वास्तविकता पर अधिक ध्यान केंद्रित करो

हर व्यक्ति में परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की संभावना है, इसलिए सभी को समझना चाहिए कि परमेश्वर के लिए किस प्रकार की सेवा उसके प्रयोजनों के अनुरूप सर्वश्रेष्ठ है। अधिकांश लोगों को नहीं पता कि परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है, न ही वे यह समझते हैं कि उन्हें परमेश्वर में विश्वास क्यों करना चाहिए—कहने का तात्पर्य यह कि अधिकांश को परमेश्वर के कार्य की या परमेश्वर की प्रबंधन योजना के उद्देश्य की कोई समझ नहीं है। आज, बहुसंख्य लोग अब भी यही सोचते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करना स्वर्ग जाने और अपनी आत्मा को बचा लेने के बारे में है। उन्हें परमेश्वर में विश्वास करने के सटीक महत्व का कुछ पता ही नहीं है। इतना ही नहीं, उन्हें परमेश्वर की प्रबंधन योजना के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य की कोई समझ नहीं है। अपने भिन्न-भिन्न कारणों से, लोग परमेश्वर के कार्य में कोई रुचि नहीं लेते, न ही वे परमेश्वर के प्रयोजनों पर या परमेश्वर की प्रबंधन योजना पर थोड़ा भी विचार करते हैं। इस धारा का व्यक्ति होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति को जानना चाहिए कि परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना का उद्देश्य क्या है, वे क्या तथ्य हैं जो उसने बहुत पहले सिद्ध कर लिए हैं, उसने लोगों के इस समूह को क्यों चुना है, उसके उन्हें चुनने का उद्देश्य और अर्थ क्या है, और इस समूह में परमेश्वर क्या प्राप्त करना चाहता है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में साधारण लोगों का ऐसा एक समूह तैयार करना, और अब तक निरंतर कार्य करते रहना, हर प्रकार के तरीक़ों से उनकी परीक्षा लेना और उन्हें पूर्ण करना, अनगिनत वचन बोलना, अत्यधिक कार्य करना, और इतनी सारी सेवा की वस्तुएँ भेजना—अकेले परमेश्वर के लिए इतना बड़ा कार्य संपन्न करना दिखाता है कि परमेश्वर का कार्य कितना महत्त्वपूर्ण है। फिलहाल तुम लोग इसे पूरी तरह समझने में अक्षम हो। परमेश्वर ने जो कार्य तुम लोगों में किया है, उसे तुम्हें अपने आप में तुच्छ नहीं मानना चाहिए; यह कोई छोटी बात नहीं है। यहाँ तक कि परमेश्वर ने आज तुम लोगों के लिए जो प्रकट किया है, वह भी तुम लोगों के गहराई से समझने और जानने का प्रयास करने के लिए पर्याप्त है। यदि तुम इसे सचमुच और पूर्णतः समझते हो, तभी तुम लोगों के अनुभव अधिक गहरे हो सकते हैं और तुम्हारा जीवन फल-फूल सकता है। आज, लोग बहुत कम समझते और करते हैं; वे परमेश्वर के प्रयोजनों को पूर्णतः पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। यह मनुष्य की कमी और अपना कर्तव्य पूरा करने में उसकी विफलता है, और इस प्रकार वे इच्छित परिणाम प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं। पवित्र आत्मा के पास बहुत-से लोगों में कार्य करने के साधन नहीं हैं क्योंकि लोगों में परमेश्वर के कार्य की उथली समझ है, और जब वे परमेश्वर के घर का कार्य करते हैं तब इसे किंचित अनमोल मानने के इच्छुक नहीं होते हैं। वे हमेशा किसी तरह बच निकलने के लिए बेमन से चेष्टा-भर करते हैं, या फिर बहुसंख्यक लोगों का अनुकरण करते हैं, या बस दिखावे के लिए