7. किस तरह मैं लगभग एक मूर्ख क्‍वाँरी बन गयी थी

ली फेंग, चीन

2002 की शरद ऋतु में कलीसिया की मेरी शाखा, द चर्च ऑफ़ ट्रुथ, की बहन झाओ, प्रभु के आगमन का महान समाचार देने, अपनी भतीजी, सिस्‍टर वाँग को मेरे घर लेकर आयीं। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने और सिस्‍टर वाँग का विस्‍तृत संवाद सुनने के कुछ दिन बाद, मुझे समझ में आया कि सृष्टि की रचना से लेकर अब तक परमेश्‍वर ने मानव-जाति की रक्षा की ख़ातिर तीन चरणों में कार्य किया है। कुछ दूसरी सच्‍चाइयाँ भी मुझे जानने को मिलीं, जैसेकि अपने कार्य के हर चरण में परमेश्‍वर द्वारा अपने लिए एक अलग नाम अपनाना, हर युग में परमेश्‍वर के नाम का मर्म, और परमेश्‍वर के देहधारण का रहस्‍य, आदि। ये सच्‍चाइयाँ मेरे लिए आँख खोल देने वाली साबित हुईं, और उनको जानकर मुझे बहुत सुख मिला। मैंने मन-ही-मन सोचा: "यह रास्‍ता एकदम स्‍पष्‍ट लगता है, और बहुत मुमकिन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ही वापस लौटा प्रभु यीशु हो, इसलिए बेहतर होगा कि मैं निश्चय ही इस अवसर का फ़ायदा उठाऊँ और सर्वशक्तिमन परमेश्‍वर के वचनों को ज्‍़यादा-से-ज्‍़यादा पढ़ूँ।" सिस्‍टर वाँग जाते-जाते परमेश्‍वर के वचनों की कुछ पुस्‍तकें मेरे लिए छोड़ गयीं। दिन में जब कभी मुझे वक्‍़त मिलता, मैं परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ती। जितना ही मैं उनको पढ़ती गयी उतना ही उनको पढ़ना मुझे अच्‍छा लगने लगा और उतना ही मुझे महसूस होता गया कि वे परमेश्‍वर के ही वचन हैं। तीन दिन बाद मैं बेचैन हो उठी। मैंने सोचा: "मेरा बेटे को, जो खुद भी एक विश्‍वासी है, और मेरी कलीसिया के भाइयों और बहनों को अभी भी प्रभु की वापसी की इस महान ख़बर की जानकारी नहीं है। बेहतर होगा कि मैं जल्‍दी से जाकर उनको यह बताऊँ।"

अगले दिन सुबह-सुबह मैं अपने बेटे के घर गयी। मैंने प्रसन्‍न चित्‍त से उससे कहा, "यह बहुत ही महान पुस्‍तक है। तुम्‍हें इसे जल्‍दी-से-जल्‍दी पढ़ना चाहिए।" मेरे बेटे ने सरसरी निगाह से मेरी ओर देखा और पूछा, "क्‍या पुस्‍तक है? आप बहुत आनन्दित लग रही हैं। इसको वहाँ रख दें, जब मुझे वक्‍़त मिलेगा मैं इस पर नज़र डालूँगा।" मैंने सोचा था कि जिस तरह सारे विश्‍वासी प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा करते हैं, उसी तरह मेरा बेटा भी यह जानकर ख़ुश होगा कि प्रभु आ चुका है।

लेकिन मैंने कभी दूर-दूर तक कल्‍पना भी न की होती कि तीन दिन बाद मेरा बेटा छह लोगों के मुखिया के रूप में मेरे घर पर आ पहुँचेगा। उनमें से एक कलीसिया की मेरी शाखा के पादरी शा थे, और बाक़ी मेरे बेटे की कलीसिया की शाखा के पादरी और उपदेशक थे। उनको देखकर मैं भौंचक्‍की थी, क्‍योंकि मैं समझ नहीं पा रही थी कि मामला क्‍या है और इतने सारे लोग मुझसे मिलने क्‍यों आये हैं। ली नामक एक पादरी ने पल भर मेरी ओर नज़रें गड़ाकर देखा और चेहरे पर चिन्‍ता का भाव लिये हुए कहा, "ऑण्‍टी, हम सब प्रभु में विश्‍वास रखने वाले लोग हैं, एक बड़ा परिवार। आपका बेटा मुझे बता रहा है कि किसी ने आपको कोई पुस्‍तक दी है, लेकिन वास्‍तव में आपको वह पुस्‍तक पढ़नी नहीं चाहिए। ये अन्तिम दिन हैं, और प्रभु यीशु ने कहा था: 'उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें' (मत्ती 24:23-24)। हमारा विश्‍वास है कि प्रभु यीशु के इन वचनों का अर्थ यह है कि जो भी कोई यह कहता है कि प्रभु लौट चुका है, वह धोखेबाज़ है जिससे हमें बचना चाहिए और उसकी बात पर ध्‍यान नहीं देना चाहिए। ठीक इस वक्‍़त, सारी दुनिया में सिर्फ़ ईस्‍टर्न लाटनिंग है जो सार्वजनिक तौर पर प्रभु की वापसी की गवाही दे रही है, इसलिए, आप जो भी कुछ करें, अब के बाद से उनके साथ कोई सम्‍बन्‍ध न रखें। न ही ईस्‍टर्न लाइटनिंग की कोई भी पुस्‍तक पढ़ें। उनका रास्‍ता हमारी आस्‍था से अलग है, इसलिए उनकी बातों पर ध्‍यान न दें। आप बाइबल को बहुत ठीक से नहीं समझतीं, और आपका आध्‍यात्मिक क़द छोटा है, इसलिए आप आसानी से धोखे में आ गयी हैं। हम कई सालों से उपदेश करते आ रहे हैं और हम बाइबल को भलीभाँति समझते हैं। हमने बहुत कुछ देखा है और हम जि़न्‍दगी का ज्‍़यादा तजुरबा रखते हैं। हम आज ख़ासतौर से आपको बचाने आये हैं, इसलिए आपको हम पर भरोसा करना होगा और उम्‍मीद है आप इसको लेकर बहस नहीं करेंगी।" जब मैंने यह सुना, तो मैंने मन-ही-मन सोचा: "यह पादरी मुझको लेकर चिन्तित लगता है और उसने जो कुछ कहा है वह ग़लत नहीं है। मैं बूढ़ी हूँ और ठीक-से पढ़ी-लिखी भी नहीं हूँ, और मैं बाइबल को भी उतना अच्‍छे-से नहीं समझती। मैं निश्‍चय ही सही-ग़लत का भेद उस तरह नहीं कर सकती जिस तरह वे करते हैं।" इस मुकाम पर पादरी शा ने कहा, "मैं एक पादरी हूँ, और प्रभु ने मुझे अपने अनुयायियों का समूह दिया है कि मैं उसका प्रबन्‍ध करूँ। इसलिए यह सुनिश्चित करना मेरी जि़म्‍मेदारी है कि आप सच्‍चे रास्‍ते से न भटकें। अगर मैं प्रभु के अनुयायियों के समूह का ख़याल नहीं रखता तो मैं प्रभु को हिसाब देने के क़ाबिल नहीं रह जाऊँगा। बहन, आप इस तरह दूसरी मण्‍डलियों का चक्‍कर न लगाएँ। अगर आप ईस्‍टर्न लाइटनिंग द्वारा हम लोगों से चुरा ली जाती हैं, तो ये सारे वर्ष अकारथ जाएँगे जिनके दौरान आप प्रभु में विश्‍वास करती रही हैं!" उनके तने हुए चेहरों को देखकर और संजीदगी से भरे जिस लहजे में वे मुझसे बात कर रहे थे उसको सुनकर मैं हल्‍की-सी डर गयी। मैंने सोचा: "यह सही है। अगर मैं ग़लत ढंग से विश्‍वास करना शुरू कर देती हूँ तो क्‍या आस्‍था के वे सारे वर्ष बेकार नहीं जाएँगे?" लेकिन फिर मैंने सोचा: "पुस्‍तक में लिखे वचन तो बहुत अच्‍छे, बहुत सही लगते हैं। इन पादरियों और उपदेशकों ने तो सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ा नहीं है, तब फिर वे कैसे कह सकते हैं कि वह सच्‍चा रास्‍ता नहीं है?" इसलिए मैंने उनसे कहा, "हो सकता है आपका यह कहना सही हो, लेकिन मैंने उन लोगों से जो कुछ सुना है, वह तो पूरी तरह से बाइबल में कहे गये परमेश्‍वर के वचनों से मेल खाता है!" जब उन्‍होंने मेरी यह बात सुनी, तो उन सबने तुरन्‍त बोलना शुरू कर दिया, और मुझे डराने के लिए इतनी सारी बातें कहने लगे कि मेरा दिमाग़ चकराने लगा, मैं उलझन में पड़ गयी और मुझे ज़बरदस्‍त जज्‍़बाती उथल-पुथल का अनुभव होने लगा। मैं कुछ भी कह पाने में असमर्थ, वहाँ बैठी रह गयी। इसके बाद वे चाहते थे कि मैं उनके साथ मिलकर प्रार्थना करूँ और ईस्‍टर्न लाइटनिंग को धिक्‍कारूँ, लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हुई, इसलिए वे मुझे फिर से डराने लगे। अन्‍त में, मेरे बेटे ने कहा, "अब मुझे अपनी माँ से निपटने दीजिए।" फिर उसने अलमारी से भजनों की दो पुस्‍तकें और मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना की कैसेट टेप, साथ ही न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है नामक परमेश्‍वर के वचनों की पुस्‍तक निकाली, और ये सारी चीज़ें उसने पादरी को अपने साथ ले जाने के लिए दे दीं।

उनके जाने के बाद मैं इतनी परेशान थी कि मैं खाना भी नहीं खा सकी, इसलिए मैंने प्रभु के सामने जाकर प्रार्थना की: "प्रभु यीशु, उन पादरियों ने जो कुछ कहा था वह सही है या नहीं? लगता है कि वे वाक़ई मेरे जीवन को लेकर चिन्तित हैं। अगर मैं उनकी बात नहीं सुनती, तो क्‍या मैं अपनी आस्‍था को ग़लत सहारा दूँगी? हे प्रभु, अगर तू सचमुच सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के रूप में लौट आया है और मैं तुझे स्‍वीकार नहीं करती, तो क्‍या मैं तुझसे मिलने की सम्‍भावनाएँ हमेशा-हमेशा के लिए ख़त्‍म नहीं कर रही हूँ? क्‍या मैं महज़ एक मूर्ख क्‍वाँरी बनकर नहीं जाऊँगी? हे प्रभु, इन पिछले कुछ दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ते हुए, मुझे ऐसा लगता है कि मेरी आत्‍मा ने बहुत-सा पोषण प्राप्‍त किया है। मैंने सचमुच और ईमानदारी से इसे महसूस किया है, लेकिन तब भी क्‍या मैं ग़लत हो सकती हूँ? अब जबकि वे मेरी पुस्‍तकें और भजनों की कैसेट टेपें उठा ले गये हैं, मैं सचमुच दुखी महसूस कर रही हूँ और मुझे समझ में नहीं आता कि मैं क्‍या करूँ। मुझे राह दिखा...।" प्रार्थना करने के बाद मुझे अचानक याद आया कि सिस्‍टर वाँग ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों की एक और पुस्‍तक दी थी और उसे अलमारी के अन्‍दर ठीक-से छिपाकर रखने को कहा था। जब मुझे अहसास हुआ कि मेरे पास अभी भी वह पुस्‍तक है, तो मुझे कुछ बेहतर महसूस हुआ। लेकिन फिर मैंने उन पादरियों द्वारा कही गयी बातों के बारे में सोचा, और मैं फिर वैसी-की-वैसी उलझन में पड़ी रही। मुझे वह पुस्‍तक पढ़नी चाहिए या नहीं? उस रात मैं बिल्‍कुल भी ठीक से नहीं सो पायी, मेरे दिमाग़ में उथल-पुथल मची रही। मैं छलछलायी आँखों के साथ बारबार परमेश्‍वर से प्रार्थना करती रही।

ठीक अगले दिन मेरा बेटा मुझे मेरी पिछली कलीसिया में हो रही एक बैठक में ले जाने के लिए आया। मैं बहुत डवाँडोल स्थिति में थी, लेकिन मेरा बेटा मुझे बैठक के स्‍थान तक घसीट ले गया और उसने एक उपदेशक से यह तक कह दिया कि मुझे ईस्‍टर्न लाइटनिंग द्वारा चुरा लिया गया है और उससे कहा कि वह मुझे उस कलीसिया में बने रहने को राजी करने के लिए भरसक कोशिश करे। पल भर में ही उस उपदेशक तथा कलीसिया के सारे भाइयों और बहनों ने मुझे घेर लिया। उपदेशक ने मेरा हाथ थामा और मीठे स्‍वर में बोली, "आण्‍टी, आप जो भी चाहे करें, लेकिन किसी और का उपदेश न सुनें। अगर आप ग़लत तरीक़े से विश्‍वास करना शुरू कर देती हैं, तो जिस वक्‍़त प्रभु धार्मिक समागमों को उल्‍लास से भर देने के लिए आएगा तब आप पीछे छूट जाएँगीं, नहीं? आपका आध्‍यात्मिक क़द छोटा है, इसलिए अगर आपको कोई भी व्‍यक्ति किसी तरह की कोई पुस्‍तक पढ़ने को देता है, तो बेहतर होगा कि उसको पढ़ने से पहले आप हमसे पूछ लें। हमें तय करने दें कि वह आपके लायक़ है या नहीं...।" उन भाइयों और बहनों ने मुझे वहाँ बने रहने के लिए मनाने की भी कोशिशें कीं, और उनका "प्रेम" देख कर मेरी आँखें छलछला आयीं। जब उन्‍होंने मुझे इस तरह जज्‍़बाती होते हुए देखा, तो उन्‍होंने एकबार फिर अपनी बात रखी: "अगर ईस्‍टर्न लाइटनिंग से फिर से कोई आपसे मिलने आये, तो उसको अन्‍दर मत आने दीजिए। अब उनसे कोई ताल्‍लुक मत रखिए!" मैंने सहमति में सिर हिला दिया।

