230 परमेश्वर के वचनों से दूर रहकर कोई कहीं नहीं पहुँच सकता

1 मैं परमेश्वर के वचनों पर विचार करता हूँ और ईमानदारी से आत्म-मंथन करता हूँ। परमेश्वर ने मुझे प्रशिक्षित करने के लिए एक कर्तव्य निभाने की ख़ातिर ऊपर उठाया है। लेकिन मैंने इस अवसर का इस्तेमाल दिखावा करने के लिए किया। जब मेरा काम थोड़ा फलीभूत होता है, तो मेरे चलने और बात करने के तौर-तरीके बदल जाते हैं। मैं परमेश्वर को सभी महिमा देने का दावा करता हूँ लेकिन अपने योगदान का हिसाब रखता हूँ। मैं हमेशा अपने उपहारों में यकीन करता हूँ, लेकिन वास्तव में परमेश्वर से प्रार्थना नहीं करता। किसी भी चीज़ में सत्य की खोज न करने के कारण, मेरे रास्ते में रुकावटें आती रहती हैं। अंधेरे में गिरने के बाद ही मैंने जाना कि मेरी स्थिति कितनी दयनीय है, और मैं कितना ज़रूरतमंद हूँ। हे परमेश्वर! आख़िरकार मैं जान गया हूँ कि मैं तुम्हारे बिना कुछ नहीं कर सकता।

2 मैं मामलों को संभालने में सिद्धांतों के महत्व को कभी नहीं जानता था। मुझे हमेशा लगता था कि सभी काम गुणों से किए जा सकते हैं। मैंने अब अनुभव कर लिया है कि परमेश्वर के वचनों से दूर रहकर, मैं कहीं नहीं पहुँच सकता। सत्य की खोज न करके मात्र गुणों पर निर्भर रहने से विफल होना निश्चित है। परमेश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम के बिना, मेरा कर्तव्य निभाना निरर्थक है। मैंने बेशर्मी से अपनी अंतरात्मा के खिलाफ़ जाकर परमेश्वर की महिमा चुरा ली, यहाँ तक कि मैंने दिखावा किया और खुद की वाहवाही की। यह परमेश्वर के प्रति श्रद्धामय हृदय कैसे हुआ? सत्य का अनुसरण न करते हुए, अपने तरीके पर ही ज़ोर देते हुए, मैं ठोकर कैसे न खाता? हे परमेश्वर! तेरे न्याय के कारण मुझे तेरे धार्मिक स्वभाव का ज्ञान हुआ।

3 मैं बहुत विद्रोही हूँ, फिर भी परमेश्वर मुझे प्रबुद्ध करता है और मेरा मार्गदर्शन करता है। परमेश्वर के प्रेम और दया को देखते हुए, मुझे बेहद पश्चाताप होता है और मैं आभारी महसूस करता हूँ। मैं बहुत तुच्छ और नीच हूँ, महज़ धूल का एक कण हूँ। जब मैं एक सृजित प्राणी के तौर पर अपना कर्तव्य निभाने के काबिल हो जाऊँ, तो मुझे परमेश्वर का प्रतिदान देना चाहिये। मुझे यह सोचकर अपने आपसे नफ़रत होती है कि पहले अपना कर्तव्य निभाते समय मैंने सत्य की खोज नहीं की। पूर्ण किए जाने के इतने सारे अवसर गँवाकर, मैंने सचमुच परमेश्वर के दिल को आहत किया है। कड़वाहट में आकंठ डूबने के बाद ही मैंने जाना कि सत्य कितना बड़ा ख़ज़ाना है। परमेश्वर द्वारा काट-छाँट और निपटारा किए जाने के बाद ही मुझे समझ में आया कि मैं कितना भ्रष्ट हूँ। मैं सत्य का अनुसरण करने, परमेश्वर का न्याय स्वीकारने और शुद्ध होने के लिए सब-कुछ छोड़ने को तैयार हूँ। मैं परमेश्वर के दिल को सुकून देने की ख़ातिर अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए मैं स्वयं को अर्पित करूँगा।

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