काम करते हैं। आज, इस धारा के प्रत्येक व्यक्ति को याद करना चाहिए कि अपने कार्यकलापों और कर्मों में, उन्होंने वह सब किया है या नहीं जो वे कर सकते थे, और उन्होंने अपना पूरा ज़ोर लगाया है या नहीं। लोग अपना कर्तव्य निभाने में पूरी तरह से नाकाम हो गए हैं, इसलिए नहीं कि पवित्र आत्मा अपना कार्य नहीं करता है, बल्कि इसलिए कि लोग अपना कार्य नहीं करते, जिससे पवित्र आत्मा के लिए अपना कार्य करना असंभव हो जाता है। परमेश्वर के पास कहने के लिए और वचन नहीं हैं, परंतु लोग साथ-साथ बिल्कुल नहीं चल पाए, वे बहुत पीछे छूट गए हैं, वे हर कदम पर साथ रहने में असमर्थ हैं, और मेमने के पदचिह्नों का निकट से अनुसरण करने में असमर्थ हैं। उन्हें जिसका पालन करना चाहिए, उन्होंने पालन नहीं किया; उन्हें जिसका अभ्यास करना चाहिए था, उसका अभ्यास नहीं किया; उन्हें जिसके लिए प्रार्थना करनी चाहिए थी, उन्होंने उसके लिए प्रार्थना नहीं की; उन्हें जिसे दर-किनार कर देना चाहिए था, उन्होंने उसे दर-किनार नहीं किया। उन्होंने इनमें से कुछ भी नहीं किया। इसलिए, भोज में शामिल होने की यह बात खोखली है; इसका कोई वास्तविक अर्थ नहीं है, यह लोगों की कल्पना भर है। आज की दृष्टि से कहा जा सकता है कि लोगों ने अपना कर्तव्य बिल्कुल नहीं निभाया है। सब कुछ परमेश्वर के कहने और करने पर निर्भर हो गया है। इंसान का कार्यकलाप बहुत ही तुच्छ रहा है; लोग बेकार और निकम्मे हैं जो परमेश्वर के साथ सहयोग नहीं कर पाते हैं। परमेश्वर ने सैकड़ों-हज़ारों वचन कहे हैं, तो भी लोग उनमें से किसी को भी अभ्यास में नहीं लाए—चाहे देह-सुख त्यागना हो, अवधारणाओं को निकाल फेंकना हो, विवेक विकसित और अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हुए सब बातों में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने की बात हो, अपने हृदय में लोगों को स्थान नहीं देना हो, अपने हृदयों में प्रतिमाओं को मिटाना हो, अपने गलत व्यक्तिगत इरादों के खिलाफ विद्रोह करना हो, भावना के वशीभूत कार्य नहीं करना हो, बिना पक्षपात के कार्य करना हो, परमेश्वर के हितों और बोलते समय दूसरों पर उनके प्रभाव पर अधिक ध्यान देना हो, परमेश्वर के कार्य को लाभ पहुँचाने वाले काम अधिक करना हो, अपने सभी कार्यों में परमेश्वर के घर को लाभ पहुँचाने की बात को ध्यान में रखना हो, अपनी भावनाओं को अपने व्यवहार पर शासन नहीं करने देना हो, अपनी देह को जो सुख दे, उसे निकाल फेंकना हो, स्वार्थपूर्ण पुरानी धारणाओं को मिटाना हो, इत्यादि। वे परमेश्वर द्वारा मनुष्य से की जाने वाली इन सारी अपेक्षाओं में से कुछ को वास्तव में समझते हैं, किंतु वे बस उन्हें अभ्यास में नहीं लाना चाहते। परमेश्वर भला और क्या कर सकता है, और वह उन्हें और कैसे प्रेरित कर सकता है? परमेश्वर की दृष्टि में विद्रोह के पुत्र परमेश्वर के वचनों को लेकर उनका गुणगान करने की धृष्टता कैसे कर सकते हैं? वे परमेश्वर का भोजन खाने की धृष्टता कैसे करते हैं? लोगों की अंतरात्मा कहाँ है? उन्हें जो कर्तव्य पूरे करने थे, उनमें से उन्होंने न्यूनतम भी पूरे नहीं किए हैं, उनके अधिक से अधिक करने की तो बात ही क्या कहें। क्या वे झूठी आशा में नहीं जी रहे हैं? अभ्यास के बिना वास्तविकता की कोई बात नहीं हो सकती है। यह बिलकुल स्पष्ट तथ्य है!

