प्रश्न 1: आप परमेश्वर पर कुछ सालों से ही विश्वास कर रही हैं। आप अभी भी एक नौसिखिया ही हैं। मैं अपनी ज़्यादातर ज़िंदगी गुजार चुका हूँ और दशकों तक धर्मों का अध्ययन किया है। मैं आपको ज़िम्मेदारी से बता सकता हूँ, इस दुनिया में कोई परमेश्वर नहीं है, और ना ही कोई उद्धारक है। परमेश्वर पर विश्वास करने का पूरा मामला ही बहुत उलझा हुआ है। यह पूरी तरह से अव्यावहारिक है। हम दोनों ही समझदार व्यक्ति हैं; हमें मामलों को तथ्यों और विज्ञान के आईने में देखना चाहिए। हमें भौतिकवाद और डार्विनवाद जैसे वैज्ञानिक सिद्धांतों पर विश्वास करना चाहिए। आपको परमेश्वर पर विश्वास करने की क्‍या ज़रूरत है? हम कम्युनिस्ट सिर्फ नास्तिकता और विकास के सिद्धांतों पर विश्वास करते हैं। आपको पता होना चाहिए कि डार्विन का विकास का सिद्धांत मानव जाति के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सिद्धांतों में से एक है। विकास के सिद्धांत के अनुसार, हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि सब कुछ प्रकृति के कार्य से बना है। मनुष्य प्रकृति के जैविक विकास की प्रक्रिया की सांयोगिक उत्‍पत्ति है। मनुष्य का विकास वानरों से हुआ है। इसके लिए पर्याप्त सैद्धांतिक आधार है। इससे पता चलता है कि मनुष्य को परमेश्वर ने नहीं बनाया था। बाइबल में लिखे हुए वचन मिथक और दंतकथाएं हैं, जिन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा सकता। मैं आपको भौतिकवाद और डार्विनवाद के बारे में और ज़्यादा जानने की सलाह देता हूँ। ये बहुत ही व्यावहारिक सिद्धांत हैं जो दुविधाओं को दूर कर सकते हैं। मुझे लगता है कि जब आप इसे साफ तौर पर देखेंगी, तब आप धार्मिक विश्वासों को ठीक तरह से समझ पाएंगी और भ्रामक आस्था से बाहर आ जाएँगी। सिर्फ़ सीसीपी का अनुसरण करके ही आपका भविष्य अच्छा होगा।

उत्तर: सीसीपी एक नास्तिक पार्टी है। यह स्वाभाविक रूप से भौतिकवाद और डार्विनवाद पर विश्वास करती है। लेकिन इसका परिणाम क्या है? अधिकांश लोगों ने भौतिकवाद और डार्विनवाद को त्याग दिया है, नकार दिया है। ज्‍़यादा-से-ज्‍़यादा लोग परमेश्वर को स्वीकार कर रहे हैं और परमेश्वर की ओर लौट रहे हैं। ज्‍़यादा-से-ज्‍़यादा लोग परमेश्वर के वचन को सत्य मानते हैं। अब दुनिया अंत के दिनों तक पहुँच चुकी है। परमेश्वर का कार्य अब अंतिम चरण में है। परमेश्वर अपने सभी कर्मों को दिखाएंगे, ताकि अंत के दिनों में लोग यह देख सकें कि स्वर्ग और पृथ्वी पर सारी चीजें परमेश्वर ने बनाई थी, और सभी चीजों पर परमेश्वर का शासन है। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "ब्रह्मांड और आकाश की विशालता में अनगिनत जीव रहते और प्रजनन करते हैं, जीवन के चक्रीय नियम का पालन करते हैं, और एक अटल नियम का अनुसरण करते हैं। जो मर जाते हैं, वे अपने साथ जीवित लोगों की कहानियाँ लेकर चले जाते हैं, और जो लोग जी रहे हैं, वे खत्म हो चुके लोगों के त्रासद इतिहास को ही दोहराते हैं। और इसलिए, मानवजाति खुद से पूछे बिना नहीं रह पाती : हम क्यों जीते हैं? और हमें मरना क्यों पड़ता है? इस संसार को कौन नियंत्रित करता है? और इस मानवजाति को किसने बनाया? क्या मानवजाति को वास्तव में प्रकृति माता ने बनाया? क्या मानवजाति वास्तव में अपने भाग्य की नियंत्रक है? ... ये वे सवाल हैं, जो मानवजाति ने हजारों वर्षों से निरंतर पूछे हैं। दुर्भाग्य से, जितना अधिक मनुष्य इन सवालों से ग्रस्त हुआ है, उसमें उतनी ही अधिक प्यास विज्ञान के लिए विकसित हुई है। विज्ञान देह की संक्षिप्त तृप्ति और अस्थायी आनंद प्रदान करता है, लेकिन वह मनुष्य को उसकी आत्मा के भीतर की तन्हाई, अकेलेपन, बमुश्किल छिपाए जा सकने वाले आतंक और लाचारी से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। मानवजाति केवल उसी वैज्ञानिक ज्ञान का उपयोग करती है, जिसे वह