47. क्या लोगों की खुशामद करने वाले परमेश्वर के उद्धार को पा सकते हैं?

हाओ झेंग, चीन

मैं सामंती रीति-रिवाजों और जटिल पारस्परिक संबंधों वाले एक गरीब, पिछड़े पहाड़ी गाँव से हूँ। मैं उस माहौल से और अपने माता-पिता की इस तरह की बातों से वास्तव में प्रभावित था, "आप बोलने से पहले सोचें और फिर आत्मसंयम के साथ बात करें," "चुप्पी सोना है और बोल चांदी हैं, और जो ज्यादा बोलता है, वह ज्यादा गलतियाँ करता है," "अच्छे दोस्तों की गलतियों पर खामोश रहने से दोस्ती अच्छी और लंबी होती है," "दूसरों की भावनाओं और तर्क-शक्ति के सामंजस्य में अच्छी बातें कहो, क्योंकि निष्कपट होना दूसरों को खिझाता है।" मेरे जीवन में ये सभी दर्शन मेरे लिए ज्ञान के शब्द बन गए। यहाँ तक कि अपने भाई-बहनों को भी मैं हमेशा ध्यान से देखा करता, और उन्हें खुश करने के लिए अच्छी-अच्छी, प्रशंसात्मक बातें कहने की कोशिश करता। अगर कोई कुछ गलत कर देता और मेरे माता-पिता मुझसे पूछते कि यह किसने किया, तो मैं हमेशा कह देता कि मुझे नहीं पता, इसलिए मेरे भाई-बहन मुझे काफी पसंद करते थे। मेरी माँ भी हमेशा कहती कि मैं एक अच्छा बच्चा हूँ। जब मैं बाहर की दुनिया में आया, तो चाहे मैं दोस्तों के साथ रहूँ या विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ, मैं हमेशा अपने संबंधों की रक्षा के लिए अत्यंत सावधान रहा करता था। मैंने कभी ऐसा कुछ नहीं किया, जो किसी को नाराज करता, न ही मैंने कभी किसी के साथ बहस की। अगर कोई और मुझे नाराज कर देता, तो मैं वास्तव में क्षमाशील रहता और कोई समस्या खड़ी न करता। मेरे साथ बहुत बार अन्याय भी हुआ, और मैंने दमित और क्रोधित भी महसूस किया, लेकिन मैं "चुप्पी सोना है और जो ज्यादा बोलता है, वह ज्यादा गलतियाँ करता है" से चिपके रहता, और बस अपनी भावनाओं को दबा लेता। परिवार और दोस्तों के बीच मैं एक अच्छे इंसान के रूप में जाना जाने लगा। मेरे ऐसे स्वभाव के लिए हर कोई मेरी सराहना और प्रशंसा किया करता था, लेकिन मैंने हमेशा अपने दिल में एक दबाव और पीड़ा महसूस की, जिसे मैं शब्दों में प्रकट नहीं कर सकता। मैं हर किसी के साथ सावधान बना रहता था, ताकि कहीं किसी को नाराज न कर दूँ, और मैंने कभी किसी एक व्यक्ति के सामने भी वास्तव में खुलने की हिम्मत नहीं की। मैं हमेशा लोगों को खुश करने में लगा रहता था और अपने हितों की रक्षा के लिए एक नकली चेहरा लगाए रखता था। यह जीने का एक पीड़ादायक, थकाऊ और परेशान करने वाला तरीका था। मैं हमेशा सोचा करता, "मेरा दुख कब खत्म होगा? मैं कैसे एक आसान जीवन जी सकता हूँ?" जब मैं दिशा खो बैठा और दर्द में था, तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मेरी ओर अपने उद्धार का हाथ बढ़ाया।

1998 में मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार करने का सौभाग्य मिला। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि परमेश्वर ने देहधारण कर लिया है और वह मानवजाति को बचाने के लिए, मुख्य रूप से हमारे भ्रष्ट स्वभाव बदलने के लिए आया है, ताकि हम एक सच्ची मानवीय सदृशता को जी सकें। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "तुम लोगों को पता होना चाहिए कि परमेश्वर ईमानदार इंसान को पसंद करता है। मूल बात यह है कि परमेश्वर निष्ठावान है, अत: उसके वचनों पर हमेशा भरोसा किया जा सकता है; इसके अतिरिक्त, उसका कार्य दोषरहित और निर्विवाद है, यही कारण है कि परमेश्वर उन लोगों को पसंद करता है जो उसके साथ पूरी तरह से ईमानदार होते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ)। "मेरे राज्य को उन लोगों की ज़रूरत है जो ईमानदार हैं, उन लोगों की जो पाखंडी और धोखेबाज़ नहीं हैं। क्या सच्चे और ईमानदार लोग दुनिया में अलोकप्रिय नहीं हैं? मैं ठीक विपरीत हूँ। ईमानदार लोगों का मेरे पास आना स्वीकार्य है; इस तरह के व्यक्ति से मुझे प्रसन्नता होती है, और मुझे इस तरह के व्यक्ति की ज़रूरत भी है। ठीक यही तो मेरी धार्मिकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 33)। परमेश्वर हमसे ईमानदार, सरल और साफदिल बनने के लिए कहता है, क्योंकि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाने का एकमात्र मार्ग यही है। जब मैंने इसे पढ़ा, तो मुझे गहराई से महसूस हुआ कि जीने का यह एक आसान, खुशहाल तरीका है, और मैं ईमानदार बनने की आकांक्षा करने लगा, जैसा कि परमेश्वर चाहता है। भाइयों और बहनों के साथ बातचीत और सभाओं में मैंने देखा कि वे सभी ईमानदार थे और खुलकर बोला करते थे। वे निष्ठावान और सच्चे थे। जब वे किसी के बारे में राय रखते थे या किसी को भ्रष्टता प्रकट करते देखते थे, तो वे उनकी मदद करने के लिए इस बात को इंगित कर सकते थे, और वे खुलकर स्वयं अपने बारे में अपनी जानकारी पर बात कर सकते थे। यह वास्तव में मेरे लिए आश्चर्य की बात थी, क्योंकि मैंने हमेशा सोचा था कि लोगों के बारे में हमारी राय पर कोई भी चर्चा बिलकुल नहीं हो सकती, कि ईमानदार बनकर मैं दूसरों को अपमानित कर दूँगा और अपना नुकसान कर लूँगा। लेकिन यहाँ मुझे इस बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं थी। भाई-बहन दुनिया के लोगों की तरह कपटी नहीं थे, और जब उनसे किसी और को चोट पहुँचती थी, तो वे माफी माँग लेते थे। वे हमेशा दूसरों के बारे में सोचा करते थे। मुझे पता था कि वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचनों के कारण इसका अभ्यास कर सकते थे और इसे पूरी तरह से जी सकते थे। इसने मुझे और भी निश्चित कर दिया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, वे लोगों को शुद्ध और परिवर्तित कर सकते हैं, और मैं वास्तव में एक ईमानदार व्यक्ति बनना चाहता था। लेकिन जीवित रहने के लिए शैतान के दर्शन मेरे अंदर पहले ही घर कर चुके थे और अस्तित्व के लिए मेरे अपने नियम बन चुके थे। भाइयों और बहनों के साथ अपनी बातचीत में मैं अनजाने ही अभी भी उन शैतानी दर्शनों पर भरोसा कर रहा था। मुझे खुलकर बोलने और दिल की बात कहने से डर लगता था कि कहीं कोई नाराज न हो जाए या मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान न पहुँचे। मैं लोगों के साथ अपने संबंधों की रक्षा करने के लिए सावधान बना रहा और मुझे लगा कि ईमानदार होना वास्तव में एक कठिन काम है। फिर मुझे शुद्ध और परिवर्तित करने के लिए परमेश्वर ने सावधानीपूर्वक मेरी भ्रष्टता और कमियाँ उजागर करने के लिए सही परिवेश की व्यवस्था की, और मुझे एक ईमानदार व्यक्ति होने की वास्तविकता में ले गया।