तुम लोगों को वे सबक सीखने चाहिए जो अधिक यथार्थवादी हैं। उन ऊँची-ऊँची, खोखली बातों की कोई आवश्यकता नहीं है जिनकी लोग प्रशंसा करते हैं। जब ज्ञान के बारे में चर्चा करने की बात आती है, तब हर व्यक्ति पिछले से बढ़कर है, लेकिन तब भी उनके पास अभ्यास करने का मार्ग नहीं है। कितने लोगों ने अभ्यास के सिद्धांतों को समझ लिया है? कितनों ने वास्तविक सबक सीख लिए हैं? वास्तविकता के बारे में कौन सहभागिता कर सकता है? परमेश्वर के वचनों के ज्ञान की बात कर पाने का यह अर्थ यह नहीं कि तू वास्तविक आध्यात्मिक कद से युक्त है; यह बस इतना ही दिखाता है कि तू जन्म से चतुर था, और तू प्रतिभाशाली है। अगर तू मार्ग नहीं दिखा सकता तो परिणाम कुछ नहीं निकलेगा, और तू निकम्मा इंसान होगा! यदि तू अभ्यास करने के लिए वास्तविक मार्ग के बारे में कुछ नहीं कह सकता तो क्या तू ढोंग नहीं कर रहा है? यदि तू अपने वास्तविक अनुभव दूसरों को नहीं दे सकता है, जिनसे उन्हें सीखने के लिए सबक या अनुसरण के लिए मार्ग मिल सके, तो क्या तू धोखा नहीं दे रहा है? क्या तू पाखंडी नहीं है? तेरा क्या मूल्य है? ऐसा व्यक्ति केवल “समाजवाद के सिद्धांत के आविष्कारक” की भूमिका अदा कर सकता है, “समाजवाद लाने वाले योगदाता” की नहीं। वास्तविकता से रहित होना सत्य से युक्त नहीं होना है। वास्तविकता से रहित होना निकम्मा होना है। वास्तविकता से रहित होना चलती-फिरती लाश होना है। वास्तविकता से रहित होना “मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक” होना है जिसका कोई संदर्भ मूल्य नहीं होता। मैं तुममें से प्रत्येक से आग्रह करता हूँ कि सिद्धांत के बारे में मुँह बंद करो और कुछ वास्तविक, कुछ सच्ची और ठोस चीज़ के बारे में बात करो; कुछ “आधुनिक कला” का अध्ययन करो, कुछ यथार्थवादी कहो, कुछ वास्तविक योगदान करो, और कुछ समर्पण की भावना रखो। जब तुम बोलो, वास्तविकता का सामना करो; लोगों को प्रसन्न महसूस करवाने या चौंकाकर अपने पर उनका ध्यान दिलाने के लिए अवास्तविक और अतिरंजित वार्ता में लिप्त मत होओ। उसमें मोल कहाँ है? अपने प्रति लोगों से उत्साहपूर्ण बर्ताव करवाने का क्या औचित्य है? अपनी बातचीत में थोड़ा “कलात्मक” बनो, अपने आचरण में थोड़ा और निष्पक्ष बनो, चीज़ों को संभालने के अपने तरीक़े में थोड़ा और तर्कसंगत बनो, तुम जो कहते हो उसमें थोड़ा और व्यवहारिक बनो, अपने हर कार्य से परमेश्वर के घर को लाभ पहुँचाने की सोचो, भावुक होने पर अपनी अंतरात्मा की सुनो, दयालुता का मूल्य घृणा से न चुकाओ या दयालुता के प्रति कृतघ्न न बनो, और पाखंडी मत बनो, कहीं ऐसा न हो कि तुम बुरा प्रभाव बन जाओ। जब तुम परमेश्वर के वचन खाओ और पिओ, तो उन्हें वास्तविकता के साथ अधिक घनिष्ठता से जोड़ो, और जब तुम संगति करो, तब यथार्थवादी चीज़ों के बारे में अधिक बोलो। दूसरों को नीचा न दिखाओ; यह परमेश्वर को संतुष्ट नहीं करेगा। दूसरों के साथ अपनी बातचीत में थोड़ा अधिक सहिष्णु, थोड़ा अधिक लचीला, थोड़ा अधिक उदार बनो, और “प्रधानमंत्री की भावना”[क] से सीखो। जब तुम्हारे मन में बुरे विचार आएँ, तब देहसुख त्यागने का अधिक अभ्यास करो। जब तुम कार्य कर रहे होते हो, तब यथार्थवादी मार्गों के बारे में अधिक