331 क्या तुम्हारा देह की ख्वाहिशों में जीना परमेश्वर की इच्छा है?
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इंसान ईश्वर से खिलवाड़ कर रहा है;
वो जानता है ख़ुद को कैसे पोषित करना है,
पर उसे ईश-इच्छा की चिंता नहीं है। क्या ये ईश-प्रेम या ईश-सेवा है?
इंसान निकम्मा और बेपरवाह है।
फिर भी कुछ असंतुष्ट लोग अपने लिये दुख पैदा कर लेते हैं।
इंसान आत्म-भावुक हो रहा है।
क्या ईश्वर तुम्हें दुखी करता है? क्या तुम ख़ुद दुख नहीं ओढ़ रहे?
क्या ईश-कृपा तुम्हारी ख़ुशियों का स्रोत बनने लायक नहीं?
तुमने ईश-इच्छा की परवाह क्यों नहीं की है?
तुम निराश और परेशान क्यों हो?
क्या ये ईश-इच्छा है कि तुम देह की ख्वाहिशों में जियो?
2
तुम ईश-इच्छा से अनजान हो;
बेचैन, निराश होकर दिनभर भुनभुनाते हो, तुम्हारी देह दुख-दर्द सहे।
तुम कहो ताड़ना में लोग ईश-स्तुति करें,
और बेरोक-टोक उससे निकल आएँ,
पर तुम इसमें गिर गए हो, निकल नहीं पाते हो।
बरसों लग जाते हैं ये आत्म-बलिदान सीखने में।
तुम्हें शर्म नहीं आती सिद्धांतों की सीख देते?
क्या ख़ुद को जानते हो, ख़ुद को अलग किया है?
क्या सच में ईश्वर से प्रेम करते हो,
अपनी संभावनाओं को किनारे करते हो?
क्या ईश्वर तुम्हें दुखी करता है? क्या तुम ख़ुद दुख नहीं ओढ़ रहे?
क्या ईश-कृपा तुम्हारी ख़ुशियों का स्रोत बनने लायक नहीं?
तुमने ईश-इच्छा की परवाह क्यों नहीं की है?
तुम निराश और परेशान क्यों हो?
क्या ये ईश-इच्छा है कि तुम देह की ख्वाहिशों में जियो?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 40 से रूपांतरित