270 परमेश्वर के लिए समर्पित हृदय
1 परमेश्वर! मेरे पास इस जीवन के अलावा और कुछ नहीं है। यद्यपि तेरे लिए इसका अधिक महत्व नहीं है, फिर भी मैं इसे तुझे समर्पित करना चाहता हूँ। यद्यपि मनुष्य तुझे प्रेम करने के योग्य नहीं हैं, और उनका प्रेम और हृदय बेकार हैं, तब भी मुझे विश्वास है कि तू मनुष्यों के हृदय के मनोरथों को जानता है। भले ही मनुष्य के शरीर तेरी स्वीकृति को प्राप्त नहीं करते हैं, फिर भी मैं चाहता हूँ कि तू मेरे हृदय को स्वीकार कर ले। मैं अपने हृदय को पूरी तरह से परमेश्वर को समर्पित करने को तैयार हूँ। भले ही मैं परमेश्वर के लिए कुछ करने में असमर्थ हूँ, फिर भी मैं परमेश्वर को ईमानदारी से संतुष्ट करने और अपने आप को पूरे हृदय से उसके प्रति समर्पित करने के लिए तैयार हूँ। मुझे विश्वास है कि परमेश्वर अवश्य मेरे हृदय को देखता है।
2 मैं अपने जीवन में कुछ नहीं माँगता हूँ किन्तु माँगता हूँ कि परमेश्वर के प्रेम के लिए मेरे विचार और मेरे हृदय की अभिलाषा परमेश्वर के द्वारा स्वीकार की जाए। मैं काफी समय तक प्रभु यीशु के साथ था, फिर भी मैंने उसे कभी भी प्रेम नहीं किया, यह मेरा सबसे बड़ा कर्ज़ है। यद्यपि मैं उसके साथ रहा, फिर भी मैंने उसे नहीं जाना, यहाँ तक कि उसकी पीठ पीछे कुछ अनुचित बातें भी कही। ये बातें सोचकर मैं प्रभु यीशु के प्रति अपने आप को और भी अधिक ऋणी समझता हूँ। मैं धूल से भी कम हूँ। मैं अपने समर्पित हृदय को परमेश्वर को सौंपने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता हूँ।