350 भ्रष्ट इंसान परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता

1

सभी कार्य और कर्म शैतान के प्रकट होते इंसान में।

सभी कार्य और कर्म इंसान के

शैतान की अभिव्यक्ति हैं।

वे ईश्वर का प्रतिनिधित्व न कर सकें।

इंसान तो शैतान का मूर्त रूप है।

उसका स्वभाव ईश-स्वभाव का

प्रतिनिधित्व न कर सके।


कुछ लोगों के चरित्र अच्छे होते;

ईश्वर ऐसे लोगों द्वारा काम कर सके।

भले ही पवित्रात्मा उनकी अगुआई करे,

लेकिन उन पर किया गया ईश-कार्य

पहले से अंदर मौजूद चीज़ों के

विस्तार से ज़्यादा कुछ नहीं।

ईश्वर का सीधे प्रतिनिधित्व कोई न करे:

चाहे हों वे पहले के नबी

या वे जिनका ईश्वर इस्तेमाल करे।


यीशु की मिसाल ये साबित करने को काफी है

कि पाप-युक्त इंसान ईश-प्रतिनिधि न हो सके।

इंसान के पाप शैतान के प्रतिनिधि हैं।

पाप ईश्वर को न दर्शाए; ईश्वर तो निष्पाप है।

इंसान में पवित्रात्मा का कार्य भी

आत्मा द्वारा निर्देशित भर है,

ईश्वर की ओर से इंसान द्वारा किया कार्य नहीं।

इंसान का पाप या स्वभाव ईश-प्रतिनिधि नहीं।


2

ईश्वर से आने वाली सभी चीज़ें सकारात्मक हैं।

लेकिन इंसान का स्वभाव शैतान द्वारा संसाधित है,

वो ईश-प्रतिनिधि नहीं हो सकता।

केवल देहधारी ईश्वर का प्रेम,

कष्ट सहने का उसका संकल्प, धार्मिकता,

समर्पण, विनम्रता और छिपाव

सीधे ईश्वर के प्रतिनिधि हो सकें।


इसका कारण है ये कि जब वो आया,

तो उसमें पापमय प्रकृति नहीं थी;

वो सीधे ईश्वर से आया,

शैतान द्वारा संसाधित नहीं हुआ।

यीशु ने बस पापी देह को धारण किया,

वो पाप का प्रतिनिधित्व न करे;

सलीब चढ़ने के द्वारा काम खत्म करने से पहले के

उसके काम, कर्म, और वचन

सभी सीधे ईश्वर का प्रतिनिधित्व करें।


यीशु की मिसाल ये साबित करने को काफी है

कि पाप-युक्त इंसान ईश-प्रतिनिधि न हो सके।

इंसान के पाप शैतान के प्रतिनिधि हैं।

पाप ईश्वर को न दर्शाए; ईश्वर तो निष्पाप है।

इंसान में पवित्रात्मा का कार्य भी

आत्मा द्वारा निर्देशित भर है,

ईश्वर की ओर से इंसान द्वारा किया कार्य नहीं।

इंसान का पाप या स्वभाव ईश-प्रतिनिधि नहीं।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्य परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करने में अक्षम है से रूपांतरित

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