573 इंसान का फ़र्ज़ सृजित प्राणी का उद्यम है

1

मानव के कर्तव्य का सम्बंध नहीं उसके आशीर्वाद या अभिशाप दिए जाने से।

फ़र्ज़ है वो जो उसे करना चाहिए, बिन भुगतान और शर्त के।

"आशीषित" का मतलब है अच्छाई का आनंद लेना,

मानव के न्याय और सिद्धि के पश्चात्।

"शापित" का मतलब जो बदल न पाए अपना स्वभाव

उसे सहनी होंगी यातनाएँ।

मानव को पूरा करना चाहिए कर्तव्य।

उसे करना चाहिए जो वह कर सकता है,

चाहे वह आशीषित हो, या अभिशापित हो।

ये बनाता है उसे अनुयायी, ये बनाता है उसे अनुयायी ईश्वर का।

ये बनाता है उसे अनुयायी ईश्वर का।


2

तुम्हें न करना चाहिए कर्त्तव्य आशीषों के लिए,

न ही करो इनकार अभिशाप के डर से।

कर्त्तव्य पूरे होने चाहिए| तुम्हारी हार का मतलब है कि तुम बाग़ी हो।

"आशीषित" का मतलब है अच्छाई का आनंद लेना,

मानव के न्याय और सिद्धि के पश्चात्।

"शापित" का मतलब जो बदल न पाए अपना स्वभाव

उसे सहनी होंगी यातनाएँ।

मानव को पूरा करना चाहिए कर्तव्य।

उसे करना चाहिए जो वह कर सकता है,

चाहे वह आशीषित हो, या अभिशापित हो।

ये बनाता है उसे अनुयायी, ये बनाता है उसे अनुयायी ईश्वर का।

ये बनाता है उसे अनुयायी ईश्वर का।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारी परमेश्वर की सेवकाई और मनुष्य के कर्तव्य के बीच अंतर से रूपांतरित

पिछला: 572 परमेश्वर के बारे में संदेह करने वाले सबसे अधिक कपटी होते हैं

अगला: 574 अपने कर्तव्य में सत्य का अभ्यास करना ही कुंजी है

परमेश्वर का आशीष आपके पास आएगा! हमसे संपर्क करने के लिए बटन पर क्लिक करके, आपको प्रभु की वापसी का शुभ समाचार मिलेगा, और 2024 में उनका स्वागत करने का अवसर मिलेगा।

संबंधित सामग्री

775 तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास

1समझना चाहिये तुम्हें कितना बहुमूल्य है आज कार्य परमेश्वर का।जानते नहीं ये बात ज़्यादातर लोग, सोचते हैं कि पीड़ा है बेकार:अपने विश्वास के...

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें