235 मनुष्य की सोच बहुत रूढ़िवादी है

1

ईश्वर का कार्य हमेशा आगे बढ़ता है।

उसका उद्देश्य कभी नहीं बदलता, कार्य करने के तरीके बदलते रहते,

इसलिए उसके अनुयायी भी बदलते रहते।

ईश्वर जितना ज्यादा कार्य करे, इंसान उतना ज्यादा उसे जान पाए।

ईश-कार्य के जरिये मनुष्य का स्वभाव भी बदले।


2

चूँकि ईश्वर का कार्य बदलता रहे,

इसलिए पवित्रात्मा के कार्य से अनजान लोग और वे बेतुके लोग भी,

जो सत्य को नहीं जानते, ईश-विरोध शुरू कर देते।

उसका कार्य इंसान की धारणा का विरोध करे,

उसका कार्य हमेशा नया रहे, कभी पुराना न पड़े।


ईश्वर अपना पुराना कार्य न दोहराए, बल्कि हमेशा आगे बढ़ता जाए।

इंसान उसके मौजूदा कार्य को उसके पिछले कार्य से आँके।

ईश्वर के लिए मुश्किल हो गया है कार्य का हर चरण नए युग में करना।

इंसान की बहुत समस्याएँ हैं। उसकी सोच बहुत रूढ़िवादी है!

ईश-कार्य को सच में कोई ना जाने, फिर भी सब उसे सीमा में बांधे।


3

इंसान जब ईश्वर को पीछे छोड़े, वो जीवन और सत्य खो देता;

उससे ईश्वर के आशीष ले लिए जाते।

इंसान ईश्वर की दी इन सब चीजों को नकारे।

इंसान समझे, ईश्वर केवल व्यवस्था के अधीन ईश्वर हो सके

और इंसान के लिए सूली पर चढ़ा ईश्वर हो सके।


4

उन्हें लगे, ईश्वर नहीं जा सकता और न उसे जाना चाहिए बाइबल के परे,

इसलिए वे रहते पुरानी व्यवस्थाओं से बँधे,

पुराने, मृत नियमों की बेड़ियों से जकड़े।

कुछ ऐसे भी हैं जो मानते ईश्वर का जो भी नया कार्य हो,

वो पुष्ट किया जाए भविष्यवाणियों से।


उन्हे लगता, नए कार्य के हर चरण में,

उन सभी को जो "सच्चे" मन से अनुसरण करें

प्रकाशन जरूर दिखाए जाएँ, वर्ना वो कार्य ईश-कार्य न हो सके।


5

ईश्वर को जानना मुश्किल है इंसान के लिए।

ये और इंसान का बेतुका दिल और उसका आत्म-गौरव

नए ईश-कार्य को स्वीकारना मुश्किल बनाएँ।

इंसान उस पर गहराई से न सोचे, न उसे विनम्रता से स्वीकारे;

बल्कि उसे सिर्फ अवमानना से देखे।


वो ईश्वर से प्रकाशन और मार्गदर्शन का इंतज़ार करे।

क्या ये विद्रोहियों का आचरण नहीं?

ऐसे लोग ईश्वर का अनुमोदन कैसे पा सकें?


ईश्वर अपना पुराना कार्य न दोहराए, बल्कि हमेशा आगे बढ़ता जाए।

इंसान उसके मौजूदा कार्य को उसके पिछले कार्य से आँके।

ईश्वर के लिए मुश्किल हो गया है कार्य का हर चरण नए युग में करना।

इंसान की बहुत समस्याएँ हैं। उसकी सोच बहुत रूढ़िवादी है!

ईश-कार्य को सच में कोई ना जाने, फिर भी सब उसे सीमा में बांधे।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है? से रूपांतरित

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