बोलो, और बहुत ऊँचाई पर न चले जाओ, नहीं तो तुम्हारी बातें लोगों के सिर के ऊपर से निकल जाएँगी। आनंद कम, योगदान अधिक—अपनी निःस्वार्थ समर्पण की भावना दिखाओ। परमेश्वर के प्रयोजनों के प्रति अधिक विचारशील बनो, अपनी अंतरात्मा की अधिक सुनो, अधिक सचेत बनो और यह न भूलो कि परमेश्वर हर दिन तुम लोगों से कितने धैर्य और गंभीरता से कैसे बात करता है। “पुराने पंचांग” को बार-बार पढ़ो। बार-बार अधिक प्रार्थना और अधिक संगति करो। इतने संभ्रमित होना बंद करो; कुछ अधिक समझ दिखाओ और कुछ अंतर्दृष्टि प्राप्त करो। ज्यों ही तुम्हारा पापी हाथ बढ़े, वापस पीछे खींच लो; इसे इतना आगे जाने ही न दो। किसी काम का नहीं, और परमेश्वर से तुम्हें शापों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा, इसलिए होशियार रहो। अपने हृदय को दूसरों पर तरस खाने दो, और हमेशा हाथ में अस्त्र लेकर टूट मत पड़ो। दूसरों की मदद करने की भावना बनाए रखते हुए, सत्य के ज्ञान के बारे में अधिक संगति और जीवन के बारे में अधिक बात करो। अधिक करो और कम बोलो। अभ्यास में अधिक और अनुसंधान तथा विश्लेषण पर कम ध्यान दो। पवित्र आत्मा द्वारा अपने को अधिक प्रेरित होने दो, और परमेश्वर को तुम्हें पूर्ण करने के अधिक अवसर दो। मानवीय तत्त्वों को अधिक मिटाओ; तुम अब भी चीज़ों को करने के बहुत सारे मानवीय तरीक़ों से युक्त हो, और चीजों को करने का तुम्हारा उथला तरीक़ा और व्यवहार अब भी दूसरों के लिए घृणास्पद है : इनमें से और अधिक मिटा दो। तुम्हारी मनःस्थिति अब भी बहुत घृणास्पद है। इसे सुधारने में अधिक समय लगाओ। तुम लोगों को अब भी बहुत प्रतिष्ठा देते हो; परमेश्वर को अधिक प्रतिष्ठा दो, और इतने अविवेकी न बनो। “मंदिर” हमेशा से परमेश्वर का है, और लोगों को उस पर कब्ज़ा नहीं करना चाहिए। संक्षेप में, धार्मिकता पर अधिक और भावनाओं पर कम ध्यान केंद्रित करो। देहसुख को मिटा देना ही सर्वश्रेष्ठ है; वास्तविकता के बारे में अधिक और ज्ञान के बारे में कम बात करो; मुँह बंद रखना और कुछ न कहना ही सर्वश्रेष्ठ है। अभ्यास के मार्ग की अधिक बात करो, और बेकार की डींगें कम हाँको। सर्वश्रेष्ठ तो यही है कि इसी समय अभ्यास करना आरंभ कर दो।

लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाएँ उतनी ऊँची भी नहीं हैं। अगर लोग लगन और ईमानदारी से अभ्यास करें, तो उन्हें “उत्तीर्ण ग्रेड” प्राप्त होगा। सच कहा जाए, तो सत्य की समझ, ज्ञान और बोध प्राप्त करना सत्य का अभ्यास करने से कहीं अधिक जटिल है। पहले जितना तू समझता है उतना अभ्यास कर, और जो तूने बूझ लिया है उसका अभ्यास कर। इस तरह तू धीरे-धीरे सत्य का सच्चा ज्ञान और समझ हासिल करने में सक्षम होगा। ये वे कदम और साधन हैं, जिनके द्वारा पवित्र आत्मा कार्य करता है। अगर तू इस तरह से आज्ञाकारिता का अभ्यास नहीं करेगा, तो तू कुछ भी हासिल नहीं करेगा। अगर तू हमेशा अपनी इच्छा से कार्य करता है और आज्ञाकारिता का अभ्यास नहीं करता, तो क्या पवित्र आत्मा तेरे भीतर कार्य करेगा? क्या पवित्र आत्मा तेरी इच्छानुसार कार्य करता है? या वह तेरी कमी के अनुसार और परमेश्वर के वचनों के आधार पर कार्य करता है? अगर तुझे यह स्पष्ट नहीं है, तो तू सत्य की वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पाएगा। ऐसा क्यों है कि अधिकांश लोगों ने परमेश्वर के वचनों को पढ़ने में काफी मेहनत की है, लेकिन इसके पश्चात उनके पास मात्र ज्ञान है और वास्तविक मार्ग के बारे में कुछ नहीं कह पाते? क्या तुझे लगता है कि ज्ञान से युक्त होना सत्य से युक्त होने के बराबर है? क्या यह भ्रांत दृष्टिकोण नहीं है? तू ज्ञान के उतने अंश बोल पाता है जितने समुद्र-तट पर रेत के कण होते हैं, फिर भी इसमें से कुछ भी वास्तविक मार्ग नहीं है। यह करके क्या तू लोगों को मूर्ख बनाने का प्रयत्न नहीं कर रहा है? क्या तू खोखला प्रदर्शन नहीं कर रहा है, जिसके समर्थन के लिए कुछ भी ठोस नहीं है? ऐसा समूचा व्यवहार लोगों के लिए हानिकारक है! जितना अधिक ऊँचा सिद्धांत और उतना ही अधिक यह वास्तविकता से रहित, उतना ही अधिक यह लोगों को वास्तविकता में ले जाने में अक्षम है। जितना अधिक ऊँचा सिद्धांत, उतना ही अधिक यह तुझसे परमेश्वर की अवज्ञा और विरोध करवाता है। आध्यात्मिक सिद्धांत में लिप्त मत हो—इसका कोई फायदा नहीं! कुछ लोग आध्यात्मिक सिद्धांत के बारे में दशकों से बात कर रहे हैं, और वे आध्यात्मिकता के दिग्गज बन गए हैं, लेकिन अंततः, इतने पर वे भी सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने में विफल हैं। चूँकि उन्होंने परमेश्वर के वचनों का अभ्यास या अनुभव नहीं किया है, इसलिए उनके पास अभ्यास के लिए कोई सिद्धांत या मार्ग नहीं है। ऐसे लोगों के पास स्वयं सत्य की वास्तविकता नहीं होती, तो वे अन्य लोगों को परमेश्वर में आस्था के सही रास्ते पर कैसे ला सकते हैं? वे केवल लोगों को गुमराह कर सकते हैं। क्या यह दूसरों को और खुद को नुकसान पहुँचाना नहीं है? कम से कम, तुझे वास्तविक समस्याएँ हल करने में सक्षम होना चाहिए, जो ठीक तेरे सामने हैं। अर्थात्, तुझे परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और अनुभव करने और सत्य को अभ्यास में लाने में सक्षम होना चाहिए। केवल यही परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता है। जीवन में प्रवेश कर लेने पर ही तू परमेश्वर के लिए काम करने के योग्य होता है, और परमेश्वर के लिए ईमानदारी से खुद को खपाने पर ही तू परमेश्वर द्वारा अनुमोदित किया जा सकता है। हमेशा बड़े-बड़े वक्तव्य न दिया कर और आडंबरपूर्ण सिद्धांत की बात मत किया कर; यह वास्तविक नहीं है। लोगों से अपनी प्रशंसा करवाने के लिए आध्यात्मिक सिद्धांत बघारना परमेश्वर की गवाही देना नहीं है, बल्कि अपनी शान दिखाना है। यह लोगों के लिए बिलकुल भी लाभदायक नहीं है और उन्हें कुछ सिखाता नहीं, और उन्हें आसानी से आध्यात्मिक सिद्धांत की आराधना करने और सत्य के अभ्यास पर ध्यान केंद्रित न करने के लिए प्रेरित कर सकता है—और क्या यह लोगों को गुमराह करना नहीं है? इसी तरह करते रहना कई खोखले सिद्धांतों और नियमों को जन्म देगा, जो लोगों को विवश करेंगे और फँसाएँगे; यह वाकई शर्मनाक है। इसलिए ह ज्यादा कह जो वास्तविक है, उन समस्याओं के बारे में ज्यादा बात कर जो वास्तव में मौजूद हैं, वास्तविक समस्याएँ हल करने के लिए सत्य की खोज करने में ज्यादा समय बिता; यही सबसे महत्वपूर्ण है। सत्य का अभ्यास