इसके कुछ ही दिनों बाद सिस्‍टर वाँग मुझसे मिलने आयीं। मैंने उनसे कहा: "पादरी ने मुझे बाइबल का यह अंश पढ़कर सुनाया था: 'उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें' (मत्ती 24:23-24)। अन्तिम दिनों में छद्म मसीहा प्रकट होंगे और जो भी कोई यह कहता है कि प्रभु लौट आया है वह एक धोखेबाज़ है। मैं बाइबल नहीं समझती, और मेरा आध्‍यात्मिक क़द छोटा है, इसलिए मैं आसानी से गुमराह हो जाती हूँ। मेरी किसी दूसरे पन्‍थ की बात सुनने की हिम्‍मत नहीं है, इसलिए मैं आपको अन्‍दर आने की इजाज़त नहीं दूँगी। दोबार मत आइए।" सिस्‍टर वाँग ने पूरी संजीदगी के साथ कहा: "प्रभु यीशु ने यह बात यह सुनिश्चित करने के लिए कही थी कि हम अन्तिम दिनों में छद्म मसीहाओं बचकर रहें, लेकिन उनका इरादा यह नहीं था कि हम मसीहा से मुँह भी मोड़ लें। अगर छद्म मसीहा हैं तो इसलिए क्‍योंकि वास्‍तविक मसीहा पहले ही प्रकट हो चुका है, क्‍योंकि वास्‍तविक मसीहा के बिना ढोंगियों पास नक़ल करने के लिए कुछ नहीं है। प्रभु यीशु के वे वचन हमें यह बताते हैं कि हमें यह सीखना होगा कि असली और नक़ली के बीच फ़र्क कैसे किया जाए; वे यह नहीं कह रहे हैं कि हमें प्रभु की वापसी के सुसमाचार को सुनने से ही महज़ इसलिए इन्‍कार कर देना चाहिए क्‍योंकि अन्तिम दिनों में छद्म मसीहा प्रकट होंगे। अन्‍यथा, हम प्रभु की वापसी का स्‍वागत कैसे कर पाएँगे? दरअसल, प्रभु यीशु छद्म मसीहाओं के लक्षणों का वर्णन पहले ही कर चुका है। इनमें मुख्‍य लक्षण हैं-लोगों को छलने के लिए मसीहा के संकेत प्रकट करना, चमत्‍कारों का प्रदर्शन करना, बीमारों को चंगा करना और दुष्‍ट आत्‍माओं को भगाना, और उन कार्यों की नक़ल करना जो प्रभु यीशु पहले ही कर चुका है। इसलिए अन्तिम दिनों के दौरान जो भी कोई पश्‍चाताप का उपदेश करने प्रभु यीशु का रूप धारण करता है और जो मसीहा के कुछ साधारण से संकेतों को प्रकट कर सकता है या बीमारों को चंगा कर सकता है और दुरात्‍माओं को भगा सकता है, वह एक छद्म मसीहा है। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर, जो अन्तिम दिनों में देहधारी होकर लौटा प्रभु यीशु है, उन कार्यों को दोहराता नहीं है जो प्रभु यीशु पहले ही कर चुका है, बल्कि इसकी बजाय वह प्रभु यीशु के उद्धार-कार्य की बुनियाद पर नया कार्य करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर अनुग्रह के युग का अन्‍त कर चुका है और राज्‍य के युग की शुरुआत कर चुका है, और वह सत्‍य को व्‍यक्‍त करता है तथा मानव-जाति के न्‍याय और शुद्धीकरण के दौर का कार्य करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर पूरी तरह से उन तमाम लोगों की रक्षा करेगा जिनका उद्धार तो किया जा चुका है लेकिन जो अभी भी पापपूर्ण जीवन जी रहे हैं, जिसके लिए वह उनको पापपूर्ण प्रकृति के बन्‍धनों से मुक्‍त करेगा और उनको शैतान के कलुषित प्रभाव से बाहर निकालेगा। उसके बाद वह मनुष्‍य-जाति को उसके अद्भुत अन्तिम गन्‍तव्‍य तक ले जाएगा। यह कार्य सिर्फ़ परमेश्‍वर ही कर सकता है; इन छद्म मसीहाओं में से कोई भी नहीं कर सकता।" जो बात यह बहन कह रही थी वह हालाँकि मानने लायक़ लग रही थी, लेकिन पादरियों ने मुझसे जो बातें कही थीं वे अभी भी मेरे दिमाग़ में घूम रही थीं। मेरे दिमाग़ में हलचल मची हुई थी, वह एकाग्र नहीं हो पा रहा था और मैं उनका और ज्‍़यादा संवाद नहीं सुनना चाहती थी। इसलिए मैंने उनसे पीछा छुड़ाने के लिए झूठमूट कह दिया कि मुझे अपने पड़ौसी से कुछ काम है। सिस्‍टर वाँग उसके बाद कई बार मेरे घर आयीं, लेकिन मैं हर बार उनको टालती रही। मेरे पड़ौसी ने मुझसे कहा, "उनमें कोई बुराई तो नज़र नहीं आती। फिर आपको किस बात का डर है?" मैं अन्‍दर से यह बात जानती थी कि सिस्‍टर वाँग एक भली महिला हैं, लेकिन क्‍योंकि मेरा आध्‍यात्मिक क़द छोटा था इसलिए मुझे अपनी आस्‍था के ग़लत जगह पर जा टिकने का भय था।

जब मैं अपनी पिछली कलीसिया की एक बैठक में शामिल होने गयी, तो मैंने सुना कि वे उपदेशक अभी भी अपने उपदेशों में वही बातें दोहरा रहे थे जो उन्‍होंने पहले कही थीं। वे हमेशा यही कहते थे कि हमें ईस्‍टर्न लाइटनिंग से कैसे बचना चाहिए, या कलीसिया को दान देना चाहिए, या फिर वे इस बारे में बहुत-सी उबाऊ बातें दोहराते रहते थे कि उन्‍होंने प्रभु के लिए कितना कार्य किया है और तकलीफ़ भोगी है और उन्‍हें प्रभु का कितना ज्‍़यादा अनुग्रह प्राप्‍त हुआ है...। वे नये ज्ञान की कोई छोटी-सी बात भी नहीं कह सके। मैं जल्‍दी ही उनकी बातें सुनकर ऊब गयी, और ऊँघने लगी। एकबार एक दूसरी कलीसिया का एक भाई उपदेश देने आया, पर उसका उपदेश भी उसी तरह की बातों से भरा पड़ा था कि किस तरह वह प्रभु का कार्य करने पहाड़ और घाटी में गया था, उसने कितनी तकलीफ़ भोगी थी, सुसमाचार का प्रचार कर उसने कितने लोगों का धर्मान्‍तरण किया था और कितनी कलीसियाओं की उसने स्‍थापना की थी। वह अपना ही ढिंढोरा पीटता रहा। उसको सुनते हुए मुझे बहुत बेचैनी हुई, और मेरे मन में यह धारणा बन गयी कि वह प्रभु की गवाही नहीं दे रहा था बल्कि महज़ अपनी ही गवाही दे रहा था। एक और मौक़े पर, मैं अभी बैठक के स्‍थान पर पहुँची ही थी कि एक बहन ने मुझसे कहा, "आज नारी-धर्मशास्‍त्र की कोई 20 साल की छात्रा उपदेश देने वाली है।" मुझे यह सुनकर बहुत ख़ुशी हुई और मैंने खुद से कहा कि इस बार मैं विशेष ध्‍यान देकर सुनूँगी, क्‍योंकि वह निश्‍चय ही हमारे उपदेशकों के मुक़ाबले बेहतर उपदेश देगी। लेकिन उस छात्रा ने अपने उपदेश की शुरुआत ही इस बात से की कि हमें किस तरह ईस्‍टर्न लाइटनिंग से बचना चाहिए, और फिर वह इस बारे में बात करने लगी कि किस तरह उसने धर्मशास्‍त्र के अध्‍ययन के लिए सेमिनरी में प्रवेश लेने 16 साल की उम्र में अपनी नियमित पढ़ाई छोड़ दी थी, किस तरह उसने बारिश के बावजूद बाहर जाकर कार्य किया और तकलीफ़ें झेलीं, वह कितनी जगहों पर गयी...। जितना ही मैंने उसको सुना उतना ही मैं ऊबती रही। मैंने मन-ही-मन सोचा: "यह सिर्फ़ नयी बोतलों में पुरानी शराब है! आखि़र ये वही-वही पुरानी बातें क्‍यों दोहराते रहते हैं? इनमें से किसी बात का इनके तजुरबे से या प्रभु के वचनों के ज्ञान से कोई ताल्‍लुक नहीं है, न ही ये बातें हमें प्रभु के बताये मार्ग पर चलने की ओर या उसके वचनों के मुताबिक़ आचरण और उनके मर्म में प्रवेश की ओर ले जाने वाली हैं।" मैं फिर से महीने भर से इन बैठकों में आ रही थी, लेकिन मैंने उनसे कुछ भी हासिल नहीं किया था। मैंने जितना ही इन उपदेशों को सुना उतनी ही मेरी आत्‍मा मुरझाती गयी, और मैंने सोचा कि अगर मैंने इस तरह का विश्‍वास जारी रखा तो मैं आध्‍यात्मिक प्‍यास और भूख से मर जाऊँगी। मैं कहाँ जा सकती हूँ जहाँ मुझे थोड़ा-सा जीवन मिल सके? मैं जितना ही इस बारे में सोचती, उतनी ही परेशान हो उठती।

