397 जब मैंने परमेश्वर को खो दिया
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जब खोया मैंने परमेश्वर को,
लगा जैसे पानी पर बहता तिनका हूँ मैं, जिसके पास थामने को कुछ न हो।
परमेश्वर की उपस्थिति के बिना जीवन बहुत खाली हो गया।
परमेश्वर का हृदय फिर से पाने के लिए विनती के शब्द नहीं हैं काफी।
नफरत करती हूं मैं खुद से कि केवल देह के सुखों से चिपकी रही,
सत्य का अनुसरण न किया।
हे परमेश्वर, याद आती है तुम्हारी। अपने दिल में पुकारती हूँ नाम तुम्हारा।
शैतान की सत्ता के अधीन चलती-फिरती लाश की तरह जीती हूँ मैं।
मैं कैसे जीती रह सकती हूँ, तुम्हारे मार्गदर्शन और प्रबोधन के बिना?
दिल में तब तक तुम्हारे लिए तरसूँगी मैं, जब तक मैं तुम्हें अपने प्रेम से वापस नहीं जीत लेती।
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जब खोया मैंने परमेश्वर को,
लगा जैसे पानी पर बहता तिनका हूँ मैं, जिसके पास थामने को कुछ न हो।
परमेश्वर की उपस्थिति के बिना जीवन बहुत खाली हो गया।
देखती हूँ कि बड़ी आपदाएँ पहले ही आ चुकी हैं, बहुत व्याकुल होती हूँ मैं।
देह से चिपकी रही, परमेश्वर के वचन से भटकी
तो उससे कैसे कर सकती हूँ सुरक्षा का अत्यधिक अनुरोध?
हे परमेश्वर, याद आती है तुम्हारी। अपने दिल में पुकारती हूँ नाम तुम्हारा।
मैं नहीं हो सकती और भ्रष्ट, तुम्हें संतुष्ट करने को निभाना चाहती हूँ अपना कर्तव्य।
मैं नहीं कहती कि तुम करो मुझे क्षमा,
बस इतना चाहती हूँ कि मैं अपना बाकी जीवन जी सकूँ तुम्हारे लिए।
दिल में तब तक तुम्हारे लिए तरसूँगी मैं, जब तक मैं तुम्हें अपने प्रेम से वापस नहीं जीत लेती।