8. न्याय के कार्य को करने के लिए परमेश्वर का देहधारण करना, किस तरह मानव जाति के अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास को और शैतान के प्रभुत्व के अंधेरे युग को समाप्त करता है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे। बहुत से देशों के लोग आएँगे, और आपस में कहेंगे: 'आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्‍वर के भवन में जाएँ; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।' क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा। वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हँसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे। हे याकूब के घराने, आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें" (यशायाह 2:2-5)

"हे सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्‍वर, जो है और जो था, हम तेरा धन्यवाद करते हैं कि तू ने अपनी बड़ी सामर्थ्य को काम में लाकर राज्य किया है। जातियों ने क्रोध किया, पर तेरा प्रकोप आ पड़ा, और वह समय आ पहुँचा है कि मरे हुओं का न्याय किया जाए, और तेरे दास भविष्यद्वक्‍ताओं और पवित्र लोगों को और उन छोटे बड़ों को जो तेरे नाम से डरते हैं बदला दिया जाए, और पृथ्वी के बिगाड़नेवाले नष्‍ट किए जाएँ" (प्रकाशितवाक्य 11:17-18)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर का आगमन अनुग्रह के युग का अंत करने आया है। वह मुख्य रूप से अपने वचन बोलने, मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए वचनों का उपयोग करने, मनुष्य को रोशन और प्रबुद्ध करने, और मनुष्य के हृदय के भीतर से अज्ञात परमेश्वर का स्थान हटाने के लिए आया है। यह कार्य का वह चरण नहीं है, जो यीशु ने तब किया था, जब वह आया था। जब यीशु आया, तब उसने कई चमत्कार किए, उसने बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को बाहर निकाला, और सलीब पर चढ़कर छुटकारा दिलाने का कार्य किया। परिणामस्वरूप, लोग अपनी धारणाओं के अनुसार यह मानते हैं कि परमेश्वर को ऐसा ही होना चाहिए। क्योंकि जब यीशु आया, उसने मनुष्य के हृदय से अज्ञात परमेश्वर की छवि हटाने का कार्य नहीं किया; जब वह आया, उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया, उसने बीमारों को चंगा किया और दुष्टात्माओं को बाहर निकाला, और उसने स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार फैलाया। एक दृष्टि से, अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर का देहधारण मनुष्य की धारणाओं में अज्ञात परमेश्वर द्वारा ग्रहण किए गए स्थान को हटाता है, ताकि मनुष्य के हृदय में अज्ञात परमेश्वर की छवि अब और न रहे। अपने वास्तविक कार्य और वास्तविक वचनों, समस्त देशों में अपने आवागमन, और मनुष्यों के बीच वह जो असाधारण रूप से वास्तविक और सामान्य कार्य करता है, उस सबके माध्यम से वह मनुष्य के लिए परमेश्वर की वास्तविकता जानने का निमित्त बनता है, और मनुष्य के हृदय से अज्ञात परमेश्वर का स्थान हटाता है। दूसरी दृष्टि से, परमेश्वर अपने देह द्वारा कहे गए वचनों का उपयोग मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए, और समस्त कामों को पूरा करने के लिए करता है। अंत के दिनों के दौरान परमेश्वर यही कार्य संपन्न करेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना

आज मनुष्यों के बीच आने का परमेश्वर का प्रयोजन और कुछ नहीं, बल्कि उनके विचारों और आत्माओं, और साथ ही उनके दिलों में लाखों वर्षों से मौजूद परमेश्वर की छवि को भी बदलना है। वह इस अवसर का इस्तेमाल मनुष्य को पूर्ण बनाने के लिए करेगा। अर्थात, वह मनुष्यों के ज्ञान के माध्यम से परमेश्वर को जानने के उनके तरीके और अपने प्रति उनका दृष्टिकोण बदल देगा, ताकि उन्हें परमेश्वर को जानने के लिए एक विजयी नई शुरुआत करने में सक्षम बना सके, और इस प्रकार मनुष्य की आत्मा का नवीकरण और रूपांतरण हासिल कर सके। निपटारा और अनुशासन साधन हैं, जबकि विजय और नवीकरण लक्ष्य हैं। मनुष्य ने एक अस्पष्ट परमेश्वर के बारे में जो अंधविश्वासी विचार बना रखे हैं, उन्हें दूर करना हमेशा से परमेश्वर का इरादा रहा है, और हाल ही में यह उसके लिए एक तात्कालिक आवश्यकता का मुद्दा भी बन गया है। काश, सभी लोग इस स्थिति पर विस्तार से विचार करें।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (7)