बाद में मैंने भाई ली के साथ एक समूह-अगुआ के रूप में काम करना शुरू किया। हममें अच्छा तालमेल था और उसने बहुत सारी चीजों में मेरी मदद की। लेकिन हमारे कर्तव्य में, मुझे पता चला कि वह अहंकारी और मनचला है, और सिद्धांतों से नहीं चलता। हर बार जब मैं कुछ कहना चाहता था, मैं अपना मुँह खोलने को होता ही था कि अपने शब्द निगलकर रह जाता। मैं सोचता, "अगर मैं उसकी आलोचना करूँगा, तो वह कहेगा कि मेरे पास कोई जमीर नहीं है, कि वह तो मेरे प्रति इतना दयालु रहा है लेकिन मैं हमेशा उसकी समस्याएँ ही इंगित करता रहता हूँ। क्या होगा अगर वह मेरे प्रति पूर्वाग्रही हो जाए, और हम आगे अपने कर्तव्य में एक-साथ काम न कर पाएँ?" मैं कभी यह बात उसके सामने नहीं लाया, ताकि मैं अपने संबंध की रक्षा कर सकूँ। भाई ली ने बाद में कलीसिया के काम बहुत बुरा असर डाला, क्योंकि वह अहंकारी था और अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता था, और उसे बदल दिया गया। इसके बावजूद मैंने कभी आत्म-चिंतन नहीं किया। लेकिन फिर, एक दिन जब मैं किसी बात के लिए भाई ली के घर गया, तो उसकी पत्नी ने मुझसे कहा, "मेरे पति के बदले जाने में तुम्हारा हाथ है। यदि तुम उसे चेतावनी दे देते और उसकी मदद कर पाते, तो संभव है कि उसने अपने काम में इतनी मनमानी और लापरवाही न बरती होती और कलीसिया के काम को बाधित न किया होता। तुम कलीसिया के काम को सँभाल क्यों नहीं पाते? तुम तो लोगों के खुशामदी हो, तुम सत्य का अभ्यास नहीं करते!" उसे यह कहते सुनना मेरे लिए विनाशकारी था, और मुझे किसी भी और चीज से अधिक शर्मिंदगी महसूस हुई। वहाँ से चलने के बाद, मैं अपने आँसू बहने से नहीं रोक पाया। अपने दर्द में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "हे परमेश्वर, तुमने इस बहन को आज मुझसे निपटने और मुझे फटकारने दिया, लेकिन मैं वास्तव में खुद को नहीं जानता। कृपया मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन करो।" प्रार्थना करने के बाद मैं धीरे-धीरे शांत हो गया और भाई ली के साथ बिताए गए अपने कार्य-काल के बारे में सोचने लगा। मैंने देखा कि मैं शैतान के जीवन-दर्शन से जी रहा था। मैंने स्पष्टतः उसे सिद्धांतों के खिलाफ जाते देखा था, लेकिन मैंने उसे रोका नहीं, न ही उसकी कोई मदद की। मुझे उसके नाराज हो जाने और हमारे कामकाजी संबंधों को नुकसान पहुँचने का डर था। भाई ली के उस बिंदु तक जाने में मेरी भी जिम्मेदारी थी, जिससे मैं बच नहीं सकता था। मुझे अधिकाधिक अपराध-बोध और पश्चात्ताप का अनुभव हुआ।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "अच्छी मानवता होने का कोई मानक अवश्य होना चाहिए। इसमें संयम का मार्ग अपनाना, सिद्धांतों से चिपके न रहना, किसी को नाराज़ नहीं करने का प्रयत्न करना, जहाँ भी तुम जाओ वहीं चापलूसी करके कृपापात्र बनना, जिससे भी तुम मिलो सभी से चिकनी-चुपड़ी बातें करना, और सभी को अच्छा महसूस कराना शामिल नहीं है। यह मानक नहीं है। तो मानक क्या है? इसमें शामिल है परमेश्वर, अन्य लोगों, और घटनाओं के साथ सच्चे हृदय से बर्ताव करना, उत्तरदायित्व स्वीकार कर पाना, और यह सब इतने स्पष्ट ढंग से करना कि हर कोई देख और महसूस कर सके। इतना ही नहीं, परमेश्वर लोगों के हृदय को टटोलता है और उनमें से हर एक को जानता है। कुछ लोग हमेशा डींग हाँकते हैं कि वे अच्छी मानवता से युक्त हैं, यह दावा करते हैं कि उन्होंने कभी कुछ बुरा नहीं किया, दूसरों का