2. हाल ही में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कई वचनों को पढ़ा है, और पाया है कि उनमें शक्ति और अधिकार, दोनों ही हैं। उसके कथनों में हर एक कथन सत्य है, वे वास्तव में परमेश्वर की वाणी हैं, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर प्रभु यीशु की वापसी है। लेकिन एक बात है जो मुझे समझ में नहीं आती है: कुछ लोग हैं जो अब प्रभु यीशु की वापसी का नाटक कर रहे हैं, और उन्होंने भी बातें कही हैं। उनके कुछ शब्दों से किताबें बनाई गईं हैं, और कई लोगों को उनका अनुसरण करने के लिए बहकाया गया है। हम झूठे मसीहों के शब्दों की वास्तविकता को कैसे पहचान सकते हैं?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :
जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना
देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर का सार धारण करता है, और अपने कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि धारण करता है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। वे जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते हैं, धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्य के बीच रहकर अपना कार्य करता और पूरा करता है। यह देह किसी भी आम मनुष्य द्वारा उसके बदले धारण नहीं की जा सकती है, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से संभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है। जो मसीह का भेस धारण करते हैं, उनका देर-सवेर पतन हो जाएगा, क्योंकि वे भले ही मसीह होने का दावा करते हैं, किंतु उनमें मसीह के सार का लेशमात्र भी नहीं है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि मसीह की प्रामाणिकता मनुष्य द्वारा परिभाषित नहीं की जा सकती, बल्कि स्वयं परमेश्वर द्वारा ही इसका उत्तर दिया और निर्णय लिया जा सकता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है
संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण :
वे सभी जो परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अनुभव करते हैं, एक तथ्य को लेकर स्पष्ट हैं : हर बार जब परमेश्वर कार्य का एक नया चरण करता है, तो शैतान और सभी तरह की दुष्ट आत्माएँ करीब से उसका पीछा करती हैं, उसके कार्य की नकल और उसे झूठा सिद्ध करने में जुट जाती हैं, ताकि लोगों को धोखा दिया जा सके। जब प्रभु यीशु ने बीमारों को ठीक किया और दैत्यों को बहिष्कृत किया, तो शैतान और दुष्ट आत्माओं ने भी बीमारों को ठीक किया और दैत्यों को बहिष्कृत किया; जब पवित्र आत्मा ने मनुष्य को बोली का तोहफा दिया तो दुष्ट आत्माओं ने भी लोगों को ऐसी “बोलियाँ” दे दीं जिन्हें कोई नहीं समझ सकता था। हालांकि शैतान और दुष्ट आत्माएँ वे सब चीजें कर सकते हैं जो लोगों की जरूरतों को पूरा करती हैं—उदाहरण के लिए, लोगों को धोखा देने के लिए कुछ खास तरह की अलौकिक चीजों का प्रदर्शन—पर चूँकि शैतान और दुष्ट आत्माओं के पास सत्य नहीं है, वे कभी भी लोगों को सत्य नहीं दे सकते, और यही बात सच्चे मसीह और झूठे मसीह में भेद करना संभव बना देती है।