बैठक के बाद मैं भारी मन से घर की ओर चल पड़ी। मैंने सिस्‍टर वाँग द्वारा दी गयी न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है नामक पुस्‍तक के बारे में सोचा, जो कहती थी कि लोगों को घमण्‍डी नहीं होना चाहिए और आत्‍मप्रशंसा नहीं करनी चाहिए बल्कि परमेश्‍वर की महानता का सम्‍मान करना चाहिए और परमेश्‍वर की प्रशंसा करनी चाहिए। लेकिन ये सारे-के-सारे उपदेशक तो अपनी गवाही दे रहे थे, खुद को सबसे महत्‍वपूर्ण मानकर अपना ही सम्‍मान कर रहे थे, और दूसरों से अपना सम्‍मान करा रहे थे और खुद की पूजा करा रहे थे। मुझे लगा कि पुस्‍तक में जो कहा गया है वह सही है! इसलिए उस शाम, जब मैं घर पर अकेली थी, मैंने न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है की प्रति निकाली और उसके कुछ हिस्‍से पढ़े। जितना ही मैं पढ़ती गयी उतना ही मेरा हृदय आनन्‍द से भरता गया, और मुझे वाक़ई लगा कि ये वचन मेरे जीवन का आधार बन सकते हैं। मैं इस बात को लेकर परेशान थी कि हमारा पादरी हमें इतनी अच्‍छी पुस्‍तक क्‍यों नहीं पढ़ने देता। हमारा पादरी अक्‍सर कहा करता था कि वह हमारे जीवन के लिए जि़म्‍मेदार है और तब भी उसके उपदेशों को सुनकर लगता था कि वह सिर्फ़ इतना ही जानता है कि अपनी गवाही कैसे दी जाए। उसने हमें कभी नहीं बताया कि जीवन की उन्‍नति कैसे की जाए। मुझे वह समय याद आया जब मैं बहुत कमज़ोर थी और कलीसिया की बैठकों में नहीं जाना चाहती थी। पादरी उस समय कभी मुझसे मिलने या मेरी हिम्‍मत बँधाने नहीं आया। तब फिर, जब मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़कर कुछ आध्‍यात्मिक पोषण हासिल करना शुरू किया तो वह अचानक से कैसे प्रकट हो गया और मुझे वापस मेरी पुरानी कलीसिया में घसीट ले गया ताकि मैं उसको वही घिसी-पिटी पुरानी बातों को दोहराते हुए सुनूँ? ये मेरी जि़न्‍दगी की जि़म्‍मेदारी लेना नहीं था! मुझे सहसा अहसास हुआ कि मैं किस तरह ग़लत सोचती थी, और मैंने खुद को बुरी तरह दोष दिया: सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन मुझे जीवन मुहैया करा सके थे, और इसका मतलब था कि वे शायद परमेश्‍वर के मुँह से ही निकले थे। मैं इतनी बेवकूफ़ और अन्‍धी कैसे बनी रही कि पादरी की कही बातों पर विश्‍वास करती रही और मैंने सच्‍चे मार्ग की पड़ताल छोड़ दी? मैंने इस बारे में भी सोचा कि किस तरह सिस्‍टर वाँग ने मुझे हमेशा स्‍नेहपूर्ण सहारा दिया और मेरी ख़ातिर परमेश्‍वर के अन्तिम दिनों के कार्य की साक्षी बनीं ताकि मैं परमेश्‍वर के अन्तिम दिनों का उद्धार हासिल कर सकती। लेकिन सिस्‍टर वाँग के प्रति मेरा व्‍यवहार उतना अच्‍छा नहीं रहा, और मैंने कई बार उनसे मिलना तक टाल दिया। मुझे उनके साथ दुश्‍मन जैसा बरताव नहीं करना चाहिए था। जब मैंने इस बारे में सोचा, तो मुझे बहुत दुख महसूस हुआ। इसलिए मैं प्रभु के सामने गयी और मैंने छलछलायी आँखों के साथ पश्‍चाताप से भरी प्रार्थना की: "प्रभु, जिस बहन ने मुझे परमेश्‍वर के वचनों की पुस्‍तक लाकर दी उसके साथ मैंने दुश्‍मन जैसा व्‍यवहार किया और उसकी ओर से अपना मुँह मोड़ लिया। यह मेरा किसी व्‍यक्ति की ओर से मुँह मोड़ना नहीं था, बल्कि आपके द्वारा किये जा रहे उद्धार से इन्‍कार करना था! प्रभु अब मैं जानती हूँ कि मुझे उन पादरियों की बात नहीं सुननी चाहिए थी और परमेश्‍वर के अन्तिम दिनों के कार्य की पड़ताल को नहीं तजना चाहिए था। मैं तेरे सामने पश्‍चाताप करना चाहती हूँ, लेकिन समझ नहीं आता कि मैं सिस्‍टर वाँग को कैसे ढूँढ़ूँ। मेरी मदद कर...।" प्रार्थना करने के बाद मैंने फिर से वह पुस्‍तक उठायी और देर रात तक उसको पढ़ती रही। मैं जितना ही उसको पढ़ती गयी, उतनी ही मुझे उसकी विषय-वस्‍तु अच्‍छी लगती गयी, और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने से रोकने के लिए उन पादरियों के प्रति मेरी नफ़रत बढ़ती गयी।

