2. आप गवाही देते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु की वापसी है, और वह सत्य को व्यक्त कर रहा है और अंतिम दिनों के न्याय के कार्य को कर रहा है। हालाँकि आप जिसकी गवाही दे रहे हैं, वह बाइबल के अनुरूप है, हमारी कलीसिया के कई लोग इसे स्वीकार नहीं करते। हम मानते हैं कि, सही मार्ग होने के लिए, इसे कई लोगों द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए, और यह कि कुछ ही लोगों द्वारा स्वीकार किया गया मार्ग ग़लत होता है। जब तक हमारी कलीसिया के कई लोग इस बात को स्वीकार नहीं कर लेते हैं, तब तक हम, इसमें विश्वास करना शुरू करें उसके पहले, प्रतीक्षा करेंगे।
उत्तर :
कोई मार्ग सच्चा है या झूठा, इस बात का निर्धारण अधिकांश लोग इस आधार पर करते हैं कि कितने लोग इसे स्वीकार करते हैं, यह सोचते हुए कि अगर बहुत-से लोग इसे स्वीकार करते हैं तो यह सच्चा मार्ग है, और अगर थोड़े-से लोग इसे स्वीकार करते हैं तो यह झूठा मार्ग है। क्या ऐसा सोचना सत्य के अनुरूप है? क्या परमेश्वर के वचनों में इसका कोई आधार है? याद करो जब परमेश्वर ने दुनिया को बाढ़ों से तबाह कर दिया था : तब सिर्फ नूह ने परमेश्वर के वचनों पर भरोसा किया, और परमेश्वर के निर्देश के अनुसार, मार्ग का उपदेश देते हुए एक जहाज का निर्माण किया। लेकिन 120 वर्ष बाद भी, एक भी व्यक्ति ने उसकी सीख पर विश्वास या उसे स्वीकार नहीं किया और अंतत: जहाज पर सवार होने वाले लोगों में केवल नूह के परिवार के आठ लोग थे, जबकि अन्य सभी बाढ़ में डूब गए। तो क्या तुम कह सकते हो कि नूह ने सच्चे मार्ग का उपदेश नहीं दिया था? अब याद करो जब प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में प्रकट होकर अपना कार्य किया था : प्रभु यीशु को स्वीकार करने वाले बहुत थोड़े-से लोगों को छोडकर, समूचे यहूदी धर्म ने प्रभु यीशु की निंदा और उसका विरोध किया, और फिर अंतत: रोमन अधिकारियों के साथ मिलकर उसे सलीब पर चढ़ा दिया। इस कारण से, क्या तुम कह सकते हो कि प्रभु यीशु के कथन और कार्य सच्चा मार्ग नहीं थे? क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि इस तरह से चीजों को मापना पूरी तरह से हास्यास्पद है? गुजरी हुई पीढ़ियों में परमेश्वर का कार्य इस बात का प्रमाण है कि भ्रष्ट मानव जाति इस गहराई तक भ्रष्ट की गई है कि मनुष्य बुराई की पूजा करता है और सत्य से घृणा करता है; जब मनुष्यों के बीच सच्चा मार्ग आता है, तो बहुत मुट्ठी भर लोग ही इसका पालन करने और इसे स्वीकार करने में सक्षम हो पाते हैं, जबकि अधिकांश लोग इसे नकारते और त्याग देते हैं। जैसाकि प्रभु यीशु ने कहा है, "इस युग के लोग बुरे हैं" (लूका 11:29)। 