406 तुम्हारा विश्वास वास्तव में कैसा है?
1 तुम लोगों के मुँह छल और गंदगी, विश्वासघात और अहंकार के वचनों से भरे हैं। तुम लोगों ने मेरे प्रति कभी भी ईमानदारी के वचन नहीं कहे हैं, मेरे वचनों का अनुभव करने पर कोई पवित्र वचन, समर्पण करने के कोई वचन नहीं कहे हैं। अंततः तुम लोगों का यह विश्वास किसके जैसा है? तुम लोगों के हृदयों में अभिलाषाएँ और सम्पत्ति भरी हुई है; तुम्हारे दिमागों में भौतिक चीजें भरी हुई हैं। हर दिन, तुम लोग गणना करते हो कि मुझसे कोई चीज़ कैसे प्राप्त करो, तुमने मुझसे कितनी सम्पत्ति और कितनी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त कर ली हैं। हर दिन, तुम लोग और भी अधिक आशीषें अपने ऊपर बरसने का इंतज़ार करते हो ताकि तुम लोग और भी अधिक तथा और भी बेहतर तरीके से उन चीज़ों का आनन्द ले सको जिनका आनंद लिया जा सकता है।
2 प्रत्येक क्षण तुम लोगों के विचारों में जो रहता है वह मैं नहीं हूँ, न ही वह सत्य है जो मुझसे आता है, बल्कि तुम लोगों में पति (पत्नी), बेटे, बेटियाँ, या तुम क्या खाते या पहनते हो, और कैसे तुम लोगों का आनंद और भी अधिक बेहतर हो सकता है, यही विचार आता है। यहाँ तक कि जब तुम लोग अपने पेट को ऊपर तक भर लेते हो, तब क्या तुम लोग एक लाश से जरा सा ही अधिक नहीं हो? यहाँ तक कि जब तुम लोग अपने बाहरी स्वरूप को सजा लेते हो, क्या तुम लोग तब भी एक चलती-फिरती लाश नहीं हो जिसमें कोई जीवन नहीं है? तुम लोग तब तक अपने पेट के लिए कठिन परिश्रम करते हो जब तक कि तुम लोगों के सिर के बाल भूरे और सफेद नहीं हो जाते हैं, फिर भी तुममें से कोई भी मेरे कार्य के लिए एक बाल तक बलिदान नहीं करता है। तुम लोग अपनी देह के वास्ते, और अपने बेटे-बेटियों के लिए लगातार बहुत सक्रिय रहते हो, अपने शरीर पर भार डाल रहे हो और अपने मस्तिष्क को कष्ट दे रहे हो, फिर भी तुम में से कोई एक भी मेरी इच्छा के लिए चिंता या परवाह नहीं दिखाता है। वह क्या है जो तुम अब भी मुझ से प्राप्त करने की आशा रखते हो?
— "वचन देह में प्रकट होता है" में "बुलाए गए लोग बहुत हैं, परन्तु चुने हुए कुछ ही हैं" से रूपांतरित