मैं प्रभु की आभारी हूँ कि उसने मेरी प्रार्थना सुन ली! अगले दिन दोपहर में, जब मैं खाना खा रही थी, तो सिस्‍टर वाँग मेरे घर आयीं। मैंने उनको वह सब कुछ बताया जो उनके साथ हुई मेरी आखि़री मुलाक़ात के बाद हुआ था। जब उन्‍होंने सुना कि मैं धर्म के भीतर पोषण हासिल करने में असमर्थ रही हूँ, तो उन्‍होंने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों के ये अंश पढ़कर सुनाये: "परमेश्वर इस तथ्य को पूर्ण करेगा : वह संपूर्ण ब्रह्मांड के लोगों को अपने सामने आने के लिए बाध्य करेगा, और पृथ्वी पर परमेश्वर की आराधना करवाएगा, और अन्य स्थानों पर उसका कार्य समाप्त हो जाएगा, और लोगों को सच्चा मार्ग तलाशने के लिए मजबूर किया जाएगा। यह यूसुफ की तरह होगा : हर कोई भोजन के लिए उसके पास आया, और उसके सामने झुका, क्योंकि उसके पास खाने की चीज़ें थीं। अकाल से बचने के लिए लोग सच्चा मार्ग तलाशने के लिए बाध्य होंगे। संपूर्ण धार्मिक समुदाय गंभीर अकाल से ग्रस्त होगा, और केवल आज का परमेश्वर ही मनुष्य के आनंद के लिए हमेशा बहने वाले स्रोत से युक्त, जीवन के जल का स्रोत है, और लोग आकर उस पर निर्भर हो जाएँगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सहस्राब्दि राज्य आ चुका है)। इसके बाद सिस्‍टर ने मेरे साथ यह संवाद किया: "परमेश्‍वर जीवन के जल का स्रोत है, और केवल परमेश्‍वर ही लोगों को जीवन प्रदान कर सकता है। जब लोग परमश्‍वर को तज देते हैं तो सब कुछ अन्‍धकारमय हो जाता है और मुरझा जाता है, वृक्ष की उस शाखा की तरह जो वृक्ष के तने से टूटकर अलग हो जाती है। परमेश्‍वर में अपनी आस्‍था के दौरान हमें मेमने के क़दमों का अनुसरण करना चाहिए, परमेश्‍वर के वर्तमान कार्य को स्‍वीकार करना चाहिए, और परमेश्‍वर के समक्ष आना चाहिए, क्‍योंकि केवल तभी हम पवित्र आत्‍मा के कार्य से लाभान्वित हो सकते हैं और परमेश्‍वर द्वारा प्रदत्‍त पोषण तथा जीवन के प्राणदायी जल को हासिल कर सकते हैं। ऐसा क्‍यों है कि हम उन पादरियों और बुज़ुर्गों को सुनकर धार्मिक पोषण प्राप्‍त नहीं कर पाते? इसके दो कारण हैं। पहला यह है कि वे पादरी और बुज़ुर्ग प्रभु के धर्मादेशों का पालन नहीं करते और प्रभु के वचनों को आचरण में नहीं ढालते। उनके पास जीवन के वास्‍तविक अनुभवों नहीं होते और परमेश्‍वर का वास्‍तविक ज्ञान नहीं होता। ऐसे हृदय तो उनके पास और भी कम होते हैं जो परमेश्‍वर से डरते हों। वे अपने कार्यों और उपदेशों में परेमश्‍वर की महिमा का बिल्‍कुल भी बखान नहीं करते या उसकी गवाही नहीं देते। वे हमेशा आत्‍मप्रशंसा में लगे रहते हैं और अपनी ही गवाही देते रहते हैं। वे प्रभु के मार्ग से पूरी तरह विचलित होकर ऐसे छद्म गड़रियों में बदल चुके हैं जो लोगों को धोखा देते हैं। यही कारण है कि वे पवित्र आत्‍मा की घृणा और तिरस्‍कार के पात्र होते हैं और कभी भी उसकी प्रबुद्धता और मार्गदर्शन प्राप्‍त नहीं कर पाते। और यही मुख्‍य कारण कि धार्मिक समुदाय इतना उजाड़ है। दूसरा कारण यह है कि प्रभु यीशु नये युग का कार्य करने वापस आ चुका है। अनुग्रह के युग के लोगों पर पवित्र आत्‍मा कार्य पहले ही समाप्‍त किया जा चुका है और वह उन लोगों के समूह पर किया जा रहा है जिनको परमेश्‍वर के कार्य की ताज़ा जानकारी है। लेकिन ये पादरी और बुज़ुर्ग परमेश्‍वर के पदचिह्नों पर नहीं चलते या उसके नेतृत्‍व को स्‍वीकार नहीं करते। इसके विपरीत वे परमेश्‍वर के अन्तिम दिनों के कार्य का मूर्खतापूर्ण ढंग से प्रतिरोध करते हैं और उसकी निन्‍दा करते हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर, अन्तिम दिनों के मसीहा, को कलंकित और दूषित करते हैं। वे विश्‍वासियों को सच्‍चे मार्ग की पड़ताल से और परमेश्‍वर के पास वापस लौटने से रोकने के लिए जो कुछ बन पड़ता है वह करते हैं, और इस तरह वे ठीक उन फरीसियों जैसे बन गये हैं जिन्‍होंने प्रभु को सलीब पर कीलों से ठोंक दिया था। परमेश्‍वर पहले ही उनको अभिशाप दे चुका है और उनसे छुटकारा पा चुका है, इसलिए इसका सवाल ही पैदा नहीं होता कि पवित्र आत्‍मा उनको रास्‍ते पर लाने का कार्य करे। इसलिए, अगर हम जीवन का पोषण प्राप्‍त करना चाहते हैं, तो हमें पवित्र आत्‍मा के वर्तमान कार्य के प्रति जागरूक बने रहना होगा, उन वचनों पर विश्‍वास करना होगा जिन्‍हें परमेश्‍वर इस समय व्‍यक्‍त कर रहा है, और अन्तिम दिनों के मसीहा, सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के नेतृत्‍व, आपूर्ति और मार्गदर्शन को स्‍वीकार करना होगा। सत्‍य और जीवन को हासिल करने का हमारे पास यही एकमात्र उपाय है। इससे वह अपेक्षा पूरी होती है जो प्रभु यीशु के इस कथन में निहित है: 'मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ' (यूहन्ना 14:6)। 'परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा' (यूहन्ना 4:14)।"

