645 असफलतायें और मुश्किलें परमेश्वर के आशीष हैं
1 परमेश्वर तुम्हें सभी प्रकार के झंझावातों, विपत्तियों, कठिनाइयों और अनगिनत असफलताओं और झटकों का अनुभव कराता है, ताकि अंतत: इन सब चीज़ों का अनुभव करने के दौरान तुम्हें पता चल जाए कि परमेश्वर जो कुछ कहता है, वह सब सही है, और कि तुम्हारे विश्वास, धारणाएँ, कल्पनाएँ, ज्ञान, दार्शनिक सिद्धांत, दर्शन, इस संसार में जो कुछ भी तुमने सीखा है और तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें सिखाया है, वह सब ग़लत है। वे तुम्हें जीवन में सही मार्ग पर नहीं ले जा सकते, वे सत्य को समझने और परमेश्वर के सामने आने में तुम्हारी अगुआई नहीं कर सकते, और तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो, वह विफलता का मार्ग है। तुम्हारे लिए यह एक आवश्यक प्रक्रिया है, जिसे तुम्हें उद्धार का अनुभव करने की प्रक्रिया के दौरान प्राप्त करना चाहिए। लेकिन यह परमेश्वर को दुःखी भी करता है : चूँकि लोग विद्रोही और भ्रष्ट स्वभाव के हैं, इसलिए उन्हें इस प्रक्रिया से गुज़रना और इन झटकों का अनुभव करना चाहिए।
2 परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, लेकिन वह इंसान का भला चाहता है। वह तुम्हारे लिए किसी भी परिवेश का निर्माण करे या वह तुमसे कुछ भी करने के लिए कहे, वह हमेशा सर्वोत्तम परिणाम देखना चाहता है। मान लो, तुम्हारे ऊपर कुछ बीतता है और तुम झटकों तथा विफलताओं का सामना करते हो। परमेश्वर नहीं चाहता कि तुम्हें विफल होता देखे और फिर सोचे कि तुम समाप्त हो चुके हो, कि तुम्हें शैतान ने छीन लिया है, और उस बिंदु से तुम दोबारा कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकोगे, और तुम निराशा में डूब गए हो—परमेश्वर यह परिणाम नहीं देखना चाहता। परमेश्वर क्या देखना चाहता है? तुम इस मामले में भले ही विफल हो गए हो, पर तुम सत्य की तलाश करने, अपनी विफलता का कारण पता करने में समर्थ हो; तुम इस विफलता की सच्चाई स्वीकार करो और इससे कुछ ग्रहण करो, तुम सबक सीखो, तुम महसूस करो कि उस तरह कार्य करना ग़लत था, कि केवल परमेश्वर के वचनों के अनुसार कार्य करना ही सही है। तुम्हें एक घटना का, मामले के वास्तविक तथ्य का एहसास होता है, और तुम चीज़ों को समझते हो और इस झटके तथा विफलता से उबरकर परिपक्व हो जाते हो। परमेश्वर यही देखना चाहता है। परमेश्वर अच्छे इरादे से काम करता है, और उसके समस्त कार्यों में उसका प्रेम छिपा होता है, यह अच्छा है कि लोग विफलता का अनुभव करें—यह कुछ कष्टदायक अवश्य है, किंतु यह उन्हें तैयार करता है। यदि इस प्रकार तैयार होने के परिणामस्वरूप अंतत: तुम परमेश्वर के समक्ष लौट आते हो, उसके वचनों को स्वीकार करते हो, और उन्हें सत्य के रूप में लेते हो, तो इस तरह तैयार होने, झटके और विफलताएँ सहने का अनुभव व्यर्थ नहीं जाता।
— "मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'पौलुस की प्रकृति और स्वभाव को कैसे पहचाना जाए' से रूपांतरित