61 परमेश्वर के प्रेम का प्रोत्साहन

1

परमेश्वर के परिवार में अपने कर्तव्य को पूरा करके,

मैंने परमेश्वर के महान प्रेम का अनुभव किया है।

यहाँ भाइयों और बहनों द्वारा की गयी देखभाल

मेरे माता-पिता के स्नेह से बढ़कर है।

मिलकर और परमेश्वर के प्रेम की बातें कर,

हम भावनाओं के आँसू बहाते हैं।

आपस में सहायता और सहयोग कर,

और सत्य पर सहभागिता करके, हमें प्रावधान मिलते हैं।

परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, उसके सामने जीकर,

मेरा हृदय हल्का और प्रकाश से भरा है।

मैं परमेश्वर से प्रेम करना और अपने कर्तव्य को निभाना,

और इस तरह एक अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहता हूँ।


आज जो कुछ भी मुझे ख़ुशी देता है, वह परमेश्वर के अनुग्रह और आशीर्वाद से है।

उसे चाहने और संतुष्ट करने को उसका प्रेम मुझे प्रोत्साहित करता है।

मैं सदा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करूँगा और उसके प्रेम का ऋण चुकाऊँगा।


2

भ्रष्ट प्रकृति के साथ, मनुष्य परमेश्वर का विरोध करता है।

परमेश्वर के वचनों के न्याय से गुज़रकर,

मैं अपनी भ्रष्टता की सच्चाई को देखता हूँ:

मैं घमंडी और कपटी हूँ, मानव की सदृशता से रहित हूँ।

देहासक्ति को त्याग कर और सत्य का अभ्यास कर,

मेरी भ्रष्टता दूर हो रही है।

परमेश्वर के वचन प्रतिदिन हमारा सिंचन-पोषण करते हैं,

उसके वचनों को जीकर, मैं उसके प्रेम का आनंद लेता हूँ।

सत्य का अभ्यास और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए,

जैसे जैसे आगे बढ़ता हूँ, मार्ग और प्रकाशित हो जाता है।

मैं परमेश्वर से प्रेम करना और अपने कर्तव्य को निभाना,

और इस तरह एक अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहता हूँ।


आज जो कुछ भी मुझे ख़ुशी देता है, वह परमेश्वर के अनुग्रह और आशीर्वाद से है।

उसे चाहने और संतुष्ट करने को उसका प्रेम मुझे प्रोत्साहित करता है।

मैं सदा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करूँगा और उसके प्रेम का ऋण चुकाऊँगा।


3

सरकार की यातनाओं से गुज़रकर,

परमेश्वर का अनुसरण करने की मेरी इच्छा बलवती हुई है।

उत्पीड़न और कठिनाइयों के बावजूद,

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रेम ने मुझे आगे बढ़ने को प्रोत्साहित किया है।

इस शिकार से सुरक्षित होकर, मैं परमेश्वर की शक्ति को देखता हूँ।

शैतान को त्यागकर, मैं परमेश्वर को सदा प्यार करता हूँ।

मैंने परमेश्वर के प्रेम का अनुभव किया है, यह बहुत सच्चा और वास्तविक है।

परमेश्वर धर्मी, पवित्र और स्तुति के योग्य है।


आज जो कुछ भी मुझे ख़ुशी देता है, वह परमेश्वर के अनुग्रह और आशीर्वाद से है।

उसे चाहने और संतुष्ट करने को उसका प्रेम मुझे प्रोत्साहित करता है।

मैं सदा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करूँगा और उसके प्रेम का ऋण चुकाऊँगा।

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