परमेश्‍वर के वचनों के बारे में सिस्‍टर वाँग का संवाद सुनने के बाद मुझे सहसा यह बात समझ में आ गयी कि उन पादरियों, बुज़ुर्गों और धर्मशास्‍त्र के छात्रों के पास उपदेश करने लायक़ कुछ भी क्‍यों नहीं है: उनके पास सत्‍य नहीं है! वे परमेश्‍वर का प्रतिरोध करते हैं, और पवित्र आत्‍मा उनको बहुत पहले त्‍याग चुका है। जब वे उपदेश करते हैं, तो वे सिर्फ़ बौद्धिक ज्ञान पर ही निर्भर करते हैं, लेकिन उनके पास पवित्र आत्‍मा द्वारा दी गयी प्रबुद्धता नहीं होती, और यही वजह है कि उनके उपदेश किसी का भला नहीं करते। लेकिन अभी भी ऐसा कुछ था जो मैं नहीं समझती थी, इसलिए मैंने सिस्‍टर वाँग से पूछा, "वे सारे पादरी और बुज़ुर्ग कहते हैं कि वे बाइबल से बहुत अच्छी तरह से परिचित हैं, वे सेमिनरी स्‍कूल में रहे हैं और वे अधिक जीवन-समृद्ध हैं। मैं बाइबल को उतना ठीक से नहीं समझती और मैं मानती थी कि उनके पास जीवन का मुझसे ज्‍़यादा तजुरबा है, इसलिए मैं उनकी बातें सुनती थी। इसलिए अब मैं यह तय नहीं कर पाती कि वे अधिक जीवन-समृद्ध हैं या नहीं। सिस्‍टर क्‍या आपको लगता है कि वे सचमुच अधिक जीवन-समृद्ध है?" सिस्‍टर वाँग ने जवाब देते हुए कहा: "इस बात को स्‍वयं कोई भी साबित नहीं कर सकता कि वह जीवन-समृद्ध है। यह सब परमेश्‍वर के वचनों से तय होता है। जीवन-समृद्ध होने का क्‍या मतलब है? वे क्‍या चीज़ें हैं जो ख़ासतौर पर ज़ाहिर होनी चाहिए? प्रभु यीशु ने कहा था: 'मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ' (यूहन्ना 14:6)। और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने कहा था: 'तुम्हारे पास वास्तविकता है या नहीं, यह इस बात पर आधारित नहीं है कि तुम क्या कहते हो; अपितु यह इस पर आधारित है कि तुम किसे जीते हो। जब परमेश्वर के वचन तुम्हारा जीवन और तुम्हारी स्वाभाविक अभिव्यक्ति बन जाते हैं, तभी कहा जा सकता है कि तुममें वास्तविकता है और तभी कहा जा सकता है कि तुमने वास्तविक समझ और असल आध्यात्मिक कद हासिल कर लिया है। तुम्हारे अंदर लम्बे समय तक परीक्षा को सहने की क्षमता होनी चाहिए, और तुम्हें उस समानता को जीने के योग्य होना अनिवार्य है, जिसकी अपेक्षा परमेश्वर तुम से करता है; यह मात्र दिखावा नहीं होना चाहिए; बल्कि यह तुम में स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होना चाहिए। तभी तुम में वस्तुतः वास्तविकता होगी और तुम जीवन प्राप्त करोगे' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल सत्य का अभ्यास करना ही इंसान में वास्तविकता का होना है)। 'ऐसा क्यों कहा जाता है कि कई लोगों का कोई जीवन नहीं है? क्योंकि वो परमेश्वर को नहीं जानते और इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि उनके हृदय में कोई परमेश्वर नहीं है और उनका कोई जीवन नहीं है' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर को जानने वाले ही परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं)। परमेश्‍वर के वचनों के आधार पर हम यह समझ सकते हैं कि मसीहा ही सत्‍य है, मार्ग और जीवन है। सत्‍य लोगों के जीवन के रूप में काम कर सकता है, इसलिए सत्‍य की उपलब्धि ही जीवन की उपलब्धि है, और जीवन-समृद्ध होना इस बात की ओर संकेत करता है कि व्‍यक्ति ने सत्‍य को उपलब्‍ध कर लिया है और वह परमेश्‍वर को जानता है। जो व्‍यक्ति सत्‍य को नहीं समझता और परमेश्‍वर को नहीं जानता उसके पास परमेश्‍वर से डरने वाला हृदय नहीं होगा और वह परमेश्‍वर के वचनों की वास्‍तविकता को जीवन में उतार पाने में अक्षम होगा। इसका मतलब है कि वे जीवन-समृद्ध नहीं है। अगर किन्‍हीं के पास अपने जीवन के रूप में परमेश्‍वर के वचन नहीं हैं, तो वे शैतान के उन विषाक्‍त विचारों का ही अनुसरण करेंगे, जो उनमें निहित हैं। वे अक्‍सर अपना भ्रष्‍ट स्‍वभाव उजागर करते हैं—अहमन्‍यता, आत्‍मदम्‍भ, स्‍वार्थ, घृणित चरित्र, कुटिलता, चालाकी इत्‍यादि। और अगर वे परमेश्‍वर में विश्‍वास करते भी हैं, तब भी वे परमेश्‍वर से डरने में और दुराचार से दूर रहने में अक्षम होते हैं। वे अक्‍सर झूठ बोलते हैं, धोखा देते हैं, पाप करते हैं, और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं। वे ऐसे लोग कैसे कहे जा सकता हैं जो जीवन-समृद्ध हैं? अगर वे कहते हैं कि वे जीवन-समृद्ध हैं, तो वह वही दैहिक जीवन, शैतानी जीवन होता है जो ऐसे भ्रष्‍ट स्‍वभावों से परिपूर्ण होता है जो परमेश्‍वर के विरुद्ध होते हैं, वह नया जीवन नहीं, जो परमेश्‍वर के वचनों को अनुभव करने और सत्‍य को प्राप्‍त करने से मिलता है। इसलिए, वे पादरी और बुज़ुर्ग बाइबल से परिचित हो सकते हैं, और उनके पास बाइबल का ज्ञान और धर्मशास्‍त्रीय सिद्धान्‍त हो सकते हैं, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे परमेश्‍वर को जानते हैं और परमेश्‍वर से डरते हैं और वे सत्‍य और पवित्र आत्‍मा के कार्य की समझ रखते हैं। और इसका यह मतलब तो कदापि नहीं होता कि वे परमेश्‍वर के वचनों का पालन करते हैं या उसकी आज्ञा मानते हैं। इसकी बजाय, हम यह देखते हैं कि वे अपनी ही प्रशंसा करने और अपनी ही गवाही देने में लगे रहते हैं, और आमतौर से ऐसे विश्‍वासियों को पाने की कोशिश करते रहते हैं जो उनकी आराधना करें। वे जो प्रकट करते हैं और जीते हैं वह शैतान जैसा जीवन होता है—दम्‍भी और अहंकारी होना, परेमश्‍वर के भय का अभाव, और लोगों को बेवकूफ़ बनाने के लिए पाखण्‍ड करना। वे परमेश्‍वर के वचनों में निहित वास्‍तविक ज्ञान की या ऐसे किसी व्‍यावहारिक अनुभव बात जो दूसरे लोगों के लिए कल्‍याणकारी हो न तो अपने कार्यों के माध्‍यम से कर सकते हैं न ही उपदेशों के माध्‍यम से। आप उनको कितने ही सालों तक क्‍यों न सुनते रहें, आप कभी कोई सत्‍य नहीं समझ पाएँगे और आपके जीवन का विकास नहीं होगा। उनको परमेश्‍वर या उसके कार्य का कोई ज्ञान नहीं है, और जब परमेश्‍वर सत्‍य को व्‍यक्‍त करने तथा न्‍याय का अपना कार्य करने अन्तिम दिनों में वापस लौटता है, तो वे अपने हृदयों में परमेश्‍वर के जरा-से भी भय के बिना उच्‍छृंखल ढंग से उसका प्रतिरोध करते हैं, उसकी निन्‍दा करते हैं, उसको दूषित करते हैं। यह उनका किस तरह का जीवन है? वे पूरी तरह से शैतान का जीवन जीते है। वे ठीक उन फरीसियों की तरह हैं जो बाइबल को भलीभाँति जानते थे और सोचते थे कि वे परमेश्‍वर में सच्‍ची आस्‍था रखते हैं और वे जीवन-समृद्ध हैं लेकिन जो परमेश्‍वर को नहीं जानते थे बल्कि प्रभु का प्रतिरोध और निन्‍दा करते थे और उन्‍होंने उसको सलीब पर कीलों से ठोंक दिया था। यह हमें बताता है कि महज़ इसलिए कि कोई व्‍यक्ति बाइबल को ठीक-से जानता है तो इसका यह मतलब नहीं होता कि उनके पास जीवन का सत्‍य होता है। जीवन-समृद्ध केवल वही लोग होते हैं जो सत्‍य को समझते और उसका पालन करते हैं और जो परमेश्‍वर को जानते हैं, जिनके पास उससे डरने वाला हृदय होता है, और जो परमेश्‍वर के वचनों का अनुसरण कर सकते हैं। वे पादरी और बुज़ुर्ग कहते ज़रूर हैं कि वे बहुत जीवन-समृद्ध हैं, लेकिन यह केवल विश्‍वासियों को बेवकूफ़ बनाना और खुद को धोखा देना है।"