माल-असबाब नहीं चुराया, या अन्य लोगों की चीजों की लालसा नहीं की। यहाँ तक कि जब हितों को लेकर विवाद होता है, तब वे नुक़सान उठाना चुनकर, अपनी क़ीमत पर दूसरों को लाभ उठाने देते हैं, और वे कभी किसी के बारे में बुरा नहीं बोलते ताकि अन्य हर कोई यही सोचे कि वे अच्छे लोग हैं। परंतु, परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाते समय, वे कुटिल और चालाक होते हैं, हमेशा स्वयं अपने हित में षड़यंत्र करते हैं। वे कभी भी परमेश्वर के घर के हितों के बारे में नहीं सोचते, वे कभी उन चीजों को अत्यावश्यक नहीं मानते हैं जिन्हें परमेश्वर अत्यावश्यक मानता है या उस तरह नहीं सोचते हैं जिस तरह परमेश्वर सोचता है, और वे कभी अपने हितों को एक तरफ़ नहीं रख सकते ताकि अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। वे कभी अपने हितों का परित्याग नहीं करते। यहाँ तक कि जब वे कुकर्मियों को बुरा करते देखते हैं, वे उन्हें उजागर नहीं करते; उनके रत्ती भर भी कोई सिद्धांत नहीं हैं। यह अच्छी मानवता का उदाहरण नहीं है। ऐसे व्यक्ति की बातों पर बिल्कुल ध्यान न दो; तुम्हें देखना चाहिए कि वह किस प्रकार का जीवन जीता है, क्या प्रकट करता है, कर्तव्य निभाते समय उसका रवैया कैसा होता है, साथ ही उसकी अंदरूनी दशा कैसी है और उसे क्या पसंद है। अगर अपनी शोहरत और दौलत के प्रति उसका प्रेम परमेश्वर के प्रति निष्ठा से बढ़कर है, अगर अपनी शोहरत और दौलत के प्रति उसका प्रेम परमेश्वर के हितों से बढ़कर है, अगर अपनी शोहरत और दौलत के प्रति उसका प्रेम उस विचारशीलता से बढ़कर है जो वो परमेश्वर के प्रति दर्शाता है, तो उस इंसान में इंसानियत नहीं है। उसका व्यवहार दूसरों के द्वारा और परमेश्वर द्वारा देखा जा सकता है; इसलिए ऐसे इंसान के लिए सत्य को हासिल करना बहुत कठिन होता है"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'अपना सच्चा हृदय परमेश्वर को दो, और तुम सत्य को प्राप्त कर सकते हो')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि एक अच्छा इंसान होना अच्छा अभिनय करना नहीं है। यह लोगों के साथ निभाना या उनका अनुमोदन पाना नहीं है। यह अपने हृदय को परमेश्वर की ओर मोड़ना, निष्ठावान होकर परमेश्वर के घर का कार्य सँभालने के लिए सत्य का अभ्यास करना, सत्य के सिद्धांतों का पालन करना, और लोगों को उनके जीवन में आध्यात्मिक रूप से सहायता और समर्थन देना है। लेकिन मैंने भाई ली को कई बार मनमानी करते और सत्य के खिलाफ जाते, बहुत अहंकारी होते और अन्य लोगों के सुझावों को अस्वीकार करते देखा था, और मैं जानता था कि यह उसके लिए और परमेश्वर के घर के कार्य दोनों के लिए बुरा था, फिर भी मैं इस शैतानी दर्शन से चला कि "अच्छे दोस्तों की गलतियों पर खामोश रहने से दोस्ती अच्छी और लंबी होती है।" मैंने अपनी आँखें मूँद ली थीं। मैंने उसकी मदद नहीं की, न ही कलीसिया के अगुआ से इसका उल्लेख किया। मैं बस कलीसिया के कार्य का नुकसान होते देखता रहा। सत्य का अभ्यास करने और जिम्मेदार होने के लिए मैं अपनी प्रतिष्ठा का त्याग नहीं कर सका। मैं कितना स्वार्थी, नीच और धोखेबाज था! क्या मैं उसके पाप को सक्षम नहीं बना रहा था? क्या मैं शैतान की ओर नहीं खड़ा था? किसी को नाराज करने के भय से मैं एक नीच, स्वार्थी व्यक्ति बन गया। मुझे धार्मिकता का कोई बोध नहीं था। मैं बिलकुल भी एक अच्छा इंसान नहीं था। "एक अच्छा आदमी" बनने की कोशिश में मैं लोगों की खुशामद करने वाला और धोखेबाज व्यक्ति बन गया था, जिससे परमेश्वर घृणा करता है। बाहर की दुनिया में ऐसा व्यक्ति होना ठीक होगा, लेकिन परमेश्वर के घर में यह उसे नाराज करता है। फिर मुझे एहसास हुआ कि सत्य का अभ्यास करने के बजाय संबंधों की रक्षा के लिए अच्छा बने रहना वास्तव में लोगों को नुकसान पहुँचाता है। पहली बार, एक अच्छा इंसान होने के बारे में मेरा नजरिया हिल गया था। मैंने देखा कि अपने संबंधों में मेरा शैतानी दर्शनों से चलना पूरी तरह से गलत था, और इस बार निपटे जाने का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा था, जिसे मैं कभी नहीं भूलूँगा। मुझे लगा कि भाई ली ने तो एक अपराध ही किया था, लेकिन मुझ पर तो एक शाश्वत ऋण चढ़ गया था। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना के माध्यम से मैंने वर्षों की अपनी भटकी हुई तलाश की समझ हासिल की और मैं अब आगे उस तरह से जीना नहीं चाहता था। मैं एक ऐसा ईमानदार, सीधा व्यक्ति बनने के लिए तैयार हो गया, जिसकी परमेश्वर अपेक्षा करता है। मेरी एक ईमानदार व्यक्ति बनने के लिए काम करने की इच्छा थी, लेकिन चूँकि मेरी भ्रष्टता और मेरा शैतानी स्वभाव इतने गहरे हो गए थे, और एक खुशामदी इंसान होने की अपनी प्रकृति और सार को न तो पूरी तरह से समझ पाया था, न ही उससे घृणा कर पाया था, इसलिए मैं वास्तव में बदला नहीं। जल्दी ही मैं उसी पुराने ढर्रे पर लौट आया।

पास के एक गाँव में रहने वाला बहन झांग का पति पूरी तरह से दुष्ट, एक स्थानीय ठग था, जो उसके विश्वास के मार्ग में रुकावट बनकर खड़ा था। जब भी वह उसे किसी सभा के लिए जाते देखता, तो वह अन्य भाइयों और बहनों के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देता, ताकि उन्हें कोई शांति न मिले। एक बार जब वह एक सभा के लिए गई थी, तो उसका पति एक लकड़ी, जिसका एक भाई घर बनाने के लिए इस्तेमाल करने जा रहा था, उठा ले गया और उसमें आग लगा दी। कलीसिया के अगुआ ने बहन से कहा, "सभाओं में मत आना—हमें सभी को सुरक्षित रखना है। अपने घर पर ही अपनी भक्ति करो और स्वयं ही परमेश्वर के वचनों को पढ़ो।" लेकिन कुछ समय बाद, वह वास्तव में एक सभा में भाग लेना चाहती थी और वह सिस्टर वांग से मिलने के लिए खुद को हमारे गाँव में आने से नहीं रोक पाई। बहन वांग को समझ नहीं आया कि ऐसे में वह क्या करे, इसलिए वह मुझसे बात करने के लिए आ गई। मैं अच्छी तरह से जानता था कि कलीसिया के हित सर्वोपरि हैं, और बहन झांग को घर चले जाना चाहिए। लेकिन फिर मैंने सोचा, "मैं कलीसिया का अगुआ नहीं हूँ। अगर यह कदम गलत हुआ, तो दूसरे लोग क्या सोचेंगे? इसके अलावा, अगर बहन झांग को पता चला कि मैंने उसे सभा में जाने से रोका था, तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी?" इस विचार से, मैंने विनम्रतापूर्वक यह कहते हुए अपने आप को बचाया, "इस बारे में आपको वास्तव में कलीसिया के किसी अगुआ से बात करनी चाहिए। जाकर उनमें से किसी को खोज लो।" वह अंततः किसी से मिलने में सक्षम नहीं हुई, इसलिए उसने बहन झांग को रहने दिया।

अगली शाम जब मैं अपने घर पर आराधना कर रहा था और परमेश्वर के वचनों के भजन सुन रहा था, तो अचानक मैंने किसी को जोर से दरवाजा पीटते हुए सुना। जैसे ही मेरे बेटे ने दरवाजा खोला, तीन-चार हट्टे-कट्टे लोग लकड़ी के डंडे लिए घुस पड़े और फिर चार-पाँच और लोग मेरी छत से नीचे कूद आए। उन्होंने मुझे एक शब्द भी कहे बिना बिस्तर पर गिरा दिया और मेरी जबरदस्त पिटाई की। मैं सचमुच डर गया। मैं प्रार्थना करने लगा और निरंतर परमेश्वर को पुकारता रहा। जब दर्द वास्तव में बहुत ज्यादा था, तभी पलंग का ढाँचा टूट गया और मैं फर्श पर गिर पड़ा। उन गुंडों ने सोचा कि मैं गंभीर रूप से घायल हो गया हूँ, और वे घबराहट में भाग गए। मुझे लगा कि इस तरह की पिटाई के बाद निश्चित ही मेरी कुछ हड्डियाँ टूट गई होंगी, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि वे सिर्फ मांसपेशियों के घाव थे और हड्डियों पर कोई चोट नहीं आई थी। मुझे पता था कि यह परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा थी। एक दिन बाद मुझे पता चला कि बहन झांग के पति को पता था कि वह एक सभा के लिए जा रही है और उसे लगा कि मैंने इसकी व्यवस्था की थी, इसलिए उसने उन गुंडों को मुझसे मारपीट करने के लिए भेजा था। मुझे एहसास हुआ कि यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि मैंने सिद्धांतों का पालन नहीं किया था। अगर मैंने सिद्धांतों का पालन किया होता और मैं बहन झांग को उस सभा में जाने से रोक देता, तो यह नौबत नहीं आती। उन गुंडों द्वारा मेरी पिटाई सिर्फ इसलिए की गई, क्योंकि मैं स्वार्थी और नीच था। मैंने केवल अपने हितों की परवाह की थी और मैं एक ऐसा "अच्छा आदमी" था, जो सत्य का अभ्यास नहीं करता। मैं ही इसके लिए जिम्मेदार था।

बाद में मैं तलाश और आत्म-चिंतन के लिए परमेश्वर के सामने आया : मैं अपने हितों की रक्षा करना और लोगों को खुश करना क्यों नहीं छोड़ सका? जब मैं सत्य को जानता था, तो मैं उसे अभ्यास में क्यों नहीं ला सका? एक बार मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े थे : "शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन-प्रकृति बन गए हैं। 'स्वर्ग उन लोगों को नष्ट कर देता है जो स्वयं के लिए नहीं हैं' एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। जीने के लिए दर्शन के कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश की उत्तम पारंपरिक संस्कृति के माध्यम से लोगों को शिक्षित करता है और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। ... अभी भी लोगों के जीवन में, और उनके आचरण और व्यवहार में कई शैतानी विष उपस्थित हैं—उनमें बिलकुल भी कोई सत्य नहीं है। उदाहरण के लिए, उनके जीवन दर्शन, काम करने के उनके तरीके, और उनकी सभी कहावतें बड़े लाल अजगर के विष से भरी हैं, और ये सभी शैतान से आते हैं। इस प्रकार, सभी चीजें जो लोगों की हड्डियों और रक्त में बहें, वह सभी शैतान की चीज़ें हैं। उन सभी अधिकारियों, सत्ताधारियों और प्रवीण लोगों के सफलता पाने के अपने ही मार्ग और रहस्य होते हैं, तो क्या ऐसे रहस्य उनकी प्रकृति का उत्तम रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं? वे दुनिया में कई बड़ी चीज़ें कर चुके हैं और उन के पीछे उनकी जो चालें और षड्यंत्र हैं उन्हें कोई समझ नहीं पाता है। यह दिखाता है कि उनकी प्रकृति आखिर कितनी कपटी और विषैली है। शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह देखा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति दूषित, बुरी और प्रतिक्रियावादी है, शैतान के दर्शन से भरी हुई और उसमें डूबी हुई है—अपनी समग्रता में यह प्रकृति परमेश्वर के साथ विश्वासघात करती है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें')। जब मैंने इस पर सोचा, तो मुझे समस्या की जड़ मिल गई। मैं हमेशा एक ऐसा खुशामदी व्यक्ति रहा था, जो सत्य का अभ्यास नहीं कर सकता था, क्योंकि मैं शैतान के दर्शनों और विषों से भरा हुआ था : "चुप्पी सोना है और बोल चांदी हैं, और जो ज्यादा बोलता है, वह ज्यादा गलतियाँ करता है," "जब पता हो कि कुछ गड़बड़ है, तो चुप रहना ही बेहतर है," "ज्ञानी लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं," "आप बोलने से पहले सोचें और फिर आत्मसंयम के साथ बात करें," "अच्छे दोस्तों की गलतियों पर खामोश रहने से दोस्ती अच्छी और लंबी होती है।" मैंने इन शब्दों को अपने जीवन-दर्शन और आचरण के नियमों के रूप में ले लिया था, और इन चीजों के आधार पर मैंने एक अच्छा आदमी बनने के लिए जो भी मैं कर सका, वह किया। अपनी सभी अंत:क्रियाओं में मैंने इतना ही सोचा कि लोगों को नाराज न करूँ, और लोगों की प्रशंसा और सराहना कैसे प्राप्त करूँ। मैं शैतान की फिसलन और कपटभरे दर्शनों में परिपूर्ण हो गया था और वे ऐसी चीजें बन गईं, जो मैं स्वाभाविक रूप से प्रकट करता था। भले ही दुनिया में मैं एक भले व्यक्ति जैसा नजर आ रहा था और लोग एक अच्छे आदमी के रूप में मेरी प्रशंसा करते थे, मैं वास्तव में एक अच्छा व्यक्ति होने से कोसों दूर था। शैतान के इन विषों के अनुसार जीने से मुझे क्या हासिल हो रहा था? जब मैं छोटा था, तो मैंने वह मासूमियत खो दी जो एक बच्चे में होनी चाहिए, और मैंने सभी के सामने नकली चेहरा लगाया। जब भी मैं बातचीत और काम करता था, मैं बहुत सावधान रहता था और हमेशा दूसरों की तरफ देखा करता था। मैं सबके साथ सतर्क बना रहता था। मैंने कभी किसी से दिल खोलकर बात नहीं की। यहाँ तक कि मैं अपने परिवार के साथ भी धोखा करता था। मैं अपने ही जमीर के खिलाफ जाता था और मैंने अपनी गरिमा और ईमानदारी बेच दी थी, क्योंकि मुझे दूसरों के नाराज हो जाने का डर था। मैंने कभी न्याय के पक्ष में खड़े होने की हिम्मत नहीं की और अपनी छवि की रक्षा के लिए अपनी ईमानदारी से समझौता किया। गुस्सा आने पर भी मैंने स्वयं को मुसकराने पर मजबूर किया। न केवल इन शैतानी दर्शनों ने मुझे सामान्य मानवीय सदृशता को जीने से रोक दिया, बल्कि मैं स्वार्थी, नीच, धोखेबाज और भले-बुरे का भेद कर पाने में असमर्थ हो गया। इन शैतानी दर्शनों से जीने से मुझे पल भर के लिए दूसरों की प्रशंसा तो मिली, लेकिन यह अदृश्य बेड़ियों में बँधने, बल्कि कसकर जकड़े जाने जैसा था। मैं स्वतंत्रतापूर्वक बोल नहीं सकता था, न स्वतंत्रतापूर्वक कुछ कर ही सकता था। मेरे पास कोई स्वतंत्रता नहीं थी, और मैं वास्तव में उदास और पीड़ाग्रस्त था। अब मैं देख सकता था कि एक खुशामदी व्यक्ति बनना, जिसकी मैं कोशिश किया करता था, वास्तव में एक अच्छा व्यक्ति बनना नहीं था, बल्कि यह एक चालाक, काले दिल का व्यक्ति बनना था, जो सत्य का अनुसरण नहीं करता। मैं परमेश्वर का विरोध और उससे विश्वासघात कर रहा था। परमेश्वर के न्याय और शोधन के बिना मुझे कभी बचाया नहीं जा सकता। तब मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने ही उन ठगों को मुझे पीटने दिया था। वह मुझे चेतावनी दे रहा था कि मैं परमेश्वर के सामने आऊँ और आत्म-चिंतन करूँ, लोगों को खुश करने वाला व्यक्ति बनने के सार और परिणाम जानूँ और पश्चात्ताप करूँ।