अंत के दिनों में, देहधारण करने के बाद कार्य करने के लिए परमेश्वर बहुत समय तक विनीत बना रहा और छिपा रहा; पवित्र आत्मा ने मसीह की तभी गवाही दी जब उसके वचन अपने चरम पर पहुँच गए और लोगों को जीत लिया गया। मसीह ने दूसरों के सामने कभी भी यह नहीं कहा कि वह मसीह है। उसने कभी भी लोगों को मसीह के ओहदे से भाषण नहीं दिया है, न ही कभी उसने उन पर जोर डाला है कि वे उसे स्वीकार करें और उसका संज्ञान लें। वह बस विनीत और छिपा हुआ है, सत्य को अभिव्यक्त करता रहा है, लोगों के जीवन की जरूरतों का प्रावधान करता रहा है, और उनके जीवन स्वभावों को बदलता रहा है। मसीह ने कभी भी शेखी नहीं बघारी, न ही कोई दिखावा किया है; वह पूरे समय विनीत और छिपा रहा है। इस मामले में, कोई भी सृजित प्राणी उससे तुलना नहीं कर सकता। मसीह ने कभी भी लोगों से अपना आज्ञापालन और अनुसरण करवाने के लिए अपने ओहदे या अपनी पहचान का इस्तेमाल नहीं किया है। इसके बजाय, वह लोगों का न्याय करने, उन्हें ताड़ना देने और बचाने के लिए सत्य अभिव्यक्त करता है, जिसके माध्यम से वह परमेश्वर को जानने, उसका आज्ञापालन करने और उसके द्वारा ग्रहण किए जाने में लोगों की मदद करता है—जिससे पता चलता है कि परमेश्वर कितना नेक और पवित्र है। दूसरी तरफ, अनगिनत झूठे मसीह और दुष्ट आत्माएँ इससे ठीक उलट हैं। वे निरंतर मसीह के रूप में अपनी गवाही देते रहते हैं, और यह तक कहते हैं कि जो उनकी बात नहीं सुनेगा वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकेगा। वे अपनी शेखी बघारने, दिखावा करने और अपना गुणगान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, ताकि लोग उनसे मिलने आएँ, या वे लोगों को छलने के लिए कुछ संकेतों और चमत्कारों के करतब दिखाते हैं। और अगर लोग एक बार उनके झांसे में आ जाते हैं, अगर इस छलावे को दूर करने और सत्य पर सहभागिता करने के लिए कोई न हो, तो वे पतित हो जाते हैं। इसके कितने ही उदाहरण हैं। क्योंकि झूठे मसीह सत्य, मार्ग और जीवन नहीं हैं, और वे कोई मार्ग प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए जो उनका अनुसरण करते हैं वे देर-सवेर लज्जित होंगे। इस तरह, सच्चे मसीह और झूठे मसीहों में भेद करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह समझना है कि सिर्फ मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है। सिर्फ मसीह ही सत्य अभिव्यक्त कर सकता है; झूठे मसीह सत्य से पूरी तरह रहित होते हैं, अनगिनत दुष्ट आत्माएँ भी ऐसी ही होती हैं, और चाहे वे कितना कुछ भी कहें, या कितनी ही किताबें लिखेँ, इनमें से किसी में भी कोई सत्य नहीं होता—यह सुनिश्चित है। और तो और, जो मसीह का अनुसरण करते हैं, उनकी सत्य की समझ और भी स्पष्ट होती जाती है, और उनका रास्ता और ज्यादा उज्जवल होता जाता है, जिससे साबित होता है कि सिर्फ मसीह ही लोगों को बचा सकता है, और मसीह ही सत्य है। झूठे मसीह सिर्फ कुछ अमौलिक शब्द या चीजें बोल सकते हैं, जो सत्य को बिल्कुल पलट देते हैं। उनके पास कोई सत्य नहीं होता और वे लोगों के लिए सिर्फ अंधकार, तबाही और दुष्ट आत्माओं के काम लाते हैं। जो लोग झूठे मसीहों का अनुसरण करते हैं उन्हें कतई बचाया नहीं जाएगा; उन्हें शैतान द्वारा सिर्फ और गहराई से भ्रष्ट किया जा सकता है, वे दिनोदिन और ज्यादा भावशून्य और मंदबुद्धि होते जाते हैं, जब तक कि वे पूरी तरह तबाह नहीं कर दिए जाते। झूठे मसीहों का अनुसरण करने वाले लोग समुद्री लुटेरों के जहाज पर सवार अंधों की तरह होते हैं, जिन्होंने खुद को एक जलमग्न गुमनामी के हवाले कर दिया है!
