347 मनुष्य की मौलिक पहचान और उसका मोल
Ⅰ
कीचड़ से निकालकर,
मैले के ढेर से उठाया गया था तुम्हें।
तुम सब उस गंदी चीज़ से सने थे,
जिससे ईश्वर को घृणा है।
हाँ, है ये सच शैतान के थे तुम,
उसके द्वारा कलंकित, कुचले गए।
तभी कहा जाये कि तुम
कीचड़ से उठाये गये,
तुम पवित्र होने से बहुत दूर थे;
तुम सब तो इंसान भी नहीं,
हो शैतान के जाल में फंसे जाने कब से।
ये है तुम्हारा सबसे सही वर्णन।
तुम थे अशुद्धि शुरू से,
तुम गंदे पानी, कीचड़ में पाये जाते थे,
कोई न चाहता था तुम सबको,
कोई कीमती चीज़ नहीं थे
तुम जैसे मछली, झींगे,
क्योंकि आनंद नहीं मिल सकता कभी तुमसे।
Ⅱ
तुम सबकी जगह अधम समाज में
है सबसे तुच्छ जानवरों की।
हो गए-गुज़रे सूअर, कुत्तों से भी।
तुम्हारे बारे में ये बातें
बढ़ा-चढ़ा कर नहीं कही गईं;
बल्कि मामले को बनाती हैं सरल।
तुम्हारे बारे में ऐसा कहना
है तुम्हें इज़्ज़त देना।
तुम्हारी अंतर्दृष्टि, व्यवहार, बोली,
तुम्हारी ज़िंदगी का हर हिस्सा,
कीचड़ में तुम्हारी जगह,
सब काफ़ी हैं साबित करने को
कि तुम्हारी पहचान
"साधारण नहीं।"
ये है तुम्हारा सबसे सही वर्णन।
तुम थे अशुद्धि शुरू से,
तुम गंदे पानी, कीचड़ में पाये जाते थे,
कोई न चाहता था तुम सबको,
कोई कीमती चीज़ नहीं थे तुम
जैसे मछली, झींगे,
क्योंकि आनंद नहीं मिल सकता कभी तुमसे।
— 'वचन देह में प्रकट होता है' से रूपांतरित