अपनी खुली आँखों से देख सकती है और अपने मस्तिष्क से समझ सकती है, ताकि अपने हृदय को चेतनाशून्य कर सके। फिर भी यह वैज्ञानिक ज्ञान मानवजाति को रहस्यों की खोज करने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। मानवजाति यह नहीं जानती कि ब्रह्मांड और सभी चीज़ों का संप्रभु कौन है, और मानवजाति के प्रारंभ और भविष्य के बारे में तो वह बिलकुल भी नहीं जानती। मानवजाति केवल इस व्यवस्था के बीच विवशतापूर्वक जीती है। इससे कोई बच नहीं सकता और इसे कोई बदल नहीं सकता, क्योंकि सभी चीज़ों के बीच और स्वर्ग में अनंतकाल से लेकर अनंतकाल तक वह एक ही है, जो सभी चीज़ों पर अपनी संप्रभुता रखता है। वह एक ही है, जिसे मनुष्य द्वारा कभी देखा नहीं गया है, वह जिसे मनुष्य ने कभी नहीं जाना है, जिसके अस्तित्व पर मनुष्य ने कभी विश्वास नहीं किया है—फिर भी वह एक ही है, जिसने मनुष्य के पूर्वजों में साँस फूँकी और मानवजाति को जीवन प्रदान किया। वह एक ही है, जो मानवजाति का भरण-पोषण करता है और उसका अस्तित्व बनाए रखता है; और वह एक ही है, जिसने आज तक मानवजाति का मार्गदर्शन किया है। इतना ही नहीं, वह और केवल वह एक ही है, जिस पर मानवजाति अपने अस्तित्व के लिए निर्भर करती है। वह सभी चीज़ों पर संप्रभुता रखता है और ब्रह्मांड के सभी जीवित प्राणियों पर राज करता है। वह चारों मौसमों पर नियंत्रण रखता है, और वही है जो हवा, ठंड, हिमपात और बारिश लाता है। वह मानवजाति के लिए सूर्य का प्रकाश लाता है और रात्रि का सूत्रपात करता है। यह वही था, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी की व्यवस्था की, और मनुष्य को पहाड़, झीलें और नदियाँ और उनके भीतर के सभी जीव प्रदान किए। उसके कर्म सर्वव्यापी हैं, उसकी सामर्थ्य सर्वव्यापी है, उसकी बुद्धि सर्वव्यापी है, और उसका अधिकार सर्वव्यापी है। इन व्यवस्थाओं और नियमों में से प्रत्येक उसके कर्मों का मूर्त रूप है और प्रत्येक उसकी बुद्धिमत्ता और अधिकार को प्रकट करता है। कौन खुद को उसके प्रभुत्व से मुक्त कर सकता है? और कौन उसकी अभिकल्पनाओं से खुद को छुड़ा सकता है? सभी चीज़ें उसकी निगाह के नीचे मौजूद हैं, और इतना ही नहीं, सभी चीज़ें उसकी संप्रभुता के अधीन रहती हैं। उसके कर्म और उसकी सामर्थ्य मानवजाति के लिए इस तथ्य को स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं छोड़ती कि वह वास्तव में मौजूद है और सभी चीज़ों पर संप्रभुता रखता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 3: मनुष्य को केवल परमेश्वर के प्रबंधन के बीच ही बचाया जा सकता है)

दुनिया की रचना के बाद, परमेश्वर ने तीन चरणों में कार्य किया है। परमेश्वर ने अपने कार्य के हर चरण में कई सत्यों को प्रकट किया हैं। सम्पूर्ण बाइबल व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग में परमेश्वर के कार्यों का एक दस्‍तावेज़ है। फिर सर्वशक्तिमान परमेश्वर आए और अंत के दिनों में न्याय का कार्य किया, मानव जाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए सारे सत्यों को व्यक्त किया, जिनमें से ज़्यादातर सत्य वचन देह में प्रकट होता है पुस्तक में दर्ज़ हैं। हालांकि, हम परमेश्वर का आध्यात्मिक शरीर नहीं देख सकते, मगर जब परमेश्वर कार्य करने के लिए प्रकट होते हैं, तब हम हर युग में परमेश्वर द्वारा बोले गए सभी वचनों को देख सकते हैं। यह बाइबल के इन वचनों को पूरा करता है: "आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था" (यूहन्‍ना 1:1)। शैतान द्वारा मानव जाति को भ्रष्ट किये जाने के बाद से, परमेश्वर मानव जाति को बचाने के लिए वचन बोल रहे और कार्य कर रहे हैं। व्यवस्था के युग में परमेश्वर ने इसराइल में कार्य किया और पृथ्वी पर मानव जाति के जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए व्यवस्था और आज्ञाओं का प्रचार किया। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने प्रभु यीशु के रूप में देहधारण किया और यहूदिया में छुटकारे का कार्य किया। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर देह रूप में प्रकट हुए हैं और चीन में अपना कार्य कर रहे हैं बाइबल मे दर्ज़ परमेश्वर के वचन और वचन देह में प्रकट होता है पुस्तक में लिखे अंत के दिनों में व्‍यक्‍त किये गए परमेश्वर के वचन वे तथ्य हैं जो मनुष्य का मार्गदर्शन करने और उसे बचाने के लिए परमेश्वर दुनिया में कहते हैं और करते हैं। अगर परमेश्वर की आत्मा नहीं होती तो, ऐसे शक्तिशाली और अधिकार पूर्ण वचन कौन कह सकता है? मनुष्य परमेश्वर की आत्मा को देख नहीं सकता, लेकिन वह परमेश्वर की आत्मा द्वारा व्यक्त किए गए वचन को सुन सकता है। यह इस बात को साबित करने के लिए काफ़ी है कि परमेश्वर मानव जाति का मार्गदर्शन करने और उसे बचाने के लिए वचन बोल रहे और कार्य रहे हैं। परमेश्वर के वचन के अनुसार, मनुष्य केवल परमेश्वर पर ही भरोसा कर सकता है। जब वह दिल से परमेश्वर से प्रार्थना करता है, तब वह पवित्र आत्मा के कार्य और परमेश्वर के अस्तित्व को महसूस कर सकता है। आपने न तो परमेश्वर पर विश्वास किया है, न बाइबल और परमेश्वर के वचन को पढ़ा है, और ना ही परमेश्वर से प्रार्थना की है, इसलिए आप परमेश्वर के अस्तित्व को महसूस नहीं कर सकते। अंत के दिनों में, लोगों से बात करने और उनके बीच रहकर कार्य करने के लिए, परमेश्वर ने मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारण किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सभी वचन अधिकार और सामर्थ्य के साथ सत्य हैं जिन्हें और कोई नहीं कह सकता। यह इस बात को साबित करता है कि वे परमात्मा हैं जो वचन बोलते हैं, और यह परमेश्वर की आत्मा है जो देह रूप में आकर अपना कार्य कर रही है। वचन देह में प्रकट होता है पुस्तक में व्‍यक्‍त सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं साफ तौर पर यह महसूस कर सकती हूं कि ये वचन परमेश्वर के मुख से निकले हैं। वे परमेश्वर ही थे जो मानव जाति से बात कर रहे थे। इसलिए मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार किया। एक दशक से अधिक समय तक परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के बाद, मैंने परमेश्वर के वचन के अधिकार और सामर्थ्य को महसूस किया है, और पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता का अनुभव किया है। मैंने परमेश्वर के अद्भुत कार्यों को देखा है। मेरे दिल में, परमेश्वर का अधिकार, सामर्थ्‍य, सर्वशक्तिमत्‍ता और प्रभुत्व, सब कुछ बहुत वास्‍तविक हैं! ऐसा कहा जा सकता है कि वे सभी लोग जिनके पास दिल और आत्मा है, परमेश्वर द्वारा रचित सभी चीजों और परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सभी सत्यों के माध्यम से, परमेश्वर के सच्चे अस्तित्व और सभी चीजों पर परमेश्वर के प्रभुत्व के तथ्यों को देख सकते हैं। प्रभु यीशु ने कहा था: "आकाश और पृथ्‍वी टल जाएँगे, परन्‍तु मेरी बातें कभी न टलेंगी" (मत्ती 24:35)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "आकाश और धरती समाप्त हो सकते हैं, लेकिन जो भी मैं कहता हूँ उसका एक अक्षर या एक रेखा भी कभी नहीं टलेगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 53)। इस तथ्‍य की वज़ह से कि परमेश्वर की हर भविष्यवाणी और हर वचन पूरा और सत्य हो रहा है, यह देखा जा सकता है कि केवल परमेश्वर के वचन ही सत्य हैं। संपूर्ण मानव जाति को परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्‍ता और प्रभुत्व को देखना चाहिए।

