को जो जान सके वही उसका भय करे और बुराई से दूर रहे।


2

ईश्वर के वचनों का अभ्यास करने को,

तुम्हें परमेश्वर और उसके वचनों के रूबरू होना होगा।

परिवेश सजाने की ईश्वर से करो याचना

ताकि तुम उसके वचनों का अनुभव करो।

ईश्वर का भय और बुराई का त्याग असंख्य संबंध के धागों से,

जुड़ा है परमेश्वर के ज्ञान से।

केवल ईश्वर को जो जान सके वही उसका भय करे और बुराई से दूर रहे।


3

ईश्वर के वचनों के रूबरू होने को,

तुम्हें होगा रखना एक सच्चा दिल और इच्छा सच को स्वीकारने की।

सच्चा जीव होने की अभिलाषा की इसमें आवश्यकता है,

सहने की और बुराई को त्यागने की इच्छा की।

ईश्वर का भय और बुराई का त्याग असंख्य संबंध के धागों से,

जुड़ा है परमेश्वर के ज्ञान से।

केवल ईश्वर को जो जान सके वही उसका भय करे।

ईश्वर का भय और बुराई का त्याग असंख्य संबंध के धागों से,

जुड़ा है परमेश्वर के ज्ञान से।

केवल ईश्वर को जो जान सके वही उसका भय करे और बुराई से दूर रहे।


4

आगे बढ़ो, ईश्वर के क़रीब, तुम्हारे अस्तित्व का मूल्य बढ़ जाएगा।

और पवित्र तुम्हारा दिल बनेगा, जीवन तुम्हारा सार्थक और उज्ज्वल होगा।

ईश्वर का भय और बुराई का त्याग असंख्य संबंध के धागों से,

जुड़ा है परमेश्वर के ज्ञान से।

केवल ईश्वर को जो जान सके वही उसका भय करे।

ईश्वर का भय और बुराई का त्याग असंख्य संबंध के धागों से,

जुड़ा है परमेश्वर के ज्ञान से।

केवल ईश्वर को जो जान सके वही उसका भय करे और बुराई से दूर रहे।


—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, प्रस्तावना से रूपांतरित

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