सीखने में देरी न कर : यह वास्तविकता में प्रवेश का मार्ग है। अन्य लोगों के अनुभव और ज्ञान को अपनी निजी संपत्ति की तरह मत ले और उन्हें दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए पकड़कर मत रख। जीवन में तेरा अपना प्रवेश होना चाहिए। केवल सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर की आज्ञा मानने से ही तुझे जीवन में प्रवेश मिलेगा। प्रत्येक व्यक्ति को इसी का अभ्यास और इसी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

यदि तुम जो संगति करते हो वह लोगों को चलने के लिए मार्ग दे सकती है, तो यह तुम्हारे वास्तविकता से युक्त होने के बराबर है। तुम चाहे जो कहो, तुम्हें लोगों को अभ्यास में लाना और उन सभी को एक मार्ग देना चाहिए जिसका वे अनुसरण कर सकें। उन्हें केवल ज्ञान ही मत पाने दो; अधिक महत्वपूर्ण चलने के लिए मार्ग का होना है। लोग परमेश्वर में विश्वास करें, इसके लिए उन्हें परमेश्वर द्वारा अपने कार्य में दिखाए गए मार्ग पर चलना चाहिए। अर्थात, परमेश्वर में विश्वास करने की प्रक्रिया पवित्र आत्मा द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने की प्रक्रिया है। तदनुसार, तुम्हारे पास एक ऐसा मार्ग होना चाहिए जिस पर तुम चल सको, फिर चाहे जो हो, और तुम्हें परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने के मार्ग पर चलना चाहिए। बहुत अधिक पीछे मत छूट जाओ, और बहुत सारी चीज़ों की चिंता में मत पड़ो। यदि तुम बाधाएँ उत्पन्न किए बिना परमेश्वर द्वारा दिखाए मार्ग पर चलते हो, तभी तुम पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकते हो और प्रवेश का मार्ग पा सकते हो। यही परमेश्वर के प्रयोजनों के अनुरूप होना और मानवता का कर्तव्य पूरा करना माना जाता है। इस धारा का व्यक्ति होने के नाते, प्रत्येक व्यक्ति को अपना कर्तव्य अच्छी तरह पूरा करना चाहिए, वह और अधिक करना चाहिए जो लोगों को करना चाहिए, और मनमाने ढंग से काम नहीं करना चाहिए। कार्य कर रहे लोगों को अपने शब्द स्पष्ट करने चाहिए, अनुसरण कर रहे लोगों को कठिनाइयों का सामना करने और आज्ञापालन करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए, सभी को अपनी भूमिका तक सीमित रहना चाहिए और सीमा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में स्पष्ट होना चाहिए कि उसे कैसे अभ्यास करना है और क्या कार्य पूरा करना है। पवित्र आत्मा द्वारा दिखाया गया मार्ग लो; भटक मत जाना या ग़लती मत करना। तुम्हें आज का कार्य स्पष्ट रूप से देखना चाहिए। तुम लोगों को कार्य करने के आज के साधनों में प्रवेश करने का अभ्यास करना चाहिए। सबसे पहले तुम्हें इसी में प्रवेश करना चाहिए। दूसरी चीज़ों पर और अधिक शब्द बर्बाद मत करो। आज परमेश्वर के घर का कार्य करना तुम लोगों की ज़िम्मेदारी है, आज की कार्य-पद्धति में प्रवेश करना तुम लोगों का कर्तव्य है, और आज के सत्य का अभ्यास करना तुम लोगों का भार है।

फुटनोट :

क. प्रधानमंत्री की भावना : प्राचीन चीनी कहावत जिसका प्रयोग खुले विचारों वाले और उदार-हृदय व्यक्ति का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

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