1 यूहन्ना 5:19 में कहा गया है, "सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।" इस तरह, कोई जरूरी नहीं कि सच्चा मार्ग बहुत सारे लोगों द्वारा स्वीकार किया जाए, और बहुत सारे लोगों द्वारा स्वीकार की गई कोई चीज जरूरी नहीं कि सही हो, और सत्य हो। दरअसल, बहुसंख्या द्वारा जो कुछ निर्धारित किया जाता है, वह मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं से जुड़ा होता है, और सत्य और तथ्यों के अनुरूप नहीं होता। यह तय करने के लिए कि कोई मार्ग सच्चा मार्ग है या नहीं, इस बात को आधार बनाना कि कितने लोग इसे स्वीकार करते हैं, कितना बेहूदा और हास्यास्पद है। बाइबल में बहुत-सी जगहों पर यह कहा गया है कि परमेश्वर को लोगों में गुणवत्ता की चाह होती है, न कि संख्या की। उदाहरण के लिए मत्ती 22:14 में कहा गया है, "क्योंकि बुलाए हुए तो बहुत हैं परन्तु चुने हुए थोड़े हैं।" मत्ती 7:13-14 में कहा गया है : "सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है; और बहुत से हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है; और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं।" जकर्याह 13:8 में कहा गया है : "यहोवा की यह भी वाणी है, कि इस देश के सारे निवासियों की दो तिहाई मार डाली जाएगी, और बची हुई तिहाई उस में बनी रहेगी।" बाइबल के ये पद दर्शाते हैं कि लोगों की सिर्फ बहुत थोड़ी-सी संख्या ही सच्चा मार्ग पाने में सक्षम है, और यह थोड़ी-सी संख्या ही बची रहेगी। यह वैसा नहीं है जैसाकि हम सोचते हैं, कि अगर यह सच्चा मार्ग है तो इसे बहुत सारे लोग स्वीकार करेंगे; अनुमान लगाने का यह तरीका सत्य से और परमेश्वर के कार्य के तथ्यों से मेल नहीं खाता, और मनुष्य की कल्पनाओं से ज्यादा कुछ नहीं है। परमेश्वर स्वयं ही सत्य, मार्ग और जीवन है, और उसका सार कभी नहीं बदलेगा। अगर कोई एक व्यक्ति भी उस पर विश्वास न करे, उसे स्वीकार न करे, या उसका, उसके कार्य और उसके वचनों का अनुसरण न करे, उसका कार्य और उसके वचन तब भी सच्चा मार्ग रहेंगे, और यह एक ऐसी बात है जिससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। जैसाकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, "मेरे वचन सदा-सर्वदा अपरिवर्तनीय सत्य हैं। मैं मनुष्य के लिए जीवन की आपूर्ति और मानव-जाति के लिए एकमात्र मार्गदर्शक हूँ। मेरे वचनों का मूल्य और अर्थ इससे निर्धारित नहीं होता कि उन्हें मानव-जाति द्वारा पहचाना या स्वीकारा जाता है या नहीं, बल्कि स्वयं वचनों के सार द्वारा निर्धारित होता है। भले ही इस पृथ्वी पर एक भी व्यक्ति मेरे वचनों को ग्रहण न कर पाए, मेरे वचनों का मूल्य और मानव-जाति के लिए उनकी सहायता किसी भी मनुष्य के लिए अपरिमेय है। इसलिए ऐसे अनेक लोगों से सामना होने पर, जो मेरे वचनों के खिलाफ विद्रोह करते हैं, उनका खंडन करते हैं, या उनका पूरी तरह से तिरस्कार करते हैं, मेरा रुख केवल यह रहता है : समय और तथ्यों को मेरी गवाही देने दो और यह दिखाने दो कि मेरे वचन सत्य, मार्ग और जीवन हैं। उन्हें यह दिखाने दो कि जो कुछ मैंने कहा है, वह सही है, और वह ऐसा है जिसकी आपूर्ति लोगों को की जानी चाहिए, और इतना ही नहीं, जिसे मनुष्य को स्वीकार करना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम लोगों को अपने कर्मों पर विचार करना चाहिए)।