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों और सिस्‍टर वाँग के संवाद को सुनने के बाद मेरे दिमाग़ में सब कुछ पूरी तरह साफ़ हो गया: महज़ इसलिए कि कोई व्‍यक्ति बाइबल को जानता है और बाइबल की व्‍याख्‍या कर सकता है तो इसका मतलब यह नहीं हो जाता कि वे सत्‍य को समझते हैं, परमेश्‍वर को जानते हैं या जीवन से समृद्ध होते हैं। मैं सोचा करती थी कि ऊँचे पदों पर बैठे हुए लोगों में या जिन्‍होंने धर्मशास्‍त्र का अध्‍ययन किया होता है या जिनको बाइबल का ज्ञान होता है, वे अधिक जीवन-समृद्ध होते हैं। लेकिन अब मैं देखती हूँ कि मेरा नज़रिया पूरी तरह से बेहूदा था। लगता है कि जिन लोगों के पास सत्‍य नहीं होता वे अच्‍छे-बुरे का विवेक करने में असमर्थ होते हैं इसलिए आसानी से बेवकूफ़ बना लिये जाते हैं। फिर मैंने सिस्‍टर वाँग से एक सवाल पूछा: "सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर बहुत अच्‍छी तरह से बोलता है। अगर हम सिर्फ़ इतना ही करें कि उसके वचनों को सावधानी के साथ पढ़ें तो हम समझ जाएँगे कि ये परमेश्‍वर के शब्‍द हैं और यह परमेश्‍वर की वाणी है। तब फिर क्‍या वजह है कि ये पादरी और बुजु़र्ग इसे स्‍वीकार नहीं करते और भरसक उसका प्रतिरोध तथा उसकी निन्‍दा तक करते हैं?" सिस्‍टर वाँग ने जवाब दिया, "अब अन्तिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर आ चुका है और वह सारा-का-सारा सत्‍य व्‍यक्‍त कर चुका है जो भ्रष्‍ट मानव-जाति का शुद्धीकरण करने तथा उसको बचाने के लिए ज़रूरी है। ये सत्‍य उस शाश्‍वत जीवन का मार्ग हैं जिससे परमेश्‍वर ने हमें नवाज़ा है। जब तक लोग परमेश्वर के वचनों को गम्‍भीरता से पढ़ते रहेंगे, तब वे स्‍वीकार करेंगे कि ये वचन सत्‍य हैं, जीवन हैं, मार्ग हैं और मानव-जाति के जीवित बने रहने के लिए बुनियादी और मार्गदर्शक हैं। यह तथ्‍य है। हालाँकि ज्‍़यादातर पादरी और बुज़ुर्ग परमेश्‍वर के अन्तिम दिनों के कार्य का प्रतिरोध करते हैं और उसकी निन्‍दा करते हैं तथा लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने से रोकते हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वे उन वचनों में निहित प्रभुत्‍व और शक्ति को सुन नहीं सकते। कुछ पादरी और बुज़ुर्ग किसी भी अनुपयोगी चीज़ का उपदेश नहीं कर सकते, इसलिए वे सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को चुरा लेते हैं और अपने जमावड़ों के समक्ष उनका उपदेश करते हुए दावा करते हैं कि ये वे प्रबुद्धताएँ हैं जो पवित्र आत्‍मा ने उनको प्रदान की हैं। लेकिन फिर वे तब भी उच्‍छृंखल ढंग से सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का प्रतिरोध और उनकी निन्‍दा क्‍यों करते हैं? इसका सम्‍बन्‍ध सत्‍य से नफ़रत करने की उनकी प्रकृति और वास्‍तविकता से है। अगर हम उस समय के बारे में सोचें जब प्रभु यीशु ने पहली बार अपना कार्य आरम्‍भ किया था, तो हम पाते हैं कि उसने अनेक चमत्‍कारों को प्रकट किया था-ख़ासतौर से लेज़ारस के पुनरुत्‍थान का और पाँच पावरोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों के उदर-पोषण का चमत्‍कार-जिनने समूची जूडिया के लोगों को अचरज में डाल दिया था। इसलिए उस ज़माने के बहुत-से सामान्‍य लोगों ने प्रभु के वचनों और कार्य से इस बात को पहचान लिया था कि वह भावी मसीहा है। लेकिन यहूदियों के नेताओं ने प्रभु यीशु को स्‍वीकार नहीं किया, और इसकी बजाय उसका प्रतिरोध किया और उसकी निन्‍दा की और, अन्‍त में, प्रभु को सलीब पर लटकाये जाने के लिए रोमन सरकार के साथ मिलकर षडयन्‍त्र रचा। यह क्‍यों हुआ? क्‍या इसकी वजह यह थी कि वे प्रभु यीशु के वचनों में निहित प्रभुत्‍व और शक्ति को सुन नहीं सके थे? नहीं! यह इसलिए हुआ था क्‍योंकि उन्‍होंने देखा था कि ज्‍़यादा-से ज्‍़यादा लोग प्रभु यीशु के मार्ग को अपना रहे हैं। उनको डर था कि अगर सारे-के-सारे साधारण लोग प्रभु यीशु में विश्‍वास करने लगेंगे, तो उनका अनुसरण और आराधना करने वाला कोई नहीं रह जाएगा, और वे अपनी हैसियत और आजीविका गँवा देंगे। वे स्‍पष्‍ट तौर पर जानते थे कि प्रभु यीशु परमेश्‍वर है और तब भी उन्‍होंने सोद्देश्‍य उसका प्रतिरोध किया था; इसने उनके उस मसीहा-विरोधी सार को उजागर कर दिया था, जो परमेश्‍वर का प्रतिरोधी था और जो सत्‍य से घृणा करता था। प्रभु यीशु ने उनको उस वक्‍़त तीखी फटकार लगायी थी जब उन्‍होंने कहा था: 'परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिसने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्‍वर से सुना' (यूहन्ना 8:40)। 'तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते? इसलिये कि तुम मेरा वचन सुन नहीं सकते। तुम अपने पिता शैतान से हो और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं' (यूहन्ना 8:43-44)। वर्तमान समय में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों ने धार्मिक समुदाय के मौजूदा नेताओं की प्रकृति और सार को एकदम स्‍पष्‍ट ढंग से उजागर कर दिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने कहा था: 'ऐसे भी लोग हैं जो बड़ी-बड़ी कलीसियाओं में दिन-भर बाइबल पढ़ते रहते हैं, फिर भी उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझता हो। उनमें से एक भी ऐसा नहीं होता जो परमेश्वर को जान पाता हो; उनमें से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप तो एक भी नहीं होता। वे सबके सब निकम्मे और अधम लोग हैं, जिनमें से प्रत्येक परमेश्वर को सिखाने के लिए ऊँचे पायदान पर खड़ा रहता है। वे लोग परमेश्वर के नाम का झंडा उठाकर, जानबूझकर उसका विरोध करते हैं। वे परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते हैं, फिर भी मनुष्यों का माँस खाते और रक्त पीते हैं। ऐसे सभी मनुष्य शैतान हैं जो मनुष्यों की आत्माओं को निगल जाते हैं, ऐसे मुख्य राक्षस हैं जो जानबूझकर उन्हें विचलित करते हैं जो सही मार्ग पर कदम बढ़ाने का प्रयास करते हैं और ऐसी बाधाएँ हैं जो परमेश्वर को खोजने वालों के मार्ग में रुकावट पैदा करते हैं। वे "मज़बूत देह" वाले दिख सकते हैं, किंतु उसके अनुयायियों को कैसे पता चलेगा कि वे मसीह-विरोधी हैं जो लोगों से परमेश्वर का विरोध करवाते हैं? अनुयायी कैसे जानेंगे कि वे जीवित शैतान हैं जो इंसानी आत्माओं को निगलने को तैयार बैठे हैं?' (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर को न जानने वाले सभी लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं)। आज धार्मिक समुदाय के ये नेता पुराने ज़माने के फरीसियों की तरह हैं: हालाँकि वे बाइबल को अच्‍छी तरह से समझते हैं, लेकिन वे परमेश्‍वर के कार्य के बारे में नितान्‍त कुछ भी नहीं जानते। वे देखते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन उन ज्‍़यादा-से-ज्‍़यादा लोगों द्वारा अपनाये जा रहे हैं जो परमेश्‍वर के प्रकटन की लालसा और प्रतीक्षा कर रहे हैं, और उनको डर है कि अगर सारे-के-सारे विश्‍वासी सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर में विश्‍वास करने लगेंगे, तो फिर उनका अनुसरण कोई नहीं करेगा या कोई भी उनके लिए दान नहीं देगा। इसलिए अपनी हैसियत और अपनी आजीविका की रक्षा की ख़ातिर, प्रभु के वफ़ादार होने और उसकी रेवड़ की रक्षा के नाम पर, उन्‍होंने उन्‍मत्‍त ढंग से परमेश्‍वर के अन्तिम दिनों के कार्य का प्रतिरोध करने तथा उसकी निन्‍दा करने के उद्देश्‍य से तमाम तरह की क्रूरतापूर्ण अफ़वाहें गढ़ रखी हैं, और वे विश्‍वासियों को सच्‍चे मार्ग की तलाश और पड़ताल करने से रोकने के लिए भरसक प्रयत्‍न करते हैं। इसलिए हम देख सकते हैं कि ये धार्मिक नेता वस्‍तुत: फरीसी हैं जो सत्‍य से ऊबे हुए हैं और सत्‍य से नफ़रत करते हैं। वे जीते-जागते दैत्‍य हैं जो लोगों की आत्‍माओं को निगल जाते हैं, और मसीहा-विरोधी हैं जिनका परमेश्‍वर के अन्तिम दिनों के कार्य के माध्‍यम से परदाफ़ाश किया जा रहा है।"