ऐसा यह केवल आज ही हुआ है कि मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच आया हूँ और अपने वचन कहे हैं, कि मनुष्य को मेरे बारे में ज्ञान कम है, वो अपने विचारों में से "मेरे" स्थान को हटा रहे हैं, और उसके बजाय अपनी चेतना में व्यावहारिक परमेश्वर के लिए स्थान बना रहे हैं। मनुष्य की अपनी धारणाएँ हैं और वह उत्सुकता से भरा है; परमेश्वर को कौन नहीं देखना चाहेगा? कौन परमेश्वर से नहीं मिलना चाहेगा? फिर भी केवल एक चीज़ जो मनुष्य के हृदय में एक निश्चित स्थान रखती है, वह परमेश्वर है जिसके बारे में मनुष्य को लगता है कि वह अस्पष्ट और अमूर्त है। यदि मैंने उन्हें स्पष्ट रूप से न बताया होता तो कौन इसे जान पाता? कौन सचमुच, यकीन के साथ और लेशमात्र भी शंका के बगैर, विश्वास करता कि वाकई मेरा अस्तित्व भी है? मनुष्य के हृदय में "मैं" और असलियत के "मैं" के बीच बहुत बड़ा अंतर है, और उनके बीच तुलना करने में कोई भी सक्षम नहीं है। यदि मैं देहधारी न होता, तो मनुष्य ने मुझे कभी भी न जाना होता, और यदि उसने मुझे जान भी लिया होता, तो क्या इस प्रकार का ज्ञान अभी भी एक धारणा न होता? ...

... क्योंकि मनुष्य को शैतान द्वारा प्रलोभित और भ्रष्ट किया गया है, क्योंकि उस पर धारणाओं और सोच ने क़ब्ज़ा कर लिया है, इसलिए व्यक्तिगत तौर पर संपूर्ण मानवजाति को जीतने, मनुष्य की सभी धारणाओं को उजागर करने, और मनुष्य की सोच की धज्जियां उड़ाने के उद्देश्य से मैं देहधारी बना हूँ। परिणामस्वरूप, मनुष्य मेरे सामने अब और आडंबर नहीं करता, तथा अपनी धारणाओं के ज़रिए मेरी सेवा नहीं करता, और इस प्रकार मनुष्य की धारणाओं में "मैं" पूरी तरह छितरा जाता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 11