चूँकि मार्ग स्वीकार करने वाले लोगों की संख्या इस बात का मापदंड नहीं हो सकती कि यह सच्चा मार्ग है या झूठा, हम आखिर इसे कैसे माप सकते हैं? इसकी कुंजी यह है कि हम यह देखें कि क्या इसमें सत्य की अभिव्यक्ति है, और क्या यह परमेश्वर की आवाज है। अगर यह परमेश्वर का कथन है, अगर यह सत्य की अभिव्यक्ति है, तो इससे फर्क नहीं पड़ता कि कितने लोग इसे स्वीकार करते हैं—भले ही सिर्फ एक व्यक्ति ही ऐसा करे—यह सत्य है, और यह सच्चा मार्ग है। याद करो जब अनुग्रह के युग के दौरान प्रभु यीशु अपना कार्य करने आया था। पतरस, यूहन्ना, मत्ती, नतनएल और अन्य लोगों ने प्रभु यीशु का अनुसरण इसलिए किया क्योंकि उन्हें उसके उपदेशों में परमेश्वर की आवाज सुनाई देती थी; उन्होंने ऐसा इस आधार पर नहीं किया था कि उस समय कितने लोग प्रभु यीशु को स्वीकार कर रहे थे और उसका अनुसरण कर रहे थे। इसी तरह, आज के समय में सच्चे और झूठे मार्ग में परमेश्वर के कार्य और वचनों के अनुसार ही भेद किया जाना चाहिए। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है, "सच्चे मार्ग की खोज करने में सबसे बुनियादी सिद्धांत क्या है? तुम्हें देखना होगा कि इस मार्ग में पवित्र आत्मा का कार्य है या नहीं, ये वचन सत्य की अभिव्यक्ति हैं या नहीं, किसके लिए गवाही देनी है, और यह तुम्हारे लिए क्या ला सकता है। सच्चे मार्ग और झूठे मार्ग के बीच अंतर करने के लिए बुनियादी ज्ञान के कई पहलू आवश्यक हैं, जिनमें सबसे मूलभूत है यह बताना कि इसमें पवित्र आत्मा का कार्य मौजूद है या नहीं। क्योंकि परमेश्वर पर लोगों के विश्वास का सार परमेश्वर के आत्मा पर विश्वास है, और यहाँ तक कि देहधारी परमेश्वर पर उनका विश्वास इसलिए है, क्योंकि यह देह परमेश्वर के आत्मा का मूर्त रूप है, जिसका अर्थ यह है कि ऐसा विश्वास अभी भी पवित्र आत्मा पर विश्वास है। आत्मा और देह के मध्य अंतर हैं, परंतु चूँकि यह देह पवित्रात्मा से आता है और वचन देह बनता है, इसलिए मनुष्य जिसमें विश्वास करता है, वह अभी भी परमेश्वर का अंतर्निहित सार है। अत:, यह पहचानने के लिए कि यह सच्चा मार्ग है या नहीं, सर्वोपरि तुम्हें यह देखना चाहिए कि इसमें पवित्र आत्मा का कार्य है या नहीं, जिसके बाद तुम्हें यह देखना चाहिए कि इस मार्ग में सत्य है या नहीं। सत्य सामान्य मानवता का जीवन-स्वभाव है, अर्थात्, वह जो मनुष्य से तब अपेक्षित था, जब परमेश्वर ने आरंभ में उसका सृजन किया था, यानी, अपनी समग्रता में सामान्य मानवता (मानवीय भावना, अंतर्दृष्टि, बुद्धि और मनुष्य होने के बुनियादी ज्ञान सहित) है। अर्थात्, तुम्हें यह देखने की आवश्यकता है कि यह मार्ग लोगों को एक सामान्य मानवता के जीवन में ले जा सकता है या नहीं, बोला गया सत्य सामान्य मानवता की आवश्यकता के अनुसार अपेक्षित है या नहीं, यह सत्य व्यावहारिक और वास्तविक है या नहीं, और यह सबसे सामयिक है या नहीं। यदि इसमें सत्य है, तो यह लोगों को सामान्य और वास्तविक अनुभवों में ले जाने में सक्षम है; इसके अलावा, लोग हमेशा से अधिक सामान्य बन जाते हैं, उनका मानवीय बोध हमेशा से अधिक पूरा बन जाता है, उनका दैहिक और आध्यात्मिक जीवन हमेशा से अधिक व्यवस्थित हो जाता है, और उनकी भावनाएँ हमेशा से और अधिक सामान्य हो जाती हैं। यह दूसरा सिद्धांत है। एक अन्य सिद्धांत है, जो यह है कि लोगों के पास परमेश्वर