"वार्तालाप" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 2: परमेश्‍वर में अपना विश्वास रखते हुए और उनका अनुसरण करते हुए, हम शाश्‍वत जीवन प्राप्त कर सकते हैं। परमेश्‍वर के वचन इस बात का समर्थन करते हैं: प्रभु यीशु ने कहा था: "मैं ही पुनरुज्जीवन, और जीवन हूँ: जो कोई भी मुझमें विश्वास करता है, चाहे उसकी मृत्यु क्यों न हो जाएं, वह जीवित रहेगा: और जो कोई भी मुझमें जीता और विश्वास करता है, वह कभी नहीं मरता है" (यूहन्ना 11:25-26)। "परंतु जो कोई भी मेरे द्वारा दिए गये जल को पीता है, उसे प्यास फिर कभी नहीं सताएगी; परंतु जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसमें एक कुएं का निर्माण करेगी जिससे उसे चिरस्थायी जीवन प्राप्त होगा" (यूहन्ना 4:14)। ये अंश प्रभु यीशु के वादे हैं। प्रभु यीशु हमें शाश्‍वत जीवन प्रदान कर सकते हैं, प्रभु यीशु का मार्ग शाश्‍वत जीवन का मार्ग है। बाइबल कहती है, "वह जो पुत्र पर विश्वास करता है, वह शाश्वत जीवन प्राप्त करता है: और जो पुत्र पर विश्वास नहीं करता है, उसे जीवन का प्रकाश नहीं दिखेगा; बल्कि उसे परमेश्वर का क्रोध झेलना पड़ेगा" (यूहन्ना 3:36)। क्‍या प्रभु यीशु मनुष्य का पुत्र नहीं हैं, क्या वह मसीह नहीं है? प्रभु यीशु में विश्वास करके, हमें, इस प्रकार, शाश्‍वत जीवन का मार्ग भी मिलना चाहिए। लेकिन आप लोग इस बात की गवाही देते हैं कि अंतिम दिनों में मसीह के आसन के समक्ष न्‍याय और शुद्धिकरण का अनुभव कर सकें, और अंतिम दिनों में परमेश्‍वर से उद्धार प्राप्‍त कर सकें। हमारे लिये शाश्वत जीवन का मार्ग लाएँगे। मैं यह बिल्कुल नहीं समझ पा रहा हूँ, कि हम सभी प्रभु यीशु मसीह के अनुयायी हैं। यह शाश्‍वत जीवन के मार्ग को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त क्यों नहीं है? तो हमें अंतिम दिनों के मसीह के वचनों और कार्य को क्यों स्वीकार करना है?

अगला: प्रश्न 2: लेकिन मैंने न तो परमेश्वर को देखा है, और न ही ये देखा है कि परमेश्वर कैसे कार्य करते हैं और कैसे दुनिया पर प्रभुत्व रखते हैं। मेरे लिए परमेश्वर को समझना और स्वीकार करना मुश्किल है। इतने सालों तक धार्मिक विश्वासों का अध्ययन करने के बाद, मुझे लगता है कि धार्मिक विश्वास सिर्फ़ एक आध्यात्मिक सहारा है और मानव जाति की आध्यात्मिक शून्यता को भरने का एक साधन मात्र है। जिन्‍होंने भी परमेश्वर पर विश्वास रखा, क्या वे अंत में मर नहीं गये? किसी ने भी नहीं देखा कि कौन सा व्यक्ति स्वर्ग गया और कौन सा नरक। मैं सभी धार्मिक मान्यताओं को बहुत ही अस्पष्ट और अवास्तविक समझाता हूँ। वैज्ञानिक विकास और मनुष्य की प्रगति के साथ, हो सकता है कि धार्मिक विश्वासों को छोड़ और हटा दिया जाएगा। हमें अभी भी विज्ञान पर विश्वास करने की ज़रूरत है। केवल विज्ञान ही ऐसा सत्य और वास्तविकता है, जिससे कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। हालांकि, विज्ञान ने परमेश्वर के अस्तित्व से इन्कार नहीं किया है, लेकिन यह परमेश्वर के अस्तित्व की गवाही भी नहीं देता है। अगर विज्ञान वास्तव में यह तय कर सकता है कि परमेश्वर का अस्तित्व है और यह गवाही देता है कि परमेश्वर सभी चीजों पर प्रभुत्व रखते हैं, तब हम भी परमेश्वर पर विश्वास करेंगे। हम कम्युनिस्ट सिर्फ विज्ञान पर विश्वास करते हैं। केवल विज्ञान पर विश्वास करके और विज्ञान का विकास करके ही मनुष्य समाज की प्रगति जारी रहेगी। विज्ञान मनुष्य समाज की कई वास्तविक समस्याओं को हल कर सकता है। परमेश्वर पर भरोसा करके लोगों को क्या मिल रहा है? थोड़ी देर की आध्यात्मिक शांति के अलावा, इसका और क्या फायदा है? यह किसी भी व्यावहारिक समस्या को हल नहीं कर सकता। इसलिए, परमेश्वर पर विश्वास करने से विज्ञान पर विश्वास करना ज़्यादा वास्तविक है, कई गुना अधिक व्यावहारिक। हमें विज्ञान पर विश्वास करना होगा।

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1. प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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