परमेश्वर के वचन पढ़कर मैंने लोगों की खुशामद करने वाला व्यक्ति होने की प्रकृति और सार, और साथ ही उसके खतरे और परिणाम देखे। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और वास्तव में सत्य का अनुसरण करने, शैतान के दर्शनों के बंधनों से मुक्त होने और परमेश्वर के वचनों के अनुसार ईमानदार बनने के लिए तैयार हो गया। एक बार मुझे पता चला कि बहन लिन को दूसरी कलीसिया में स्थानांतरित कर दिया गया है और उसे एक उपयाजक चुना गया है। मुझे पता था कि वह वास्तव में एक धोखेबाज व्यक्ति है और इससे पहले कलीसिया में अपना कर्तव्य निभाने में वास्तव में कुटिल रही है, जो कहती कुछ थी, और करती कुछ और थी। मुझे पता था कि ऐसे किसी धोखेबाज को कलीसिया का उपयाजक नहीं होना चाहिए और मुझे कलीसिया के काम को बरकरार रखना चाहिए। मैंने उस कलीसिया के अगुआ को स्थिति स्पष्ट करते हुए एक पत्र लिखने का निश्चय किया। लेकिन जैसे ही मैंने कलम उठाई, मैं झिझककर यह सोचने लगा, "यह उनकी कलीसिया का मामला है। क्या उनका अगुआ यह नहीं कहेगा कि मैं अपने काम से काम न रखकर अपनी सीमा लाँघ रहा हूँ?" फिर मैंने परमेश्वर के कुछ वचनों के बारे में सोचा। "तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम में शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरी इच्छा को स्वयं में पूरा होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के हर वचन ने मेरे दिल से बात की और मैं परमेश्वर की उस तात्कालिक इच्छा को महसूस कर पाया, जो यह आशा करती है कि लोग सत्य का अभ्यास करें और धार्मिकता को बनाए रखें, शैतान की ताकतों को "नहीं" कहने की हिम्मत करें और परमेश्वर के काम को बरकरार रखने की जिम्मेदारी लें। वह यह नहीं चाहता कि हम अपने लाभ और हानि की गणना करें, बल्कि यह चाहता है कि हम कलीसिया के हितों को प्राथमिकता दें। जब मैंने परमेश्वर की इच्छा को समझ लिया, तो मुझे सत्य को व्यवहार में लाने का आत्मविश्वास मिला, इसलिए मैंने दूसरी कलीसिया के अगुआ को बहन लिन के बारे में वह पत्र लिख दिया। कुछ दिनों बाद उस अगुआ ने मुझे बताया कि उन्होंने इसकी जाँच और पुष्टि की थी कि बहन लिन एक धोखेबाज व्यक्ति है, इसलिए उन्होंने उसके काम को बदल दिया था। इसका यह परिणाम देखना सांत्वनादायक था और मुझे आराम महसूस हुआ। मैंने देखा कि ईमानदार होना अद्भुत होता है और मैं कुछ सार्थक कर पाया था। कुछ भाइयों और बहनों ने बाद में मुझे बताया कि कलीसिया के हितों की रक्षा के लिए वह पत्र लिखने से यह पता चलता है कि मैं वास्तव में बदल गया हूँ, और मैंने धार्मिकता का बोध हासिल कर लिया है। उनसे यह सुनना मुझे द्रवित कर गया। मैं अपने दिल में जानता था कि सत्य का अभ्यास करना और वह थोड़ा-सा बदलाव पाना भी परमेश्वर के न्याय और ताड़ना द्वारा हासिल किया गया है। मैं अपने उद्धार के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ!

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