का बढ़ता हुआ ज्ञान है या नहीं, और इस प्रकार के कार्य और सत्य का अनुभव करना उनमें परमेश्वर के लिए प्रेम को प्रेरित कर सकता है या नहीं और उन्हें परमेश्वर के हमेशा से अधिक निकट ला सकता है या नहीं। इसमें यह मापा जा सकता है कि यह सही मार्ग है अथवा नहीं। सबसे बुनियादी बात यह है कि क्या यह मार्ग अलौकिक के बजाय यर्थाथवादी है, और यह मनुष्य के जीवन के लिए पोषण प्रदान करने में सक्षम है या नहीं। यदि यह इन सिद्धांतों के अनुरूप है, तो निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह मार्ग सच्चा मार्ग है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो परमेश्वर को और उसके कार्य को जानते हैं, केवल वे ही परमेश्वर को संतुष्ट कर सकते हैं)।
"जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सच्चा मार्ग खोजने के सिद्धांत स्पष्ट रूप से व्यक्त करते हैं। यह निर्धारित करते हुए कि क्या कोई चीज परमेश्वर का कार्य है, या क्या यह सच्चा मार्ग है, मुख्य बात जो देखनी चाहिए वह यह है कि क्या इसमें पवित्र आत्मा का कार्य और सत्य की अभिव्यक्ति है, क्या यह लोगों के जीवन के लिए पोषण प्रदान कर सकता है, और क्या इस मार्ग को स्वीकार करने के बाद लोगों की मानवता और समझ और ज्यादा सामान्य हो जाती है, और क्या परमेश्वर के बारे में उनका ज्ञान बढ़ता है। किसी मार्ग के सच्चा या झूठा होने का निर्धारण करने के यही मापदंड हैं। यह निर्धारित करने के लिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य सच्चा मार्ग है या नहीं, हमें यह देखना चाहिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचन पवित्र आत्मा के कार्य हैं, और हमें यह सुनना चाहिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य की अभिव्यक्ति हैं, और क्या वे परमेश्वर की आवाज हैं। इसी प्रकार, यह निर्धारित करने के लिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सच्चा मार्ग हैं, हम यह जाँच कर सकते हैं कि क्या जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करते हैं, वे शैतान को पराजित करने की गवाही देते हैं, क्या उनके जीवन स्वभावों में बदलाव हुआ है, क्या वे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को जानते हैं, और क्या वे परमेश्वर का भय मानते हैं और उसका आज्ञापालन करते हैं। अगर लोग सच्चे मार्ग का निर्धारण इस आधार पर करते हैं कि कितने लोग इसे स्वीकार करते हैं, अगर वे जनसमूह का अंधाधुंध अनुसरण करते हैं, परमेश्वर की आवाज सुनने पर कोई ध्यान नहीं देते, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की छानबीन करने और उसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं, तो वे बेहद मूर्ख और अज्ञानी लोग हैं। ऐसे लोग अंत में प्रभु यीशु के आने पर स्वर्गारोहित होने के अवसर खो देंगे, और उन्हें बड़ी आपदाओं में डुबाकर हटा दिया जाएगा। इस तरह बाइबल के ये शब्द चरितार्थ हो जाएंगे: "मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्ट हो गई" (होशे 4:6)। "मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं" (नीतिवचन 10:21)।