जो लोग देह में जीवन बिताते हैं उन सभी के लिए, अपने स्वभाव को परिवर्तित करने के लिए ऐसे लक्ष्यों की आवश्यकता होती है जिनका अनुसरण किया जा सके, और परमेश्वर को जानने के लिए आवश्यक है परमेश्वर के वास्तविक कर्मों एवं वास्तविक चेहरे को देखना। दोनों को सिर्फ परमेश्वर के देहधारी रूप से ही प्राप्त किया जा सकता है, दोनों को सिर्फ साधारण और वास्तविक देह से ही पूरा किया जा सकता है। इसीलिए देहधारण ज़रूरी है, और इसीलिए पूरी तरह से भ्रष्ट मनुष्यजाति को इसकी आवश्यकता है। चूँकि लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे परमेश्वर को जानें, इसलिए अस्पष्ट और अलौकिक परमेश्वरों की छवि को उनके हृदय से दूर हटाया जाना चाहिए, और चूँकि उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे अपने भ्रष्ट स्वभाव को दूर करें, इसलिए उन्हें पहले अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचानना चाहिए। यदि लोगों के हृदय से अस्पष्ट परमेश्वरों की छवि को हटाने का कार्य केवल मनुष्य करे, तो वह उपयुक्त प्रभाव प्राप्त करने में असफल हो जाएगा। लोगों के हृदय से अस्पष्ट परमेश्वर की छवि को केवल वचनों से उजागर, दूर या पूरी तरह से निकाला नहीं जा सकता। ऐसा करने से, अंततः इन गहरी समाई चीज़ों को लोगों से हटाना तब भी संभव नहीं होगा। केवल इन अस्पष्ट और अलौकिक चीज़ों की जगह व्यावहारिक परमेश्वर और परमेश्वर की सच्ची छवि को रख कर, और लोगों को धीरे-धीरे इन्हें ज्ञात करवा कर ही उचित प्रभाव प्राप्त किया जा सकता है। मनुष्य को एहसास होता है कि जिस परमेश्वर को वह पहले से खोजता रहा है वह अस्पष्ट और अलौकिक है। पवित्रात्मा की प्रत्यक्ष अगुवाई इस प्रभाव को प्राप्त नहीं कर सकती, किसी व्यक्ति विशेष की नहीं बल्कि देहधारी परमेश्वर की शिक्षाएँ ऐसा कर सकती हैं। मनुष्य की धारणाएँ तब उजागर होती हैं जब देहधारी परमेश्वर आधिकारिक रूप से अपना कार्य करता है, क्योंकि देहधारी परमेश्वर की सामान्यता और वास्तविकता मनुष्य की कल्पना के अस्पष्ट एवं अलौकिक परमेश्वर से विपरीत हैं। मनुष्य की मूल धारणाएँ तो तभी उजागर हो सकती हैं जब उनकी देहधारी परमेश्वर से तुलना की जाये। देहधारी परमेश्वर से तुलना के बिना, मनुष्य की धारणाओं को उजागर नहीं किया जा सकता; दूसरे शब्दों में, वास्तविकता की विषमता के बिना अस्पष्ट चीज़ों को उजागर नहीं किया जा सकता। इस कार्य को करने के लिए कोई भी वचनों का उपयोग करने में सक्षम नहीं है, और कोई भी वचनों का उपयोग करके इस कार्य को स्पष्टता से व्यक्त करने में सक्षम नहीं है। केवल स्वयं परमेश्वर ही अपना कार्य कर सकता है, अन्य कोई उसकी ओर से इस कार्य को नहीं कर सकता। मनुष्य की भाषा कितनी भी समृद्ध क्यों न हो, वह परमेश्वर की वास्तविकता और सामान्यता को स्पष्टता से व्यक्त करने में असमर्थ है। यदि परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से मनुष्य के बीच कार्य करे और अपनी छवि और अपने स्वरूप को पूरी तरह से प्रकट करे, तभी मनुष्य अधिक व्यावहारिकता से परमेश्वर को जान सकता है और अधिक स्पष्टता से देख सकता है। इस प्रभाव को कोई हाड़-माँस का इंसान प्राप्त नहीं कर सकता। निस्संदेह, परमेश्वर का आत्मा भी इस प्रभाव को प्राप्त करने में असमर्थ है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है