—ऊपर से संगति
सच्चे देहधारी परमेश्वर के पास निश्चित ही परमेश्वर की अभिव्यक्ति और सार होता है। अगर कोई मसीह होने का दावा करता है, कहता कि वह परमेश्वर का देहधारी रूप है, तो हमें उसके कार्य, उसके शब्दों और उसके द्वारा प्रकट किए जाने वाले स्वभाव से उसके सार की जांच करनी चाहिए, यह निर्धारित करने के लिए कि क्या वह मसीह है, क्या वह परमेश्वर का देहधारण है। इन बहुत-से पहलुओं में अपना विवेक इस्तेमाल कर हम सही जवाब पा लेंगे; अगर हम इन पहलुओं में अपना विवेक इस्तेमाल नहीं करते, तो हम आसानी से धोखा खा जाएंगे। तो हमें किस तरह सही-सही इस अंतर का पता लगाना चाहिए? सबसे पहले तो उन्हें उनके कार्य के पहलू से परखा जा सकता है। अगर यह परमेश्वर का कार्य है तो वे परमेश्वर के वचनों को, परमेश्वर जो स्वयं है, और परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को अभिव्यक्त करने में सक्षम होंगे। अगर यह मनुष्य का कार्य है तो वे वही बोलने में सक्षम होंगे जो मनुष्य के पास है, और मनुष्य के अनुभव और ज्ञान के बारे में बोल सकेंगे; परमेश्वर जो स्वयं है और परमेश्वर के कार्य के बारे में, परमेश्वर मनुष्य से क्या चाहता है और उसका स्वभाव क्या है, इन सबके बारे में वे कुछ भी कहने में सक्षम नहीं होंगे, परमेश्वर की प्रबंधन योजना और उसके कार्य के रहस्यों के बारे में तो वे कुछ भी नहीं बता पाएंगे। यह कार्य के लिहाज से चीजों को देखना है। दूसरे, उन्हें उनके कथनों के पहलुओं से परखा जा सकता है। परमेश्वर के वचनों और मनुष्य के शब्दों में एक अनिवार्य अंतर है : परमेश्वर के वचन, परमेश्वर जो स्वयं है उसका प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि मनुष्य के शब्द इस बात का प्रतिनिधित्व करते हैं कि मनुष्य के पास क्या है और वह क्या है; परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के स्वभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि मनुष्य के शब्द मनुष्य की मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं; परमेश्वर के सभी वचन सत्य हैं, जबकि मनुष्य के शब्द सत्य से संबंध नहीं रखते। यह शब्दों पर आधारित विभेदन है। तीसरे, वे स्वभाव के पहलू से परखे जा सकते हैं। परमेश्वर के कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त कर सकते हैं, जबकि मनुष्य के कार्य परमेश्वर के स्वभाव को अभिव्यक्त करने में अक्षम हैं, और सिर्फ मनुष्य के चरित्र को मूर्त रूप दे सकता है। और मनुष्य के चरित्र के भीतर क्या विद्यमान है? क्या इसमें धार्मिकता, प्रताप, और कोप है? क्या इसमें सत्य है? मनुष्य के चरित्र में परमेश्वर जो स्वयं है, उसका कोई संकेत नहीं मिलता, और इसलिए मनुष्य का कार्य पूरी तरह से परमेश्वर के स्वभाव से असंबद्ध है। परमेश्वर और मनुष्य के वचनों और कार्य में भेद करने के लिए इन पहलुओं का प्रयोग करके यह निर्धारित करना संभव है कि परमेश्वर का देहधारण कौन है और कौन नहीं। अगर लोग यह अंतर नहीं बता पाते तो उनका झूठे मसीहों द्वारा छला जाना आसान हो जाता है।
—जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति
जो कोई भी लोगों को धोखा देने हेतु बोलने के लिए मसीह का रूप धारण करता है, वह एक झूठा मसीह है। सभी झूठे मसीह बुरी आत्माओं के कब्ज़े में हैं और वे धोखेबाज़ हैं। तुम ऐसे झूठे मसीह को कैसे पहचान सकते हो जो लोगों को धोखा देने के लिए लगातार बोलता रहता है? यदि तुम झूठे मसीह के केवल कुछ वचनों को देखोगे, तो तुम अपने सिर को खुजलाओगे और यह पता नहीं लगा पाओगे कि वास्तव में दुष्ट आत्मा के इरादे क्या है। यदि तुम इस दुष्ट आत्मा पर नज़र रखना जारी रखोगे और जो कुछ भी उसने कहा है, उस पर विचार करोगे, तो यह देखना बहुत आसान है कि यह वास्तव में किस प्रकार की चीज़ है, यह क्या कर रही है, यह वास्तव में क्या कह रही है, यह लोगों के साथ क्या करने की साज़िश रच रही है और लोगों को कौन सी राह बता रही है—तब, समझना आसान हो जाता है। हम देख सकते हैं कि बहुत सी बुरी आत्माओं के वचनों में यही अभिलक्षण आवश्यक रूप से मौज़ूद रहते हैं। वे केवल परमेश्वर के वचनों की नक़ल कर सकते हैं, लेकिन परमेश्वर के वचनों के सार को निश्चित रूप से नहीं पा सकते हैं। परमेश्वर के वचनों का एक संदर्भ और एक उद्देश्य होता है। परमेश्वर के कथनों का अंतिम उद्देश्य और उनके प्रभाव बहुत स्पष्ट होते हैं और तुम देख सकते हो उसके वचनों में अधिकार और सामर्थ्य होती है, कि वे किसी के भी हृदय को छू सकते हैं और उसकी आत्मा को प्रेरित कर सकते हैं। लेकिन दुष्ट आत्माओं और शैतान के वचनों का न तो कोई संदर्भ होता और ना ही कोई प्रभाव—वे एक रुके हुए पानी के एक पोखर की तरह होते हैं और उन्हें पढ़ने के बाद लोगों को दिलों में गंदा महसूस होता है। उन्हें उनसे कुछ भी हासिल नहीं होता है। इसलिए, सभी प्रकार की दुष्ट आत्माओं के पास सत्य का अभाव होता है और वे अन्दर से निश्चित रूप से गंदी और अंधकारमय होती हैं। उनके वचन लोगों के लिए प्रकाश नहीं ला सकते हैं और उन्हें ऐसा मार्ग नहीं दिखा सकते हैं जिसका उन्हें अनुसरण करना चाहिए। दुष्ट आत्माएँ अपने उद्देश्य को स्पष्ट रूप से नहीं कहती हैं ना ही कहती है कि वे क्या कार्यान्वित करने का प्रयास कर रही हैं; वहाँ सत्य के सार और मूल के बारे में कोई उल्लेख नहीं होता है। ज़रा सा भी नहीं। दुष्ट आत्माओं के वचनों में लोगों द्वारा समझने या प्राप्त करने लायक कुछ भी नहीं पाया जा सकता है। इसलिए, दुष्ट आत्माओं के वचन केवल लोगों को भ्रमित कर सकते हैं और उनके अन्दर गंदगी और अंधकार ला सकते हैं। वे लोगों को कोई भी जीवनाधार प्रदान नहीं कर सकते हैं। इससे हम देख सकते हैं कि दुष्ट आत्माओं की अंतर्निहित प्रकृति और सार दुष्टता और अंधकार का होता है। उनमें प्राणशक्ति का अभाव होता है, उसकी जगह वे मौत की दुर्गंध छोड़ती हैं। वे वास्तव में नकारात्मक चीज़ें हैं जिन्हें शापित होना चाहिए। उनके भाषण में कोई सच्चाई नहीं होती है; यह पूरी तरह बकवास होता है और जो मतली, घृणा और उल्टी का कारण बनता है, मानो कि किसी ने अभी-अभी कोई मरी हुई मक्खी खा ली हो। यदि लोग सत्य की खोज में हैं और उनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता है, तो वे दुष्ट आत्माओं के शब्दों को पढ़कर उन्हें पहचान पाएँगे। जो लोग आध्यात्मिक मामलों को नहीं समझते और जिनमें परमेश्वर के वचनों को समझने की क्षमता नहीं है, वे निश्चित रूप से दुष्ट आत्माओं के शैतानी शब्दों से धोखा खा जाएँगे। जिन लोगों को पवित्र आत्मा ने प्रबुद्ध और रोशन कर दिया है, जिनमें परमेश्वर के वचनों की समझ है और जो कुछ सत्य समझते हैं, वे स्वाभाविक रूप से दुष्ट आत्माओं के शैतानी शब्दों को पहचान पाएँगे। वे दुष्ट आत्माओं द्वारा बोले गए किसी भी शब्द में यह देख पाएँगे कि दुष्ट आत्माओं में सत्य और परमेश्वर का स्वरूप बिलकुल नहीं है और न ही उनमें जरा-सा भी सामर्थ्य या अधिकार है। परमेश्वर के वचनों की तुलना में उनमें जमीन-आसमान का अंतर है।
—कार्य व्यवस्था