परमेश्‍वर के वचनों और इस सिस्‍टर के संवाद को सुनने के बाद मुझे सहसा बोध हुआ। मैंने कुछेक बार सहमति में अपना सिर हिलाया और कहा, "अब मैं आखि़रकार समझ गयी हूँ कि क्‍यों वे पादरी और बुज़ुर्ग यह सुनकर कि लोग परमेश्‍वर की वापसी की गवाही दे रहे हैं इसकी खोज और पड़ताल करने की बजाय जि़दपूर्वक उसकी निन्‍दा करते रहते हैं। अब मैं समझ गयी हूँ कि वे पादरी और बुज़ुर्ग क्‍यों इतने ज़ोर-शोर से मुझे बचाने का और मेरे जीवन की चिन्‍ता करने का दावा करते हैं, जबकि वे दरअसल मुझे परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने तथा परमेश्‍वर से जीवन का पोषण हासिल करने से दूर रखने और रोकने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे हैं। यह सब इसलिए है कि वे जो कुछ भी करते हैं वह सब अपने हितों की रक्षा के लिए करते हैं। उनको डर है कि अगर लोग सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का अनुसरण करने लगेंगे, तो वे उनके उपदेश नहीं सुनेंगे और उनके लिए दान में पैसे नहीं देंगे, और यही वजह है कि वे लोगों को सच्‍चे मार्ग की पड़ताल से रोकते हैं। वे सचमुच घिनौने हैं, और उन्‍होंने सच्‍चा उद्धार हासिल करने का मेरा अवसर लगभग तबाह कर दिया था। अब जबकि मैं बेहतर ढंग से फ़र्क करना जान गयी हूँ, मैं अब उनके साथ किसी तरह का रिश्‍ता रखने से इन्‍कार कर दूँगी। अब वे मुझे परेशान करने के लिए कुछ भी क्‍यों न करें, मैं अब दृढ़ बनी रहूँगी और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का अनुसरण करूँगी।" इसके बाद, मैं फिर कभी अपनी पुरानी कलीसिया की बैठक में नहीं गयी।

इसके बाद बहुत वक्‍़त नहीं गुज़रा था जब मेरी पिछली कलीसिया की दो उपदेशक मेरे घर आयीं। झाँग नामक उनमें से एक उपदेशक ने मुझसे कहा, "आण्‍टी, आप बैठकों में क्‍यों नहीं आयीं? क्‍या आप फिर से ईस्‍टर्न लाइटनिंग के लोगों के सम्‍पर्क में रही हैं? आप जो भी करें, लेकिन आप उनकी आस्‍था को स्‍वीकार न करें। अगर आप उनकी आस्‍था का अनुसरण करने लगती हैं, तो समझ लीजिए कि आप ख़त्‍म हो गयीं!" मैंने दृढ़तापूर्वक जवाब दिया, "इधर आप लोगों की बैठकों में शामिल होकर मुझे कुछ भी हासिल नहीं हुआ है, मेरी आत्‍मा हमेशा से ज्‍़यादा कलुषित हो गयी थी और मैं प्रभु की मौजूदगी को महसूस करने के क़ाबिल नहीं रह गयी थी। लेकिन जबसे मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ना शुरू किया है, मेरी आत्‍मा का उत्‍थान हुआ है, और अब मैं सत्‍यों को समझना शुरू कर रही हूँ तथा मेरे जीवन को पोषण मिला है। मैं महसूस करती हूँ कि परमेश्‍वर मेरे साथ है और पवित्र आत्‍मा मेरा दिल जीत रहा है। अब मुझे पक्‍का यक़ीन है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ही वापस लौटा प्रभु यीशु है और सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर द्वारा व्‍यक्‍त किये गये सत्‍य जीवन का प्राणदायी जल हैं। सिर्फ़ सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन ही मुझे पोषण दे सकते हैं, और जहाँ कहीं से मैं जीवन हासिल कर सकूँगी, मैं वहीं जाऊँगी।" इस पर उनमें से दूसरी उपदेशक साँग ने कहा, "हम आपको लेकर चिन्तित हैं। हमें यह चिन्‍ता है कि आप सच्‍चे मार्ग से भटक जाएँगी। आपको जीवन का अनुभव नहीं है...।" मैंने उससे कहा, "हो सकता है कि मुझे जि़न्‍दगी का तजुरबा न हो, लेकिन तब भी परमेश्‍वर मुझे राह दिखाएगा। आपकी चिन्‍ता के लिए मैं शुक्रगुज़ार हूँ, लेकिन बेहतर है कि आप अपनी खुद की जि़न्‍दगी के बारे में सोचें। मेरी जि़न्‍दगी तो परमेश्‍वर के हाथों में है...।" जब उन्‍होंने वह सब सुन लिया जो मुझे कहना था, तो वे कुड़कुड़ाती हुई चली गयीं। उनको दूर आँखों से ओझल होते देखकर मुझे इतनी ज्‍़यादा राहत महसूस हुई जैसी मैंने कभी महसूस नहीं की थी। इसके बाद वे दो बार और वापस आयीं, लेकिन जब उन्‍होंने पाया कि उनके मनाने-फुसलाने का मुझ पर ज़रा भी असर नहीं हो रहा है, तो फिर वे कभी वापस नहीं आयीं। मैं परमेश्‍वर के मार्गदर्शन की शुक्रगुज़ार हूँ कि मैंने उन धार्मिक नेताओं के असली चेहरों और कुटिल इरादों को, और शैतान की चालाकियों को पहचान लिया तथा भ्रम की स्थिति से बाहर निकलने और वापस परमेश्‍वर के पास जाने का रास्‍ता पा लिया। अब मुझे जीवन का प्राणदायी जल प्राप्‍त हो रहा है, और मैं हमेशा सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर का अनुसरण और उसकी आराधना करती रहूँगी!

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