579 तुम्हें अपना कर्तव्य कैसे निभाना चाहिए
1
अगर लोग सेवा करते हुए वो व्यक्त न कर सकें
जो उन्हें करना चाहिए,
वो हासिल न कर पाएँ जो संभव है,
पर ईश्वर को धोखा देने को बेमन से काम करें,
तो वे खो देते हैं प्रयोजन सृजित प्राणी का।
ये औसत दर्जे के लोग हैं,
बेकार कचरा, जो सृजित प्राणी कहलाने योग्य नहीं।
क्या वे भ्रष्ट नहीं, जो चमकते बाहर से
पर सड़े हैं भीतर से?
जब लोग अपना कर्तव्य नहीं कर पाते,
उन्हें खुद को दोषी और कर्ज़दार मानना चाहिए,
अपनी कमजोरी और विद्रोह से घृणा कर,
देना चाहिए अपना जीवन ईश्वर को।
ऐसे लोग ईश्वर से प्रेम करने वाले सृजित प्राणी हैं।
केवल वे ही उसके आशीष का आनंद ले सकें,
ईश-प्रतिज्ञाओं और उसके द्वारा
पूर्ण किए जाने लायक हैं।
2
अपने बीच रह रहे ईश्वर से तुम लोग कैसे पेश आते?
उसके सामने तुम लोगों ने कैसे अपने कर्तव्य निभाए?
क्या जान की परवाह न कर जो हो सके वो किया तुमने?
ईश्वर ने इतना दिया पर क्या त्याग किया तुम लोगों ने?
कितने वफादार हो उसके प्रति,
कैसे तुमने सेवा की ईश्वर की?
ईश्वर ने तुम्हारे लिए जो किया,
जो तुम्हें दिया उसका क्या?
क्या अपने ज़मीर से तुमने इसकी तुलना की?
तुम लोगों की कथनी-करनी किसके योग्य हो सके?
क्या तुम्हारा छोटा-सा त्याग
ईश्वर ने जो दिया उसके लायक हो सके?
जब लोग अपना कर्तव्य नहीं कर पाते,
उन्हें खुद को दोषी और कर्ज़दार मानना चाहिए,
अपनी कमजोरी और विद्रोह से घृणा कर,
देना चाहिए अपना जीवन ईश्वर को।
ऐसे लोग ईश्वर से प्रेम करने वाले सृजित प्राणी हैं।
केवल वे ही उसके आशीष का आनंद ले सकें,
ईश-प्रतिज्ञाओं और उसके द्वारा
पूर्ण किए जाने लायक हैं।
3
ईश्वर तुम लोगों के प्रति पूरा समर्पित रहा है,
फिर भी तुम उसके प्रति दुष्ट विचार रखते, अनमने रहते।
क्या ये तुम लोगों का कर्तव्य, एकमात्र कार्य नहीं?
क्या तुमने कभी निभाया है कर्तव्य सृजित प्राणी का?
कैसे तुम्हें सृजित प्राणी समझा जा सके?
क्या ये स्पष्ट नहीं, तुम क्या व्यक्त करते, क्या जीते?
तुम लोग अपना कर्तव्य न कर पाए,
पर ईश्वर की सहनशीलता और अनुग्रह चाहते,
पर वो तुम जैसे निकम्मों के लिए नहीं।
वो सिर्फ उनके लिए है जो कुछ नहीं माँगते,
खुशी से ईश्वर के लिए त्याग करते।
जब लोग अपना कर्तव्य नहीं कर पाते,
उन्हें खुद को दोषी और कर्ज़दार मानना चाहिए,
अपनी कमजोरी और विद्रोह से घृणा कर,
देना चाहिए अपना जीवन ईश्वर को।
ऐसे लोग ईश्वर से प्रेम करने वाले सृजित प्राणी हैं।
केवल वे ही उसके आशीष का आनंद ले सकें,
ईश-प्रतिज्ञाओं और उसके द्वारा
पूर्ण किए जाने लायक हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर से रूपांतरित