579 तुम्हें अपना कर्तव्य कैसे करना चाहिए
1 कई लोग जिन्होंने परमेश्वर के भरोसे को खो दिया है परमेश्वर के अनुग्रह को भी खोते चले जाते हैं। वे न केवल अपने कुकर्मों से घृणा नहीं करते हैं बल्कि ढिठाई से इस विचार का प्रचार करते हैं कि परमेश्वर का मार्ग गलत है। और वे विद्रोही परमेश्वर के अस्तित्व को भी इनकार करते हैं; ऐसा व्यक्ति जो परमेश्वर के सामने अपना कर्तव्य नहीं निभाता है पहले से ही सबसे जघन्य अपराध का दोषी है, जिसके लिए यहाँ तक कि मृत्यु भी अपर्याप्त सज़ा है, फिर भी परमेश्वर के साथ बहस करने की धृष्टता करता है और स्वयं का उस से मिलान करता है। इस प्रकार के मनुष्य को सिद्ध बनाने का क्या महत्व है? यदि मनुष्य अपने कर्तव्य को पूरा करने में विफल होता है, तो उसे अपने आप को दोषी और ऋणी समझना चाहिए; उसे अपनी कमजोरी और अनुपयोगिता, अपनी विद्रोहशीलता और भ्रष्टता से घृणा करनी चाहिए, और इससे भी अधिक, परमेश्वर के लिए अपना जीवन और रक्त अर्पण कर देना चाहिए। केवल तभी वह सृजन किया गया प्राणी है जो परमेश्वर से सच्चा प्रेम करता है, और केवल इस प्रकार का मनुष्य ही परमेश्वर के आशीषों और प्रतिज्ञाओं का आनन्द लेने के, और उसके द्वारा सिद्ध किए जाने के योग्य है।
2 और तुम लोगों में से बहुतायत का क्या होगा? तुम लोग उस परमेश्वर के साथ किस तरह का व्यवहार करते हो जो तुम लोगों के मध्य रहता है? तुम लोगों ने उसके सामने अपने कर्तव्य को किस प्रकार से निभाया है? क्या तुम लोगों ने, यहाँ तक कि अपने स्वयं के जीवन की कीमत पर भी, वह सब कर लिया है जिसे करने के लिए तुम लोगों को बुलाया गया था? तुम लोगों ने क्या बलिदान किया है? क्या तुम लोगों ने मुझसे बहुत अधिक प्राप्त नहीं किया है? क्या तुम अंतर कर सकते हो? तुम लोग मेरे प्रति कितने वफादार हो? तुम लोगों ने मेरी किस प्रकार से सेवा की है? और उस सब का क्या हुआ जो मैंने तुमको प्रदान किया है और तुम लोगों के लिए किया है? क्या तुम लोगों ने इस सब का मूल्यांकन कर लिया है? क्या तुम सभी लोगों ने इसका आँकलन और इसकी तुलना उस जरा से विवेक के साथ कर ली है जो तुम लोगों के पास तुम लोगों के भीतर है? तुम्हारे वचनों और कार्यों के योग्य कौन हो सकता है? क्या ऐसा हो सकता है कि तुम लोगों का ऐसा मामूली सा बलिदान उस सबके योग्य है जो मैने तुम लोगों को प्रदान किया है।
3 मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है और पूरे हृदय से तुम लोगों के प्रति समर्पित हूँ, फिर भी तुम लोग मेरे बारे में दुष्ट आशंकाओं को प्रश्रय देते हो और मेरे प्रति खिन्न मन रहते हो। यही तुम लोगों के कर्तव्य की सीमा, तुम लोगों का एकमात्र कार्य है। क्या ऐसा ही नहीं है? क्या तुम लोग नहीं जानते हो कि तुम लोगों ने एक सृजन किए गए प्राणी के कर्तव्य को बिल्कुल भी पूरा नहीं किया है? तुम लोगों को एक सृजन किया गया प्राणी कैसे माना जा सकता है? क्या तुम लोग स्पष्टता से नहीं जानते हो कि यह क्या है जिसे तुम लोग व्यक्त कर रहे और जी रहे हो? तुम लोग अपने कर्तव्य को पूरा करने में असफल रहे हो, किन्तु तुम परमेश्वर की दया और भरपूर आशीषें प्राप्त करने की लालसा करते हो। इस प्रकार का अनुग्रह तुम लोगों के जैसे बेकार और अधम लोगों के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों के लिए तैयार किया गया है जो कुछ नहीं माँगते हैं और खुशी से बलिदान करते हैं।
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर" से रूपांतरित