देह में उसके कार्य के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह उन लोगों के लिए सटीक वचन, उपदेश और मनुष्यजाति के लिए अपनी विशिष्ट इच्छा को उन लोगों के लिए छोड़ सकता है जो उसका अनुसरण करते हैं, ताकि बाद में उसके अनुयायी देह में किए गए उसके समस्त कार्य और संपूर्ण मनुष्यजाति के लिए उसकी इच्छा को अत्यधिक सटीकता से, ठोस तरीके से उन लोगों तक पहुँचा सकें जो इस मार्ग को स्वीकार करते हैं। मनुष्यों के बीच केवल देहधारी परमेश्वर का कार्य ही सही अर्थों में परमेश्वर के मनुष्य के साथ रहने और उसके साथ जीने के सच को पूरा करता है। केवल यही कार्य परमेश्वर के चेहरे को देखने, परमेश्वर के कार्य की गवाही देने, और परमेश्वर के व्यक्तिगत वचन को सुनने की मनुष्य की इच्छा को पूरा करता है। देहधारी परमेश्वर उस युग का अंत करता है जब सिर्फ यहोवा की पीठ ही मनुष्यजाति को दिखाई देती थी, और साथ ही वह अज्ञात परमेश्वर में मनुष्यजाति के विश्वास करने के युग को भी समाप्त करता है। विशेष रूप से, अंतिम देहधारी परमेश्वर का कार्य संपूर्ण मनुष्यजाति को एक ऐसे युग में लाता है जो अधिक वास्तविक, अधिक व्यावहारिक, और अधिक सुंदर है। वह केवल व्यवस्था और सिद्धान्त के युग का ही अंत नहीं करता; बल्कि अधिक महत्वपूर्ण यह है कि वह मनुष्यजाति पर ऐसे परमेश्वर को प्रकट करता है जो वास्तविक और सामान्य है, जो धार्मिक और पवित्र है, जो प्रबंधन योजना के कार्य का खुलासा करता है और मनुष्यजाति के रहस्यों और मंज़िल को प्रदर्शित करता है, जिसने मनुष्यजाति का सृजन किया और प्रबंधन कार्य को अंजाम तक पहुँचाता है, और जिसने हज़ारों वर्षों तक खुद को छिपा कर रखा है। वह अस्पष्टता के युग का पूर्णतः अंत करता है, वह उस युग का समापन करता है जिसमें संपूर्ण मनुष्यजाति परमेश्वर का चेहरा खोजना तो चाहती थी मगर खोज नहीं पायी, वह उस युग का अंत करता है जिसमें संपूर्ण मनुष्यजाति शैतान की सेवा करती थी, और एक पूर्णतया नए युग में संपूर्ण मनुष्यजाति की अगुवाई करता है। यह सब परमेश्वर के आत्मा के बजाए देह में प्रकट परमेश्वर के कार्य का परिणाम है। जब परमेश्वर अपने देह में कार्य करता है, तो जो लोग उसका अनुसरण करते हैं, वे उन चीज़ों को खोजते और टटोलते नहीं हैं जो विद्यमान और अविद्यमान दोनों प्रतीत होती हैं, और वे अस्पष्ट परमेश्वर की इच्छा का अंदाज़ा लगाना बंद कर देते हैं। जब परमेश्वर देह में अपने कार्य को फैलाता है, तो जो लोग उसका अनुसरण करते हैं वे उसके द्वारा देह में किए गए कार्य को सभी धर्मों और पंथों में आगे बढ़ाएँगे, और वे उसके सभी वचनों को संपूर्ण मनुष्यजाति के कानों तक पहुँचाएँगे। उसके सुसमाचार को प्राप्त करने वाले जो सुनेंगे, वे उसके कार्य के तथ्य होंगे, ऐसी चीज़ें होंगी जो मनुष्य के द्वारा व्यक्तिगत रूप से देखी और सुनी गई होंगी, और तथ्य होंगे, अफ़वाह नहीं। ये तथ्य ऐसे प्रमाण हैं जिनसे वह कार्य को फैलाता है, और वे ऐसे साधन भी हैं जिन्हें वह कार्य को फैलाने में उपयोग करता है। बिना तथ्यों के उसका सुसमाचार सभी देशों और सभी स्थानों तक नहीं फैलेगा; बिना तथ्यों के केवल मनुष्यों की कल्पनाओं के सहारे, वह कभी भी संपूर्ण ब्रह्माण्ड पर विजय नहीं पा सकेगा। पवित्रात्मा मनुष्य के लिए अस्पृश्य और अदृश्य है, और पवित्रात्मा का कार्य मनुष्य के लिए परमेश्वर के कार्य के किसी और प्रमाण या तथ्यों को छोड़ने में असमर्थ है। मनुष्य परमेश्वर के असली चेहरे को कभी नहीं देख पाएगा, वह हमेशा ऐसे अस्पष्ट परमेश्वर में विश्वास करेगा जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। मनुष्य कभी भी परमेश्वर के मुख को नहीं देखेगा, न ही मनुष्य परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों को कभी सुन पाएगा। आखिर, मनुष्य की कल्पनाएँ खोखली होती हैं, वे परमेश्वर के असली चेहरे का स्थान कभी नहीं ले सकतीं; मनुष्य परमेश्वर के अंतर्निहित स्वभाव, और स्वयं परमेश्वर के कार्य का अभिनय नहीं कर सकता। स्वर्ग के अदृश्य परमेश्वर और उसके कार्य को केवल देहधारी परमेश्वर द्वारा ही पृथ्वी पर लाया जा सकता है जो मनुष्यों के बीच व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है। परमेश्वर के लिए मनुष्य के सामने प्रकट होने का यही सबसे आदर्श तरीका है, जिसमें मनुष्य परमेश्वर को देखता है और परमेश्वर के असली चेहरे को जानने लगता है। इसे कोई गैर-देहधारी परमेश्वर संपन्न नहीं कर सकता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है

राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरुआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने और संपूर्ण युग के लिए काम करने के लिए अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोण से बोल सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, उसकी बुद्धि और चमत्कार को जान सके। इस तरह का कार्य मनुष्य को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल करने के लिए किया जाता है। वचन के युग में वचन के उपयोग का यही वास्तविक अर्थ है। वचन के द्वारा परमेश्वर के कार्यों को, परमेश्वर के स्वभाव को मनुष्य के सार और इस राज्य में प्रवेश करने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए, यह जाना जा सकता है। वचन के युग में परमेश्वर जिन सभी कार्यों को करना चाहता है, वे वचन के द्वारा संपन्न होते हैं। वचन के द्वारा ही मनुष्य की असलियत का पता चलता है, उसे नष्ट किया जाता है और परखा जाता है। मनुष्य ने वचन देखा है, सुना है और वचन के अस्तित्व को जाना है। इसके परिणामस्वरूप वह परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है, मनुष्य परमेश्वर के सर्वशक्तिमान होने और उसकी बुद्धि पर, साथ ही साथ मनुष्य के लिए परमेश्वर के हृदय के प्रेम और मनुष्य को बचाने की उसकी इच्छा पर विश्वास करता है। यद्यपि "वचन" शब्द सरल और साधारण है, देहधारी परमेश्वर के मुख से निकला वचन संपूर्ण ब्रह्माण्ड को झकझोरता है; और उसका वचन मनुष्य के हृदय को रूपांतरित करता है, मनुष्य के सभी विचारों और पुराने स्वभाव और समस्त संसार के पुराने स्वरूप में परिवर्तन लाता है। युगों-युगों से केवल आज के दिन का परमेश्वर ही इस प्रकार से कार्य करता है और केवल वही इस प्रकार से बोलता और मनुष्य का उद्धार करता है। इसके बाद मनुष्य वचन के मार्गदर्शन में, उसकी चरवाही में और उससे प्राप्त आपूर्ति में जीवन जीता है। वह वचन के संसार में जीता है, परमेश्वर के वचन के कोप और आशीषों के बीच जीता है, तथा और भी अधिक लोग अब परमेश्वर के वचन के न्याय और ताड़ना के अधीन जीने लगे हैं। ये वचन और यह कार्य सब कुछ मनुष्य के उद्धार, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने और पुरानी सृष्टि के संसार के मूल स्वरूप को बदलने के लिए है। परमेश्वर ने संसार की सृष्टि वचन से की, वह समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य की अगुवाई वचन के द्वारा करता है, उन्हें वचन के द्वारा जीतता और उनका उद्धार करता है। अंत में, वह इसी वचन के द्वारा समस्त प्राचीन जगत का अंत कर देगा। तभी उसके प्रबंधन की योजना पूरी होगी।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, राज्य का युग वचन का युग है

पृथ्वी पर परमेश्वर के इस देहधारण के दौरान, जब वह मनुष्य के बीच व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य करता है, तो वह सब कार्य जिसे वह करता है, शैतान को हराने के लिए है, और वह मनुष्य पर विजय पाने और तुम लोगों को पूर्ण करने के माध्यम से शैतान को हराएगा। जब तुम लोग ज़बर्दस्त गवाही दोगे, तो यह भी शैतान की हार का एक चिह्न होगा। शैतान को हराने के लिए पहले मनुष्य पर विजय पाई जाती है और अंततः उसे पूरी तरह से पूर्ण बनाया जाता है। किंतु, सार रूप में, शैतान की हार के साथ-साथ यह संताप के इस खाली सागर से संपूर्ण मानव-जाति का उद्धार भी है। कार्य चाहे संपूर्ण जगत में किया जाए या चीन में, यह सब शैतान को हराने और संपूर्ण मानव-जाति का उद्धार करने के लिए है, ताकि मनुष्य विश्राम के स्थान में प्रवेश कर सके। देहधारी परमेश्वर, यह सामान्य देह, निश्चित रूप से शैतान को हराने के वास्ते है। देह में परमेश्वर के कार्य का उपयोग स्वर्ग के नीचे के उन सभी लोगों का उद्धार करने के लिए किया जाता है, जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, यह संपूर्ण मानव-जाति पर विजय पाने, और इसके अतिरिक्त, शैतान को हराने के वास्ते है। परमेश्वर के प्रबंधन के कार्य के मर्म को संपूर्ण मानव-जाति का उद्धार करने के लिए शैतान की पराजय से अलग नहीं किया जा सकता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना

मनुष्य के उद्धार का सार शैतान के विरुद्ध युद्ध है, और यह युद्ध मुख्य रूप से मनुष्य के उद्धार में प्रतिबिंबित होता है। अंत के दिनों का चरण, जिसमें मनुष्य को जीता जाना है, शैतान के साथ युद्ध का अंतिम चरण है, और यह शैतान के अधिकार-क्षेत्र से मनुष्य के संपूर्ण उद्धार का कार्य भी है। मनुष्य पर विजय का आंतरिक अर्थ मनुष्य पर विजय पाने के बाद शैतान के मूर्त रूप—मनुष्य, जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है—का अपने जीते जाने के बाद सृजनकर्ता के पास वापस लौटना है, जिसके माध्यम से वह शैतान को छोड़ देगा और पूरी तरह से परमेश्वर के पास वापस लौट जाएगा। इस तरह मनुष्य को पूरी तरह से बचा लिया जाएगा। और इसलिए, विजय का कार्य शैतान के विरुद्ध युद्ध में अंतिम कार्य है, और शैतान की पराजय के वास्ते परमेश्वर के प्रबंधन में अंतिम चरण है। इस कार्य के बिना मनुष्य का संपूर्ण उद्धार अंततः असंभव होगा, शैतान की संपूर्ण पराजय भी असंभव होगी, और मानव-जाति कभी भी अपनी अद्भुत मंज़िल में प्रवेश करने या शैतान के प्रभाव से छुटकारा पाने में सक्षम नहीं होगी। परिणामस्वरूप, शैतान के साथ युद्ध की समाप्ति से पहले मनुष्य के उद्धार का कार्य समाप्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि परमेश्वर के प्रबधंन के कार्य का केंद्रीय भाग मानव-जाति के उद्धार के वास्ते है। आदिम मानव-जाति परमेश्वर के हाथों में थी, किंतु शैतान के प्रलोभन और भ्रष्टता की वजह से, मनुष्य को शैतान द्वारा बाँध लिया गया और वह इस दुष्ट के हाथों में पड़ गया। इस प्रकार, परमेश्वर के प्रबधंन-कार्य में शैतान पराजित किए जाने का लक्ष्य बन गया। चूँकि शैतान ने मनुष्य पर कब्ज़ा कर लिया था, और चूँकि मनुष्य वह पूँजी है जिसे परमेश्वर संपूर्ण प्रबंधन पूरा करने के लिए इस्तेमाल करता है, इसलिए यदि मनुष्य को बचाया जाना है, तो उसे शैतान के हाथों से वापस छीनना होगा, जिसका तात्पर्य है कि मनुष्य को शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाने के बाद उसे वापस लेना होगा। इस प्रकार, शैतान को मनुष्य के पुराने स्वभाव में बदलावों के माध्यम से पराजित किया जाना चाहिए, ऐसे बदलाव, जो मनुष्य की मूल विवेक-बुद्धि को बहाल करते हैं। और इस तरह से मनुष्य को, जिसे बंदी बना लिया गया था, शैतान के हाथों से वापस छीना जा सकता है। यदि मनुष्य शैतान के प्रभाव और बंधन से मुक्त हो जाता है, तो शैतान शर्मिंदा हो जाएगा, मनुष्य को अंततः वापस ले लिया जाएगा, और शैतान को हरा दिया जाएगा। और चूँकि मनुष्य को शैतान के अंधकारमय प्रभाव से मुक्त किया जा चुका है, इसलिए एक बार जब यह युद्ध समाप्त हो जाएगा, तो मनुष्य इस संपूर्ण युद्ध में जीत के परिणामस्वरूप प्राप्त हुआ लाभ बन जाएगा, और शैतान वह लक्ष्य बन जाएगा जिसे दंडित किया जाएगा, जिसके पश्चात् मानव-जाति के उद्धार का संपूर्ण कार्य पूरा कर लिया जाएगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना

मेरे वचन ज्यों-ज्यों पूर्णता तक पहुँचते हैं, पृथ्वी पर धीरे-धीरे राज्य बनता जाता है और मनुष्य धीरे-धीरे सामान्यता की ओर लौटता है, और इस प्रकार पृथ्वी पर वह राज्य स्थापित हो जाता है जो मेरे हृदय में है। राज्य में, परमेश्वर के सभी लोग सामान्य मनुष्य का जीवन पुनः प्राप्त कर लेते हैं। पाले वाली शीत ऋतु विदा हुई, उसका स्थान वासंती नगरों के संसार ने ले लिया है, जहाँ पूरे साल बहार रहती है। मनुष्य का उदास और अभागा संसार अब लोगों के सामने नहीं रह गया है, और न ही वे मनुष्य के संसार की ठण्डी सिहरन सहते हैं। लोग एक दूसरे से लड़ते नहीं हैं, देश एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध में नहीं उतरते हैं, नरसंहार अब और नहीं हैं और न वह लहू जो नरसंहार से बहता है; सारे भूभागों में प्रसन्नता छाई है, और हर जगह मनुष्यों की आपसी गर्माहट से भरी है। मैं पूरे संसार में घूमता हूँ, मैं ऊपर अपने सिंहासन से आनंदित होता हूँ, और मैं तारों के बीच रहता हूँ। और स्वर्गदूत मेरे लिए नए-नए गीत और नए-नए नृत्य प्रस्तुत करते हैं। उनके चेहरों से उनकी क्षणभंगुरता के कारण अब और आँसू नहीं ढलकते हैं। अब मुझे स्वर्गदूतों के रोने की आवाज़ नहीं सुनाई देती, और अब कोई मुझसे कठिनाइयों की शिकायत नहीं करता।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 20

जब सभी लोगों को संपूर्ण बना लिया गया होगा और पृथ्वी के सभी राष्ट्र मसीह का राज्य बन गए होंगे, तब वह समय होगा जब सात गर्जनाएँ गूँजेंगी। वर्तमान दिन उस चरण की दिशा में एक लंबा कदम है; आने वाले उस दिन की ओर बढ़ने के लिए धावा बोल दिया गया है। यह परमेश्वर की योजना है, और निकट भविष्य में ये साकार हो जाएगा। हालाँकि, परमेश्वर ने जो कुछ भी कहा है, वह सब पहले ही पूरा कर दिया है। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि धरती के देश केवल रेत के किले हैं जो ज्वार आने पर काँप जाते हैं : अंत का दिन सन्निकट है और बड़ा लाल अजगर परमेश्वर के वचन के नीचे गिर जाएगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि परमेश्वर की योजना का सफलतापूर्वक क्रियान्वन होता है, परमेश्वर को संतुष्ट करने का भरपूर प्रयास करते हुए, स्वर्गदूत पृथ्वी पर उतर आए हैं। स्वयं देहधारी परमेश्वर दुश्मन से लड़ाई करने के लिए युद्ध के मैदान में तैनात हुआ है। जहाँ कहीं भी देहधारण प्रकट होता है, उस जगह से दुश्मन पूर्णतया विनष्ट किया जाता है। सबसे पहले चीन का सर्वनाश होगा; यह परमेश्वर के हाथों बर्बाद कर दिया जाएगा। परमेश्वर वहाँ कोई भी दया बिलकुल नहीं दिखाएगा। बड़े लाल अजगर के उत्तरोत्तर ढहने का सबूत लोगों की निरंतर परिपक्वता में देखा जा सकता है; इसे कोई भी स्पष्ट रूप से देख सकता है। लोगों की परिपक्वता दुश्मन की मृत्यु का संकेत है। यह "प्रतिस्पर्धा करने" के अर्थ का थोड़ा स्पष्टीकरण है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 10

जब संसार के सभी राष्ट्र और लोग मेरे सिंहासन के सामने लौटेंगे, तब मैं स्वर्ग का सारी वदान्यता लेकर इसे मानव संसार को सौंप दूँगा, जिससे, मेरी बदौलत, वह संसार बेजोड़ वदान्यता से लबालब भर जाएगा। किन्तु जब तक पुराने संसार का अस्तित्व बना रहता है, मैं अपना प्रचण्ड रोष इसके राष्ट्रों के ऊपर पूरी ज़ोर से बरसाऊंगा, समूचे ब्रह्माण्ड में खुलेआम अपनी प्रशासनिक आज्ञाएँ लागू करूँगा, और जो कोई उनका उल्लंघन करेगा, उनको ताड़ना दूँगा:

जैसे ही मैं बोलने के लिए ब्रह्माण्ड की तरफ अपना चेहरा घुमाता हूँ, सारी मानवजाति मेरी आवाज़ सुनती है, और उसके उपरांत उन सभी कार्यों को देखती है जिन्हें मैंने समूचे ब्रह्माण्ड में गढ़ा है। वे जो मेरी इच्छा के विरूद्ध खड़े होते हैं, अर्थात् जो मनुष्य के कर्मों से मेरा विरोध करते हैं, वे मेरी ताड़ना के अधीन आएँगे। मैं स्वर्ग के असंख्य तारों को लूँगा और उन्हें फिर से नया कर दूँगा, और, मेरी बदौलत, सूर्य और चन्द्रमा नये हो जाएँगे—आकाश अब और वैसा नहीं रहेगा जैसा वह था और पृथ्वी पर बेशुमार चीज़ों को फिर से नया बना दिया जाएगा। मेरे वचनों के माध्यम से सभी पूर्ण हो जाएँगे। ब्रह्माण्ड के भीतर अनेक राष्ट्रों को नए सिरे से बाँटा जाएगा और उनका स्थान मेरा राज्य लेगा, जिससे पृथ्वी पर विद्यमान राष्ट्र हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएँगे और एक राज्य बन जाएँगे जो मेरी आराधना करता है; पृथ्वी के सभी राष्ट्रों को नष्ट कर दिया जाएगा और उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। ब्रह्माण्ड के भीतर मनुष्यों में से उन सभी का, जो शैतान से संबंध रखते हैं, सर्वनाश कर दिया जाएगा, और वे सभी जो शैतान की आराधना करते हैं उन्हें मेरी जलती हुई आग के द्वारा धराशायी कर दिया जायेगा—अर्थात उनको छोड़कर जो अभी धारा के अन्तर्गत हैं, शेष सभी को राख में बदल दिया जाएगा। जब मैं बहुत-से लोगों को ताड़ना देता हूँ, तो वे जो धार्मिक संसार में हैं, मेरे कार्यों के द्वारा जीते जाने के उपरांत, भिन्न-भिन्न अंशों में, मेरे राज्य में लौट आएँगे, क्योंकि उन्होंने एक श्वेत बादल पर सवार पवित्र जन के आगमन को देख लिया होगा। सभी लोगों को उनकी किस्म के अनुसार अलग-अलग किया जाएगा, और वे अपने-अपने कार्यों के अनुरूप ताड़नाएँ प्राप्त करेंगे। वे सब जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए हैं, नष्ट हो जाएँगे; जहाँ तक उनकी बात है, जिन्होंने पृथ्वी पर अपने कर्मों में मुझे शामिल नहीं किया है, उन्होंने जिस तरह अपने आपको दोषमुक्त किया है, उसके कारण वे पृथ्वी पर मेरे पुत्रों और मेरे लोगों के शासन के अधीन निरन्तर अस्तित्व में बने रहेंगे। मैं अपने आपको असंख्य लोगों और असंख्य राष्ट्रों के सामने प्रकट करूँगा, और अपनी वाणी से, पृथ्वी पर ज़ोर-ज़ोर से और ऊंचे तथा स्पष्ट स्वर में, अपने महा कार्य के पूरे होने की उद्घोषणा करूँगा, ताकि समस्त मानवजाति अपनी आँखों से देखे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 26

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अगला: प्रश्न 1: तुम यह प्रमाणित करते हो कि परमेश्वर ने देहधारण किया है और अंतिम दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए मनुष्य का पुत्र बन चुका है, और फिर भी अधिकांश धार्मिक पादरी और प्राचीन लोग इस बात की पुष्टि करते हैं कि परमेश्वर बादलों के साथ लौटेगा, और वे इसका आधार मुख्यतः बाइबल की इन पंक्तियों पर रखते हैं: "यही यीशु ... जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा" (प्रेरितों 1:11)। "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी" (प्रकाशितवाक्य 1:7)। और इसके अलावा, धार्मिक पादरियों और प्राचीन लोगों ने हमें यह भी निर्देश दिया है कि कोई भी प्रभु यीशु जो बादलों के साथ नहीं आता है, वह झूठा है और उसे छोड़ दिया जाना चाहिए। इसलिए हम निश्चित नहीं हो पा रहे हैं कि यह नज़रिया बाइबल के अनुरूप है या नहीं; इसे सच मान लेना उचित है या नहीं?

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संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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